व्रजक्षेत्र के मूर्ख रामभक्त यादवों के लिये
राधा राधा रटत है आक ,ठाक, व कैर |
तुलसिया ये ब्रजभूमि में क्यों राम से बैर ||
अथार्त : व्रज भूमि के पेड़ पौधा भी श्री कृष्ण नाम से गूंज रहा है कृष्ण जाप जप रहें है है तुलसीदास इस भूमि पर राम से क्यों बैर रखा जा रहा है ! फ़िर तो अकबर ने आदेश जारी कर शिष्टाचार में जय श्री कृष्ण की जगह राम राम बोलने का आदेश फरमान जारी कर दिया और जो न बोलें उनसे कठोर दंड का प्रावधान रखा गया तभी से सजा से बचने के लिये यह परंपरा बन गई
तुलसीदास आमेर राज्य का राजकवि था
जब अकबर 1556 में दिल्ही का बादशाह बना तो मुग़ल विदेशी होने के उसे देश की जनता गले उतार नही पा रहीं थी जगह जगह विद्रोह हो रहा था इसी वर्ष वर्षा न होने के कारण सुखा पड़ा था पूरा उत्तरभारत अकाल की लपेट में था
उधर ढूढार के ठिकानेदार कछुआ राजपूत भारमल जो शेरशाह सूरी के समय से #अहीर राजघराना #रेवाड़ी के सीमावर्ती खालसा भूमि को हथियाँकर पृथक राज्य बनाने की ज्वाला में जल रहा था लेकिन कामयाब नही हो रहा था क्योंकि 1561 में वहीं का ही सूजा सरदार ढूंढार अपनी दावेदारी कर रहा था जिसका समर्थन रेवाड़ी राज्य सनसनीवाल के जाट ओर मेवात के मेव कर रहें थे इस पारिवारिक ओर बाहरी समस्याओं से छुटकारा पाने भारमल ने अकबर की नजदीक जाने का घनिष्ठ सबंध बनाने का मन बनाया और उधर अकबर भी जगह जगह विद्रोह ओर अकाल से जूझता परेशान होकर 20 जनवरी 1562 को ढूंढार रास्ते #अजमेर ख्वाजा चिश्ती की दरगाह पर अपने राज्य की सलामती की मन्नत मांगने निकला तो भारमल #चंगताई_खाँ की मदद से #सांगानेर में अकबर से भेंट कर मुग़ल अधीनता स्वीकार ली और अपनी ज्येष्ठ पुत्री से विवाह करने की अभ्यर्थना पेश की | भारमल के इस व्यवहार से #अकबर बहोत खुश हुवा ओर अजमेर से लौटते 6 जनवरी 1562 के दिन भारमल की पुत्री हरखाभाई उर्फ जोधा से #सांभर में विवाह कर लिया | भारमल को इस विवाह सबंध से कई फ़ायदे हुवे एक तो वो मुगलों का समधी बन मुगल परिवार का अंग बन गया ओर अकबर ने उसे आमेर का शाषक राजा बना दिया
आमेर वाले ख़ुद को श्री राम का वंशज समझते थे मानते आए है #आमेर के राजा बने #भारमल ने राजकवि तुलसीदास को कहा हम श्री राम के वंशज है श्री राम पर हमारा इतिहास लिखो तब जाकर #तुलसीदास ने #रामचरितमानस लिखा
एकबार फिर अकबर पुत्ररत्न की प्राप्ति के लिये अजमेर जा रहा था साथ मे तुलसीदास भी थे रास्ते मे ब्रज मंडल में ठाकोरजी के मंदिरों ओर चारों तरफ श्री कृष्ण के ही जयकारों सुनाई दिये वहा के लोगों को शिष्टाचार में भी जय श्री कृष्ण बोलते सुनाई दिये तब कटाक्ष में तुलसीदास ने ☝️ उपरोक्त दुहा गाया ओर अकबर की मदद से फरमान से शिष्टाचार में जय श्री कृष्ण की जगह राम राम बुलवाना स्थापित किया
बोलो जय श्री कृष्ण
साभार : रेवाड़ी अहीर राजघराने के
हाल के महाराज Rao Bijender Singh जी
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