गुरुवार, 13 अगस्त 2020

अनुभव के बोल ..

परिस्थितियाँ नहीं मिटती
     केवल रूप बदलती हैं
 जरूरतें बासूरतें भी उन्हीं राहों पे चलती हैं 

युगों की अथाह  धारा में रोहि 
स्वार्थों के भँवर में शोषण के गोते हैं 

इन्तजार की कतारों में लोग हजारों में होते 
 उम्र ढल जाती हैं और हम बस वहीं खड़े रोते हैं

  भले ही मजबूत रखो अपने इरादे 
मुकम्मिल नहीं फिर भी यहाँ  आधे 

शोषण -शोषक की  रीति ये सदीयों पुरानी है 
  हुक्मरानों का खू़ून तो ख़ून है 
गरीबों का खू़न तो नाली का पानी हैं 

अपनी हालातों के लिए
 गैरों को क्यों दोष दूँ ! 
भगदड़ का मंजर है 
गिरकर भी मैं क्यों न खुद सदूँ

  हवाऐं रूख बदलती हैं 
रसूखों में वही रवानी है 

 इन अन्धे युगों का दौर है
रूढ़ियों की राहें अनजानी है 

 हम चले उन राहों पर 
जिनकी मंजिल न कोई ठिकाना है ?
इस देश की तकदीर को
 फिर कौन बदलने वाला है

तुम ने अपना सब कुछ गँवा कर 
उन्हें आशियाने में पनाह दी 
उन्होंने कब समझा तुमको 
तुम्हें कैसा लगा ? 
जब मजलिसों में बुलाकर उन्होंने 
तुम्हारे सर पे जब पनाह दी ...

परिवर्तन  वक्त का जीवन प्रमाण-पत्र
और यह प्रकृति का विधान है 

कर्म  इस सृष्टि का परिधान है 
और परिवर्तन से समय का ज्ञान है
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आस्तिकता और नास्तिकता व्यक्ति की अनुभूतियों की अवस्थाऐं हैं ! 
और यह अनुभूतियाँ ज्ञान का प्रतिबिम्ब है और ज्ञान व्यक्ति की  परिस्थितियाँ  वातावरण और जीवन के अनुभवों पर निर्भर होता है।
प्रारब्ध इन सब का निर्धारक है |

समय , परिस्थिति और  व्यक्ति के मन: स्तर के अनुरूप हिंसा और अहिंसात्मक क्रियाओं का औचित्य है ...

मत भूलिए की युद्ध में क्रोध, साहस को शक्ति के साथ आह्वान करता है !

युद्ध अधिकारों को प्रयत्न पूर्वक प्राप्त करने की प्रक्रिया मात्र भी  है !

शठे शाठ्यम् समाचरेत् की नीति आज की आवश्यकता है !

युद्ध में दया, क्षमा का कोई सैद्धान्तिक औचित्य नहीं ! क्यों बेईमान के साथ बेईमानी और ईमानार के साथ ईमानदारी ही न्याय संगत वा प्राकृतिक  है
 जैसे गणित में सजातीय चिन्ह धनात्मक और विजातीय ऋणात्मक होते हैं
श्रृद्धेय गुरुदेव
 सुमन्त कुमार यादव के श्री चरणों अर्पित 
 ये समसामयिक उद्गार ...
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 यादव योगेश कुमार रोहि


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