आरक्षण किसको कहाँ पर-
____________________
आरक्षण के स्तर संवैधानिक ही नहीं अपितु धार्मिक और सामाजिक भी होते हैं ।
सभी ब्राह्मण किस आधार पर मन्दिर में पुजारी पद पर आरक्षित हैं। क्या सभी ब्राह्मण जन्म से निर्मल मन और सात्विक वृत्ति के होते हैं।
जबकि पुजारी को सात्विक वृत्ति का ही होना चाहिए! परन्तु सभी ब्राह्मण समान वृत्ति और प्रवृत्ति के नहीं होते हैं।
सात्विक वृत्ति और
योग्यता तो कोई अन्य जाति का व्यक्ति भी पाकर मन्दिर का पुजारी क्यों नहीं बन सकता- यह विधान शास्त्र लिखने वाले ब्राह्मण ने क्यों नहीं बनाया।
व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास तीन आधारों पर होता है।
प्रथम - आनुवांशिक स्तर जिसमें माता -पिता के गुणसूत्र कारक हैं ।
सन्तान की मानसिक और शारीरिक संरचना माता पिता के शरीर और मानसिक ( बौद्धिक) स्तर से आनुपातिक रूप से प्रभावित होती है।
द्वितीय- पारिवैशिक स्तर - जिन परिस्थितियों तथा हालातों में व्यक्ति में गुणों का विकास होता जिससे व्यक्तित्व प्रभावित होता है। यह परिवेश ही व्यक्तित्व विकास का सबसे बड़ा कारक है।
यदि सौ वर्ष जिस व्यक्ति के हाथ और पैरों में वेणी या जंजीर बंधी रही हो वह व्यक्ति उन व्यक्तियों के बराबर नहीं दौड़ सकता जो सदीयों से हर कार्य में स्वतन्त्र और उन्मू़ुक्त रहे हो।
वह जो उन्मुक्त और लम्बे समय से स्वतंत्र रहा है वह तो बहुत तेजी से दौड़ेगा ही और जिसके पैरों में बन्धन या वेणीयाँ थी वह उस समय बन्धन मुक्त होने पर भी उस उन्मुक्त और लम्बे समय से स्वतंत्र व्यक्ति के बराबर नहीं दौड़ सकेगा।
इस लिए वेणीबन्धित व्यक्ति को वेणीयों से मुक्त करने पर भी बैशाखीयों और सहारे की कुछ काल तक आवश्यकता होती ही है। उसके लिए सामाजिक समानता के लिए आरक्षण का प्रावधान अपेक्षित है।
यदि हम तृतीय व्यक्तित्व विकास के कारक -पूर्वजन्म के संस्कार माने तो वह तो इन दौनों ही कारकों के सम्पूरक रूप में नहीं है।
क्योंकि एक ही परिवार में एक ही स्थान पर एक ही माता- पिता की दो या तीन सन्तानें भी विभिन्न स्वभाव और व्यक्तित्व की होती हैं।
इसमें कारक उसके पूर्व जन्म के कर्मसंस्कार ही हैं।
इस लिए वर्णव्यवस्था वादीयों ब्राह्मण जन्म से ही ब्राह्मण श्रेष्ठ होता तो संजीव जी महाराज जैसे ब्राह्मण किसी अबोध बालिका के साथ बलात्कार नहीं करते ।
किसी के पास इसका उत्तर हो तो अवश्य देना-
आपका योगेश रोहि-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें