रविवार, 11 जून 2017

चमार कौन थे? ---इतिहास का एक बिखरा हुआ अध्याय ...( उत्तम विचारों)

चमार शब्द को संस्कृत भाषा  के चर्मकार शब्द से व्युत्पन्न कर दिया गया ।
यद्यपि अवान्तर काल में चमड़े का काम करने वाली हिंदू जन-जाति के लिए यह शब्द रूढ़ हो गया था ।
पुष्य-मित्र सुंग के निर्देशन में ब्राह्मण वर्चस्व को स्थापित करने के लिए योजना बद्ध तरीके से बौद्ध मत की प्रति क्रिया स्वरूप लिखे गये अनेक ग्रन्थ मनु-स्मृति आदि में में चमार जाति की उत्पत्ति चांडाल स्त्री और निषाद
पुरुष से मानी गयी ..
देखें--- पाराशर- स्मृति
......
तथा कहीं कहीं  वैदेह स्त्री और निषाद पुरुष से  (मनु-स्मृति- 10.36),
अथवा निषाद स्त्री और वैदेह पुरुष (महाभारत- 13.2588) से मानी गई है।
   परन्तु ये व्युत्पत्तियाँ शूद्र शब्द के समान ही आनुमानिक व मन गड़न्त हैं ।
क्योंकि सभी ग्रन्थों में एक समान नहीं हैं ।
क्योंकि विकल्प सत्य का द्योतक नहीं है ।
  प्रमाणित तथ्यों के आधार पर चमार शब्द की व्युत्पत्ति- शम्बर शब्द से हुई है ,जो कालान्तरण में चम्बर शब्द के रूप में आया , चम्बर ही चम्मारों का आदि पुरुष था ।
क्योंकि भारोपीय वर्ग की भाषाओं में यह प्रवृत्तियाँ पायी जाती हैं ।
कि "श" तालव्य उष्म वर्ण अपने वर्ग के " च" वर्ण मे परिवर्तित प्राय: हो जाता है ।
शम्बर का  (chamber) यूरोपीय भाषा परिवार में रूप है ।जिसे फ्रेंच भाषा के प्रभाव से  शम्बर उच्चारण करेंगे
तथा ग्रीक भाषा के प्रभाव से कम्बर उच्चारण करेंगे ।
लैटिन---जर्मन प्रभाव से चम्बर उच्चारण करेंगे ...
जैसे चाचा को काका अंग्रेज़ी(जर्मन- लैटिन ) प्रभाव से कहा गया .....
नि: सन्देह चोर और चम्बर (चम्वर) शब्दों का मूल अर्थ "आच्छादित करने वाला " ही है ।
"चोल " शब्द "कोल" का परवर्ती दक्षि़णीय रूप है ।
कोल जन जाति हिमालय पर चम्बर गाय के वालों से ऊनी वस्त्रों का निर्माण करते थे ।
चीन की सीमा-क्षेत्रों पर ये लोग रहते थे ।
कोरिया देश प्रमाणत: कोलों का देश है ।
कोरियन लोग बौद्ध मत के अनुगामी हैं ।
चीन का सांस्कृतिक नाम ड्रेगन (Dragan)
है जो द्रविड का नमान्तरण है ।
कालान्तरण में ड्रेगन का अर्थ केवल सर्प तक रूढं कर लिया ... लैटिन शब्द ड्रेकॉ (Draco) से सम्बद्ध कर ...
द्रविडों की एक प्रधान शाखा थी कोल ...
जिनका तादात्म्य प्राचीन फ्रॉन्स के गॉल जन-जाति से प्रस्तावित है । जिनके पुरोहित ड्रयूड (Druids) थे ।
शम्बर कोल जन जाति से सम्बद्ध था ।
लोकवार्ताओं के अनुसार आज भी चमार-कोरिया शब्द साथ-साथ हैं ।
ऋग्वेद के द्वित्तीय मण्डल के तृतीय सूक्त के छठे . श्लोकाँश में यही तथ्य पूर्ण- रूपेण प्रतिध्वनित है ।
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   उत दासं कौलितरं बृहत: पर्वतात् अधि आवहन इन्द्र शम्बरम् " ऋग्वेद-२/३/६..
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अर्थात् शम्बर के पिता कोलों के राजा थे ।
इसी शम्बर का युद्ध देव संस्कृति के अनुयायी भारत में आगत आर्यों से हुआ था |
जो इन्द्र के उपासक थे ।
इस सूक्त के अंश में कहा गया है " कि शम्बर नामक दास जो कोलों का मुखिया है पर्वतों से नीचे इन्द्र ने युद्ध में गिरा दिया "
ऐसा ऋग्वेद में वर्णन है ।

............
भारोपीयमूल से सम्बद्ध भाषा फ्रेंच में भी यह शब्द है ।
(Chamber) तथा( Chamber )अथवा (Camera )
के रूप में वर्णित है।
"सिमरी " या  "वेल्स"..अथवा वराह लोगों का विशेषण था यह चम्बर शब्द ...
जिनका सम्बन्ध फ्राँस के मूल निवासी गॉलों से था ।
यह हम ऊपर संकेत कर चुके हैं ।
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सिमरी (Cymri)
जर्मनिक जन-जातियाँ  से सम्बद्ध नहीं थे नहीं थे ।
वह तो गॉलों से सम्बद्ध थे.
  ग्रीक पुरातन कथाओं में भी भारतीय आर्यों के समान शम्बर का वर्णन ------"चिमेरा "(Chimaera )के रूप में
है -- जो अग्नि को अपने मुख से नि:सृत करता है ।
भारतीय वेदों में इसे ही शम्बर कहा है ।
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प्राचीन काल में आर्थिक तथा सामाजिक दृष्टि से दलित और अस्पृश्य जाति के रूप में यह चम्बर के वंशज हिंदू वर्णव्यवस्था के अन्तर्गत शूद्र वर्ण में मान्य होकर शताब्दियों से हीन स्तर पर स्थित रहे ।

इसका कारण भी यही था कि ये लोग कोलों से सम्बद्ध थे ।............
कुलीअथवा  दास बनाकर जिनसे दीर्घ काल तक भार-वाहक के रूप में दासता कर बायी गयी ।
और ये कोल लोग बाद मे आगत देव- संस्कृति के उपासक पुरुष सत्ता प्रधान आर्यों के सांस्कृतिक विरोधी तो  थे ही  ।.....
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आर्यों ने इन कोलों  को सर्व-प्रथम शूद्र कहा ..
कोल :----------- काली अथवा दुर्गा के उपासक मातृ सत्ता-प्रधान समाज के अनुमोदक थे ।
ये लोग परम्परागत रूप से वस्त्रों का निर्माण करते हीे थे ,
भारतीय आर्यों के सांस्कृतिक ग्रन्थों में --
इनके स्वरूप पर व्यंग्य किया है ।
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शूद्र शब्द भी यही अर्थ है -----"वस्त्रों का निर्माण करने वाला "।
इस शब्द का तादात्म्य यूरोपीय भाषा परिवार में आगत शूद्र शुट्र (Shouter) शब्द से है जो लैटिन में Sutor
प्राचीन नॉर्स में सुटारी Sutari एग्लो- सैक्शन Sutere
तथा गॉथिक भाषा में Sooter
के रूप में है ।
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अन्त: शाक्ता बहिश्शैवा सभा मध्ये च वैष्णवा ।
नाना रूप धरा कौला विचरन्तीह महितले ||
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अर्थात् भीतर से ये शक्ति यानि दुर्गा आदि के उपासक शाक्त हैं ।
बाह्य रूप से शिव के उपासक ,सभा के मध्य में वैष्णव  हैं ।
,अनेक रूपों में ये द्रविड लोग इस पृथ्वी पर विचरण करते हैं ।
बुद्ध की माता और पत्नी दौनों कोल समाज से थी
शाक्य शब्द का अर्थ शक्ति का उपासक कोल समुदाय ही है ।......
कदाचित वाल्मीकि-रामायण कार ने ...
इसी भाव से भी प्रेरित होकर ....
अयोध्या काण्ड सर्ग १०९ के ३४ वें श्लोक में "चोर:"
कहा है ।
क्योंकि बुद्ध से पूर्व चोर: शब्द चोल अथवा कोल  जन जाति का विशेषण था ।
क्योंकि वे आच्छादित करने वाले अथवा वस्त्रों का निर्माण करने वाले थे ।
कोल शब्द ही जुलाहा के रूप में लोक में प्रसिद्ध हो गया ..
ईरानी आर्यों ने शाक्तों को सीथियन (Scythian) कहा
जो शक लोग ही थे ।,
सत्य पूछा जाय तो शक भी शाक्यों या कोलों की ही एक शाखा थी ।
सुमेरियन संस्कृति में ये लोग केल्डियनों के अथवा द्रुजों के रूप में बाइबिल में वर्णित हैं .....

तथा बाल्टिक सागर अथवा स्केण्डिनेवियन संस्कृति में ये  कैल्ट तथा ड्रयूडों के रूप में  विद्यमान थे ।.
दक्षिण भारत में द्रविड लोग.. चेल चेट चेर तथा कोल कोड गौड़ तथा कोर के रूप में भी हैं ...
इसी चोल  से चोर शब्द का विकास हुआ है
यह भाषा वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो गया है ।
जिसका मूल अर्थ होता है ---"आच्छादक या छुपाने वाला "
परन्तु कालान्तरण में ब्राह्मण समाज के लेखकों ने चोर शब्द का अर्थ द्वेष वश  विकृत कर दिया ।
प्रथम प्रयोग...
वाल्मीकि - रामायण में बुद्ध से लिए "चोर" शब्द का हुआ ,
वाल्मीकि-रामायण में राम के द्वारा जावालि ऋष से सम्वाद करते हुए ...
राम के द्वारा बुद्ध को चोर और नास्तिक कहलवाया गया है ..
---------------&&-&&&--&&&&-&&&&&&&&&
बुद्ध को चोर तथा नास्तिक राम के द्वारा कहलवाया
देखें---
यथा ही चोर: स तथा हि बुद्धस्तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि ।।
           वाल्मीकि-रामायण :------- अयोध्या काण्ड १०९ वें सर्ग का ३४ वाँ श्लोक प्रमाण के रूप में वर्णित किया गया है ।......
इसी प्रकार और शब्दों की भी दुर्दशा हुई .........

जैसे- बुद्ध आदि शब्दों को बुद्धू कर दिया
जिसका अर्थ है :----- मूर्ख...
कहीं अरब़ी/फ़ारसी भाषा में "बुत".  मूर्ति का वाचक हो गया...
विश्व इतिहास में इन द्रविडों का बहुत ऊँचा स्थान है ।
यूरोपीय पुरातन कथाओं में ड्रयूड (Druids) के रूप में..
भारतीय धरातल पर शूद्र जन-जाति द्रविड परिवार की एक शाखा के रूप में वर्णित है ।
भारतीय पुराणों में भी ..और यूरोपीय पुरातन कथाओं में भी....
भारत में रहने वाले शूद्र ...
क्योंकि अहीरों के सानिध्य में रहने वाले ये शूद्र लोग बिलोचिस्तान में ब्राहुई भाषा बोलते थे ।
जो द्रविड परिवार की एक शाखा थी ।
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द्रविड प्राचीन काल में अध्यात्म विद्या के प्रथम प्रवर्तक थे ।
सृष्टि के मूल-पदार्थ (द्रव) के विद--अर्थात् वेत्ता होने से इनकी द्रविड संज्ञा सार्थक हुई ।......
योग की क्रिया-विधि इनके लिए आत्म-अनुसन्धान की एक माध्यमिकता थी ।
आत्मा की अमरता तथा पुनर्जन्म और कर्म वाद के सम्बन्ध में इनकी ज्ञान-प्राप्ति सैद्धान्तिक थी ।........
भारतीय आर्यों के सांस्कृतिक ग्रन्थों में वर्णित (ऊँ ) प्रणवाक्षर नाद-ब्रह्म के सूचक ओ३म् शब्द...
तथा धर्म जैसे शब्द भी मौलिक रूप से द्रविड परिवार के थे "..................

ये ओ३म् का उच्चारण यहूदीयों के "यहोवा "की तरह एक विशेष अक्षर विन्यास से युक्त होकर करते थे :--
जैसे ऑग्मा (Ogma)अथवा  आ-ओमा (Awoma)  तथा  धर्म को druma. कहते थे ...
जो वन संस्कृति से सम्बद्ध है ... संस्कृत शब्द द्रुम:
में यह भाव ध्वनित है ।............
परन्तु देव संस्कृति के उपासक जर्मनिक जन-जातियाँ से आगत भारतीय आर्यों ने इन्हीं के इन सांस्कृतिक शब्दों को
इन्हीं के लिए प्रतिबन्धित कर दिया :---
वैदिक विधानों का निर्माण करते...
      ..... "स्त्रीशूद्रौ नाधीयताम "

मनु-स्मृति में वर्णित है :- धर्मोपदेश विप्राणाम् अस्य कुवर्त: ।
तप्तम् आसेचयेत् तैलं वक्त्रे श्रोत्रे च पार्थिव:।।
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अर्थात् शूद्रों को केवल ब्राह्मण समुदाय का आदेश सुनकर उसे शिरोधार्य करने का कर्तव्य नियत था ,
उन्हें धर्म संगत करने का भी अधिकार नहीं था ,यदि वे ऐसा कर भी लेते आत्म-कल्याण की भावना से तो,  वैदिक विधान पारित कर , शूद्र जन-जाति की
ज्ञान प्राप्त करने की चेष्टा पर ही प्रतिबन्ध लगा दिया गया.
और इसका दण्ड भी बड़ा ही यातना-पूर्ण था ।
उनके मुख और कानों में तप्त तैल डाल दिया जाता था --------------------------------------------------------------
  सभी वर्णों का अपराध कुछ आर्थिक दण्ड के रूप में निस्तारित हो जाता था , परन्तु शूद्रों के लिए केवल मृत्यु का ही विधान था ...
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देखें ---शतं ब्राह्मण माक्रश्य क्षत्रियो दण्डं अर्हति।
वैश्योप्यर्ध शतं द्वेवा शूद्रस्तु वधम् अर्हसि ।।।
                                            मनु-स्मृति-- ८/२६७/
मनु-स्मृति में वर्णित है ,कि ब्राह्मण बुरे कर्म करे तब भी पूज्य है ।
क्योंकि ये भू- मण्डल का परम देवता है ।
देखें---
राम चरित मानस के अरण्यकाण्ड मे तुलसी दास लिखते हैं " पूजयें विप्र सकल गुण हीना ।
शूद्र ना पूजिये ज्ञान प्रवीणा ।।
_______________________.  __________
अर्थात् ब्राह्मण व्यभिचारी होने पर भी पूज्य है ,
परन्तु शूद्र विद्वान होने पर भी पूज्य नहीं है "
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मनु स्मृति में भी कुछ ऐसा ही लिखा है ।
--------------------------------------------------
एवं यद्यपि अनिष्टेषु वर्तन्ते सर्व कर्मसु ।
सर्वथा ब्राह्मणा पूज्या: परमं दैवतं हितत् ।।
    --------------------------------                                मनु-स्मृति-९/३१९
निश्चित रूप से तुलसी दास जी ने मनु-स्मृति का अनुशरण किया है ।
  मनु के नाम पर निर्मित मनु-स्मृति में
पुष्य-मित्र सुंग के निर्देशन में....
ब्राह्मणों ने विधान पारित कर दिया :--- कि शूद्र  ब्राह्मण तथा अन्य क्षत्रिय वर्णों  का झूँठन ही खायें , तथा उनकी वमन (उल्टी)भी  चाटे ..
  देखें---
__________________________________________
उच्छिष्टं अन्नं दातव्यं जीर्णानि वसनानि च ।
पुलकाश्चैव धान्यानां जीर्णाश्चैव परिच्छदा:।।
---------------------------------------------------------
---अर्थात् उस शूद्र या सेवक को उच्छिष्ट झूँठन
बचा हुआ भोजन दें ।
फटे पुराने कपड़े , तथा खराब अनाज दें...
----------------------------------------------------
 
    क्या खाद्य है ?
  क्या अखाद्य है ?      इसका निर्धारण भी तत्कालीन ब्राह्मण समाज के निहित स्वार्थ को ध्वनित करता है।यहाँ ब्राह्मण समाज की कुत्सित मानसिकता व कपट भावना मुखर हो गयी है ।
______________________________
अर्थात् ब्राह्मण माँस भक्षण करे , तो भी यह धर्म युक्त है
ब्राह्मण हिंसा (शर्मण) करे  , तब यह मेध है ।
जैसा कि कहा
मनु-स्मृति में-------
"वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति"
मनु-स्मृति- में देखें--- ब्राह्मण को माँस खाने का
विधान पारित हुआ है ।
-----------------------------------------------------------
              विधान.......
--यज्ञार्थ ब्राह्मणैर्वध्या: प्रशस्ता मृगपक्षिण:
प्रोक्षितं भक्षयन् मासं ब्राह्मणानां च काम्यया ।।
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अर्थात् - ब्राह्मण पशु ,पक्षीयों का  ,
यज्ञ के लिए अत्यधिक वध करें ।
तथा अपनी इच्छानुसार ब्राह्मण उनके मांस को धोकर खायें ...
चमार केवल मृत पशु ओं के शरीर से चर्म उतारते थे , क्योंकि वे
  बुद्ध का अनुयायी होने से हिंसा नहीं करते थे        ------------------------------------------              

      चम्मारों का कार्य वस्त्रों का निर्माण करना भी था
युद्ध में ये लोग ही ढाल-धारी सैनिक थे..
   तब ये चर्मार: कहलाते थे .....
क्योंकि चर्मम् संस्कृत भाषा में ढाल को कहते हैं ।
यूरोपीय भाषा परिवार में सॉल्ज़र अथवा सॉडियर )Soudier ) अथवा Soldier
भी यही थे ।
सॉल्ज़र शब्द की व्युत्पत्ति- यद्यपि रोमन
शब्द Solidus -(एक स्वर्ण सिक्का )
के आधार पर निर्धारित की है ।
परन्तु ये पृक्त या पिक्ट लोग थे जो स्कॉटलेण्ड में शुट्र नामक गॉलों की शाखा से सम्बद्ध थे ।
जो भारत में कोल कहलाते थे ।
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कारण संभवत: उनका वही उद्यम है, जिसमें चमड़े के जूते बनाना, मृत पशुओं की खाल उधेड़ना और चमड़े तथा उससे बनी वस्तुओं का व्यापार करना आदि आदि.... था।
संस्कृत के चर्मार, चर्मकृत, चर्मक आदि चर्मकार के पर्यायवाची शब्द इस तथ्य की ओर संकेत करते हैं।
आज सामाजिक प्रतिष्ठा की दृष्टि से चमड़े का उद्योग एक अधम व्यवसाय बन गया है ।

परन्तु यूरोप की शीत प्रधान जल-वायु में चर्म कार्य हीन नहीं था न आज भी है ।
बड़ा ही श्लाघनीय था ।
यह केवल भारत में हुआ .
इसी से चर्मकार हीन समझे जाने लगे।.......

कालान्तरण में उद्यम के आधार पर जब जाति की उच्चता अथवा हीनता का प्रश्न उपस्थित हुआ ,
तब विचारकों का ध्यान इस ओर गया , और उन्होंने वर्णव्यवस्था के विपरीत मत प्रकट किए।
वर्णव्यवस्था के समर्थकों और विरोधियों के बीच यह समस्या दीर्घकाल तक उपस्थित रही।
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14वीं शताब्दी के आसपास इस ढंग के संशोधनवादी और सुधारवादी दर्शन के कई व्यख्याता हुए ,जिन्होंने जातिगत रूढ़ियों और संस्कारों के विरुद्ध संगठित आंदोलन किए।
परन्तु कामयावी नहीं मिली .
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सत्रह करोड़ चमार क्या चमड़े का ही कार्य करते हैं ?
यह एक प्रश्नवाचक है !
परन्तु फिर भी केवल चर्म कार्य करने वाले अर्थ में ही  चमार शब्द रूढ़ कर दिया गया है ।
जाटवों को चमार ही कहा गया है , तो यह एक द्वेष पूर्ण षड्यन्त्र ही था  ।
जाटव शब्द महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज के पौत्र तथा शम्भु जी महाराज के पुत्र शाहु जी महाराज की उपाधि (title)जादव /जाधव से विकसित हुआ है ।..........................................?.??

जिनका सम्बन्ध व्रज- क्षेत्र की महर गोप जाति से था ।
जिन्हें समाज मे उचित सम्मान न मिला ..
महाराष्ट्र के मूल में भी महार शब्द ही है ।
महारों के सहयोग से शिवाजी महाराज ने मराठी साम्राज्य की स्थापना की ...
मराठी बोली का विकास भी व्रज-क्षेत्र की शौरसेनी प्राकृत से  हुआ है । ............
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तत्कालीन ब्राह्मण समाज - व्यवस्था में ये शूद्रों के रूप में वर्णित हुए है ।
पेशवा ब्राह्मण थे जो शाहु जी महाराज की उदारता का
चालाक से अनुचित लाभ लेकर ..
शाहु जी के प्रति विद्रोही स्वर में बगावत कर बैठे ..
और उनके वंश को शूद्र घोषित कर दिया...
महाराष्ट्र में जाधव/जादव आज भी  शूद्र हैं ...
और सामाजिक रूप से महारों से सम्बद्ध  हैं ।
____________________________________________
सत्य पूछा जाय तो यह जादव शब्द यादव शब्द का ही व्रज-क्षेत्रीय अथवा राजस्थानी रूप है ।
क्योंकि शिवाजी महाराज स्वयं यादव वंशी थे ।
    सन् १९२२ के समकक्ष इतिहास कारों विशेषत: देवीदास ने प्रबल प्रमाणों के आधार पर दिल्ली के एक एैतिसिक -सम्मेलन में प्रथम बार जटिया चमारों के लिए जाटव उपाधि से नवाज़ा था ।
____________________________________
   अत: अब वह जादव ही जाटव हो गया है ।
जादव से जाटव बनने में पञ्जाबी प्रभाव है ।
.....................
रामानंद के प्रसिद्ध शिष्य रैदास इन्हीं में से थे, जिन्हें चमार जाति के लोग अपना पूर्वपुरुष मानते हैं।
यहाँ तक कि रैदास शब्द आगे चलकर चमारों की सम्मानित उपाधि बन गया।......
निर्गुनियाँ संतों ने एक स्वर से जातिगत संकीर्णता का खुला विरोध किया।
किन्तु इतना होते हुए भी चमार जाति में वांछित परिवर्तन न हुआ।
आधुनिक युग में परिगणित, पिछड़ी तथा अछूत जाति के अंतर्गत चमारों को सामाजिक-राजनीतिक अधिकार प्रदान करने के निमित्त कानून बने और सुधारान्दोलन भी किए गए।
इस जाति के मुख्य निवासस्थान बिहार और उत्तर प्रदेश हैं।......
किन्तु अब ये भारत के अन्य भागों - बंगाल, पंजाब, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में बस गए हैं।
दक्षिण भारत के द्रविडमूल जातियों में भी इनका अस्तित्व है।
वर्तमान समय में यह जाति अनेक धंधे करती है ,जिनमें कृषि तथा चर्म उद्योग मुख्य हैं।
अब ये लोग शिक्षा के क्षेत्र में सभी दलित जन-जातियों से आगे हैं ।
प्राय: इनका स्वरूप श्रमजीवी, खेतिहर मजदूर जाति का है।
इसकी अनेक उपजातियाँ हैं।
उनमें जैसवार, धुसिया, जटुआ, हराले आदि मुख्य हैं। मद्रास और राजस्थान में इन्हें क्रमश: 'चमूर' और 'बोलस' कहा जाता है।
इसकी सभी उपजातियों में सामाजिक तथा वैवाहिक संबंध बहुत घनिष्ट हैं।
बहुविवाह की प्रथा अब समाप्त हो रही है।
इनकी जातीय पंचायतें आपसी विवादों को तय करती तथा सामाजिक और धार्मिक कार्यो का संचालन करती हैं। .........
इनमें विधवा -विवाह की व्यापक मान्यता है।
यह पृथा यहूदीयों में थी ....
अर्थात् यादवों में
रोमन संस्कृति में लैविरेट( levitate)
वैदिक विधानों मे" द्वित्तीयो वर: इति देवर:"
-----यास्क निरुक्त में यह व्युत्पत्ति-
प्रतिबिम्ब है उस परम्परा का ...
आर्यों ने नियोग पृथा का निर्माण भी विधवा विवाह के समाधान हेतु किया ...
पुरानी प्रथा के अनुसार वधूमूल्य भी प्रचलित था। लेकिन इन सभी स्थितियों में अब तेजी से परिवर्तन हो रहा है।
यह असुर अथवा असीरियन पृथाओं के अवशेष मात्र हैं

इस जाति में अनेक अंधविश्वास व्याप्त हैं।
भूत प्रेत, जादू टोना, देवी भवानी की सामान्य रूप से सभी ओर गहरी मान्यता है।
क्योंकि ये लोग शाक्तों का ही रूप थे ...
शम्बर को परवर्ती पुरण साहित्य में चम्बर भी कहा है .
चमार समाज में ..
अनेक अहिंदू देवता भी पूजे जाते हैं , जिन्हें विविध चढ़ावे चढ़ते हैं।
बलि की प्रथा प्राय: सभी प्रांतों के चमारों में प्रचलित है।

चमारों में रैदासी, कबीरपंथी, शिवनारायनी बहुतायत से पाए जाते हैं।
कुछ चमारों ने सिख, ईसाई और मुस्लिम धर्म भी स्वीकार कर लिया है।
क्योंकि ब्राह्मण समाज के धर्म-अध्यक्षों ने
इन्हें हीन तथा हेय बनाया
अशिक्षा और संस्कार हीनता के कारण इनमें अनेक अनैतिकताओं का समावेश हो गया ।
वस्तुत: ये शिक्षा और धर्म-संस्कार के अधिकार इन से ब्राह्मण समाज द्वारा बल-पूर्वक छीन लिए गये थे ।
मन्दिरों में प्रवेश करना इनके लिए जघन्य पाप कर्म घोषित कर दिया था ।........
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फिर ऐसी जहालत भरी हालातों मे इनका बौद्धिक विकास न हो सका ..
   परन्तु इनके रक्त में महान पूर्वजों का गुण था ।
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इस लिए ये जन-जातीयाँ विना साधन के भी बहुत आगे बढ़ी चली गयीं ...
और अपने प्रतिद्वन्द्वी ब्राह्मण समाज से मुकाबला करने वाला  यही प्रथम समाज था ...
और आज भी है ।
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      विचार-विश्लेषण---योगेश कुमार" रोहि"
ग्राम ---आजा़दपुर
पत्रालय ---पहाड़ीपुर , जनपद ---अलीगढ़---
सम्पर्क-सूत्र---8077160219.../

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32 टिप्‍पणियां:

  1. अबे चूतिये वो कोलिय वंश था और आज भी है ।आज भी कोल्या वंश क्षत्रिय राजपूतो में आता है , कोलिय वंश का इतिहास अपने मे मिलाने का अच्छा प्रयाश कर रहे हो ,लेकिन इतिहास नही बदल पाओगे दोस्त ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. भारत के राष्ट्रपति अनुसूचित जाति के अंतर्गत आते हैं या राजपूत अगर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद क्षत्रिय राजपूत हैं तो मंदिर के बाहर पूजा करवाई अंदर जाने से क्यों रोका और कितने कोली लोगों से आपकी रिलेशनशिप है?

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    2. कोली वंश बुध्‍ध के समय था
      ओर वह राजपुत मे नही आती

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    3. Saalo ye v inlog mangadhant story bna rhe...abe astha ko le kr apni maa,bahan kyu krwate ho tmlog....ye astha visay h...jaise hnuman g ko mante ho na but unka koi parman nhi h....sant ravidas v waise h likin insan rupi sina chir k dikhane wale ek matr bhagwan h sant seromani ravidas...or sath hi tmhare ramanand sagar se pahle the...kyun hr chij ko apne jor lete to manuwadiyo...or kitna murkh bnaoge logo ko...wo sb choro savindhan k adhar pe chalo samanta k andolan mai bhaglo...is modern jamana mai ved part or kuran se kuch nhi desh ka tarakee hone wala h...apne apne dil mai astha rakho...

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    4. Or beta jo tum koli wans ka baat kr rhe kis evidence se bol rhe ho ki wa chhatriye h...manusmreeti k adhar pe to beta pahle apna itihas janne ki kosis kro tmhare purwaj kon h...ye koli chhatriye nhi sc h...chhatriye na hona hi acha h tmhare lye kyu ki manusmriti k adhar se bhagwan parsuram 21bar dharatal ko chhatriye wihin kr diya tha...to phir chhatriye paida hue kaha se...brhaman k aulad ho manusmreeti k adhar pr...to bhai ye sb bato se dur rho dil ko bahot thes pahochti h...ye sb le kr samajik santulan bigado mat..samanta ki baat kro ki svi insan h or ek saman h..

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    7. Saalo ye v inlog mangadhant story bna rhe...abe astha ko le kr apni maa,bahan kyu krwate ho tmlog....ye astha visay h...jaise hnuman g ko mante ho na but unka koi parman nhi h....sant ravidas v waise h likin insan rupi sina chir k dikhane wale ek matr bhagwan h sant seromani ravidas...or sath hi tmhare ramanand sagar se pahle the...kyun hr chij ko apne jor lete to manuwadiyo...or kitna murkh bnaoge logo ko...wo sb choro savindhan k adhar pe chalo samanta k andolan mai bhaglo...is modern jamana mai ved part or kuran se kuch nhi desh ka tarakee hone wala h...apne apne dil mai astha rakho...

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    8. Land ka samnta wo v manusmriti se hi category liya hai bolte category nhi banne ko

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    9. कोली राजपूत चमार के सगे भाई हैं

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    1. Koi ब्राह्मण शास्त्रों की निंदा नहीं कर रहा है, वह तो शास्त्रों में अलग से बाद मे जोड़े गए पाखंडों की सच्चाई बता रहा है। वास्तव मे पाखंड से पूर्व भारतीय धर्म जब अपने मूल रूप में थे तो वे बड़े ही सटीक प्रभावी और वैज्ञानिक रहे होंगे।

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  3. विस्तारित रूप से इतिहास बताने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं महोदय जी, जो लोग इस समाज के लिए अहित किया करते थे और करते आ रहे हैं वे तो आज भी आप पर बुरी टिप्पणियां करेंगे क्योंकि उनके खून में ही खराबी है और उन्होंने ऐसा इस समाज के पूर्वजों के साथ किया भी है किंतु इतिहास को बदला नहीं जा सकता वह तो लिखा जा चुका है और जो कोशिश आप कर रहे हैं वह बेकार नहीं जाएगी बल्कि आपका नाम इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूं कि आपने इस समाज के लिए अद्वितीय योगदान दिया परमेश्वर आपको आशीष दे और बुद्धि का वरदान ज्ञान का वरदान से परिपूर्ण करें ताकि आप और भी विस्तृत विश्लेषण कर सकें और परमेश्वर का एक माध्यम बन कर विश्व में ख्याति हासिल कर सके और तारीफ हो उस परमेश्वर प्रभु की जिसने आपको हमें इस सृष्टि को पेड़-पौधे जीव जंतुओं को बनाया है पुनः धन्यवाद करता हूं।

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  4. मान्यवर योगेश जी ने चमार जाति के बारे में सटीक लेख लिखा है। ये बधाई के पात्र हैं। चमार जाति से आज भी नफरत करने वालों की कमी नहीं है। जब से चमार जाति के लोग पढ़ कर अपने अधिकारों की बात करने लगे हैं, ऊंची जातियों के लोगों को बर्दाश्त नहीं है, इसलिए गलत टिप्पणियां करते हैं।

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    1. Kori Koli kshatriya jaati hai iska praman hajaro saalo purana itihash hai

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    2. Abe chutiya hazar saal kya hota hei . 7vi shatabdi me Rajput hi paida huye tabhi se jo koli log boadh dharm ko chhodkar manuwadi vichar ko manne lage wo rajput .

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  5. Very good information bhai
    Jay रोहिडा




    Very good info.
    Jay rohidas ji

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  6. Bhai chamar jati se itna kyu bhed-bhaw rakhte h ???
    Kripya jwab de...

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  7. Yadi Aapko Bhai Bhai me jhagara hota hai to bolana log chhon dete hai ek dusare ke Prati nafarat karane lagate hai.yahi hal Brahman aur chamar ke bich ka mamla hai.dono ka gotta ek hi hai kashyap.brahaman aur jatiyo se Milkar chamar ko kujati chhat diya.isi prakar dhire dhire apane ko chhonskar Sab jatiyo ke bare me manusmriti me abhadra tipadiya ki hai

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  8. Very good history batane me liye
    Ise padkar manusmriti ko manane Balo ko tej se jhatka Lagta hai.

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  9. Mahatwapurn jankari hai bhai isase jatiwad ka jahar kam krne me madat milegi dhanywaad sadhuwad.

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  10. आज के राजपुत अभी 700 AD के बाद उदय हुए । ये राजपूत ब्राह्मणों की ही सन्तानें है। लेकिन 700 AD से पहले पहले तक भारत में कई जगह मूलनिवासी राजाओं का राज था। पुष्य मित्र शुगं से पहले तक भारत में कोई ब्राह्मण नहीं थे। मौर्य काल तक 100% शुद्ध भारतीय मूलनिवासीयों का राज था। कोई चाणक्य ब्राह्मण नहीं था, उस समय ये ब्राह्मण भारत में थे ही नहीं । आज के राजपुत तो भारत में 700 AD से 1947 AD तक क्षत्रिय रहे हैं लेकिन उससे पहले यानी 150 BC से 700 AD तक भारत में 60-70% तक मूलनिवासीयों का ही राज था केवल पुष्य मित्र शुगं के समय को छोड़कर। वैसे ब्राह्मण धर्म का उदय तो पुष्य मित् शुंग से हो गया लेकिन उससे ज्यादा दिन कुछ फरक नहीं पड़ा और शक्ति के साथ ब्राह्मण धर्म का उदय हुआ 700-800 AD से।
    इसलिये क्षत्रिय या राजा होने का मतलब राजपूत होना नहीं हो जाता। चमार बौद्ध धम्म के मुख्य बुद्धिजीवी लोग थे जो कि राजा और प्रजा के बिच बहुत ही सम्मानीय थे, राजा इनको बहुत सम्मान देते थे।

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    1. मुन्ना ब्राह्मण तो थे क्योंकी इसका उल्लेख अशोक के अभिलेखों से ही मिलता है, और मेगास्थनीज कि इंडिका में भी , गौर तलब है कि दोनों तथ्य हिंदुओ द्वारा नहीं लिखे गए हैं। बात पुष्य मित्र शुंग की तो वह ब्राह्मण का ही बेटा था। केवल कर्म से क्षत्रिय था। उसने जो किया था धर्म के अनुसार वह ठीक ही था परन्तु उस समय के ब्राह्मनों ने वेदों पुराणों को अपने बाप का अमानत समझकर अपने हिसाब से लिख लिया

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  11. Kol vanas ko kaha se kaha mila rahe ho hm thakur the hai or hamesa rahenge

    Jai kol vans

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  12. Kori Koli kshatriya jaati ka chamar jaati se na koi Samband hai na koi Samband tha na kabhi rahenga koli ek kshatriya jaati hai idka praman hajaro saalo purana itihash hai

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