रविवार, 13 अक्टूबर 2024

मेवों का इतिहास

हिन्दु धर्म की धर्मांधतापूर्ण नीति के चलते मेवों को हिन्दु ना अपनाने के कारण हमारी नाक के नीचे मुस्लिम धर्म की ओर अग्रसर होता मेवात धर्मांधता की चादर ओढ़े हिन्दुवाद की देन है ! जो धर्मांधता में बंधकर खड़ा तमाशा देख रहा है !
मैंने मेवात के इतिहास को काफी खंगाला है मुझे जो तथ्य यहा के मिले वो मैं यहा आप सब के साथ साझा कर रहा हूँ !
मेवात में मेवों के पूर्वज मूल रूप से हिन्दु रहे है ! मेवों में 12 पाल है 6 पाल यादवों की है 6 पालों में मीणा, गुज्जर, जाट आदि है इसे जानने के लिए यह जरूरी है कि जब 14वी शताब्दी के मध्य तुहिन गढ़ राज्य के वंशज यादव राजा सांभर पाल मौजूदा मेवात में राज करते थे ! फिरोजशाह तुगलक 1351ई० में बादशाह बना तो उसने अपने विजय अभियान को जब मौजूदा मेवात की तरफ किया तो सांभर पाल व उनके पुत्रों तथा इनकी सेना ने घोर युद्ध करके फिरोजशाही सेना के हजारों सिपाहियों को साहबी के ठण्ड़े रेत में दफन कर दिया आज भी उनकी कबरें कोट कासिम के आस-पास दूर-दूर तक बिखरी पड़ी है लेकिन इस युद्ध में सांभर पाल के दो पुत्र घायल होने से पकड़े गए शाही सेना कई दिनों तक अपने साथियों की सड़ी लाशों को साहबी के रेत में गढे़ खोदकर दफनाती रही इससे शाही सेना का हौसला टूटा हुआ था पर वीर सांभर पाल के माथे पर शिकन नही थी आखिर विवश फिरोजशाह का संधि सन्देश सांभर पाल के पास भेजा उसने सांभर पाल की वीरता की प्रशंसा करते हुए सन्देश भेजा कि आप जैसा वीर पुरूष तो हमारा शत्रु नही साथी होना चाहिए हम आपके दोनों पुत्रों आपके हवाले कर देंगे आपका पूरा राज्य आपके अधीन रहेगा ! हम आप पर मुसलमान होने की शर्त भी नही लगाते आप सिर्फ मेरी दी हुई बहादुर नाहर ( बहादुर शेर) की उपाधि धारण कर ले जो हमारी तरफ से  केवल सम्मानित पदवी होगी ! हमे इसमें भी कोई एतराज नही कि आप हिन्दी रीति-रिवाजों का पालन करे इस संधि के बाद तथा-कथित हिन्दु धर्म के ठेकेदारों ने इन्हे हिन्दु मानने से इंकार कर दिया सांभर पाल राजा थे तथा राजा का पुत्र राजपूत कहलाता है जिसे उर्दु में खानजादे कहते है इसी कुल में आगे चलकर वीर पुरूष महान राष्ट्रवादी हसन खान मेवाती पैदा हुए !
फिरोजपुर झिरका फिरोजशाह तुगलक के नाम से है आज से 30-40 वर्ष पहले तक इनके नाम भगवान खान, लाल खान, मितरू खान आदि हिन्दु नामों पर ही आधारित होते थे मेवों में शादिया हिन्दु रीति-रिवाज के अनुसार होती रही है ये हमारे त्यौहारों को भी मनाते रहे है यह अपनी पंचायतों में भी कृष्ण को साक्षी मानकर कि "पंचायत में जो झूट बोले वो करसन को जाम नही" कहकर सत्य पर आधारित फैसला लेते रहे है !!


#मेव_कम्युनिटी  "गढ़ घासेड़ों गांव पाल कौ बड़ो भरोसो. दादा रामचंद्र औतार राज रावण को खोसौ."..                                    #मेव अपने आप को  मुसलमान नही मेव कहलाना पसंद करते है। जानिए क्यों ?

मेवात के मेव समाज के बारे में लोगो को बहुत कम जानकारी है। मेवात में 9वी 10वी शताब्दी के आस पास, राजपूतों के उदय से पहले। मेवाल गोत्र के राजाओं का शासन था। इसलिए इस क्षेत्र का नाम मेवात पड़ा।  यहां के लोगो को मेव कहा जाता था। ये मेव शब्द उनको अपने अतीत से जोड़े रखता है। इसलिए मेव अपने आप को मुसलमान कहलाना पंसद नही करते, वे अपने आप को मेव कहलाना ज्यादा पसंद करते है। मुसलमान तो उनको हिंदुओं ने बनाया है, हिंदुओं ने मेवो को मुसलमानों की तरफ धकेला है। मेव भारत का एक ऐसा समाज है जो हिंदू-मुस्लिम धर्म, संस्कृति दोनो को एक साथ जिया है, निभाया है। मेव समाज हिन्दू-मुस्लिम एकता, भाईचारे की कड़ी है।ये लगभग 1992 तक ईद के साथ साथ होली भी खेलते थे, दिवाली भी मनाते थे, हिंदुओं के लगभग सभी त्योहार हर्षो उल्लास के साथ मनाते थे, । शादी में निकाह भी पढ़ते थे, और फेरे भी लेते थे। इनके पुरानी पीढ़ी के नाम भी मंगल खां, शेरू खां, कालू खां हिंदू मुस्लिम मिक्स नाम होते थे। दाढ़ी मूंछ हिंदुओं जैसे रखते थे। धोती कुर्ता पहनते थे। 1992 के हिंदू मुस्लिम दंगो में इन्होंने महसूस किया की ना तो हिंदू अपना समझ रहे है और ना मुस्लिम अपना, दोनो की नफरत का शिकार कब तक होते रहेंगे। उनको लगा की अब कही एक साइड हो जाना चाहिए। हिंदू उनको अपना नही रहे थे, मुसलमानों में वे जाना नही चाह रहे थे। हिंदुओं ने इनके घर वापसी का कोई प्रयास किया नही, मुस्लिम संस्थाओं ने इनके लिए दरवाजे खोल दिए। 1992 के बाद  से  इनके पहनावे, नामकरण, रितिरिवाजो में तेजी से बदलाव आया। मेवात का मेव समाज #अहीर#मीना_जाट_गुर्जर_राजपूत_तोमर और अन्य समाजों से बना हु़वा है।  मेव समाज अभी भी अपने बच्चो की शादी मुसलमानों में नही करते, ये मेवों में ही करते है, चाचा, ताऊ  के बच्चो के साथ शादी नही करते। ये #तीन_गोत्र टालते है। इन्होंने निश्चित कर रखा है की किन गोत्रो में शादी करनी है, किन में नही करनी। मेवों का #इतिहास बहुत ही शानदार और #गौरवपूर्ण रहा है। मेवों को एक देशभक्त कौम के रूप में जाना जाता है। लेकिन विडंबना है कुटिल मानसिकता वाले लोग मेवों को भारत की प्राचीन संस्कृति और भाईचारे से पहले भी दूर धकेला है और अब भी धकेलते जा रहे है। मुगल हो, अंग्रेज हो  या कोई ओर, किसी भी बाहरी अक्रांता और आततायियो का मेवों ने मुंहतोड़ जवाब दिया है। अक्रांताओ से संघर्ष में इस समाज ने अपना बहुत कुछ खोया है। दिल्ली से महज 90 किलोमीटर की दूरी पर होते हुए भी विकास यहां से कोसो दूर है।

Courtesy :  N. H. Balya

रियासत-ऐ-रेवाड़ी
राव बिजेन्द्र सिंह
9467801857

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