ब्राह्मणं दशवर्षं तु शतवर्षं तु भूमिपम् ।
पितापुत्रौ विजानीयाद्ब्राह्मणस्तु तयोः पिता ।(2/135 मनुस्मृति)
दस वर्ष का ब्राह्मण और सौ वर्ष का क्षत्रिय दोनों आपस में बाप बेटे की नाईं रहें। उनमें ब्राह्मण पितावत् और क्षत्रिय पुत्रवत् रहे ।
ये २।१०५ -११० (२।१३० - १३५) छः श्लोक निम्नकारणों से प्रक्षिप्त हैं - (क)
ये श्लोक प्रसंग - विरूद्ध हैं । ।
जैसे दशवर्ष के ब्राह्मण को १०० वर्ष के क्षत्रिय से बड़ा कहा है । यह अवस्था का निर्देश जन्म से बड़ा कहा है । यह अवस्था का निर्देश जन्म से बड़प्पन की पुष्टि कर रहा है । दश वर्ष का ब्राह्मण - बालक कैसे बिना विद्या पढ़े ही पिता हो सकता है ? मनुस्मृति में अन्यत्र (२।१२८ में) ‘अज्ञों भवति वै बालः पिता भवति मन्त्रदः’ कह कर ज्ञान के कारण बड़ा माना है और २।११२ में भी मान का आधार गुणों को माना है ।
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