शनिवार, 3 अक्टूबर 2020

आज

दर्द की छाप हैं हम  
       दिल में तन्हाई है !
जिधर भी  देखते हैं 
      उधर ही  तबाई है 


मजलूमों  की वस्तियों में 
  ये कैसा प्रलाप है !
गरीब होना जहाँ जैसे 
 कोई अभिशाप है 
कामनाओं की गिरफ्त मन
यहीं से बस पाप है 



आगे की तैयारी है 
प्रयास हमारा जारी  
जब तक है श्वाँस लड़ेगे हम 
क्यों न मुशीबत भारी



        

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