रविवार, 29 अक्तूबर 2017

परिप्रेक्ष्य पर प्रहार ---

हमारे देश का उद्धार- कभी नहीं कर सकती सरकार ! जब तक कि हम स्वयं नहीं करेंगे विचार !!
और नहीं करेंगे कर्तव्य व्यवहार।
हमारे नेताओं का चरित्र क्या है ?
और हमारा भी चरित्र क्या है ?  कोई रढुआ मन बहलाता है ! पराई तिरियें को देख ! विवाहित भार उठाता है समझ के किस्मत का लेख !! ************************* *****
जिनको हम चुनते हैं...वो ही हमको धुनते हैं.. चाहे पत्नी हो या नेता...दोनो कहाँ सुनते हैं
"बुद्धि"का उपयोग करनेवाले जापान में...
603 किमी./घंटा रफ्तार वाली ट्रैन के बाद,
7G की टेस्टिंग शुरू हो चुकी है... इंडिया* में "पढ़े-लिखे" लोग Whatsapp पर 11 लोगों को ”ॐ नम: शिवाय:" भेजकर *फ्री बैलेंस* और *चमत्कार* की उम्मीद कर रहे हैं।।
और तो और ... नही भेजा तो ..... अप्रिय घटना की चेतावनी और दे देते है .।
😁😁😁😁 *अगरबत्ती* दो प्रकार की होती है... एक *भगवान* के लिए , एक *मच्छरों* के लिए... तकलीफ ये है कि... *भगवान* आते नहीं , *मच्छर* जाते नहीं ...
😃😜👍✍ *पेट खाली* है और ........ *योग* करवाया जा रहा है, *जेब खाली* और ....... *खाता* खुलवाया जा रहा है, रहने का *घर नहीं* और ....... *शौचालय* बनवाया जा रहा है. गाँवों मे *बिजली नही* और ... (डिजिटल India) बन रहा है. कंपनीया सारी *विदेशी* और ........मेक इन (India) कर रहा है. जाति की *गंदगी दिमाग में* है और ..... *स्वच्छ भारत* अभियान चल रहा है. *आटा* दिनो दिन महंगा हो रहा है, और ....... *डाटा* सस्ता कर रहे है. *सचमुच देश बदल रहा है.....!!!* कर्म भारतीय सनातन आर्य संस्कृति की वह अवधारणा है ! जो एक प्रणाली के माध्यम से कार्य-कारण के सिद्धांत की व्याख्या करती है, !! जहां पिछले हितकर कार्यों का हितकर प्रभाव और हानिकर कार्यों का हानिकर प्रभाव प्राप्त होता है, जो पुनर्जन्म का एक चक्र बनाते हुए आत्मा के जीवन में पुन: अवतरण या पुनर्जन्म की क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं की एक प्रणाली की रचना करती है। ....... कहा जाता है कि कार्य-कारण सिद्धांत न केवल भौतिक दुनिया में लागू होता है, बल्कि हमारे विचारों, शब्दों, कार्यों और उन कार्यों पर भी लागू होता है जो हमारे निर्देशों पर दूसरे किया करते हैं। जब पुनर्जन्म का चक्र समाप्त हो जाता है, तब कहा जाता है कि उस व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है, या संसार से मुक्ति मिलती है। सभी पुनर्जन्म मानव योनि में ही नहीं होते हैं। कहते हैं कि पृथ्वी पर जन्म और मृत्यु का चक्र 84 लाख योनियों में चलता रहता है, लेकिन केवल मानव योनि में ही इस चक्र से बाहर निकलना संभव है। चेतना के क्रमिक विकास का स्तर ही विभिन्न प्रकार की यौनियों का निर्धारक है . किये गए कृत्यों के निर्णायक प्रतिफल के सन्दर्भ में आत्मा के देहांतरण या पुनर्जन्म का सिद्धांत ऋगवेद में नहीं मिलता है। कर्म की अवधारणा सर्वप्रथम भगवद गीता (ई.पू. 3100) में सशक्त शब्दों में प्रकट हुई।
परन्तु कृष्ण की वाणी में भी
मिलाबट राम ने मिलाबट से बात बिगाड़ी ।।
पुराणों में कर्म के विषय का उल्लेख है।
कहते हैं कि कलियुग के दौरान ज्ञान को सुरक्षित रखने के लिए द्वापर युग के अन्त में सन्त व्यास द्वारा पुराण लिखे गये थे।
परन्तु पुराणों के नाम पर सब कुछ नया नया है ।
नमो बुद्धाय शुद्धाय दैत्य दानव द्रौहिणे ।
यादवों को शूद्र बना दिया बनके अहीर पिछड़े ।
वाल्मीकि-रामायण में राम ने बुद्ध को कह कर चोर दी गाली ।
यथा ही चौर स तथा हि बुद्धस्तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि" सब लगती है कथा ये ज़ाली ।।
कालान्तरण में बहुत से व्यास हो गये ।
दस्यु बन गये वे अहीर जिनके पूर्वज यदु दास हो गये ।
उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी गोपरीणसा यदुस्तुर्वश्च च मामहे ।
ऋग्वेद के दशम् मण्डल के ६२वें सूक्त की ऋचा ऐसा कहे ।।
कहा जाता है कि पहले वही ज्ञान भिक्षुओं द्वारा याद रखा जाता था ।
और मौखिक रूप से दूसरों को दिया जाता था।  श्री भुक्तेश्वर के अनुसार, पिछ्ला कलियुग ई.पू. 700 में शुरू हुआ था। "कर्म" का शाब्दिक अर्थ है "काम" या "क्रिया" और भी मोटे तौर पर यह निमित्त और परिणाम तथा क्रिया और प्रतिक्रिया कहलाता है, जिसके बारे में प्रचीन भारतीयों का मानना है ।
अब वैरागी हूँ मैं ज्ञान की बात है इतनी ।
अहीरों की बुद्धि न सुधरी करते हैं तनातनी ।।

------- जीवन एक पुष्प है , प्रवृत्ति उसकी गन्ध ,तथा स्वभाव पराग के सदृश्य है 'रोहि' इन्हीं गन्ध और पराग के द्वारा प्रारब्ध के फल का निर्माण होता है कोई ...💐💐💐💐💐💐💐💐💐 विचार - विश्लेषण --- योगेश कुमार 'रोहि'
ग्राम -आज़ादपुर ।
पत्रालय -पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़.....

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