दर्द की छाप हैं हम
दिल में तन्हाई है !
जिधर भी देखते हैं
उधर ही तबाई है
मजलूमों की वस्तियों में
ये कैसा प्रलाप है !
गरीब होना जहाँ जैसे
कोई अभिशाप है
कामनाओं की गिरफ्त मन
यहीं से बस पाप है
आगे की तैयारी है
प्रयास हमारा जारी
जब तक है श्वाँस लड़ेगे हम
क्यों न मुशीबत भारी
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