मंगलवार, 6 जून 2017

न्याय की देवी ..धीका

औपनिवेशिक काल में बने अधिकांश न्यायालय भवनों में हम आंखों पर पट्टी बांधे और हाथ में तराजू लिए खडी एक महिला की प्रतिमा देख सकते हैं।
यह न्याय की देवी है, जिसकी अवधारण यूनानी देवी डिकी( Dike) पर आधारित है।
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डिकी ज़्यूस (zuse) की पुत्री थीं ,और मनुष्यों का न्याय  करती थीं, |
वैदिक संस्कृति में ज्यूस को द्योस:  अर्थात् प्रकाश और ज्ञान  का अधिष्ठात्री  का देवता अर्थात्  बृहस्पति  कहा !
उनकी पुत्री डिकी अथवा (Dike)मानवीय न्याय की  देवी है ।
डाइक की   माँ थेमिस (Themis )दैवीय न्याय करती थीं।
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कलात्मक दृष्टि से डाइक को हाथ में तराजू लिए दर्शाया जाता था।
उनका रोमन पर्याय थीं , जस्टिशिया (Justitia)देवी ,
, जिन्हें आंखों पर पट्टी बाँधे दर्शाया जाता था।
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डाइक को मासूम हावभाव वाला बताया जाता था, जबकि एडिकिया (अन्याय) को कुरूप दिखाया जाता था।
डाइक के द्वारा एडिकिया को लाठी से पीटते हुए या फिर तलवार से मौत के घाट उतारते हुए भी दर्शाया जाता था।
ग्रीस पौराणिक कथा ( mythology) इलियड तथा आॉडेसी के अनुसार आख्यान इस प्रकार है :---
कि डाइक स्वर्ण तथा रजत युग में मनुष्यों के बीच रहती थीं, जब कोई युद्ध नहीं होते थे।
फिर मनुष्य लालची हो गए और न्याय को भूल गए।
तब ड उनके बीच से चली गईं और मानव कदाचार से दूर, देवताओं के निवास ओलिंपस पर्वत पर अपने पिता के पास रहने लगीं।
      न्याय को तराजू से जोड़ने का विचार इससे कहीं अधिक पुरातन है।
इसे मिस्र की न्याय की देवी मात और बाद में आइसिस के रूप में देखा जा सकता है।
मात का पंख दिवंगत आत्मा के हृदय को तौलने के लिए इस्तेमाल किया जाता था, ताकि तय हो सके कि उसे स्वर्ग में प्रवेश दिया जाए या फिर दैत्य का आहार बनने के लिए छोड़ दिया जाए।
यह विचार मिस्र के पौराणिक आख्यानों से यूनानी आख्यानों और वहां से ईसाई आख्यानों तक जा पहुंचा, जहां स्वर्गदूत माइकल ( एक फरिश्ता) को हाथ में तराजू लिए दिखाया जाता है।
अवधारणा यह है कि पाप से हृदय का भार बढ़ जाता है और पापी नरक में जा पहुंचता है।
इसके विपरीत, पुण्य करने वाले स्वर्ग में जाते हैं।
इधर भारत में यह धारणा घर करती जा रही है , सम्पन्न , बलवान और प्रसिद्ध व्यक्ति निरपराध होते हैं, और स्वर्ग जाते हैं।
प्रमाणों के ढेर के बीच तथ्य या प्रक्रिया संबंधी कोई त्रुटि निकल आती है ,और आरोपी को शंका का लाभ मिल जाता है।
वैसे विश्व भर के न्यायालय और न्यायिक व्यवस्थाएं इस धारणा के आधार पर बनी हैं, कि ईश्वर के प्रकोप के डर से मनुष्य बुराई से दूर रहेगा और ईश्वर/न्यायाधीश कभी गलत नहीं होते।
भारत ही नहीं यूनान में भी होते हैं नास्तिक आंखों पर पट्टी यह दर्शाने के लिए थी कि ईश्वर की तरह कानून के समक्ष भी सब समान हैं।
आखिर जेहोवा ने अपने ही दूत( नवी)मोसेज और राजा डेविड को मात्र एक कानून तोड़ने पर दंडित किया था। मनुष्य एक ऐसे विश्व की आशा करते हैं, जहां आरोपी का रुतबा देखे विना  उसके अपराध को देखा जाए। कई प्राचीन समाजों में न्याय करते वक्त आरोपी के श्रेणी को अवश्य देखा जाता है।
कई समुदायों में, यदि किसी सम्पन्न व्यक्ति ने गरीब की हत्या कर दी है, तो उससे उस गरीब के परिजनों को भारी-भरकम मुआवजा देने को कहा जाता है।
इस प्रकार प्रतिशोध पर व्यवहारिकता भारी पड़ती है। कई समुदायों में न्याय की तराजू अच्छे और बुरे कर्मों को तौलने के लिए होती थी।
अगर अच्छे कर्म बुरे कर्मों से अधिक हों, तो दोषी को कम सजा मिलती थी लेकिन यदि उसके बुरे कर्म अच्छे कर्मों से ज्यादा हों, तो उसे अधिक कड़ी सजा मिलती थी।
कर्मों का लेखा-जोखा रखने की न्यायिक प्रणाली कई प्राचीन समाजों में दिखाई देती है।
इनमें भारत भी शामिल है, जहां चित्रगुप्त पुण्य और पाप का लेखा-जोखा रखते हैं।
ये मिथकीय परिकल्पनाऐं  भारोपीय संस्कृतियों में समान रूप से की गयीं थी ।
न्याय की देवी डाइक को भारतीय पुराणों में ध्यायिका तथा धी: तथा धाकि कहा गया है ।
जो बुद्धि अर्थात् धी: का ही इतर रूप है ।
धाक शब्द के संस्कृत भाषा में अनेक कोशीय अर्थ हैं
धा+ उणादि प्रत्यय - क तस्य नेत्वम् :------१धारक २ब्रह्म (मेदिनीकोश)३वृषभ ४आधार५अन्न ६स्तम्भ ७
धाक का स्त्रलिंग रूप धाकि है जिसका अर्थ है धारणा- शक्ति ||

    वस्तुत: धी: अथवा ध्यायिका धर्म का ही लक्षण है ।
मानवीय करण रूप में धर्म परिवार की सदस्या है ।
धी: ।
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धृति: क्षमा दमोsस्तेयं शौचमिन्द्रयनिग्रह: |
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म्म लक्षणम् ...||
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धैर्य ,क्षमा ,दमन ,चौरी न करना ,पवित्रता (तन तथा मन की ) इन्द्रिय- निग्रह , धी - बुद्धि ,सत्य अक्रोध ,
ये धर्म के दश लक्षण हैं ।।
अर्थात् ध्यै + क्विप् =धी: यहाँ बुद्धि का ही एक रूप है
मति को संस्कृत भाषा में तथा मेटिस (Metis)
ग्रीक भाषा में है ।
जो बृहस्पति की पत्नी है ।
धी: मति की ही पुत्री है ।
विदित हो कि प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार में धर्म शब्द न्याय के अर्थ में ही मान्य था ।
ग्रीक भाषा में (Term)
लैटिन में Terminus is the Daity of moral boundary in Roman mythology "अर्थात् रोमन पुरातन कथाओं में नैतिक मर्यादा का अधिष्ठात्री देवता
टर्मीनस्  "
धी: शब्द संस्कृत भाषा की धातु ध्यै का सम्प्रसारित रूप है ।
अर्थात् ध्यै + क्विप् =धी:
अत: धर्म बौद्धिक प्रक्रिया है ।
जिनमें निर्णय लिया जाता है ।
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    विचार-विश्लेण---योगेश कुमार रोहि ग्राम आजा़दपुर पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़---के सौजन्य से--

3 टिप्‍पणियां:

  1. यह देवी गांधारी है जो कौरव पांडव की मां थी जिन्हें
    न्याय की देवी कहते हैं

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  2. यह देवी गांधारी है जिन्हें धर्म देवी कहा जाता था

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  3. यह देवी गांधारी है एक कौरव पांडव के परिवार की थी इसीलिए आज गीता की कसम अदालतों में लोग इस्तेमाल करते हैं और यहां
    सत्य है

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