बुधवार, 13 नवंबर 2024

आत्मानन्द जी:अध्याय- १०[भाग- १]✓✓

आत्मानन्द जी:
अध्याय- १०
[भाग- १]✓✓

गोपकुल के श्रीकृष्ण सहित कुछ महान  पौराणिक व्यक्तियों का परिचय।

आत्मानन्द जी:
योगेश कुमार रोहि-

           
यादववंश गोप जाति का एक ऐसा रक्त समूह है जिनकी उत्पत्ति गोलोक में परमेश्वर श्रीकृष्ण और श्रीराधा के क्लोन (समरूपण विधि) से उस समय हुई जब गोलोक में श्रीकृष्ण से नारायण, शिव, ब्रह्मा इत्यादि प्रमुख देवताओं की उत्पत्ति हुई थी।

इस वजह से गोप जाति उतनी ही प्राचीनतम है जितना नारायण, शिव एवं ब्रह्मा हैं। (इस बात को अध्याय- (४) में विस्तार पूर्वक बताया जा चुका है।)  इसलिए गोपकुल के प्रमुख सदस्यपति भी अति प्राचीनतम हैं। उन सभी का वर्णन इस अध्याय के भाग- १,२,३ और ४ में क्रमशः किया गया है।
              
                       -: श्रीकृष्ण :-
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भूलोक से गोलोक तक श्री कृष्ण को ही गोप-कुल का प्रथम सदस्यपति माना गया हैं। उन्हें ही परमप्रभुप परमेश्वर कहा जाता हैं। वे प्रभु अपने गोलोक में गोप और गोपियों के साथ सदैव गोपवेष में रहते हैं। और वहीं पर समय-समय पर सृष्टि रचना भी किया करते हैं, और समय आने पर वे ही प्रभु समस्त सृष्टि को अपने में समाहित कर लेते हैं। यही उनका शाश्वत सनातन नियम और क्रिया है, और जब-जब प्रभु की सृष्टि रचना में पाप और भय अधिक बढ़ जाता है तब-तब उसको दूर करने के लिए वे प्रभु अपने समस्त गोप-गोपियों के साथ धरा-धाम पर अपनें ही वर्ण के- गोपकुल (अहीर-जाति) में अवतीर्ण होते हैं।

भगवान श्री कृष्ण को गोपकुल में अवतरित होने की बात हरिवंश पुराण के विष्णु पर्व के ग्यारहवें अध्याय के श्लोक संख्या -५८ में कही गई है।
 जिसमें भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहें हैं कि-

"एतदर्थं च वासोऽयंव्रजेऽस्मिन् गोपजन्म च।
अमीषामुत्पथस्थानां निग्रहार्थं दुरात्मनाम्।।५८।


अनुवाद - इसीलिए ब्रज में मेरा यह निवास हुआ है और इसीलिए मैंने गोपों में अवतार ग्रहण किया है।
{भगवान श्री कृष्ण का सदैव गोप होना तथा गोपकुल में उनके अवतरण इत्यादि के बारे में अध्याय-(८) में विस्तार पूर्वक बताया गया है।}

भगवान श्री कृष्णा जब भू-तल पर अवतरित होते हैं तो उनकी सारी विशेषताएं वही रहती हैं जो गोलोक में होती हैं। उनकी सभी विशेषताओं का एक-एक करके यहां वर्णन किया गया है। किंतु ध्यान रहे गोपेश्वर श्रीकृष्ण के अनंत गुण और विशेषताएं हैं। जिनका वर्णन करना किसी के लिए सम्भव नही है। फिर भी पौराणिक ग्रंथों एवं शास्त्रों में उनकी विशेषताओं का जो भी, जैसे भी वर्णन किया गया है। उसी के आधार पर हम भी श्रीकृष्ण की कुछ व्यक्तिगत और कुछ सामाजिक विशेषताओं को बताने का प्रयास किया है। किंतु ध्यान रहे यहां केवल श्रीकृष्ण की लौकिक विशेषताओं का ही वर्णन किया गया है। यदि श्रीकृष्ण की आध्यात्मिक और पारलौकिक विशेषताओं को जानना है तो इस पुस्तक के अध्याय - (दो) और (तीन) को देखें, और यदि सम्पूर्ण विशेषताओं को जानना है तो  "श्रीमद्भागवत गीता" का अध्ययन करें निश्चित रूप से संतुष्टि मिलेगी।
अब हम लोग गोपेश्वर श्रीकृष्ण के कुछ विशेष दिनों व उनकी व्यक्तिगत तथा सामाजिक विशेषताओं को जानेंगे।

 जैसे -
(१) - श्रीकृष्ण के लिए अष्टमी का महत्व :---
         भगवान श्रीकृष्ण के लिए भूतल पर अष्टमी का बहुत बड़ा महत्व है। क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण भाद्रमास के कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन भूतल पर गोपकुल में अवतरित हुए। तभी से वह शुभ मुहूर्त श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
और भगवान श्रीकृष्ण जब 6 वर्ष की उम्र के हो गए तब
कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को शुभ मानकर उन्हें पहली बार गावें चराने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस शुभ मुहूर्त को गोपाष्टमी नाम से जाना जाता है।
वहीं दूसरी ओर राधा अष्टमी भगवान श्रीकृष्ण की परमप्रिय राधा रानी का जन्मोत्सव है। यह त्योहार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।
इस संबंध में देखा जाए तो भगवान श्री कृष्ण का अष्टमी से गहरा संबंध है, भाद्रमास कृष्णपक्ष की अष्टमी को भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ तथा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के शुभ मुहूर्त में गोपालन कर्तव्य का सूत्रपात किया। इस बात की पुष्टि श्रीमद्भागवत पुराण के दशम स्कंध के अध्याय- १५ के श्लोक- (१) से होती जिसमें लिखा गया है कि-

"ततश्च पौगण्डवयः श्रितौ व्रजे बभूवतुस्तौ पशुपालसम्मतौ।
गाश्चारयन्तौ सखिभिः समं पदैर् वृन्दावनं पुण्यमतीव चक्रतुः।१।

अनुवाद- जब भगवान बलराम और भगवान कृष्ण पौगण्ड अवस्था में अर्थात् छठे वर्ष में प्रवेश किया, तब उन्हें गौवें चराने की स्वीकृति मिल गई। वे अपने सखा ग्वाल बालों के साथ गौवें चराते हुए वृंदावन में जाते और अपने चरणों से वृंदावन को अत्यंत पावन करते।१।
  

(२) कुस्ती लड़ना -:
       गोपों ( यादवों ) में कुश्ती लड़ने का अनुवांशिक गुण पाया जाता है। इसी गुण विशेष के कारण भगवान श्रीकृष्ण भी बचपन से ही कुश्ती लड़ा करते थे। यह कार्य गौवें चराते समय अपने बाल गोपालों के साथ करते थे। इस बात की पुष्टी - श्रीमद्भागवत पुराण के दशम स्कन्ध के अध्याय- (१५) के श्लोक- (१६ और १७) से होती है। जिसमें लिखा गया है कि-

"क्वचित् पल्लवतल्पेषु नियुद्धश्रमकर्शितः।
वृक्षमूलाश्रयः शेते गोपोत्संगोपबर्हणः।१६।

पादसंवाहनं चक्रुः केचित्तस्य महात्मनः।
अपरे हतपाप्मानो व्यञ्जनैः समवीजयन्।१७।

अनुवाद - १६-१७
• कभी-कभी स्वयं श्री कृष्ण भी ग्वाल बालों के साथ कुश्ती लड़ते-लड़ते थक जाते तथा किसी सुंदर वृक्ष के नीचे कोमल पत्तों की सेज पर किसी ग्वाल बाल की गोद में सिर रखकर लेट जाते। १६।
• उस समय कोई कोई पुण्य के मूर्तिमान स्वरूप ग्वालबाल महात्मा श्री कृष्ण के चरण दबाने लगते और दूसरे निष्पाप बालक उन्हें बड़े-बड़े पत्तों या अंगोछियों से पंखा झलने लगते थे।

(३) श्रीकृष्ण के उपनाम :-

(क)- वंशीधारी - भगवान श्री कृष्ण सदैव एक हाथ में वंशी और सिर पर मोर मुकुट धारण करते हैं। वंशी धारण करने की वजह से ही उनको को वंशीधारी कहा गया। उनकी वंशी का नाम- ‘भुवनमोहिनी’ है। यह ‘महानन्दा’ नाम से भी विख्यात है।

(ख)- मुरलीधारी — कोकिलाओं के हृदयाकर्षक कूजन (पक्षियों के कलरव ) को भी फीका करनेवाली इनकी मधुर मुरली का नाम ‘सरला’ है इसका बचपन में (धन्व:) नामक बाँसुरी विक्रेता से कृष्ण ने प्राप्त किया था। मुरली धारण करने की वजह से श्रीकृष्ण को मुरलीधारी (मुरलीधर) भी कहा गया।

(ग)- शारंगधारी— श्रीकृष्ण के धनुष का नाम 'शारंग' है।जिसे सींग से बनाया गया था। तथा इनके मनोहर बाण का नाम ‘शिञ्जिनी’ है, जिसके दोनों ओर मणियाँ बँधी हुई हैं। सारंग धनुष के धारण करने से ही भगवान श्री कृष्ण को  सारंगधारी भी कहा जाता है।

(घ)- चक्रधारी— भगवान श्री कृष्ण जब भूमि का भार उतारने के लिए रणभूमि में अपनी नारायणी सेना के साथ उतरते हैं, तब वे अपने एक हाथ में सुदर्शन चक्र धारण करते हैं। उसके धारण करने की वजह से ही उनको  चक्रधारी और सुदर्शनधारी कहा गया।

(च)- गिरधारी — इन्द्र के प्रकोप से अपने समस्त गोप और गोधन की रक्षा के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली से गोवर्धन (गिरि) पर्वत को उठा लिया था। उसके धारण करने से ही श्री कृष्ण को गिरधारी कहा गया।

(छ)- गोपवेषधारी— भगवान श्रीकृष्ण गोलोक में हों या भू-लोक में, दोनों जगहों पर वह सदैव गोपों के साथ गोपवेष में ही रहते हैं। इस लिए उनको गोपवेषधारी अथवा गोप भी कहा जाता है। इस बात की पुष्टि ब्रह्मवैवर्तपुराण के ब्रह्म-खण्ड के अध्याय २- के क्रमशः श्लोक संख्या- २१ से होती है जिसमें श्रीकृष्ण के वास्तविक स्वरूपों के बारे में लिखा गया है कि -
स्वेच्छामयं सर्वबीजं सर्वाधारं परात्परम्।
किशोरवयसं शश्वद्गोपवेषविधायकम् ।। २१।
अनुवाद -
वे ही प्रभु स्वेच्छामयी सभी के मूल- (आदि-कारण) सर्वाधार तथा परात्पर- परमात्मा हैं। उनकी  नित्य किशोरावस्था रहती है और वे प्रभु गायों के उस लोक (गोलोक) में सदा गोप (आभीर)- वेष में रहते हैं।२१।
           
ये तो रही श्रीकृष्ण की कुछ खास व्यक्तिगत विशेषताएं। उनकी कुछ सामुहिक व सामाजिक विशेषताएं भी हैं जिनके जानें बगैर श्रीकृष्ण की विशेषताएं अधूरी ही मानी जाएगी। जिसका वर्णन नीचे कुछ इस प्रकार से किया गया है।-

  [४] श्रीकृष्ण की सामाजिक व व्यक्तिगत विशेषताएं -:

(क)- श्रीकृष्ण के नित्य-सखा —"श्रीकृष्ण के चार प्रकार के सखा हैं—(A) सुहृद् सखा (B)  सखा (C) प्रिय सखा (D) प्रिय नर्मसखा।

(ख) - सुहृद् वर्ग के सखा— इस वर्ग में जो गोपसखा हैं, वे आयु में श्रीकृष्ण की अपेक्षा बड़े हैं। वे सदा श्रीकृष्ण के साथ रहकर उनकी रक्षा करते हैं ।
जिनके नाम हैं - विजयाक्ष, सुभद्र, भद्रवर्धन, मण्डलीभद्र, कुलवीर, महाभीम, दिव्यशक्ति, गोभट, सुरप्रभ, रणस्थिर आदि हैं ।
जिसमें श्रीकृष्ण के इस रक्षक टीम (वर्ग) के अध्यक्ष- अम्बिकापुत्र विजयाक्ष हैं। जो श्रीकृष्ण की सुरक्षा को लेकर सतत् चौकन्ना रहते हैं।

(ग)- सखा वर्ग के सदस्य—इस वर्ग के कुछ सखा तो श्रीकृष्णचन्द्र के समान आयु के हैं तथा कुछ श्रीकृष्ण से छोटे हैं। ये सखा भाँति-भाँति से श्रीकृष्ण की आग्रहपूर्वक सेवा करते हैं और सदा सावधान रहते हैं कि कोई शत्रु- नन्द नन्दन पर आक्रमण न कर दे।
• जिसमें समान आयु के सखा हैं—
 विशाल, वृषभ, ओजस्वी, जम्बि, देवप्रस्थ, वरूथप,मन्दार, कुसुमापीड, मणिबन्ध आदि।

• श्रीकृष्ण से छोटी आयु के सखा हैं—
   मन्दार, चन्दन, कुन्द, कलिन्द, कुलिक आदि।

(घ)- प्रियसखा वर्ग के सदस्य—इस वर्ग में श्रीदाम, दाम, सुदामा, वसुदाम, किंकिणी, भद्रसेन, अंशुमान्, स्तोककृष्ण, पुण्डरीकाक्ष, विटंगाक्ष, विलासी, कलविंक, प्रियंकर आदि हैं। जिसमें भद्रसेन समस्त सखाओं के सेनापति हैं। ये सभी प्रिय सखा विविध क्रीड़ाओं से परस्पर कुश्ती लड़कर, लाठी के खेल खेलकर, युद्ध-अभिनय की रचना करना, अनेकों प्रकार से श्रीकृष्णचन्द्र का आनन्दवर्द्धन कर

ते हैं। ये सब शान्त प्रकृति के हैं। तथा श्रीकृष्ण के परम प्राणरूप ये सब समान वय और रूपवाले हैं।

इन सखाओं में "स्तोककृष्ण" श्रीकृष्ण के चाचा नन्दन के पुत्र हैं, जो देखने में श्रीकृष्ण की प्रतिमूर्ति हैं। इसीलिए  स्तोककृष्ण को छोटा कन्हैया भी कहा जाता है। ये श्रीकृष्ण को बहुत प्रिय हैं। प्राय: देखा जाता है कि श्रीकृष्ण जो भी भोजन करते हैं, उसमें से प्रथम ग्रास का आधा भाग स्तोककृष्ण के मुख में पहले देते हैं इसके बाद शेष अपने मुँह में डाल लेते हैं।

(च)-  प्रिय नर्मवर्ग के सखा — इस वर्ग में सुबल,
         (श्रीकृष्ण के चाचा सन्नन्द के पुत्र), अर्जुन, गन्धर्व, वसन्त, उज्ज्वल, कोकिल, सनन्दन, विदग्ध आदि सखा हैं।
ये सभी सखा ऐसे हैं- जिनसे श्रीकृष्ण का ऐसा कोई रहस्य नहीं है, जो इनसे छिपा हो।

राग— संगीत की दुनिया में कुछ प्रमुख राग गोपों (अहिरों) की ही देन (खोज) है। जैसे- गौड़ी, गुर्जरी राग, आभीर भैरव इत्यादि। जिसे भगवान श्रीकृष्ण सहित- गोप (आभीर) लोग समय-समय पर गाते हैं। आभीर भैरव नाम की राग- रागिनियाँ श्रीकृष्ण को अतिशय प्रिय हैं।

•  अब हमलोग जानेगें श्रीकृष्ण के पारिवारिक सम्बन्धों को। जिसमें कृष्ण के पारिवारिक चाचा ताऊ के भाई बहिनों की संख्या सैकड़ों हजारों में हैं। उनमें से कुछ के नाम नीचें विवरण रूप में उद्धृत करते हैं।

• श्रीकृष्ण के बड़े भ्राता— बलराम जी।
• श्रीकृष्ण के चचेरे बड़े भाई—सुभद्र, मण्डल, दण्डी, कुण्डली भद्रकृष्ण, स्तोककृष्ण, सुबल, सुबाहु आदि।
  
• श्रीकृष्ण की चचेरी बहनें –नन्दिरा, मन्दिरा, नन्दी, नन्दा,श्यामादेवी आदि। श्री कृष्ण के साथ यदि श्रीराधा जी की चर्चा नहीं हो तो बात अधूरी ही रहती है। अतः श्रीराधा जी के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी इस अध्याय के भाग- 2 में दी गई है।

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