सोमवार, 18 अक्टूबर 2021

नारी शोषण की लम्बी गाथा

"करवाचौथ कर के महिलाऐं ।
 दीर्घायु पुरुषों की माँगे। 
 और पुरुष इसके  बदले में।
 वैवाहिक सरहद को लाँघें।१।

काम वासना की ज्वालाऐं
बलात्कार की कर बाती हैं।
स्वार्थ पिपासाऐं व्यक्ति की 
बन्धन के विधान बनाती है।२।

नारी का हो सम्मान कहाँ पर,
कहाँ  वे पूजी जाती हैं।
धर्म ग्रन्थों की देकर दुहाई।
भोग्या बतायी जाती हैं।३।

तन मन तक नारी का शोषण,
सदियों से होता आया है।
केवल तन समझा है इसको 
मन कौन समझ पाया है।

युगों युगों की ये धारा है 
पूर्ण वही जिसके दारा है
जीवन वो समझ पाया है ।

सतीप्रथा में युवा नारियाँ
चिता में झोंकी जाती थीं।
करुणा भरी चीखे सुनकर भी
दया नहीं कभी आती थी।

पत्नी के मर जाने पर 
शोक पुरुष न कर पाते।
लेकर बारात बच्चों के संग,
पत्नी दूसरी ले आते ।।

उधर सती और इधर सेहरा,
विरोध बहुत गहरा है।
धर्म  इसी को कहते भोगी।
नारीयों पर  पहरा है ।

नारी का यौवन कुम्लाया
दर्द और यातना सहते ।
इसकी करुणा का मूल्य।
ना मूल्य अश्क जो वहते
नारी ताड़न की अधिकारी 
 तुलसी मर गये  कहते ।

बारी कन्या बूढ़ा वरना ,
बैमेल विवाह  नित होते ।
धर्म का विधान है बन्धु।
 पापो को गंगा में धोते।।

विधवा नारी अशुभ अमंगल,
पतिहन्ता समझी जाती।
पुरुष रडुआ हो जाए अगर तो ,
 आँच न उस पर आती।।

विवश हुई पर्दा करने को,
सूरत दिखा न पाती।
सोने चाँदी के जो लुटेरे
इसके सौन्दर्य के घाती।

पति नपुंसक हो लेकिन,
पत्नी ही बाँझ कहाती।।
पुरुष समाज की ये रीति,
नारी में दोष दिखाती।।

लड़की ना आ पाये कोख में
भ्रूण की जाँच कराते।
बेटी हो तो शोक कर करके  ,
बेटी पर आँच गिराते।।

जो खाकर भी जख्म जोखिमों को
अपने हृदय में  सहज सजोती ।
बंजर और शमशान वो घर है।
जिस घर में नहीं यह ज्योती।




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