शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2025

यादवों = गोप आभीरों ( ग्वाल अहीरों ) = गोपालगण की नारायणी सेना का वर्णन-

यादवों = गोप आभीरों ( ग्वाल अहीरों ) = गोपालगण की नारायणी सेना (महाभारत)

1. नारायणी सेना का परिचय महाभारत युद्ध में गोपों की नारायणी सेना ने भी युद्ध में भाग लिया था। इनकी कुल संख्या 10 करोड़ थी और ये गोप गोकुल के रहने वाले थे। इन सैनिकों का नाम नारायण था।

मत्संहननतुल्यानां गोपानामबुर्द महत् । नारायणा इति ख्याताः सर्वे संग्रामयोधिनः ।।18 ।। 

मेरे पास 10 करोड़ गोपों की विशाल सेना है, जो सब के सब मेरे जैसे ही बलिष्ठ शरीर वाले हैं। उन सबकी संज्ञा 'नारायण' है। वे सभी युद्ध में डटकर लोहा लेने वाले हैं।

महाभारत, उद्योगपर्व, 7/18

थे। गोकुले नित्यसंवृद्धा युद्धे परमकोपनाः । तेऽपावृत्तकवीराश्च निहताः सव्यसाचितना ।।38 ।। 

गोप गोकुल के रहने वाले थे और वे कभी युद्ध में पीठ दिखाना नहीं जानते

महाभारत, कर्णपर्व, 5/38

कौरवों के साथ जिस नारायणी सेना ने भाग लिया, उसके सेनापति कृतवर्मा थे और यह नारायणी सेना संशप्तकों के साथ मिलकर युद्ध करती रही।

नारायणश्च गोपालाः काम्बोजां च ये गणा ।।39 ।।

289कर्णेन विजिताः पूर्व संग्रामे शूरसम्मताः । भारद्वाजं पुरस्कृत्य हृष्टात्मानोऽजुनं प्रति ।।40 ।।

अर्थात नारायण नामक गोप सैनिक कृतवर्मा के साथ थे। ये गोप आदि योद्धा (शूर) थे।

महाभारत, द्रोण पर्व, 91/40

महाभारत युद्ध में गोप सेना ने भाग लिया था। इस गोप सेना के प्रधान सेनापति बलराम थे और जिस गोप सेना ने महाभारत युद्ध में भाग लिया उसके सेनापति कृतवर्मा थे। गोपों की सेना का नाम नारायणी सेना था। गोप सेना संशप्तक समूह में सम्मिलित थी और इस गोप सेना या संशप्तक सेना का अधिकतर युद्ध अर्जुन से हुआ।

बलरामजी की गोप सेना ने उनकी इच्छा पर इस युद्ध में भाग नहीं लिया था। सात्यकि ने अपनी गोप सेना का प्रयोग पांडव पक्ष में किया। वे पांडव की तरफ से लड़े।

आवर्ततां कार्मुकवेगवाता हलायुधप्रग्रहणा मधूनाम् । सेना तवाथेषु नरेंद्र यत्ता ससादिपत्त्यश्वरथा सनागा।।33।।

नरेंद्र ! जिसके धनुष का वेग वायुवेग के समान हैं, हल धारण करने वाले बलरामजी जिसके सेनापति हैं, वह सवारों सहित हाथी घोड़े, रथ और पैदल सैनिकों से भरी हुई मथुरा-प्रांतवासी गोपों की चतुरंगिणी सेना सदा युद्ध के लिए सन्नद्ध हो आपकी अभीष्ट-सिद्धि के लिए निरंतर तत्पर रहती है।

महाभारत, वनपर्व, 183/33

उल्लेखनीय है कि महाभारत युद्ध जब प्रारम्भ हुआ, तब भगवान श्रीकृष्ण से सहायता माँगने के लिए अर्जुन और दुर्योधन दोनों पहुँचे थे। कृष्ण ने अपनी सेना दुर्योधन को दिया और स्वयं पांडवों की ओर से महाभारत युद्ध में भाग लिया।

नारायणी सेना के मुख्य सेनापति बलराम थे।

गोप सेना का अर्जुन के साथ युद्ध

पूरे महाभारत युद्ध में नारायणी सेना का युद्ध अर्जुन के साथ हुआ। नारायणी सेना के गोपों के सेनापति युद्ध स्थल में कृतवर्मा थे। उदाहरण के लिए

ततो जयो महाराज कृतवर्मा च सात्वतः । काम्बोजश्च श्रुतायुश्च धनंजयमवारयन् ।।37 ।।

महाराज ! तब जय, सात्वतवंशी कृतवर्मा, काम्बोज-नरेश तथा श्रुतायु ने सामने आकर अर्जुन को रोका।137 ।।

तेषां दश सहस्राणि रथानामनुयायिनाम् । अभीषाहाः शूरसेनाः शिबयोऽथ वसातयः ।।3811

मावेल्लका ललित्याश्च केकया मद्रकास्तथा। नारायणाश्च गोपालाः काम्बोजानां च चे गणाः ।।39 ।।

कर्णेन विजिताः पूर्वं संग्रामे शूरसम्मताः ।। भारद्वाजं पुरस्कृत्य हृष्टात्मानोऽजुर्न प्रति ।।40 ।।

इसके पीछे दस हजार रथी, अभीषाह, शूरसेन, शिबि, वसाति, मावेल्लक, ललित्थ, केकय, मद्रक, नारायण नामक गोपालगण तथा काम्बोजदेशीय सैनिकगण भी थे। इन सबको पूर्वकाल में कर्ण ने रणभूमि में जीतकर अपने अधीन कर लिया था। ये सब के सब शूरवीरों द्वारा सम्मानित योद्धा थे और प्रसन्नचित्त हो द्रोणाचार्य को आगे करके अर्जुन पर चढ़ आए थे। 36-40

द्रोण पर्व, अध्याय- 91

कृतवर्मा नारायणी सेना के सेनापति थे।

वामपादे तु राजेंद्र कृतवर्मा व्यवस्थितः ।

नारायणबलैर्युक्तो गोपालैर्युद्धदुर्मदैः ।।17 ।।

राजेंद्र ! उस मकरव्यूह के बाएँ पैर की जगह नारायणी-सेना के रणदुर्मद गोपालों के साथ कृतवर्मा को खड़ा किया गया था। 1711

महाभारत, कर्णपर्व, अध्याय- 11, पेज-770

नारायणी सेना के वीर क्षत्रिय गोप यादवों की लड़ाई अक्सर अर्जुन के साथ पूरे महाभारत युद्ध में दिखाई देती है। गोप संशप्तक समूह के अभिन्न अंग थे अर्थात संशप्तक समूह में त्रिगर्त देश के सैनिक और नारायणी सेना के गोप सम्मिलित थे।

संशप्तक समूह = त्रिगर्त देश के सैनिक गोपों की नारायणी सेना
तं प्रयान्तं ततः पश्चादाङ्गवन्तो महारथाः। संशप्तकाः समारोहन् सहस्राणि चतुर्दश ।।10।।

अर्जुन को जाते देख पीछे से चौदह हजार संशप्तक महारथी उन्हें ललकारते हुए चढ़ आए ।।10।।

दशैव तु सहस्राणि त्रिगर्तनां महारथाः । चत्वारि च सहस्राणि वासुदेवस्य चानुगाः ।।1111

उनमें दस हजार महारथी तो त्रिगत देश के थे। और चार हजार भगवान श्रीकृष्ण के सेवक (नारायणी सेना के सैनिक) थे। 11।।

महाभारत, द्रोण पर्व अध्याय 27. फेज-115

गोपों के साथ अर्जुन का भयंकर युद्ध हुआ।

ततस्ते संन्यवर्तन्त संशप्तकगणाः पुनः । नारायणाश्च गोपाला मृत्युं कृत्वा निवर्तनम् ।।3111 तब वे समस्त संशप्तकगण और नारायणी सेना के ग्वाले मृत्यु को ही युद्ध से निवृत्ति का अवसर मानकर पुनः लौट आए।।3111

द्रोण पर्व, अध्याय-18

अथ नारायणाः कुद्धा विविधायुधपाणयः । छादयन्तः शरव्रातैः परिववुर्धनंजयम् ।।7।। तब क्रोध में भरे हुए नारायणी सेना के गोपों ने हाथों में नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्र लेकर अर्जुन को अपने बाण समूहों से आच्छादित करते हुए उन्हें चारों ओर से घेर लिया।।

द्रोण पर्व, अध्याय-19

अर्जुन और संशप्तकों के बीच घोर युद्ध हुआ। अर्जुन ने संशप्तक सेना का विनाश किया। संशप्तक समूह में त्रिगर्त प्रदेश के सैनिक और नारायणी सेना के गोप शामिल थे। इन दोनों को समूहिक रूप से क्षत्रिय कहा गया है। संशप्तक समूह का अर्थात गोप सेना का आदर्श वाक्य विजय या वीरगति था।

वर्तमाने तथा युद्धे क्षत्रियाणां निमज्जने । गाण्डीवस्य महाघोषः श्रूयते युधि मारिष ।।। ।। संजय कहते हैं- आर्य । जब क्षत्रियों का संहार करने वाला वह भयानक युद्ध चल रहा था, उसी समय दूसरी ओर बड़े जोर-जोर से गांडीव धनुष की टंकार सुनाई देती थी।

संशप्तकानां कदनमकरोद् यत्र पाण्डवः। कोसलानां तथा राजन् नारायणबलस्य च ।।2।।

राजन ! वहाँ पांडुनंदन अर्जुन संशप्तकों का, कोसलदेशीय योद्धाओं का तथा नारायणी-सेना का संहार कर रहे थे। अर्थात नारायणी सेना के अहीरों को क्षत्रिय कहा गया है।

संशप्तकास्तु समरे शरवृष्टीः समन्ततः । आपातयन् पार्थमूर्ध्नि जयगृद्धाः प्रमन्यवः ।।3।।

समरांगण में विजय की इच्छा रखने वाले संशप्तकों ने अत्यंत कुपित होकर अर्जुन के मस्तक पर चारों ओर से बाणों की वर्षा प्रारम्भ कर दी।।3।।

ते बद्धाः पादबन्धेन पांडवेन महात्मना। निश्चेष्टाश्चाभवन् राजन्नश्मसारमया इव । 125 11

राजन ! उन महात्मा पांडुपुत्र अर्जुन के द्वारा पैर बाँध दिए जाने के कारण वे संशप्तक यौद्धा लोहे के बने हुए पुतलों के समान निश्चेष्ट हो गए। 25 ।।

निश्चेष्टांस्तु ततो योघानवधीत पांडुनंदनः । यथेन्द्रः समरे दैत्यांस्तारकस्य वधे पुरा ।।26 ।।

फिर पूर्वकाल में इंद्र ने तारकासुर के वध के समय समरांगण में जिस प्रकार दैत्यों का वध किया था, उसी प्रकार पांडुनंदन अर्जुन ने निश्चेष्ट हुए संशप्तक योद्धाओं का संहार आरम्भ किया। 126।।

संशप्तकगणानां च गोपालानां च भारत।।41 ।।

जब सेना का संहार होने लगा, तब संशप्तकगणों और नारायणी सेना के ग्वालों को बड़ा भय हुआ।। 41।।

ततः संशप्तका भूयः परिववुर्धनंजयम् ।।45 ।। मर्तव्यमिति निश्चित्य जयं वाप्यनिवर्तनम्।

संशप्तकों ने पुनः यह निश्चय करके कि 'मर जाएँगे अथवा विजय प्राप्त करेंगे, किंतु युद्ध से पीछे नहीं हटेंगे' अर्जुन को चारों ओर से घेर लिया।।45।।

महाभारत, कर्णपर्व, अध्याय- 53

अर्थात अहीर सैनिकों का MOTO ध्येय सूत्र- मृत्यु या 'विजय' है। 1962 के रेजांगला युद्ध में जमादार सुरजा यादव ने कहा था कि अहीर सिपाही रण से भागना नहीं जानता।

रेजांगला शौर्य गाथा, नरेश चौहान, राष्ट्रपूत, पेज 111

3. द्रोणाचार्य के साथ गोपसेना

द्रोणाचार्य ने भी युद्ध में अपने साथ गोपों / शूरवीर अहीरों को रखा था। भूतशर्मा खेमशर्मा करकाशश्च वीर्यवान् ।
कलिंगाः सिंहला, प्राच्याः शूराभीरा दशेरकाः ।।6।।1

शूरवीर अहीर गरुड़ व्यूह में ग्रीवा भाग में स्थित थे।

द्रोण पर्व, अध्याय- 20

4. कर्ण के साथ गोप सेना

जिस समय कर्ण युद्ध में मारा गया, उस समय गोपों ने भयंकर युद्ध किया था। कर्ण के मारे जाने के बाद गोप अपनी सेना के सेनापति कृतवर्मा को अपने घेरे में लेकर युद्ध क्षेत्र से बाहर आए।

कृतवर्मा रथैस्तूर्ण वृतो भारत तावकैः । नारायणावशेषश्च शिबिरायैव दुद्रुवे ।।5।।

भारत ! नारायणी-सेना के जो वीर शेष रह गए थे, उनसे तथा आपके अन्य रथी योद्धाओं से घिरा हुआ कृतवर्मा भी तुरंत शिविर की ओर ही भाग चला।।5।।

महाभारत, कर्णपर्व, अध्याय- 95

इस युद्ध में हजारों, लाखों अहीर योद्धा मारे गए।

नारायणा हता यत्र गोपाला युद्धदुर्मदा 'रणदुर्मदं' ग्वाले मारे गए।।40 ।।

शल्य पर्व, 2/40


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