_चिता जले , सतसंग चले
रतिक्रिया का अवसान !
जो भाव विराग मन में पले
तो दूर नहीं भगवान् !!
पल पल में है ,जीवन सञ्चित
मत कल कलका कर ध्यान
नियम, संयम ही तप है रोहि !
ईश्वर से तेरी पहचान !!
धन दौलत है तो
तन की बदौलत !
मन की शुद्धि से ज्ञान !!
वासना उपासना संग चलें
ये सब जीवन के मध्यान !
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आकर्षण कम क्षण क्षण होता .
मन का वेग थम जाने के बाद ..
जरूरत में खूब सूरत लगते ..
भूखों को टिक्कर में स्वाद ...
गधों को पुजते भी देखा है ..
कई किस्से हैं जमाने के याद ...
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बहुत देखा जीवन में हमने
बिल्कुल सीधा शरीफ़ बनकर ..
सीधे तो पेड़ भी कट गये।
बच गये वे जो खड़े थे तनकर..
शराफत के मोल जिन्दगी मेंं आफत
एक सज्जन बोला तभी अकड़कर ।।
टेड-मेड़े़े पेड़ छोड़ दिये जाते है .
चढ़ावा चढ़ता पूजते नमन कर...
कोई कहता गणेश ,कोई जाहर पीर है!
गोबर का पुजना भी उसकी तकदीर है।
जियारत को आती करोड़ो की बहीर है।
गरीबों से बड़कर कौन यहाँ फ़कीर है ।
और कोई बोला ये डमरू बाले हैं शंकर..
रोहि ये श्रृद्धा है सदीयों से है बेखबर ।।
शरीफो की तुलना यहाँ
कमजोरों से की जाती !
आगे रहने वालों की ही
चोटिल होती है छाती .
ईमान दारों को यहाँ मूर्ख समझा जाता है रोहि ..
स्वार्थ की आँधियों में सच नहीं देखता कोई ..
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इसे इत्तेफाक समझो
या दर्द भरी हकीकत,।
जबानी के आवेगों में
डिगी आदमी की नीयत ।।
उम्र ही तय करती हैं रिश्तों की अहमियत ..
लव ,तलब और मतलब दुनियाँ की हकीकत ..
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सबसे ज्यादा आपको हमने ऐेैसे मुकामों पर परखा है ।
ईमान डिगाने बालों ने भी हाथ कलेजे पर रखा है ..
हमने कभी दुनियाँ के निश्वतों को ,
गहरे से नहीं लिया है ।
..जिसने भी जो दिया वही हमने बस चखा है।
जिन्दगी ख़यालों का झोेैखा .
स्वप्न के मानिन्द दिखता है .
दुनिया के इस बाज़ार में ,
आज क्या नहीं बिकता है..
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विचारों के सम धरातल पर
मिलते हैं दोस्त पक्के ...
विचार के न मिलने पर ही,
लगते हैं बस धक्के ..
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चाहत केवल ख़ूब सूरती से नहीं
बल्कि दरकार ए ज़रुरत से होती है ..
हम उस सीपि के तलब दार हैं
जिसमें हक़ीकत में ही मोती है ..
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ज़ख़्म दे कर ना पूछा करो,
किसी से दर्द की हालत क्या है ?
ये हुश्न की हाला है 'रोहि'..
छूटती नहीं ये लत बेहया है ।...।।
"दर्द तो दर्द" होता हैं,
थोड़ा , हो या ज्यादा..!!
मञ्जिले मिलती हैं उनको ..
फौलादी जिनके इरादा ...
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"दिन बीत जाते हैं सुहानी यादें बनकर,
कुछ बातें रह जाती हैं कहानी बनकर,
जिन्दगी के सफर वक्त की राहों पर ।
बहुत से मित्र छूट जाते हैं चौराहों पर।
जवानी भी ढल जाती है धीरे धीरे
रोहि उमंगो की एक रवानी बनकर ।
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वक़्त बहुत कुछ, बसूल लेता है ...
बदनशीं और मजबूरियों की बौखलाहट में ,
हमने अपने ग़मों को संजोया तो मुस्कुराहट में ,
जिन्दगी गुजार दी रुसबाईयों के द्वार .
तन्हाईयों की आहट मायूसी की चौखट में
हो गये हैं बस जार जार ।
आदमी का जमीर बिकता है ...
कितना महँगा या सस्ता ये
उसकी दस्वारीयाँ तय करती है...!
अपनों से फासिले शुकून
और दूरियाँ केवल भय भरती हैं ।
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लव दिल से और दिमाग से मतलब निकलते है।
इरादे जिनके मर गये वे तलब में ढलते हैं।
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सब कुछ हासिल नहीं होता
ज़िन्दगी को इस जमाने में ....
सत्य को जानना ही काफी है।
क्या रखा है किसी को आजमाने में
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यादव योगेश कुमार'रोहि'अलीगढ़ सम्पर्क सूत्र 8077160219
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