बढ़िया सर
आपकी सोच और समझ में परिपक्वता है।
यह परिपक्वता आपकी अनुभव यात्रा से आई है।
एक सम्पन्न किसान परिवार में जन्म, फिर आर्यसमाज से जुड़ाव, फिर लगातार अध्ययन, समाज के साथ अनवरत विमर्श ने आपको यह मुकाम दिया है।
मैं इतिहास में तमाम आर्यसमाजियों को देखता हूं जो विचारों की परिपक्वता के साथ नास्तिक हो गए।
इन आर्यसमाजियों में शहीद ए आजम भगत सिंह का परिवार हो, राहुल सांकृत्यायन का परिवार हो, संतराम बी ए का परिवार हो , सब आर्यसमाजी थे। बाद में बड़े नास्तिक साबित हुए।
इस बात में एक बात और जोड़ना चाहूंगा कि आज का दौर आर्यसमाजियों के पतन का दौर है, आज ज्यादातर आर्यसमाजी बड़े हिंदूवादी हो चुके हैं। हिंदूवादी पार्टी के झंडाबरदार हो गए है।
लेकिन आपने अपनी सही दिशा को चुनकर एक सही रास्ता पकड़ा है। इसके लिए बधाई और शुभकामनाएं
सादर प्रणाम सर
सतेंद्र उर्फ मोंटी बजरंगी ज़िला बिजनौर में बजरंगदल का गोरक्षा प्रमुख था। अब हमारे बीच नहीं है।
पिता बलराज, सौतेली मां मधु और सौतेले भाई मानव ने मोंटी की गला काटकर हत्या कर दी है। बताया जा रहा है कि परिवार वालों ने मोंटी को राजमे की सब्ज़ी में नशे की दवाई मिलाकर खिलाई और गंडासे से उसकी गर्दन काट दी।
वजह? मोंटी अपने परिवार की 10 बीघा ज़मीन गोरक्षा के नाम पर किसी संस्था को दान देना चाहता था। परिवार वाले इस पर राज़ी नहीं थे। उन्होंने मोंटी की हत्या करके अफवाह फैला दी कि उसे तेंदुए ने मारा डाला है, लेकिन मामला खुल गया। शुक्र मनाइए, ये इलज़ाम किसी मियां पर नहीं धरा। वरना जांच बाद में होती, घर पहले टूट जाता।
बहरहाल, जीवन भर हिंसा करने वालों का अंत अक्सर हिंसा के चबूतरे पर ही होता है।
यही प्राकृति का नियम है। जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे। इति सिद्धम् !
योगेश यादव
जी प्रियवर! आधी सदी के सार्वजनिक जीवन में सत्य की खोज में धर्म व राजनीति दोनों जगह घूमते हुए आरएसएस, आर्यसमाज, गायत्री परिवार आदि में भी अंदर तक झाँक चुका हूँ। सबके अपने अपने सत्य हैं। अब जीवन के अंतिम पड़ाव में, सत्य के साथ जीने का संकल्प लेकर, विशुद्ध सामाजिक सोच के साथ स्थिरता आई है...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें