सहस्रबाहु अर्जुन का वंश वर्णन यदु वंश के अन्तर्गत
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बभूवुस्तु यदो:पुत्रा: देवसुतोपमा:
सहस्रद: पयोदश्च क्रोष्टा नीलोऽञ्जिकस्तथा ||१|
सहस्रदस्य दायादास्त्रय: परमधार्मिका:|
हैहयश्च हयश्चैव राजन् वेणुहयस्तथा ||२
हैहयस्याभवत् पुत्रो धर्मनेत्र इति स्मृत: |
धर्मनेत्रस्य कार्तस्तु साहञ्जस्तस्य चात्मज: ||३
साहञ्जनी नाम पुरी येन राज्ञा निवेशिता |
साहञ्जस्य तु दायादो महिष्मान् नाम पार्थिव : ||४
महिष्मती नाम पुरी येन राज्ञा निवेशिता |
आसीन्महिष्मत: पुत्रो भद्रश्रेण्य: प्रतापवान्||५|
वाराणस्यधिपो राजा कथित: पूर्वमेव तु |
भद्रश्रेण्यस्य पुत्रो दुर्ददो नाम विश्रुत:||६|
दुर्दमस्य सुतो धीमान् कनको नाम वीर्यवान् |
कनकस्य तु दायादाश्चत्वारो लोकविश्रुता:||७||
कृतवीर्य: कृतौजाश्च कृतवर्मा तथैव च |
कृताग्निस्तु चतुर्थोऽभूत् कृतवीर्यात् तथा अर्जुन: ||८||
यस्तु बाहुसहस्रेण सप्तदीपेश्वरोऽभवत् |
जिगाय पृथिवीमेको रथेनादित्यवर्चसा ||९||
(हरिवंश पुराण हरिवंशपर्व त्रयस्त्रिंशोऽध्याय)
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यदु के पुत्र सहस्रद के तीन पुत्र थे
हैहय ,हय और वेणुहय |
वेणुहय का पुत्र धर्मनेत्र हुआ और धर्मनेत्र के कार्त और कार्त का साहञ्ज नामक पुत्र हुआ |
और साहञ्ज ने ही साहञ्जनी नामक पुरी बसायी इसी साहञ्ज के पुत्र राजा महिष्मान् हुए जिन्होने महिष्मती नामक नगरी बसायी |
महिष्मान् के पुत्र राजा भद्रश्रेण्य हुए थे
जो वाराणसी के अधिपति हुए |
भद्रश्रेण्य के पुत्र का नाम राजा दुर्दम था और इसके पुत्र का नाम कनक और कनक के ही चार पुत्र एशिया में विख्यात हुए ..|
जिनके नाम इस प्रकार हैं
कृतवीर्य , कृतौजा, कृतवर्मा और कृताग्नि ये कृताग्नि ही कनक के चौथे पुत्र थे प्रथम पुत्र कृतवीर्य से ही अर्जुन की उत्पत्ति हुई जो हजार ( सहस्र) भुजाओं से सम्पन्न था|
उपर्युक्त रूप में 1- से लेकर 9 तक के श्लोकों का हिन्दी अर्थ है
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हरिवंश पुराण हरिवंश पर्व तैतासवाँ अध्याय
गीता प्रेस गोरखपुर संस्करण
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