राम एक ऐतिहासिक विवरण :----
विवेचक यादव योगेश कुमार 'रोहि'
(राम एक इतिहास )
राम के जीवन को सदियों से भारतीय ही नहीं , अपितु सुमेरियन ,माया आदि अन्य देशों की संस्कृति में भी आदर्श और पवित्र माना जाता हैं |
राम शब्द हमारे अभिवादन के रूप मे समाचरित हो चुका है ।
भारतीय परम्पराओं में जीवन यात्रा का अन्तिम विदाई शब्द राम -राम शब्दावृत्ति के रूप में रूढ़ हो गया है ।
राम उस निराकार ब्रह्म का भी वाचक शब्द है ;जो सर्वत्र व्याप्त है।. (रमते इति । रम् + अण् । रम्यतेऽनेन सम्पूर्णेषु चराचरेषु ।
(रम् + घञ् वा ) १:- मनोज्ञः (यथा बृहत्संहितायाम् । १९ / ५
“ गावः प्रभूतपयसो नयनाभिरामा रामा रतैरविरतं रमयन्ति रामान् “ )
सितः ,असितः इति मेदिनी कोश २७ ॥
(रम--कर्त्तरि घञ् अण् वा ):---अर्थात् रम् धातु में कर्ता के अर्थ में अण् अथवा घञ् प्रत्यय करने पर राम: शब्द बनता है ।
संस्कृत साहित्य में राम शब्द इन मानवों के नामीय रूप में रूढ़ है :---जो पौराणिक कथाओं में प्रसिद्ध रहे हैं ।
देखें---
१ परशुरामे २ दशरथ- ज्येष्ठपुत्रे श्रीरामे ३ बलरामे च “भार्गवो राघवो गोपस्त्रयो रामाः पकीर्त्तिता”
अग्नि सर्वत्र व्याप्त है अत: राम शब्द अग्नि का भी वाचक है ।
वह्नि:--- पु० रामशब्द- निरुक्तिः “रापब्दा विश्ववचनो मश्चापीश्वरवाचकः “विश्वानाधीश्वरो यो हि तेन रामः प्रकोर्त्तित” ब्रह्मवैवर्त जन्म खण्ड ११० अध्याय
४ मनोहरे ५ सिते ६ असिते च त्रि० मेदिनी कोश ।
मेदिनी संस्कृत भाषा के कोश में
राम का अर्थ १- सुन्दर २- श्वेत ३- अश्वेत अर्थ भी है । ७ वास्तूकशाके ८ कुष्ठे (कुड़) न० मेदिनी कोश
तमालपत्रे न० ।
रम् :-- क्रीडायाम् आत्मने पदीय व परस्मैपदीय दौनों क्रिया रूप
अनुदात्तोऽनुदात्तेत् ( रमते रेमे रेमिषे रेमिध्वे ) क्रादिनियमादिट् ( रन्ता रंस्यते रमताम् अरमत रमेत रंसीष्ट अरंस्त रिरंसते रंरम्यते रंरन्ति ररंतः )
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राम के चरित्र और नाम रूप की इतनी अर्थ व्यापकता होने पर भी -
कुछ विधर्मी और नास्तिकों द्वारा श्री राम पर शम्बूक नामक एक शुद्र का हत्यारा होने का आक्षेप लगाया जाता हैं।
यद्यपि राम का वंशज भारत में कोई नहीं है ।
क्यों कि राम सुमेरियन बैबीलॉनियन संस्कृतियों के मिथकों में वर्णित पात्र हैं ।
आगे इसका प्रमाण सहित विवरण प्रस्तुत किया जाएगा
दुनियाँ में अनेक राम-कथाऐं अपनी संस्कृति
के अनुरूप विभिन्न देशों में लिखी गयी हैं।
अत राम के चरित्र में भिन्नताऐं स्वाभावितक है।
भारत में वाल्मीकि-रामायण की रचना वाल्मीकि के नाम पर पुष्यमित्र सुंग ईसा० पूर्व 184-148 के शासन काल में लिखी गयी ।
क्यों की वाल्मीकि-रामायण के अयोध्या काण्ड १०९ वें सर्ग ३४ वें श्लोक में जावालि ऋषि के साथ सम्वाद रूप में राम के मुख से बुद्ध को चौर तथा नास्तिक कहलवाया गया देखें---
वाल्मीकि-रामायण अयोध्या काण्ड १०९ वें सर्ग का ३४ वाँ श्लोक--
यथा ही चौर स तथा हि बुद्धस्तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि -
परन्तु राम एक ऐतिहासिक चरित्र हैं |
संसार में अब तक ३०० रामायण की कथाएें लिखी जा चुकी हैं ।
वेदों में राम का वर्णन है ।
वेद में श्रीरामोपासना की प्राचीनता बतायी गयी है। ऋग्वेद के १०४१७ मन्त्रों से १५५ मन्त्रों, एक मन्त्र वाजसनेयी संहिता से तथा एक अन्यत्र संहिता से लेकर, नीलकण्ठ-सूरि ने ’मन्त्ररामायण’ नामक एक प्रख्यात रचना की थी ।
जिस पर’मन्त्ररहस्य-प्रकाशिका’ नामक स्वोपज्ञ व्याख्या भी की थी। इससे प्रमाणित होता है कि सृष्टि के प्राचीन काल से ही श्रीरामोपासना सतत चली आ रही है। अब इस रामोपासना की अविच्छिन्नता पर विचार करते हैं। उपनिषदों में भी श्रीराम-मन्त्र का वर्णन आया है।
श्रीरामतापिनी उपनिषद की चतुर्थ कण्डिका-
“श्रीरामस्यमनुंकाश्यांजजापवृषभध्वजः। मन्वन्तरसहस्रैस्तुजपहोमार्चनादिभिः॥
जिसमें अनेक कथाऐं तत्कालीन पुरोहितों ने अपने स्वार्थ को दृष्टि गत करके लिखीं प्रस्तुत हैं कुछ उदाहरण 👇
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वाल्मीकि-रामायण में यह उत्तर- काण्ड का प्रकरण
पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायी ब्राह्मणों ने शूद्रों को लक्ष्य करके यह मनगढ़न्त रूप से राम-कथा से सम्बद्ध कर दिया ---
ताकि लोक में इसे सत्य माना जाय !
और शूद्रों का शोषण होता रहे ।
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शम्बूक शूद्र के बध की कथा कितनी अस्वाभाविक व तर्क हीन पद्धति पर लिखी गयी है ।
कोई भी विद्वान इसे सत्य नहीं मानेगा ।
सर्वप्रथम शम्बूक कथा का वर्णन वाल्मीकि रामायण में उत्तर कांड के 73-76 सर्ग में मिलता हैं।
शम्बूक वध की कथा इस प्रकार है देखें:-
एक दिन एक ब्राह्मण का इकलौता पुत्र मर गया।
उस ब्राह्मण ने पुत्र के शव को लाकर राजद्वार पर डाल दिया और विलाप करने लगा।
उसका आरोप था की बालक की अकाल मृत्यु का कारण राज का कोई दुष्कृत्य हैं।
ऋषि- मुनियों की परिषद् ने इस पर विचार करके निर्णय दिया की राज्य में कहीं कोई अनधिकारी तप कर रहा हैं।
राम ने इस विषय पर विचार करने के लिए मंत्रियों को बुलाया।
नारद जी ने उस सभा में कहा- राजन! द्वापर में भी शुद्र का तप में प्रवृत होना महान अधर्म हैं और त्रेतायुग में तो उसके तप में प्रवृत होने का प्रश्न ही नहीं उठता।
निश्चय ही आपके राज्य की सीमा में तुच्छ बुद्धिवाला शुद्र तपस्या कर रहा हैं।
उसी के कारण बालक की मृत्यु हुई हैं।
अत: आप अपने राज्य में खोज कीजिये और जहाँ कोई दुष्ट कर्म होता दिखाई दे वहाँ उसे रोकने का यत्न कीजिये।
यह सुनते ही रामचन्द्र पुष्पक विमान पर सवार होकर शम्बूक की खोज में निकल पड़े और दक्षिण दिशा में शैवल पर्वत के उत्तर भाग में एक सरोवर पर तपस्या करते हुए एक तपस्वी मिल गया जो पेड़ से उल्टा लटक कर तपस्या कर रहा था।
उसे देखकर श्री रघुनाथ जी उग्र तप करते हुए उस तपस्वी के पास जाकर बोले- “उत्तम तप का पालन करते हए तापस! तुम धन्य हो। तपस्या में बड़े- चढ़े , सुदृढ़ पराक्रमी पुरुष! तुम किस जाति में उत्पन्न हुए हो?
मैं दशरथ कुमार राम तुम्हारा परिचय जानने के लिए ये बातें पूछ रहा हूँ। तुम्हें किस वस्तु के पाने की इच्छा हैं? तपस्या द्वारा संतुष्ट हुए इष्टदेव से तुम कौन सा वर पाना चाहते हो- स्वर्ग या कोई दूसरी वस्तु? कौन सा ऐसा पदार्थ हैं जिसे पाने के लिए तुम ऐसी कठोर तपस्या कर रहे हो जो दूसरों के लिए दुर्लभ हैं?
तापस! जिस वस्तु के लिए तुम तपस्या में लगे हो, उसे मैं सुनना चाहता हूँ। इसके सिवा यह भी बताओ की तुम ब्राह्मण हो या अजेय क्षत्रिय? तीसरे वर्ण के वैश्य हो या शुद्र हो?”
क्लेश रहित कर्म करने वाले भगवान् राम का यह वचन सुनकर नीचे मस्तक करके लटका हुआ वह तपस्वी बोला
– हे श्री राम ! मैं झूठ नहीं बोलूँगा। देव लोक को पाने की इच्छा से ही तपस्या में लगा हूँ।
मुझे शुद्र जानिए।
मेरा नाम शम्बूक हैं।
वह इस प्रकार कह ही रहा था की रामचन्द्र जी ने म्यान से चमचमाती तलवार निकाली और उसका सर काटकर फेंक दिया।
प्रश्नात्मक तथ्य यह है कि
क्या किसी भी शुद्र के लिए तपस्या धर्म शास्त्रों में वर्जित हैं ?
क्या किसी शुद्र के तपस्या करने से किसी ब्राह्मण के बालक की मृत्यु हो सकती हैं?
क्या श्री राम 'ने शबरी से उच्छिष्ट वदिर( बेर) खाकर भी जातिगत द्वेष से प्रेरित होकर शम्बूक शूद्र का वध किया राम 'ने यह भेदभाव कब से करने लगे थे?
वेदों में भी शूद्रों के विषय में कुछ ऋचाऐं हैं जैसा कि
1. तपसे शुद्रम- यजुर्वेद 30/5
अर्थात- तप को करने वालों में पुरुष का नाम शुद्र है।
2. नमो निशादेभ्य – यजुर्वेद 16/27
अर्थात- शिल्प-कारीगरी विद्या से युक्त जो जन (शुद्र/निषाद) हैं उनको नमन व उनका सत्कार करें।
3. वारिवस्कृतायौषधिनाम पतये नमो- यजुर्वेद 16/19
अर्थात- वारिवस्कृताय अर्थात सेवन करने वाले भृत्य का
नमन करें ।
रुचं शुद्रेषु- यजुर्वेद 18/48
अर्थात- शूद्रों में रुचि रखें ।
इसी प्रकार के अनेक प्रमाण शूद्र के तप करने के, मिलते हैं।
स्वयं वाल्मीकि-रामायण में शूद्र के तपस्या से महान बनने के प्रमाण
मुनि वाल्मीकि जी कहते हैं की इस रामायण के पढ़ने से (स्वाध्याय से) ब्राह्मण बड़ा सुवक्ता ऋषि होगा, क्षत्रिय भूपति होगा, वैश्य अच्छा लाभ प्राप्त करेगा और शूद्र महान होगा।
रामायण में चारों वर्णों के समान अधिकार देखते हैं देखते हैं। -सन्दर्भ- प्रथम अध्याय अंतिम श्लोक
इसके अतिरिक्त अयोध्या कांड अध्याय 63 श्लोक 50-51 तथा अध्याय 64 श्लोक 32-33 में रामायण को श्रवण करने का वैश्यों और शूद्रों दोनों के समान अधिकार का वर्णन हैं।
एक ही ग्रन्थ में ये परस्पर विरोधाभासी व असंगत बातें
सम्पूर्ण ग्रन्थ की प्राचीनता को सन्दिग्ध बना देता है
इसी प्रकार भागवत धर्म से प्रतिनिधित्व करने वाले ग्रन्थ श्रीमद्भगवदगीता उपनिषत् में भी पञ्चम सदी में मिलाबट करके उसमें अनेक भागवत मत सम्बन्धी बातें समायोजित की गयीं है ।
श्री कृष्ण के मुखारविन्दु से उन तथ्यों को भी कहलवा दिया जिसका विरोध करने के लिए उन्होंने वैदिक मत से पृथक भागवत मत की स्थापना की था ।
हे पार्थ ! जो पापयोनि स्त्रिया , वैश्य और शुद्र हैं यह भी मेरी उपासना कर परमगति को प्राप्त होते हैं।
गीता 9/32
दक्षिणीय अमेरिका की माया सभ्यता में राम और सीता को आज भी मेक्सिको के एजटेक समाज के लोग "रामसितवा " उत्सव के रूप में स्मरण करते हैं ,
यूरोपीय इतिहास कार व पुरातात्विक विशेषज्ञ डा०मार्टिन का विवरण है कि पूर्व से लंका मार्ग से होते हुए माया सभ्यता के लोग मैक्सिको( दक्षि़णीय अमेरिका में बसे !
एजटेक पुरातन कथाओं में वर्णन है कि उस देश में
प्रथम: एक लम्बी दाढ़ी ,ऊँचे कद़ तथा श्वेत वर्ण का एक पूर्वज किसी अज्ञात स्थान से आया ।
जिसने इस देश में कृषि शिल्प तथा शिक्षा एवं संस्कृति और सभ्यता का विकास किया ।
माया पुरातन कथाओं में उस महान आत्मा का नाम क्वेट - सालकटली है ।
क्वेट सालकटली का तादात्म्य राम के समकालिक श्वेत साल कटंकट से प्रस्तावित है ।
गहन काल गणना के द्वारा राम का समय ७००० हजार वर्ष पूर्व निश्चित होता है ,परन्तु रूढ़ि वादी परम्परा राम का समय ९००००० वर्ष मानती है ।
श्रीरामचन्द्र जी का काल पुराणों के अनुसार करोड़ो वर्षों पुराना हैं। हमारा आर्याव्रत देश में महाभारत युद्ध के काल के पश्चात और उसमें भी विशेष रूप से पिछले २५०० वर्षों में अनेक परिवर्तन हुए हैं जैसे ईश्वरीय वैदिक धर्म का लोप होना और मानव निर्मित मत मतान्तर का प्रकट होना जिनकी अनेक मान्यतें वेद विरुद्ध थी। ऐसा ही एक मत था वाममार्ग जिसकी मान्यता थी की माँस, मद्य, मीन आदि से ईश्वर की प्राप्ति होती हैं।
वाममार्ग के समर्थकों ने जब यह पाया की जनमानस में सबसे बड़े आदर्श श्री रामचंद्र जी हैं इसलिए जब तक उनकी अवैदिक मान्यताओं को श्री राम के जीवन से समर्थन नहीं मिलेगा तब तक उनका प्रभाव नहीं बढ़ेगा। इसलिए उन्होंने श्री राम जी के सबसे प्रमाणिक जीवन चरित वाल्मीकि रामायण में यथानुसार मिलावट आरंभ कर दी जिसका परिणाम आपके सामने हैं।
महात्मा बुद्ध के काल में इस प्रक्षिप्त भाग के विरुद्ध"दशरथ जातक" के नाम से ग्रन्थ की स्थापना करी जिसमें यह सिद्ध किया की श्री राम पूर्ण रूप से अहिंसा व्रत धारी थे और भगवान बुद्ध पिछले जन्म में राम के रूप में जन्म ले चुके थे। कहने का अर्थ यह हुआ की जो भी आया उसने श्री राम जी की अलौकिक प्रसिद्धि का सहारा लेने का प्रयास लेकर अपनी अपनी मान्यताओं का प्रचार करने का पूर्ण प्रयास किया ।
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कुछ देशों की संस्कृतियों में राम और सीता को भाई बहिन के रूप में वर्णित किया गया है।
राम और सीता के भाई-बहिन माना जाने के मूल में अर्थों का अप्रासंगिक होना ही है।
सृष्टि के प्रारम्भ में पुत्र और पुत्री का युगल रूप में जन्म होता था जैसे कि पक्षीयों में होता है ।
आपने कभी यह सुना और देखा है कि किसी पक्षी ने एक अण्डा दिया हो
सायद नहीं मनुष्य या स्त्री केवल द्विस्तनधारी प्राणी हैं ।
पक्षीयों में भाई - बहिन ही पति और पत्नी होते हैं ।
'परन्तु मनुष्यों में यम के बाद यह भाई-बहन के पति-पत्नी होने की परम्पराओं में परिवर्तन हो गया
और तभी से लड़की- लड़का स्त्रियों के साथ साथ
प्रसव नहीं होते हैं ।
राम और सीता के भाई-बहिन माना जाने के मूल में अर्थों का प्रासंगिक न होना ही है।
राम, सीता भरत ,दशरथ जैसे चरित्र सुमेरियन संस्कृति में भी प्राप्त हैं ! देखें और पढें -
गिलगमेश का महाकाव्य तथा
हम्बूरावी की विधि संहिता !
भारतीय ग्रन्थों में राम कथा का आगमन भी सुमेरियन मिथकों से है ।
विशेष :-सभी विद्वान अपनी प्रतिक्रियाऐं तर्क-संगत और प्रमाणों की भाषा में दें !
प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार 'रोहि'
सम्पर्क सूत्र:- 8077168219
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वैदिक कालीन भाषा में सीता के लिए स्वसृ शब्द का प्रयोग राम को सीता का बन्धु कहा जाना किन तथ्यों की तरफ संकेत है ?
यद्यपि ' बन्धु शब्द का भाई लिए प्रयोग होता था।
कालिदास ने रघुवंश के 14 वें सर्ग के 33 वें श्लोक में श्री राम को सीता का बन्धु कहा है:
‘वैदेहि बन्धोर्हृदयं विदद्रे’।
अर्थात् वैदेहि (विदेह राजा जनक की पुत्री ने बन्धु राम को हृदय में धारण किया "
संस्कृत भाषा में बन्धु शब्द के समान भगिनी शब्द के भी दो अर्थ हैं;
भगिनी शब्द के व्यापक अर्थों का प्रकाशन संस्कृत साहित्य में कालान्तरण में दो रूपों में हुआ
भगिनी = पत्नी तथा भगिनी = बहिन
(सहोदरा) ।
तत्पर्य्यायः स्वसा २ । इत्यमरःकोश । २ । ६ । २९ ॥
भगं यत्नः पित्रादितो द्रव्यदाने विद्यतेऽस्या इति इनि प्रत्ययेन भगिनी इति तट्टीकायां भरतः ॥
दूसरी व्युत्पत्ति स्त्री अर्थ में :-
(भगं योनिरस्या अस्तीति ।
भग + इनिः डीप् ) स्त्रीमात्रम् ।
यथा -“ परिगृह्या च षामाङ्गी भगिनी प्रकृतिर्नरी ॥ “ इति शब्दचन्द्रिका ॥
यहाँ शब्दचन्द्रिका में भगिनी शब्द स्त्री का वाचक है ।
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स्वयं ऋग्वेद के दशम् मण्डल के सूक्त तीन की ऋचा तीन में देखें सीता को राम की स्वसार कहा है ।
( स्वसृ शब्द भारोपीय भाषा परिवार में (Sister ) के रूप में विकसित हुआ है ।
देखें---ऋग्वेद में सीता को लिए स्वसार (स्वसृ ) शब्द का प्रयोग 👇
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भद्रो भद्रया सचमान आगात्स्वसारं
जारो अभ्येति पश्चात्।
सुप्रकेतैर्द्युभिरग्निर्वितिष्ठन्रुशद्भिर्वर्णैरभि राममस्थात्॥
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(ऋग्वेद १०।३।३)
भावार्थ: श्री रामभद्र -१-(भद्र)
सीता जी के साथ -२-(भद्रया) [ वनवास के लिए ]
३-तैयार होते हुए - (सचमान ) (दण्डकारण्य वन) यहाँ स्वसारं पत्नी अर्थ में अथवा -बहिन ) ४-दौनों अर्थों में (स्वसारं) कर्मणि द्वित्तीया
५-जब आये थे (आगात्) , तब (पश्चात ) कपट वेष में
६-कामुक (जारो) रावण (जारः, पुंल्लिंग (जीर्य्यति स्त्रियाः सतीत्वमनेन । जॄ + करणे घञ् ) उपपतिः । इत्यमरः । २ । ६ । ३५ ॥
(यथा, याज्ञवल्क्ये । २ । ३० । “जारं चौरेत्यभिवदन् दाप्यः पञ्चशतं दमम् ॥”
जारयति नाशयति इति ( जॄ + णिच् + अच् ) हन्ता । यथा, ऋग्वेदे । १ । ६६ । ४ । “यमोह जातो यमो जनित्वं जारः कनीनां पतिर्ज्जनीनाम् ”)
(फारसी में देखें यार शब्द रूप)
७ -सीता जी का हरण करने के लिए आता है
(अभ्येति ),
उस समय अग्नि देव हीं सीता जी के साथ थे ।
( अर्थात स्वयं सीता माँ अग्नि में स्थित हो चुकी थी राम जी के कथन के अनुसार), अब रावण वध के पश्चात,
८-देदीप्यमान तथा लोहितादी वर्णों वाली ज्वालाओं से युक्त स्वयं अग्नि देव के द्वारा ही (सुप्रकेतैर्द्युभिरग्निर्वितिष्ठन्रुशद्भिर्वर्णैरभि)
शुभ-लक्षणों से युक्त कान्तिमयी सीता जी के साथ [सीता जी का निर्दोषत्व सिद्ध करने के लिए]
९-श्री राम के सम्मुख उपस्थित हुए (राममस्थात्) |
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उपर्युक्त ऋचा में सीता के लिए स्वसा शब्द है; जो राम और सीता को भाई-बहिन मानने के लिए
भ्रमित करता है ।
राम सीता का क्या सम्बन्ध है?
इससे हमारा मन्तव्य नहीं !
'परन्तु हमारी शोधपरक मान्यता है कि राम और सीता की कथाऐं पश्चिमी एशिया से लेकर दक्षिणी अमेरिकी मक्सिको तथा मिश्र व थाइलेण्ड आदि में अस्तित्व वान हैं ।
और यह वैदिक ऋचाओं में प्राचीनत्तम हैं
मिश्र की पुरातन कथाओं रेमेशिस तथा सीतामुन
शब्द राम और सीता का ही रूपान्तरण हैं ।
यद्यपि मिश्र की संस्कृति में भाई-बहिन ही पति - पत्नी के रूप में राजकीय परम्पराओं का निर्वहन करते हैं ।
कदाचित प्राचीन काल में किन्हीं और संस्कृतियों में भी ऐसी परम्पराओं का निर्वहन होता हो।
पाली भाषा में रचित "जातकट्ठवण्णना" के दशरथ जातक में राम कथा का संक्षेप में प्रारम्भ राम-सीता के भाई बहिन के रूप में वर्णन है
इन कथाओं के अनुसार दशरथ वाराणसी के राजा हैं
दशरथ की बड़ी रानी की तीन सन्तानें थीं ।
राम पण्डित (बुद्ध) लक्खण (लक्षण ) तथा एक पुत्री सीता
जिसे वाल्मीकि-रामायण में (सान्ता) कर दिया गया है ।
दशरथ जातक के अनुसार राम का वनवास बारह वर्ष क लिए है ।
नौवें वर्ष में जब भरत उन्हें वापस लिवाने के लिए आते हैं तो राम यह कहकर मना कर देते कि मेरे पिता ने मुझे बारह वर्ष के लिए वनवास कहा था ।
अभी तो तीन वर्ष शेष हैं ।
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तीन वर्ष व्यतीत होने पर राम पण्डित लौटकर अपनी बहन सीता से विवाह कर लेते हैं ।
और सोलह हजार वर्ष तक राज्यविस्तार करने से वाद स्वर्ग चले जाते हैं ।
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जिस वंश में महात्मा बुद्ध हुए थे उस शाक्य (शाकोई)
वंश में भाई-बहिन के परस्पर विवाह होने का उल्लेख मिलता है ।
क्योंकि मिश्र आदि हैमेटिक जन जातियाँ स्वयं को एक्कुस (इक्ष्वाकु) और मेनिस (मनु)
का वंशज मानती हैं ।
यम और यमी के काल तक भाई-बहिन के विवाह की परम्पराओं के अवशेष मिलते हैं ।
ऋग्वेद मण्डल संख्या-10. सूक्त संख्या-10 ऋचा
संख्या
ओ चित्सखायं सख्या ववृत्यां
तिरः पुरू चिदर्णवं जगन्वान् ।
पितुर्नपातमा दधीत वेधा
अधि क्षमि प्रतरं दीध्यानः ॥१॥
न ते सखा सख्यं वष्ट्येतत्सलक्ष्मा
यद्विषुरूपा भवाति ।
महस्पुत्रासो असुरस्य वीरा दिवो
धर्तार उर्विया परि ख्यन् ॥२॥
उशन्ति घा ते अमृतास एतदेकस्य
चित्त्यजसं मर्त्यस्य ।
नि ते मनो मनसि धाय्यस्मे जन्युः
पतिस्तन्वमा विविश्याः।।३।
न यत्पुरा चकृमा कद्ध नूनमृता
वदन्तो अनृतं
रपेम ।
गन्धर्वो अप्स्वप्या च योषा सा
नो नाभिः परमं जामि तन्नौ ॥४॥
गर्भे नु नौ जनिता दम्पती कर्देवस्त्वष्टा
सविता विश्वरूपः ।
नकिरस्य प्र मिनन्ति व्रतानि वेद
नावस्य पृथिवी उत द्यौः ॥५॥
को अस्य वेद प्रथमस्याह्नः
क ईं ददर्श क इह प्र वोचत् ।
बृहन्मित्रस्य वरुणस्य धाम कदु
ब्रव आहनो वीच्या नॄन् ॥६॥
यमस्य मा यम्यं काम आगन्समाने
योनौ सहशेय्याय ।
जायेव पत्ये तन्वं रिरिच्यां
वि चिद्वृहेव रथ्येव चक्रा ॥७॥
न तिष्ठन्ति न नि मिषन्त्येते
देवानां स्पश इह ये चरन्ति ।
अन्येन मदाहनो याहि तूयं तेन
वि वृह रथ्येव चक्रा ॥८॥
रात्रीभिरस्मा अहभिर्दशस्येत्सूर्यस्य चक्षुर्मुहुरुन्मिमीयात् ।
दिवा पृथिव्या मिथुना सबन्धू
यमीर्यमस्य बिभृयादजामि ॥९॥
आ घा ता गच्छानुत्तरा युगानि
यत्र जामयः कृणवन्नजामि ।
उप बर्बृहि वृषभाय बाहुमन्यमिच्छस्व
सुभगे पतिं मत् ॥१०॥
किं भ्रातासद्यदनाथं भवाति
किमु स्वसा यन्निरृतिर्निगच्छात् ।
काममूता बह्वेतद्रपामि तन्वा मे
तन्वं सं पिपृग्धि ॥११॥
न वा उ ते तन्वा तन्वं सं
पपृच्यां पापमाहुर्यः स्वसारं निगच्छात् ।
अन्येन मत्प्रमुदः कल्पयस्व न
ते भ्राता सुभगे वष्ट्येतत् ॥१२॥
बतो बतासि यम नैव ते मनो हृदयं चाविदाम ।
अन्या किल त्वां कक्ष्येव युक्तं परि
ष्वजाते लिबुजेव वृक्षम् ॥१३॥
अन्यमू षु त्वं यम्यन्य उ त्वां
परि ष्वजाते लिबुजेव वृक्षम् ।
तस्य वा त्वं मन इच्छा स वा तवाधा
कृणुष्व संविदं सुभद्राम् ॥१४॥
ओ चित्सखायं सख्या ववृत्यां
तिरः पुरू चिदर्णवं जगन्वान् ।
पितुर्नपातमा दधीत वेधा अधि
क्षमि प्रतरं दीध्यानः ॥१॥
यमी बोली- इस निर्जन एवं विस्तृत द्वीप में आकर मैं तुझ सखा से संभोग सुख पाने के लिए सन्मुख हुई हूं. तुम माता के उदर से ही मेरे साथ हो. विधाता यह चाहते हैं कि, तुम्हारे संसर्ग से मेरे उदर से जो पुत्र पैदा हो, वह हमारे पिता का योग्य योग्य नाती हो.
न ते सखा सख्यं वष्ट्येतत्सलक्ष्मा
यद्विषुरूपा भवाति ।
महस्पुत्रासो असुरस्य वीरा दिवो
धर्तार उर्विया परि ख्यन् ॥२॥
यम ने उत्तर दिया- तुम्हारा साथी यम तुम्हारे साथ ऐसी मित्रता नहीं चाहता. तुम बहिन होने के कारण इस संबन्ध के योग नहीं हो. महान एवं शक्तिशाली प्रजापति के स्वर्ग धारण कर्ता पुत्र अर्थात देव देख रहे हैं.
उशन्ति घा ते अमृतास एतदेकस्य
चित्त्यजसं मर्त्यस्य ।
नि ते मनो मनसि धाय्यस्मे जन्युः
पतिस्तन्वमा विविश्याः३।
यमी ने कहा- प्रजापति आदि देव याज्य नारियों के साथ इस प्रकार का संबंध रखना चाहते हैं. मानवों के लिए यह संबंध त्याज्य है. तुम अपने मन को मेरे अनुकूल बनाओ, एवं प्रजापति के समान तुम भी पुत्र के जन्मदाता के रूप में मेरे शरीर में प्रवेश करो.
न यत्पुरा चकृमा कद्ध नूनमृता
वदन्तो अनृतं रपेम ।
गन्धर्वो अप्स्वप्या च योषा
सा नो नाभिः परमं जामि तन्नौ॥४॥
यम बोला- हमने पहले ऐसा कभी नहीं किया.
हम सत्य बोलते हुए असत्य से दूर रहते हैं.
अंतरिक्ष में जल धारण करने वाले सूर्य एवं अंतरिक्ष में रहने वाली उनकी पत्नी सरण्यू हमारे माता पिता हैं. इस प्रकार हम सगए भाई बहिन हैं.
गर्भे नु नौ जनिता दम्पती कर्देवस्त्वष्टा
सविता विश्वरूपः ।
नकिरस्य प्र मिनन्ति व्रतानि वेद
नावस्य पृथिवी उत द्यौः ॥५।।
यमी कहने लगी- रूपकर्ता शुभाशुभ प्रेरक एवं सर सर्वात्मक प्रजापति ने गर्भ में ही हमें पति पत्नी बना दिया था. प्रजापति के काम का कोई भी विरोध नहीं करता है. हमारे दंपत्ति होने की बात द्यावा पृथ्वी जानते हैं.
को अस्य वेद प्रथमस्याह्नः
क ईं ददर्श क इह प्र वोचत् ।।
बृहन्मित्रस्य वरुणस्य धाम
कदु ब्रव आहनो वीच्या नॄन् ॥६॥
यमी बोली- पहले दिन के संभोग को कौन जानता है! उसे किसने देखा है? उसे कौन बताएगा? हे मोक्ष और बंधन का निर्णय करने वाले यम! तुम मित्र और वरुण के स्थान अर्थात दिन-रात के विषय में क्या कहते हो?
यमस्य मा यम्यं काम आगन्समाने योनौ सहशेय्याय ।
जायेव पत्ये तन्वं रिरिच्यां वि चिद्वृहेव रथ्येव चक्रा ॥७॥
तुझ यम की अभिलाषा मुझे यमी के प्रति जागृत हो. एक ही सैया पर साथ-साथ सोने के लिए पत्नी जिस प्रकार पति के सामने अपना शरीर प्रदर्शित करती है, उसी प्रकार मैं अपना शरीर प्रकाशित करूंगी. आओ! हम दोनों रथ के दो पहियों के समान एक ही कार्य में लगें.
न तिष्ठन्ति न नि मिषन्त्येते देवानां
स्पश इह ये चरन्ति ।
अन्येन मदाहनो याहि तूयं तेन
वि वृह रथ्येव चक्रा ॥८॥
यम ने कहा- यहां जो देवों के गुप्तचर घूमते हैं, वे न कभी रुकते हैं और न आंखें बंद करते हैं. हे दुख देने वाली यमी! तुम मेरे अतिरिक्त किसी अन्य के पास शीघ्र जाओ एवं रथ के पहियों के समान एक रुचि वाला कार्य करो.
रात्रीभिरस्मा अहभिर्दशस्येत्सूर्यस्य चक्षुर्मुहुरुन्मिमीयात् ।
दिवा पृथिव्या मिथुना सबन्धू यमीर्यमस्य बिभृयादजामि॥९॥
सभी यजमान रात और दिन का कल्पित भाग यम को दें. सूर्य का तेज यम के लिए बार-बार उदित हो. आपस में संबंध रखने वाले रात-दिन द्यावा और पृथ्वी के साथ यम के बंधु हैं. यमी अपने भाई यम के अतिरिक्त किसी और को अपना बनावें.
आ घा ता गच्छानुत्तरा युगानि
यत्र जामयः कृणवन्नजामि ।
उप बर्बृहि वृषभाय बाहुमन्यमिच्छस्व
सुभगे पतिं मत् ॥१०॥
आगे चलकर ऐसा समय आएगा, जब बहिनें अपने भाई के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति को अपना पति बनावेंगी. हे सुंदरी! मेरे अतिरिक्त किसी अन्य को पति बनाने की कल्पना करो. और अपनी भुजा को वीर्याधान करने वाले उस पुरुष का उपाधान बनाओ.
किं भ्रातासद्यदनाथं भवाति
किमु स्वसा यन्निरृतिर्निगच्छात्।
काममूता बह्वेतद्रपामि तन्वा मे तन्वं
सं पिपृग्धि ॥११॥
यमी कहने लगी- उस भाई के होने से क्या लाभ है, जिसके रहते हुए भी बहिन पतिविहीन रहे. उस बहिन के होने से क्या लाभ है, जिसके होते हुए भाई दुख उठाए. मै काममूर्च्छित होकर ये वचन बोल रही हूँ. तुम मेरे शरीर से अपना शरीर भलीभांति मिलाओ.
न वा उ ते तन्वा तन्वं सं पपृच्यां
पापमाहुर्यः स्वसारं निगच्छात् ।
अन्येन मत्प्रमुदः कल्पयस्व
न ते भ्राता सुभगे वष्ट्येतत् ॥१२॥
यम कहने लगा- हे यमी! मैं तुम्हारे शरीर से अपना शरीर नहीं मिलाना चाहता. जो अपनी बहिन के साथ संभोग करता है उसे लोग पापी कहते हैं. हे सुंदरी! मेरे अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष के साथ आमोद प्रमोद करो. तुम्हारा भाई यह काम करना नहीं चाहता.
बतो बतासि यम नैव ते मनो हृदयं
चाविदाम ।
अन्या किल त्वां कक्ष्येव युक्तं
परि ष्वजाते लिबुजेव वृक्षम्।।१३।।
यमी बोली- मुझे खेद है कि तुम बहुत कमजोर हो. मैं तुम्हारे मन को नहीं समझ पा रही हूं. रस्सी जिस प्रकार घोड़े को बांधती है और लता जिस प्रकार वृक्ष से लिपट जाती है, उसी प्रकार अन्य स्त्री तुम्हारा आलिंगन करती है.
अन्यमू षु त्वं यम्यन्य उ त्वां
परि ष्वजाते लिबुजेव वृक्षम् ।
तस्य वा त्वं मन इच्छा स वा
तवाधा कृणुष्व संविदं सुभद्राम् ॥१४॥
यम ने कहा- हे यमी! लता जिस प्रकार वृक्ष को सर्वात्मक है, उसी प्रकार तुम मेरे अतिरिक्त अन्य पुरुष का आलिंगन करो. वो भी तुम्हारा आलिंगन करे. तुम उस पुरुष का मन जीतने की कल्पना करो और वह पुरुष तुम्हारा मन जीत लेने की इच्छा करे. तुम उसी के साथ कल्याणकारी सहवास करो
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जैन पुराणों के अनुसार भोग-भूमियों में सहोदर भाई-बहिन के विवाह की स्थिर प्रणाली रही है ।
मिश्र में रेमेशिस तथा सीतामुन शब्द राम और सीता शब्द के परम्परागत अवशेष हैं ।
वैदिक ऋचाओं में यम और यमी भाई-बहिन थे और यमी यम से प्रणय याचना करती है ।
ऋग्वेद के दशम मण्डल का दशम -सूक्त यम-यमी सूक्त है।
इसी सूक्त के मन्त्र में कुछ वृद्धि तथा कुछ परिवर्तनपरक( अथर्ववेद (18/1/1-16) में)
दृष्टिपथ होते हैं, अब विचारणीय है कि- यम-यमी क्या है? अर्थात् यम-यमी किसको कहा ?
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इस प्रश्न का उदय उस समय हुआ जब आचार्य सायणादि भाष्यकारों ने यम-यमी को भाई-बहन के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
इस अश्लीलता परक अर्थ को कोई भी सभ्य समाज का नागरिक कदापि स्वीकार नहीं कर सकता है।
येआदिम काल के अवशेष हैं ।
यम और मनु दौनों को भारतीय पुराणों में भाई - भाई कहा है!
मनु भारतीय धरा की विरासत नहीं थे ।
और ना हि भारत की कोई अयोध्या उनकी जन्म भूमि थी ।
प्राचीन काल में एशिया - माइनर ---(छोटा एशिया), जिसका ऐतिहासिक नाम -करण अनातोलयियो के रूप में भी हुआ है ।
यूनानी इतिहास कारों विशेषत: होरेडॉटस् ने अनातोलयियो के लिए एशिया माइनर शब्द का प्रयोग किया है ।
जिसे आधुनिक काल में तुर्किस्तान अथवा टर्की नाम से भी जानते हैं ।
.. यहाँ की पार्श्व -वर्ती संस्कृतियों में मनु की प्रसिद्धि उन सांस्कृतिक-अनुयायीयों ने अपने पूर्व- जनियतृ { Pro -Genitor }के रूप में स्वीकृत की है !
जिसके द्वारा मानव है।
मनु को पूर्व- पुरुष मानने वाली जन-जातियाँ
प्राय: भारोपीय वर्ग की भाषाओं का सम्भाषण करती रहीं हैं ।
वस्तुत:
भाषाऐं सैमेटिक वर्ग की हो अथवा हैमेटिक वर्ग की अथवा भारोपीय , सभी भाषाओं मे समानता का कहीं न कहीं सूत्र अवश्य है ।
जैसा कि मिश्र की संस्कृति में मिश्र का प्रथम पुरूष जो देवों का का भी प्रतिनिधि था , वह मेनेस् (Menes)अथवा मेनिस् Menis संज्ञा से अभिहित था
मेनिस ई०पू० 3150 के समकक्ष मिश्र का प्रथम शासक था , और मेंम्फिस (Memphis) नगर में जिसका निवास था , मेंम्फिस प्राचीन मिश्र का महत्वपूर्ण नगर जो नील नदी की घाटी में आबाद है ।
तथा यहीं का पार्श्वर्ती देश फ्रीजिया (Phrygia)के मिथकों में ....मनु का वर्णन मिअॉन (Meon)के रूप में है ।
मिअॉन अथवा माइनॉस का वर्णन ग्रीक पुरातन कथाओं में क्रीट के प्रथम राजा के रूप में है ,
जो ज्यूस तथा यूरोपा का पुत्र है ।
.............
और यहीं एशिया- माइनर के पश्चिमीय
समीपवर्ती लीडिया( Lydia) देश वासी भी इसी मिअॉन (Meon) रूप में मनु को अपना पूर्व पुरुष मानते थे।
इसी मनु के द्वारा बसाए जाने के कारण लीडिया देश का प्राचीन नाम मेअॉनिया Maionia भी था .
ग्रीक साहित्य में विशेषत: होमर के काव्य में ---
मनु को (Knossos) क्षेत्र का का राजा बताया गया है
कनान देश की कैन्नानाइटी(Canaanite )
संस्कृति में बाल -मिअॉन के रूप में भारतीयों के बल और मनु (Baal- meon)और यम्म (Yamm) देव के रूप मे वैदिक देव यम से साम्य विचारणीय है-
.............
यम: यहाँ भी भारतीय पुराणों के समान यम का उल्लेख यथाक्रम नदी ,समुद्र ,पर्वत तथा न्याय के अधिष्ठात्री देवता के रूप में हुआ है ।
....कनान प्रदेश से ही कालान्तरण में सैमेटिक हिब्रु परम्पराओं का विकास हुआ था ।
स्वयम् कनान शब्द भारोपीय है , केन्नाइटी भाषा में कनान शब्द का अर्थ होता है मैदान अथवा जड्.गल यूरोपीय कोलों अथवा कैल्टों की भाषा पुरानी फ्रॉन्च में कनकन (Cancan)आज भी जड्.गल को कहते हैं ।
और संस्कृत भाषा में कानन =जंगल..
परन्तु कुछ बाइबिल की कथाओं के अनुसार
कनान हेम (Ham)की परम्पराओं में
एनॉस का पुत्र था ।
जब कैल्ट जन जाति का प्रव्रजन (Migration)
बाल्टिक सागर से भू- मध्य रेखीय क्षेत्रों में हुआ..
तब ...
मैसॉपोटामिया की संस्कृतियों में कैल्डिया के रूप में इनकी दर्शन हुआ ...
तब यहाँ जीव सिद्ध ( जियोसुद्द )अथवा नूह के रूप में
मनु की किश्ती और प्रलय की कथाओं की रचना हुयी ...
.......और तो क्या ?
यूरोप का प्रवेश -द्वार कहे जाने वाले ईज़िया तथा क्रीट( Crete )की संस्कृतियों में मनु आयॉनिया के आर्यों के आदि पुरुष माइनॉस् (Minos)के रूप में प्रतिष्ठित हए
भारतीय पुराणों में मनु और श्रृद्धा का सम्बन्ध
वस्तुत: मन के विचार (मनु) और हृदय की आस्तिक भावना (श्रृद्धा ) का मानवीय-करण (personification) रूप है |
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शतपथ ब्राह्मण ग्रन्थ में मनु को श्रृद्धा-देव कह कर सम्बोधित किया है ।
तथा श्रीमद्भागवत् पुराण में वैवस्वत् मनु तथा श्रृद्धा से ही मानवीय सृष्टि का प्रारम्भ माना गया है ।
सतपथ ब्राह्मण ग्रन्थ में " मनवे वै प्रात: "वाक्यांश से घटना का उल्लेख आठवें अध्याय में मिलता है ।
सतपथ ब्राह्मण ग्रन्थ में मनु को श्रृद्धा-देव कह कर सम्बोधित किया है;--श्रृद्धा देवी वै मनु
(काण्ड-१--प्रदण्डिका १)
श्रीमद्भागवत् पुराण में वैवस्वत् मनु और श्रृद्धा से मानवीय सृष्टि का प्रारम्भ माना गया है--
"ततो मनु: श्राद्धदेव: संज्ञायामास भारत
श्रृद्धायां जनयामास दशपुत्रानुस आत्मवान"
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९/१/११)
छन्दोग्य उपनिषद में मनु और श्रृद्धा की विचार और भावना मूलक व्याख्या भी मिलती है ।
"यदा वै श्रृद्धधाति अथ मनुते नाSश्रृद्धधन् मनुते "
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जब मनु के साथ प्रलय की घटना घटित हुई
तत्पश्चात् नवीन सृष्टि- काल में असुर पुरोहितों की प्रेरणा से ही मनु ने पशु-बलि दी ...
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" किल आत्आकुलीइति ह असुर ब्रह्मावासतु:।
तौ हो चतु: श्रृद्धादेवो वै मनु: आवं नु वेदावेति।
तौ हा गत्यो चतु:मनो वाजयाव तु इति।।
.जर्मन वर्ग की प्राचीन सांस्कृतिक भाषों में क्रमशः यमॉ Yemo- (Twice) -जुँड़वा यमल तथा मेन्नुस Mannus- मनन (Munan )करने वाला अर्थात् विचार शक्ति का अधिष्ठाता .फ्राँस भाषा में यम शब्द (Jumeau )के रूप में है ।
रोमन इतिहास कारों में टेकट्टीक्स (Tacitus)
जर्मन जाति से सम्बद्ध इतिहास पुस्तक "जर्मनिका "
में लिखता है ।
" अपने प्राचीन गाथा - गीतों में वे ट्युष्टो अर्थात् ऐसा ईश्वर जो पृथ्वी से निकल कर आता है ।
मैनुस् उसी का पुत्र है
वही जन-जातिों का पिता और संस्थापक है ।
जर्मनिक जन-जातियाँ उसके लिए उत्सव मनाती हैं ।
मैनुस् के तीन पुत्रों को वह नियत करते हैं ।
जिनके पश्चात मैन (Men)नाम से बहुत से लोगों को पुकारा जाता है |
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( टेकट्टीक्स (Tacitus).. जर्मनिका अध्याय 2.
100ईसवी सन् में लिखित ग्रन्थ....
यम शब्द....
रोमन संस्कृति में यह शब्द (Gemellus )है , जो लैटिन शब्द (Jeminus) का संक्षिप्त रूप है.
....रोमन मिथकों के मूल-पाठ (Text )में मेन्नुस् (Mannus) ट्युष्टो (Tuisto )का पुत्र तथा जर्मन आर्य जातियों के पूर्व पुरुष के रूप में वर्णित है --
A. roman text(dated) ee98) tells that Mannus the Son of Tvisto Was the Ancestor of German Tribe or Germanic people ".
........ इधर जर्मन आर्यों के प्राचीन मिथकों "प्रॉज़एड्डा आदि में "में उद्धरण है ...Mannus progenitor of German tribe son of tvisto in some Reference identified as Mannus उद्धरण अंश (प्रॉज- एड्डा ).....
वस्तुतः ट्युष्टो ही भारतीय आर्यों का देव त्वष्टा है ,जिसे विश्व कर्मा कहा है ..जिसे मिश्र की पुरा कथाओं में तिहॉती ,जर्मन भाषा में प्रचलित डच (Dutch )का मूल त्वष्टा शब्द है ।
गॉथिक शब्द (Thiuda )के रूप में भी त्वष्टा शब्द है ।
प्राचीन उच्च जर्मन में सह शब्द (Diutisc )तथा जर्मन में (TTeuton )है ... और मिश्र की संस्कृति में (tehoti) के रूप में वर्णित है.
.जर्मन पुराणों में भारतीयों के समान यम और मनु सजातीय थे ।
.भारतीय संस्कृति में मनु और यम दोनों ही विवस्वान् (सूर्य) की सन्तान थे ,इसी लिए इन्हें वैवस्वत् कहा गया ...यह बात जर्मन आर्यों में भी प्रसिद्ध थी.
.,The Germanic languages have lnformation About both ...Ymir (यम )
यमीर( यम)and (Mannus) मनुस् Cognate of Yemo and Manu"..मेन्नुस् मूलक मेन Man शब्द भी डच भाषा का है जिसका रूप जर्मन तथा ऐंग्लो - सेक्शन भाषा में मान्न Mann रूप है ।
प्रारम्भ में जर्मन आर्य मनुस् का वंशज होने के कारण स्वयं को मान्न कहते थे ।
यद्यपि आर्य्य शब्द इण्डो-यूरोपियन व सुमेरियन है
जिसका मौलिक व यौगिक अर्थ वीर अथवा यौद्धा है
अरि से सम्बद्ध ही आर्य्य हैं
यम और मनु का मिथकीय रूप विश्व की सभी महान संस्कृतियों में है ।
यह मान्यता भी यहीं से मिथकीय रूप में स्थापित हुई ..
नॉर्स माइथॉलॉजी प्रॉज-एड्डा में नारके का अधिपति 'यमीर' को बताया गया है ।
यमीर यम ही है ।
हिम शब्द संस्कृत में यहीं से विकसित है
यूरोपीय लैटिन आदि भाषाओं में हीम( Heim)
शब्द हिम के लिए यथावत है।
नॉर्स माइथॉलॉजी प्रॉज-एड्डा में यमीर (Ymir)
Ymir is a primeval being , who was born from venom that dripped from the icy - river ......
earth from his flesh and from his blood the ocean , from his bones the hills from his hair the trees from his brains the clouds from his skull the heavens from his eyebrows middle realm in which mankind lives"
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Norse mythology prose adda)
अर्थात् यमीर ही सृष्टि का प्रारम्भिक रूप है।
यह हिम नद से उत्पन्न , नदी और समुद्र का अधिपति हो गया ।
पृथ्वी इसके माँस से उत्पन्न हुई ,इसके रक्त से समुद्र और इसकी अस्थियाँ पर्वत रूप में परिवर्तित हो गयीं इसके वाल वृक्ष रूप में परिवर्तित हो गये ,मस्तिष्क से बादल और कपाल से स्वर्ग और भ्रुकुटियों से मध्य भाग जहाँ मनुष्य रहने लगा उत्पन्न हुए ...
ऐसी ही धारणाऐं कनान देश की संस्कृति में थी ।
वहाँ यम को यम रूप में ही ..नदी और समुद्र का अधिपति जो हिब्रू परम्पराओं में (या: वे )अथवा यहोवा हो गया ...
उत्तरी ध्रुव प्रदेशों में ...
जब शीत का प्रभाव अधिक हुआ तब नीचे दक्षिण की ओर ये लोग आये जहाँ आज बाल्टिक सागर है,
यहाँ भी धूमिल स्मृति उनके ज़ेहन ( ज्ञान ) में विद्यमान् थी ।
मनु का उल्लेख ऋग्वेद काल से ही मानव -सृष्टि के आदि प्रवर्तक एवम् समग्र मानव जाति के आदि- पिता के रूप में किया गया है।
वैदिक सन्दर्भों मे प्रारम्भिक चरण में मनु तथा यम का अस्तित्व अभिन्न था कालान्तरण में मनु को जीवित मनुष्यों का तथा यम को मृत मनुष्यों के लोक का आदि पुरुष माना गया .
जिससे यूरोपीय भाषा परिवार में मैन (Man) शब्द आया.
मैने प्रायःउन्हीं तथ्यों का पिष्ट- पेषण भी किया है .जो मेरे बलाघात का लक्ष्य है ।
और मुझे अभिप्रेय भी जर्मन माइथॉलॉजी में यह तथ्य प्रायः प्रतिध्वनित होता रहता है ! "
जावा द्वीप में प्रचलित राम कथा के सन्दर्भों में कहा जाय तो जाना के रामकेलि , मलय के सेरीराम तथा हिकायत महाराज रावण नामक ग्रन्थ में वर्णित है ;
कि सीता दशरथ की पुत्री थी ।
पाली भाषा में "जातकट्ठ वण्णना" के दशरथ जातक में राम कथा के अन्तर्गत सीता राम की -बहिन हैं ।
प्रो. मैक्समूलर के मत में यम-यमी कोई मानवीय सृष्टि के पुरुष न थे किन्तु दिन का नाम यम और रात्रि का नाम यमी है इन्हीं दोनों से विवाह विषयक वार्तालाप है।
इस कल्पना में दोष यह है कि जब यम और यमी दोनों दिन और रात हुए तो दोनों ही भिन्न-भिन्न कालों में होते हैं।
इससे यहाँ इनको रात्री तथा दिन रूप देना सर्वथा विरुद्ध है।
अनेक भारतीय लेखकों ने भी इन मन्त्रों के व्याख्यान को अलंकार बनाकर यम-यमी को दिन-रात सिद्ध किया है,।
और इनके मत में भी कथा सर्वथा निरर्थक ही प्रतीत होती है, क्योंकि न कभी दिन-रात को विवाह की इच्छा हुई और न कोई इनके विवाह के निषेध से अपूर्व-भाव ही उत्पन्न होता है।
आचार्य यास्क जी ने ‘यमी’ का निर्वचन लिंगभेद मात्र से ‘यम’ से माना है।
‘यमो यच्छतीत सतः’ अर्थात् यम को यम इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह प्राणियों को नियन्त्रित करता है।
(निरु.चन्द्रमणिभाष्य-10/12)
निरुक्त भाष्यकर्ता स्कन्दस्वामी जी ने यम-यमी को आदित्य और रात्रि मानकर (10/10/8) मन्त्र की व्याख्या की है।
स्वामी ब्रह्ममुनि यम-यमी को पति-पत्नी, दिन-रात्री और वायु-विद्युत् का बोधक मानते हैं।
चन्द्रमणि विद्यालप्रार जी ने अपने निरुक्त परिशिष्ट में सम्पूर्ण यम-यमी सूक्त की व्याख्या की है, जो भाई-बहन परक है, किन्तु सहोदर भाई बहन न दिखा कर सगोत्र दिखाने का प्रयास किया है।
अब हम व्याकरण कि दृष्टि से यम-यमी शब्द को जानने का यत्न करते हैं।
महर्षि पाणिनि के व्याकरण के अनुसार ‘पुंयोगादाख्याम्’(अष्टा.-4/1/48) इस सूक्त से यमी शब्द में ङीष् प्रत्यय हुआ है।
इससे ही पत्नी का भाव द्योतित होता है।
यदि यम-यमी का अर्थ भाई-बहन लिया जाता तब यम-यमा ऐसा प्रयोग होना चाहिए था, जबकि ऐसा प्रयोग नहीं है।
जैसे हम लोकव्यवहार में देखते हैं कि आचार्य की स्त्री आचार्याणी, इन्द्र की स्त्री इन्द्राणी आदि प्रसिद्ध है न कि आचार्याणी से आचार्य की बहन अथवा इन्द्राणी से इन्द्र की बहन स्वीकार की जाती है।
ऐसे ही यमी शब्द से पत्नी और यम शब्द से पति स्वीकार करना चाहिए।
अर्थात् यम की स्त्री यमी ही होगी।
सायण के यम-यमी सम्वाद भाई-बहन का सम्वाद कदापि नहीं हो सकता।
ये तो सायण ने अपनी पूर्व वर्ती संस्कृतियों से अनुप्रेरित होकर भाई-बहिन अर्थ को जन्म दे दिया है।
जब मनुष्यों में नैतिक रूप का सर्वथा अभाव था ।
तब यम और यमी के काल तक भाई -बहिन का सम्बन्ध पूर्व संस्कृतियों में पति पत्नी के रूप में भी विद्यमान था
परन्तु स्वसा शब्द भारोपीय मूल का है ।
संस्कृत भाषा में इसका व्युत्पत्ति- मूल इस प्रकार दर्शायी है ।
संस्कृत भाषा कोश कारों ने स्वसार (स्वसृ) शब्द की आनुमानिक व्युत्पत्ति- करने की चेष्टा की है ।
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(सुष्ठु अस्यते क्षिप्यते इति ।
सु + अस् + “ सुञ्यसेरृन् । “ उणा० २ । ९७ । इति ऋन् यणादेशश्च ।
भगिनी । इत्यमरःकोश । २। ६।२९ ॥
(यथा मनुः । २ । ५० ।
यूरोपीय भाषा परिवार में मे स्वसृ की
Etymology व्युत्पत्ति :----
From Middle English sister, suster, partly from Old Norse systir (“sister”) and partly from Old English swustor, sweoster, sweostor (“sister, nun”); both from Proto-Germanic *swestēr (“sister”), from Proto-Indo-European (भारत - यूरोपीय )
swésōr (“sister”).
Cognate with Scots sister, syster (“sister”),
West Frisian sus, suster (“sister”), Dutch zuster (“sister”),
German Schwester (“sister”), Norwegian Bokmål søster (“sister”), Norwegian Nynorsk and Swedish syster (“sister”), Icelandic स्वीडन के भाषा परिवार से सम्बद्ध -systir (“sister”),
Gothic आद्य जर्मनिक -(swistar, “sister”), Latin soror (“sister”), Russian сестра́ - सेष्ट्रा (sestrá, “sister”), Lithuanian sesuo -सेसॉ (“sister”), Albanian (अलबेनियन रूसी परिवार की भाषा )
vajzë वाजे भगिनी तथा हिब्रू तथा अरब़ी भाषा में व़ाजी -बहिन । (“girl, maiden”),
Sanskrit -स्वसृ (svásṛ, “sister”),
Persian
अवेस्ता ए झन्द में خواهر (xâhar, -ज़हरा “
“ मातरं वा स्वसारं वा मातुलां भगिनीं निजाम् ।
भिक्षेत भिक्षां प्रथमं या चैनं नावमानयेत् ॥ )
भगं यत्नः पित्रादीनां द्रव्यादानेऽस्त्यस्याः इनि ङीप् ।
१ सोदरायाम् स्वसरि अमरः ।
“भगिनीशुल्कं सोदर्य्याणाम्” दायभागः ।
२स्त्रीमात्रे च शब्दच० ३ भाग्यात्वितस्वीमात्रेऽपि तेन सर्वस्त्रीणां तत्पदेन सम्बोधन विहितम् ।
“परपत्नी च या स्त्री स्यादसम्बन्धाश्च योनितः ।
तां ब्रूयाद्भवतीत्येवं सुभगे भगिनीति च”
मनुः स्मृति ।
_____
अब बन्धु शब्द पर विचार करें :--
(बन्ध बन्धने +
“ शॄस्वृस्निहित्रपीति ।
“उणा० १ । ११ ।
इति उः प्रत्यय । )
स्नेहेन मनो बध्नाति यः बन्धु: तत्पर्य्यायः ।
१ सगोत्रः २ बान्धवः ३ ज्ञातिः ४ स्वः ५ स्वजनः इत्यमरःकोश । २ । ६ । ३४ ॥
दायादः ७ गोत्रः ८ ।
इति शब्दरत्नावली ॥
बन्धवश्च त्रिविधा ।
आत्मबन्धवःपितृबन्धवो मातृबन्धवश्चति ।
यथोक्तम् ।
“ आत्मपितृष्वसुः पुत्त्रा आत्ममातृष्वसुः सुताः । आत्ममातुलपुत्त्राश्च विज्ञेया ह्यात्मबान्धवाः ॥
पितुः पितृष्वसुः पुत्त्राः पितुर्मातृष्वसुः सुताः । पितुर्मातुलपुत्त्राश्च विज्ञेयाः पितृबान्धवाः ॥
मातुःपितृष्वसुः पुत्त्रा मातुर्मातृष्वसुः सुताः , मातुर्मातुलपुत्त्राश्च विज्ञेया मातृबान्धवाः ॥
तत्रचान्तरङ्गत्वात् प्रथममात्मबन्धवो धनभाजस्तदभावे पितृबन्धवस्तदभावे मातृबन्धव इति क्रमो वेदितव्यः । बन्धूनामभावे आचार्य्यः ।
इति मिताक्षरा ।
(यथा मनुः । २ । १३६ ।
“ वित्तं बन्धुर्वयः कर्म्म विद्या भवति पञ्चमी । एतानि मान्यस्थानानि गरीयो यद्यदुत्तरम् ॥
बन्धुः पितृव्यादिः । “ इति तट्टीकायां कुल्लूकभट्टः ॥ ) बन्धूकः । (यथा अशोकवधे । २९ । “
अभ्यर्च्य बन्धुपुष्पमालयेति )
मित्रम् । (यथा मेघदूते । ३४ ।
“ बन्धुप्रीत्या भवनशिखिभिर्दत्तनृत्योपहारः ॥) भ्राता ।
इति मेदिनी रघुवंश महाकाव्य में बन्धु शब्द भाई का भी वाचक है ।
॥ (यथा रघुवंशम् । १२ ।
१२ । “ अथानाथाः प्रकृतयो मातृबन्धुनिवासिनम् ।
मौलैरानाययामासुर्भरतं स्तम्भिताश्रुभिः ॥ “
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प्राचीनत्तम मिश्र में __'रेमेशिस तथा __सीतामुन के रूप में
दाम्पत्य जीवन का निर्वहन करने वाले भाई -बहिन ही राज्य शासन परम्पराओं का निर्वहन करते थे ।
बौद्ध-ग्रन्थों विशेषत: दशरथ जातक में राम और सीता को भाई-बहिन के रूप में वर्णित किया गया है ।
कलीदास ने राम को सीता का बन्धु कहा है ।
और बन्धु का अर्थ भाई के रूप में वर्णित है ।
वेदों में सीता को स्वसार अर्थात् -बहिन रूप में वर्णन विचारणीय है ।
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भद्रो भद्रया सचमान आगात् स्वसारं जारो अभ्येति पश्चात्।
सुप्रकेतैर्द्युभिरग्निर्वितिष्ठन्रुशद्भिर्वर्णैरभि राममस्थात्॥
बौद्ध-ग्रन्थों में भी राम की कथाओं का समायोजन है ।
यहाँ राम और सीता पति और पत्नी न होकर भाई -बहिन को रूप में वर्णित हैं ।
दशरथ जातक- बौद्ध रामायण कथा में
स्वयं भगवान बुद्ध द्वारा जेतवन विहार में एक जमींदार की कथा बताई गयी थी , जिसके पिता की मृत्यु हो गयी थी , वह जमींदार ने अपने पिता की मृत्यु पर इतना दुखी हुआ की सारे काम छोड़ दिए और दुःख में डूब गया , तब उस सन्दर्भ में तथागत ने उसे यह कथा बताई थी ,
वैसे इतिहासकारो का मानना है की रामायण को मौर्या काल और गुप्त काल के समय लिखा गया था ।
जो बुद्ध के बाद का है और इस में करीब 900 वर्ष का समयान्तराल है ।
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जातक कथाओं का बौद्ध धम्म में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है ,
यह ईस्वी सन् से 300 वर्ष पूर्व की घटना है।
इन कथाओं मे मनोरंजन के माध्यम से नीति और धर्म को समझाने का प्रयास किया गया है।
जातक खुद्दक निकाय का दसवाँ प्रसिद्ध ग्रन्थ है। बौद्ध जातक कथाओ में करीब 500 कथाये हैं
इन कथाओ में एक कथा है " दशरथ जातक" - जिस में रामायण के सभी पात्र है , लेकिन इस बौद्ध कथा में दशरथ आयोध्या का राजा न हो कर वाराणसी का राजा हैं , और सीता राम की पत्नी न हो कर बहन है , इस के आलावा राम का वनवास 14 साल न हो कर 12 साल का है ,
परन्तु वाल्मीकि-रामायण के समान रावण और हनुमान का कोई स्थान नहीं है
इस बौद्ध जातक में , न सीता का अपरहण है ना ही युद्ध का वर्णन ।
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वाराणसी के महाराजा दशरथ की सोलह हजार रानीयाँ थी ।
बड़ी पटरानी ने दो पुत्र और एक पुत्री को जन्म दिया । पहले पुत्र का नाम राम-पण्डित ,दूसरे का नाम लक्खन कुमार तथा पुत्री का नाम सीता देवी रखा गया ।
आगे चलकर पटरानी का देहान्त हो गया ।
अमात्यों के द्वारा दूसरी पटरानी बनाई गयी।
उसने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम भरत कुमार रखा गया ।
राजा ने पुत्र-स्नेह से रानी से कहा --"भद्रे ! हम तुझे एक वर देता हैं मांगो ! "
रानी ने वर मांग कर रख लिया और जब कुमार बड़ा हुआ तो राजा के पास पहुंचकर बोली
"देव ! तुमने मेरे पुत्र को वर दिया था ।
अब मैं मांगती हूँ मेरे पुत्र को राज्य दो ।"
राजा को अच्छा नही लगा ।
उसने उसे डराते हुए कहा --"चण्डालिनी! तेरा नाश हो ।
मेरे दोनों पुत्र राम पण्डित और लक्खन कुमार गुण सम्पन्न हैं ।
उन्हें मरवाकर अपने पुत्र को राज्य देना चाहती है।"
वह डर कर अपने शयनागार में चली गयी और बार-बार राजा से राज्य की याचना करती रही ।
राजा सोंचने लगा --" स्त्रियां मित्रद्रोही होती हैं ।
कहीं झूठी राजाज्ञा या झूठी राज-मोहर के द्वारा मेरे दोनों पुत्रों को मरवा न दे "
उसने राम पण्डित और लक्खन कुमार को चुपचाप बुलाया और कहा --"तात ! यहाँ तुम्हारे जीवन को खतरा है तुम किसी जंगल में जाकर रहो और मेरी मृत्यु के बाद अपने वंश के राज्य पर अधिकार कर लेना ।"
फिर उसने राज-ज्योतिषी से अपनी आयु की सीमा पूँछी ।
उन्होंने बारह वर्ष बताई ।
तब वह उनसे बोला --"तात! अब से बारह वर्ष बाद छत्र धारण करना ।"
यह सुनकर दोनों ने पिता को प्रणाम किया और महल से बाहर निकले ।
सीता देवी बोली-" मैं भी भाइयों के साथ जाउँगी ।"
उसने भी पिता को प्रणाम किया ।
इस प्रकार तीनों दुखी मन से नगर से बाहर निकले । राज्य की जनता भी उसी के पीछे-पीछे चल दी ।
राम पण्डित ने उन्हें समझाकर वापस लौटाया ।
इस प्रकार वे तीनों हिमालय में ऐसी जगह पहुँचे जहाँ पानी और फल सुलभ हों ।
वहाँ आश्रम बनाकर वे जीवन निर्वाह करने लगे ।लक्खन कुमार और सीता देवी ने राम पण्डित से प्रार्थना की कि तुम हमारे अग्रज हो , पिता-तुल्य हो , तुम आश्रम में रहो ।
हम दोनों भाई-बहन जंगल से फल-फूल लाकर तुम्हारा पोषण करेंगे ।
तब से राम पण्डित आश्रम में ही रहे और वे उनकी सेवा करने लगे ।
इस प्रकार नौ वर्ष बीत गए ।
उधर राजा दशरथ मर गए ।
उसके बाद रानी ने अपने पुत्र भरत कुमार से कहा -
"छत्र धारण कर राज्य संभालो ।"
लेकिन अमात्यों को यह अच्छा न लगा ।
उन्होंने बाधा डाली और कहा --
"छत्र के असली स्वामी तो जंगल में रहते है ।
भरत कुमार ने सोंचा ,मैं अपने बड़े भाई राम पण्डित को जंगल से लाकर छत्र धारण कराऊंगा ।
वह अपनी चतुरंगिनी सेना लेकर राम पण्डित के आश्रम पर पहुंचा और थोड़ी दूर पर छावनी डाल दी ।
इस समय लक्खन कुमार और सीता देवी जंगल में फल-फूल लेने गए थे ।
राम पण्डित अकेले में ध्यान भावना में सुखपूर्वक बैठे हुए थे ।
भरत कुमार ने उन्हें प्रणाम किया और पिता की मृत्यु का समाचार कह अमात्यों सहित उनके पैरों पर गिर कर रोने लगे ।
राम पण्डित न चिंतित हुआ और न रोया ।
उसकी आकृति में विकृति नही आई ।
इसी समय लक्खन कुमार और सीता देवी आश्रम में आयीं ।
पिता की मृत्यु का समाचार सुन वे दोनों बेहोश हो गए ।होश आने पर विलाप करते रहे ।
भरत कुमार ने सोंचा--"मेरा भाई लक्खन कुमार और सीता देवी पिता के मरने की खबर सुनकर शोक सहन न कर सके ,किन्तु राम पण्डित न सोंच करता है ,न रोता है । उसके पास शोक-रहित रहने का क्या कारण है ? मैं उससे पूछूँगा ।
केन रामप्पभावेन ,सोचितब्बम् न सोचसि।
पितरं कालकतं सुत्वा,न तं पसहते दुखं।।
अर्थ : हे राम ! तू किस प्रभाव के कारण सोचनीय के लिये चिन्ता नही करता ?
पिता के मर जाने का समाचार सुन कर तुझे दुःख नही होता ।
दहरा च हि बुद्धा च, ये बाला ये च पण्डिता।
अद्दा चेव दलिद्दा च, सब्बे मच्चुपरायणा।।
अर्थ: तरुण,बुद्ध,मुर्ख,पण्डित,धनी तथा दरिद्र --सभी मरणशील है ।
इस प्रकार संसार में सभी नाशवान है,।
अनित्य है ।
जैसे आदमी बहुत विलाप करके भी जीवित नही रह सकता ,उसके लिये कोई बुद्धिमान मेधावी अपने आप को कष्ट क्यों दे ।
इसलिए रोने-पीटने से मृत आदमी का पोषण नही होता ,रोना-पीटना निर्रथक है ।
जो धीर है ,बहुश्रुत है, इस लोक और परलोक को देखता है ,उसके हृदय और मन को बड़े भारी शोक भी कष्ट नही देते हैं ।
राम पण्डित के इस धर्मोपदेश को सुनकर सभी शोक रहित हो गए ।
तब भरत कुमार ने राम पण्डित को प्रणाम करके प्रार्थना की --"वाराणसी चलकर अपना राज्य संभालें ।"
"तात! लक्खन कुमार और सीता देवी को ले जा कर राज्य का अनुशासन करो ।"
"और देव ! तुम ?"
" तात !मुझे पिता ने कहा था कि बारह वर्ष के बाद आकर राज्य करना ।
मैं अभी गया तो उनकी आज्ञा का पालन न होगा ।अभी तीन वर्ष शेष है ।
बीतने पर आऊंगा ।"
"इतनी देर तक कौन राज्य "तुम करो "
"हम नही चलाएंगे "
"तो जब तक मैं नही आता ये पादुका राज्य संभालेगी।"
तीनो जने राम पण्डित की पादुका ले , प्रणाम कर वाराणसी लौट आये ।
तीन वर्ष पादुकाओं ने राज्य किया ।
राम पण्डित तीन वर्ष बाद जंगल से निकलकर वाराणसी नगर पहुंचा ,राजोद्यान में प्रवेश किया ।
अमात्यों ने राम पण्डित को राजमहल में ला राज्याभिषेक किया ।
दस वस्सहस्सानि,सट्ठि वस्सतानि च।
कम्बुगीवो महाबाहु ,रामो रज्जमकारयीति ।।
अर्थ: स्वर्ण-ग्रीवा महान बाहु राम ने दस हजार और छः हजार (अर्थात सोलह हजार )वर्ष तक राज्य किया ।
राम का जन्म अयोध्या में हुआ था ; परन्तु अयोध्या भारत में कहीं नहीं है ।
आज जिसे अयोध्या माना जाता है ।
वह फैजाबाद पहले साकेत रहा है ।
अयोध्या अथवा अवध थाई लेण्ड का प्राचीन राजधानी है
जिसका भौगोलिक विवरण निम्न है ।
__________________________________________
राजधानी :अयोथया
क्षेत्रफल :२,५५७ किमी²
वर्तमान जनसंख्या(२०१४):
• घनत्व :८,०३,५९९
३१४/किमी²
उपविभागों के नाम:अम्फोए (ज़िले)
उपविभागों की संख्या:१६
मुख्य भाषा(एँ):थाई
फ्र नखोन सी अयुथया थाईलैण्ड का एक प्रान्त है।
यह मध्य थाईलैण्ड क्षेत्र में स्थित है।
नामोत्पत्ति---
" अयुथया " शब्द रामायण की अयोध्या नगरी का थाई रूप है ; और "सी" शब्द श्री का रूप है।
इसी प्रकार "नखोन" संस्कृत के "नगर " अपभ्रंश नगुल ( नगला ) का रूप है।
"फ्र" शब्द थाई में संस्कृत के "देव " (प्रिय )
शब्द का रूप है।
अर्थात "फ्र नखोन सी अयुथया" का अर्थ " देव नगरी श्री अयोध्या " है।
थाईलैण्ड के प्रान्त
मध्य थाईलैण्ड ("फ्र नखोन सी अयुथया")
राम कथा के सन्दर्भों में दूसरा पहलू राष्ट्रकवि का विरुद (यश) पाये दिनकरजी का यह गद्यांश हमने उनकी प्रसिद्ध पुस्तक
'संस्कृति के चार अध्याय` से लिया है।
दिनकरजी न केवल कवि थे, बल्कि एक गंभीर संस्कृति-चिंतक भी थे।
राम कथा पर उनका यह लेख कई जरूरी पहलुओं को सामने लाता है।
रामधारीसिंह दिनकर की राम-कथा का मूल स्रोत क्या है ? तथा यह कथा कितनी पुरानी है,
इस प्रश्न का सम्यक् समाधान अभी नहीं हो पाया है। इतना सत्य है कि बुद्ध और महावीर के समय जनता में राम के प्रति अत्यन्त आदर का भाव था,
जिसका प्रमाण यह है कि जातकों के अनुसार, बुद्ध अपने पूर्व जन्म में एक बार राम होकर भी जनमे थे और जैन-ग्रन्थों में तिरसठ महापुरुषों में राम और लक्ष्मण की भी गिनती की जाती थी।
इससे यह अनुमान भी निकलता है कि राम, बुद्ध और महावीर, दोनों के बहुत पहले से ही समाज में आदृत रहे होंगे।
विचित्रता की बात यह है कि वेद में राम-कथा के अनेक पात्रों का उल्लेख है।
और स्वयं सीता और राम का भी वर्णन दशम् मण्डल में वर्णित है ।
इक्ष्वाकु, दशरथ, राम, अश्वपति, कैकेयी, जनक और सीता, इनके नाम वेद और वैदिक साहित्य में अनेक बार आये हैं, किन्तु, विद्वानों ने अब तक यह स्वीकार नहीं किया है ;
कि ये नाम, सचमुच, राम-कथा के पात्रों के ही नाम हैं। विशेषत: वैदिक सीता के सम्बन्ध में यह समझा जाता है कि यह शब्द लांगल-पद्धति (खेत में हल से बनायी हुई रेखा) का पर्याय है,
इसीलिए, उसे इन्द्र-पत्नी और पर्जन्य-पत्नी भी कहते हैं।
संस्कृत भाषा में सि धातु से सीता शब्द व्युत्पन्न है ।
सि + त पृषो० दीर्घः ।
१ लाङ्गलपद्धतौ अमरःकोश
२ जनकराजदुहितरि
३ भद्राश्ववर्षस्थितगङ्गायाञ्च ।
“अथ मे कर्षतः क्षेत्रं लाङ्गलादुत्थिता ततः ।
क्षेत्रं शोधयता लब्धा नाम्ना सीतति विश्रुता ।
भूतलादुत्थिता सा तु व्यवर्द्धत ममात्मजा”
रामायण बाल-काण्ड “ अथ लोकेश्वरो लक्ष्मीर्जनकस्य पुरे खतः ।
शुभक्षेत्रे हलोत्खाते तारे चोत्तरफाल्गुने ।
अयोनिजा पद्मकरा वालार्कशतसन्निभा ।
सीतामुखे समुत्पन्ना बालभावेन सुन्दरी ।
सीतामुखोद्भवात् सीता इत्यख्या नाम चाकरोत्”
पद्मपुराण ।
भद्राश्ववर्षनदीभेदश्च स्वर्गगङ्गाया धारा मेदः जम्बुद्वीपशब्दे ३०४६ पृ० दृश्यः ।
४ सक्ष्म्याम्५ उमायां ६ सस्याधिदेवतायां नानार्थमञ्जरी ७ गदिरायां राजनि० ।
सीता खेत की सिरोर (हल-रेखा) का नाम था, इसका समर्थन महाभारत से भी होता है,
जहां द्रोणपर्व जयद्रथ-वध के अन्तर्गत ध्वजवर्णन नामक अध्याय में (७.१०४) कृषि की अधिष्ठात्री देवी, सब चीजों को उत्पन्न करने वाली सीता का उल्लेख हुआ है।
हरिवंश के भी द्वितीय भाग में दुर्गा की एक लम्बी स्तुति में कहा गया है कि 'तू कृषकों के लिए सीता है!
तथा प्राणियों के लिए धरणी`
(कर्षुकानां च सीतेति भूतानां धरणीति च)।
इससे पण्डितों ने यह अनुमान लगाया है कि राम-कथा की उत्पत्ति के पूर्व ही, सीता कृषि की अधिष्ठात्री देवी के रूप में वैदिक साहित्य में पूजित हो चुकी थीं।
पीछे वाल्मीकि-रामायण में जब अयोनिजा, सीता की कल्पना की जाने लगी, तब उस पर वैदिक सीता का प्रभाव, स्वाभाविक रूप से, पड़ गया।
राम-कथा का उद्गम खोजते-खोजते पण्डितों ने एक अनुमान लगाया है कि वेद में जो सीता कृषि की अधिष्ठात्री देवी थीं,
वे ही, बाद में, आयोनिजा कन्या बन गयीं,
जिन्हें जनक ने हल चलाते हुए खेत में पाया।
राम के सम्बन्ध में इन पण्डितों का यह मत है ।
कि वेद में जो इन्द्र नाम से पूजित था, वही व्यक्तित्व, कालक्रम में, विकसित होकर राम बन गया।
इन्द्र की सबसे बड़ी वीरता यह थी कि उसने वृत्रासुर को पराजित किया था।
राम-कथा में यही वृत्रासुर रावण बन गया है।
ऋग्वेद (मंडल १, सूक्त ६) में जो कथा आयी है कि ब्रुंं ने गायों को छिपा कर गुफा में बन्द कर दिया था ।
और इन्द्र ने उन गायों को छुड़ाया, उससे पंडितों ने यह अनुमान लगाया है कि यही कथा विकसित होकर राम-कथा में सीता-हरण का प्रकरण बन गयी।
किन्तु, ये सारे अनुमान, अन्तत:, अनुमान ही हैं और उनसे न तो किसी आधार की पुष्टि होती है, न किसी समस्या का समाधान ही।
राम-कथा के जिन पात्रों के नाम वेद में मिलते हैं, वे निश्चित रूप से, राम-कथा के पात्र हैं या नहीं इस विषय में सन्देह रखते हुए भी यह मानने में कोई बडी बाधा नहीं दीखती कि राम-कथा ऐतिहासिक घटना पर आधारित है।
अयोध्या, चित्रकूट, पञ्चवटी, रामेश्वरम्, अनन्त काल से राम-कथा से सम्पृक्त माने जाते रहे हैं।
क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं है कि दाशरथि राम, सचमुच, जनमे थे और उनके चरित्र पर ही वाल्मीकि ने अपनी रामायण बनायी ?
इस सम्भावना का खण्डन यह कहने से भी नहीं होता कि वाल्मीकि ने आदि रामायण में केवल अयोध्या-काण्ड से युद्ध-काण्ड तक की ही कथा लिखी थी; बाल-काण्ड और उत्तर-काण्ड बाद में अन्य कवियों ने मिलाये।
अनेक बार पंडितों ने यह सिद्ध करना चाहा कि रामायण बुद्ध के बाद रची गयी और वह महाभारत से भी बाद की है।
किन्तु, इससे समस्याओं का समाधान नहीं होता। भारतीय परम्परा, एक स्वर से, वाल्मीकि को आदि कवि मानती आयी है और यहां के लोगों का विश्वास है कि रामवतार त्रेता युग में हुआ था।
इस मान्यता की पुष्टि इस बात से होती है कि महाभारत में रामायण की कथा आती है, किन्तु, रामायण में महाभारत के किसी भी पात्र का उल्लेख नहीं है।
इसी प्रकार, बौद्ध ग्रन्थ तो राम-कथा का उल्लेख करते हैं, किन्तु, रामायण में बुद्ध का उल्लेख नहीं है।
वाल्मीकि-रामायण के एक संस्करण अयोध्या काण्ड के सर्ग 108 के 34 वें छन्द में जावालि-वृत्तान्त के अन्तर्गत बुद्ध का जो उल्लेख मिलता है ।
(यथा हि चौर: स तथा हि बुद्ध: तथागत नास्तिकं अत्र विद्धि)
उसे अनेक पण्डितों ने क्षेपक माना है।
यह भी कहा जाता है कि सीता का हिंसा के विरुद्ध भाषण तथा राम के शान्त और कोमल स्वभाव की कल्पना के पीछे 'किंचित् बौद्ध प्रभाव` है।
किन्तु, यह केवल अनुमान की बात है।
अहिंसा की कल्पना बुद्ध से बहुत पहले की चीज है।
उसका मूल भारत को प्राग्वैदिक संस्कृति में रहा होगा। बुद्ध ने सिर्फ उस पर जोर दिया है।
बुद्ध के पहले की संस्कृति में ऐसी कोई बात नहीं थी जो रामायण के वातावरण के विरुद्ध हो।
रामायण प्राग्-बौद्ध काव्य है, इस निष्कर्ष से भागा नहीं जा सकता।
राम-कथा की व्यापकता रामायण और महाभारत भारतीय जाति के दो महाकाव्य हैं।
महाकाव्यों की रचना तब सम्भव होती है, जब संस्कृतियों की विशाल धाराएं किसी संगम पर मिल रही हों।
भारत में संस्कृति-समन्वय की जो प्रक्रिया चल रही थी, ये दोनों काव्य उसकी अभिव्यक्ति करते हैंं।
रामायण में इस प्रक्रिया के पहले सोपान हैं और महाभारत में उसके बाद-वाले।
रामायण की रचना तीन कथाओं को लेकर पूर्ण हुई। पहली कथा तो अयोध्या के राजमहल की है, जो पूर्वी भारत में प्रचलित रही होगी; दूसरी रावण की जो दक्षिण में प्रचलित रही होगी; और तीसरी किष्किन्धा वानरों की, जो वन्य जातियों में प्रचलित रही होगी।
आदि कवि ने तीनों को जोड़कर रामायण की रचना की किन्तु, उससे भी अधिक सम्भव यह है कि राम, सचमुच ही, ऐतिहासिक पुरुष थे और, सचमुच ही, उन्होंने किसी वानर-जाति की सहायता से लंका पर विजय पायी थी।
हाल से यह अनुमान भी चलने लगा है कि
हनुमान नाम एक द्रविड़ शब्द 'आणमन्दि` से निकला है, जिसका अर्थ 'नर-कपि` होता है।
यहां फिर यह बात उल्लेखनीय हो जाती है ; कि ऋग्वेद में भी 'वृषाकपि` का नाम आया हैं वानरों और राक्षसों के विषय में भी अब यह अनुमान, प्राय: ग्राह्य हो चला है कि ये लोग प्राचीन विन्ध्य-प्रदेश और दक्षिण भारत की आदिवासी आर्येतर जातियों के सदस्य थे;
या तो उनके मुख वानरों के समान थे, जिससे उनका नाम वानर पड़ गया अथवा उनकी ध्वजाओं पर वानरों और भालुओं के निशान रहे होंगे।
अथवा ये वनों में रहने वाले नर (व्यक्ति) थे ।
वाननर समाक्षर लोप Haplology की क्रिया से वानर रूप का उदय ।
रामायण में जो तीन कथाएं हैं, उनके नायक क्रमश: राम, रावण और हनुमान हैं , और ये तीन चरित्र तीन संस्कृतियों के प्रतीक हैं,
जिनका समन्वय और तिरोधान वाल्मीकि-रामायणकार ने एक ही काव्य में दिखाया है।
यद्यपि वर्तमान वाल्मीकि-रामायण वाल्मीकि द्वारा रचित नहीं है केवल इस पर मौहर वाल्मीकि नाम की है
सम्भव है, यह बात सच हो कि 'राम, रावण और हनुमान के विषय में पहले स्वतंत्र आख्यान-काव्य प्रचलित थे ।
और इसके संयोग से रामायण काव्य की उत्पत्ति हुई हो। जिस प्रकार, आर्य देव संस्कृति से सम्बद्ध और आर्येतर अर्थात् द्रविड संस्कृति से सम्बद्ध जातियों के धार्मिक-संस्कारों से शैव धर्म की उत्पत्ति हुई हो ।
उसी प्रकार, वैष्णव धर्म की रामााश्रयी शाखा में भी आर्येतर जातियों के योगदान हैं।
रामावतार कृष्णाश्रयी वैष्णव धर्म की विशेषता यह थी कि उसमें कृष्ण विष्णु पहले माने गये एवं उनके सम्बन्ध की कथाओं का विस्तृत विकास बाद में हुआ ।
राम-मत के विषय में यह बात है कि राम-कथा का विकास और प्रसार पहले हुआ, राम विष्णु का अवतार बाद में माने गये ।
"भण्डारकर" ने तो यहां तक घोषणा कर दी थी कि विष्णु के अवतार के रूप में राम का ग्रहण ग्यारहवीं सदी में आकर हुआ।
किन्तु, अब यह मत खण्डित हो गया है।
अब अधिक विद्वान यह मानते हैं कि ईसा से तीन सौ वर्ष पूर्व वासुदेव कृष्ण विष्णु के अवतार माने जाने लगे थे और उनके अवतार होने की बात चलने के बाद, बाकी अवतार भी विष्णु के ही अवतार माने जाने लगे;
तथा उन्हीं दिनों राम का अवतार होना भी प्रचलित हो गया।
वैसे अवतारवाद की भावना ब्राह्मण-ग्रन्थों में ही उदित हुई थी।
शतपथ-ब्राह्मण में लिखा है कि प्रजापति ने (विष्णु ने नहीं) मत्स्य, कूर्म और वराह का अवतार लिया था।
तैत्तिरीय-ब्राह्मण में भी प्रजापति के वराह रूप धरने की कथा है।
इसके श्रोत मूलत सुमेरियन मिथकों से है
बाद में, जब विष्णु की श्रेष्ठता सिद्ध हो गयी, तब मत्स्य, कूर्म और वराह, ये सभी अवतार उन्हीं के माने जाने लगे। केवल वामनावतार के सम्बन्ध में यह कहा जाता है कि वामन, आरम्भ से ही, विष्णु के अवतार माने जाते रहे हैं। वामन के त्रिविक्रम रूप का उल्लेख ऋग्वेद के प्रथम मण्डल द्वितीय अध्याय के बारहवें सूक्त में है।
राम-कथा के विकास पर "रेवरेण्ड फादर कामिल बुल्के ने जो विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थ प्रकाशित किया है, उसके अनुसार वेद में रामकथा-विषयक पात्रों के सारे उल्लेख स्फुट और स्वतंत्र हैं"
रामकथा-सम्बन्धी आख्यान-काव्यों की वास्तविक रचना वैदिक काल के बाद, इक्ष्वाकु-वंश के राजाओं के सूतों ने आरंभ की।
इन्हीं आख्यान-काव्यों के आधार पर वाल्मीकि
इन्हीं आख्यान-काव्यों के आधार पर वाल्मीकि ने आदि-रामायण की रचना की।
इस रामायण में अयोध्या-काण्ड से लेकर युद्ध-काण्ड तक की ही कथावस्तु का वर्णन था और उसमें सिर्फ बारह हजार श्लोक थे।
किन्तु, इस रामायण का समाज में बहुत प्रचार था। कुशी-लव उसका गान करके और उसके अभिनेता उसका अभिनय दिखाकर अपनी जीविका कमाते थे। काव्योपजीवी कुशी-लव अपने श्रोताओं की रुचि का ध्यान रखकर रामायण के लोकप्रिय अंश को बढ़ाते भी थे।
इस प्रकार, आदि-रामायण का कलेवर बढ़ने लगा।
ज्यों-ज्यों राम-कथा का यह मूल-रूप लोकप्रिय होता गया, त्यों-त्यों, जनता को यह जिज्ञासा होने लगी कि राम कैसे जनमे? सीता कैसे जन्मीं?
रावण कौन था? आदि-आदि।
इसी जिज्ञासा की शांति के लिए बाल-काण्ड और उत्तर-काण्ड रचे गये।
इस प्रकार, राम की कथा रामायण (राम-अयन अर्थात राम का पर्यटन) न रहकर, पूर्ण रामचरित के रूप में विकसित हुई।
इस समय तक रामायण नरकाव्य ही था और राम आदर्श क्षत्रिय के रूप में ही भारतीय जनता के सामने प्रस्तुत किये गये थे।
इसका आभास भगवद्गीता के उस स्थल से मिलता है, जहां कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि शस्त्र धारण करने वालों में मैं राम हूं-'राम: शंभृतामहम्।`
रामचरित, ज्यों-ज्यों लोकप्रिय होता गया, त्यों-त्यों, उसमें अलौकिकता भी आती गयी।
अन्तत: ईसा के सौ वर्ष पूर्व तक आकर राम, निश्चित रूप से, विष्णु के अवतार हो गये।
किन्तु, यह कोई निश्चयात्मक बात नहीं है। क्योंकि राम की, बोधिसत्व के रूप में, कल्पना ई.पू. प्रथम शती के पूर्व ही की जा चुकी थी।
इसलिए, सम्भव है, अवतार भी वे पहले से ही माने जाते रहे हों।
किन्तु, बाद के साहित्य में तो राम की महिमा अत्यन्त प्रखर हो उठी तथा पूरे-भारवर्ष की संस्कृति, दिनों-दिन, राममयी होती चली गयी।
बौद्ध और जैन साहित्य को छोड़कर और सभी भारतीय साहित्य में राम विष्णु के अवतार के रूप में सामने आते हैं।
हां, बुद्ध धर्म के साथ राम-कथा का जो रूप भारत से बाहर पहुंचा, उसमें वे विष्णु के अवतार नहीं रहे, न उनके प्रति भक्ति का ही कोई भाव रह गया।
राम को लेकर समन्वय भारत में संस्कृतियों का जो विराट समन्वय हुआ है, राम-कथा उसका अत्यन्त उज्जवल प्रतीक है।
सबसे पहले तो यह बात है कि इस कथा से भारत की भौगोलिक एकता ध्वनित होती है।
एक ही कथासूत्र में अयोध्या, किष्किन्धा और लंका, तीनों के बंध जाने के कारण, सारा देश एक दीखता है।
दूसरे, इस कथा पर भारत की सभी प्रमुख भाषाओं में रामायणों की रचना हुई, जिनमें से प्रत्येक, अपने-अपने क्षेत्र में, अत्यन्त लोकप्रिय रही है तथा जिनके प्रचार के कारण भारतीय संस्कृति की एकरूपता में बहुत वृद्धि हुई है।
संस्कृत के धार्मिक साहित्य में राम-कथा का रूप, अपेक्षाकृत, कम व्यापक रहा; फिर भी, रघुवंश, भटि्टकाव्य, महावीर-चरित, उत्तर-रामचरित, प्रतिमा-नाटक, जानकी-हरण, कुन्दमाला, अनर्घराघव, बालरामायण, हनुमान्नाटक, अध्यात्म-रामायण, अद्भूत-रामायण, आनन्द-रामायण आदि अनेक काव्य इस बात के प्रमाण हैं ।
कि भारतवर्ष के विभिन्न क्षेत्रों के कवियों पर वाल्मीकि-रामायण का कितना गम्भीर प्रभाव पड़ा था।
जब आधुनिक देश-भाषाओं का काल आया, तब देशी-भाषाओं में भी रामचरित पर एक-से-एक उत्तम काव्य लिखे गये और आदि कवि के काव्य-सरोवर का जल पीकर भारत की सभी भाषाओं ने अपने को पुष्ट किया।
राम-कथा की एक दूसरी विशेषता यह है कि इसके माध्यम से शैव और वैष्णव मतों का विभेद दूर किया गया।
आदि-रामायण पर शैव मत का कोई प्रभाव नहीं रहा हो, यह सम्भव है, किन्तु, आगे चलकर राम-कथा शिव की भक्ति से एकाकार होती गयी।
जातक कथाएं वैदिक हिन्दुओं के पुराणों को बौद्धों और जैनों ने अपनाया और उनके माध्यम से वे अपने अहिंसावाद का प्रतिपादन करने लगे।
इस क्रम में हम देखते हैं कि विमलसूरिकृत पउमचरिय (पदम-चरि, तीसरी-चौथी शती ई.) में बालि वैरागी बनकर सुग्रीव को अपना राज्य दे देता है और स्वयं जैन-दीक्षा लेकर तपस्या करने चला जाता है।
अनामकं जातकं (इसका भारतीय पाठ अप्राप्य है। तीसरी शताब्दी में कांड्ग-सड्ग-हुई के द्वारा जो चीनी अनुवाद हुआ था वह उपलब्ध है।) में राम पिता की आज्ञा से वन नहीं जाते, प्रत्युत, अपने मामा के द्वारा आक्रमण की तैयारियों की वार्ता सुनकर स्वयं राज्य छोड़ कर वन में चले जाते हैं, जिससे रक्तपात न हो।
इस जातक के अनुसार, राम ने बालि का भी वध नहीं किया।
प्रत्यतु, राम के शर-सन्धान करते ही बालि, बिना वाण खाये हुए भी, भाग खड़ा हुआ।
राम-चरित का हिन्दू-हृदयों पर जो प्रभाव था, उसका भी शोषण बौद्ध और जैन पण्डितों ने अपने धर्म की महत्ता स्थापित करने को किया।
दशरथ-जातक (पांचवीं शताब्दी ई. की एक सिंहली पुस्तक का पाली अनुवाद है),( अनामकं जातकं )तथा चीनी त्रिपिटक के अंतर्गत त्सा-पौ-त्सग-किड्ग (भारतीय मूल अप्राप्य; चीनी अनुवाद का समय ४७२ ई.) में आए हुए दशरथ-कथानम् एवं खोतानी-रामायण और स्याम के राम-जातक के अनुसार, बुद्ध अपने पूर्व जन्म में राम थे, ऐसा कहा गया है।
संभव है, जब बौद्ध पंडित बुद्ध को राम (या विष्णु के) अवतार के रूप में दिखाने लगे, तब हिंदुओं ने बढ़कर उन्हें दशावतार में गिन लिया हो।
एक विचित्रता यह भी कि रावण पर जैन और बौद्ध पुराणों की श्रद्धा दीखती है।
गुणभद्र के उत्तर-पुराण में राम-कथा का जो वर्णन मिलता है, उसमें कहा गया है कि लंका-विजय करने के बाद लक्ष्मण एक असाध्य रोग से मरे और मरने के बाद उन्हें नरक प्राप्त हुआ, क्योंकि उन्होंने रावण का वध किया था।
इस कथा में रावण के जेता राम नहीं, लक्ष्मण दिखलाये गये हैं।
इस कथा की एक विचित्रता यह भी है कि इसके अनुसार, सीता मन्दोदरी के पेट से जन्मी थीं।
किन्तु, ज्योतिषियों के यह कहने पर कि यह बालिका आपका नाश करेगी, रावण ने उसे सोने की मंजूषा में बंद करके दूर देश मिथिलाा में कहीं गड़वा दिया था।
जैन-पुराणों में महापुरुषों की संख्या तिरसठ बतायी गयी है। इनमें से २४तो तीर्थंकर हैं, ८ बलदेव, ८ वासुदेव और ८ प्रतिवासुदेव।
राम आठवें बलदेव, लक्ष्मण आठवें वासुदवे और रावण आठवें प्रति वासुदेव हैंं नव वासुदेवों में एक वासुदेव कृष्ण भी गिने जाते हैं।
बौद्ध ग्रंथ लंकावतार-सूत्र में रावण तथा बुद्ध का, धर्म के विषय में संवाद उद्धृत है।
इससे भी रावण के प्रति बौद्ध मुनियों का आदर अभिव्यक्त होता है। रावण जैनों के अनुसार जैन और बौद्धों के अनुसार बौद्ध माना गया है।
रामकथा के विषय में जैन और बौद्ध पुराणों में कितनी ही अद्भुत बातों का समावेश मिलता है।
उदाहरण के लिए, दशरथ-जातक में सीता राम की बहन बतायी गयी हैं और यह भी उल्लेख आया है कि लंका से लौटने पर राम ने सीता से विवाह किया।
पउमचरिय में दशरथ की तीन नहीं, चार रानियां थीं, ऐसा उल्लेख मिलता है, जिनके नाम १. कौशल्या अथवा अपराजित, २. सुमित्रा, ३.कैकेयी और ४. सुप्रभा थे।
इसमें राम का एक नाम पद्म भी मिलता है।
पउमचरिय में यह भी कथा है कि हनुमान जब सीता की खोज करते हुए लंका गये, तब उन्होंने वहां वज्रमुख की कन्या लंकासुन्दरी से विवाह किया।
गुणभद्र की राम-कथा (उत्तर-पुराण) में राम की माता का नाम सुबाला मिलता है।
दशरथ-जातक और उत्तर-पुराण में यह भी लिखा है कि दशरथ वाराणसी के राजा थे, किन्तु, उत्तर-पुराण में इतना और उल्लेख है कि उन्होंने साकेतपुरी में अपनी राजधानी बसायी थी।
इन विचित्रताओं को देखकर यह नहीं समझना चाहिए कि ये कथाएं वाल्मीकि-रामायण से पूर्व की हैं और वाल्मीकि ने इनका परिष्कार करके अपनी राम-कथा निकाली।
वाल्मीकि-रामायण इन सब से प्राचीन है।
और इसका श्रोत मूलत सुमेरियन मिथकों से मिलता है।
'परन्तु बौद्ध काल के बाद वाल्मीकि-रामायण के
अयोध्या काण्ड में बुद्ध का समावेश होगया है ।
फिर भी, रामायण से इनकी जो भिन्नता दीखती है, उसका कारण यह हे कि बौद्ध और जैन मुनि अपने सम्प्रदाय का पुराण रचने के समय, केवल रामायण पर ही अवलम्बित नहीं रहते थे, प्रत्युत, वे उस विशाल कथा-साहित्य से भी सामग्री ग्रहण करते थे जो जनता में, मौखिक रूप से, फैला हुआ था।
विशेषत:, जब जनश्रुतियों से अथवा उन्हें मोड़-माड़कर अहिंसा का प्रतिपादन करने में सुविधा दीखती, तब उस सुविधा का लोभ ये लोग संवरण नहीं कर सकते थे।
केवल अहिंसा ही नहीं, बौद्ध एवं जैन शैलियों और परम्पराओं की दृष्टि से भी जो बातें अनुकूल दीखती होंगी, उन्हें ये मुनि अवश्य अपनाते होंगे।
दशरथ-जातक की अप्रामाणिकता तो इससे भी प्रमाणित होती है कि दशरथ-जातक का जो रूप जातककट्टवराणना में प्रस्तुत है, वह शताब्दियों तक अस्थिर रहने के बाद पांचवीं शताब्दी ईसवी में लिपिबद्ध किया गया।
अत:, इसमें परिवर्तन की संभावना रही है, विशेष करके दूर सिंहलद्वीप में, जहां रामायण की कथा उस समय कम प्रचलित थी।
इसके अज्ञात लेखक का भी कहना है कि 'मैंने अनुराधापुर की परंपरा के आधार पर यह रचना की है`। यह समझना भूल है कि बौद्ध और जैन पण्डितों ने वैदिक धर्म का तिरस्कार करने के लिए राम-कथा अथवा दूसरी कथाओं में फेर-फार कर दिया, क्योंकि ऐसे फेर-फार वैदिक धर्मावलंबी कवियों ने भी किये हैं।
उदाहरण के लिए, रघुवंश में कालिदास ने यह कहीं भी नहीं लिखा है कि सीता विष्णु की शक्ति की अवतार हैं। दशावतार-चरित्रम् में क्षेमेन्द्र ने रावण को तपस्वी के रूप में रखा है तथा यह बताया है कि रावण सीता को पुत्री-रूप में प्राप्त करना चाहता था।
दशरथ-जातक में सीता राम की बहन बतायी गयी हैं और फिर राम और सीता के विवाह का भी उल्लेख किया गया है। ऐसा सम्बन्ध कुछ बौद्ध पण्डितों की दृष्टि में दूषित नहीं था।
बुद्धघोष-कृत सुत्त-निपात-टीका में शाक्यों की उत्पत्ति बताते हुए कहा गया है कि वाराणसी की महारानी के चार पुत्र और पांच पुत्रियां थीं। इन नव सन्तानों को रानी ने वनवास दिया।
उन्हीं की सन्तानों ने 'कपिलवत्थु` नामक नगर बसाया और चूंकि राजसन्तान के योग्य वन मेंं कोई नहीं था, इसलिए चारों राजुकमार अपनी बहनों से ब्याह करने को बाध्य हुए।
ज्येष्ठा कन्या 'पिया` अविवाहित रहकर सबों की माता मानी जाने लगी।
यही शाक्यों की उत्पत्ति की कथा है।
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खोतान में प्रचलित एक राम-कथा में कहा गया है कि वन में राम और लक्ष्मण, दोनों ने सीता से विवाह किया। वैदिक, बौद्ध एंव जैन पुराणों में जो कथाएं मिलती हैं, उनमें से कितनी ही तो एक ही कथा के विभिन्न विकास हैं।
सभी जातियों की संस्कृतियों का समन्वय ज्यों-ज्यों बढ़ता गया, त्यों-त्यों विभिन्न कथाएं भी, एक दूसरी से मिलकर, नया रूप लेने लगीं, और जो कथाएं पहले एक रूप में थीं, उनमें भी वैविध्य आ गया।
विशेषत:, रामकथा पर तो केवल भारत ही नहीं, सिंहल, स्याम, तिब्बत, हिन्देशिया, बाली, जावा, सुमात्रा तथा
सुमेरियन संस्कृति में है।
आदि आदि द्वीपों में बसने वाली जनता की रुचि का भी प्रभाव दृष्टिगोचार होता है।
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आदिवासी कथा के अनुसार गिलहरी को पीठ पर जो रेखाएं हैं, वे रामचन्द्र के द्वारा खींची गयी थीं, क्योंकि गिलहरी ने उन्हें मार्ग बताया था।
तेलुगु रामायण (द्विपाद रामायण) के अनुसार, लक्ष्मण जब राम के साथ वन जाने लगे, तब उन्होंने निद्रा-देवी से दो वरदान प्राप्त किये-एक तो पत्नी उर्मिला के लिए चौदह वर्ष की नींद तथा दूसरा अपने लिए वनवास के अंत तक जागरण।
सिंहली रामकथा में 'बालि हनुमान का स्थान लेता है, वह लंका दहन करके सीता को राम के पास ले जाता है।`
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कश्मीरी रामायण के अनुसार, सीता का जन्म मन्दोदरी के गर्भ से हुआ था।
बंगाल के कृत्तिवासी रामायण के बहुत-से स्थलों पर शाक्त-सम्प्रदाय की छाप पायी जाती है।
खोतानी रामायण (पूर्वी तुर्किस्तान में प्रचलित) में राम जब युद्ध में मूच्र्छित होते हैं, तब उनकी चिकित्सा के लिए सुषेण नहीं, प्रत्युत, बौद्ध वैद्य जीवक बुलाये जाते हैं तथा 'आहत रावण का वध नहीं किया जाता है।` स्यामदेश में प्रचलित 'राम कियेन` रामायण में हनुमान 🐒 🐵...की बहुत-सी प्रेम-लीलाओं का वर्णन किया गया है।
प्रभा, बेड. काया, नागकन्या, सुवर्णमच्छा और अप्सरा वानरी के अतिरिक्त, वे मन्दोदरी के साथ भी क्रीड़ा करते हैं।
स्याम में ही प्रचलित राम-जातक में 'राम तथा रावण चचेरे भाई माने गये हैं।
पुराणों की महाकथाओं में ये जो विविधताएं मिलती हैं, उनकी ऐतिहासिकता चाहे जो हो किन्तु यह सत्य है कि वे अनेक जातियों और जनपदों की रुचियों के कारण बढ़ी हैं, और यह भी हुआ है।
कि जिस लेखक को अपने सम्प्रदाय के समर्थन में जो कथा अनुकूल दीखी, उसने उसी कथा को प्रमुखता दे डाली अथवा कुछ फेर-फार करके उसे अपने मत के अनुकूल बना लिया।
मिश्र की पुरातन कथाओं में यम को हेम कहा गया
और भाई-बहिन के पति पत्नी के रूप में कथाओं का सृजन हुआ ।
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ओ चित सखायं सख्या वव्र्त्यां तिरः पुरू चिदर्णवंजगन्वन |
पितुर्नपातमा दधीत वेधा अधि कषमिप्रतरं दिध्यानः ||
2. न ते सखा सख्यं वष्ट्येतत सलक्ष्मा यद विषुरूपाभवाति |
महस पुत्रसो असुरस्य वीरा दिवो धर्तारौर्विया परि खयन
3. उशन्ति घा ते अम्र्तास एतदेकस्य चित तयजसं मर्त्यस्य |
नि ते मनो मनसि धाय्यस्मे जन्युः पतिस्तन्वमाविविश्याः
4. न यत पुरा चक्र्मा कद ध नूनं रता वदन्तो अन्र्तंरपेम |
गन्धर्वो अप्स्वप्या च योषा सा नो नाभिःपरमं जामि तन नौ
5. गर्भे नु नौ जनिता दम्पती कर्देवास्त्वष्टा सविताविश्वरूपः |
नाकिरस्य पर मिनन्ति वरतानि वेद नावस्यप्र्थिवि उत दयौः ||
6. को अस्य वेद परथमस्याह्नः क ईं ददर्श क इह परवोचत |
बर्हन मित्रस्य वरुणस्य धाम कदु बरव आहनोवीच्या नॄन
7. यमस्य मा यम्यं काम आगन समाने योनौ सहशेय्याय
जायेव पत्ये तन्वं रिरिच्यां वि चिद वर्हेव रथ्येव चक्रा ||
8. न तिष्ठन्ति न नि मिषन्त्येते देवानां सपश इह येचरन्ति
अन्येन मदाहनो याहि तुयं तेन वि वर्ह रथ्येवचक्रा ||
9. रात्रीभिरस्मा अहभिर्दशस्येत सूर्यस्य चक्षुर्मुहुरुन्मिमीयात |
दिवा पर्थिव्या मिथुना सबन्धू यमीर्यमस्यबिभ्र्यादजामि ||
10. आ घा ता गछानुत्तरा युगानि यत्र जामयः कर्णवन्नजामि |
उप बर्ब्र्हि वर्षभाय बाहुमन्यमिछस्व सुभगेपतिं मत ||
11. किं भ्रातासद यदनाथं भवाति किमु सवसा यन निरतिर्निगछत |
काममूता बह्वेतद रपामि तन्वा मे तन्वं सम्पिप्र्ग्धि ||
12. न वा उ ते तन्वा तन्वं सं पप्र्च्यां पापमाहुर्यःस्वसारं निगछात |
अन्येन मत परमुदः कल्पयस्व न तेभ्रात सुभगे वष्ट्येतत ||
13. बतो बतसि यम नैव ते मनो हर्दयं चाविदाम |
अन्या किलत्वां कक्ष्येव युक्तं परि षवजाते लिबुजेव वर्क्षम ||
14. अन्यमू षु तवं यम्यन्य उ तवां परि षवजाते लिबुजेवव्र्क्षम |
तस्य वा तवं मन इछा स वा तवाधा कर्णुष्वसंविदं सुभद्राम ||
ऋग्वेद "शाकल संहिता" ,
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(स्रोत: बौद्ध-ग्रन्थों में परिगणित दशरथ जातक -461 से उद्धृत तथ्य )
A festival called Sita-Ram (Situa – Raimi) was celebrated in Mexico during Nav-Ratri or Dussehra period which has been described on page 5867 in the book ‘Hamsworth History of the World’. ( read my post0
Both in Central and South America, there are found Sati cremation, priesthood, gurukul system, yajna, birth, marriage and death ceremonies to some extent similar to the Hindus. When Pizarro killed Peruvian King Atahualpa his 4 wives committed Sati—or self sacrifice.
इंका दक्षिण अमेरीका के मूल निवासिओं (रेड इण्डियन जाति) की एक गौरवशाली उपजाति थी। इंका प्रशासन के सम्बन्ध में विद्वानों का ऐसा मत है कि उनके राज्य में वास्तविक राजकीय समाजवाद (स्टेट सोशियलिज्म) था तथा सरकारी कर्मचारियों का चरित्र अत्यंत उज्वल था। इंका लोग कुशल कृषक थे। इन्होंने पहाड़ियों पर सीढ़ीदार खेतों का प्रादुर्भाव करके भूमि के उपयोग का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया था। आदान-प्रदान का माध्यम द्रव्य नहीं था, अत: सरकारी करों का भुगतान शिल्पों की वस्तुओं तथा कृषीय उपजों में किया जाता था। ये लोग खानों से सोना निकालते थे, परंतु उसका मंदिरों आदि में सजावट के लिए ही प्रयोग करते थे। ये लोग सूर्य के उपासक थे और ईश्वर में विश्वास करते थे।
इतिहास -
१४३८-१५२७ ईसवी के काल में इंका सभ्यता का विस्तार
सन् ११०० ई. तक इंका लोग अपने पूर्वजों की भान्ति अन्य पड़ोसियों के जैसा जीवन ही व्ययतीत करते थे, परंतु लगभग सन् ११०० ई. में कुछ परिवार कुसको घाटी में पहुँचे जहाँ उन्होंने आदिम निवासियों को परास्त करके कुज़्को नामक नगर का शिलान्यास किया। यहाँ उन्होंने लामा नामक पशु के पालन के साथ-साथ कृषि भी आरंभ की। कालांतर में उन्होंने टीटीकाका झील के दक्षिण पश्चिम में अपने राज्य को प्रशस्त किया। सन् १५२८ ई. तक उन्होंने पेरू, ईक्वाडोर, चिली तथा पश्चिमी अर्जेंटीना पर भी अधिकार कर लिया। परन्तु यातायात के साधनों के अभाव में तथा गृहयुद्ध के कारण इंका साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया।
एजटेक पुरातन संस्कृति है ।
अमेरिका की प्रचीन माया सभ्यता ग्वाटेमाला, मैक्सिको, होंडुरास तथा यूकाटन प्रायद्वीप में स्थापित थी। माया सभ्यता मैक्सिको की एक महत्वपूर्ण सभ्यता थी। इस सभ्यता का आरम्भ 1500 ई० पू० में हुआ। यह सभ्यता 300 ई० से 900 ई० के दौरान अपनी उन्नति के शिखर पर पहुंची इस सभ्यता के महत्वपूर्ण केन्द्र मैक्सिको, ग्वाटेमाला, होंडुरास एवं अल - सैल्वाड़ोर में थे। यद्यपि माया सभ्यता का अंत 16 वी शताब्दी में हुआ किन्तु इस पतन 11 वी शताब्दी से आरम्भ हो गया था
संस्कृत भाषा में आस्तीक नाम प्रचलित है
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विश्व पुरातन कथाओं में राम का वर्णन --
राम का वर्णन विश्व की प्राचीनत्तम संस्कृतियों में विद्यमान है ।
मिश्र की पुरातन कथाओं में राम और सीता परम्परागत राजाओं की उपाधि है :---Shri Rama in Egypt
The name Egypt is derived from Ajapati, named after Aja, Shree Rama’s grandfather. Etymologically, The title of Egypt’s ancient rulers, the dynasty of Ramesis, with the Sanskrit words "Ram Eisus," meaning "Rama-the God" means Rulers were the descendants of Shri Rama-God.
The Egyptian pharaohs had names like Ramses I, Ramses (राम रामस् ), etc and many Egypting Kings were Vaishnavas. Egyptians king were known as Ramesis and Queens were also named after Sita sometimes. Perhaps it is because Shri Rama was universally renowned as an ideal King, and the almighty incarnated himself. The ancient Egyptians considered their rulers to be the incarnations of God.
One of the famous Egyptian queens was queen Sitamen. (सीता )
There is a picture of Egyptian statue of a man, originally produced in the book Egyptian Myth and Legend, on page 368, the Egyptian statue of a man dressed in robes and practically covered with Vishnu tilak and sandal paste, the kind which the Shri-Vaishnava sect (in which Shri Rama is the principle deity) uses in India. As well as in the book 'Long Missing Links' An image of a pharaoh of Memphis is Published in which The pharaoh is also using tilak just like the Shri-Vaishnavas.
Pharaoh with Sri Vaishnava Tilak
Shri Rama and The Egyptian God Amun
Triad of Egyptian Gods: Amun, Khonsu and Mut (wife of Amun)
Triad of Egyptian Gods: Amun (or Raman or Rama), Mut/Mat (beautiful wife of Amun, 'Mata' Sita?) and Khonsu, perhaps related to Shri Rama, Sita and Lakshmana respectively. In ancient Egyptian Civilisation, Amun was associated with Sun-god 'Ra', so he was called Amun-Ra (indicative of Rama, Raman born in sun-dynasty), Amun-Ra was the all-powerful supreme creator god of all beings and everything in this world, who was hailed as the most compassionate and the one who always comes at the voice of the poor in distress. Amun-Ra is hailed as the one whose forms are greater than every other god, from whose eyes mankind proceeded, from Whose mouth the Gods were created (almost vedic description of the supreme Purusa). Amun-Ra was the blue-complexioned god, wore Eagle or Garuda emblem on his head, and he was depicted with a “sacred river” emerging from his feet. Amun-Ra was the King of the gods and the master of the god of the wind, similarly in whole Hinduism only Shri Rama is hailed as the King of all the worlds (supreme king of the gods) as well as the Lord of Hanuman (the son of wind-god). Khonsu is decribed as the son of Amun and Mut, in Ramayana, Lakshmana Ji was asked by his mother Sumitra to serve Sita and Rama thinking them as his mother and father respectively. Lakshmana always regarded Sita as mother and Shri Rama, his elder brother as his father. In ancient Egyptian cosmology, Khonsu is described as the “Great Snake who fertilizes the Cosmic Egg for the creation of the world”. Lakshmana Ji is also described as the manifestation of Ananta-Sesha (the great serpent) who supports the entire cosmos.
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Ancient hittie and Mittani Empires of ancient Iraq,( प्राचीन हिट्टी तथा मितन्नी वेदों में वर्णित मितज्ञु कहा है ) Syria and Turkey regions
A King named Dasharatha ruled over Syria and Iraq 3300 years ago: The Arya Kingdom of Mittani comprised of what is known today as Syria and parts of south-eastern Turkey and Iraq between 1500-1300 BC. It is well-known to historians that the Mittani kingdom was founded by an Arya ruling class, whose names are of Indic origin and who worshipped Vedic Gods, such as Mitra, Varuna, Indra and Nasatya (Ashvini-Kumaras), etc. The names of some of their kings: The first Mitanni king was Sutarna I (“good sun” - सुतर्ण). He was followed by Paratarna I (“great sun” - परतर्ण), Parashukshatra (“ruler with axe” - परशुक्षत्र), Saukshatra (“son of Sukshatra, the good ruler” - सौक्षत्र), Paratarna II, Artatama or Ritadharma (“abiding in cosmic law” - ऋतधर्म), Sutarna II, Tushratta or Dasharatha (दशरथ), and finally Mativaja (Matiwazza, “whose wealth is prayer” - मतिवाज). These names indicate Vedic-past of ancient civilisations of Middile east.
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The Lion Gate at Hattusa, capital of the Hittite Empire
This Simha dwara (lion gates) still shows the Vedic connection between India and ancient Hittie empire in Turkey. Hattusha or hatti near the maryashantya river (as per hittites) which was known to greeks as halyas was the capital of hittites. A river by the name maryashantya still exists in Nepal, which was the part of ancient Bharat. There was one queen named gassuliya (misnormer of Kaushalya, the mother of Lord Shri Rama) in hittie empire. Hundreds of modern places in Turkey have still the ancient names e.g. lalanda (after Nalanda), hindua, etc which tells Vedic past and connection of ancient Turkey with India.
Shri Rama in Europe
One of the most ancient city in Europe is the capital of Italy , Rome (Roma). 'Rome' (Roma) is nothing but a misnomer of Rama, the letter 'a' in sanskrit sometimes becomes the letter 'o' like the word 'nasa' from sanskrit becomes 'nose' in English having same meaning (remember Sanskrit is the mother of Indo-European languages). 'Rome' then meant the city of Rama, the supreme god, it was founded on the 21st April 753 BC. The reason why this exact date is recorded is because 21st April is the date of Ramnavami in 753 BC. But, Who were the founders of Italy? It were the ancient Etruscans who founded Rome, once Etruscans civilization was spread almost all over Italy. In Italy, when excavation were carried out in the remains of Etruscans civilization, then various houses were found having peculiar type of paintings on their walls. On closer investigations of those paintings, anyone can say those are based upon the stories of Ramayana. Some of the paintings shows peculiar persons having tails along with two men bearing bows and arrow on their shoulders, while a lady is standing besides them. These paintings are of 7 century BC. Another proof is the another Italian city, Ravenna is named after Shri Rama's adversary Ravana, and as Ravana was the enemy of Lord Ram, the city of Rome and the city Ravenna are situated diametrically opposite to each other, one on the western coast and the other on the eastern coast.
Italian Painting of some man (having bow & arrows), his wife (Having some plant), and follower brother (having spear), Bologna Museum, Italy. Persons in this painting closely resemble Shri Rama, Sita and Lakshmana going to forest; Along the time Ramayana was forgotten there, and Italians without knowing who were Shri Rama, Sita and Lakshmana really, they made the relief and painting as per their local arts, not so beautifully like traditional Indian paintings of Bhagavan Shri Sita-Rama and Lakshmana.
The episodes of Ramayana like (a) Kusha-lava capturing the horse of Ashvamedha Yajna of Shri Rama as described in the Ramayana story from Padma-Purana, (b) Monkey king Vali capturing the wife of Sugriva etc are founed to be sketched on ancient Italian vases and the walls of ancient Italian homes. These sketches caused a bewilderment to modern Italian archeologists, but they were unware of some thousand years ago once Ramayana and Sanatan-Vedic-dharma was prevalent there in Italy and other European countries.
People tell in Vetican, there was a temple of Lord Shiva, which was a cultural and religious center in ancient Europe along with the city of Rome (Rama) before its incumbent was forced to follow Christianity. The word 'Vatican' itself is derived from the sanskrit word Vatica which means Garden or the vedic cultural or religious center in Sanskrit. Also as per some reports, During excavation an ancient Shiva-Lingam was found which is kept for display in Etruscan Museum in Rome Italy.
Shiva Lingam at Etruscan Museum
Shri Rama in ancient Russia
Legends of Ramayana had been popular in some regions and ancient people of Russia. In mangolia near by Russia, Mangolians people had an epic that closely resembles the Ramayana.
An ancient Vishnu idol has been found during excavation in an old village in Volga region of Russia, this region
The two headed Eagle : The State Symbol Of Russia
The two headed eagle emblem has been in use in Russia for state Emblem for very long. It is also used in serbia, croatia, Yugoslavia, Austria, Italy, Spain, Greece, etc and other European nations for very long. Ancient Hittie Empire which had Vedic-connection as discussed above also used this emblem. However, western Historians didn't tell the origin and the real fact behind this two headed eagle emblem that it is related with Hinduism, to keep people away from Sanatan Vedic dharma.
Carving of Gandaberunda bird : the two headed eagle
in the Rameshwara temple at Keladi
In ancient Hindu scriptures,there is mention of Lord Narasimha (half man half lion) incarnation of Lord Vishnu taking form of Gandaberunda (the two headed eagle bird) having immense strength and power. The two headed eagle Gandaberunda, the powerful bird incarnation of Lord Vishnu (Narasimha), has been heautifully depicted on the carvings of ancient Hindu temples (as shown above), and it was used as state emblem by ancient Indian empires e.g. Mysore Kingdom; It is still used by Karnataka state govt in India.
Shri Rama in ancient South America
Connection with Incas of Peru
A very famous person Sir William Jones who studied and researched a lot over Vedic history of the world said this some 200 years back, when a lot on History was being written by the colonist powers. He said, "It is very remarkable that Peruvians, whose Incas boasted of the same descent, styled their greatest festival Rama-Sitva ; whence we may take it that South America was peopled by the same race who imported into the farthest of parts of Asia the rites and the fabulous history of Ram and Sita. " (SOURCE: Asiatic Researches Volume I. p. 426)
Thus, those who studied and researched sincerely over the vedic past of the world recognised this fact that Shri Shri SitaRama were known to the ancient people of South America to the farthest points of Asia.William Durant. Author of the ten volume, story of civilisation.
I am convinced that everything has come down to us from the banks of the river Ganges.
मिश्र की पुरातन कथाओं में सीता माँ को सीतीमन कह कर सम्बोधित किया है :--- देखे
(Sitamen)| King's daughter and Great Royal Wife (From Malqata)
Her name is sometimes written as Sit-Amun, Sat-Amen or Sat-Amun
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Sitamen is usually thought to have been the daughter-wife of Amenhotep III. She is said to be the daughter of Amenhotep III and Queen Tiye in some inscriptions. Some have speculated that Sitamun was actually the daughter of Tuthmosis IV and Queen Iaret, but there does not seem to be any firm evidence for this.
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Sitamun is known to have married Amenhotep in year 30, probably during the celebration of his first Hebsed festival. In some of the older literature (Hayes in 1948 f.i.) is is speculated that Sitamen was the mother of Smenkhare, Nefertiti, Mutnodjemet and Tutankhamen. There is (to my knowledge) no evidence however linking Sitamen to any of these four royal figures.
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The famous Amunhotep, son of Hapu was the Steward of Queen Sitamun, and finds at Malqata show that she must have lived in this grand palace on the west bank near Thebes. There are records of jar labels that refer to "The House of the King's Daughter, Sitamun".
Her estates produced ale and other commodities.
Some of her furniture was found in the tomb of Yuya and Tuya. The tomb contebts included several chairs that seem to have belonged to Sitamen.
It is interesting to note that on one of the chairs Sitamen is shown seated on a throne wearing rather rare regalia. Her short (nubian) wig is covered by a circlet and the wig is topped with a modius with lotus flowers. Ladies are shown offering gold to Sitamen in tribute. This scene showing a Princess-Queen receiving such gifts is rare.
Amenhotep, son of Hapu
Sitamen may have been meant to be buried in Amenhotep III's tomb (KV22) in the Valley of the Kings. There are two chambers, each with two pillars and a storeroom, leading off the king's burial chamber. One may have been intended for Queen Tiye and the other for Princess-
Queen Sitamen.
Artefacts related to Sitamun:
Chair from the tomb of Yuya and Tuya (KV 46) (now in Cairo)
On this chair she is simply called King’s Great Daughter, whom he loves Sitamen (no cartouche)
A small chair depicting Sitamen receiving tribute.
On the front we see two small sculptures in the ound depicting Sitamen
Chair from tomb of Yuya and Tuya
The great royal wife Tiye is seated on a throne on a papyrus skiff. A cat is seated below her chair, a small unnamed princess stands behind her chair and before her we see the king’s daughter, whom he loves, praised by the Lord of the Two Lands (Sitamen)|.
Sitamen is shown offering lotus flowers with her right hand, while her left hand clasps a fan. She is dresses in a short kilt. She wears a short wig with a side lock and a modius topped with water lilies.
Statue of Amenhotep-son-of-Hapu
On the pedestal Sitamen is mentioned.
Kohl Tube and Disk (Oxford)
Faience kohl tube (Metropolitan Museum of Art)
Inscribed for “the good god (Nebmaatre)| King’s Daughter Great Royal Wife (Sitamen)| may she live,”
Calcite bowl found in Amarna.
The original inscription named Sitamen: “King’s Daughter and King’s Wife, born of the Great King’s Wife, Tiye”. The inscription was later altered and Sitamen’s name was replaced by that of Amenhotep III.
Objects related to other Princesses / Queens named Sitamen:
Stela from the royal nurse Nebetkabeny (from Abydos)
Depicted as a princess with her nurse
Dated to the time of Tuthmosis III in Porter and Moss and by Cline and O'Connor. Refers to a daughter of Ahmose by the same name.
Queen with flywisk (Petrie Museum)
This scene comes from excavations in a western Thebes mortuary temple.
Thought by some to refer to a daughter of Amenhotep II by the same name, or possibly an even earlier Sitamen, daughter of Ahmose?
See Digitalegypt
Sitamen: सीता माँ
Merymery (Mrjj-mrjj), Scribe of the army of the Lord of the Two Lands, Steward of the King’s daughter Sitamun (S3t-jmn)
, etc., Mention of son Huy, Scribe of the army।
I had written on Aztecs , Mexico and in Central America.
I mentioned that the term Aztec ,
‘AZTEC OF MEXICO is derived from “worshipper of Ashtabhuja or Ashtak ( 8 armed ) ” , the eight armed God- found in Mexican temples.’
Hindu Trinity – Brahma- Vishnu- Shiva and the Mexican Trinity are Ho- Huitzilopochtli- Tlaloc …
The idols were represented with serpents round their heads, as for Lord Shiva.-basically raised Kundalini.
The Swastika sign of this area , seen on a “huaco” pot had with four dots inside, a Vedic sign .
The ancient American’s dresses (male and female) were simple and similar to those of Hindu dresses.
Aztec Kingdom.
Ayar Inoa King used to wear a turban, earring and a trishul type trident in his hand…
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A festival called Sita-Ram (Situa – Raimi) was celebrated in Mexico during Nav-Ratri or Dussehra period which has been described on…
मैक्सिको सिटी दक्षिणीय अमेरिका में माया सभ्यता की एजटेक शाखा सितुआ- रैमी के नाम से सदीयों से सीता और राम का उत्सव मनाती है ।
Categories: ancient india and mayan civilization, ancient indian science, ancient indian temples, ancient science, aztec, aztec mayan sumerian inca and
रामायण का रचनात्मक स्वरुप इतना अनूठा, सशक्त और जीवंत है कि अन्य कोई कथा उसे पचा नहीं पायी, उल्टे उसके आख्यान इसके उपाख्यान बन कर रह गये। उसकी विशिष्टता वस्तुत: उसके स्वरुप के लचीलापन में समाहित है। देश-काल के परिवर्तन के साथ राम कथा के अंतर्गत भी बदलाव आता गया। देशी-विदेशी साहित्य सर्जकों ने इसे अपने-अपने ढंग से सजाया संवारा। रामकथा जहाँ कहीं भी गयी, वहाँ के हवा-पानी में घुल-मिल गयी, किंतु अनगिनत परिवर्तनों के बीच भी उसकी सर्वोच्चता ज्यों की त्यों बनी रही, अनेक शिखरों वाले धवल-उज्जवल हिमालय की तरह जिसका रंग सुबह से शाम तक बार-बार बदलता है, फिर भी उसके मूल स्वरुप में कोई बदलाव होता नहीं दीखती। संभवत: इसी कारण रामकथा पर आधारित जितनी मौलिक कृतियों का सृजन हुआ, संसार के किसी भी अन्य कथा को वह सौभाग्य प्राप्त नहीं हो सका।
राम चरित अनेक देशों के प्राकृतिक परिवेश, सामाजिक संदर्भ और सांस्कृतिक आदर्शों के अनुरुप ढलता-सँवरता रहा। रामकथा पर आधारित विदशी कृतियाँ विविधता और विचित्रम से परिपूर्ण है। इनमें कोई बहुत संक्षिप्त है,तो कोई अत्यधिक विस्तृत। किसी को बौद्ध जातकों के सांचे में ढाला गया है, तो किसी का इस्लामीकरण हुआ है। उसका रचनात्मक स्वरुप ढीला-ढाला रेश्मी जामें जैसा है जिसे जो कोई पहन ले तो खूब फबता है और कोई यह भी नहीं कह सकता कि यह किसी दूसरे से उधार लिया गया है।
रामायण की महनीयता उस परम सौंदर्य को रुपायित करने में अंतर्निहित है जिससे परम मंगलमय सत्य उद्भाषित होता है। रामायण का महानायक राम मर्यादा पूरुषोत्तम हैं। उनकी पुरुषोत्मता यथार्थ में जीकर मानवीय मूल्यों की रक्षा करने में समाहित है,तो उनकी ईश्वरीयता उस चिरंतन सत्य से अवतरित होती है जो प्राणियों के लिए हितकर है, 'सत्यं भूतहितं प्रोक्तम्'। निर्गुण निर्पेक्ष सत्य का यही सगुण-सापेक्ष रुप राम के चरित्र में उजागर हुआ है। रामायण का सत्य और सौंदर्य उसकी शिवता में समाहित है और उसका मंगलघर अपरिमित आनंद रस से परिपूर्ण -
राम निस्सन्देह विश्व में प्राचीनत्तम चरित्र है ।
दुनियाँ में बहुत सी राम के जीवन से सम्बद्ध कथाऐं प्रचलित हैं ।
परन्तु बहुत सी काल्पनिक कथाओं का समायोजन राम के ऊपर आरोपित करके तत्कालीन रूढ़िवादी
ब्राह्मण समाज ने समाज में विकृितियों का ही बीज-वपन किया है । विदित हो कि समाज के सभी ब्राह्मण दोषी नहीं थे । और जो दोषी थे उन्हें उनके किये की सज़ा मिली ।
वाल्मीकि-रामायण के अयोध्या काण्ड सर्ग (१०९) के श्लोक (३४ )में राम द्वारा महात्मा बुद्ध को चोर तथा नास्तिक कहा जाना "
भी इसी विकृति का उदहारण है ।
" यथा ही चोर स तथा हि बुद्धस्तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि"
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अर्थात् जैसे चोर होता है वैसे ही तथागत बुद्ध को चोर तथा नास्तिक समझो...
जावालि ऋषि के नास्तिकता सेे पूर्ण वचन सुनकर उग्रतेज वाले श्री राम उन वचनों को सहन नहीं कर सके
और उनके वचनों की निन्दा करते हुए जावालि ऋषि से बोले :--- निन्दाम्यहं कर्म पितु: कृतं , तद्धयास्तवामगृह्वाद्विप मस्तबुद्धिम् ।
बुद्धयाsनयैवंविधया चरन्त ,
सुनास्तिकं धर्मपथातपेतम् ।।
वाल्मीकि-रामायण अयोध्या काण्ड सर्ग १०९ के ३३ वें श्लोक---
अर्थात् हे जावालि मैं राम अपने पिता (दशरथ) के इस कार्य की निन्दा करता हूँ ।
कि तुम्हारे जैसे वेद मार्ग से भ्रष्ट-बुद्धि धर्म-च्युत नास्तिक को अपने यहाँ स्थान दिया है ।
क्योंकि बुद्ध जैसे नास्तिक मार्गी , जो दूसरों को उपदेश देते घूमा फिरा करते हैं ।
वे केवल घोर नास्तिक ही नहीं अपितु धर्म -मार्ग से पतित भी हैं ।
राम : बुद्ध के विषय में कहते हैं ।
"यथा ही चोर: स, तथा हि बुद्धस्तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि तस्माद्धिय: शक्यतम:
प्रजानानाम् स नास्तिकेनाभिमुखो बुद्ध: स्यातम्
-----------. अयोध्या काण्ड १०९ वें सर्ग का ३४ वाँ श्लोक प्रमाण रूप में----
अर्थात् जैसे चोर दण्ड का पात्र होता है
उसी प्रकार बुद्ध और उनके नास्तिक अनुयायी भी दण्डनीय हैं ।
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विचारणीय तथ्य है
कि बुद्ध के समकालिक राम कब थे ?
जबकि दक्षिण-अमेरिका में माया संस्कृति के अनुयायी लोग राम-सितवा के रूप में राम और सीता का उत्सव हजारों वर्षों से मानते चले आ रहे हैं
मेसोपोटामिया ( ईरानी व ईराकी व सुमेरियन मिथकों में राम, सीता, लक्ष्मण , दशरथ व रावण का वर्णन 👇
(58)- INDO-SUMERIAN SEALS DECIPHERED
Or “Ur Engur,” and the father of " Dungi ” or S'amu-Dukgin
—the “ Jama-Dagni ” of the Indian Epics.
The Kus'a line of kingship ended with this marriage of Gudia’s daughter to Uru, as Gudia’s son Vis'wa-Mitra became a devoted Sun- priest ; and the use by S’us’ena of the title “ Gus'a ” on his seal (if it be there), appears to be in a territorial sense.
Genealogy of “ Kus’a ” and " Uru" Dynasties from, Indian Epics .
Kus'a, founder of Kus'a or Kus'ika Dynasty,s of Balaka of Jahnu line.
Kus'amba or Kus'ika, his son.
Gadhi [Gudia or " Gudea "] his son.
विश्वामित्र (Vis'wa-Mitra), son, Satya-watl, daughter, married sage Uru-Riclka became Sun-priest, B'rigu.
who opposed | human sacrifice.
Jama-Dagni the B'rigu, son, mother. Renuka.
Paras'u-Ram, Rumanwat, Sushena, Vasu, Vis'wa* Vasu.
The following King-list of “Gudea’s” (pase 59) and the "Ur”
Dynasties from the Indian Epics,
2 compared with the names
in the Sumerian King-lists and monuments, again shows how much more faithfully the Indian Epics have preserved
these Sumerian names than those as “ restored ” by Assyriologists.
This comparison discloses among other things the Sumerian name for the founder of Gudia’s dynasty was Kus’ as recorded in the Indian Epics; and that the founder of
the “ Ur” Dynasty, Uruas'zikum of the Sumerian was Uru- ricika of the Indian Epics, which make him the son-in-law of Gadhi or Gudia.
It also would appear that " Uruas’-nin Girsu," the fourth on the list, the so-called king “ Ur Ningirsu of Ur,”
was a queen and not a king.
This position is occupied in the Epic
list by the daughter of Gadhi (Gudia), whose personal name
1 W.V.P., 4, 15 f., 28. 2 See note I.
_______
GUDEA AND UR DYNASTY IN INDIAN EPICS (59 )
King-list of" Gudea’s ” and " Ur” Dynasties
from Indian Epics compared with Sumerian.
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Names in Indian Epics.
Names in Sumerian. 👇
As revised by me.
As read by Assyri-
ologists . 1
1. K'us'a, s. of Balaka.
Uru-as'-ba Kus'.
Ur-Bau.
2. Kus'ambha, s.
of 1.
Khas'u a -ma’h-ia.
Nammakhni, s. of i.
3. Gadhi, s. of 2.
Gu-di-a.
Gudea, s. of 2.
4. Satya-wati, daughter
of 3-
Uru-as'-nin Gir-su.
Ur-Ningirsu, s. of 3.
5. Vru-Ricika, husb. of 4.
Uru-as’-zikum.
Ur - Nammu (Engur)
founder of Ur Dynasty.
6. Jama -Dagni, s. of 4
and 5.
(S'amu) 3 Duk-gin.
Dungi , s. of 5.
7. Paras'u Rama, s. of 6.
Bur-as'-sin (or Pur-
as'-sin).
Bur Sin I., s. of 6.
8. Sushena, br. of 7.
S'u-as'-sin (or -en-zu)
Gimil Sin.
was Satya-wati, and who afterwards married the B'rigu priest Uru who founded the “ Ur ” Dynasty, and became
the mother of Dungi.
The title “ Uru-as'-nin Girsu ” means “ The lady (nin) of Uruas’ (a title of the solar angel
Tasi) at Girsu ”—Girsu being the suburb of Sirlapur, 😂
राम, सीता ,लक्ष्मण, दशरथ व रावण सुमेरियन मिथकों में वर्णित पात्र हैं ।
_______
मुहर सख्या०(58) भारतीय तथा-सुमेरियन क्षेत्रों की स्थापना
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या "उर इंगुर", और "डूंगी" या (S'amu-Dukgin) के पिता
भारतीय महाकाव्यों में वर्णित "जमदग्नि ( कुशिक) थे ।
____
संस्कृत में कुशिक:- (कुशः कुशनामा नृपः जनकत्वेनास्त्यस्य ठन् ) ।
कुशिक:-एक राजा जो विश्वामित्र के पितामह और गाधि के पिता थे ।
______
गाधि नृपजनके विश्वामित्रपितामहे नृपभेदे तत् कथा यथा “कान्यकुब्जे महानासीत् पार्थिवो भरतर्षभ!
गाधीति विश्रुतो लोके कुशिकस्यात्मसम्भवः ।
तस्य धर्म्मात्मनः पुत्रः समृद्धबलवाहनः ।
विश्वामित्र इति ख्यातो बभूव ।
भागवत- ७४ अ०
“कुशवंशप्रसुतोऽस्मि कौशिको रघुनन्दन!” रामायण “कुशिकस्यात्मजः श्रीमान् गाधिर्नाम जनेश्वरः ।
भागवत अ० ४
एक प्राचीन वंश विश्वमित्र जी इसी वंश के थे ।
कुशिक राजा विश्वामित्र पितामह और गाधि के पिता थे ।
विशेष—महाभारत में लिखा है
कि जब च्यवन ऋषि को ध्यान से यह विदित हुआ कि कुशिक वंश के द्वारा उनके वंश में क्षत्रिय धर्म का संचार होगा, तब उन्होंने कुशित वंश को भस्म करना विचारा और वे राजा कुशिक के पास गए ।
बहुत दिनों तक अनेक प्रकार के कष्ट देने पर भी जब राजा और रानी में उन्होंने शाप देने के लिये कोई छिद्र (दोष) न पाया तब उन्होने प्रसन्न होकर राजा कुशिक की वर दिया कि तुम्हारा पौत्र ब्राह्मणत्व लाभ करेगा
____
जमदग्नि एक प्राचीन गोत्रकार वैदिक ऋषि जिनकी गणना सप्तर्षियों में की जाती है ।
ये भृगुवंशी ऋचीक ऋषि के पुत्र थे ।
विशेष—वेदों में जमदग्नि के बहुत से मन्त्र मिलते हैं ।
ऋग्वेद के अनेक मन्त्रों से जाना जाता है कि विश्वामित्र के साथ ये भी वशिष्ठ के विपक्षी थे ।
ऐतरेय ब्राह्मण हरिश्रंद्रोपाख्यान में लिखा है कि हरिश्चंद्र के नरमेध यज्ञ में ये अध्वर्यु हुए थे ।
जमदग्नि का जिक्र महाभारत, हरिवंश और विष्णुपुराण में आया है ।
इनकी उत्पति के संबंध में लिखा है कि ऋचीक ऋषि ने अपनी स्त्री सत्यवती, जो राजा गाधि की कन्या थी, तथा उनकी माता के लिये भिन्न गुणों वाले दो चरु तैयार किए थे ।
दोनों चरु अपनी स्त्री सत्यवती को देकर उन्होंने बतला दिया था कि ऋतुस्नान के उपरान्त यह चरु तुम खा लेना और दूसरा चरु
अपनी माता को खिला देना ।
सत्यवती ने दोनों चरु अपनी माता को देकर उसके संबंध में सब बातें बतला दीं ।
उसकी माता ने यह समझकर कि ऋचीक ने अपनी स्त्री के लिये अधिक उत्तम गुणोंवाला पुत्र उत्पन्न करने के लिये चरु तेयार किया होगा, !
उसका चरु स्वयं खा लिया और अपना चरु उसे खिला दिया ।
जब दोनों गर्भवती हुई, तब ऋचीक ने अपनी स्त्री के नक्षत्र देखकर समझ लिया कि चरु बदल गया है ।
ऋचीक ने उससे कहा कि मैंने तुम्हारे गर्भ से ब्रह्मनिष्ठ पुत्र और तुम्हारी माता के गर्भ से महाबली और क्षात्र गुणोंवाला पुत्र उत्पन्न करने के लिये चरु तैयार किया था;
पर तुम लोगों ने चरु बदल लिया ।
इस पर सत्यवती ने दुःखी होकर अपने पति से कोई ऐसा प्रयत्न करने की प्रार्थना की जिसमें उसके गर्भ से उग्र क्षत्रिय न उत्पन्न हो; और यदि उसका उत्पन्न होना अनिवार्य ही हो तो वह उसकी पुत्रवधू के गर्भ से उत्पन्न हो
तदनुसार सत्यवती के गर्भ से जमदग्नि और उसकी माता के गर्भ से विश्वामित्र का जन्म हुए ।
इसीलिये जमदग्नि में भी बहुत से क्षत्रियोचित गुण थे ।
जमदग्नि ने राजा प्रसेनजित् की कन्या रेणुका से विवाह किया था और उसके गर्भ से उन्हें पाँच पुत्र प्राप्त हुए :-
1-रुमण्वान्,
2-सुषेण,
3-वह,
4-विश्वाबहु और
5-परशुराम नाम के पाँच पुत्र उत्पन्न हुए थे ।
ऋचीक के चरु के प्रभाव से उनमें से परशुराम में सभी क्षत्रियोचित गुण थे ।
जमदग्नि की मृत्यु के संबंध में विष्णुपुराण में लिखा है कि एक बार हैहयवंश के यादवों के राजा कार्तवीर्य उनके आश्रम से उनकी कामधेनु ले गए थे ।
इस पर परशुराम ने उनका पीछा करके उनके हजार हाथ काट डाले ।
जब कातवीर्य के पुत्रों को यह बात मालूम हुई, तब लोगों ने जमदग्नि के आश्रम पर जाकर उन्हें मार डाला ।
_______________
अब देखें सुमेरियन मिथकों में
भारतीय पुराणों के समान कथाऐं वर्णित हैं :-👇
गुडिया के पुत्री का विवाह उरु के साथ सम्पन्न हो गया, क्योंकि गुडिया का पुत्र विश्वमित्र एक समर्पित सूर्य बन गया था-
सुमेरियन मुहर पर "गुसा" शीर्षक के द्वारा उपयोग (यदि यह वहां हो), क्षेत्रीय अर्थ में प्रतीत होता है।
यह शब्द कुशिक का रूपान्तरण ही है ।
सुमेरियन मिथकों में सुषेण नाम भी है जो विश्वामित्र के भाई हैं ।
भारतीय महाकाव्य से "कुसआ" (कुशिक ) और "उरु" (और्व) राजवंशों की वंशावली।
कुसआ, कुस’का या कुसिका वंश का संस्थापक, जाह्नु वंश परम्परा का बालक।
कुसम्बा या कुसिका, उसका पुत्र।
गधी [गुडि़या या "गुडिया"] उनका पुत्र।
विश्वामित्र, पुत्र, सत्यवती का, पुत्री, विवाहित ऋषि उरु-ऋक्ल्का सूर्य-पुजारी, बिरगू (भृग) बने।
जमदग्नि और उनके पुत्र सहित रेणुका ने नरमेध का विरोध किया था ।
सुमेरियन मिथकों में वर्णन:-
1-परसु-राम, 2*रुमानवत, 3-सुसेना, 4-वासु, 5-विस्वा वासु।
भारतीय पुराणों में भी ये नाम यथावत वर्णित हैं
रुमण्वान्, 2-सुषेण, 3-वह, 4-विश्वाबहु और 5-परशुराम नाम के पाँच पुत्र ।
निम्नलिखित राजा की सूची "गुडिया" (पृष्ठ ५ ९) और "उर"
भारतीय महाकाव्य से राजवंश,
2 नामों के साथ तुलना की
सुमेरियन राजा-सूचियों और स्मारकों की अपेक्षा से पता चलता है कि भारतीय महाकाव्यों ने कितनी ईमानदारी से ये कथाऐं संरक्षित हैं
ये सुमेरियन नाम उन लोगों की तुलना में हैं जिन्हें असीरोलॉजिस्ट ने "बहाल" किया था।
असीरी ही भारत-सुमेरियन असुर या अस्सुर हैं ।
यह तुलना अन्य बातों के अलावा खुलासा करती है कि गुडिय़ा के वंश के संस्थापक सुमेर का नाम कुस 'जैसा कि भारतीय महाकाव्यों में दर्ज किया गया था; और उस के संस्थापक
"उर" राजवंश, सुमेरियन के उरुस्ज़िकम भारतीय महाकाव्यों का उरु-रिका (ऋचीक)था, जो उन्हें गधी या गुड़िया का दामाद बनाते हैं।🌸
यह भी प्रतीत होता है कि "उरुअस-निन गिरसु", सूची में चौथे, तथाकथित राजा "उर के निंगिरसु" हैं।
रानी थी और राजा नहीं।
महाकाव्य में इस स्थान पर कब्जा है!
गधी (गुड़िया) की पुत्री की सूची, जिसका व्यक्तिगत नाम।
अप्राप्त है ।
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सन्दर्भ :-1 डब्ल्यू.वी.पी।, 4, 15 एफ।, 28. 2 नोट I देखें।
_______
गाधि और और्व (गुडिया और उर) डायनेस्टी इन इंडिया ईपिक्स (59)
"गुडिया" और "उर" राजवंशों की राजा-सूची
सुमेरियन के साथ तुलना में भारतीय महाकाव्यों के साथ।
_______
भारतीय महाकाव्यों में और
सुमेरियन में समान-नाम।
1. कुसु, s। बालको का।
उरु-अस-बा कुस ’।
उर-Bau।
2. कुशंभ, एस।
1 का।
ख़ास'उ -माह'-इया
नम्माखनी, एस। की मैं
3. गाधी, स। 2 का।
गु-डाई-एक।
गुडिया, एस। 2 का।
4. सत्य-वति, पुत्री
3- का
उरु-अस-निन गिर-सु।
उर-निंगिरसु, एस। 3 का।
5. वृ-ऋिका, पति। 4 का।
युरू-as'-zikum।
उर - नम्मू (इंगुर)
_______
उर वंश का संस्थापक।
भूगुवंश्ये ऋषिभेदे ।
भृगुवंशी ऋषि और्व हैं ।
6. जामा-डेग्नि, एस। 4 का
और 5।
(स'मु) 3 डक-जिन।
डूंगी, एस। 5 का।
7. पारसु राम, एस। 6 का।
बर-अस-सिन (या पुर-
as'-सिन)।
बर सिन आई।, एस। 6 का।
8. सुशीना, ब्र। 7 का।
S'u-as'- sin (or -en-zu)
गिमिल सिन।
सत्यवती और जिसने बाद में "उर" राजवंश की स्थापना करने वाले (B'rigu) भृगु पुजारी उरु से शादी की, और बन गया डूंगी की माँ।
"उरु-अस-निन गिरसू" शीर्षक का अर्थ है "उरुआ की महिला (नौ) '(सौर परी का एक शीर्षक)
गिरसी पर तसी) ”-गिरसु सुरपुर के उपनगर होने के नाते,
जहां मुख्य मंदिर स्थित थे।
यह तथ्य समझाता है कि उरुअस-निन-गिरसू को स्मारकों पर स्टाइल के लिए क्यों पाया जाता है
"सिरपुरला के पाटैसी परस्तिश या पुजारी)," जैसा वह था
जाहिर तौर पर उसके पिता गुडिय़ा के नेतृत्व में सौर पुजारिन का कार्य यह भी बताएगा कि कैसे (संभवतः उसकी शादी के बाद (उरु) उसे "देवता की पुजारी (नीस) नीना," और कैसे स्टाइल किया जाता है ?
_______
सन्दर्भ सूची(1 कैम्ब्रिज ए.सी. हिस्ट।, बेबीलोनिया, 1924, पैसिम।)
3 सुमेरियन में इस शब्द-चिन्ह में सिम और नाम एक है जो खो गया।
जैसा कि अक्कड़ी के पर्यायवाची में खसु है, मैंने इस
3 ड्यूकिन में उपसर्ग है "" भगवान "=" परमात्मा "या" स्वर्ग ", जो
अक्कड़ का मूल्य S'amu है, जो स्पष्ट रूप से संस्कृत द्वारा अपनाया गया है
के रूप में नहीं, इस प्रकार "सेमिटिक" प्रभाव दिखा रहा है।
सोम से ही सोमवंश की अवधारणा का विकास हुआ ।
६०- इंडो-सुमेरियन मुहरों की स्थापना
उसने एक खूबसूरत नक्काशीदार महिला की भेंट चढ़ाया
ब्रिटिश संग्रहालय में अब एक "देवी" के लिए डायराइट में सहवास।
इस प्रकार ऐसा प्रतीत होता है कि गुडि़या ने धर्म के प्रति अपनी भक्ति-भावना के कारण, अपने दोनों पुत्रों (विश्वा-मित्र और मित्र) को बनाया।
और बेटी धार्मिक भक्त, थी और इसलिए अपने राजवंश के लिए अपना राज्य खो दिया।
(Bur Sin I., "ठीक से Bur as'- Sin )या Pur as'-Sin, धर्मांधता के ऐतिहासिक मूल के रूप में -बंद है!
भारतीय महाकाव्यों के पारसु राम, जिन्होंने अपनी मां को मार डाला
(संभवतः एक सूर्य-उपासक), थे और सूर्य का संहार किया-
"हरतिस्वा" के "खत्यो" राजकुमारों की पूजा
और अन्य समकालीन राजवंश।
और वह अभी भी माना जाता है
भारतीय ब्राह्मणों के बीच एक लोकप्रिय नायक के रूप में ब्राह्मण जाति को "खतियो" या शासक जाति से ऊपर उठाने के लिए,अपनी कुल्हाड़ी के माध्यम से, जिसे वह एक आम में दर्शाया गया है।
परशुराम के द्वारा क्षत्रिय संहार की अवधारणा का विकास सुमेरियन मिथकों की इन कथाओं से हुआ ।
सुमेरियन मिथकों में वर्णित खत्ती ही क्षत्रिय है ।
उसका नाम पारसु ब्रह्मणों द्वारा प्रस्तुत किया गया है "कुल्हाड़ी।"
"सिन" के बजाय अपने नाम राम के दूसरे भाग को बुलाने में, ऐसा लगता है कि बाद में संपादित करने वाले भारतीय ब्राह्मण थे ।
________
महाकाव्य का उद्देश्य "राम" है, जिसका संस्कृत में अर्थ है
मैं "डार्क, ब्लैक, नाइट," सुमेरियन सिन के पर्याय के रूप में,अर्थ "चंद्रमा," अंधेरे का, या उसके "काले" नरसंहार को व्यक्त करने के लिए।
परसु राम, हालांकि बाद के ब्राह्मणों द्वारा सूर्य-देवता विष्णु के एक काले अवतार के रूप में बनाए गए थे, जिनमें से कुछ में सूर्य-पूजा का संबंध है।
प्रथमत: वेदों में उनके लिए दिया गया भजन मुख्य रूप से विभिन्न महिलाओं का आह्वान है।
_____💞
देवताओं, जिनमें बरती (भरत) और रात और सुबह शामिल हैं; और भीमानव बलिदानों के बारे में उनकी पेशकश को संदर्भित करता है,।
दूसरा जो घृणित था सूर्य-उपासकों को।
वह इस प्रकार एक प्रतिक्रिया के रूप में देखा गया है
देव संस्कृति के आर्य पुजारी-राजा जिन्होंने अपने धर्म में "सेमेटिक" शैलेडियन (कैल्डियन)आदिवासियों की मातृसत्तात्मक पूजा को शामिल किया था।
वह भी महिला देवताओं और खूनी बलिदानों के साथ। यह सूर्य-पूजा करने वाले (हरसावस) के उनके नरसंहार के बारे में बताता है, और उनके अंदर की मनोविश्लेषण को ...
सन्दर्भ सूची:-
1 आर.वी., आईओ, नं। 2 76।, वी, आईओ,
_____________________
PARASU- RAM उर 61 के "बूर साइन" के रूप में
गुडिय़ा के बेटे सौर पुजारी विश्व मित्रा से शत्रुता रखते हैं, जो विशेष रूप से महाकाव्य में विरोध के रूप में प्रतिनिधित्व करते हैं ।
Fio। io.-पारसु राम या "कुल्हाड़ी के राम" (बर-के रूप में ' सिन, या पुर-के रूप में' सिन आई, उर वंश का)।
राजाओं की हरसुवा की रेखा और ब्राह्मणों के वनवासियों के रूप में।
(मूर के हिंदो पंथियन में अठारहवीं सदी की तस्वीर के बाद।)
62 इंडो-सुमेरियन सीलों का निर्धारण
उरु वंश का मानव बलिदान के रिकॉर्ड
"बर-सिन आई," जो अभी भी स्मारकों पर मौजूद हैं,
इस चरित्र को ध्यान में रखते हुए हैं; हालांकि उन्होंने मरम्मत की निप्पुर शहर में प्राचीन सूर्य-मंदिर उन्होंने अपनी ऊर्जा को मुख्य रूप से चंद्रमा पंथ और उसके देवी-देवताओं को समर्पित किया, जो "कलडियों के उर" में थे।
जो अब समृद्ध ऐतिहासिक के साथ खुदाई की जा रही है
(मिस्टर वोले )के तहत ब्रिटिश संग्रहालय और पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के संयुक्त अभियान द्वारा परिणाम।
__________
"डूंगी" नाम भारतीय महाकाव्य में "दग्नि" के रूप में उपसर्ग "जामा" के रूप में प्रकट होता है, ताकि "जामा-दग्नी" को पढ़ा जा सके।
______
"इससे पता चलता है कि सुमेरियन नाम को डुक-जिन को पढ़ा जाना चाहिए, 1 हालांकि बाद में ब्राह्मणों को संस्कृत के शब्द अग्नि से इसका कुछ अर्थ लगता है,"
_______________________________
आग ”(सुमेरियन Ag =" आग भीतर "), क्योंकि आग एक आवश्यक थी
B'rigus के पंथ का हिस्सा उपसर्ग "जामा" स्पष्ट रूप से सुमेरियन उपसर्ग का प्रतिनिधित्व करता है 'आमतौर पर डूंगी द्वारा नियोजित, और अर्थ, जैसा कि हमने मुदगाला की मुहर में देखा है;
_____
"भगवान" ("दिव्य और स्वर्ग" भी), और इसमें स्याम का अक्काद पर्याय है; ऐसा प्रतीत होता है कि डूंगी को उनके सेमिटिक, चेल्दी विषयों और द्वारा बुलाया गया था
उनके बेटे परसु राम के अनुयायी "सुमू डुकिन,"✍💥
जिससे बाद में ब्रह्मणों ने "जमदग्नि" बनाया।
इस मुहर के S'us'ena इस प्रकार सुशीना दूसरा शब्द साबित होता है
भारतीय महाकाव्यों के "जमदग्नि" के पुत्र और समान
उर राजवंश के राजा S'u- sin या S'uas'- sin या S'uas'enzu के साथ, और राज्य के "S'us'ena" के साथ भी समानता है ।
सुसा के राजा का उल्लेख किया गया है, विशेष रूप से जब हम पाते हैं कि इस उर राजवंश के राजा "S'u- sen" या "सुआसिन" सुस'आ. के सुजैन थे ।
® और उन्होंने इस मुहर के साथ खुलासा किया है
सिंधु घाटी की सहायक एडिन जिले की, अपने पिता डुकिन के जीवन-काल के दौरान "प्रिंस ऑफ गुसा" के गवर्नर के रूप में विद्यमान हैं यह समय, लगभग 2350 ई.पू.।
इस तथ्य के मद्देनजर सिंधु घाटी के किले में उनके हस्ताक्षर की खोज, "साइन" डन "ड्यू-वा" या ड्यूक (सीपी।, 5912) को भी पढ़ता है।
________
4 उसका ईंट का शिलालेख सुसाह (c। के। एच। एस।, 284) में पाया गया।
8 अश्शूरियों द्वारा उन्हें डूंगी (दग्नि)का पोता बनाया गया है।
________________________________________
SARGON I. भारतीय इपिक्स के SAKUNI 63 के रूप में सगर का वर्णन है ।
बाद में उन्होंने मेसोपोटामिया में उर के राजा के रूप में शासन किया, यह माना कि उन्होंने शायद इसे एक उप-राज्यपाल को दिया था
आधिकारिक दस्तावेजों पर मुहर लगाने के लिए, और इसके बाद संरक्षित किया गया था,
सरोगोन प्रथम की तरह।
________________________
(सील VII।), शाही विरासत के रूप में
वहाँ, एडिन में।
सील स्थान "या भूमि या निवास" के लिए बुल साइन के साथ इन मुहरों पर जगह-नाम हमेशा "एडिन" नहीं होता है, जैसा कि हमने सील IV में पाया है।
इस मामले में हालांकि बुल के बाद के दो संकेत शायद "एडिन, का मतलब है।
" वे भी"एग-डू" या "एस-के" भूमि को पढ़ सकते हैं, जैसा कि डी-सिफरमेंट टेबल (चित्र 10) में देखा गया है। और हम पाएंगे कि "साका भूमि" (सुमेर के "साकी") का शीर्षक था।
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सिंधु घाटी।
सील नंबर VI।
टैक्स(दक्ष ) के आधिकारिक हस्ताक्षर, "अगदु (अबध) (अयोध्या)के सिरगाना के मंत्री"
(अयोध्या के सगर)
(अगडे के सरगुन आई)।
_________
वैदिक और भारतीय महाकाव्य Daxa (Dakska) Ajodhya के S'akuni या सागर (Agade के सरगुन प्रथम के रूपों में समानता मूलक हैं ।
अबध और अयोध्या शब्द सुमेरियन अगेड के परवर्ती रूपान्तरण ही हैं ।
यह छोटी सी सील (छवि 2, VI।), कलात्मक कौशल और तकनीक में श्रृंखला का सबसे अच्छा, और इस प्रकार संभवतः बाद में सबसे महत्वपूर्ण में से एक है,
पूरी श्रृंखला, यह प्रकट करने के लिए निश्चितता के साथ उपस्थित होती है, उनके राज्यपाल, वास्तविक दुनिया के हस्ताक्षरकर्ता द्वारा -
(सिंधु घाटी के राजा के रूप में "अगडे के सरगुन प्रथम" सम्राट)
यह समय लगभग 2800 ई.पू. से 2750 ई.पू. ; जैसा कि हमने पाया, उरुअस-खद अपने बेटे की मुहर के माध्यम से था।
और अब हम पहली बार महसूस करते हैं कि सरगोन द्वारा दावे का सच पूरी तरह से है ।
अपने समकालीन स्मारकों में, जहां उन्होंने खुद को "विश्व के चार तिमाहियों का सम्राट" की शैली दी, "लोअर सी निम्नतर समुद्र (फारस की खाड़ी और अरब सागर) की भूमि का मालिक था ।
और ऊपरी या पश्चिमी सागर (भूमध्यसागरीय), और पश्चिमी समुद्र से परे टी iw- भूमि की -प्राचीन ब्रिटेन में कैसराइड्स और कॉर्नवॉल।
_____
1सार्गोन ने सागर खुदवाऐ ये तथ्य भारतीय पुराणों की उस कथा का रूपान्तरण हैं कि सगर ने सागर खुदवाऐ
सन्दर्भ सूची:-
1 डब्ल्यूपीओबी, 160, 216 एफ।, 413 एफ।
___
64 इंडो-सुमेरियन सीटों का निर्धारण
यहाँ महत्वपूर्ण शब्द-संकेत "सर-गन-ए" या "सा-गण" के दो नामों को "आर्गन " के लिए बनाते हैं।
और "अगाडे" के लिए "अगाडे" उनकी राजधानी।
जिसका तादात्म्य भारतीय पुराणों में वर्णित अयोध्या या अवध से है ।
उनके सुमेरियन शब्द-संकेत उनके ध्वन्यात्मक मूल्यों के साथ हैं
पूर्वगामी विकृति तालिकाओं और फुट-नोट्स में उद्धृत।
यदि स्थान-नाम "एडिन" है तो यह सील के साथ श्रृंखला में है
एडिन के राजा के रूप में उरुआस (या उर-नीना)।
नाम "सरगुन आई" प्रसिद्ध प्राचीन विश्व के लिए-
सम्राट ने इसे समानता देने के लिए असीरोलॉजिस्टों द्वारा अपनाया जाता है।
___________
बाद के नाम के लिए हिब्रू नाम के साथ, सेमिटिक
अश्शूरियन राजा "सरगोन" पुराने नियम का, जिसने भेजा
यहूदियों को आठवीं शताब्दी ई.पू.
भारतीय पुराणों में सगर का वर्णन इस प्रकार है कि
अयोध्या के एक प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा जो बहुत धर्मात्मा तथा प्रजारंजक थे।
विशेष—इनका विवाह विदर्भराजकन्या केशिनी से हुआ था।
इनकी दूसरी स्त्री का नाम सुमति था।
इन स्त्रियों सहित सगर ने हिमालय पर कठोर तपस्या की। इससे संतुष्ट होकर महर्षि भृगु ने आशीर्वाद दिया कि तुम्हारी पहली स्त्री से तुम्हारा वंश चलानेवाला पुत्र होगा, और दूसरी स्त्री से ६० हजार पुत्र होंगे।
सगर की पहली स्त्री से असमंजस नामक पुत्र उत्पन्न हुआ जो बड़ा उद्धत था।
उसे सगर ने अपने राज्य से निकाल दिया।
इसके पुत्र का नाम अंशुमान था।
सगर की दूसरी स्त्री से साठ हजार पुत्र हुए।
एक बार सगर ने अश्वमेध यज्ञ करना चाहा।
अश्वमेध का घोड़ा इंद्र ने चुरा लिया और उसे पाताल में जा छिपाया।
सगर के पुत्र उसे ढुँढ़ते ढुँढ़ते पाताल में जा पहुँचे।
वहाँ महर्षि कपिल के समीप अश्व को बँधा पाकर उन्होंने उनका अपमान किया।
मुनि ने क्रुद्ध होकर उन्हें शाप देकर भस्म कर डाला। अपने पुत्रों के न आने पर सगर ने अंशुमान को उन्हे ढूँढ़ने के लिये भेजा।
अंशुमान ने पाताल में पहुँच कर मुनि को प्रसन्न किया और वहाँसे घोड़ा लेकर अयोध्या पहुँचा।
अश्वमेध यज्ञ समाप्त करके सगर ने तीस सहस्र वर्ष राज्य किया।
राजा भगीरथ इन्हीं के वंश के थे।
सुमेरियन मिथकों में भी कुछ परिवर्तन के साथ ये कथाऐं संरक्षित है।
हालाँकि, प्राचीन सम्राट ने अपने स्मारक पर अपना नाम लिखा था
ments, जिनमें से कुछ "S'ar-gu-ni" या Sar-ga-ni के रूप में जीवित रहते हैं
या "सर-गु-नी।" और बाद में सेमिटिक स्क्रिब्स ने उनका नाम लिखा
"S'ar-ru-ki-in" और S'arru-gin के रूप में, जिसमें पहला उत्तरार्द्ध था
सिलेबिक साइन को इसकी अकाडियन सेमिटिक वैल्यू दी गई है
जिसके बारे में यह माना जाता है कि इसके बजाय सरगुन प्रथम एक सेमाइट था ।
_____
सिर्फ़ इतना है कि (शास्त्री )खुद ही सेमिट थे। के लिये
"सरगुन आई।" हम पाएंगे कि सबसे प्रसिद्ध में से एक था
आर्यन सम्राट और आर्यन वैदिक राजा जैसे "उर-निना,"
"गुडिया," डूंगी, बुर-सिन, आदि।
भारतीय की तुलना में देखा था
मेसोपोटामियन के साथ प्राचीन आर्य राजाओं की महाकाव्य सूचीराजा-सूचियों कि महान आर्यन राजा "सकुनी", ने कब्जा कर लिया.
इन सूचियों के "चंद्र" संस्करण में एक सापेक्ष स्थिति
मेसोपोटामिया में "S'ar-gu-ni" के समान
राजा-सूचियों में वर्णित पात्र-
इसके अलावा, पहले और बाद के प्रमुख राजा
सरगुन प्रथम आमतौर पर दोनों सूचियों पर समान थे; और S'akuni
"बेटा" या "वंशज" "करंबा" था, जिसने सुझाव दिया
असीरोलॉजिस्टों के "नारम-सिन" से कुछ समानता है, जो
लंबे समय के लिए उसे "सरगोन आई," का "बेटा" कहा जाता है,।
हालांकि अब
वह अपने पोते के रूप में पाया जाता है,
मैं, ”हालांकि अब
वह अपने पोते के रूप में पाया जाता है, और सबसे प्रसिद्ध है
सरगॉन के "बेटे" या वंशज।
बाद में, सुमेरियन से पहली बार संशोधित करने पर और
मेसोपोटामिया के राजाओं की रीडिंग कोनीफॉर्म ग्रंथों
असीरोलॉजिस्ट द्वारा बहाल किए गए नाम, मैंने पाया कि नाम"नारम सिन" के रूप में उनके द्वारा पढ़ा गया, अन्य मान्यता प्राप्त लोगों द्वारा भी पढ़ा गया
उस राजा के नाम के शब्दांश संकेत के लिए मान
"Ka-ra-am-ba, ”और इस तरह से नाम के साथ पूरी तरह से समानता है।
भारतीय महाकाव्य राजा "बेटे" या "वंशज" के लिए सूचीबद्ध करता है
सील
सुमेरियन
ध्वन्यात्मक
= एस.बी.
1
tax.takh.lax
- <iii
SA.SIR, GAL 1 2 3
ttthhi
GUMU.GANAf
= टी>
gu, गा, हर
म-
AG.SA 4 5
क्यू <
अंजीर। 11. टैक्स (दक्ष)के हस्ताक्षर (या "डैक्स") के मंत्री
अगदु का सरगना (अगडे का सरगुन प्रथम)।पढ़ता है:
टैक्स टैक्स sa- (या सर) -gan-a (या gun-a) gu ag-du (या S'a-ki या
Edin) -as '।
Transl। : दक्ष, जमीन के सर-गण (या सा-गुना) के मंत्री
(?) अगदु (या स’की या एडिन)।
सन्दर्भ सूची:-
1. बी.डब्ल्यू।, 278, मनिसटुसु। कर मूल्य, बी।, 6165।
____
2. यह उखड़ा हुआ क्राउन चिन्ह जो मैंने एक छोर पर तने के साथ पाया है
कई बार (इस तरह मुदगला की मुहर, चित्र 5)। सा मूल्य पर, बी, 6839. यह है
सर, सी.पी. 9519, और 9521 के साथ बी, 6839 में परिभाषा में संकेत।
3. यह संकेत निश्चित लगता है। यह इस के लैपिडरी के साथ एक व्यवहारिकता है
अनुप्रस्थ रेखाओं से जुड़ने के लिए सील, सी.पी. संकेत 1 और 2. गनु मान पर,
एम।, 2011; और कर, बी।, 3813।
4. गुजरात या 'हर = "भूमि," पहले देखें।
5. यह चिन्ह डु का एक प्रकार लगता है। मैंने तुलना चिन्ह के लिए जोड़ा है
टी। डी।, 210; बी.डब्ल्यू।, 355, मूल्य अख (बी, 8290), लेकिन यह संभावना नहीं है, क्योंकि यह नहीं है
"किले, शहर या भूमि" का अर्थ अन्य सभी मुहरों पर सादृश्य चिन्ह की तरह है।
राजा सकुनी यह पहचान मात्र तक ही सीमित नहीं थी
नाम का बाहरी रूप, लेकिन जैसा कि मुझे पता है कि इनमें सामान्य है
सुमेरियन से प्राप्त संस्कृत नाम, यह भी विस्तारित हुआ
इस संस्कृत नाम के घटक सिलेबल्स में।
इस प्रकार मैं
देखा कि सिलेबिक शब्द-संकेत बा, जो सुमेरियन में है
"चंद्रमा" का अर्थ है, संस्कृत में बा का अर्थ है
________
66 इंडो-सुमेरियन मुहरों को तय किया गया रूप
SARGON के मिनिस्टर, टैक्स या DAX 65 के अनुसार
"चंद्र हवेली" और "चमक" करने के लिए b'd। और का, जोह७७ना का सुमेरियन मान है, जिसका अर्थ है "नहीं" या "नहीं", पर है
कम से कम अक्कादियान में एक सर्वनाम प्रत्यय, सान में का की तरह
विशेष रूप से नकारात्मक वाक्यों में स्किथ, जो एक सर्वनाम प्रत्यय है,
और यह भी कि एक नकारात्मक दिशा में, यानी, ह्रास का एक प्रत्यय; 1
सुमेरियन में संस्कृत में ना के बराबर = "नहीं" या "नहीं।"
संस्कृत में फिर से ए (ए) का अर्थ है "ताकत," * बस इस रूप में
सुमेरियन में Am या Ama का अर्थ "ताकत" है। * फिर से
संस्कृत में = "प्राप्त करना," 4 और सुमेरियन में = "जब्त करना,"
अर्थात्, "प्राप्त करना।" 5 इस प्रकार "करंबा" की पहचान
सुमेरियन और संस्कृत पूर्ण है; और यह दर्शाता है कि
सरगुन के प्रसिद्ध "पुत्र" या के लिए नाम का प्रामाणिक रूप
"वंशज" "नरम सिन" नहीं है, लेकिन "करंबा" है।
इसके अलावा, "सौर" (या सूर्य-उपासकों) संस्करण में
इन प्रारंभिक आर्य राजाओं की भारतीय महाकाव्य सूचियों में, जिसमें
राजा अक्सर उन लोगों से अलग (सौर) खिताब धारण करते हैं
चंद्र की सूची-अलग और अतिरिक्त के समानांतर
प्राचीन मिस्र के राजाओं द्वारा "धार्मिक पुत्र" के रूप में जन्म लिया गया
सूर्य के रूप में ”- ठीक वैसी ही सापेक्ष स्थिति
लुनार सूचियों में स'कुनी द्वारा कब्जा किया हुआ महान आता है
"विश्व-सम्राट" अजोध्या या अयोध्या का सागर, रिकॉर्ड
जिनकी विशाल विजय आमतौर पर सार्गुनी से मिलती जुलती है
या अगाडे * का सरगुन प्रथम - जो बाद का शहर-नाम प्रतीत होता है
भारतीय महाकाव्यों के अजोध्या या अयोध्या द्वारा प्रतिनिधित्व किया।
_________
राजा सरागिनी (या सरगुन) का यह "सागर" रूप
नाम वास्तव में उसकी अपनी सिंधु घाटी सील, अगले पर पाया जाता है
श्रृंखला का (VII।)। अब सौर में सागर का "बेटा"
भारतीय महाकाव्य "आसा -मंजस" है, जो स्पष्ट रूप से मेल खाता है|
सरगुन के सबसे बड़े बेटे के लिए "Manis'-tis'su या Manis'-tusu"
मेसोपोटामिया के राजा-सूची और शिलालेख। 7
____________
"सरगुन आई" की पहचान "सगिमु" के साथ अगडे
1 M.W.D., 240. 8 76।, 80. 8 एम।, 3059।
* M.W.D., 859. 8 B., 6353. 8 W.V.P., 3, 291 f।
7 उपसर्ग आसा का अर्थ संस्कृत में "चमकता" है, और इस तरह प्रतिनिधित्व कर सकता है
सुमेरियन राजाओं के नामों में सामान्य A '' या "लॉर्ड" उपसर्ग, विशेष रूप से
उस शब्द-चिह्न में किरण सूर्य का चित्र है, यानी "चमकता हुआ एक",
सील वी देखें।
_____
DAXA या DAKSHA का इतिहास
67
या एक तरफ इस सिंधु घाटी की मुहर का "सिरगाना",
और अयोध्या के आर्यन राजा शकुनि या सागर के साथ या
दूसरी ओर भारतीय महाकाव्य राजा-सूची के अजोध्या
इस प्रकार व्यावहारिक रूप से स्थापित है।
इस मुहर के "मंत्री" स्वामी का निजी नाम,
"टैक्स," उसे "टैक्स (या Dax) के साथ संभवतः पहचानता है
गोथ, "सील नंबर VIII के मालिक के पिता। और
भारतीय महाकाव्य राजकुमार सक्सेना का पुत्र, नरेश का पुत्र-
सौर रेखा का यान, जिसके वंशज S’aka, 1 कहलाते हैं
यानी, Sacae या Getae या Goths; और इस तरह के लिए खाता होगा
उस मुहर के मालिक (सं। आठवें) को "डैक्स का बेटा" कहा जा रहा है
और उसमें Guti या "जाहिल" स्टाइल किया जा रहा है।
वंशजों की दो पंक्तियाँ नरिशयंत को दी गई हैं
महाकाव्य, संभवतः दो अलग-अलग बेटों के वंशज होने के कारण।
जैसा
सौर मनु काे "पुत्र", उनके वंशज सिट्रसेना हैं,
Daxa, Midhuas (सील XIV का।) और दूसरों को सत्य-s'ravas *
(सील XVIII?) की। जबकि सौर-रेखा सम्राट के पुत्र के रूप में
मारुत (मोरीइट या अमोराइट( मरुत)के लिए एक सुमेरियन शीर्षक) * उनका
वंशज दामा (सील आठवीं की।) और अन्य नीचे हैं
त्रिनाबिंदु, विशाली के पिता; 4 और त्रिनाबिंदु को सफलता मिली
एक Daxa द्वारा "वेदों के अरक्षक" के रूप में। "
कई में व्यक्तिगत नामों में समझौते से
डक्सा के मामूली राजवंश में उन लोगों के साथ निम्नलिखित जवानों
पूर्वज, नरिशांता, (नरिष्यन्त)यह संभव लगता है कि सरगुन के बाद
इस मुहर के मंत्री कर, या उसके बेटे की मृत्यु, एक क्षुद्र की स्थापना।
_______
वैवस्वतमनोः पुत्रभेदे “वेनं धृष्णुं नरिष्यन्त नाभागेक्ष्वाकुमेव च” भा० आ० ७५ अ० । “इक्ष्वाकुर्नभग- श्चैव धृष्णुः शर्य्यातिरेव च । नरिष्यन्तोऽथ नाभागः सप्तमोऽरिष्ट उच्यते” भाग० ८ । १३ । १
सिंधु घाटी में स्वतंत्र अर्ध-स्वतंत्र राजवंश,
हालाँकि वे अपने मुहरों पर "राजा" कहलाते हैं।
इस दृष्टि से महाकाव्य का कथन है कि पौराणिक
Daxa (यानी, तस्सियो) ने असिकनी नदी से शादी की, * यानी पूर्वाग्रह
आर, * यानी, बायस
हड़प्पा के पास सिंधु की सहायक नदी, और उसका वंश
चींटियों को "हरसवास" कहा जाता था, "7 एक स्मृति पर आधारित हो सकता है
इस टैक्स की उपस्थिति या सरगुन I के Daxa मंत्री।
1 WV.P., 3, 336. 2 lb., 3, 335,
8 डब्ल्यूपीओबी, 216, 243 एफ। * डब्ल्यू.वी.पी।, 3, 245।
6 एलबी, 3, 335. 6 जेबी।, 2, 12।
7 एलबी।, 2, 12 एफ।
68-UM भारतीय-सुमेरियन क्षेत्रों का विकास हुआ
और ऊपरी सिंधु घाटी में उनके पुत्र और उनके पूर्व के
सुमेरियन वहाँ, हरसोवा के "बेटों"
सुमेरियन सम्राट उरस '(या "उर-नीना"), के संस्थापक
पहला पंच (-अला) या फोनीशियन राजवंश, उसकी राजधानी के साथ
फ़ारस की खाड़ी पर लगश या सिरलापुर के बंदरगाह पर।
"Ag-du" जगह का एक संभावित पढ़ने प्रतीत होता है-
"S'a-ki" या "Edin" के बजाय इस मुहर पर नाम।
बाद के नाम "एडिन" के लिए समग्र संकेत हमने देखा है
तीन संकेतों के होते हैं गा या Gw, "निवास स्थान" या
"भूमि," सर (या ई?) और डू (या डुन?); और वह
प्रारंभिक Ga या Gw, "निवास स्थान" या "भूमि" जाहिर है
बाद के उपसर्ग कुर "भूमि" या उरु का स्थान लेता है
"शहर", और यह कि इस शहर का नाम आगडू है,
S'aki या "एडिन" अंतिम दो शब्द-संकेतों में दी गई है। इलाज किया ।
इस तरीके से हम इस शब्द के लिए मूल्य-अग-डू, 1 पर हस्ताक्षर करते हैं!
____________
जो इस प्रकार "अगडे" का एक द्वंद्वात्मक रूप प्रतीत होगा
बाद के असीरियन "अकाडु" का स्रोत माना जाता है।
Susus की पिछली सील में भी यही रीडिंग हो सकती है
इसके स्थान-नाम के लिए।
_________'
सील सं। VII
राजा सगर के आधिकारिक हस्ताक्षर, या अगाडे के सरगुन आई।
अयोध्या का महाकाव्य राजा सगर।
यह सील (छवि 2, VII।) प्रथम-दर ऐतिहासिक महत्व की है
भारतीय और मेसोपोटामिया इतिहास दोनों के लिए, जैसा कि यह बताया गया है
अगडे के महान सम्राट सरगुन प्रथम की वास्तविक मुहर के रूप में,
विस्तृत रूप में "सागर" के अपने सौर भारतीय महाकाव्य शीर्षक के तहत
अपने "मंत्री कर" की पिछली मुहर के तहत।
ऐसा प्रतीत होता है कि उस महान सम्राट, के दौरान
उनकी विश्वव्यापी विजय, वास्तव में एडिन की उनकी कॉलोनी का दौरा किया
सिंधु घाटी, या "S'aka भूमि," के रूप में यह में कहा जाता है
भारतीय महाकाव्यों; और उसने अपनी मुहर उसके हाथों में छोड़ दी
1 दू और की के शब्द-संकेत कुछ में लगभग अप्रभेद्य हैं
उनके प्रारंभिक रूप।
इसके अलावा, राजा सगर में दर्ज तथ्य भी है
भारतीय महाकाव्यों कि उन्होंने शक को जीत लिया। 1 और यह है!
आगे ने दर्ज किया कि सजा के रूप में, "वह com that
S'akas को उनके सिर के ऊपरी (ऊपरी) दाढ़ी बनाने के लिए, "1।"
एक ऐसे लोगों के लिए अपमानजनक सजा, जो खुद को सजा देते थे
जैसा कि सैके या गोथ्स ने अपने लंबे ताले में किया था।
सील नं। आठवीं।
दामू (या गुदामा) की आधिकारिक हब॒स्ताक्षर गुटी या "गोथ"
डैक्स का बेटा 'हर (-आर)।
सक्सस (या गोथ्स) की डेक्सा लाइन का महाकाव्य दामा।
यह मुहर (चित्र 2, VIII।) "द साइन" प्रतीत होती है
योद्धा दामू ”जो शायद महाकाव्य के समान था
Daxa S'aka की पंक्ति के राजकुमार दामा, में संदर्भित
सील VI पर नोट्स, और जो संभवतः के मालिक थे
वह सील।
वैयक्तिकरण तालिका से देखा गया व्यक्तिगत नाम
"योद्धा दामु" पढ़ सकते हैं और यह प्रतीत होता है
पत्राचार Dax और
जातीय शीर्षक "गुति" या "गोथ।" यदि पहला शब्द-चिन्ह गु
नाम के पहले शब्दांश के रूप में लिया जाता है, बाद वाला होगा
गुडामु को पढ़ें, जो वैदिक और महाकाव्य नाम से समान है
"गोटामा," द्रष्टा-तमस (या "औसीजा") का शीर्षक
सील्स I
ऌऔर IV में किसे संदर्भित किया गया है। ; और किसका
वंशज औसिजस को "गोतमस" भी कहा जाता था
और सिंधु घाटी की मुहरों में पाए जानते हैं; और नाम है
परिवार के नाम के रूप में, बर्मीज़ पाली में "गोइयामा" लिखा
बुद्ध का, साख्य जनजाति का द्रष्टा। "गदामा" (के रूप में)
तक
न
सुमेरियन और संस्कृत पूर्ण है; और यह दर्शाता है कि
सरगुन के प्रसिद्ध "पुत्र" या के लिए नाम का प्रामाणिक रूप
"वंशज" "नरम सिन" नहीं है, लेकिन "करंबा" है।
इसके अलावा, "सौर" (या सूर्य-उपासकों) संस्करण में
इन प्रारंभिक आर्य राजाओं की भारतीय महाकाव्य सूचियों में, जिसमें
राजा अक्सर उन लोगों से अलग (सौर) खिताब धारण करते हैं
चंद्र की सूची-अलग और अतिरिक्त के समानांतर
प्राचीन मिस्र के राजाओं द्वारा "धार्मिक पुत्र" के रूप में जन्म लिया गया
सूर्य के रूप में ”- ठीक वैसी ही सापेक्ष स्थिति
लुनार सूचियों में स'कुनी द्वारा कब्जा किया हुआ महान आता है।
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"विश्व-सम्राट" अजोध्या या अयोध्या का सागर, रिकॉर्ड
जिनकी विशाल विजय आमतौर पर सार्गुनी से मिलती जुलती है
या अगाडे * का सरगुन प्रथम - जो बाद का शहर-नाम प्रतीत होता है
भारतीय महाकाव्यों के अजोध्या या अयोध्या द्वारा प्रतिनिधित्व किया।
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राजा सरागिनी (या सरगुन) का यह "सागर" रूप
नाम वास्तव में उसकी अपनी सिंधु घाटी सील, अगले पर पाया जाता है
श्रृंखला का (VII।)। अब सौर में सागर का "बेटा"
भारतीय महाकाव्य "आसा -मंजस" है, जो स्पष्ट रूप से मेल खाता है
सरगुन के सबसे बड़े बेटे के लिए "Manis'-tis'su या Manis'-tusu" नाम मेसोपोटामिया के राजा-सूची और शिलालेख। 7
"सरगुन आई" की पहचान "सगिमु" के साथ अगडे
1 M.W.D., 240. 8 76।, 80. 8 एम।, 3059।
* M.W.D., 859. 8 B., 6353. 8 W.V.P., 3, 291 f।
7 उपसर्ग आसा का अर्थ संस्कृत में "चमकता" है, और इस तरह प्रतिनिधित्व कर सकता है
सुमेरियन राजाओं के नामों में सामान्य A '' या "लॉर्ड" उपसर्ग, विशेष रूप से
उस शब्द-चिह्न में किरण सूर्य का चित्र है, यानी "चमकता हुआ एक",
सील वी देखें।
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DAXA या DAKSHA का इतिहास
67
या एक तरफ इस सिंधु घाटी की मुहर का "सिरगाना",
और अयोध्या के आर्यन राजा शकुनि या सागर के साथ या दूसरी ओर भारतीय महाकाव्य राजा-सूची के अजोध्या इस प्रकार व्यावहारिक रूप से स्थापित है।
इस मुहर के "मंत्री" स्वामी का निजी नाम,
"टैक्स," उसे "टैक्स (या Dax) के साथ संभवतः पहचानता है
गोथ, "सील नंबर VIII के मालिक के पिता।
और
भारतीय महाकाव्य राजकुमार सक्सेना का पुत्र, नरेश का पुत्र-
सौर रेखा का यान, जिसके वंशज S’aka, 1 कहलाते हैं
यानी, Sacae या Getae या Goths; और इस तरह के लिए खाता होगा
उस मुहर के मालिक (सं। आठवें) को "डैक्स का बेटा" कहा जा रहा है
और उसमें Guti या "जाहिल" स्टाइल किया जा रहा है।
वंशजों की दो पंक्तियाँ नरिशयंत को दी गई हैं
महाकाव्य, संभवतः दो अलग-अलग बेटों के वंशज होने के कारण। जैसा
सौर मनु के "पुत्र", उनके वंशज सिट्रसेना हैं,
Daxa, Midhuas (सील XIV का।) और दूसरों को सत्य-s'ravas *
(सील XVIII?) की। जबकि सौर-रेखा सम्राट के पुत्र के रूप में
मारुत (मोरीइट या अमोराइट के लिए एक सुमेरियन शीर्षक) * उनका
वंशज दामा (सील आठवीं की।) और अन्य नीचे हैं
त्रिनाबिंदु, विशाली के पिता; 4 और त्रिनाबिंदु को सफलता मिली
एक Daxa द्वारा "वेदों के अरक्षक" के रूप में। "
कई में व्यक्तिगत नामों में समझौते से
डक्सा के मामूली राजवंश में उन लोगों के साथ निम्नलिखित जवानों
पूर्वज, नरिशांता, यह संभव लगता है कि सरगुन के बाद
इस मुहर के मंत्री कर, या उसके बेटे की मृत्यु, एक क्षुद्र की स्थापना
सिंधु घाटी में स्वतंत्र अर्ध-स्वतंत्र राजवंश,
हालाँकि वे अपने मुहरों पर "राजा" कहलाते हैं।
इस दृष्टि से महाकाव्य का कथन है कि पौराणिक
Daxa (यानी, तस्सियो) ने असिकनी नदी से शादी की, * यानी पूर्वाग्रह
आर, * यानी, बायस
हड़प्पा के पास सिंधु की सहायक नदी, और उसका वंश
चींटियों को "हरसवास" कहा जाता था, "7 एक स्मृति पर आधारित हो सकता है
इस टैक्स की उपस्थिति या सरगुन I के Daxa मंत्री।
1 WV.P., 3, 336. 2 lb., 3, 335,
8 डब्ल्यूपीओबी, 216, 243 एफ। * डब्ल्यू.वी.पी।, 3, 245।
6 एलबी, 3, 335. 6 जेबी।, 2, 12।
7 एलबी।, 2, 12 एफ।
भारतीय-सुमेरियन क्षेत्रों का विकास हुआ
और ऊपरी सिंधु घाटी में उनके पुत्र और उनके पूर्व के
सुमेरियन वहाँ, हरसोवा के "बेटों"
सुमेरियन सम्राट उरस '(या "उर-नीना"), के संस्थापक
पहला पंच (-अला) या फोनीशियन राजवंश, उसकी राजधानी के साथ
फ़ारस की खाड़ी पर लगश या सिरलापुर के बंदरगाह पर।
राम, सीता ,लक्ष्मण, दशरथ व रावण सुमेरियन मिथकों में वर्णित पात्र हैं ।
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मुहर सख्या०(58) भारतीय तथा-सुमेरियन क्षेत्रों की स्थापना
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या "उर इंगुर", और "डूंगी" या (S'amu-Dukgin) के पिता
भारतीय महाकाव्यों में वर्णित "जमदग्नि ( कुशिक) थे ।
____
संस्कृत में कुशिक:- (कुशः कुशनामा नृपः जनकत्वेनास्त्यस्य ठन् ) ।
कुशिक:-एक राजा जो विश्वामित्र के पितामह और गाधि के पिता थे ।
______
गाधि नृपजनके विश्वामित्रपितामहे नृपभेदे तत् कथा यथा “कान्यकुब्जे महानासीत् पार्थिवो भरतर्षभ!
गाधीति विश्रुतो लोके कुशिकस्यात्मसम्भवः ।
तस्य धर्म्मात्मनः पुत्रः समृद्धबलवाहनः ।
विश्वामित्र इति ख्यातो बभूव ।
भागवत- ७४ अ०
“कुशवंशप्रसुतोऽस्मि कौशिको रघुनन्दन!” रामायण “कुशिकस्यात्मजः श्रीमान् गाधिर्नाम जनेश्वरः ।
भागवत अ० ४
एक प्राचीन वंश विश्वमित्र जी इसी वंश के थे ।
कुशिक राजा विश्वामित्र पितामह और गाधि के पिता थे ।
विशेष—महाभारत में लिखा है
कि जब च्यवन ऋषि को ध्यान से यह विदित हुआ कि कुशिक वंश के द्वारा उनके वंश में क्षत्रिय धर्म का संचार होगा, तब उन्होंने कुशित वंश को भस्म करना विचारा और वे राजा कुशिक के पास गए ।
बहुत दिनों तक अनेक प्रकार के कष्ट देने पर भी जब राजा और रानी में उन्होंने शाप देने के लिये कोई छिद्र (दोष) न पाया तब उन्होने प्रसन्न होकर राजा कुशिक की वर दिया कि तुम्हारा पौत्र ब्राह्मणत्व लाभ करेगा
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जमदग्नि एक प्राचीन गोत्रकार वैदिक ऋषि जिनकी गणना सप्तर्षियों में की जाती है ।
ये भृगुवंशी ऋचीक ऋषि के पुत्र थे ।
विशेष—वेदों में जमदग्नि के बहुत से मन्त्र मिलते हैं ।
ऋग्वेद के अनेक मन्त्रों से जाना जाता है कि विश्वामित्र के साथ ये भी वशिष्ठ के विपक्षी थे ।
ऐतरेय ब्राह्मण हरिश्रंद्रोपाख्यान में लिखा है कि हरिश्चंद्र के नरमेध यज्ञ में ये अध्वर्यु हुए थे ।
जमदग्नि का जिक्र महाभारत, हरिवंश और विष्णुपुराण में आया है ।
इनकी उत्पति के संबंध में लिखा है कि ऋचीक ऋषि ने अपनी स्त्री सत्यवती, जो राजा गाधि की कन्या थी, तथा उनकी माता के लिये भिन्न गुणों वाले दो चरु तैयार किए थे ।
दोनों चरु अपनी स्त्री सत्यवती को देकर उन्होंने बतला दिया था कि ऋतुस्नान के उपरान्त यह चरु तुम खा लेना और दूसरा चरु
अपनी माता को खिला देना ।
सत्यवती ने दोनों चरु अपनी माता को देकर उसके संबंध में सब बातें बतला दीं ।
उसकी माता ने यह समझकर कि ऋचीक ने अपनी स्त्री के लिये अधिक उत्तम गुणोंवाला पुत्र उत्पन्न करने के लिये चरु तेयार किया होगा, !
उसका चरु स्वयं खा लिया और अपना चरु उसे खिला दिया ।
जब दोनों गर्भवती हुई, तब ऋचीक ने अपनी स्त्री के नक्षत्र देखकर समझ लिया कि चरु बदल गया है ।
ऋचीक ने उससे कहा कि मैंने तुम्हारे गर्भ से ब्रह्मनिष्ठ पुत्र और तुम्हारी माता के गर्भ से महाबली और क्षात्र गुणोंवाला पुत्र उत्पन्न करने के लिये चरु तैयार किया था;
पर तुम लोगों ने चरु बदल लिया ।
इस पर सत्यवती ने दुःखी होकर अपने पति से कोई ऐसा प्रयत्न करने की प्रार्थना की जिसमें उसके गर्भ से उग्र क्षत्रिय न उत्पन्न हो; और यदि उसका उत्पन्न होना अनिवार्य ही हो तो वह उसकी पुत्रवधू के गर्भ से उत्पन्न हो
तदनुसार सत्यवती के गर्भ से जमदग्नि और उसकी माता के गर्भ से विश्वामित्र का जन्म हुए ।
इसीलिये जमदग्नि में भी बहुत से क्षत्रियोचित गुण थे ।
जमदग्नि ने राजा प्रसेनजित् की कन्या रेणुका से विवाह किया था और उसके गर्भ से उन्हें पाँच पुत्र प्राप्त हुए :-
1-रुमण्वान्,
2-सुषेण,
3-वह,
4-विश्वाबहु और
5-परशुराम नाम के पाँच पुत्र उत्पन्न हुए थे ।
ऋचीक के चरु के प्रभाव से उनमें से परशुराम में सभी क्षत्रियोचित गुण थे ।
जमदग्नि की मृत्यु के संबंध में विष्णुपुराण में लिखा है कि एक बार हैहयवंश के यादवों के राजा कार्तवीर्य उनके आश्रम से उनकी कामधेनु ले गए थे ।
इस पर परशुराम ने उनका पीछा करके उनके हजार हाथ काट डाले ।
जब कातवीर्य के पुत्रों को यह बात मालूम हुई, तब लोगों ने जमदग्नि के आश्रम पर जाकर उन्हें मार डाला ।
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अब देखें सुमेरियन मिथकों में
भारतीय पुराणों के समान कथाऐं वर्णित हैं :-👇
गुडिया के पुत्री का विवाह उरु के साथ सम्पन्न हो गया, क्योंकि गुडिया का पुत्र विश्वमित्र एक समर्पित सूर्य बन गया था-
सुमेरियन मुहर पर "गुसा" शीर्षक के द्वारा उपयोग (यदि यह वहां हो), क्षेत्रीय अर्थ में प्रतीत होता है।
यह शब्द कुशिक का रूपान्तरण ही है ।
सुमेरियन मिथकों में सुषेण नाम भी है जो विश्वामित्र के भाई हैं ।
भारतीय महाकाव्य से "कुसआ" (कुशिक ) और "उरु" (और्व) राजवंशों की वंशावली।
कुसआ, कुस’का या कुसिका वंश का संस्थापक, जाह्नु वंश परम्परा का बालक।
कुसम्बा या कुसिका, उसका पुत्र।
गधी [गुडि़या या "गुडिया"] उनका पुत्र।
विश्वामित्र, पुत्र, सत्यवती का, पुत्री, विवाहित ऋषि उरु-ऋक्ल्का सूर्य-पुजारी, बिरगू (भृग) बने।
जमदग्नि और उनके पुत्र सहित रेणुका ने नरमेध का विरोध किया था ।
सुमेरियन मिथकों में वर्णन:-
1-परसु-राम, 2*रुमानवत, 3-सुसेना, 4-वासु, 5-विस्वा वासु।
भारतीय पुराणों में भी ये नाम यथावत वर्णित हैं
रुमण्वान्, 2-सुषेण, 3-वह, 4-विश्वाबहु और 5-परशुराम नाम के पाँच पुत्र ।
निम्नलिखित राजा की सूची "गुडिया" (पृष्ठ ५ ९) और "उर"
भारतीय महाकाव्य से राजवंश,
2 नामों के साथ तुलना की
सुमेरियन राजा-सूचियों और स्मारकों की अपेक्षा से पता चलता है कि भारतीय महाकाव्यों ने कितनी ईमानदारी से ये कथाऐं संरक्षित हैं
ये सुमेरियन नाम उन लोगों की तुलना में हैं जिन्हें असीरोलॉजिस्ट ने "बहाल" किया था।
असीरी ही भारत-सुमेरियन असुर या अस्सुर हैं ।
यह तुलना अन्य बातों के अलावा खुलासा करती है कि गुडिय़ा के वंश के संस्थापक सुमेर का नाम कुस 'जैसा कि भारतीय महाकाव्यों में दर्ज किया गया था; और उस के संस्थापक
"उर" राजवंश, सुमेरियन के उरुस्ज़िकम भारतीय महाकाव्यों का उरु-रिका (ऋचीक)था, जो उन्हें गधी या गुड़िया का दामाद बनाते हैं।🌸
यह भी प्रतीत होता है कि "उरुअस-निन गिरसु", सूची में चौथे, तथाकथित राजा "उर के निंगिरसु" हैं।
रानी थी और राजा नहीं।
महाकाव्य में इस स्थान पर कब्जा है!
गधी (गुड़िया) की पुत्री की सूची, जिसका व्यक्तिगत नाम।
अप्राप्त है ।
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सन्दर्भ :-1 डब्ल्यू.वी.पी।, 4, 15 एफ।, 28. 2 नोट I देखें।
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गाधि और और्व (गुडिया और उर) डायनेस्टी इन इंडिया ईपिक्स (59)
"गुडिया" और "उर" राजवंशों की राजा-सूची
सुमेरियन के साथ तुलना में भारतीय महाकाव्यों के साथ।
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भारतीय महाकाव्यों में और
सुमेरियन में समान-नाम।
1. कुसु, s। बालको का।
उरु-अस-बा कुस ’।
उर-Bau।
2. कुशंभ, एस।
1 का।
ख़ास'उ -माह'-इया
नम्माखनी, एस। की मैं
3. गाधी, स। 2 का।
गु-डाई-एक।
गुडिया, एस। 2 का।
4. सत्य-वति, पुत्री
3- का
उरु-अस-निन गिर-सु।
उर-निंगिरसु, एस। 3 का।
5. वृ-ऋिका, पति। 4 का।
युरू-as'-zikum।
उर - नम्मू (इंगुर)
_______
उर वंश का संस्थापक।
भूगुवंश्ये ऋषिभेदे ।
भृगुवंशी ऋषि और्व हैं ।
6. जामा-डेग्नि, एस। 4 का
और 5।
(स'मु) 3 डक-जिन।
डूंगी, एस। 5 का।
7. पारसु राम, एस। 6 का।
बर-अस-सिन (या पुर-
as'-सिन)।
बर सिन आई।, एस। 6 का।
8. सुशीना, ब्र। 7 का।
S'u-as'- sin (or -en-zu)
गिमिल सिन।
सत्यवती और जिसने बाद में "उर" राजवंश की स्थापना करने वाले (B'rigu) भृगु पुजारी उरु से शादी की, और बन गया डूंगी की माँ।
"उरु-अस-निन गिरसू" शीर्षक का अर्थ है "उरुआ की महिला (नौ) '(सौर परी का एक शीर्षक)
गिरसी पर तसी) ”-गिरसु सुरपुर के उपनगर होने के नाते,
जहां मुख्य मंदिर स्थित थे।
यह तथ्य समझाता है कि उरुअस-निन-गिरसू को स्मारकों पर स्टाइल के लिए क्यों पाया जाता है
"सिरपुरला के पाटैसी परस्तिश या पुजारी)," जैसा वह था
जाहिर तौर पर उसके पिता गुडिय़ा के नेतृत्व में सौर पुजारिन का कार्य यह भी बताएगा कि कैसे (संभवतः उसकी शादी के बाद (उरु) उसे "देवता की पुजारी (नीस) नीना," और कैसे स्टाइल किया जाता है।
_______
सन्दर्भ सूची(1 कैम्ब्रिज ए.सी. हिस्ट।, बेबीलोनिया, 1924, पैसिम।)
3 सुमेरियन में इस शब्द-चिन्ह में सिम और नाम एक है जो खो गया।
जैसा कि अक्कड़ी के पर्यायवाची में खसु है, मैंने इस
3 ड्यूकिन में उपसर्ग है "" भगवान "=" परमात्मा "या" स्वर्ग ", जो
अक्कड़ का मूल्य S'amu है, जो स्पष्ट रूप से संस्कृत द्वारा अपनाया गया है
के रूप में नहीं, इस प्रकार "सेमिटिक" प्रभाव दिखा रहा है।
सोम से ही सोमवंश की अवधारणा का विकास हुआ ।
६०- इंडो-सुमेरियन मुहरों की स्थापना
उसने एक खूबसूरत नक्काशीदार महिला की भेंट चढ़ाया
ब्रिटिश संग्रहालय में अब एक "देवी" के लिए डायराइट में सहवास।
इस प्रकार ऐसा प्रतीत होता है कि गुडि़या ने धर्म के प्रति अपनी भक्ति-भावना के कारण, अपने दोनों पुत्रों (विश्वा-मित्र और मित्र) को बनाया।
और बेटी धार्मिक भक्त, थी और इसलिए अपने राजवंश के लिए अपना राज्य खो दिया।
(Bur Sin I., "ठीक से Bur as'- Sin )या Pur as'-Sin, धर्मांधता के ऐतिहासिक मूल के रूप में -बंद है!
भारतीय महाकाव्यों के पारसु राम, जिन्होंने अपनी मां को मार डाला
(संभवतः एक सूर्य-उपासक), थे और सूर्य का संहार किया-
"हरतिस्वा" के "खत्यो" राजकुमारों की पूजा
और अन्य समकालीन राजवंश।
और वह अभी भी माना जाता है
भारतीय ब्राह्मणों के बीच एक लोकप्रिय नायक के रूप में ब्राह्मण जाति को "खतियो" या शासक जाति से ऊपर उठाने के लिए,अपनी कुल्हाड़ी के माध्यम से, जिसे वह एक आम में दर्शाया गया है।
परशुराम के द्वारा क्षत्रिय संहार की अवधारणा का विकास सुमेरियन मिथकों की इन कथाओं से हुआ ।
सुमेरियन मिथकों में वर्णित खत्ती ही क्षत्रिय है ।
उसका नाम पारसु ब्रह्मणों द्वारा प्रस्तुत किया गया है "कुल्हाड़ी।"
"सिन" के बजाय अपने नाम राम के दूसरे भाग को बुलाने में, ऐसा लगता है कि बाद में संपादित करने वाले भारतीय ब्राह्मण थे ।
________
महाकाव्य का उद्देश्य "राम" है, जिसका संस्कृत में अर्थ है
मैं "डार्क, ब्लैक, नाइट," सुमेरियन सिन के पर्याय के रूप में,अर्थ "चंद्रमा," अंधेरे का, या उसके "काले" नरसंहार को व्यक्त करने के लिए।
परसु राम, हालांकि बाद के ब्राह्मणों द्वारा सूर्य-देवता विष्णु के एक काले अवतार के रूप में बनाए गए थे, जिनमें से कुछ में सूर्य-पूजा का संबंध है।
प्रथमत: वेदों में उनके लिए दिया गया भजन मुख्य रूप से विभिन्न महिलाओं का आह्वान है।
_____💞
देवताओं, जिनमें बरती (भरत) और रात और सुबह शामिल हैं; और भीमानव बलिदानों के बारे में उनकी पेशकश को संदर्भित करता है,।
दूसरा जो घृणित था सूर्य-उपासकों को।
वह इस प्रकार एक प्रतिक्रिया के रूप में देखा गया है
देव संस्कृति के आर्य पुजारी-राजा जिन्होंने अपने धर्म में "सेमेटिक" शैलेडियन (कैल्डियन)आदिवासियों की मातृसत्तात्मक पूजा को शामिल किया था।
वह भी महिला देवताओं और खूनी बलिदानों के साथ। यह सूर्य-पूजा करने वाले (हरसावस) के उनके नरसंहार के बारे में बताता है, और उनके अंदर की मनोविश्लेषण को ...
सन्दर्भ सूची:-
1 आर.वी., आईओ, नं। 2 76।, वी, आईओ,
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PARASU- RAM उर 61 के "बूर साइन" के रूप में
गुडिय़ा के बेटे सौर पुजारी विश्व मित्रा से शत्रुता रखते हैं, जो विशेष रूप से महाकाव्य में विरोध के रूप में प्रतिनिधित्व करते हैं ।
Fio। io.-पारसु राम या "कुल्हाड़ी के राम" (बर-के रूप में ' सिन, या पुर-के रूप में' सिन आई, उर वंश का)।
राजाओं की हरसुवा की रेखा और ब्राह्मणों के वनवासियों के रूप में।
(मूर के हिंदो पंथियन में अठारहवीं सदी की तस्वीर के बाद।)
62 इंडो-सुमेरियन सीलों का निर्धारण
उरु वंश का मानव बलिदान के रिकॉर्ड
"बर-सिन आई," जो अभी भी स्मारकों पर मौजूद हैं,
इस चरित्र को ध्यान में रखते हुए हैं; हालांकि उन्होंने मरम्मत की निप्पुर शहर में प्राचीन सूर्य-मंदिर उन्होंने अपनी ऊर्जा को मुख्य रूप से चंद्रमा पंथ और उसके देवी-देवताओं को समर्पित किया, जो "कलडियों के उर" में थे।
जो अब समृद्ध ऐतिहासिक के साथ खुदाई की जा रही है
(मिस्टर वोले )के तहत ब्रिटिश संग्रहालय और पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के संयुक्त अभियान द्वारा परिणाम।
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"डूंगी" नाम भारतीय महाकाव्य में "दग्नि" के रूप में उपसर्ग "जामा" के रूप में प्रकट होता है, ताकि "जामा-दग्नी" को पढ़ा जा सके।
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"इससे पता चलता है कि सुमेरियन नाम को डुक-जिन को पढ़ा जाना चाहिए, 1 हालांकि बाद में ब्राह्मणों को संस्कृत के शब्द अग्नि से इसका कुछ अर्थ लगता है,"
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आग ”(सुमेरियन Ag =" आग भीतर "), क्योंकि आग एक आवश्यक थी
B'rigus के पंथ का हिस्सा उपसर्ग "जामा" स्पष्ट रूप से सुमेरियन उपसर्ग का प्रतिनिधित्व करता है 'आमतौर पर डूंगी द्वारा नियोजित, और अर्थ, जैसा कि हमने मुदगाला की मुहर में देखा है;
_____
"भगवान" ("दिव्य और स्वर्ग" भी), और इसमें स्याम का अक्काद पर्याय है; ऐसा प्रतीत होता है कि डूंगी को उनके सेमिटिक, चेल्दी विषयों और द्वारा बुलाया गया था
उनके बेटे परसु राम के अनुयायी "सुमू डुकिन,"✍💥
जिससे बाद में ब्रह्मणों ने "जमदग्नि" बनाया।
इस मुहर के S'us'ena इस प्रकार सुशीना दूसरा शब्द साबित होता है
भारतीय महाकाव्यों के "जमदग्नि" के पुत्र और समान
उर राजवंश के राजा S'u- sin या S'uas'- sin या S'uas'enzu के साथ, और राज्य के "S'us'ena" के साथ भी समानता है ।
सुसा के राजा का उल्लेख किया गया है, विशेष रूप से जब हम पाते हैं कि इस उर राजवंश के राजा "S'u- sen" या "सुआसिन" सुस'आ. के सुजैन थे ।
® और उन्होंने इस मुहर के साथ खुलासा किया है
सिंधु घाटी की सहायक एडिन जिले की, अपने पिता डुकिन के जीवन-काल के दौरान "प्रिंस ऑफ गुसा" के गवर्नर के रूप में विद्यमान हैं यह समय, लगभग 2350 ई.पू.।
इस तथ्य के मद्देनजर सिंधु घाटी के किले में उनके हस्ताक्षर की खोज, "साइन" डन "ड्यू-वा" या ड्यूक (सीपी।, 5912) को भी पढ़ता है।
________
4 उसका ईंट का शिलालेख सुसाह (c। के। एच। एस।, 284) में पाया गया।
8 अश्शूरियों द्वारा उन्हें डूंगी (दग्नि)का पोता बनाया गया है।
________________________________________
SARGON I. भारतीय इपिक्स के SAKUNI 63 के रूप में सगर का वर्णन है ।
बाद में उन्होंने मेसोपोटामिया में उर के राजा के रूप में शासन किया, यह माना कि उन्होंने शायद इसे एक उप-राज्यपाल को दिया था
आधिकारिक दस्तावेजों पर मुहर लगाने के लिए, और इसके बाद संरक्षित किया गया था,
सरोगोन प्रथम की तरह।
________________________
(सील VII।), शाही विरासत के रूप में
वहाँ, एडिन में।
सील स्थान "या भूमि या निवास" के लिए बुल साइन के साथ इन मुहरों पर जगह-नाम हमेशा "एडिन" नहीं होता है, जैसा कि हमने सील IV में पाया है।
इस मामले में हालांकि बुल के बाद के दो संकेत शायद "एडिन, का मतलब है।
" वे भी"एग-डू" या "एस-के" भूमि को पढ़ सकते हैं, जैसा कि डी-सिफरमेंट टेबल (चित्र 10) में देखा गया है। और हम पाएंगे कि "साका भूमि" (सुमेर के "साकी") का शीर्षक था।
___________
सिंधु घाटी।
सील नंबर VI।
टैक्स(दक्ष ) के आधिकारिक हस्ताक्षर, "अगदु (अबध) (अयोध्या)के सिरगाना के मंत्री"
(अयोध्या के सगर)
(अगडे के सरगुन आई)।
_________
वैदिक और भारतीय महाकाव्य Daxa (Dakska) Ajodhya के S'akuni या सागर (Agade के सरगुन प्रथम के रूपों में समानता मूलक हैं ।
अबध और अयोध्या शब्द सुमेरियन अगेड के परवर्ती रूपान्तरण ही हैं ।
यह छोटी सी सील (छवि 2, VI।), कलात्मक कौशल और तकनीक में श्रृंखला का सबसे अच्छा, और इस प्रकार संभवतः बाद में सबसे महत्वपूर्ण में से एक है,
पूरी श्रृंखला, यह प्रकट करने के लिए निश्चितता के साथ उपस्थित होती है, उनके राज्यपाल, वास्तविक दुनिया के हस्ताक्षरकर्ता द्वारा -
(सिंधु घाटी के राजा के रूप में "अगडे के सरगुन प्रथम" सम्राट)
यह समय लगभग 2800 ई.पू. से 2750 ई.पू. ; जैसा कि हमने पाया, उरुअस-खद अपने बेटे की मुहर के माध्यम से था।
और अब हम पहली बार महसूस करते हैं कि सरगोन द्वारा दावे का सच पूरी तरह से है ।
अपने समकालीन स्मारकों में, जहां उन्होंने खुद को "विश्व के चार तिमाहियों का सम्राट" की शैली दी, "लोअर सी निम्नतर समुद्र (फारस की खाड़ी और अरब सागर) की भूमि का मालिक था ।
और ऊपरी या पश्चिमी सागर (भूमध्यसागरीय), और पश्चिमी समुद्र से परे टी iw- भूमि की -प्राचीन ब्रिटेन में कैसराइड्स और कॉर्नवॉल।
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1सार्गोन ने सागर खुदवाऐ ये तथ्य भारतीय पुराणों की उस कथा का रूपान्तरण हैं कि सगर ने सागर खुदवाऐ
सन्दर्भ सूची:-
1 डब्ल्यूपीओबी, 160, 216 एफ।, 413 एफ।
___
64 इंडो-सुमेरियन सीटों का निर्धारण
यहाँ महत्वपूर्ण शब्द-संकेत "सर-गन-ए" या "सा-गण" के दो नामों को "आर्गन " के लिए बनाते हैं।
और "अगाडे" के लिए "अगाडे" उनकी राजधानी।
जिसका तादात्म्य भारतीय पुराणों में वर्णित अयोध्या या अवध से है ।
उनके सुमेरियन शब्द-संकेत उनके ध्वन्यात्मक मूल्यों के साथ हैं
पूर्वगामी विकृति तालिकाओं और फुट-नोट्स में उद्धृत।
यदि स्थान-नाम "एडिन" है तो यह सील के साथ श्रृंखला में है
एडिन के राजा के रूप में उरुआस (या उर-नीना)।
नाम "सरगुन आई" प्रसिद्ध प्राचीन विश्व के लिए-
सम्राट ने इसे समानता देने के लिए असीरोलॉजिस्टों द्वारा अपनाया जाता है।
___________
बाद के नाम के लिए हिब्रू नाम के साथ, सेमिटिक
अश्शूरियन राजा "सरगोन" पुराने नियम का, जिसने भेजा
यहूदियों को आठवीं शताब्दी ई.पू.
भारतीय पुराणों में सगर का वर्णन इस प्रकार है कि
अयोध्या के एक प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा जो बहुत धर्मात्मा तथा प्रजारंजक थे।
विशेष—इनका विवाह विदर्भराजकन्या केशिनी से हुआ था।
इनकी दूसरी स्त्री का नाम सुमति था।
इन स्त्रियों सहित सगर ने हिमालय पर कठोर तपस्या की। इससे संतुष्ट होकर महर्षि भृगु ने आशीर्वाद दिया कि तुम्हारी पहली स्त्री से तुम्हारा वंश चलानेवाला पुत्र होगा, और दूसरी स्त्री से ६० हजार पुत्र होंगे।
सगर की पहली स्त्री से असमंजस नामक पुत्र उत्पन्न हुआ जो बड़ा उद्धत था।
उसे सगर ने अपने राज्य से निकाल दिया।
इसके पुत्र का नाम अंशुमान था।
सगर की दूसरी स्त्री से साठ हजार पुत्र हुए।
एक बार सगर ने अश्वमेध यज्ञ करना चाहा।
अश्वमेध का घोड़ा इंद्र ने चुरा लिया और उसे पाताल में जा छिपाया।
सगर के पुत्र उसे ढुँढ़ते ढुँढ़ते पाताल में जा पहुँचे।
वहाँ महर्षि कपिल के समीप अश्व को बँधा पाकर उन्होंने उनका अपमान किया।
मुनि ने क्रुद्ध होकर उन्हें शाप देकर भस्म कर डाला। अपने पुत्रों के न आने पर सगर ने अंशुमान को उन्हे ढूँढ़ने के लिये भेजा।
अंशुमान ने पाताल में पहुँच कर मुनि को प्रसन्न किया और वहाँसे घोड़ा लेकर अयोध्या पहुँचा।
अश्वमेध यज्ञ समाप्त करके सगर ने तीस सहस्र वर्ष राज्य किया।
राजा भगीरथ इन्हीं के वंश के थे।
सुमेरियन मिथकों में भी कुछ परिवर्तन के साथ ये कथाऐं संरक्षित है।
हालाँकि, प्राचीन सम्राट ने अपने स्मारक पर अपना नाम लिखा था
ments, जिनमें से कुछ "S'ar-gu-ni" या Sar-ga-ni के रूप में जीवित रहते हैं
या "सर-गु-नी।" और बाद में सेमिटिक स्क्रिब्स ने उनका नाम लिखा
"S'ar-ru-ki-in" और S'arru-gin के रूप में, जिसमें पहला उत्तरार्द्ध था
सिलेबिक साइन को इसकी अकाडियन सेमिटिक वैल्यू दी गई है
जिसके बारे में यह माना जाता है कि इसके बजाय सरगुन प्रथम एक सेमाइट था ।
_____
सिर्फ़ इतना है कि (शास्त्री )खुद ही सेमिट थे। के लिये
"सरगुन आई।" हम पाएंगे कि सबसे प्रसिद्ध में से एक था
आर्यन सम्राट और आर्यन वैदिक राजा जैसे "उर-निना,"
"गुडिया," डूंगी, बुर-सिन, आदि।
भारतीय की तुलना में देखा था
मेसोपोटामियन के साथ प्राचीन आर्य राजाओं की महाकाव्य सूचीराजा-सूचियों कि महान आर्यन राजा "सकुनी", ने कब्जा कर लिया.
इन सूचियों के "चंद्र" संस्करण में एक सापेक्ष स्थिति
मेसोपोटामिया में "S'ar-gu-ni" के समान
राजा-सूचियों में वर्णित पात्र-
इसके अलावा, पहले और बाद के प्रमुख राजा
सरगुन प्रथम आमतौर पर दोनों सूचियों पर समान थे; और S'akuni
"बेटा" या "वंशज" "करंबा" था, जिसने सुझाव दिया
असीरोलॉजिस्टों के "नारम-सिन" से कुछ समानता है, जो
लंबे समय के लिए उसे "सरगोन आई," का "बेटा" कहा जाता है,।
हालांकि अब
वह अपने पोते के रूप में पाया जाता है,
मैं, ”हालांकि अब
वह अपने पोते के रूप में पाया जाता है, और सबसे प्रसिद्ध है
सरगॉन के "बेटे" या वंशज।
बाद में, सुमेरियन से पहली बार संशोधित करने पर और
मेसोपोटामिया के राजाओं की रीडिंग कोनीफॉर्म ग्रंथों
असीरोलॉजिस्ट द्वारा बहाल किए गए नाम, मैंने पाया कि नाम"नारम सिन" के रूप में उनके द्वारा पढ़ा गया, अन्य मान्यता प्राप्त लोगों द्वारा भी पढ़ा गया
उस राजा के नाम के शब्दांश संकेत के लिए मान
"Ka-ra-am-ba, ”और इस तरह से नाम के साथ पूरी तरह से समानता है।
सन्दर्भ सूची:-
1. बी.डब्ल्यू।, 278, मनिसटुसु। कर मूल्य, बी।, 6165।
____
2. यह उखड़ा हुआ क्राउन चिन्ह जो मैंने एक छोर पर तने के साथ पाया है
कई बार (इस तरह मुदगला की मुहर, चित्र 5)। सा मूल्य पर, बी, 6839. यह है
सर, सी.पी. 9519, और 9521 के साथ बी, 6839 में परिभाषा में संकेत।
3. यह संकेत निश्चित लगता है। यह इस के लैपिडरी के साथ एक व्यवहारिकता है
अनुप्रस्थ रेखाओं से जुड़ने के लिए सील, सी.पी. संकेत 1 और 2. गनु मान पर,
एम।, 2011; और कर, बी।, 3813।
4. गुजरात या 'हर = "भूमि," पहले देखें।
5. यह चिन्ह डु का एक प्रकार लगता है। मैंने तुलना चिन्ह के लिए जोड़ा है
टी। डी।, 210; बी.डब्ल्यू।, 355, मूल्य अख (बी, 8290), लेकिन यह संभावना नहीं है, क्योंकि यह नहीं है
"किले, शहर या भूमि" का अर्थ अन्य सभी मुहरों पर सादृश्य चिन्ह की तरह है।
राजा सकुनी यह पहचान मात्र तक ही सीमित नहीं थी
नाम का बाहरी रूप, लेकिन जैसा कि मुझे पता है कि इनमें सामान्य है
सुमेरियन से प्राप्त संस्कृत नाम, यह भी विस्तारित हुआ
इस संस्कृत नाम के घटक सिलेबल्स में।
इस प्रकार मैं
देखा कि सिलेबिक शब्द-संकेत बा, जो सुमेरियन में है
"चंद्रमा" का अर्थ है, संस्कृत में बा का अर्थ है
________
66 इंडो-सुमेरियन मुहरों को तय किया गया रूप
SARGON के मिनिस्टर, टैक्स या DAX 65 के अनुसार
"चंद्र हवेली" और "चमक" करने के लिए b'd। और का, जोह७७ना का सुमेरियन मान है, जिसका अर्थ है "नहीं" या "नहीं", पर है
कम से कम अक्कादियान में एक सर्वनाम प्रत्यय, सान में का की तरह
विशेष रूप से नकारात्मक वाक्यों में स्किथ, जो एक सर्वनाम प्रत्यय है,
और यह भी कि एक नकारात्मक दिशा में, यानी, ह्रास का एक प्रत्यय; 1
सुमेरियन में संस्कृत में ना के बराबर = "नहीं" या "नहीं।"
संस्कृत में फिर से ए (ए) का अर्थ है "ताकत," * बस इस रूप में
सुमेरियन में Am या Ama का अर्थ "ताकत" है। * फिर से
संस्कृत में = "प्राप्त करना," 4 और सुमेरियन में = "जब्त करना,"
अर्थात्, "प्राप्त करना।" 5 इस प्रकार "करंबा" की पहचान
सुमेरियन और संस्कृत पूर्ण है; और यह दर्शाता है कि
सरगुन के प्रसिद्ध "पुत्र" या के लिए नाम का प्रामाणिक रूप
"वंशज" "नरम सिन" नहीं है, लेकिन "करंबा" है।
इसके अलावा, "सौर" (या सूर्य-उपासकों) संस्करण में
इन प्रारंभिक आर्य राजाओं की भारतीय महाकाव्य सूचियों में, जिसमें
राजा अक्सर उन लोगों से अलग (सौर) खिताब धारण करते हैं
चंद्र की सूची-अलग और अतिरिक्त के समानांतर
प्राचीन मिस्र के राजाओं द्वारा "धार्मिक पुत्र" के रूप में जन्म लिया गया
सूर्य के रूप में ”- ठीक वैसी ही सापेक्ष स्थिति
लुनार सूचियों में स'कुनी द्वारा कब्जा किया हुआ महान आता है
"विश्व-सम्राट" अजोध्या या अयोध्या का सागर, रिकॉर्ड
जिनकी विशाल विजय आमतौर पर सार्गुनी से मिलती जुलती है
या अगाडे * का सरगुन प्रथम - जो बाद का शहर-नाम प्रतीत होता है
भारतीय महाकाव्यों के अजोध्या या अयोध्या द्वारा प्रतिनिधित्व किया।
_________
राजा सरागिनी (या सरगुन) का यह "सागर" रूप
नाम वास्तव में उसकी अपनी सिंधु घाटी सील, अगले पर पाया जाता है
श्रृंखला का (VII।)। अब सौर में सागर का "बेटा"
भारतीय महाकाव्य "आसा -मंजस" है, जो स्पष्ट रूप से मेल खाता है|
सरगुन के सबसे बड़े बेटे के लिए "Manis'-tis'su या Manis'-tusu"
मेसोपोटामिया के राजा-सूची और शिलालेख। 7
____________
"सरगुन आई" की पहचान "सगिमु" के साथ अगडे
1 M.W.D., 240. 8 76।, 80. 8 एम।, 3059।
* M.W.D., 859. 8 B., 6353. 8 W.V.P., 3, 291 f।
7 उपसर्ग आसा का अर्थ संस्कृत में "चमकता" है, और इस तरह प्रतिनिधित्व कर सकता है
सुमेरियन राजाओं के नामों में सामान्य A '' या "लॉर्ड" उपसर्ग, विशेष रूप से
उस शब्द-चिह्न में किरण सूर्य का चित्र है, यानी "चमकता हुआ एक",
सील वी देखें।
_____
DAXA या DAKSHA का इतिहास
67
या एक तरफ इस सिंधु घाटी की मुहर का "सिरगाना",
और अयोध्या के आर्यन राजा शकुनि या सागर के साथ या
दूसरी ओर भारतीय महाकाव्य राजा-सूची के अजोध्या
इस प्रकार व्यावहारिक रूप से स्थापित है।
इस मुहर के "मंत्री" स्वामी का निजी नाम,
"टैक्स," उसे "टैक्स (या Dax) के साथ संभवतः पहचानता है
गोथ, "सील नंबर VIII के मालिक के पिता। और
भारतीय महाकाव्य राजकुमार सक्सेना का पुत्र, नरेश का पुत्र-
सौर रेखा का यान, जिसके वंशज S’aka, 1 कहलाते हैं
यानी, Sacae या Getae या Goths; और इस तरह के लिए खाता होगा
उस मुहर के मालिक (सं। आठवें) को "डैक्स का बेटा" कहा जा रहा है
और उसमें Guti या "जाहिल" स्टाइल किया जा रहा है।
वंशजों की दो पंक्तियाँ नरिशयंत को दी गई हैं
महाकाव्य, संभवतः दो अलग-अलग बेटों के वंशज होने के कारण।
जैसा
सौर मनु काे "पुत्र", उनके वंशज सिट्रसेना हैं,
Daxa, Midhuas (सील XIV का।) और दूसरों को सत्य-s'ravas *
(सील XVIII?) की। जबकि सौर-रेखा सम्राट के पुत्र के रूप में
मारुत (मोरीइट या अमोराइट( मरुत)के लिए एक सुमेरियन शीर्षक) * उनका
वंशज दामा (सील आठवीं की।) और अन्य नीचे हैं
त्रिनाबिंदु, विशाली के पिता; 4 और त्रिनाबिंदु को सफलता मिली
एक Daxa द्वारा "वेदों के अरक्षक" के रूप में। "
कई में व्यक्तिगत नामों में समझौते से
डक्सा के मामूली राजवंश में उन लोगों के साथ निम्नलिखित जवानों
पूर्वज, नरिशांता, (नरिष्यन्त)यह संभव लगता है कि सरगुन के बाद
इस मुहर के मंत्री कर, या उसके बेटे की मृत्यु, एक क्षुद्र की स्थापना।
_______
वैवस्वतमनोः पुत्रभेदे “वेनं धृष्णुं नरिष्यन्त नाभागेक्ष्वाकुमेव च” भा० आ० ७५ अ० । “इक्ष्वाकुर्नभग- श्चैव धृष्णुः शर्य्यातिरेव च । नरिष्यन्तोऽथ नाभागः सप्तमोऽरिष्ट उच्यते” भाग० ८ । १३ । १
सिंधु घाटी में स्वतंत्र अर्ध-स्वतंत्र राजवंश,
हालाँकि वे अपने मुहरों पर "राजा" कहलाते हैं।
इस दृष्टि से महाकाव्य का कथन है कि पौराणिक
Daxa (यानी, तस्सियो) ने असिकनी नदी से शादी की, * यानी पूर्वाग्रह
आर, * यानी, बायस
हड़प्पा के पास सिंधु की सहायक नदी, और उसका वंश
चींटियों को "हरसवास" कहा जाता था, "7 एक स्मृति पर आधारित हो सकता है
इस टैक्स की उपस्थिति या सरगुन I के Daxa मंत्री।
1
राजा सगर के आधिकारिक हस्ताक्षर, या अगाडे के सरगुन आई।
अयोध्या का महाकाव्य राजा सगर।
यह सील (छवि 2, VII।) प्रथम-दर ऐतिहासिक महत्व की है
भारतीय और मेसोपोटामिया इतिहास दोनों के लिए, जैसा कि यह बताया गया है
अगडे के महान सम्राट सरगुन प्रथम की वास्तविक मुहर के रूप में,
विस्तृत रूप में "सागर" के अपने सौर भारतीय महाकाव्य शीर्षक के तहत
अपने "मंत्री कर" की पिछली मुहर के तहत।
ऐसा प्रतीत होता है कि उस महान सम्राट, के दौरान
उनकी विश्वव्यापी विजय, वास्तव में एडिन की उनकी कॉलोनी का दौरा किया
सिंधु घाटी, या "S'aka भूमि," के रूप में यह में कहा जाता है
भारतीय महाकाव्यों; और उसने अपनी मुहर उसके हाथों में छोड़ दी
1 दू और की के शब्द-संकेत कुछ में लगभग अप्रभेद्य हैं
उनके प्रारंभिक रूप।
SARARA के रूप में SARGON का सील
69-
आधिकारिक दस्तावेजों पर मुहर लगाने के लिए उनके गवर्नर। यह ऐसा होगा
अब और अधिक पूरी तरह से समझाने की तुलना में अब तक जाना जाता है या
तथ्य का वास्तविक आधार जिस पर सरगुन प्रथम ने दावा किया था पर संदेह किया
"लॉर्ड ऑफ़ द लोअर सी" (फ़ारसी की खाड़ी और
हिंद महासागर)।
70 INDO-SUMERIAN SEALS ने "स्लेव-गर्ल के एडिन मंदिर" का नाम लिया, और यह है
स्पष्ट रूप से भारतीय महाकाव्य S'aka या "द समतुल्य"
साकस की भूमि, "जैसा कि सिंधु घाटी का एक महाकाव्य शीर्षक, जैसा कि देखा गया है
बाद में।
इसके अलावा, राजा सगर में दर्ज तथ्य भी है
भारतीय महाकाव्यों कि उन्होंने शक को जीत लिया। 1 और यह है!
आगे ने दर्ज किया कि सजा के रूप में, "वह com that
S'akas को उनके सिर के ऊपरी (ऊपरी) दाढ़ी बनाने के लिए, "1।"
एक ऐसे लोगों के लिए अपमानजनक सजा, जो खुद को सजा देते थे
जैसा कि सैके या गोथ्स ने अपने लंबे ताले में किया था।
सील नं। आठवीं।
दामू (या गुदामा) की आधिकारिक हब॒स्ताक्षर गुटी या "गोथ"
डैक्स का बेटा 'हर (-आर)।
सक्सस (या गोथ्स) की डेक्सा लाइन का महाकाव्य दामा।
यह मुहर (चित्र 2, VIII।) "द साइन" प्रतीत होती है
योद्धा दामू ”जो शायद महाकाव्य के समान था
Daxa S'aka की पंक्ति के राजकुमार दामा, में संदर्भित
सील VI पर नोट्स, और जो संभवतः के मालिक थे
वह सील।
वैयक्तिकरण तालिका से देखा गया व्यक्तिगत नाम
"योद्धा दामु" पढ़ सकते हैं और यह प्रतीत होता है
पत्राचार Dax और
जातीय शीर्षक "गुति" या "गोथ।" यदि पहला शब्द-चिन्ह गु
नाम के पहले शब्दांश के रूप में लिया जाता है, बाद वाला होगा
गुडामु को पढ़ें, जो वैदिक और महाकाव्य नाम से समान है
"गोटामा," द्रष्टा-तमस (या "औसीजा") का शीर्षक
सील्स I
ऌऔर IV में किसे संदर्भित किया गया है। ; और किसका
वंशज औसिजस को "गोतमस" भी कहा जाता था
और सिंधु घाटी की मुहरों में पाए जानते हैं; और नाम है
परिवार के नाम के रूप में, बर्मीज़ पाली में "गोइयामा" लिखा
बुद्ध का, साख्य जनजाति का द्रष्टा। "गदामा" (के रूप में)
तक
1 डब्ल्यू.वी.पी, 3, 291 एफ।
SEAL OF SARGON AS SAGARA
69
his governor there to stamp official documents. This would
now explain more fully than has hitherto been known or
suspected the real basis of fact on which Sargon I. claimed
the title of “ Lord of the Lower Sea ” (the Persian Gulf and
Indian Ocean).
Seal Sumerian
Phbnetic.
sag,zag'
ARA 1 -
inch *tnn
TUB, DUB 3
fib?'
ga,tu
AQ.SA 4
DU ?Q<0
AS
Fig. 12.—Signet Inscription of Sagara of Agdu (S'aki or Edin ?).
Reads : Sag-ara dub gu-ag-du (or S'a-ki or edin)-as'.
Transl. : Sagara, the tablet of, at land of Agdu (or S'aki or Edin).
1. Sumer sign, T.D., 176; B.W., 291. Sag "prince," B., 6461; with
Akkad value S'arru " king ”; B., 6503— i.e., same value as first part of
Sargon or S'aru-kin’s name.
2. T.D., 177 ; B.W., 261. Ara value, B., 5775.
3. B.W., 157 ; T.D., 385. Dup " tablet ” = Akkad Tuppu, B., 3935.
4. This may read either Ag or SA.
5. May read either Du or Ki.
The place-name here appears to have as its first sign the
word-sign Ag or S’a, rather than that of “ Edin ” ; whilst
the second sign may read either du or ki, in which these form
an essential portion of the place-name, and not mean merely
" fort ” or “ land ” or " city,” as the " land " or " dwelling ”
element is the first sign Ga or Gu. In favour of the reading
S’aki is the fact which we have seen that this was a Sumerian
70 INDO-SUMERIAN SEALS DECIPHERED name for the “ Edin temple of the Slave-girl,” and it is
clearly the equivalent of the Indian Epic S'aka or " The
Land of the S'akas,” an Epic title of the Indus Valley, as seen
later on.
There is, moreover, the fact recorded of King Sagara in
the Indian Epics that he conquered the S'akas. 1 And it is
farther recorded therein that as a punishment, “ he com¬
pelled the S'akas to shave the (upper) half of their heads,” 1
an outrageous punishment for a people who prided themselves
as the Sacae or Goths did in their long locks.
Seal No. VIII.
Official Signet of Damu (or Gudama) the Guti or “ Goth "
son of Dax the 'Har(-ri).
The Epic Dama of the Daxa line of S'akas (or Goths).
This seal (Fig. 2, VIII.) appears to be the signet of " The
Warrior Damu" who was probably identical with the Epic
prince Dama of the line of Daxa the S'aka, referred to in
the notes on Seal VI., and who was possibly the owner of
that seal.
The personal name as seen from the decipherment table
may read " The warrior Damu," and this appears to be the
reading intended, in view of the patronym Dax and the
ethnic title " Guti " or " Goth.” If the first word-sign Gu
is taken as the first syllable of the name, the latter would
read Gudamu, which equates with the Vedic and Epic name
“ Gotama,” a title of the seer Dirgha-tamas (or “ Aus'ija ”),
who has been referred to in Seals I. and IV. ; and whose
descendants, the Aus'ijas, were also called " Gotamas,”
and are found in the Indus Valley seals; and the name is
spelt “ Goiama " in the Burmese Pali, as the family name
of Buddha, the seer of the S'akya tribe. “ Gadama ” (as
SARARA के रूप में SARGON का सील (मोहक)
सगर भारतीय पुराणों में राम के पूर्वज हैं
जिन्होने सागर खुदवाऐ थे ।
________
सगरेण निर्वृत्तः अण् । १ समुद्रे अमरः ।
सह गरेण विषेण जातः । १ सूर्य्यवंश्ये नृपभेदे “सगरात् सागरोजातः” इति पुराणम् ।
स च सुबाहुनामराजतः यादव्यां जातः ततसपत्न्या गरदानेऽपि स न समार तत्कथा “तस्या (और्वस्या) श्रमे च सा गर्भं सुषुवे ज्वलनप्रभम् ।
व्यजायत महाबाहुर्गरेणैव सह द्विज!
। सगरो नाम तेनाभूत् बालको- ऽतिमनोहरः” पद्म-पुराण १३ अ०
____
69-
आधिकारिक दस्तावेजों पर मुहर लगाने के लिए उनके गवर्नर।
यह ऐसा होगा
अब और अधिक पूरी तरह से समझाने की तुलना में अब तक जाना जाता है या
तथ्य का वास्तविक आधार जिस पर सरगुन प्रथम ने दावा किया था पर संदेह किया
"लॉर्ड ऑफ़ द लोअर सी( निम्न तर समुद्र का मालिक) " (फ़ारसी की खाड़ी और
हिंद महासागर)।
सील सुमेरियन के हवाले से ...
साकी वह तथ्य है जो हमने देखा है कि यह एक सुमेरियन था ।
शकों का सम्बन्ध सुमेरियन मिथकों में भी है ।
_______
70 INDO-SUMERIAN SEALS ने "स्लेव-गर्ल के एडिन मंदिर" का नाम लिया, और यह है
स्पष्ट रूप से भारतीय महाकाव्य S'aka या "द समतुल्य"
साकस की भूमि, "जैसा कि सिंधु घाटी का एक महाकाव्य शीर्षक, जैसा कि देखा गया है
इसके अलावा, राजा सगर में दर्ज तथ्य भी है
भारतीय महाकाव्यों कि उन्होंने शकों को जीत लिया था ।
1 और यह तथ्य भारतीय पुराणों में भी है!
आगे ने दर्ज किया कि सजा के रूप में,
"वह com that
S'akas को उनके सिर के ऊपरी (ऊपरी) दाढ़ी बनाने के लिए, "1।"
_______________________
एक ऐसे लोगों के लिए अपमानजनक सजा, जो खुद को सजा देते थे
जैसा कि सैके या गोथ्स ने अपने लंबे राज्य में किया था।
सील नं। आठवीं।
दामू (या गुदामा) की आधिकारिक ह॒स्ताक्षर गुटी या "गोथ"
डैक्स का बेटा 'हर (-आर)।
______
सक्सस (या गोथ्स) की डेक्सा लाइन का महाकाव्य दामा।
यह मुहर (चित्र 2, VIII।)
"द साइन" प्रतीत होती है
योद्धा दामू ”जो शायद महाकाव्य के समान था
Daxa S'aka की पंक्ति के राजकुमार दामा, में संदर्भित
सील VI पर नोट्स, और जो संभवतः के मालिक थे
वह सील।
- <iii
SA.SIR, GAL 1 2 3
ttthhi
GUMU.GANAf
= टी>
gu, गा, हर
म-
AG.SA 4 5
क्यू <
अंजीर। 11. टैक्स के हस्ताक्षर (या "डैक्स") के मंत्री
अगदु का सरगना (अगडे का सरगुन प्रथम)।
विदित हो की सगर अयोध्या के राजाओं की परम्परा गत उपाधि भी बन गया था ।
66 इंडो-सुमेरियन मुहरों का तय किया गया तथ्य -
SARGON के मन्त्र, दक्ष टैक्स या DAX 65 के अनुसार
"चंद्र हवेली" और "चमक" करने के लिए b'd। और का, जो
ना का सुमेरियन मान है, जिसका अर्थ है "नहीं" या पर है
कम से कम अक्कादियान में एक सर्वनाम प्रत्यय, सान में का की तरह
विशेष रूप से नकारात्मक वाक्यों में स्किथ, जो एक सर्वनाम प्रत्यय है,
और यह भी कि एक नकारात्मक दिशा में, यानी, ह्रास का एक प्रत्यय; 1
सुमेरियन में संस्कृत में ना के बराबर = "नहीं" या "नहीं।"
संस्कृत में फिर से ए (ए) का अर्थ है "ताकत," * बस इस रूप में
सुमेरियन में Am या Ama का अर्थ "ताकत" है। * फिर से
संस्कृत में = "प्राप्त करना," 4 और सुमेरियन में = "जब्त करना,"
अर्थात्, "प्राप्त करना।" 5 इस प्रकार "करंबा" की पहचान
सुमेरियन और संस्कृत पूर्ण है; और यह दर्शाता है कि
सरगुन के प्रसिद्ध "पुत्र" या के लिए नाम का प्रामाणिक रूप
"वंशज" "नरम सिन" नहीं है, लेकिन "करंबा" है।
इसके अलावा, "सौर" (या सूर्य-उपासकों) संस्करण में
इन प्रारंभिक आर्य राजाओं की भारतीय महाकाव्य सूचियों में, जिसमें
राजा अक्सर उन लोगों से अलग (सौर) खिताब धारण करते हैं
चंद्र की सूची-अलग और अतिरिक्त के समानांतर
प्राचीन मिस्र के राजाओं द्वारा "धार्मिक पुत्र" के रूप में जन्म लिया गयी
सूर्य के रूप में ”- ठीक वैसी ही सापेक्ष स्थिति
लुनार सूचियों में स'कुनी द्वारा कब्जा किया हुआ महान आता है।
भारतीय पुराणों में सूर्य वंश और चन्द्र वंश की अवधारणा का विकास भी यहीं से हुआ है ।
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"विश्व-सम्राट" अजोध्या या अयोध्या का सगर, रिकॉर्ड
जिनकी विशाल विजय आमतौर पर सार्गुनी से मिलती जुलती है
या अगाडे * का सरगुन प्रथम - जो बाद का शहर-नाम प्रतीत होता है
जिसका भारतीय महाकाव्यों में अजोध्या या अयोध्या द्वारा प्रतिनिधित्व किया।
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राजा सरागिनी (या सरगुन) का यह "सागर" रूप
नाम वास्तव में उसकी अपनी सिंधु घाटी सील, अगले पर पाया जाता है
श्रृंखला का (VII।)। अब सौर में सागर का "बेटा"
भारतीय महाकाव्य "आसा -मंजस" है, जो स्पष्ट रूप से मेल खाता है।
सगर के पुत्र असमंजस भारतीय पुराणों में वर्णित है ।
💞सूर्यवंशी राजा सगर का बड़ा पुत्र जो रानी केशी से उत्पन्न था।
सरगुन के सबसे बड़े बेटे के लिए "Manis'-tis'su या Manis'-tusu" नाम मेसोपोटामिया के राजा-सूची और शिलालेख में वर्णित है । 7
"सरगुन आई" की पहचान "सगिमु" के साथ अगडे
1 M.W.D., 240. 8 76।, 80. 8 एम।, 3059।
* M.W.D., 859. 8 B., 6353. 8 W.V.P., 3, 291 f।
7 उपसर्ग आसा का अर्थ संस्कृत में "चमकता" है, और इस तरह प्रतिनिधित्व कर सकता है
सुमेरियन राजाओं के नामों में सामान्य A '' या "लॉर्ड" उपसर्ग, विशेष रूप से
उस शब्द-चिह्न में किरण सूर्य का चित्र है, यानी "चमकता हुआ एक",
सील वी देखें।
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DAXA या DAKSHA का इतिहास
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या एक तरफ इस सिंधु घाटी की मुहर का "सिरगाना",
और अयोध्या के आर्यन राजा शकुनि या सागर के साथ या दूसरी ओर भारतीय महाकाव्य राजा-सूची के अजोध्या इस प्रकार व्यावहारिक रूप से स्थापित है।
इस मुहर के "मंत्री" स्वामी का निजी नाम,
"टैक्स," उसे "टैक्स (या Dax) के साथ संभवतः पहचानता है
गोथ, "सील नंबर VIII के मालिक के पिता।
और भारतीय महाकाव्य राजकुमार सक्सेना का पुत्र, नरेश का पुत्र-
सौर रेखा का यान, जिसके वंशज S’aka, 1 कहलाते हैं
यानी, Sacae या Getae या Goths; और इस तरह के लिए खाता होगा
उस मुहर के मालिक (सं। आठवें) को "डैक्स का बेटा" कहा जा रहा है
और उसमें Guti या "जाहिल" स्टाइल किया जा रहा है।
वंशजों की दो पंक्तियाँ नरिशयंत को दी गई हैं
महाकाव्य, संभवतः दो अलग-अलग बेटों के वंशज होने के कारण।
जैसा
सौर मनु के "पुत्र", उनके वंशज सिट्रसेना हैं,
Daxa, Midhuas (सील XIV का।) और दूसरों को सत्य-s'ravas *
(सील XVIII?) की। जबकि सौर-रेखा सम्राट के पुत्र के रूप में
मारुत (मोरीइट या अमोराइट के लिए एक सुमेरियन शीर्षक) * उनका
वंशज दामा (सील आठवीं की।) और अन्य नीचे हैं
त्रिनाबिंदु, विशाली के पिता; 4 और त्रिनाबिंदु को सफलता मिली
एक Daxa द्वारा "वेदों के अारक्षक" के रूप में। "
___________
कई में व्यक्तिगत नामों में समझौते से
डक्सा के मामूली राजवंश में उन लोगों के साथ निम्नलिखित जवानों
पूर्वज, नरिशांता, यह संभव लगता है कि सरगुन के बाद
इस मुहर के मंत्री दक्ष, या उसके बेटे की मृत्यु, एक क्षुद्र की स्थापना
सिंधु घाटी में स्वतंत्र अर्ध-स्वतंत्र राजवंश,
हालाँकि वे अपने मुहरों पर "राजा" कहलाते हैं।
इस दृष्टि से महाकाव्य का कथन है कि पौराणिक
Daxa (यानी, तस्सियो) ने असिकनी नदी से शादी की, * यानी पूर्वाग्रह
आर, * यानी, बायस
हड़प्पा के पास सिंधु की सहायक नदी, और उसका वंश
चींटियों को "हरसवास" कहा जाता था,।
"7 एक स्मृति पर आधारित हो सकता है
इस टैक्स की उपस्थिति या सरगुन I के Daxa मंत्री।
1 WV.P., 3, 336. 2 lb., 3, 335,
8 डब्ल्यूपीओबी, 216, 243 एफ। * डब्ल्यू.वी.पी।, 3, 245।
6 एलबी, 3, 335. 6 जेबी।, 2, 12।
7 एलबी।, 2, 12 एफ।
_____
भारतीय-सुमेरियन क्षेत्रों का विकास हुआ
और ऊपरी सिंधु घाटी में उनके पुत्र और उनके पूर्व के
सुमेरियन वहाँ उपस्थित थे ।, हरसोवा के "बेटों"
सुमेरियन सम्राट उरस '(या "उर-नीना"), के संस्थापक
पहला पंच (-अला) या फोनीशियन राजवंश, उसकी राजधानी के साथ
फ़ारस की खाड़ी पर लगश या सिरलापुर के बंदरगाह पर।
S'aki या "एडिन" अंतिम दो शब्द-संकेतों में दी गई है। इलाज किया
इस तरीके से हम इस शब्द के लिए मूल्य-अग-डू, 1 पर हस्ताक्षर करते हैं
जो इस प्रकार "अगडे" का एक द्वंद्वात्मक रूप प्रतीत होगा
बाद के असीरियन "अकाडु" का स्रोत माना जाता है।
Susus की पिछली सील में भी यही रीडिंग हो सकती है
इसके स्थान-नाम के लिए।
सील सं। VII
__________
राजा सगर के आधिकारिक हस्ताक्षर, या अगाडे के सरगुन आई।
अयोध्या का महाकाव्य राजा सगर।
यह सील (छवि 2, VII।) प्रथम-दर ऐतिहासिक महत्व की है
भारतीय और मेसोपोटामिया इतिहास दोनों के लिए, जैसा कि यह बताया गया है
अगडे के महान सम्राट सरगुन प्रथम की वास्तविक मुहर के रूप में,
विस्तृत रूप में "सागर" के अपने सौर भारतीय महाकाव्य शीर्षक के तहत
अपने "मंत्री दक्ष" की पिछली मुहर के तहत।
ऐसा प्रतीत होता है कि उस महान सम्राट, के दौरान
उनकी विश्वव्यापी विजय, वास्तव में एडिन की उनकी कॉलोनी का दौरा किया था।
सिंधु घाटी, या "S'aka भूमि," के रूप में यह में कहा जाता है
भारतीय महाकाव्यों; और उसने अपनी मुहर उसके हाथों में छोड़ दी
1 दू और की के शब्द-संकेत कुछ में लगभग अप्रभेद्य हैं
उनके प्रारंभिक रूप।
साकी वह तथ्य है जो हमने देखा है कि यह एक सुमेरियन था
70 INDO-SUMERIAN SEALS ने "स्लेव-गर्ल के एडिन मंदिर" का नाम लिया, और यह है
स्पष्ट रूप से भारतीय महाकाव्य S'aka या "द समतुल्य"
साकस की भूमि, "जैसा कि सिंधु घाटी का एक महाकाव्य शीर्षक, जैसा कि देखा गया है
बाद में।
इसके अलावा, राजा सगर में दर्ज तथ्य भी है
भारतीय महाकाव्यों कि उन्होंने शक को जीत लिया।
_____
भारतीय पुराणों में शकों का वर्णन है
यह एक प्राचीन जाति विशेष है —पुराणों में इस जाति की उत्पत्ति सूर्यवंशी राजा नरिष्यंत से कही गई है।
राजा सगर ने राजा नरिष्यंत को राज्यच्युत तथा देश से निर्वासित किया था।
वर्णाश्रम आदि के नियमों का पालन न करने के कारण तथा ब्राह्मणों से अलग रहने के कारण वे म्लेच्छ हो गए थे।
उन्हीं के वंशज शक कहलाए।
आधुनिक विद्वनों का मत है कि मध्य एशिया पहले शकद्वीप के नाम से प्रसिद्ध था।
यूनानी इस देश को सीरिया कहते थे।
उसी मध्य एशिया के रहनेवाला शक कहे जाते है।
एक समय यह जाति बड़ी प्रतापशालिनी हो गई थी।
ईसा से दो सौ वर्ष पहले इसने मथुरा और महाराष्ट्र पर अपना अधिकार कर लिया था।
ये लोग अपने को देवपुत्र कहते थे।
इन्होंने १९० वर्ष तक भारत पर राज्य किया था।
इनमें कनिष्क और हविष्क आदि बड़े बड़े प्रतापशाली राजा हुए हैं।
वह राजा या शासक जिसके नाम से कोई संवत् चले।
राजा शालिवाहन का चलाया हुआ संवत् जो ईसा के ७८ वर्ष पश्चात् आरंभ हुआ था।
शालिवाहन के अनुयायी अथवा उसके वंशज।
1 शकों का दाढ़ी कर्तन का प्रसंंग सुमेरियन मिथकों में भी है ।
नेंट कर्नल एलए वाडेल (1854-1938), एक असाधारण अंग्रेजी पुरातनपंथी, विद्वान और खोजकर्ता थे।
वह एक बहुरूपिया थे, जिन्होंने कई प्राच्य भाषाएं बोलीं। वह तिब्बत और भारत और तिब्बत की वनस्पतियों के विशेषज्ञ भी थे।
उनकी प्रमुख कृतियाँ तथाकथित आर्य जाति की उत्पत्ति की चिंता करती हैं।
जाति और सभ्यता की उत्पत्ति पर
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास में महारत मार्गरेट एस० ड्रावर ने लिखा है, "खोज की प्रवृत्ति एक व्यक्ति के शुरुआती अतीत के इतिहास को लिखने में एक बड़ी भूमिका निभाता है"
और यह राम के मामले में सच से कहीं अधिक है जिसका असली इतिहास काफी हद तक अज्ञात है।
हाल ही में सेतुसमुद्रम उपद्रव एक स्पष्ट चेतावनी है कि धूल अयोध्या में तथाकथित राम जन्मभूमि पर बसना बाकी है।
यह भाग्य की एक दुखद विडंबना है कि इस विवाद में भारतीय मिथक के सबसे बड़े नायक राम शामिल हैं।
कोई भी देवता हिंदू धर्म की भावना का प्रतीक नहीं है, लेकिन राम भारतीय लोकाचार के एक एकाकी दृश्य अवतार के सबसे करीब आते हैं।
राम के आत्म-बलिदान, धर्मपरायणता, धार्मिकता और वीरता ने भारतीयों को युगों-युगों तक रोमांचित किया।
यह तथ्य कि महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद और रवींद्रनाथ टैगोर जैसे कुछ महान भारतीय राम से प्रेरित थे,
अब दिखाते हैं कि भारतीय संस्कृति में उन राम का कितना गहरा दखल है।
राम के विषय में भारतीय पुराणों के लेखकों ने जनश्रुतियों को आधार-पथ माना ।
राम के जन्म ,जीवन आदि के विषय हिंदुओं का दावा पुरातात्विक रूप से बेतुका है, मुसलमान भी यह भूल गए हैं कि राम कभी उनके बहुत प्रिय थे।
‘वे अपने दिल में राम का निर्माण करें’, राम के भक्तों के लिए, पूरी तरह से अनजान हैं कि राम दुनिया से संबंधित हैं और वे किसी एक देश या सांप्रदायिक पंथ के भीतर प्रसारित नहीं हो सकते।
राम एक वैश्विक व्यक्तित्व हैं ।
रामायण ने एक बार किसी भी अन्य महाकाव्य की तुलना में मानवता के एक बड़े हिस्से को प्रभावित किया।
यह ईरान, ईराक (मेसोपोटामिया) मध्य एशिया, बर्मा, थाईलैंड, इंडोनेशिया, वियतनाम, कंबोडिया, चीन, जापान मिश्र और यहां तक कि फिलीपींस में भी राम लोकप्रिय थे।
विद्वान ब्रिटिश संस्कृतिकर्मी, जे० एल० ब्रॉकिंगटन रामायण को विश्व साहित्य का एक उत्कृष्ट शब्द मानते हैं।
एक महाकाव्य का कोई इतिहास नहीं है, फिर भी इसका पोस्टर पर प्रभाव अक्सर इसकी ऐतिहासिक बारीकियों द्वारा ढाला जाता है।
रामायण की विश्वव्यापी अपील का अर्थ है कि राम एक महान ऐतिहासिक व्यक्ति रहे होंगे।
( कालान्तरण में रूढ़िवादीयों द्वारा इतिहास पर औपनिवेशिक हमला)
मिथक और चमत्कार सभी महान धार्मिक साहित्य के अभिन्न अंग हैं, लेकिन स्पष्ट रूप से ऐतिहासिक कर्नेल के बिना रामायण कभी भी विश्व क्लासिक नहीं बन सकती थी।
राम जन्मभूमि के साथ समस्याओं की जड़ में ऐतिहासिक अज्ञानता है।
आर ० थापर और आर० एल० बाशम जैसे लंदन विद्यालयों के लेखक इस बात को नज़र-अंदाज़ करते हैं कि राम का भारत ब्रिटिश भारत के लिए एक व्यापक क्षेत्र था।
गंगातटीय भारत या दक्षिण भारत में शहरीकरण मौर्य युग से बहुत पहले शुरू नहीं हुआ था, जो इन क्षेत्रों में ऐतिहासिक राम की तलाश करना बेमानी है।
राम की महान प्राचीनता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि विष्णु पुराण के काल में भी उनकी आकृति दूर के क्षितिज तक सिमट गई थी और उनकी तुलना भगवान से की जाने लगी थी।
राम की ऐतिहासिकता पर आर० एस० त्रिपाठी और आर० सी० मजूमदार जैसे बड़े विद्वानों ने जोर दिया था लेकिन लंदन (एसओएएस) स्कूल के लेखकों द्वारा इसका खंडन किया गया था।
प्रभाव में यह अत्यधिक विकृत दृश्य राम को बदनाम करता है और भारतीय समाज पर इसका बहुत हानिकारक प्रभाव पड़ा है।
सिंधु शहरों की खोज के बाद यह आशा की जा रही थी कि पुरातत्व राम और अर्जुन जैसे आंकड़ों का पता लगाएंगे, लेकिन जोन्स की झूठी खोज से यह असंभव हो गया था, जिसने स्ट्रोक के कारण भारत के केंद्र को पूर्व की ओर स्थानांतरित कर दिया था।
इस उथले दृष्टिकोण ने कई अयोग्य विद्वानों को भ्रमित किया है और न केवल राम बल्कि कई अन्य प्रसिद्ध भारतीय हस्तियों जैसे मनु, नंदों, चंद्रगुप्त आदि को इतिहास के पिछवाड़े तक पहुँचाया है।
मध्य से बाशम की थीसिस न केवल मेसोपोटामिया के इतिहास की अज्ञानता है, बल्कि अफसोस की बात यह है कि पड़ोसी ईरान भी जोन्स का भारत की विरासत और संस्कृति के प्रति बहुत सम्मान था ।
और उनकी त्रुटि अनजाने में थी, लेकिन सरकार में अन्य लोग भी थे जिनके लिए भयावह उद्देश्य थे। टी० ए० फेल्प्स ने कलाकृतियों और फिर से शिलालेख लगाकर जोन्स के डिक्रीपिट सिद्धांत को धोखा देने के लिए औपनिवेशिक प्रशासन के प्रयास को उजागर किया है।
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राम, मेडियंस और ईरान के एक नायक थे ।
जैसा कि रामायण से पता चलता है कि हरियाणा, पंजाब, सिंध और अफगानिस्तान में राम की मौजूदगी के बारे में कोई संदेह नहीं किया जा सकता है, लेकिन सिंधु क्षेत्र में राम की उपस्थिति को लिखने में कठिनाई के कारण सिंधु अज्ञात है।
हालाँकि, राम आदिवासी नायक से बहुत दूर थे, जैसा कि बाशम और थापर द्वारा वर्णित कई प्राचीन दस्तावेजों से देखा जा सकता है।
प्रसिद्ध ओरिएंटलिस्ट आई०एम डाकोनॉफ़ ने महत्वपूर्ण सुराग दिया कि प्राचीन मेदियनों के नामों में अक्सर मित्र राम, जैसे सामान्य देवता जैसे मित्रा, अहुरा माज़दा आदि शामिल थे।
टी ० क्यूइलर यंग, जो एक प्रतिष्ठित ईरानी हैं, जिन्होंने इतिहास पर लिखा है और कैम्ब्रिज प्राचीन इतिहास और एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में शुरुआती ईरान के पुरातत्व, भी लिखते हैं कि कोई भी उप-महाद्वीप के बाहर प्रारंभिक हिंदू और संस्कृत कनेक्शन की तलाश कर सकता है।
`राम 'पूर्व-इस्लामी ईरान में एक पवित्र नाम था;
आर्य राम-अनना दारियस-प्रथम का प्रारंभिक पूर्वज था
जिसकी सोने की टेबलेट पुरानी फ़ारसी में एक प्रारंभिक दस्तावेज़ है;।
राम जोरास्ट्रियन कैलेंडर में एक महत्वपूर्ण नाम भी है; राम यश राम और वायु को समर्पित है, संभवतः हनुमान की एक प्रतिध्वनि; पर्सेपोलिस गोलियों टेबलेट में कई राम-नाम पाए जाते हैं।
राम बजरंग फार्स की कुर्दिश जनजाति का नाम है।
फ्राइ लिस्ट में राम-नामों के साथ कई सासैनियन शहर: राम अर्धशीर, राम होर्मुज़, राम पेरोज़, रेमा और रुमागम। राम-सहस्त्रान सूरों की प्रसिद्ध राजधानी थी।
राम-अल्ला यूफ्रेट्स (फरात नदी) पर एक शहर है और फिलिस्तीन में भी है।
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अति प्रामाणिक सुमेरियन राजा-सूची में राम और भरत
सौभाग्य से, सुमेरियन इतिहास का एक अध्ययन राम का एक काफी ज्वलंत मांस-और-रक्तमयी चित्र प्रदान करता है। 💞
अत्यधिक प्रामाणिक सुमेरियन राजा-सूची में भारत (वारद) सिन और रिम सिन जैसे नाम भी हैं।
जो भारतीय पुराणों के नायक राम और भरत के प्रतिरूप हैं ।
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सिन चंद्रमा भगवान चंद्र थे और can रिम ’के लिए क्यूनिफॉर्म प्रतीक के रूप में’ राम ’के रूप में भी पढ़ा जा सकता है,स सुमेरियन मिथकों में वर्णित( रिम -सिन) नाम भारतीय नाम राम चंद्र के समान है।
सुमेरियन ग्रंथों में राम-सिन को एलाम से सम्बद्ध कहा गया है जो उन्हें भारत-ईरान से जोड़ता है।
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राम मेसोपोटामिया के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले सम्राट थे जिन्होंने 60 वर्षों तक शासन किया।
भरत-सिन ने 12 वर्षों (1834-1822 ईसा पूर्व) पर शासन किया, जैसा कि दशरथ जातक में कहा गया है।
जातक का कथन है, "वर्ष साठ गुना सौ, और दस हजार अधिक, सभी को बताया / प्रबल सशस्त्र राम", इसका अर्थ केवल यह है कि राम ने साठ वर्षों तक शासन किया, जो असीरियाविदों के आंकड़ों से बिल्कुल सहमत हैं।
वाल्मीकीय रामायण में वर्णित अयोध्या सुमेरियन मिथकों में वर्णित सरगोन की राजधानी (अगडे) हो सकती है जिसकी पहचान अभी तक भारत में नहीं की गई है।
यह संभव है कि अगडे डेर या हार्ट के पास हरयु या सरयू नदी के पास थी।
डी० पी० मिश्रा जैसे विद्वान जानते थे कि राम हेरात क्षेत्र से सम्बद्ध हो सकते हैं।
प्रख्यात भाषाविद् सुकुमार सेन ने यह भी कहा कि राम अवेस्ता में एक पवित्र नाम है जहां उनका उल्लेख वायु के साथ किया गया है।
राम को कुछ ग्रंथों में राम मार्गवेय कहा जाता है, जिसमें से डॉ० सेन ने निष्कर्ष निकाला था कि वे मारिजुआना से हैं।
कैम्ब्रिज प्राचीन इतिहास में भारतीय प्राचीन इतिहास से संबंधित अमूल्य जानकारी सम्मिलित है।
सुमेरियन अभिलेख सिंधु युग की पहली तारीख प्रस्तुत करते हैं - रावण के साथ युद्ध 1794 ईसा पूर्व में हुआ था।💞
इस तथ्य का महत्व राम-सिन के शासनकाल (60 वर्ष) में सुमेरियन इतिहास में सबसे लंबे समय तक था, यह तथ्य अब अधिकांश लेखकों पर से खो गया है।
(सुमेरियन इतिहास में दो राम-सिन हैं।)
(बाइबिल के पुराने नियम में रघुपति राम)
हालांकि, आर० थापर जैसे इतिहासकारों के अनुसार, बाइबिल भारतीय इतिहास में अप्रासंगिक है, इसका एक सावधानीपूर्वक अध्ययन (रघुपति राम -(लगुमल) के बारे में अमूल्य जानकारी प्रदान करता है जो 'अंधेरे की ओर अग्रसर और समय को नष्ट करने' में मदद करते हैं।
पुराने नियम में एक उत्पत्ति कहानी इस प्रकार है:
"उस समय शिनार के आम्रपेल राजा, एलासर के अरोच राजा, एलाम के केदारलोमेर राजा, और गोइल के राजा, गोदीम के राजा, सदोम के बेरा राजा, गोमोराह के बिरसा राजा, अम्मा के शिनब राजा, ज़ेबियोम के किन्नर राजा, और बेला का राजा (जो कि ज़ोअर है)। "
आम्रफेल की व्याख्या ज्यादातर विद्वानों द्वारा हम्मुराबी-इलू के संकुचन के रूप में की जाती है, लेकिन लारसा के एरोच राजा और एल्म के राजा केदोरलोमेर के नामों का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने की आवश्यकता है।
यह नाम कुदुर-लहगूमल के अनुरूप प्रतीत होता है, जो तीन दिवंगत बेबीलोन की किंवदंतियों में होता है, जिनमें से एक काव्य रूप में है।
कुदुर-लहगूमल के अलावा, इनमें से दो टेबलेटों में दुरमाह-इलानी के बेटे एरी-अकु का भी उल्लेख है, और उनमें से एक तुदुल (क) या ज्वार का उल्लेख है जो बाइबिल परम्परा की सत्यता को साबित करते हैं।
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दूर्मा नाम धर्म की प्रतिध्वनि है और भारतीय इतिहास से संबंधित हो सकती है
(द बेबाह-इलानी द बेबीलोनियन ग्रंथों में दशरथ, राम के पिता थे)💥
कुदुर माबूक को अक्सर साहित्य में एक आदिवासी शेख के रूप में वर्णित किया जाता है जो दुखद रूप से अनुचित है।
शेख शब्द को अधिक उपयुक्त रूप से साका द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए जो उसे इंडो-ईरानी या इंडो-आर्यन से जोड़ता है।
यह इस तथ्य से संबंधित है कि गोतम बुद्ध को शाक्य कहा जाता था।
यही कारण है कि बौद्धों ने राम को अपना नायक माना, हालांकि सर हेरोल्ड बेली जैसे विद्वानों ने इसे शुद्ध धर्मवाद के रूप में माना है।
माबूक शब्द का संबंध महाभाष्य से भी प्रतीत होता है।
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यह उल्लेख किया जा सकता है कि गोटामा को एक भगवा कहा जाता था जो (बागापा) के बेबीलोनियन शीर्षक से मेल खाता है।
यह दुर्मह-इलानी नाम के महत्व पर प्रकाश डालता है।
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कुछ बाद के मितानियन राजाओं का तुसरत नाम दशरथ की प्रतिध्वनि प्रतीत होता है।
मार्गरेट एस० ड्रावर का अनुवाद है (टसरेटा का नाम 'भयानक रथों का मालिक' लेकिन यह वास्तव में 'दशरथ के मालिक' या 'दस गुना रथ' का हो सकता है),
और यह राम के पिता दशरथ के नाम की प्रतिध्वनि है।
दशरथ ने दस राजाओं की संघषर्ता का नेतृत्व किया।
इस नाम में आर्यार्थ जैसे बाद के नामों की प्रतिध्वनि है।
(सीता, ऋग्वेद का एक अत्यंत सम्मानित चित्र या पात्र भी है
ऋग्वेद [xvii] एक असुर को संदर्भित करता है
ऋग्वेद [xvii] राम नाम के एक असुर (शक्तिशाली राजा) को संदर्भित करता है, लेकिन कोसला का कोई उल्लेख नहीं करता है।
वास्तव में कोसल नाम शायद (खस-ला )था और सुमेरियन अभिलेखों के मार-कासे (बार-कहसे) के अनुरूप हो सकता है।
ऋग्वेद में सीता (चतुर्थ, .💒
5 sing.6) के साथ विलक्षण सम्मान का भी उल्लेख है; `शुभ सीता, तुम निकट आओ, हम तुम्हारी वंदना और पूजा करते हैं। '
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वाराद-सिन की बहन को सुमेरियन नाम एनाएडू के तहत उर में चंद्रमा-देवता के उच्च-पुरोहित के रूप में सम्मानित किया गया था।
उर की पहली ज्ञात मुख्य पुजारी हेंदु-एना थी, जो रिमुश [xix] की बहन थी।
धाराप्रवाह सुमेरियन में उनके द्वारा रचित कई भजन बचे हैं, जो उन्हें इतिहास का पहला साहित्यकार बनाते हैं।
मेसोपोटामिया में उसकी भारी प्रतिष्ठा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1500 साल बाद राजा नबोनिंदस ने यह दर्ज किया कि कैसे उसने उसकी खोज की और उसका स्मारक बरामद किया।
यह विलाप उसके निर्वासन (उर से) की बात करता है और निर्वासन वाल्मीकि का एक महत्वपूर्ण विषय है, हालांकि यह जातक का नहीं है,
जो अभिवृद्धि को दर्शाता है।
क्या इतिहास की पहली कवयित्री ने भारत के पहले कवि को प्रेरित किया था?
सुतला के पास अज्ञात रॉक-कट राहत - राम और सीता ?
"ईरान के रॉक नक्काशियों, अध्ययन के एक सदी के बावजूद, अभी भी अपर्याप्त रूप से प्रकाशित किए गए हैं।"
1942 में नेक डेबीवोइज़ ने लिखा। तथ्य यह है कि 150 साल के अध्ययन के बाद भी इनकी व्याख्या एक बहुत ही आदिम दृष्टिकोण से की जा रही है जो अनदेखा करता है। कि भारतीय और ईरानी परंपराओं का अटूट संबंध है।
यह खोजपरक तथ्य सर ऑरेल स्टीन और सर चार्ल्स एलियट जैसे महान विद्वानों के लिए जाना जाता था लेकिन आधुनिक विद्वानों ने आम तौर पर इसे अनदेखा कर दिया है।
सबसे अच्छी संरक्षित प्राचीन राहतों में से एक कुरंगुन के प्राचीन स्थल के पास एक ऊंची चट्टान पर है जिसे दूर से देखा जा सकता है।
मुख्य दृश्य में, जो एक आयताकार फ्रेम में संलग्न है, एक देवता एक नाग की कुंडलियों द्वारा गठित सिंहासन पर बैठता है जिसे वह गर्दन से पकड़ता है।
वह एक बर्तन भी रखता है जिसमें से पानी की दो धाराएँ निकलती हैं।
एक धारा भगवान और उसके पीछे एक देवी के ऊपर एक शामियाना बनाती है और शायद पकड़ी जाती है
एक परिचारक द्वारा रखे गए बर्तन में। अन्य धारा देवताओं की ओर जाने वाले लंबे-चौड़े पतले उपासकों की ओर बहती है।
छोटे भट्ठों में बड़ी संख्या में स्क्वाट पिग-टेल्ड आंकड़े चट्टान पर उकेरे गए हैं जैसे कि मुख्य दृश्य की ओर उतरते हुए।
इन आंकड़ों और मुख्य दृश्य के बीच की शैली में काफी अंतर है, जिसे यह मानकर समझाया गया है कि उपासकों के जुलूस की तुलना में बाद में इस दृश्य को फिर से काट दिया गया था।
एक नाग की कुंडलियों से निर्मित सिंहासन हनुमान की याद दिलाता है जो उनकी कुंडलित पूंछ पर बैठा है जो बाद की भारतीय कला में एक सामान्य विषय है।
बड़ी संख्या में स्क्वाट सुअर-पूंछ वाले आंकड़े वानरस (अमोराइट्स) का प्रतिनिधित्व हो सकते हैं।
यह याद रखना होगा कि एलामाइट शासन के दौरान कुरंगुन सुसा के साथ एक दोहरी राजधानी थी, कि राम-सिन एक एलामाइट सुमेरियन अभिलेखों से जाना जाता है, लेकिन एलाम में उसकी राजधानी कहाँ थी ?
यह तथ्य भी विचारणीय है ।
उनके पिता डेर से आए थे जो मोहनजोदड़ो (शायद महा-अंगा-द्वार) के नाम से मिलता जुलता है।
क्या सुमेरियों के इलाम में पूर्व की भूमि शामिल थी? यद्यपि ईरान पर मानक ग्रंथों में इसका उल्लेख नहीं है, लेकिन प्राचीन ईरान का सबसे पवित्र चित्र राम था।
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R. N. Frye जैसे यूरोपीय इतिहास लेखकों ने याद किया है कि डेरियस-प्रथम का प्रारम्भिक पूर्वज आर्य राम-अन्न था, जिसका नाम `राम 'की स्पष्ट प्रतिध्वनि है और प्रथम सास्यानियन राजा राम बिष्ट का नाम भी राम का स्मरण है।
राम-सहस्त्रन (सूर्यस्थाना?) सीनियर्स की प्रसिद्ध राजधानी और कई ससैनियन शहर-नाम गूंजते हैं राम।
कई सवालों के जवाब कुरंगुन के पास सिह-तालु या सुताला के नाम से दिए गए हैं।
सुतला, राम की शत्रु बाली की राजधानी थी, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद यह राजाओं द्वारा लिया जाना चाहिए था जो राम-सिन के प्रति वफादार थे।
वह बाली ईरान का राजा था जिसे भुला दिया गया है। सुमेरियन मिथक में, (इटाणा ) के बेटे, (बल्ह) ने 400 वर्षों तक किश पर शासन किया।
रामायण में भी किष्किंध्या (किश-खंड;) बाली के भाई सुग्रीव की राजधानी थी।
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