शुक्रवार, 5 जुलाई 2024

ईश्वर के नाम पर दुकान चलाने वाले और समाज में गलत कथाएँ कहने वाले घोर नरकों में गिरते हैं.।

  • भूरी भाराणि घनानि गृहीत्वा कथाणां वाचकाश्च। हरेर्नामविक्रयिनो घोरा नरकेषु पतन्ति।१९१।                                          
  • कविः प्रहर्ता विदुषां माण्डूकः सप्तजन्मसु  असत्कविर्ग्रामविप्रो नकुलः सप्तजन्मसु ।१९२।                                                 
  • कुष्ठी भवेच्च जन्मैकं कृकलासस्त्रिजन्मसु  जन्मैकं वरलश्चैव ततो वृक्षपिपीलिका।१९३।                                                
  • ततः शूद्रश्च वैश्यश्च क्षत्रियो ब्राह्मणस्तथा । कन्याविक्रयकारी च चतुर्वर्णो हि मानवः ।१९४।                     
  • सद्यः प्रयाति तामिस्रं यावच्चन्द्रदिवाकरौ । ततौ भवति व्याधश्च मांसविक्रयकारकः ।१९५।         
  • "ततो व्याधि(धो)र्भवेत्पश्चाद्यो यथा पूर्वजन्मनि । मन्नामविक्रयी विप्रो न हि मुक्तो भवेद् ध्रुवम्।१९६।                       
  • मृत्युलोके च मन्नामस्मृतिमात्रं न         विद्यतेः पश्चाद्भवेत्स गो योनौ जन्मैकं ज्ञानदुर्बलः ।१९७।                               
  • ततश्चागस्ततो मेषो महिषःसप्तजन्मसु। महाचक्री च कुटिलो धर्महीनस्तु मानवः।१९८।     ____________________

इति श्रीब्रह्मवैवर्तपुराण श्रीकृष्णजन्मखण्ड उत्तरार्द्ध- पञ्चाशीतितमोऽध्यायः।८५ ।

अनुवाद:- अधिक धन लेकर कथा कहने वाले कथावचक तथा ईश्वर के नाम पर दुकानें चलाकर ईश्वर का नाम बेचने वाले घोर नरकों में गिरते हैं।

विद्वानों के कवित्व पर प्रहार करने वाला सात जन्म तक मेंढक होता है। जो झूठे ही अपने को विद्वान कहकर गाँव की पुरोहितायी और शास्त्रों की मनमानी व्याख्या करता है; वह सात जन्मों तक नेवला, एक जन्म में कोढ़ी और तीन जन्मों तक   गिरगिट( कृकलास)  होता है।

फिर एक जन्म में बर्रै होने के बाद वृक्ष की चीटीं होता है। तत्पश्चात क्रमशः शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय और ब्राह्मण होता है।

चारों वर्णों में कन्या बेचने वाला मानव तामिस्र नरक में जाता है

और वहाँ तब तक निवास करता है, जब तक सूर्य-चंद्रमा की स्थिति रहती है। इसके बाद वह मांस बेचने वाला व्याध होता है।

तत्पश्चात पूर्वजन्म में जो जैसा होता है, उसी के अनुसार उसे व्याधि आ घेरती है।

मेरे नाम को बेचने वाले ब्राह्मण की मुक्ति नहीं होती- यह ध्रुव है।

मृत्युलोक में जिसके स्मरण मेरा नाम आता ही नहीं; वह अज्ञानी एक जन्म में गौ की योनि में उत्पन्न होता है। इसके बाद बकरा, फिर मेढा और सात जन्मों तक भैंसा होता है।

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