अव्यय ( AVYAY ) अव्यय जिस शब्दरूप में लिंग, वचन, पुरुष, कारक इत्यादि के कारण कोई विकार पैदा नहीं होता, उसे अव्यय कहते हैं. वस्तुतः किसी भी स्थिति में अव्यय का रूप वैसे – का – वैसे बना रहता है. जैसे – धीरे- धीरे, यहाँ, वहां, जब, तब, इसलिए, किन्तु, परन्तु, वह, आह, कब, इत्यादि. अव्यय के भेद क्रियाविशेषण सम्बन्धबोधक समुच्चयबोधक विस्मयादिबोधक क्रियाविशेषण क्रिया की विशेषता बताने वाले अव्यय को क्रिया विशेषण कहते हैं. जैसे – यहाँ, वहां, अभी, जल्दी बहुत इत्यादि. संयुक्त क्रिया विशेषण – संज्ञाओं, क्रिया क्रिया विशेषणों एवं अनुकरणमूलक शब्दों की द्विरुक्ति; संज्ञाओं के एवं भिन्न क्रियाविशेषणों के मेल से, अव्यय के प्रयोग से था क्रियाविशेषणों की पुनरुक्ति के बीच ‘न’ आने से बने क्रियाविशेषण को संयुक्त क्रियाविशेषण कहते हैं. जैसे – घर घर, फटाफट, दिन- रात, जहाँ-तहाँ प्रतिदिन, कुछ न कुछ इत्यादि. अर्थ के आधार पर क्रियाविशेषण के भेद चार हैं- स्थानवाचक: स्तिथिवाचक- यहाँ,वहां, बाहर, भीतर इत्यादि. दिशावाचक- इधर , उधर, दायें, बाएं इत्यादि. कालवाचक: समयवाचक – अभी, आज, कल, जब, तुरंत, इत्यादि. अवधिवाचक – नित्य, दिन- बाहर, आजकल इत्यादि. बारम्बरतावाचक – प्रतिदिन, कई, बार, हर बार इत्यादि परिमाणवाचक अधिकताबोधक – बहुत, खूब, अति, खूब इत्यादि. न्यूनताबोधक – कुछ प्रायः, जरा,लगभग इत्यादि. पर्याप्तिबोधक – बस, ठीक, अस्तु, काफी इत्यादि. तुलनाबोधक – काम, अधिक, बढ़कर इत्यादि. श्रेणिबोधक – तिल-तिल, बारी-बारी से, क्रमश: इत्यादि. रीतिवाचक निश्चय, अनिश्चय, स्वीकार, कारण, निषेध इत्यादि अर्थों का बोधक – यथासंभव, ऐसे, वैसे, अवशय, ही, भी , इत्यादि प्रयोग के आधार पर तीन भेद होते हैं साधारण क्रिया विशेषण – वाक्य में स्वतत्र रूप से प्रयुक्त होने वाले क्रिया विेषेशण को साधारण क्रिया विशेषण कहते हैं. जैसे – यहाँ, कब, जल्दी, इत्यादि। संयोजक क्रिया विशेषण – उपवाक्य से समबन्धित क्रिया विशेषण को संयोजक क्रिया विशेषण कहते हैं. जैसे – जहाँ आप पढ़ेंगे, वहाँ मैं भी पढूंगा ( जहाँ, वहाँ ). जब आप कहेंगे तब मैं आऊंगा ( जब, तब ) अनुबद्ध क्रिया विशेषण – किसी शब्द के साथ अवधारणा के लिए प्रयुतक्त होने वाले क्रिया विशेषण को अनुबद्ध क्रिया विशेषण कहते हैं. जैसे – तक, भर, तो, भी, इत्यादि। रुप के आधार पर क्रिया विशेषण के तीन भेद होते हैं. मूल क्रिया विशेषण- बिना किसी अन्य के मेल में आये स्वतंत्र रूप वाले क्रिया विशेषण को मूल क्रिया विशेषण कहते हैं। जैसे – दूर, ठीक, नहीं, फिर , अचानक इत्यादि। यौगिक क्रिया विशेषण – शब्दों में प्रत्यय जोड़ कर बने क्रिया विशेषण को यौगिक क्रिया विशेषण कहते हैं। जैसे – यहाँ तक, मन से , दिल से, वहाँ पर इत्यादि। स्थानीय क्रिया विशेषण – ऐसे क्रिया विशेषण जो बिना रूपांतर के किसी विशेष स्थान में आते हैं,स्थानीय क्रिया विशेषण कहलाते हैं। जैसे – वह अपना सर पढ़ेगा। सम्बन्ध बोधक वह अव्यय जो किसी संज्ञा के बाद आकर उसका सम्बन्ध वाक्य के दूसरे शब्दों के साथ दिखाए सम्बन्ध बोधक कहलाता है। जैसे – तक, भर, बिना, बाद, द्वारा , लिए , इत्यादि। प्रयोग के आधार पर सम्बन्ध बोधक के भेद – सम्बद्ध सम्बन्ध बोधक – संज्ञाओं के विभक्तियों के बाद आता है। जैसे – व्यायाम के पहले ( पहले ) पुस्तक के बिना ( बिना ) – दोनों वाक्यों में ” के ” विभक्ति के बाद। अनुबद्ध सम्बन्ध बोधक – संज्ञाओं के विकृत रूप के बाद आता है। जैसे – कई दिनों तक ( तक ) प्याले भर ( भर ) – दिन एवम प्याला के विकृत रूप के बाद। अर्थ के आधार पर सम्बन्ध बोधक के 13 भेद हैं। कालवाचक – पूर्व, पहले, बाद, आगे, पीछे , इत्यादि। स्थानवाचक – बहार, भीतर, नीचे, बीच, समीप इत्यादि। सादृश्य वाचक – समान, तरह, भांति , योग्य सा , जैसा इत्यादि। तुलना वाचक – अपेक्षा , बनिस्पत , सामने इत्यादि। दिशा वाचक – तरफ, ओर, पार, आस पास इत्यादि। साधन वाचक – सहारे, द्वारा, जरिये, मारफत इत्यादि। हेतु वाचक – हेतु, लिए, निमित, वास्ते इत्यादि। विषय वाचक – भरोसे, निस्बत, बाबत, लेखे इत्याद। व्यतिरेक वाचक – बिना, सिवा, आलावा, अतिरिक्त इत्यादि। विनिमय वाचक – बदले, एवज, पलटे ,जगह इत्यादि। विरोध वाचक – खिलाफ, विरुद्ध , विपरीत, उलटे इत्यादि। सहचर – साथ, संग, सहित, समेत इत्यादि। संग्रह वाचक – भर, तक, मात्र, प्रयन्त इत्यादि। व्युत्पत्ति के आधार पर सम्बन्ध बोधक के भेद मूल सम्बन्ध बोधक – जैसे – बिना, पूर्वक, प्रयन्त इत्यादि। यौगिक सम्बन्ध बोधक – जैसे – संज्ञा से बने, लेखे, अपेक्षा, मारफत इत्यादि समुच्चय बोधक समुच्चय बोधक ऐसा अव्यय है जो संज्ञा अथवा क्रिया की विशेषता न बताकर एक पद अथवा वाक्य का सम्बन्ध दूसरे पद अथवा वाक्य से जोड़ता है। जैसे – और, तथा, एवं, अतएव , अतः इत्यादि। समुच्चय बोधक के भेद – समानाधिकरण समुच्चय बोधक – मुख्य वाक्यों को जोड़ने वाले अव्ययों अथवा पदों को समानाधिकरण समुच्चय बोधक कहते हैं । जैसे – और , यथा, या , कि इत्यादि। व्यधिकरण समुच्चय बोधक – एक मुख्य वाक्य में एक या अधिक आश्रित वाक्य जोड़ने वाले अव्ययों अथवा पदों को व्यधिकरण समुच्चय बोधक कहते हैं। जैसे – कि, क्योंकि, इसलिए, जो इत्यादि। विस्मयादिबोधक – हर्ष, शोक, आश्चर्य , तिरस्कार आदि के भाव को सूचित करने वाले अव्यय को विस्मयादिबोधक कहते हैं। जैसे – आह!, अहा !, वाह !, छीः!, अरे इत्यादि। विस्मयादिबोधक के भेद – हर्षबोधक – अहा!, शाबाश!, वाह -वाह!, बहुत खूब इत्यादि। शोकबोधक – आह !, हाय !, ओह ! इत्यादि। आश्चर्य बोधक – क्या! ऐं ! हैं ! अनुमोधन बोधक – ठीक!, अच्छा !, हाँ-हाँ ! इत्यादि। तिरस्कार बोधक – छीः !,धिकः !,दुर ! इत्यादि। स्वीकार बोधक – हाँ !, जी !, जी हाँ ! इत्यादि। सम्बोधन बोधक – रे !, अरे!, अजी!, हे! इत्यादि निपात – निपात शुद्ध अव्यय नहीं है; क्योंकि संज्ञाओं, विशेषणों, सर्वनामों आदि में जब अव्ययों का प्रयोग होता है, उनका अपना अर्थ होता है, पर निपातों में ऐसा नहीं होता। निपातों का प्रयोग निश्चित शब्द, शब्द-समुदाय या पुरे वाक्य को अन्य भावार्थ प्रदान करने के लिए होता है। इसके अतिरिक्त, निपात सहायक शब्द होते हुए भी वाक्य के अंग नहीं हैं। पर वाक्य में इनके प्रयोग से उस वाक्य समग्र अर्थ व्यक्त होता है। साधारणतः निपात अव्यय ही है। हिन्दी में अधिकतर निपात शब्द समूह के बाद आते हैं, जिनको वे बल प्रदान करते हैं। जैसे – क्या वह खाना नहीं खा रहा है। ( “क्या” का प्रयोग यहाँ पर निपात की तरह हुआ है। ) निपात के प्रकार – स्वीकार्य निपात – हाँ, जी, जी हाँ नकारार्थक निपात – नहीं, जी नहीं निषेधात्मक निपात – मत प्रश्नबोधक निपात – क्या ? , न विस्मयादि बोधक निपात – क्या, काश , काश कि बलदायक/ सीमा बोधक निपात – तो, ही, तक, पर, सिर्फ तुलनबोधक निपात – सा अवधारण बोधक निपात – ठीक, लगभग, तकरीबन आदरबोधक निपात – जी ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें