प्रत्येक काल में इतिहास पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर लिखा जाता रहा है ;
आधुनिक इतिहास हो या फिर प्राचीन इतिहास या पौराणिक आख्यानकों में
वर्णित कल्पना रञ्जित कथाऐं !
अहीरों की निर्भीकता और पक्षपात विरोधी प्रवृत्ति के कारण या 'कहें' उनका बागी प्रवृत्ति के कारण
भारतीय पुरोहित वर्ग ने अहीरों को (Criminal tribe ) अापराधिक जन-जाति के रूप में तथा दुर्दान्त हत्यारों और लूटेरों के रूप में भी वर्णित किया है।
पता नहीं इतिहासकारों की कौन सी भैंस अहीरों ने चुरा ली थी ।
विदित हो की यादवों ने अपने अधिकारों और अस्मिता के लिए दस्यु या डकैटी के तो अपनाया था ।
और डकैटी करना या डकैट होना गरीबों की सम्पत्ति चुराना नहीं है ।
यदि ऐसी होता तो महाभारत में दस्युओं की प्रसंशा नहीं की जाती ।
दस्यु वे विद्रोही थे जिन्होंने कभी भी किसी की अधीनता स्वीकार करके उसकी अनुचित कानून के माना हो
ऐसे विद्रोही हर युग और हर समाज में अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए सदैव से बनते रहे हैं ।
और यह भी सर्वविदित है कि
इतिहास कार भी विशेष समुदाय वर्ग के ही थे ।
उस वर्ग के जो समाज पर अपना वर्चस्व स्थापित कर के उसके निम्न और मध्य वर्गों पर शासन करते थे ।
उनकी सुन्दर कन्याओं और स्त्रियों के अपनी वासना पूर्ति के लिए तलब कर लेते थे ।
'परन्तु अहीरों ने दासता स्वीकार 'न करके दस्यु बनना बहतर समझा !
क्यों की वीर अथवा यौद्धा कभी असमानता मूलक सामाजिक अव्यवस्थाओं से समझौता नहीं करके हैं ।
अहीरों के विषय में ऐसा केवल नकारात्मक ऐैतिहासिक विवरण पढ़ने वाले गधों से अधिक कुछ नहीं हैं।
अहीर क्रिमिनल ट्राइब कदापि नही हैं अपितु विद्रोही ट्राइब अवश्य रही है ; वो भी अत्याचारी शासन व्यवस्थाओं के खिलाफ ,
क्योंकि इतिहास भी शासन के प्रभाव में ही लिखा जाता था।
और कोई शासक विद्रोहियों को सन्त तो कहेगा नहीं
और 'न ही उसको सम्मानित दर्जा देगा ।
परन्तु जनता क्यूँ सच मान लेती है ये सारी काल्पनिक बाते यही समझ में नहीं आता ?
सम्भवत: जनता में भी वर्चस्व वादीयों की धाक होती है ।
नकारात्मक रूप से ऐसी ऊटपेटांग बातें आजादी के बाद यादवों के बारे में वर्ण-व्यवस्था के अनुमोदकों ने ही पूर्व-दुराग्रहों से ग्रसित होकर लिखीं ।
क्यों की उन्हें उनसे खतरा था की ये तो सबको समानता के पक्षधर हैं तो हमारी स्वार्थ वत्ता कैसे सिद्ध होती रहेंगी ?
परन्तु यथार्थोन्मुख सत्य तो ये है कि यादवों ने ना कभी कोई अापराधिक कार्य अपने स्वार्थ या अनुचित माँगों को मनवाने के लिए किया हो !
कोई तोड़ फोड़ कभी की हो ! और ना ही -गरीबों की -बहिन बेटीयों को सताया हो ।
गरीबों के अपनी हमकदम अपना भाई माना
केवल कुकर्मीयों , व्यभिचारीयों के खिलाफ विद्रोह अवश्य किया, वो भी हथियार बन्ध होकर ,
यादवों का विद्रोह शासन और उस शासक के खिलाफ रहा हमेशा से , जिसने समाज का शोषण किया ना की आम लोगों के खिलाफ !
जनता को सोचना-समझना चाहिए ! न कि बोगस लोगो के कहने पर विश्वास करने चाहिए !
जिस प्रकार से आज समाज में अहीरों के खिलाफ सभी रूढ़ि वादी समुदाय एक जुट हो गये हैं ।
और उन्हें घेरने की कोशिश करते हैं
नि: सन्देह यह भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है
क्यों की हर क्रिया की प्रतिक्रियाऐं शाश्वत हैं ।
जो धूल तो ठोकर मार कर यह सोचते हैं की हम बादशह हैं तो वह धूल उन्हीं के सिर पर बैठती है ।
जय श्री कृष्णाय नम !
समर्पण उनको जो अपनी बेवाक -विचार धारा के लिए किसी से समझौता नहीं करते हैं ।
वञ्चित समाज के उत्थान में अहर्निश संघर्ष करने वाले
साम्यवादी मसीहा हैं !
प्रस्तुति-करण :- यादव योगेश कुमार 'रोहि'
ग्राम-आज़ादपुर
पत्रालय- पहाड़ीपुर
जनपद- अलीगढ़---उ०प्र० 8077160219
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