रविवार, 23 जून 2024

"व्रज -रज- भ्राजिका"



अनुवाद:-
यदुवंश के वृष्णि कुल में देवमीण जी के पुत्र पर्जन्य नाम से थे। जो बहुत ही शिष्ट और अत्यन्त महान समस्त व्रज समुदाय के लिए थे। वे पर्जन्य श्रीकृष्ण के पितामह अर्थात नन्द बाबा के पिता थे।१।
अनुवाद:- प्राचीन काल में नन्दीश्वर प्रदेश में गोपों के साथ  रहते हुए  वे पर्जन्य यतियों के जीवन धारण करके स्वराट्- विष्णु का तप करते थे।२।

तपसानेन धन्येन भाविन: पुत्रा वरीयान्।        पञ्च ते मध्यमस्तेषां नन्दनाम्ना जजान।३।
"अनुवाद:- महान तपस्या के द्वारा उनके श्रेष्ठ पाँच पुत्र उत्पन्न हुए। जिनमें मध्यम पुत्र नन्द नाम से थे।३।

तुष्टस्तत्र वसन्नत्र प्रेक्ष्य केशिनमागतं।
परीवारै: समं सर्वैर्ययौ भीतो गोकुलं।।४।
"अनुवाद:- वहाँ सन्तोष पूर्ण रहते हुए केशी नामक असुर को आया हुआ देखकर परिवार के साथ पर्जन्य जी  भय के कारण नन्दीश्वर को छोड़कर गोकुल (महावन) को चले गये।४।

कृष्णस्य पितामही  महीमान्या कुसुम्भाभा हरित्पटा।
वरीयसीति वर्षीयसी विख्याता खर्वा: क्षीराभ लट्वा।५।
"अनुवाद:- कृष्ण की दादी( पिता की माता) वरीयसी जो सम्पूर्ण गोकुल में बहुत सम्मानित थीं ; कुसुम्भ की आभा वाले हरे वस्त्रों को धारण करती थीं। वह छोटे कद की और दूध के समान बालों वाली  और अधिक वृद्धा थीं।५।

भ्रातरौ पितुरुर्जन्यराजन्यौ च सिद्धौ गोषौ ।
सुवेर्जना सुभ्यर्चना वा ख्यापि पर्जन्यस्य सहोदरा।
६।
"अनुवाद:- नन्द के पिता  पर्जन्य के दो भाई अर्जन्य और राजन्य प्रसिद्ध गोप थे। सुभ्यर्चना नाम से उनकी एक बहिन भी थी।६।

गुणवीर: पति: सुभ्यर्चनया: सूर्यस्याह्वयपत्तनं।
निवसति स्म हरिं कीर्तयन्नित्यनिशिवासरे।।७।
"अनुवाद:- सुभ्यर्चना के पति का नाम गुणवीर था। जो सूर्य-कुण्ड नगर के रहने वाले थे। जो नित्य दिन- रात हरि का कीर्तन करते थे।७।

उपनन्दानुजो नन्दो वसुदेवस्य सुहृत्तम:।
नन्दयशोदे च कृष्णस्य पितरौ  व्रजेश्वरौ।८।
"अनुवाद:- उपनन्द के भाई नन्द वसुदेव के सुहृद थे  और कृष्ण के माता- पिता के रूप में नन्द और यशोदा दोनों व्रज के स्वामी थे। ८।

वसुदेवोऽपि वसुभिर्दीव्यतीत्येष भण्यते।
यथा द्रोणस्वरूपाञ्श: ख्यातश्चानक दुन्दुभ:।९।
"अनुवाद:-वसु शब्द पुण्य ,रत्न ,और धन का  वाचक है। वसु के द्वारा देदीप्यमान(प्रकाशित) होने के कारण श्रीनन्द के मित्र वसुदेव कहलाते हैं। अथवा विशुद्ध सत्वगुण को वसुदेव कहते हैं।
इस अर्थ नें शुद्ध सत्व गुण सम्पन्न होने से इनका नाम वसुदेव है। ये  द्रोण नामक वसु के स्वरूपाञ्श हैं। ये आनक दुन्दुभि नाम से भी प्रसिद्ध हैं।९।
वसु= (वसत्यनेनेति वस + “शॄस्वृस्निहीति ।” उणाणि १ । ११ । इति उः) – रत्नम् । धनम् । इत्यमरःकोश ॥ (यथा, रघुः । ८ । ३१ । “बलमार्त्तभयोपशान्तये विदुषां सत्कृतये 
बहुश्रुतम् । वसु तस्य विभोर्न केवलं गुणवत्तापि परप्रयोजनम् ॥) वृद्धौषधम् । श्यामम् । इति मेदिनीकोश ।  हाटकम् । इति विश्वःकोश ॥ जलम् । इति सिद्धान्त- कौमुद्यामुणादिवृत्तिः ॥
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नामेदं नन्दस्य गारुडे प्रोक्तं मथुरामहिमक्रमे।
वृषभानुर्व्रजे ख्यातो यस्य प्रियसुहृदर:।।१०।
"अनुवाद:- नन्द के ये नाम गरुडपुराण के मथुरा महात्म्य में कहे गये हैं। व्रज में विख्यात श्री वृषभानु जी नन्द के परम मित्र हैं।१०।

माता गोपान् यशोदात्री यशोदा श्यामलद्युति:।
मूर्ता वत्सलते! वासौ इन्द्रचापनिभाम्बरा।।११।
"अनुवाद:- श्रीकृष्ण की माता गोप जाति को यश प्रदान करने वाली होने से यशोदा कहलाती हैं।
इनकी अंग कान्ति श्यामल वर्ण की है ये वात्सल्य की प्रतिमूर्ति हैं।और इनके वस्त्र इन्द्र धनुष के समान हैं ।११।

आदिपुराणे प्रोक्तं देने नाम्नी नन्द भार्याया यशोदा देवकी -इति च।।
अत: सख्यमभूत्तस्या देवक्या: शौरिजायया।।१२।
"अनुवाद:- आदि पुराण में वर्णित नन्द की पत्नी यशोदा का नाम देवकी भी है। इस लिए शूरसेन के पुत्र वसुदेव की पत्नी देवकी के साथ नाम की भी समानता होने के कारण स्वाभाविक रूप में यशोदा का सख्य -भाव भी है।१२।

उपनन्दोऽभिनन्दश्च पितृव्यौ पूर्वजौ पितु:।
पितृव्यौ तु कनीयांसौ स्यातां सनन्द नन्दनौ।१३
"अनुवाद:- श्री नन्द के उपनन्द और अभिनन्दन बड़े भाई तथा आनन्द और नन्दन नाम हे दो छोटे भाई भी हैं। ये सब कृष्ण के पितृव्य( ताऊ-चाचा)हैं।१३।

आद्य: सितारुणरुचिर्दीर्घकूचौ हरित्पट:।
तुङ्गी प्रियास्य सारङ्गवर्णा सारङ्गशाटिका।।१४।
"अनुवाद:- सबसे बड़े भाई उपनन्द की अंग कान्ति धवल ( सफेद) और अरुण( उगते हुए सूर्य) के रंग के मिश्रण अर्थात- गुलाबी रंग जैसी है। इनकी दाढ़ी बहुत लम्बी और वस्त्र हरे रंग के हैं । इनकी पत्नी का नाम तुंगी है। जिनकी अंग कन्ति तथा साड़ी का रंग सारंग( पपीहे- के रंग जैसा है।१४।
 
द्वितीयो भ्रातुरभिनन्दनस्य भार्या पीवरी ख्याता।
पाटलविग्रहा नीलपटा लम्बकूर्चोऽसिताम्बरा:।।१५ ।
"अनुवाद:- दूसरे भाई श्री -अभिनन्द की अंग कान्ति शंख के समान गौर वर्ण है। और दाढ़ी लम्बी है। ये काले रंग के वस्त्र धारण करते हैं। इनकी पत्नी का नाम पीवरी जो नीले रंग के वस्त्र धारण करती हैं। तथा जिनकी अंग कान्ति पाटल ( गुलाब) रंग की है।१५।

सुनन्दापरपर्याय: सनन्दस्य च पाण्डव:।
श्यामचेल: सितद्वित्रिकेशोऽयं केशवप्रिय:।१६।
"अनुवाद:- आनन्द का दूसरा नाम सन नन्द है। इनकी अंग कान्ति पीला पन लिए हुए सफेद रंग की तथा वस्त्र काले रंग के हैं। इनके शिर के सम्पूर्ण बालों में केवल  दो या तीन बाल ही सफेद हुए हैं। ये केशव- कृष्ण के परम प्रिय है।१६।

सनन्दस्य भार्या कुवलया नाम्न: ख्याता।
रक्तरङ्गाणि वस्त्राणि धारयति तस्या: कुवलयच्छवि:।१७।
"अनुवाद:-सनन्द की पत्नी का नाम कुवलया है।
जो कुवलय( नीले और हल्के लाल  के मिश्रण जैसे ) वस्त्रों को धारण करने वाली तथा  कुवलय अंक कान्ति वाली हैं।१७।  

नन्दन: शिकिकण्ठाभश्चण्डातकुसुमाम्बर:।
अपृथग्वसति: पित्रा सह तरुण प्रणयी हरौ।
अतुल्यास्य प्रिया विद्युतकान्तिरभ्रनिभाम्बरा।१८।
"अनुवाद:- नंदन की अंग कान्ति मयूर के
कण्ठ  जैसी तथा वस्त्र चण्डात (करवीर) पुष्प के समान है। श्रीनन्दन अपने पिता ( श्री पर्जन्य जी के साथ ही इकट्ठे निवास करते हैं। श्रीहरि के प्रति इनका कोमल प्रेम है। नन्दन जी की पत्नी का नाम अतुल्या है। जिनकी अंगकान्ति बिजली के समान रंग वाली है। तथा वस्त्र मेघ की तरह श्याम रंग के हैं।१८।

सानन्दा नन्दिनी चेति पितुरेते सहोदरे।
कल्माषवसने रिक्तदन्ते च फेनरोचिषी।१९।
"अनुवाद:-( कृष्ण के पिता नन्द की सानन्दा और नन्दिनी नाम की दो बहिने हैं। ये अनेक प्रकार के रंग- विरंगे) वस्त्र धारण करती हैं। इनकी दन्तपंक्ति रिक्त अर्थात इनके बहुत से दाँत नहीं हैं। इनकी अंगकान्ति फेन( झाग) की तरह सफेद है।१९।

सानन्दा नन्दिन्यो: पत्येतयो: क्रमाद्महानील: सुनीलश्च  तौ कृष्णस्य वपस्वसृपती शुद्धमती।
२०।
"अनुवाद:-सानन्दा के पति का नाम महानील और नन्दिनी के पति का नाम सुनील है। ये  दोंनो श्रीकृष्ण के फूफा  अर्थात् (नन्द) के बहनोई हैं।२०।

पितुराद्यभ्रातुः पुत्रौ कण्डवदण्डवौ नाम्नो:
सुबले मुदमाप्तौ सौ ययोश्चारु मुखाम्बुजम्।।२१।
"अनुवाद:- श्री कृष्ण के पिता नन्द बड़े भाई श्री उपनन्द के  कण्डव और दण्डव नाम के दो पुत्र हैं।
दोंनो सुबह के संग में बहुत प्रसन्न रहते हैं। तथ
 दोंनो का मनोहर मुख कमल के समान सुन्दर है।२१।

राजन्यौ यौ तु पुत्रौ नाम्ना तौ चाटु- वाटुकौ।
दधिस्सारा- हविस्सारे सधर्मिण्यौ क्रमात्तयो:।।२२।
"अनुवाद:- श्रीनन्द जी के दो चचेरे भाई  जो उनके चाचा राजन्य के पुत्र हैं। उनका नाम चाटु और वाटु  है उनकी पत्नीयाँ का नाम इसी क्रम से दधिस्सारा और हविस्सारा है।२२।



महामहो महोत्साहो स्यादस्य सुमुखाभिध:।
लम्बकम्बुसमश्रु: पक्वजम्बूफलच्छवि:।।२३।
"अनुवाद:- श्री कृष्ण के नाना (मातामह) का नाम सुमुख है। ये बहुत उद्यमी और उत्साही हैं। इनकी लम्बी दाढ़ी शंख के समान सफेद तथा अंगकान्ति पके हुए जामुन के फल जैसी ( श्यामल) है।२३।

"श्रीब्रह्मवैवर्ते पुराणे श्रीकृष्णजन्मखण्डे नारायणनारदसंवादे कृष्णान्नप्राशन वर्णननामकरणप्रस्तावो नाम त्रयोदशोऽध्याये यशोदया: पित्रोर्नामनी  पद्मावतीगिरिभानू उक्तौ।२४। 
अनुवाद:-  ब्रह्म वैवर्त पुराण के श्रीकृष्ण जन्म खण्ड के अन्तर्गत नारायण -और नारद संवाद में कृष्ण का अन्न प्राशनन नामक तेरहवें अध्याय में यशोदा के माता-पिता का नाम पद्मावती और  गिरिभानु है।२४।
  
सर्वेषां गोपपद्मानां गिरिभानुश्च भास्करः ।
पत्नी पद्मासमा तस्य नाम्ना पद्मावती सती ।२५।
अनुवाद:-  गोप रूपी कमलों के गिरिभानु सूर्य हैं।
और उनकी पत्नी पद्मावती लक्ष्मी के समान सती है।२५।

तस्याः कन्या यशोदा त्वं यशोवर्द्धनकारिणी ।।
बल्लवानां च प्रवरो लब्धो नन्दश्च वल्लभः।२६।।

अनुवाद:-  उस पद्मावती की कन्या यशोदा तुम यश को बढ़ाने वाली हो। गोपों में श्रेष्ठ नन्द तुमको पति रूप में प्राप्त हुए हैं।२६।
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मातामही तु महिषी दधिपाण्डर कुन्तला।
पाटला पाटलीपुष्पपटलाभा हरित्पटा।२७।
"अनुवाद:- कृष्ण की नानी (मातामही) का नाम पाटला है ये व्रज की रानी के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनके केश देखने में गाय के दूध से बने दही के  समान पीले, अंककान्ति पाटल पुष्प के समान हल्के गुलाबी रंग जैसी तथा वस्त्र हरे रंग के है।२७।

प्रिया सहचरी तस्या मुखरा नाम बल्लवी।
व्रजेश्वर्यै ददौ स्तन्यं सखी स्नहभरेण या।२८।
"अनुवाद:-  मातामही( नानी) पाटला की मुखरा
नाम की एक गोपी प्रिय सखी है। वह पाटला के प्रति इतनी स्नेह-शील है कि कभी- कभी 
पाटला के व्यस्त होने पर व्रज की ईश्वरी पाटला
की पुत्री यशोदा को अपना स्तन-पान तक भी करा देती थी।२८।

सुमुखस्यानुजश्चारुमुखोऽञ्जनभिच्छवि:।
भार्यास्य कुलटीवर्णा बलाका नाम्नो बल्लवी।२९।
"अनुवाद:- सुमुख( गिरिभानु) के छोटे भाई की नाम चारुमुख है। इनकी अंगकान्ति काजल की तरह है। इनकी पत्नी का नाम बलाका है। जिनकी अंगकान्ति कुलटी( गहरे नीले रंग की एक प्रकार की दाल जो काजल ( अञ्जन) रे रंग जैसी होती है।२९

गोलो मातामही भ्राता धूमलो वसनच्छवि:।
हसितो य: स्वसुर्भर्त्रा सुमुखेन क्रुधोद्धुर:।३०।
"अनुवाद:-मातामही( नानी ) पाटला के भाई का नाम गोल है। तथा वे धूम्र( ललाई लिए हुए काले रंग के वस्त्र धारण करते हैं। बहिन के पति-( बहनोई) सुमुख द्वारा हंसी मजाक करने पर गोल विक्षिप्त हो जाते हैं।३०।

दुर्वाससमुपास्यैव कुलं लेभे व्रजोज्ज्वलम्।।गोलस्य भार्या जटिला ध्वाङ्क्ष वर्णा महोदरी।३१।
"अनुवाद:-  दुर्वासा ऋषि की उपासना के परिणाम  स्वरूप इन्हें व्रज के उज्ज्वल वंश में जन्म ग्रहण करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। गोल की पत्नी का नाम जटिला है। यह जटिला  कौए जैसे रंग वाली तथा स्थूलोदरी (मोटे पेट वाली ) है।३१।

यशोदाया: त्रिभ्रातरो यशोधरो यशोदेव: सुदेवस्तु। 
अतसी पुष्परुचय: पाण्डराम्बर-संवृता:।३२।
"अनुवाद:-यशोदा के तीन भाई हैं जिनके नाम हैं यशोधर" यशोदेव और सुदेव – इन सबकी अंगकान्ति अलसी के फूल के समान है । ये सब हल्का सा पीलापन लिए हुए सफेद रंग के वस्त्र धारण करते हैं।३२।

येषां  धूम्रपटा भार्या  कर्कटी-कुसुमित्विष:।।
रेमा रोमा सुरेमाख्या: पावनस्य पितृव्यजा:।।३३।
"अनुवाद:-इन सब तीनों भाइयों की पत्नीयाँ पावन( विशाखा के पिता) के चाचा( पितृव्य )की कन्याऐं हैं। जिनके नाम  क्रमश: रेमा, रोमा और सुरेमा हैं। ये सब काले वस्त्र पहनती हैं। इनकी अंगकान्ति कर्कटी(सेमल) के पुष्प जैसी है।३३।

यशोदेवी- यशस्विन्यावुभे मातुर्यशोदया: सहोदरे।
दधि:सारा हवि:सारे  इत्यन्ये नामनी तयो:।३४।
"अनुवाद:- यशोदेवी और यशस्विनी श्रीकृष्ण की माता यशोदा की सहोदरा बहिनें हैं। ये दोंनो क्रमश दधिस्सारा और हविस्सारा नाम से भी जानी जाती हैं। बड़ी बहिन यशोदेवी की अंगकान्ति श्याम वर्ण-(श्यामली) है।३४।

चाटुवाटुकयोर्भार्ये  ते राजन्यतनुजयो: 
सुमुखस्य भ्राता चारुमुखस्यैक: पुत्र: सुचारुनाम्।३५ । 
अनुवाद:- दधिस्सारा और हविस्सारा पहले कहे हुए राजन्य गोप के पुत्रों चाटु और वाटु की पत्नियाँ हैं। सुमुख के भाई चारुमख का सुचारु नामक एक सुन्दर पुत्र है।३५।
 
गोलस्य भ्रातु: सुता नाम्ना तुलावती या सुचारोर्भार्या ।३६।
"अनुवाद:-गोल की भतीजी तुलावती चारुमख के पुत्र सुचारु की पत्नी है।३६।

पौर्णमासी भगवती सर्वसिद्धि विधायनी।
काषायवसना गौरी काशकेशी दरायता।३७।
"अनुवाद:- भगवती पौर्णमासी सभी सिद्धियों का विधान करने वाली है। उसके वस्त्र काषाय ( गेरुए) रंग के हैं। उसकी अंगकान्ति गौरवर्ण की और केश काश नामक घास के पुष्प के समान सफेद हैं; ये आकार में कुछ लम्बी हैं।

मान्या व्रजेश्वरादीनां सर्वेषां व्रजवासिनां।    नारदस्य प्रियशिष्येयमुपदेशेन तस्य या।३८।
"अनुवाद:- पौर्णमसी व्रज में नन्द आदि सभी व्रजवासियों की पूज्या और देवर्षि नारद की प्रिया शिष्या है नारद के उपदेश के अनुसार जिसने।३८।

सान्दीपनिं सुतं प्रेष्ठं हित्वावन्तीपुरीमपि।
स्वाभीष्टदैवतप्रेम्ना व्याकुला गोकुलं गता।३९।
"अनुवाद:- अपने सबसे प्रिय पुत्र सान्दीपनि को उज्जैन(अवन्तीपरी) में छोड़कर अपने अभीष्ट देव श्रीकृष्ण के प्रेम में वशीभूत होकर गोकुल में गयी।३९।

राधया अष्ट सख्यो ललिता च विशाखा च चित्रा।
चम्पकवल्लिका तुङ्गविद्येन्दुलेखा च  रङ्गदेवी सुदेविका।४०।
"अनुवाद:- राधा जी की आठ सखीयाँ ललिता, विशाखा,चित्रा,चम्पकलता, तुंगविद्या,इन्दुलेखा,रंग देवी,और सुदेवी हैं।४०।
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तत्राद्या ललितादेवी  स्यादाष्टासु वरीयसी प्रियसख्या भवेज्ज्येष्ठा सप्तविञ्शतिवासरे।४१
"अनुवाद:-इन आठ वरिष्ठ सखीयों में ललिता देवी सर्वश्रेष्ठ हैं यह अपनी प्रिया सखी राधा से सत्ताईस दिन बड़ी हैं।४१।

अनुराधा तया ख्याता वामप्रखरतां गता।
गोरोचना निभाङ्गी सा शिखिपिच्छनिभाम्बरा।।४२।
"अनुवाद:- श्री ललिता अनुराधा नाम से विख्यात तथा वामा और प्रखरा नायिकाओं के  गुणों से विभूषित हैं। ललिता की अंगकान्ति गोरोचना के समान तथा वस्त्र मयूर पंख जैसे हैं।४२।
 
ललिता जाता मातरि सारद्यां पितुरेषा  विशोकत:।
पतिर्भैरव नामास्या: सखा गोवर्द्धनस्य य: ।४३।
"अनुवाद:- श्री ललिता की माता का नाम सारदी और पिता का नाम विशोक  है। ललिता के पति का नाम भैरव है जो गोवर्द्धन गोप के सखा हैं।४३।

सम्मोहनतन्त्रस्य ग्रन्थानुसार राधया: सख्योऽष्ट
कलावती रेवती  श्रीमती च सुधामुखी।
विशाखा कौमुदी माधवी शारदा चाष्टमी स्मृता।४४।
"अनुवाद:-सम्मोहन तन्त्र के अनुसार राधा की आठ सखियाँ हैं।–कलावती, रेवती,श्रीमती, सुधामुखी, विशाखा, कौमुदी, माधवी,शारदा।४४।

श्रीमधुमङ्गल ईषच्छ्याम वर्णोऽपि भवेत्।
वसनं गौरवर्णाढ्यं वनमाला विराजित:।।४५।
"अनुवाद:- श्रीमान्- मधुमंगल कुछ श्याम वर्ण के हैं। इनके वस्त्र गौर वर्ण के हैं। तथा वन- मालाओं 
से सुशोभित हैं।४५।
  
पिता सान्दीपनिर्देवो माता च सुमुखी सती।
नान्दीमुखी च भगिनी पौर्णमासी पितामही।।४६।
"अनुवाद:-मधुमंगल के पिता सान्दीपनि ऋषि तथा माता का नीम सुमुखी है। जो बड़ी पतिव्रता है। नान्दीमुखी मधु मंगल की बहिन और पौर्णमासी दादी है। ४६।

पौर्णमास्या: पिता सुरतदेवश्च माता चन्द्रकला सती। प्रबलस्तु पतिस्तस्या महाविद्या यशस्करी।४७।
"अनुवाद:-  पौर्णमासी के पिता का नाम सुरतदेव तथा माता का नाम चन्द्रकला है। पौर्णमासी के पति का नाम प्रबल है। ये महाविद्या में प्रसिद्धा और सिद्धा हैं।४७।

पौर्णमास्या भ्रातापि देवप्रस्थश्च व्रजे सिद्धा शिरोमणि: । नानासन्धानकुशला द्वयो: सङ्गमकारिणी।।४८।
"अनुवाद:- पौर्णमासी का भाई देवप्रस्थ है। ये पौर्णमासी व्रज में सिद्धा में शिरोमणि हैं।
पौर्णमासी अनेक अनुसन्धान करके कार्यों में कुशल तथा श्रीराधा-कृष्ण दोंनो का मेल कराने वाली है।४८।

आभीरसुभ्रुवां श्रेष्ठा राधा वृन्दावनेश्वरी।
अस्या: सख्यश्च ललिताविशाखाद्या: सुविश्रुता:।४९।
"अनुवाद:- आभीर कन्याओं में श्रेष्ठा वृन्दावन की अधिष्ठात्री व स्वामिनी राधा हैं। ललिता और विशाखा आदि सख्यियाँ श्री राधा जी प्रधान सखियों के रूप में विख्यात हैं।४९।

चन्द्रावली च पद्मा च श्यामा शैव्या च भद्रिका।
तारा विचित्रा गोपाली पालिका चन्द्रशालिका।५०
"अनुवाद:- चन्दावलि, पद्मा, श्यामा,शैव्या,भद्रिका, तारा, विचित्रा, गोपली, पालिका ,चन्द्रशालिका,

ङ्गला विमला लीला तरलाक्षी मनोरमा
कन्दर्पो मञ्जरी मञ्जुभाषिणी खञ्जनेक्षणा।।५१

"अनुवाद:-मंगला ,विमला, नीला,तरलाक्षी,मनोरमा,कन्दर्पमञजरी, मञ्जुभाषिणी, खञ्जनेक्षणा

कुमुदा, कैरवी, शारी,शारदाक्षी, विशारदा,। शङ्करी, कुङ्कुङ्मा,कृष्णासारङ्गीन्द्रावलि, शिवा।।५२।
"अनुवाद:-कुमुदा, कैरवी, शारी,शारदाक्षी, विशारदा, शंकरी, कुंकुमा,कृष्णा, सारंगी,इन्द्रावलि, शिवा आदि ।


तारावली,गुणवती,सुमुखी,केलिमञ्जरी।
हारावली,चकोराक्षी, भारती,  कमलादय:।।५३।
"अनुवाद:-तारावली,गुणवती,सुमुखी,केलिमञ्जरी,हारावली,चकोराक्षी, भारती, और कमला आदि गोपिकाऐं कृष्ण की उपासिका व आराधिका हैं।

आसां यूथानि शतश: ख्यातान्याभीर सुताम्।
लक्षसङ्ख्यातु कथिता  यूथे- यूथे वराङ्गना।।५४।
"अनुवाद:- इन आभीर कन्याओं के सैकड़ों यूथ( समूह) हैं और इन यूथों में बंटी हुई वरागंनाओं की संख्या भी लाखों में है।५४।

अब इसी प्रकरण की समानता के लिए  देखें नीचे 


"अनुवाद:-  श्री राधा के पिता वृषभानु वृष राशि में स्थित भानु( सूर्य ) के समान  उज्ज्वल हैं।१६८-(ख)

श्री राधा जी की माता का नाम कीर्तिदा है। ये पृथ्वी पर रत्नगर्भा- के नाम से प्रसिद्ध हैं।१६९।(क)


राधा जी के पिता का नाम महीभानु तथा नाना का नाम इन्दु है। राधा जी दादी का नाम सुखदा और नानी का नाम मुखरा  है।१७०।(क)



अनुवाद:-

"अनुवाद:- श्रीराधा जी की माता की बहिन का नाम कीर्तिमती,और भानुमुद्रा पिता की बहिन ( बुआ) का नाम है। फूफा का नाम "काश और मौसा जी का नाम कुश है।

" 
"अनुवाद:-  श्री राधा जी के बड़े भाई का नाम श्रीदामन्- तथा छोटी बहिन का नाम श्री अनंगमञ्जरी है।१७३।(क)
"राधा जी की  प्रतिरूपा( छाया) वृन्दा जो ध्रुव के पुत्र केदार की पुत्री है उसके ससुराल पक्ष के सदस्यों के नाम भी बताना आवश्यक है। वह राधा के अँश से उत्पन्न राधा के ही समान रूप ,वाली गोपी है। वृन्दावन नाम उसी के कारण प्रसिद्ध हो जाता है। रायाण गोप का विवाह उसी वृन्दावन के साथ होता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्रीकृष्ण जन्मखण्ड के अध्याय-(86) में श्लोक संख्या134-से लगातार 143 तक वृन्दा और रायाण के विवाह ता वर्णन है। 

रायाणस्य परिणीता वृन्दा वृन्दावनस्य अधिष्ठात्री ।इयं केदारस्य सुता  कृष्णाञ्शस्य भक्ते: सुपात्री। १।

ब्रह्मवैवर्तपुराणस्य श्रीकृष्णजन्मखण्डस्य        षडाशीतितमोऽध्यायस्य अनतर्निहिते । सप्तत्रिंशताधिकं शतमे श्लोके रायाणस्य पत्नी वृन्दया: वर्णनमस्ति।।२।

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उवाच वृन्दां भगवान्सर्वात्मा प्रकृतेः परः ।१३४
श्रीभगवानुवाच-
त्वयाऽऽयुस्तपसा लब्धं यावदायुश्च ब्रह्मणः ।
तदेव देहि धर्माय गोलोकं गच्छ सुन्दरि ।१३५ ।
तन्वाऽनया च तपसा पश्चान्मां च लभिष्यसि ।
पश्चाद्गोलोकमागत्य वाराहे च वरानने ।१३६ ।
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मां लभिष्यसि रासे च गोपीभी राधया सह ।
राधा श्रीदामशापेन वृषभानसुता यदा ।१३८।
सा चैव वास्तवी राधा त्वं च च्छायास्वरुपिणी 
विवाहकाले रायाणस्त्वां च च्छायां ग्रहीष्यति। १३९।
त्वां दत्त्वा वास्तवी राधा साऽन्तर्धाना भविष्यति ।
राधैवेति विमूढाश्च विज्ञास्यन्ति ।
च गोकुले ।१४० ।
स्वप्ने राधापदाम्भोजं नारि पश्यन्ति बल्लवाः ।
स्वयं राधा मम क्रोडे छाया वृन्दा रायाणकामिनी ।१४१।
विष्णोश्च वचनं श्रुत्वा ददावायुश्च सुन्दरी ।
उत्तस्थौ पूर्ण धर्मश्च तप्तकाञ्चनसन्निभः ।।
पूर्वस्मात्सुन्दरः श्रीमान्प्रणनाम परात्परम् । १४२।
वृन्दोवाच
देवाः शृणुत मद्वाक्यं दुर्लङ्घ्यं सावधानतः ।
न हि मिथ्या भवेद्वाक्यं मदीयं च निशामय ।१४३ ।
उपर्युक्त संस्कृत श्लोकों का नीचे अनुवाद देखें-

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अनुवाद:- तब भगवान कृष्ण  जो सर्वात्मा एवं प्रकृति से परे हैं; वृन्दा से बोले।

श्रीभगवान ने कहा- सुन्दरि! तुमने तपस्या द्वारा ब्रह्मा की आयु के समान आयु प्राप्त की है। 

वह अपनी आयु तुम धर्म को दे दो और स्वयं गोलोक को चली जाओ। 

वहाँ तुम तपस्या के प्रभाव से इसी शरीर द्वारा मुझे प्राप्त करोगी।
सुमुखि वृन्दे ! गोलोक में आने के पश्चात वाराहकल्प में  हे वृन्दे !  तुम  पुन:  राधा की  वृषभानु की कन्या राधा की छायाभूता  होओगी। 
उस समय मेरे कलांश से ही उत्पन्न हुए रायाण गोप ही तुम्हारा पाणिग्रहण करेंगे।

फिर रासक्रीड़ा के अवसर पर तुम गोपियों तथा राधा के साथ मुझे पुन: प्राप्त करोगी।

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स्पष्ट हुआ कि रायाण गोप का विवाह मनु के पौत्र केदार की पुत्री वृन्दा " से हुआ था।  जो राधाच्छाया के रूप में  व्रज में उपस्थित थी।

जब राधा श्रीदामा के शाप से वृषभानु की कन्या होकर प्रकट होंगी, उस समय वे ही वास्तविक राधा रहेंगी।

हे वृन्दे ! तुम तो उनकी छायास्वरूपा होओगी। विवाह के समय वास्तविक राधा तुम्हें प्रकट करके स्वयं अन्तर्धान हो जायँगी और रायाण गोप तुम छाया को ही  पाणि-ग्रहण करेंगे;

परंतु गोकुल में मोहाच्छन्न लोग तुम्हें ‘यह राधा ही है’- ऐसा समझेंगे। 
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उन गोपों को तो स्वप्न में भी वास्तविक राधा के चरण कमल का दर्शन नहीं होता; क्योंकि स्वयं राधा मेरी  हृदय स्थल में रहती हैं !

इस प्रकार भगवान कृष्ण के वचन के सुनकर सुन्दरी वृन्दा ने धर्म को अपनी आयु प्रदान कर दी। फिर तो धर्म पूर्ण रूप से उठकर खड़े हो गये।

उनके शरीर की कान्ति तपाये हुए सुवर्ण की भाँति चमक रही थी और उनका सौंदर्य पहले की अपेक्षा बढ़ गया था। तब उन श्रीमान ने परात्पर परमेश्वर को  श्रीकृष्ण को प्रणाम किया।
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सन्दर्भ:-
ब्रह्मवैवर्तपुराण /खण्डः ४ (श्रीकृष्णजन्मखण्डः)/अध्यायः-( ८६ )
राधाया: प्रतिच्छाया वृन्दया: श्वशुरो वृकगोपश्च देवरो दुर्मदाभिध:।१७३।(ख)
श्वश्रूस्तु जटिला ख्याता पतिमन्योऽभिमन्युक:।
ननन्दा कुटिला नाम्नी सदाच्छिद्रविधायनी।१७४।
"अनुवाद:- राधा की प्रतिच्छाया रूपा वृन्दा के श्वशुर -वृकगोप देवर- दुर्मद नाम से जाने जाते थे। और सास- का नाम जटिला और पति अभिमन्यु - पति का अभिमान करने वाला था। हर समय दूसरे के दोंषों को खोजने वाली ननद का नाम कुटिला था।१७४।
सन्दर्भ:- श्री-श्री-राधागणोद्देश्यदीपिका( लघुभाग- श्री-कृष्णस्य प्रेयस्य: प्रकरण-  रूपादिकम्-



प्रस्तुतिकरण - यादव योगेश कुमार रोहि-
8077160219


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