सोमवार, 9 सितंबर 2024

        ("अध्याय-एक-1)




       (अध्याय-तृतीय-3)

"गोलोक में गोप-गोपियों की उत्पत्ति तथा सृष्टि के विस्तार के मुख्य बिन्दु-"


    (अध्याय-चतुर्थ-4) 

श्रीकृष्ण (स्वराट्- विष्णु) का भूतल पर गोप( अहीर) जाति के यदुवंश में अवतार लेने प्रसंग तथा आभीर, गोप और यादव रूप में कृष्ण का निरूपण -


     (अध्याय-पञ्चम-5)


  (अध्याय-अष्टम 8-_)

( वसुदेव और उनकी पत्नी देवकी तथा रोहिणी का क्रमश: कश्यप , अदिति तथा सुरभि अथवा सुरसा के अंश से गोप जाति में जन्म लेने का पौराणिक- सन्दर्भ- 

श्रीमद्देवीभागवत पुराण तथा हरिवंश 



     (अध्याय नवम -9 )



(अध्याय- एकादश-11)-

"वैष्णव धर्म के प्राचीन संवाहक– पुरुरवा - नहुष , ययाति तथा यदु थे।  यदु की वंशावलि के अन्तर्गत कार्तवीर्य अर्जुन आदि का परिचय -


  (अध्याय-द्वादश-12)



  "(अध्याय-त्रयोदश-13)




   "(अध्याय-पञ्चदश-15)"

नारद पुराण में सभी गोपों की पूजा का विधान- और उनकी प्रशंसा- 



      "(अध्याय-षोडश-16)"

'यदुवंश के सनातन विशेषण-आभीर, गोप और यादव। अहीर जाति के यदुवंश के अन्तर्गत वृष्णि कुल में देवमीढ के नन्द और वसुदेव दोंनो के पितामह होने के शास्त्रीय सन्दर्भ तथा मथुरा नगर का नामकरण ।

 ***


     (अध्याय-सप्तदश-17-)

'यदुवंश के अन्तर्गत गोकुल और व्रज के नन्द , यशोदा, वृषभानु आदि  गोपों का परिवार तथा उनके पारस्परिक  पारिवारिक- सम्बन्धों का विवरण- 

      "(अध्याय-अष्टादश-18)-"

'गोप शब्द के अन्य पर्यायवाची  तथा अहीरों का हिन्दी की व्रजभाषा( बोली) के पद्यसाहित्य में वर्णन तथा नन्द और वसुदेव का पारस्परिक (आपसी) पारिवारिक सम्बन्ध- 



 "(अध्याय-ऊनविञ्शति-19)-

  -( वैष्णव वर्ण की ब्रह्मा के चार वर्णों से पृथकता तथा चन्द्रमा , अत्रि आदि की उत्पत्ति का ब्रह्मा से कोई सम्बन्ध न होना, गोपों का सभी वर्णों से सम्बन्धित कार्य करना - गोपों की पवित्रता -एवं गायत्री माता की उत्पत्ति और अन्त में ग्रन्थ का समापन, भगवान श्रीकृष्ण के गोलोक गमन के साथ -साथ- ) 








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