देवमीढ (देवमीढ) - ययाति के पुत्र यदु के कुल में जन्मे एक प्रतिष्ठित यादव देवमीढ थे। वे वसुदेव के दादा और राजा शूरसेन के पिता थे।
( महाभारत-द्रोणपर्व, अध्याय- 144, श्लोक 6) में देवमीढ का एक नाम आजमीढ भी वर्णित है
नहुषस्य ययातिस्तु राजा देवर्षिसम्मतः।
ययातेर्देवयान्यां तु यदुर्ज्येष्ठोऽभवत्सुतः।।६।
यदोरभूदन्ववाये (आजमीढ) इति स्मृतः।
यादवस्तस्य तु सुतः शूरस्त्रैलोक्यसम्मतः।।७।
शूरस्य शौरिर्नृवरो वसुदेवो महायशाः।
धनुष्यनवरः शूरः कार्तवीर्यसमो युधि।
धनुष्यनवरः शूरः कार्तवीर्यसमो युधि।
तद्वार्यश्चापि तत्रैव कुले शिनिरभून्नृप।। ८।
महाभारत -7-द्रोणपर्व-अध्याय-(144,)
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शूरसेन के पिता देवमीढ़ का एक अन्य नाम " चित्ररथ भी महाभारत के अनुशासन पर्व में वर्णित है। (महाभारत अनुशासन पर्व, अध्याय -147, श्लोक 29)
चित्ररथ - यादव वंश के एक राजा जो कि उषाङ्कु के पुत्र और शूर के पिता थे। (श्लोक 29, अध्याय- (147), अनुशासन पर्व)।
रुषेकु (उषाङ्कु ) के पुत्र और शशबिन्दु के पिता। *
* भागवत-पुराण IX. 23. 31; ब्रह्माण्ड विज्ञान-पौराणिक कथा III. 70. 18; मत्स्य-पुराण 44. 17; विष्णु-पुराण IV. 12. 2-3.
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देवमीढ( चित्ररथ)- भागवत पुराण के मत में कृतिरथ का तथा वायुपुराण के मत में कीर्तिरथ(ह्रदीक) के पुत्र हैं ।
देवमीढ - भागवतमत में ह्रदीक का पुत्र । इसका पुत्र शूर । इसकी पत्नी का नाम ऐक्ष्वाकी था [मत्स्य.४६] । देवमीढुष, देवमानुषि एवं देवमेधस् इसी के नामांतर हैं ।
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देवमीढ - द्विमीढ का नामांतर ।
देवमीढ (सो. वृष्णि.) वृष्णि के पॉंच पुत्रों में से तीसरा [पद्म.सृष्टि खण्ड.१३] ।
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सात्वत के पुत्र वृष्णि के वंशज-मत्स्यपुराण-
स्यमन्तकमणिसंक्षिप्तचरित्रम्।
"सूत उवाच।
गान्धारी चैव माद्री च वृष्णिभार्ये बभूवतुः।
गान्धारी जनयामास सुमित्रं मित्रनन्दनम्।४५.१।
माद्री युधाजितं पुत्रं ततो वै देवमीढुषम्।
अनमित्रं शिबिं चैव पञ्चमं कृतलक्षणम्। ४५.२ ।
"सूत उवाच।
गान्धारी चैव माद्री च वृष्णिभार्ये बभूवतुः।
गान्धारी जनयामास सुमित्रं मित्रनन्दनम्।४५.१।
माद्री युधाजितं पुत्रं ततो वै देवमीढुषम्।
अनमित्रं शिबिं चैव पञ्चमं कृतलक्षणम्। ४५.२ ।
(मत्स्यपुराण /अध्यायः ४५)
सूतजी कहते हैं-ऋषियो! ( अब आप लोग सात्त्वत के कनिष्ठ( सबसे छोटे) पुत्र वृष्णि का वंश-वर्णन सुनिये) गान्धारी और माद्री- ये दोनों वृष्णि की पत्नियाँ हुईं। उनमें गान्धारी ने सुमित्र और मित्रनन्दन नामक दो पुत्रों को जन्म दिया तथा माद्री ने युधाजित्, देवमीढुष, अनमित्र, शिवि और पाँचवें कृतलक्षण नामक पुत्रों को जन्म दिया।
(कृष्णोत्पत्तिवर्णनम्)
"सूत उवाच।
ऐक्ष्वाकी सुषुवे शूरं ख्यातमद्भुत मीढुषम्।
पौरुषाज्जज्ञिरे शूरात् भोजायां पुत्रकादश।४६.१।
वसुदेवो महाबाहुः पूर्वमानकदुन्दुभिः।
देवमार्गस्ततो जज्ञे ततो देवश्रवाः पुनः।। ४६.२ ।
"सूत उवाच।
ऐक्ष्वाकी सुषुवे शूरं ख्यातमद्भुत मीढुषम्।
पौरुषाज्जज्ञिरे शूरात् भोजायां पुत्रकादश।४६.१।
वसुदेवो महाबाहुः पूर्वमानकदुन्दुभिः।
देवमार्गस्ततो जज्ञे ततो देवश्रवाः पुनः।। ४६.२ ।
सूतजी कहते हैं- ऋषियों ! ऐक्ष्वाकी (माद्री) ने शूर (शूरसेन) नामक एक अद्भुत पुत्र को जन्म दिया, जो आगे चलकर मीढुष (देवमीढुष) नाम से विख्यात हुआ। पुरुषार्थी शूर के सम्पर्क से भोजा ( मारिषा- ) के गर्भ से दस पुत्रों और पाँच सुन्दरी कन्याओं की उत्पत्ति हुई। पुत्रों में सर्वप्रथम महाबाहु वसुदेव उत्पन्न हुए, जिनकी आनकदुन्दुभि नामसे भी प्रसिद्धि हुई। उसके बाद देवभाग- ( देवमार्ग) का जन्म हुआ।
मत्स्यपुराण /अध्यायः (४६)
अस्मक्यां जनयामास शूरो वै देवमानुषिम्।
माष्यान्तु जनयामास शूरो वै देवमीढुषम् ।। ३४.१४३ ।।
भाष्यान्तु जज्ञिरे शूराद्भोजायां पुरुषा दश।
वसुदेवो महाबाहुः पूर्वमानकदुन्दुभिः ।३४.१४४ ।।
जज्ञे तस्य प्रसूतस्य दुन्दुभिः प्राणदद्दिवि।
आनकानाञ्च संह्रादः सुमहानभवद्दिवि ।। ३४.१४५ ।।
पपात पुष्पवर्षञ्च शूरस्य भवने महत्।
मनुष्यलोके कृत्स्नेऽपि रूपे नास्ति समो भुवि ।। ३४.१४६ ।।
माष्यान्तु जनयामास शूरो वै देवमीढुषम् ।। ३४.१४३ ।।
भाष्यान्तु जज्ञिरे शूराद्भोजायां पुरुषा दश।
वसुदेवो महाबाहुः पूर्वमानकदुन्दुभिः ।३४.१४४ ।।
जज्ञे तस्य प्रसूतस्य दुन्दुभिः प्राणदद्दिवि।
आनकानाञ्च संह्रादः सुमहानभवद्दिवि ।। ३४.१४५ ।।
पपात पुष्पवर्षञ्च शूरस्य भवने महत्।
मनुष्यलोके कृत्स्नेऽपि रूपे नास्ति समो भुवि ।। ३४.१४६ ।।
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