"ब्रह्मणं यज्ञमिमं ज्ञात्वा शुद्धः स्नात्वा समागतः।
गोपकन्या नित्यं या शुद्धात्मा वैष्णव जातिका।।६२।।
श्री विष्णो वै तमुवाच प्रत्युत्तरं शृणु प्रिये ।
जाल्म एषाऽस्ति वीराण्याभीराणी जातितोऽस्ति वै ।।६४।।
शृणु जानामि तद्वृत्तं नान्ये जानन्त्येतद्विदः।
पुरा सृष्टे समारम्भे गोलोके श्रीकृष्णेन परात्मना सुघटिता ।।६५।।
अमुना स्वांशरूपा हि सावित्री स्वमूर्तेः प्रकटीकृता ।
पृथिव्यां मर्त्यरूपेण तत्र मानुषविग्रहा ।
पत्नी यज्ञस्य कार्यार्थमपेक्षिता बभूव।।६९।।
हेतुनाऽनेन कृष्णेन सावित्र्याज्ञापिता तदा ।
द्वितीयेन स्वरूपेण त्वया गन्तव्यमेव ह गायत्री नाम्ना ।।1.509.७०।।
प्रागेव भूतले कन्यारूपेण ब्रह्मणः कृते ।
सावित्री श्रीकृष्णमाह कौ तत्र पितरौ मम ।।७१।।
श्रीकृष्णस्तां भविष्य दृष्ट्या तदा सन्दर्शयामास शुभौ तु तौ।
इमौ पत्नीव्रतो गोपागोपे च पतिव्रता यौ तस्या पितरौ भवितारौ ।।७२।।
मदंशौ मत्स्वरूपौ चाऽयोनिजौ दिव्यविग्रहौ।
पृथ्व्यां कुङ्कुमवाप्यां वै क्षेत्रेऽश्वपट्टसारसे वस्तारौ ।।७३।।
सृष्ट्यारम्भे गोपारूपौ वर्तिष्येतेऽतिपावनौ ।
विष्णुदेवादियज्ञादिहव्याद्यर्थं गवान्वितौ ।।७४।।
सौराष्ट्रे च यदा ब्रह्मा यज्ञार्थं संगमिष्यति ।
तत्पूर्वं तौ दम्पतौ स्थातारौ गोभिलश्च गोभिला चेति संज्ञिता।।७२।।
गवा प्रपालकौ भूत्वाऽऽनर्तदेशे गमिष्यतः ।
सजातयो यत्राऽऽभीरा निवसन्ति तत्समौ वेषकर्मभिः ।।७६।।
अयोनिजया पुत्र्या त्वया गोपया रूपया।
दधिदुग्धादिविक्रेत्र्या गन्तव्यं यज्ञ-स्थले तदा ।।1.509.८०।।
यज्ञहेतुना सहभावं गतो ब्रह्मा गायत्री त्वं भविष्यसि ।
तयोः सुता गूढा वैष्णवौ गोपमध्ये वस्तासि।।८२।।
एवं प्रत्युत्तरितः स जाल्मः कृष्णेन वै तदा ।
तावत् तत्र समायातौ गायत्री पितरौ गोभिलागोभिलौ अति प्रसन्ना ।।८५।।
अस्मत्पुत्र्या रूपया साक्षात् वैष्णवी आगता ।
आवयोस्तु महद्भाग्यं यया दैत्यकष्टं निवार्यते ।।८६।।
गोपकन्या नित्यं या शुद्धात्मा वैष्णव जातिका।।६२।।
"अनुवाद:-"इस ब्रह्मा के यज्ञसत्र को जानकर शुद्ध स्नान करके आयी हुई गोप कन्या नित्य जो शुद्धात्मा और वैष्णव जाति की है।६२।
श्री विष्णो वै तमुवाच प्रत्युत्तरं शृणु प्रिये ।
जाल्म एषाऽस्ति वीराण्याभीराणी जातितोऽस्ति वै ।।६४।।
"अनुवाद:-श्रीकृष्ण ने उत्तर देते हुए उस गोप-कन्या को कहा ! सुन प्रिये ! ये बात छिपी हुई नही है कि ये वीराणी जाति से निश्चय ही अहीराणी है।६४।
शृणु जानामि तद्वृत्तं नान्ये जानन्त्येतद्विदः।
पुरा सृष्टे समारम्भे गोलोके श्रीकृष्णेन परात्मना सुघटिता ।।६५।।
"अनुवाद:-सुनो ! मैं जानाता हूँ वह वृत कोई अन्य विद्वान नहीं जानता यह सत्य पूर्वकाल में सृष्टि के प्रारम्भ में श्रीकृष्ण परमात्मा के द्वारा गोलोक में सुघटित हुआ।६५।
अमुना स्वांशरूपा हि सावित्री स्वमूर्तेः प्रकटीकृता ।
अथ द्वितीया रूपा कन्या च गायत्र्याभिधा कृता ।।६६।।
"अनुवाद:- उस परमात्मा ने अपने ही अंश से सावित्री और दूसरी कन्या के गायत्री नाम से प्रकट किया गया।६६।
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सावित्री श्रीहरिणैव गोलोके एव सन्निधौ ।
अथ भूलोके यज्ञप्रवाहार्थं ब्रह्माणं ववल्हे ।।६८।।
अथ भूलोके यज्ञप्रवाहार्थं ब्रह्माणं ववल्हे ।।६८।।
"अनुवाद:-सावित्री श्री हरि के द्वारा ही गोलोक में प्रभु के सानिन्ध्य में भूलोक में यज्ञ प्रवाहन के लिए ब्रह्मा जी को प्रदान की गयीं ।६८।
पृथिव्यां मर्त्यरूपेण तत्र मानुषविग्रहा ।
पत्नी यज्ञस्य कार्यार्थमपेक्षिता बभूव।।६९।।
"अनुवाद:-पृथ्वी पर मनुष्य रूप में वहाँ मानव शरीर में ब्रह्मा की पत्नी रूप में यज्ञ कार्य के लिए अपेक्षित हुईं।६९।
हेतुनाऽनेन कृष्णेन सावित्र्याज्ञापिता तदा ।
द्वितीयेन स्वरूपेण त्वया गन्तव्यमेव ह गायत्री नाम्ना ।।1.509.७०।।
"अनुवाद:-उस कारण से कृष्ण के द्वारा सावित्री को आज्ञा दी गयी। तब द्वित्तीय स्वरूप में तुमको जाना चाहिए गायत्री नाम से ।७०।
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प्रागेव भूतले कन्यारूपेण ब्रह्मणः कृते ।
सावित्री श्रीकृष्णमाह कौ तत्र पितरौ मम ।।७१।।
"अनुवाद:-पहले ही भूलोक पर कन्या रूप में ब्रह्मा के द्वारा किये गये संगति में सावित्री ने गोलोक में भगवान श्रीकृष्ण से स्वयं पूछा था कि वहाँ मेरे माता- पिता कौन होंगे ?-।७१।
श्रीकृष्णस्तां भविष्य दृष्ट्या तदा सन्दर्शयामास शुभौ तु तौ।
इमौ पत्नीव्रतो गोपागोपे च पतिव्रता यौ तस्या पितरौ भवितारौ ।।७२।।
"अनुवाद:-श्रीकृष्ण ने तब उसे भविष्य दृष्टि के द्वारा वे दोनों शुभ व्रतधारी पति-पत्नी गोप- गोपी दिखाए जो उसके माता -पिता होंगे-।७२।
मदंशौ मत्स्वरूपौ चाऽयोनिजौ दिव्यविग्रहौ।
पृथ्व्यां कुङ्कुमवाप्यां वै क्षेत्रेऽश्वपट्टसारसे वस्तारौ ।।७३।।
"अनुवाद:-स्वराज विष्णु रूप कृष्ण ने कहा - कि ये दोनों मेरे अंश से मेरे स्वरूप अयौनिज-(मनुष्य रूप में दिव्य शरीर धारी पृथ्वी पर कंकुम प्राप्त करके अश्वपट्टसारस क्षेत्र में निवास करेंगे।७३।।
सृष्ट्यारम्भे गोपारूपौ वर्तिष्येतेऽतिपावनौ ।
विष्णुदेवादियज्ञादिहव्याद्यर्थं गवान्वितौ ।।७४।।
"अनुवाद:-सृष्टि उत्पत्ति के प्रारम्भ में गोप रूप अति पावन रूप में उपस्थित होंगे विष्णु के यज्ञ में हव्यादि के लिए गायों से युक्त हेंगे।७४।
सौराष्ट्रे च यदा ब्रह्मा यज्ञार्थं संगमिष्यति ।
तत्पूर्वं तौ दम्पतौ स्थातारौ गोभिलश्च गोभिला चेति संज्ञिता।।७२।।
"अनुवाद:-गुजरात के सूरत (सौराष्ट्र) में जब ब्रह्मा यज्ञ के लिये जायेंगे। उससे पूर्व वे दोनों पत्नी और पति रूप में गोभिला और गोभिल नाम से स्थित रहेंगे ।७२।
गवा प्रपालकौ भूत्वाऽऽनर्तदेशे गमिष्यतः ।
सजातयो यत्राऽऽभीरा निवसन्ति तत्समौ वेषकर्मभिः ।।७६।।
"अनुवाद:-गायों के पालने वाले गोप होकर वे दोनों आनर्त देश में जाऐंगे। वहाँ उन्ही के समान वेष भूषा से उनके सजातीय आभीर लोग निवास करते हैं। ७६।
श्रीहरेराज्ञयाऽऽनर्ते जातावाभीररूपिणौ ।
गवां वै पालकौ भवित्वा गोपौ पितरौ च त्वया हि तौ ।।७८।।
"अनुवाद:-गवां वै पालकौ भवित्वा गोपौ पितरौ च त्वया हि तौ ।।७८।।
श्री हरि की आज्ञा से आनर्त देश (गुजरात) में आभीर जाति में आभीर रूप में गायों के पालक होकर तुम्हारे माता पिता गोप होंगे।७८।
कर्तव्यौ गोपवेषौ वै वस्तुतो वैष्णवौभौ ।
मदंशौ तत्र सावित्रि ! त्वया द्वितीयरूपतो भविता गायत्री ।।७९।।
मदंशौ तत्र सावित्रि ! त्वया द्वितीयरूपतो भविता गायत्री ।।७९।।
"अनुवाद:-गोप वेष में कर्म करते हुए भी वे दोनों वैष्णव ही होंगे। मेरे अंश से वहाँ सावित्री तुम्हारा दूसरा रूप गायत्री होगा।७९।
अयोनिजया पुत्र्या त्वया गोपया रूपया।
दधिदुग्धादिविक्रेत्र्या गन्तव्यं यज्ञ-स्थले तदा ।।1.509.८०।।
"अनुवाद:- अयोनिजा पुत्री के रूप में तुम दधि दूध आदि बैचने वाली के द्वारा तब उस स्थान पर पहुँचा जायेगा- ।८०।
यदा यज्ञो भवेत् तत्र तदा स्मृत्वा सुयोगतः ।
मानुष्या तु त्वया नूत्नवध्वा क्रतुं करिष्यति ।।८१।।
मानुष्या तु त्वया नूत्नवध्वा क्रतुं करिष्यति ।।८१।।
"अनुवाद:-जब ब्रह्मा वहाँ यज्ञ करेंगे
तब तुम उस यज्ञ में मानवीया नयी बधू के रूप में उपस्थित होगीं।८१।
यज्ञहेतुना सहभावं गतो ब्रह्मा गायत्री त्वं भविष्यसि ।
तयोः सुता गूढा वैष्णवौ गोपमध्ये वस्तासि।।८२।।
"अनुवाद:- यज्ञ के लिए ब्रह्मा के साथ तुम गायत्री नाम से होंगी उन दोनों की पुत्री तुम वैष्णव गोपों के मध्य निवास करोगी ।८२।
इत्येवं मूलरूपया गायत्री आभीरणी सुता ।
वर्तते गोपवेषीया नाऽशुद्धा जातितो हि सा ।।८४।।
वर्तते गोपवेषीया नाऽशुद्धा जातितो हि सा ।।८४।।
"अनुवाद:- इस प्रकार गायत्री मूलत: आभीर कन्या हैं। जो गोप वेष में अशुद्ध जाति से नहीं है।८४।
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एवं प्रत्युत्तरितः स जाल्मः कृष्णेन वै तदा ।
तावत् तत्र समायातौ गोभिलागोभिलौ मुदा ।।८५।।
तावत् तत्र समायातौ गोभिलागोभिलौ मुदा ।।८५।।
इस प्रकार गुप्त रूप से उन कृष्ण के द्वारा उसे उत्तर दिया गया। तब तक वहाँ गोभिला और गोभिल प्रसन्नता की अवस्था में आये।८५।
अस्मत्पुत्र्या महद्भाग्यं ब्रह्मणा या विवाहिता ।
आवयोस्तु महद्भाग्यं दैत्यकष्टं निवार्यते ।।८६।।
आवयोस्तु महद्भाग्यं दैत्यकष्टं निवार्यते ।।८६।।
हमारी पुत्री के द्वारा ब्रह्मा के साथ विवाह किया जाएगा ,हमारे तो बड़े अहो भाग्य हैं। अब दैत्यों के द्वारा दिया गया कष्ट दूर हो जाएगा।८६।
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एवं प्रत्युत्तरितः स जाल्मः कृष्णेन वै तदा ।
तावत् तत्र समायातौ गायत्री पितरौ गोभिलागोभिलौ अति प्रसन्ना ।।८५।।
"अनुवाद:-इस प्रकार गुप्त रूप से उन भगवान श्री कृष्ण द्वारा उसे उत्तर दिया गया। तब तक वहाँ गोभिला और गोभिल गायत्री के माता-पिता अति प्रसन्न होकर आये।८५।
अस्मत्पुत्र्या रूपया साक्षात् वैष्णवी आगता ।
आवयोस्तु महद्भाग्यं यया दैत्यकष्टं निवार्यते ।।८६।।
"अनुवाद:- हमारी पुत्री के रूप में साक्षात वैष्णवी शक्ति का आगमन हुआ है। हम दोनों के बड़े भाग्य हैं। इसके द्वारा दैत्यों द्वारा किये गये कष्टों से निवारण होगा।८६।
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श्रीलक्ष्मीनारायणीयसंहितायां
प्रथमे कृतयुगसन्ताने ब्रह्मणा यज्ञार्थं हाटकेश्वरक्षेत्रे नागवत्यास्तीरे देवादिद्वारा ससामग्रीमण्डपादिरचना कारिता, जाल्मरूपेण शंकरागमनम्, गायत्र्या गोपजातीया वृत्तान्तः,
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