"सूत उवाच।
गान्धारी चैव माद्री च वृष्णिभार्ये बभूवतुः।
गान्धारी जनयामास सुमित्रं मित्रनन्दनम्।४५.१।
माद्री युधाजितं पुत्रं ततो वै देवमीढुषम्।
अनमित्रं शिबिं चैव पञ्चमं कृतलक्षणम्। ४५.२ ।
"सूत उवाच।
ऐक्ष्वाकीं सुषुवे शूरं ख्यातमद्भुत मीढुषम्।
पौरुषाज्जज्ञिरे शूरात् भोजायां पुत्रकादश।४६.१।
वसुदेवो महाबाहुः पूर्वमानकदुन्दुभिः।
देवमार्गस्ततो जज्ञे ततो देवश्रवाः पुनः।। ४६.२ ।
मत्स्यपुराण /अध्यायः (४६)
माष्यान्तु जनयामास शूरो वै देवमीढुषम् ।। ३४.१४३ ।।
भाष्यान्तु जज्ञिरे शूराद्भोजायां पुरुषा दश।
वसुदेवो महाबाहुः पूर्वमानकदुन्दुभिः ।३४.१४४ ।।
जज्ञे तस्य प्रसूतस्य दुन्दुभिः प्राणदद्दिवि।
आनकानाञ्च संह्रादः सुमहानभवद्दिवि ।। ३४.१४५ ।।
पपात पुष्पवर्षञ्च शूरस्य भवने महत्।
मनुष्यलोके कृत्स्नेऽपि रूपे नास्ति समो भुवि ।। ३४.१४६ ।।
वायुपुराण उत्तरार्द्ध -अध्यायः (३४)
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वृष्णेः सुमित्रः पुत्रोऽभूद्युधाजिच्च परन्तप।
शिनिस्तस्यानमित्रश्च निघ्नोऽभूदनमित्रतः ।१२।
अनुवाद:-परीक्षित ! वृष्णि के दो पुत्र हुए - सुमित्र और युधाजित। वृष्णि के पुत्र युधाजित के भी दो पुत्र हुए - शिनि और अनमित्र-अनमित्र से निघ्न नाम का पुत्र हुआ।१२।
सत्राजितः प्रसेनश्च निघ्नस्याथासतुः सुतौ।
अनमित्रसुतो योऽन्यः शिनिस्तस्य च सत्यकः। १३।
अनुवाद---सत्राजित और प्रसेन नाम से प्रसिद्ध यदुवंशी निघ्न के ही पुत्र थे । अनमित्र का एक अन्य पुत्र भी शिनि नाम से हुआ (अनमित्र का एक भाई तो शिनि नाम से था ही)। इसी द्वितीय शिनि से सत्यक का जन्म हुआ।१३।
युयुधानः सात्यकिर्वै जयस्तस्य कुणिस्ततः।
युगन्धरोऽनमित्रस्य वृष्णिः पुत्रोऽपरस्ततः ।१४।
अनुवाद--इसी सत्यक का पुत्र युयुधान नाम से हुआ जिसका अन्य नाम सात्यकी भी था। सात्यकी का पुत्र जय हुआ। जय का पुत्र कुणि हुआ और कुणि का पुत्र युगन्धर हुआ। वृष्णि के पौत्र ( नाती) अनमित्र के तीसरे पुत्र का नाम भी वृष्णि ही था।१४।
श्वफल्कश्चित्ररथश्च गान्दिन्यां च श्वफल्कतः।
अक्रूरप्रमुखा आसन्पुत्रा द्वादश विश्रुताः ।१५।
अनुवाद-इस प्रकार अनमित्र का पुत्र वृष्णि सात्वत के पुत्र वृष्णि का प्रपौत्र ( परपोता) ही था।
इसी वृष्णि के परपोते- (वृष्णि ) के दो पुत्र हुए- श्वफलक और चित्ररथ । श्वफलक की पत्नी का नाम गान्दिनी था। श्वफलक से गान्दिनी के ज्येष्ठ पुत्र अक्रूर के अतिरिक्त बारह पुत्र और उत्पन्न हुए।१५।
आसङ्गः सारमेयश्च मृदुरो मृदुविद्गिरिः।
धर्मवृद्धः सुकर्मा च क्षेत्रोपेक्षोऽरिमर्दनः ।१६।
अनुवाद- आसंग २-सारमेय ३- मृदुर४- मृदुविद-५- गिरि -६ धर्मवृद्ध ७-सुकर्मा ८- क्षेत्रोपेक्ष ९- अरिदमन।१६।
शत्रुघ्नो गन्धमादश्च प्रतिबाहुश्च द्वादश।
तेषां स्वसा सुचीराख्या द्वावक्रूरसुतावपि ।१७
अनुवाद-१०- शतुघ्न ११-गन्धमादन १२- प्रतिबाहु। इन सबकी एक बहिन भी थी सुचीरा। अक्रूर के दो पुत्र भी थे।१७।
देववानुपदेवश्च तथा चित्ररथात्मजाः।
पृथुर्विदूरथाद्याश्च बहवो वृष्णिनन्दनाः ।१८।
अनुवाद---देववान और उपदेव। स्वफलक के भाई चित्ररथ के पथ ,विदूरथ आदि कई पुत्र हुए । जो वृष्णि वंशीयों में श्रेष्ठ थे।१८।
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शूरो विदूरथादासीद्भजमानस्तु तत्सुतः।
शिनिस्तस्मात्स्वयं भोजो हृदिकस्तत्सुतो मतः ।२६।
अनुवाद---चित्ररथ के पुत्र विदुरथ से एक शूर नामक पुत्र हुआ। इसी शूर से भजमान नामक पुत्र हुआ और इस भजमान से तृतीय -शिनि नामक पुत्र हुआ। शिनि का पुत्र स्वयंभोज हुआ। और इसी स्वयंभोज से हृदीक नामक पुत्र हुआ।२६।
देवमीढः शतधनुः कृतवर्मेति तत्सुताः।
देवमीढस्य शूरस्य मारिषा नाम पत्न्यभूत् ।२७।
अनुवाद---इस हृदीक के तीन पुत्र हुए-देवमीढ( देवबाहु) शतधन्वा और कृतवर्मा। हृदीक के पुत्र देवमीढ के पुत्र शूरसेन नाम से हुआ। देवमीढ़ के पुत्र शूरसेन की पत्नी का नाम "मारिषा" था।२७।
तस्यां स जनयामास दश पुत्रानकल्मषान्।
वसुदेवं देवभागं देवश्रवसमानकम् ।२८।
अनुवाद उन शूरसेन ने उस मारिषा के गर्भ से दस निष्पाप पुत्र उत्पन्न किये -वसुदेव, देवभाग, देवश्रवा, आनक।२८।
सृञ्जयं श्यामकं कङ्कं शमीकं वत्सकं वृकम्।
देवदुन्दुभयो नेदुरानका यस्य जन्मनि ।२९।
अनुवाद :-सृञ्जय, श्यामक, कङ्क, शमीक, वत्सक और वृक। ये सब-के-सब बड़े पुण्यात्मा थे। वसुदेव जी के जन्म के समय देवताओं के नगारे और नौबत स्वयं ही बजने लगे थे। अत: वे ‘आनकदुन्दुभि’ भी कहलाये ।२९।
वसुदेवं हरेः स्थानं वदन्त्यानकदुन्दुभिम्।
पृथा च श्रुतदेवा च श्रुतकीर्तिः श्रुतश्रवाः ।३०।
अनुवाद:-वे ही भगवान् श्रीकृष्ण के पिता हुए। वसुदेव आदिकी पाँच बहनें भी थीं—पृथा (कुन्ती), श्रुतदेवा, श्रुतकीर्ति, श्रुतश्रवा।३०।
राजाधिदेवी चैतेषां भगिन्यः पञ्च कन्यकाः।
कुन्तेः सख्युः पिता शूरो ह्यपुत्रस्य पृथामदात्।३१।
अनुवाद:-और राजाधिदेवी । इस प्रकार वसुदेव की पाँच बहिनें शूरसेन की पाँच कन्सुयाऐं हीं थीं वसुदेव के पिता शूरसेन के एक मित्र थे—कुन्तिभोज। कुन्तिभोजके कोई सन्तान न थी। इसलिये शूरसेन ने उन्हें पृथा नामकी अपनी सबसे बड़ी कन्या गोद दे दी ॥३१।
सन्दर्भ-
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शूर की पत्नी और वसुदेव व अन्य की माता। *
* विष्णु-पुराण IV. 14
शिनिस्तस्मात्स्वयं भोजो हृदिकस्तत्सुतो मतः ॥ २६ ॥ (भागवतपुराण- 9/24/2)
देवमीढस्य शूरस्य मारिषा नाम पत्न्यभूत् ॥ २७ ॥
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