★-"इतिहास के बिखरे हुए पन्ने"-★

बुधवार, 5 अप्रैल 2023

हिन्दू



 हिन्दी, हिन्दू , हिन्दुस्तान : शब्दों की दास्तान।
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जागरण विविधा
हिन्दी, हिन्दू , हिन्दुस्तान : शब्दों की दास्तान


हिन्दी , हिन्दू , हिन्दुस्तान –  आज ये शब्द सभी देशवासियों की  शब्दावली के सुपरिचित शब्द हैं।

इसलिए आज यह कल्पना करना भी कठिन है कि कभी ये शब्द सर्वथा अपरिचित थे, अज्ञात थे। 

 कुछ लोग कहते हैं कि ये शब्द  उसी हिन्दू धर्म से संबंधित हैं जो इस देश का सबसे प्राचीन धर्म है और आज भी इस देश के अधिकांश लोग जिसके अनुयायी हैं। 

दूसरे शब्दों में, जहाँ हिन्दू धर्मानुयायी रहते हों वह स्थान हिन्दुस्तान/ हिन्दुस्थान ; और हिन्दुओं की भाषा हिंदी।

 पर कठिनाई यह है कि यद्यपि हिन्दी इस देश की प्रमुख भाषा है, तथापि न तो सारे हिन्दू हिन्दीभाषी हैं, और न सारे हिन्दीभाषी हिन्दू हैं। 

साथ ही इस देश में केवल हिन्दू धर्मानुयायी ही नहीं अन्य धर्मानुयायी भी रहते हैं।

 इसके अतिरिक्त, जिसे हम  हिन्दू धर्म कहते हैं, उसका सारा प्राचीन साहित्य संस्कृत भाषा में है और उस साहित्य में कहीं भी इनमें से कोई शब्द मिलता ही नहीं।

 अतः यह तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि इन शब्दों का कोई सम्बन्ध संस्कृत से नहीं है।

 तो प्रश्न उठता है कि ये शब्द आए कहाँ से ? और हमारे समाज में प्रचलित कैसे हो गए ?

इस विषय में लोगों में मतभेद है। 

 कुछ लोगों का मानना है कि इन शब्दों के मूल में है हिन्दू शब्द जो मुसलमानों की देन है। 

हिन्दुओं और मुसलमानों का वैमनस्य पुराने समय से चला आ रहा है, अतः उन्होंने इस शब्द का प्रयोग गर्हित अर्थ में किया।

अपने पक्ष की पुष्टि में वे अरबी भाषा के ऐसे शब्दकोशों को उद् धृत  करते हैं जिनमें ‘ हिन्दू ‘ का अर्थ चोर, लुटेरा, लम्पट आदि दिया हुआ है ; पर दूसरे लोग इसका खंडन करते हुए कहते हैं कि मुसलमान जिस इस्लाम मज़हब के अनुयायी हैं उसकी शुरुआत तो अब से लगभग डेढ़ हज़ार वर्ष पूर्व ही हुई है , जबकि हिन्दू धर्म इससे बहुत पुराना  है। 

 साथ ही,  ये शब्द इस्लाम की शुरुआत से पहले भी विश्व साहित्य में मिलते हैं।  आइये देखें कि वास्तविकता क्या है।


विद्वानों का कहना है कि प्राचीन संस्कृत और पालि ग्रंथों में तो हिन्दी / हिन्दू / हिन्दुस्तान शब्द  कहीं भी नहीं मिलते, पर विश्व साहित्य में  इस देश के सम्बन्ध में ‘ हिन्दू ‘ या ‘ इंडो ‘ शब्द  मिलते  हैं।

  भारत के बाहर हिन्दू शब्द का प्राचीनतम उल्लेख पारसियों के धर्मग्रन्थ अवेस्ता में  मिलता  है (रामधारी सिंह दिनकर, संस्कृति के चार अध्याय , लोकभारती प्रकाशन,  इलाहाबाद,  1993 ; पृष्ठ 112 );   पर अनुमान है कि वहां यह शब्द इस देश की प्रमुख नदी     ‘ सिन्धु ‘ के लिए आया है ,

 किसी धर्म के अनुयायियों के लिए नहीं। 

अवेस्ता के अतिरिक्त  ‘ हिन्दू ‘ शब्द का प्राचीन  उल्लेख ईसा से लगभग 500 वर्ष पूर्व के फारस ( वर्तमान ईरान ) के नरेश दारा महान ( ईसा पूर्व 522 – 486 ; यूनानियों ने उसका नाम Darius लिखा है ) के अभिलेखों में पाया जाता है।

 पर वहां हिन्दू शब्द का प्रयोग न तो किसी नदी के लिए हुआ है और न किसी धर्म के लिए। 

इस अभिलेख में वह  एक प्रदेश का नाम है।  

दारा के साम्राज्य में 23  प्रांत थे जिन्हें ” क्षत्रपियाँ ” कहा जाता था।

 उनमें  से  ‘ गान्दार ‘ और ‘ हिंदु ‘  भारतीय भूभाग में थीं।

 दारा महान के पर्सिपालिस  अभिलेख और नख्शे रुस्तम अभिलेख में गंदार के साथ हिंदुश का उल्लेख है।  

उसके एक और अभिलेख ( सूसा पैलस ) में ‘हिन्दव ‘ शब्द आया है।

 दारा महान के बाद पारसीक नरेश शेरेश  (xerexsus) के पर्सिपालिस अभिलेख में भी गंदार और हिंदुश शब्द पाए गए हैं। 

 यह गंदार भारत का गांधार प्रदेश ( वर्तमान अफगानिस्तान ) और हिंदु / हिंदुश सिन्धु प्रदेश था ।

भाषा वैज्ञानिकों का कहना है कि  पारसीक लोग प्राचीन फारसी भाषा बोलते थे जिसमें  ‘'से ‘  का उच्चारण ‘ ह ‘ होता था। 

 इसीलिए वहां  ‘ सप्ताह ‘ को ‘ हफ्ता ‘, असुर को ‘ अहुर ‘ , ‘ सोम ‘ को ‘ अहोम ‘ कहा जाता था।  

और इसी वज़न पर  ‘ सिन्धु ‘  का  ‘  हिंदु ‘  हो गया जो सिन्धु नदी से सिंचित प्रदेश का भी नाम था और उस प्रदेश के निवासियों का भी।

 कालान्तर में उस प्रदेश के निवासियों को एवं उनकी भाषा को ‘ हिंदी ‘ भी कहने लगे वैसे ही जैसे सिंध के रहने वालों  को और उनकी भाषा को ‘ सिंधी ‘  कहते हैं।

 ‘ स ‘ के स्थान पर  ‘ ह ‘ का प्रयोग करने की प्रवृत्ति अपने भी  देश में मौजूद है।  राजस्थान में उदयपुर  और उसके आसपास  के क्षेत्रों में ‘ सड़क ‘  को ‘ हड़क ‘ , ‘ छह – सात ‘  को ‘ छह – हात ‘  कहा जाता है।


पारसीक तो हमारे पड़ोसी थे, और वेदमत के ही अनुयायी थे।  उनके धर्मग्रन्थ ‘ अवेस्ता ‘ और हमारे धर्मग्रन्थ वेद का  उद्गम एक ही धातु  ‘ विद ‘  ( ज्ञान / जानना ) से हुआ है।  वेद और अवेस्ता की विषय वस्तु में भी बहुत कुछ समानता है।   पारसीकों  के माध्यम से  जब यूनानियों  का ‘ हिंदु ‘ शब्द से परिचय हुआ तो उन्होंने ‘ हिंदु ‘  के महाप्राण ‘ हि’  को अल्पप्राण ‘ इ ‘ कर लिया क्योंकि यूनानी में ‘ ह ‘ के लिए कोई अक्षर नहीं था।  इसलिए वे  ‘ हिंदु ‘ को ‘ इंदु ‘  (Indu )/ ‘ इन्दो ‘ (Indo )  लिखने और बोलने लगे।

 सिन्धु में कई नदियाँ आकर मिलती हैं। 

 अतः यूनानियों ने उसे ‘ इंदुज ‘ ( Indus ) कहा , जैसे गंगा को गैंजेज (Ganges ) कहा। 

 इस इंदुज शब्द का ही उच्चारण बाद में  लोग ‘ इन्डस ‘ करने  लगे। 

 इसी  विकृति से ‘ इंडिया ‘ नाम निकला।

  इटली के कवि वर्जिल ( ईसा पूर्व  70 – 19 )  ने  इंडिया के बदले केवल  ‘  इंद ‘  लिखा है और अंग्रेजी कवि  जान  मिल्टन ( 1608 – 1674 )  ने भी भारत का नाम  ‘ इंड ‘  ही लिखा है।

चीनी यात्री हुएनसांग (629 ईसवी ) ने भी  इस देश को ‘ हिंदु ‘ कहा है , पर उसने इस शब्द का उद्गम  सिन्धु नदी के बजाय चीनी भाषा के शब्द ‘ इन्तु ‘ से बताया है जिसका अर्थ चंद्रमा होता है। उसने लिखा है कि आकाश में  तारों के बीच चन्द्रमा  की जैसी प्रतिष्ठा होती है,  संसार में उसी प्रकार प्रतिष्ठित होने के कारण भारत को चीन के लोग ‘ इन्तु ‘  या ‘ हिंदु ‘ कहते हैं। 

 हुएनसांग का यह विवरण  हमें इस तथ्य का स्मरण करा देता है कि यह देश कभी विश्व गुरू रहा है, ज्ञान – विज्ञान में ही नहीं, मानव व्यवहार की शिक्षा देने में भी अग्रणी रहा है।  तभी तो मनुस्मृति (2/20) में कहा गया है, ” एतद्देश प्रसूतस्य सकाशादग्र जन्मनः स्वं स्वं  चारित्र्यम्  शिक्षेरन पृथिव्याम् सर्व मानवाः (इस देश के विद्वानों से ही पूरे भूमंडल के लोगों ने  ज्ञान- विज्ञान – आचार – व्यवहार की  शिक्षा प्राप्त की ) ।

स्पष्ट है कि  देश के अर्थ  में हिन्दू शब्द का चलन विश्व साहित्य में  इस्लाम के जन्म से बहुत पहले, कोई हज़ार डेढ़  हज़ार वर्ष पहले दारा के अभिलेखों में शुरू हो गया था।

 अवेस्ता तो उससे भी बहुत पहले की रचना है। 
  
अतः इस शब्द के निर्माण में इस्लाम के अनुयायियों का कोई हाथ नहीं है ; हाँ, इन्हें प्रचलन में लाने में अवश्य उनका भी योगदान  है।


विश्व साहित्य में इन शब्दों की जो भी स्थिति हो , हमारे यहाँ इन शब्दों  का प्रचलन   लगभग तेरह  सौ  वर्ष  पूर्व  ईसा की सातवीं  शताब्दी में तब शुरू हुआ जब अरब  के सौदागर भारत के पश्चिमी तट पर आने लगे।

 यही कारण है कि सातवीं शताब्दी से पहले के प्राचीन भारतीय साहित्य में हमें ये शब्द नहीं मिलते। 

 जब यहाँ के लोगों ने इन शब्दों को स्वीकार कर लिया तब इन्हें अपने अर्थ देने भी शुरू कर दिए।  जैसे, शब्द कल्पद्रुम – कोश में लिखा , ” हीनं दूषयति इति हिन्दू ” जो हीनता को स्वीकार न करे वह हिन्दू है। जब पता चला कि मुस्लिम  कोश में ‘ हिन्दू ‘ शब्द दूषित अर्थ में है तो  उससे विचलित हुए बिना उसकी प्रतिक्रिया  में  रामकोष नामक ग्रन्थ में  लिखा , ” हिंदु दुष्टो न भवति  नानार्यो न विदूषकः  ; सद्धर्मपालको विद्वान श्रौतधर्मपरायणः” ( हिन्दू न तो दुष्ट होता है, न विदूषक, न अनार्य। 

वह सद्धर्म पालक ,  वैदिक धर्म को मानने वाला विद्वान होता है )।  

 इसी प्रकार वृद्ध स्मृति नामक ग्रन्थ में लिखा, ” हिंसया दूयते यश्च सदाचरणतत्परः ,  वेदगो प्रतिमासेवी स हिन्दू मुखशब्दभाक ( जो सदाचारी,  वैदिक मार्ग  पर चलने वाला, प्रतिमापूजक और हिंसा से दुःख मानने वाला है, वह हिन्दू है ) ।  

 माधव दिग्विजय के अनुसार  ओंकार जिसका मूलमंत्र है, पुनर्जन्म में जिसकी दृढ़ आस्था है , जो गोभक्त है,  भारत को जो अपना गुरु मानता है, हिंसा की जो निंदा करता है — वह हिन्दू है  ( ओंकारमूलमंत्राढयः पुनर्जन्मदृढाशयः ,  गोभक्तो भारतगुरु हिन्दुहिंसनदूषकः ) । 

स्पष्ट है कि समय के साथ इन शब्दों के अर्थों में अंतर आने लगा और धीरे – धीरे ‘ हिन्दू ‘ शब्द  धर्म विशेष के अर्थ में तथा ‘ हिंदी ‘ शब्द भाषा के अर्थ में रूढ़ होने लगे।

इसके बावजूद इनके मूल अर्थ को सुरक्षित रखने की कोशिश भी अभी कुछ समय पहले तक  होती रही। 

 लगभग एक शताब्दी पूर्व स्वातंत्र्य वीर सावरकर जी ( 1883 – 1966 )  के बनाए गए उस श्लोक से तो अनेक लोग परिचित हैं जिसमें इस देश के सभी निवासियों को हिन्दू कहा गया है ।

और जो पर्याप्त समय तक हिन्दू महासभा का भी आदर्शवाक्य रहा, “ आसिंधो:  सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका ,  पितृ भू: पुण्य भूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः “ ( वे सभी लोग हिन्दू हैं जो  सिन्धु नदी से लेकर समुद्र तक फैले विस्तृत भूभाग में रहते हैं और जो भारत को अपनी पितृभूमि तथा तीर्थ मानते हैं ) , पर  मुसलमानों के प्रसिद्ध  नेता सर सैयद अहमद  खां ( 1817 – 1898 ) के उस वक्तव्य  से कम लोग परिचित हैं जो उन्होंने सन 1883 में पंजाब की एक सभा में दिया।  उन्होंने कहा ,

  ” मेरी राय में  हिन्दू लफ्ज़ का मतलब किसी मज़हब  से नहीं, बल्कि जो भी  हिन्दुस्तान में रहता है उसे  अपने को हिन्दू कहने का हक़ है।

  मैं भी हिन्दुस्तान में रहता हूँ , पर मुझे अफसोस है कि आप मुझे हिन्दू नहीं   मानते।  ”   you have used the term ‘ Hindu ‘ for yourselves. This is not correct. For, in my opinion, the word Hindu does not  denote a particular religion, but, on the contrary, every one  who lives in India has the right to call himself a Hindu. I am , therefore, sorry that though I live in India , you do not consider me a Hindu . ( Tara chand  :  Freedom  Movement, Vol. II ,  Government of India, ; 1967 ;  Pages 357  – 358 )


इसी अर्थ में ‘ हिंदी ‘ शब्द का भी प्रयोग होता रहा है।   मोहम्मद इकबाल ( 1877 – 1938 ) के प्रसिद्ध गीत  ‘ सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा ‘  में पंक्ति है “ हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ  हमारा “, इसमें ‘ हिन्दी ‘  देशवासियों के लिए ही कहा गया है।  प्रायः सारे उर्दू एवं फारसी  साहित्य में भारतवासियों को ‘ हिन्दी ‘ ही कहा गया है।  यह सामान्य परम्परा रही है कि किसी देश के निवासियों और उनकी भाषा को एक ही नाम से अभिहित किया जाता है।  जैसे चीन के निवासी चीनी और उनकी  भाषा भी चीनी (जबकि चीनी कोई भाषा न होकर एक भाषा परिवार है) , जापान के  निवासी जापानी और उनकी  भाषा भी जापानी।  वैसे ही हिंद के निवासी ‘ हिंदी ‘ और उनकी भाषा भी हिंदी (अगर चीन के उदाहरण से कोई प्रेरणा ली जाए तो ‘ हिंदी ‘ का अर्थ होगा  सभी भारतीय भाषाएँ)।

जहाँ तक हिन्दुस्तान शब्द का सम्बन्ध है यह उस स्थान का वाचक रहा  जहाँ ‘ हिन्दू ‘  रहते हों ( संस्कृतप्रेमी  इसे ‘ हिन्दुस्थान ‘ कहना पसंद करते हैं ) ; पर इस शब्द का प्रयोग उर्दू का प्रचलन  (16 वीं शताब्दी ) होने के बाद  ही मिलता है । 

 यद्यपि  तब  एक ‘ धर्म ‘ के रूप में हिन्दू शब्द प्रतिष्ठित हो चुका था , इसके  बावजूद हिन्दुस्तान शब्द का प्रयोग  उस देश के लिए ही होता था जिसमें तब भी विभिन्न धर्मानुयायी रहते थे ।  हिन्द में रहने वाला हिन्दू। इस रूप  में यह धर्म का नहीं, राष्ट्रीयता का बोधक है।

 स्वतंत्र भारत के संविधान में तो अपने देश का नाम ” इंडिया दैट इज़ भारत ” लिखा है , पर बोलचाल में आज भी सभी धर्मानुयायी ‘ हिन्दुस्तान ‘ शब्द का प्रयोग निस्संकोच करते हैं ।  इस प्रकार  इसमें  इतिहास और  भूगोल दोनों ही दृष्टियों से ‘ हिन्दू ‘  शब्द का मूल अर्थ  आज भी सुरक्षित है ।
 हिन्दी, हिन्दू , हिन्दुस्तान : शब्दों की दास्तान।
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जागरण विविधा
हिन्दी, हिन्दू , हिन्दुस्तान : शब्दों की दास्तान


हिन्दी , हिन्दू , हिन्दुस्तान –  आज ये शब्द सभी देशवासियों की  शब्दावली के सुपरिचित शब्द हैं।

इसलिए आज यह कल्पना करना भी कठिन है कि कभी ये शब्द सर्वथा अपरिचित थे, अज्ञात थे। 

 कुछ लोग कहते हैं कि ये शब्द  उसी हिन्दू धर्म से संबंधित हैं जो इस देश का सबसे प्राचीन धर्म है और आज भी इस देश के अधिकांश लोग जिसके अनुयायी हैं। 

दूसरे शब्दों में, जहाँ हिन्दू धर्मानुयायी रहते हों वह स्थान हिन्दुस्तान/ हिन्दुस्थान ; और हिन्दुओं की भाषा हिंदी।

 पर कठिनाई यह है कि यद्यपि हिन्दी इस देश की प्रमुख भाषा है, तथापि न तो सारे हिन्दू हिन्दीभाषी हैं, और न सारे हिन्दीभाषी हिन्दू हैं। 

साथ ही इस देश में केवल हिन्दू धर्मानुयायी ही नहीं अन्य धर्मानुयायी भी रहते हैं।

 इसके अतिरिक्त, जिसे हम  हिन्दू धर्म कहते हैं, उसका सारा प्राचीन साहित्य संस्कृत भाषा में है और उस साहित्य में कहीं भी इनमें से कोई शब्द मिलता ही नहीं।

 अतः यह तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि इन शब्दों का कोई सम्बन्ध संस्कृत से नहीं है।

 तो प्रश्न उठता है कि ये शब्द आए कहाँ से ? और हमारे समाज में प्रचलित कैसे हो गए ?

इस विषय में लोगों में मतभेद है। 

 कुछ लोगों का मानना है कि इन शब्दों के मूल में है हिन्दू शब्द जो मुसलमानों की देन है। 

हिन्दुओं और मुसलमानों का वैमनस्य पुराने समय से चला आ रहा है, अतः उन्होंने इस शब्द का प्रयोग गर्हित अर्थ में किया।

अपने पक्ष की पुष्टि में वे अरबी भाषा के ऐसे शब्दकोशों को उद् धृत  करते हैं जिनमें ‘ हिन्दू ‘ का अर्थ चोर, लुटेरा, लम्पट आदि दिया हुआ है ; पर दूसरे लोग इसका खंडन करते हुए कहते हैं कि मुसलमान जिस इस्लाम मज़हब के अनुयायी हैं उसकी शुरुआत तो अब से लगभग डेढ़ हज़ार वर्ष पूर्व ही हुई है , जबकि हिन्दू धर्म इससे बहुत पुराना  है। 

 साथ ही,  ये शब्द इस्लाम की शुरुआत से पहले भी विश्व साहित्य में मिलते हैं।  आइये देखें कि वास्तविकता क्या है।


विद्वानों का कहना है कि प्राचीन संस्कृत और पालि ग्रंथों में तो हिन्दी / हिन्दू / हिन्दुस्तान शब्द  कहीं भी नहीं मिलते, पर विश्व साहित्य में  इस देश के सम्बन्ध में ‘ हिन्दू ‘ या ‘ इंडो ‘ शब्द  मिलते  हैं।

  भारत के बाहर हिन्दू शब्द का प्राचीनतम उल्लेख पारसियों के धर्मग्रन्थ अवेस्ता में  मिलता  है (रामधारी सिंह दिनकर, संस्कृति के चार अध्याय , लोकभारती प्रकाशन,  इलाहाबाद,  1993 ; पृष्ठ 112 );   पर अनुमान है कि वहां यह शब्द इस देश की प्रमुख नदी     ‘ सिन्धु ‘ के लिए आया है ,

 किसी धर्म के अनुयायियों के लिए नहीं। 

अवेस्ता के अतिरिक्त  ‘ हिन्दू ‘ शब्द का प्राचीन  उल्लेख ईसा से लगभग 500 वर्ष पूर्व के फारस ( वर्तमान ईरान ) के नरेश दारा महान ( ईसा पूर्व 522 – 486 ; यूनानियों ने उसका नाम Darius लिखा है ) के अभिलेखों में पाया जाता है।

 पर वहां हिन्दू शब्द का प्रयोग न तो किसी नदी के लिए हुआ है और न किसी धर्म के लिए। 

इस अभिलेख में वह  एक प्रदेश का नाम है।  

दारा के साम्राज्य में 23  प्रांत थे जिन्हें ” क्षत्रपियाँ ” कहा जाता था।

 उनमें  से  ‘ गान्दार ‘ और ‘ हिंदु ‘  भारतीय भूभाग में थीं।

 दारा महान के पर्सिपालिस  अभिलेख और नख्शे रुस्तम अभिलेख में गंदार के साथ हिंदुश का उल्लेख है।  

उसके एक और अभिलेख ( सूसा पैलस ) में ‘हिन्दव ‘ शब्द आया है।

 दारा महान के बाद पारसीक नरेश शेरेश  (xerexsus) के पर्सिपालिस अभिलेख में भी गंदार और हिंदुश शब्द पाए गए हैं। 

 यह गंदार भारत का गांधार प्रदेश ( वर्तमान अफगानिस्तान ) और हिंदु / हिंदुश सिन्धु प्रदेश था ।

भाषा वैज्ञानिकों का कहना है कि  पारसीक लोग प्राचीन फारसी भाषा बोलते थे जिसमें  ‘'से ‘  का उच्चारण ‘ ह ‘ होता था। 

 इसीलिए वहां  ‘ सप्ताह ‘ को ‘ हफ्ता ‘, असुर को ‘ अहुर ‘ , ‘ सोम ‘ को ‘ अहोम ‘ कहा जाता था।  

और इसी वज़न पर  ‘ सिन्धु ‘  का  ‘  हिंदु ‘  हो गया जो सिन्धु नदी से सिंचित प्रदेश का भी नाम था और उस प्रदेश के निवासियों का भी।

 कालान्तर में उस प्रदेश के निवासियों को एवं उनकी भाषा को ‘ हिंदी ‘ भी कहने लगे वैसे ही जैसे सिंध के रहने वालों  को और उनकी भाषा को ‘ सिंधी ‘  कहते हैं।

 ‘ स ‘ के स्थान पर  ‘ ह ‘ का प्रयोग करने की प्रवृत्ति अपने भी  देश में मौजूद है।  राजस्थान में उदयपुर  और उसके आसपास  के क्षेत्रों में ‘ सड़क ‘  को ‘ हड़क ‘ , ‘ छह – सात ‘  को ‘ छह – हात ‘  कहा जाता है।


पारसीक तो हमारे पड़ोसी थे, और वेदमत के ही अनुयायी थे।  उनके धर्मग्रन्थ ‘ अवेस्ता ‘ और हमारे धर्मग्रन्थ वेद का  उद्गम एक ही धातु  ‘ विद ‘  ( ज्ञान / जानना ) से हुआ है।  वेद और अवेस्ता की विषय वस्तु में भी बहुत कुछ समानता है।   पारसीकों  के माध्यम से  जब यूनानियों  का ‘ हिंदु ‘ शब्द से परिचय हुआ तो उन्होंने ‘ हिंदु ‘  के महाप्राण ‘ हि’  को अल्पप्राण ‘ इ ‘ कर लिया क्योंकि यूनानी में ‘ ह ‘ के लिए कोई अक्षर नहीं था।  इसलिए वे  ‘ हिंदु ‘ को ‘ इंदु ‘  (Indu )/ ‘ इन्दो ‘ (Indo )  लिखने और बोलने लगे।

 सिन्धु में कई नदियाँ आकर मिलती हैं। 

 अतः यूनानियों ने उसे ‘ इंदुज ‘ ( Indus ) कहा , जैसे गंगा को गैंजेज (Ganges ) कहा। 

 इस इंदुज शब्द का ही उच्चारण बाद में  लोग ‘ इन्डस ‘ करने  लगे। 

 इसी  विकृति से ‘ इंडिया ‘ नाम निकला।

  इटली के कवि वर्जिल ( ईसा पूर्व  70 – 19 )  ने  इंडिया के बदले केवल  ‘  इंद ‘  लिखा है और अंग्रेजी कवि  जान  मिल्टन ( 1608 – 1674 )  ने भी भारत का नाम  ‘ इंड ‘  ही लिखा है।

चीनी यात्री हुएनसांग (629 ईसवी ) ने भी  इस देश को ‘ हिंदु ‘ कहा है , पर उसने इस शब्द का उद्गम  सिन्धु नदी के बजाय चीनी भाषा के शब्द ‘ इन्तु ‘ से बताया है जिसका अर्थ चंद्रमा होता है। उसने लिखा है कि आकाश में  तारों के बीच चन्द्रमा  की जैसी प्रतिष्ठा होती है,  संसार में उसी प्रकार प्रतिष्ठित होने के कारण भारत को चीन के लोग ‘ इन्तु ‘  या ‘ हिंदु ‘ कहते हैं। 

 हुएनसांग का यह विवरण  हमें इस तथ्य का स्मरण करा देता है कि यह देश कभी विश्व गुरू रहा है, ज्ञान – विज्ञान में ही नहीं, मानव व्यवहार की शिक्षा देने में भी अग्रणी रहा है।  तभी तो मनुस्मृति (2/20) में कहा गया है, ” एतद्देश प्रसूतस्य सकाशादग्र जन्मनः स्वं स्वं  चारित्र्यम्  शिक्षेरन पृथिव्याम् सर्व मानवाः (इस देश के विद्वानों से ही पूरे भूमंडल के लोगों ने  ज्ञान- विज्ञान – आचार – व्यवहार की  शिक्षा प्राप्त की ) ।

स्पष्ट है कि  देश के अर्थ  में हिन्दू शब्द का चलन विश्व साहित्य में  इस्लाम के जन्म से बहुत पहले, कोई हज़ार डेढ़  हज़ार वर्ष पहले दारा के अभिलेखों में शुरू हो गया था।

 अवेस्ता तो उससे भी बहुत पहले की रचना है। 
  
अतः इस शब्द के निर्माण में इस्लाम के अनुयायियों का कोई हाथ नहीं है ; हाँ, इन्हें प्रचलन में लाने में अवश्य उनका भी योगदान  है।


विश्व साहित्य में इन शब्दों की जो भी स्थिति हो , हमारे यहाँ इन शब्दों  का प्रचलन   लगभग तेरह  सौ  वर्ष  पूर्व  ईसा की सातवीं  शताब्दी में तब शुरू हुआ जब अरब  के सौदागर भारत के पश्चिमी तट पर आने लगे।

 यही कारण है कि सातवीं शताब्दी से पहले के प्राचीन भारतीय साहित्य में हमें ये शब्द नहीं मिलते। 

 जब यहाँ के लोगों ने इन शब्दों को स्वीकार कर लिया तब इन्हें अपने अर्थ देने भी शुरू कर दिए।  जैसे, शब्द कल्पद्रुम – कोश में लिखा , ” हीनं दूषयति इति हिन्दू ” जो हीनता को स्वीकार न करे वह हिन्दू है। जब पता चला कि मुस्लिम  कोश में ‘ हिन्दू ‘ शब्द दूषित अर्थ में है तो  उससे विचलित हुए बिना उसकी प्रतिक्रिया  में  रामकोष नामक ग्रन्थ में  लिखा , ” हिंदु दुष्टो न भवति  नानार्यो न विदूषकः  ; सद्धर्मपालको विद्वान श्रौतधर्मपरायणः” ( हिन्दू न तो दुष्ट होता है, न विदूषक, न अनार्य। 

वह सद्धर्म पालक ,  वैदिक धर्म को मानने वाला विद्वान होता है )।  

 इसी प्रकार वृद्ध स्मृति नामक ग्रन्थ में लिखा, ” हिंसया दूयते यश्च सदाचरणतत्परः ,  वेदगो प्रतिमासेवी स हिन्दू मुखशब्दभाक ( जो सदाचारी,  वैदिक मार्ग  पर चलने वाला, प्रतिमापूजक और हिंसा से दुःख मानने वाला है, वह हिन्दू है ) ।  

 माधव दिग्विजय के अनुसार  ओंकार जिसका मूलमंत्र है, पुनर्जन्म में जिसकी दृढ़ आस्था है , जो गोभक्त है,  भारत को जो अपना गुरु मानता है, हिंसा की जो निंदा करता है — वह हिन्दू है  ( ओंकारमूलमंत्राढयः पुनर्जन्मदृढाशयः ,  गोभक्तो भारतगुरु हिन्दुहिंसनदूषकः ) । 

स्पष्ट है कि समय के साथ इन शब्दों के अर्थों में अंतर आने लगा और धीरे – धीरे ‘ हिन्दू ‘ शब्द  धर्म विशेष के अर्थ में तथा ‘ हिंदी ‘ शब्द भाषा के अर्थ में रूढ़ होने लगे।

इसके बावजूद इनके मूल अर्थ को सुरक्षित रखने की कोशिश भी अभी कुछ समय पहले तक  होती रही। 

 लगभग एक शताब्दी पूर्व स्वातंत्र्य वीर सावरकर जी ( 1883 – 1966 )  के बनाए गए उस श्लोक से तो अनेक लोग परिचित हैं जिसमें इस देश के सभी निवासियों को हिन्दू कहा गया है ।

और जो पर्याप्त समय तक हिन्दू महासभा का भी आदर्शवाक्य रहा, “ आसिंधो:  सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका ,  पितृ भू: पुण्य भूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः “ ( वे सभी लोग हिन्दू हैं जो  सिन्धु नदी से लेकर समुद्र तक फैले विस्तृत भूभाग में रहते हैं और जो भारत को अपनी पितृभूमि तथा तीर्थ मानते हैं ) , पर  मुसलमानों के प्रसिद्ध  नेता सर सैयद अहमद  खां ( 1817 – 1898 ) के उस वक्तव्य  से कम लोग परिचित हैं जो उन्होंने सन 1883 में पंजाब की एक सभा में दिया।  उन्होंने कहा ,

  ” मेरी राय में  हिन्दू लफ्ज़ का मतलब किसी मज़हब  से नहीं, बल्कि जो भी  हिन्दुस्तान में रहता है उसे  अपने को हिन्दू कहने का हक़ है।

  मैं भी हिन्दुस्तान में रहता हूँ , पर मुझे अफसोस है कि आप मुझे हिन्दू नहीं   मानते।  ”   you have used the term ‘ Hindu ‘ for yourselves. This is not correct. For, in my opinion, the word Hindu does not  denote a particular religion, but, on the contrary, every one  who lives in India has the right to call himself a Hindu. I am , therefore, sorry that though I live in India , you do not consider me a Hindu . ( Tara chand  :  Freedom  Movement, Vol. II ,  Government of India, ; 1967 ;  Pages 357  – 358 )


इसी अर्थ में ‘ हिंदी ‘ शब्द का भी प्रयोग होता रहा है।   मोहम्मद इकबाल ( 1877 – 1938 ) के प्रसिद्ध गीत  ‘ सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा ‘  में पंक्ति है “ हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ  हमारा “, इसमें ‘ हिन्दी ‘  देशवासियों के लिए ही कहा गया है।  प्रायः सारे उर्दू एवं फारसी  साहित्य में भारतवासियों को ‘ हिन्दी ‘ ही कहा गया है।  यह सामान्य परम्परा रही है कि किसी देश के निवासियों और उनकी भाषा को एक ही नाम से अभिहित किया जाता है।  जैसे चीन के निवासी चीनी और उनकी  भाषा भी चीनी (जबकि चीनी कोई भाषा न होकर एक भाषा परिवार है) , जापान के  निवासी जापानी और उनकी  भाषा भी जापानी।  वैसे ही हिंद के निवासी ‘ हिंदी ‘ और उनकी भाषा भी हिंदी (अगर चीन के उदाहरण से कोई प्रेरणा ली जाए तो ‘ हिंदी ‘ का अर्थ होगा  सभी भारतीय भाषाएँ)।

जहाँ तक हिन्दुस्तान शब्द का सम्बन्ध है यह उस स्थान का वाचक रहा  जहाँ ‘ हिन्दू ‘  रहते हों ( संस्कृतप्रेमी  इसे ‘ हिन्दुस्थान ‘ कहना पसंद करते हैं ) ; पर इस शब्द का प्रयोग उर्दू का प्रचलन  (16 वीं शताब्दी ) होने के बाद  ही मिलता है । 

 यद्यपि  तब  एक ‘ धर्म ‘ के रूप में हिन्दू शब्द प्रतिष्ठित हो चुका था , इसके  बावजूद हिन्दुस्तान शब्द का प्रयोग  उस देश के लिए ही होता था जिसमें तब भी विभिन्न धर्मानुयायी रहते थे ।  हिन्द में रहने वाला हिन्दू। इस रूप  में यह धर्म का नहीं, राष्ट्रीयता का बोधक है।

 स्वतंत्र भारत के संविधान में तो अपने देश का नाम ” इंडिया दैट इज़ भारत ” लिखा है , पर बोलचाल में आज भी सभी धर्मानुयायी ‘ हिन्दुस्तान ‘ शब्द का प्रयोग निस्संकोच करते हैं ।  इस प्रकार  इसमें  इतिहास और  भूगोल दोनों ही दृष्टियों से ‘ हिन्दू ‘  शब्द का मूल अर्थ  आज भी सुरक्षित है ।


क्या हिन्दुओं को हिन्दू नाम ईरानी मुस्लिमों ने दिया?
 

हिन्दू शब्द के बारे में बहुत से लोगों में भ्रम है और बहुत से लोग भ्रम फैलाने का कार्य भी करते हैं।

ऋग्वेद में कई बार सप्त सिंधु का उल्लेख मिलता है। सिंधु शब्द का अर्थ नदी या जलराशि होता है इसी आधार पर एक नदी का नाम सिंधु नदी रखा गया, जो लद्दाख और पाक से बहती है।

भाषाविदों का मानना है कि हिंद-आर्य भाषाओं की 'स' ध्वनि ईरानी भाषाओं की 'ह' ध्वनि में बदल जाती है।

आज भी भारत के कई इलाकों में 'स' को 'ह' उच्चारित किया जाता है। इसलिए सप्त सिंधु अवेस्तन भाषा (पारसियों की भाषा) में जाकर हप्त हिंदू में परिवर्तित हो गया (अवेस्ता : वेंदीदाद, फर्गर्द 1.18)।


इसी कारण ईरानियों ने सिंधु नदी के पूर्व में रहने वालों को हिंदू नाम दिया। पारसी मुस्लिम नहीं थे, लेकिन आज ईरान (फारस देश) के पारसी लोग मुस्लिम बन गए हैं।

लेकिन फिर सवाल उठता है कि पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लोगों को आज भी सिंधू या सिंधी कहा जाता है। 

सिंधू नदी को आज भी सिंधू ही कहा जाता है उसका नाम क्यों नहीं अप्रभंश हुआ? 

ईरानी अर्थात पारस देश के पारसियों की धर्म पुस्तक 'अवेस्ता' में 'हिन्दू' और 'आर्य' शब्द का उल्लेख मिलता है। 

इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि ईरानियों के कारण यह नाम नहीं पड़ा। वे 'ह' और 'स' में फर्क समझते थे।

यह भी कहा जाता है कि जब ईरानी या पारसी लोग मुस्लिम हो गए तो उन्होंने सिन्धु नदी के पूर्व में रहने वालों को 'हिन्दू' नाम दिया।

 ईरान के पतन के बाद जब अरब से मुस्लिम हमलावर भारत में आए तो उन्होंने भारत के मूल धर्मावलंबियों को हिन्दू कहना शुरू कर दिया। ऐसा भी कहा जाता है कि जब अरब, तुर्की या ईरानी लोग भारत में दाखिल हुए तो उनका सामना सबसे पहले हिन्दूकुश पर्वत से हुआ। 


 'बृहस्पति आगम' 


इसके एक श्लोक में कहा गया है:-                ॐकार मूलमंत्राढ्य: पुनर्जन्म दृढ़ाशय:

गोभक्तो भारतगुरु: हिन्दुर्हिंसनदूषक:।          हिंसया दूयते चित्तं तेन हिन्दुरितीरित:।

अनुवाद:-

'ॐकार' जिसका मूल मंत्र है, पुनर्जन्म में जिसकी दृढ़ आस्था है, भारत ने जिसका प्रवर्तन किया है तथा हिंसा की जो निंदा करता है, वह हिन्दू है।

श्लोक:

'हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्।        तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥'

                              (बृहस्पति आगम)

अर्थात: हिमालय से प्रारंभ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।

यह माना जा सकता है कि 'हिन्दू' शब्द 'इन्दु' जो चन्द्रमा का पर्यायवाची है, से बना है। चीन में भी 'इन्दु' को 'इंतु' कहा जाता है। भारतीय ज्योतिष चन्द्रमा को बहुत महत्व देता है।

राशि का निर्धारण चन्द्रमा के आधार पर ही होता है। चन्द्रमास के आधार पर तिथियों और पर्वों की गणना होती है। अत: चीन के लोग भारतीयों को 'इंतु' या 'हिन्दू' कहने लगे।

 मुस्लिम आक्रमण के पूर्व ही 'हिन्दू' शब्द के प्रचलित होने से यह स्पष्ट है कि यह नाम पारसियों या मुसलमानों की देन नहीं है।

एक अन्य विचार के अनुसार हिमालय के प्रथम अक्षर 'हि' एवं 'इन्दु' का अंतिम अक्षर 'न्दु'। इन दोनों अक्षरों को मिलाकर शब्द बना 'हिन्दू' और यह भू-भाग हिन्दुस्थान कहलाया। 'हिन्दू' शब्द उस समय धर्म की बजाय राष्ट्रीयता के रूप में प्रयुक्त होता था।

 

सिन्धुक्षित की दो ऋचाओं (10.75.5.6) में उन सभी नदियों का उल्लेख किया गया है, जो उस पूरे क्षेत्र में प्रवाहित होती है। इसमें गंगा, यमुना, सरस्वती, सतलुज से लेकर कुभा (काबुल) और मेहलू नदियों तक के नाम हैं। हिरण्यस्तूप आंगिरस सविता की स्तुति करते हुये एक ऋचा में कहते हैं — पृथिवी की आठों दिशायें, परस्पर संयुक्त हुये तीनों लोक और सप्तसिन्धु को सविता देव ने प्रकाशित किया है। स्वर्णिम आंखों वाले सविता देव (हिरण्याक्ष: सविता देव:) हव्यदाता राजमान को वरणीय दान देकर यहां आवें। (1.35.8) सप्तसिन्धु कई जनपदों का सम्मिलित नाम था।

भारतीय परम्परा आकाश को पिता और धरती को माता मानने की रही है। आदि काल से इस परम्परा का निर्वाह होता रहा है। ऋग्वेद के ऋषि दीर्घतमा औचथ्य ने छावापृथिवी को पिता और माता के रूप में आह्वान किया है – मैंने आह्वान मंत्र द्वारा पुत्र के प्रति द्रोहहीन और पितृस्थानीय द्युलोक के उदार और सदय मन को जाना है। मातृस्थानीय पृथिवी के मन को भी जाना है। पिता—माता (द्यावापृथिवी) अपनी शक्ति से यजमानों की रक्षा करते हुये पर्याप्त अमृत देते हैं। (1.159.2)
आकाश को पिता और पृथिवी को माता की परम्परा हिन्दू धार्मिक मान्यता का अपरिहार्य अंग है। भारतीयों में हर दिन प्रात: काल सोकर उठने के बाद धरती पर पैर रखने के पहले धरती से क्षमा मांगने की प्रथा थी —

“समुद्रवसने देवि, पर्वत स्तन मंडले। विष्णु पत्रि नमस्तुभ्यं पाद स्पर्श क्षमस्व मे।”

भारत देश के अर्थ में सिन्धु शब्द का प्रयोग पाणिनी (5वीं सदी ई. पू.) की अष्टाध्यायी (4.3.93) में हुआ है। 

सिन्धु देश के लोगों को सैन्धव कहा गया है। खारवेल के हाथी गुम्फा अभिलेख (पहली शताब्दी ई. पू. के आसपास) में भारतवर्ष शब्द आया है। विष्णुपराण में भारत की सीमा का उल्लेख किया गया है। उसमें कहा गया है

“उत्तरं यत्समुदस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षंतद् भारतं नाम भारती यत्र संतति:।।”


प्रस्तुतकर्ता ★-Yadav Yogesh Kumar "Rohi"-★ पर 12:05 pm
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