किरात शक और यवन आदि का हैहयवंश के यादवों में विलय...
यादवों का गुप्त और गोप नामक विशेषण उनकी गो पालन व रक्षण प्रवृत्तियों के कारण हुआ ...
______________________________________________
(हरिवंशपुराण एक समीक्षात्मक अवलोकन ...)
हरिवंशपुराण के हरिवंश पर्व में दशम अध्याय का 36वाँ वह श्लोक जिसमें यादवों को गुप्त विशेषण से अभिहित किया गया है ।
इस सन्दर्भ में देखें -
रेवत के प्रसंंग में यह श्लोक विचारणीय है 👇
_______________________________________
कृतां द्वारवतीं नाम्ना बहुद्वारा मनोरमाम् ।
भोजवृष्णन्यकैर्गुप्तां वासुदेव पुरोगमै:।।36।
(उस समय उस पुरी में ) बहुत से दरबाजे बन गये थे ।
और वसुदेव आदि भोज, वृष्णि और अन्धक वंशी यादव उस रमणीय पुरी के गुप्त( रक्षण करने वाले ) थे ।।36।
__________________________________________
बाहोर्व्यसनिस्तात हृतं राज्यभूत् किल।
हैहयैस्तालजंघैश्च शकै: शार्द्धं विशाम्पते ।3।
यवना : पारदाश्चेैव काम्बोजा: पह्लवा: खसा: ।।
एते ह्यपि गणा: पञ्च हैहयार्थे पराक्रमान् ।।4।
(हरिवंशपुराण के हरिवंश पर्व के चौदहवें अध्याय में ) इन दौनों श्लोको में वर्णन है कि 👇
यवन, पारद, कम्बोज, शक, और खस ये सभी गण हैहयवंश के यादवों के सहायक थे ।
वैश्म्पायन जी बोले – हे राजन् ! राजा बाहू शिकार और जुए आदि व्यसनों में पड़ा रहता था ; तात ! इस अवसर से लाभ उठाकर बाहु के राज्य को हैयय , तालजंघ और शकों ने छीन लिया।।3।।
यवन, पारद, कम्बोज, शक, और खस इन सभी गणों ने हैहयवंश के यादवों के लिए पराक्रम किया था।।4।
इस प्रकार राज्य के छिन जाने पर राजा बाहू वन को चला गया और उसकी पत्नी भी उसके पीछे-पीछे गई उसके बाद उस राजा ने दुखी होकर वन में ही अपने प्राणों को त्याग दिया ।5।।
उसकी पत्नी यदुवंश की कन्या थी; वह गर्भवती थी ; बाहु के पीछे -पीछे वह भी वन में गई थी उसकी सौत (सपत्नी) ने उसे पहले ही विष( गर) दे दिया था ।6।।
तब वह स्वामी की चिता बनाकर उस पर चढ़ने लगी उसी समय वन में विराजमान भृगुवंशी और्व ऋषि ने दया के कारण उसे रोका।। 7।।
तब बाहू की गर्भवती पत्नी ने और्व ऋषि के आश्रम में ही विष (गर) सहित एक शिशु को जन्म दिया जो आगे चलकर सगर नामक महाबाहू राजा के रूप में प्रसिद्ध हुआ ;
राजा सगर कभी धर्म से पतित नहीं हुए ।8।।
निम्नलिखित श्लोकांशों में हैहयवंश के यादवों का तथा शकों ,हूणों यवनों और पह्लवों का
विलय दर्शाया गया है ।।
विदित हो की परवर्ती संस्कृत ग्रन्थों में आभीर शब्द का ही प्रयोग हूणों ,यवनों, और ,पह्लवों ,तथा किरातों के साथ बहुतायत से हुआ है ।
ये लोग विदेशी हैं या नहीं इसका साक्ष्य तो भारतीय ग्रन्थों में भी कहीं नहीं है अपितु इन जन-जातियों को अहीरों कों छोड़ कर नन्दनी गाय के विभिन्न अंगों से उत्पन्न दर्शाया है ।
वह भी क्षत्रिय के रूप में ...
जिसके विवरण हम यथाक्रम देंगे
_____________________________________________
तत: शकान् सयवनान् काम्बोजान् पारदांस्तथा ।
पह्लवांश्चैव नि:शेषान् कर्तुं व्यवसितस्तदा ।।12।।
बड़े होकर सगर ने ही तत्पश्चात शक ,यवन पारद कम्बोज शक और पह्लवों को पूर्णत: समाप्त करने का निश्चय किया ।।12।।
तब महात्मा सगर उनका सर्वनाश करने लगे तब वे (शक, यवनादि) वशिष्ठ की शरण में गये वशिष्ठ ने कुछ विशेष शर्तों पर ही उन्हें अभय दान दिया और सगर को ( उन्हें शक यवनादि) को मारने से रोका ।14।।
इसी अध्याय के 18 वें श्लोक में वर्णन है कि शक, यवन, काम्बोज,पारद, कोलिसर्प, महिष, दरद, चोल, और केरल ये सब क्षत्रिय ही थे ।
महात्मा सगर ने वशिष्ठ जी के वचन से इन सब का संहार न करके केवल इनका धर्म नष्ट कर दिया ।।18-19।।👇
शका यवना काम्बोजा: पारदाश्च विशाम्पते !
कोलिसर्पा: स महिषा दार्द्याश्चोला: सकरेला :।।18।
(हरिवंशपुराण हरिवंश पर्व चौदहवाँ अध्याय )
इसी अध्याय के 20 वें श्लोक में वर्णन है कि उन धर्म विजयी राजा सगर ने अश्वमेध की दीक्षा लेकर
खस , तुषार(कुषाण)चोल ,मद्र ,किष्किन्धक,कौन्तल ,वंग,
शाल्व, और कौंकण देश के राजाओं को जीता ।
इस प्रकार सगर ने पृथ्वी विजयी करने लिए अपना घोड़ा छोड़ा ।।-20-21।। देखें निम्नलिखित श्लोक👇
खसांस्तुषारांश्चोलांश्च मद्रान् किष्किन्धकांस्तथा ।
कौन्तलांश्च तथा वंगान् साल्वान् कौंकणकांस्तथा ।।20।।
(हरिवंशपुराण हरिवंश पर्व चौदहवाँ अध्याय )
_____
वस्तुत प्रस्तुत श्लोकों में आभीर शब्द के रूप में हैहयवंश यादवों का प्रयोग किया है परवर्ती ब्राह्मणों ने आभीरों का प्रयोग शक, यवन ,हूण कुषाण (तुषार) आदि के साथ वर्णित किया है ।
जबकि भागवत पुराण में अहीर हूणों और किरातों शकों और यवनों के सहवर्ती हैं।
इसका प्रमाण नीचे लिखा श्लोक है :-
_____________________________________________
किरात हूणान्ध्र पुलिन्द पुलकसा:
आभीर शका यवना खशादय :।
येsन्यत्र पापा यदुपाश्रयाश्रया शुध्यन्ति
तस्यै प्रभविष्णवे नम:। (श्रीमद्भागवत् पुराण-- २/४/१८)
अर्थात् किरात, हूण ,पुलिन्द ,पुलकस ,आभीर ,शक, यवन ( यूनानी) और खश आदि जन-जाति तथा अन्य जन-जातियाँ यदुपति कृष्ण के आश्रय में आकर शुद्ध हो गयीं ;
उस प्रभाव शाली कृष्ण को नमस्कार है।
श्रीमद्भागवत् पुराण-- २/४/१८
यद्यपि यह श्लोक प्रक्षिप्त है ।
तो भी यहांँ विचारणीय तथ्य यह है कि आभीर हूणों यवनों और पह्लवों तथा किरातों के सहवर्ती व सहायक रहे हैं ।
कुछ हूणों ने आभीरों में विलय किया जो अब गुर्जरों का एक गोत्र या वर्ग है ।
🐂
सगर का वर्णन सुमेरियन माइथोलॉजी में भी सार्गोन के रूप में है ।
और ईरानी माइथोलॉजी अवेस्ता ए जेन्द में वशिष्ठ का रूप "वहिश्त" के रूप में है ।
वहिश्त पुरानी फारसी में स्वर्ग के अर्थ में रूढ़ है ।
वर्तमान में गुर्जर एक संघ है जिसमें हूण, गोप जोर्जियन तथा लक्ष्मण के भी वंशज लोग खुद को गुर्जर कहते हैं
वीर गुर्जरों का हूणों के रूप में वर्णन भी है जो चौहानों के पूर्वज हैं चाउ-हूण से चौहान शब्द बना है ...
रे रे गुर्जर जरजरोऽसि समरे लम्पाक किं कम्पसे |
वङ्ग त्वङ्गसि किं मुधा बलरज: कीर्णोऽसि किं कोङ्कण |
हूण प्राण परायणो भव महारष्ट्रपराष्ट्रोऽस्यमी
योद्धारो वयमित्यरीनभिभवन्त्यन्ध्रक्षमा भृद्भटा: ||३१|
दर्पमात्सर्यभूयिष्ठश्चण्ड वृत्तिविकत्थन: मायावी सुलभक्रोध:स धीरोद्धत उच्यते ||३०|
यथा ..
रे रे गुर्जर जरजरोऽसि समरे लम्पाक किं कम्पसे |
वङ्ग त्वङ्गसि किं मुधा बलरज: कीर्णोऽसि किं कोङ्कण |
हूण प्राण परायणो भव महारष्ट्रपराष्ट्रोऽस्यमी
योद्धारो वयमित्यरीनभिभवन्त्यन्ध्रक्षमा भृद्भटा: ||३१|
(प्रतापरूद्रीयम् रत्नापणान्विते)
उपर्युक्त श्लोक में हूणों के सहवर्ती गुर्जर प्रतिभट योद्धा का वर्णन धोरोद्धत नायक के रूप में किया है !
यद्यपि तत्कालीन पुरोहितों का गुर्जर जाट और अहीरों के प्रति द्वेष होने से ही लेखक ने गुर्जरों को वीर तो माना परन्तु धीरोद्धत नायक के रूप में ...
प्रतापरूद्रीयम् में नाट्यशास्त्रीय विवेचन है इसके लेखक विद्याधर पण्डित हैं विद्याधर का समय 1280-1325. ईस्वी है
प्रथ्वीराज चौहन १२ वीं सदी के समकक्ष भी हूण गुर्जर थे ..
साहित्य में वह नायक जो बहुत प्रचंड और चंचल हो और दूसरे का गर्व न सह सके और सदा अपने ही गुणों का बखान किया करे धीरोद्धत नायक होता है ।
जैसे, भीमसेन
__________________________
लम्पाक =लम्पटः । देशभेदः । इति मेदिनी । के १४९ ॥
(यथा मार्कण्डेये । ५७ । ४०
“ लम्पाकाः शूलकाराश्च चुलिका जागुडैः सह । औपधाश्चानिभद्राश्च किरातानाञ्च जातयः ॥ “ )
यद्यपि पुराणों में हूणों को नन्दनी गाय से उत्पन्न माना
गावो विश्वस्य मातर: गाय विश्व की माता है
तो हूण विदेशी कहाँ हुए ....
गावो विश्वस्य मातरः’, संसारकी माता है गाय । जन्म देनेवाली माता तो बचपन में दूध पिलाती है और गाय तो पूरे जीवनभर दूध पिलाती है, मृत्यु समयमें भी गायका दहीं दिया जाता है । यह माँ भी है, दादी भी है , नानी, परनानी, परदादी भी है । सबको दूध पिलाती है । यह संपूर्ण संसारकी माँ है ।
गाय रक्षा करती है ।
इतना ही नहीं रूढ़ि वादी अन्ध-विश्वासी ब्राह्मणों ने यूनान वासीयों की उत्पत्ति नन्दनी गाय की यौनि से बता डाली है।👇
असृजत् पह्लवान् पुच्छात्
प्रस्रवाद् द्रविडाञ्छकान् (द्रविडान् शकान्)।
योनिदेशाच्च यवनान् शकृत: शबरान् बहून् ।३६।
मूत्रतश्चासृजत् कांश्चित् शबरांश्चैव पार्श्वत: ।
पौण्ड्रान् किरातान् यवनान्
सिंहलान् बर्बरान् खसान् ।३७।
यवन, शकृत,शबर,पोड्र,किरात,सिंहल,खस,द्रविड,पह्लव,चिंबुक, पुलिन्द, चीन , हूण,तथा केरल आदि जन-जातियों की काल्पनिक व्युत्पत्तियाँ-
________________________________________
नन्दनी गाय ने पूँछ से पह्लव उत्पन्न किये ।
तथा धनों से द्रविड और शकों को।
यौनि से यूनानीयों को और गोबर से शबर उत्पन्न हुए।
कितने ही शबर उसके मूत्र ये उत्पन्न हुए उसके पार्श्व-वर्ती भाग से पौंड्र किरात यवन सिंहल बर्बर और खसों की -सृष्टि ।३७।
ब्राह्मण -जब किसी जन-जाति की उत्पत्ति-का इतिहास न जानते तो उनके विभिन्न चमत्कारिक ढ़गों से उत्पन्न कर देते ।
अब इसी प्रकार की मनगड़न्त उत्पत्ति अन्य पश्चिमीय एशिया की जन-जातियों की कर डाली है देखें--नीचे👇
__________________________________________
चिबुकांश्च पुलिन्दांश्च चीनान् हूणान् सकेरलान्।
ससरज फेनत: सा गौर् म्लेच्छान् बहुविधानपि ।३८।
इसी प्रकार गाय ने फेन से चिबुक ,पुलिन्द, चीन ,हूण केरल, आदि बहुत प्रकार के म्लेच्छों की उत्पत्ति हुई ।
(महाभारत आदि पर्व चैत्ररथ पर्व १७४वाँ अध्याय)
__________________________________________
भीमोच्छ्रितमहाचक्रं बृहद्अट्टाल संवृतम् ।
दृढ़प्राकार निर्यूहं शतघ्नी जालसंवृतम् ।
तोपों से घिरी हुई यह नगरी बड़ी बड़ी अट्टालिका वाली है ।
महाभारत आदि पर्व विदुरागमन राज्यलम्भ पर्व ।१९९वाँ अध्याय ।
वाल्मीकि रामायण के बाल काण्डके चौवनवे सर्ग में वर्णन है कि 👇
-जब विश्वामित्र का वशिष्ठ की गो को बलपूर्वक ले जाने के सन्दर्भ में दौनों की लड़ाई में हूण किरात शक यवन आदि जन-जाति उत्पन्न होता हैं ।
अब इनके इतिहास को यूनान या तीन में या ईरान में खोजने की आवश्यकता नहीं।
👴...
तस्य तद् वचनं श्रुत्वा सुरभि: सासृजत् तदा ।
तस्या हंभारवोत्सृष्टा: पह्लवा: शतशो नृप।।18।
राजकुमार उनका 'वह आदेश सुनकर उस गाने उस समय वैसा ही किया उसकी हुंकार करते ही सैकड़ो पह्लव जाति के वीर उत्पन्न हो गये।18।
पह्लवान् नाशयामास शस्त्रैरुच्चावचैरपि।
विश्वामित्रार्दितान् दृष्ट्वा पह्लवाञ्शतशस्तदा ।20
भूय एवासृजद् घोराञ्छकान् यवनमिश्रतान् ।।
तैरासीत् संवृता भूमि: शकैर्यवनमिश्रतै:।21
उन्होंने छोटे-बड़े कई तरह के अस्त्रों का प्रयोग करके उन पहलवानों का संहार कर डाला विश्वामित्र द्वारा उन सैकडौं पह्लवों को पीड़ित एवं नष्ट हुआ देख उस समय उस शबल गाय ने पुन: यवन मिश्रित जाति के भयंकर वीरों को उत्पन्न किया उन यवन मिश्रित शकों से वहां की सारी पृथ्वी भर गई 20 -21।
ततो८स्त्राणि महातेजा विश्वामित्रो मुमोच ह।
तैस्ते यवन काम्बोजा बर्बराश्चाकुलीकृता ।23।
तब महा तेजस्वी विश्वामित्र ने उन पर बहुत से अस्त्र छोड़े उन अस्त्रों की चोट खाकर वे यवन कांबोज और बर्बर जाति के योद्धा व्याकुल हो उठे 23
अब इसी बाल-काण्ड के पचपनवें सर्ग में देखें---
कि यवन गाय की यौनि से उत्पन्न होते हैं
और गोबर से शक उत्पन्न हुए।
योनिदेशाच्च यवना: शकृतदेशाच्छका: स्मृता।
रोमकूपेषु म्लेच्छाश्च हरीता सकिरातका:।3।
यौनि देश से यवन शकृत् देश यानि( गोबर के स्थान) से शक उत्पन्न हुए रोम कूपों म्लेच्छ, हरित ,और किरात उत्पन्न हुए।3।
यह सर्व विदित है कि बारूद का आविष्कार चीन में हुआ
बारूद की खोज के लिए सबसे पहला नाम चीन के एक व्यक्ति ‘वी बोयांग‘ का लिया जाता है।
कहते हैं कि सबसे पहले उन्हें ही बारूद बनाने का आईडिया आया.
माना जाता है कि वी बोयांग ने अपनी खोज के चलते तीन तत्वों को मिलाया और उसे उसमें से एक जल्दी जलने वाली चीज़ मिली. बाद में इसको ही उन्होंंने ‘बारूद’ का नाम दिया.
300 ईसापूर्व में ‘जी हॉन्ग’ ने इस खोज को आगे बढ़ाने का फैसला किया और कोयला, सल्फर और नमक के मिश्रण का प्रयोग बारूद बनाने के लिए किया. इन तीनों तत्वों में जब उसने पोटैशियम नाइट्रेट को मिलाया तो उसे मिला दुनिया बदल देने वाला ‘गन पाउडर‘ बन गया ।
ब्रह्म-पुराण के पाँचवें अध्याय" सूर्य्यः वंश वर्णन" में एक प्रसंग है ।👇
बाहोर्व्यसनिन : पूर्व्वं हृतं राज्यमभूत् किल।
हैहयैंस्तालजंघैश्च शकै: सार्द्ध द्विजोत्तमा: ।35।
यवना: पारदाश्चैव काम्बोजा : पह्लवास्तथा।
एते ह्यपि गणा: पञ्च हैहयार्थे पराक्रमम् ।36।
लोमहर्षण जी ने कहा हे ब्राहमणों यह बाहू राजा पहले बहुत ही व्यसनशील था ।
इसलिए शकों के साथ हैहय और तालजंघो ने इसका राज्य से छीन लिया ।
यवन ,पारद, कम्बोज और पह्लव यह भी पांच गण थे जो हैहय यादवों के लिए अपना पराक्रम दिखाया करते थे ।
अर्थात् उनके सहायक थे ।
इसी अध्याय में अागे वर्णन है कि
शका यवन कम्बोजा: पारदाश्च द्विजोत्म।
कोणि सर्पा माहिषिका दर्वाश्चोला: सकेरला:।50।
सर्वे ते क्षत्रिया विप्रा धर्म्मस्तेषां निरीकृत: ।
वसिष्ठ वचनाद्राज्ञा सगरेण महात्मना।51।
(ब्रह्म-पुराण के पाँचवें अध्याय सूर्य्यः वंश वर्णन में)
शक यवन कांबोज पारद कोणि सर्प माहिषक दर्व: चोल केरल यह है विप्रो क्षत्रिय ही रहे हैं कि उनका धर्म निराकृत कर दिया गया था और क्योंकि यह सभी अपने प्राणों की रक्षा के लिए वशिष्ठ जी की शरण में चले गए थे ।इसलिए वसिष्ठ जी के वचनों से महात्मा सगर ने फिर मारा नहीं था केवल उनके धर्म को परिवर्तित कराकर क्षत्रिय ही बना रहने दिया था 50-51
तोमरा हंसमार्गाश्च काश्मीरा: करुणास्तथा।
शूलिका : कहकाश्चैव मागधाश्च तथैव च।50।
ए ते देशा उदीच्यास्तु प्राच्यान् देशान्निवोधत।
अंधा वाम अंग कुरावाश्च वल्लकाश्च मखान्तका: 51।
तथापरे जनपदा प्रोक्ता दक्षिणापथवासिन: ।
पूर्णाश्च केरलाश्चैव मोलांगूलास्तथैव च ।54।
ऋषिका मुषिकाश्चैव कुमारा रामठा शका: ।
महाराष्टा माहिषका कलिंंगाश्चैव सर्व्वश:।55।
आभीरा: शहवैसिक्या अटव्या सरवाश्च ये ।
पुलिन्दश्चैव मौलेया वैदर्भा दन्तकै: सह ।56।
तोमर हंस मार्ग कश्मीर करुण शूलिक कुहक, मगध यह सब देश उदीच्य हैं अर्थात उत्तर दिशा में होने वाले हैं आप जो देश प्राच्य अर्थात् पूर्व दिशा में हैं उनको भी समझ लो आंध्र वामांग कुराव, बल्लक , मखान्तक 51।
तथा दूसरे जनपद दक्षिणा पथ गामी हैं पूर्ण, केरल गोलंगमून ऋषिक मुषिक ,कुमार रामठ, शक ,महाराष्ट्र माहिषक ,शक कलिंग वैशिकी के सहित आभीर अटव्य,सरव, पुलिन्द,मोलैय और दंतको के सहित वेदर्भ यह सब दक्षिण दिशा के भाग में जनपद हैं। 54-56
वाल्मीकि रामायण बाल-काण्ड अष्टादश: अध्याय टमें वर्णित है ।
चारणाश्च सुतान् वीरान् ससृजुर्वनचारिण: ।
वानरान् सुमहाकायान् सर्वान् वै वनचारिण:।।२३।
देवताओं का गुण गाने वाले बनवासी चारणों ने बहुत से विशालकाय वानर पुत्र उत्पन्न किए वे सब जंगली फल फूल खाने वाले थे ।23।
अब वानर जब वन के वरों से उत्पन्न हुए हैं ।
तो वानरों को नर का पूर्वज क्यों माना जाय ।
वाल्मीकि रामायण में वर्णित है कि
कि -जब राजा दशरथ की अवस्था साठ हजार वर्ष की हो गयी तब राम का जन्म हुआ।
(बीसवाँ सर्ग बाल-काण्ड)
षष्टिर्वर्षसहस्राणि जातस्य मम कौशिक।10
कृच्छ्रेणोत्पादितश्चायं न रामं नेतुमर्हसि।
हे कुशिक नन्दन !
मेरी अवस्था साठ हजार वर्ष की हो गयी ।
इस बुढ़ापे में में बड़ी कठिनाई से पुत्र प्राप्ति हुई है अत: आप राम को न ले जाऐं।
________________________________________
श्रृद्धेय गुरू जी सुमन्त कुमार यादव की पावन प्रेरणाओं से नि:सृत ....
प्रस्तुति करण यादव योगेश कुमार रोहि
पुण्ड्रा कलिङ्गा मगधा दक्षिणात्य कृत्स्नश: |
तथापरान्ता: सौराष्ट्रा: शूद्र आभीर: तथा अर्बुदा :||४०|
मालका मालवाश्चैव परियात्रनिवासिन:
सौवीरा: सैन्धवा हूणा शाल्वा: कल्प निवासिन: ||४१|
कूर्म पुराण अध्याय ४६ वाँ
मद्रा रामास्तथाम्बष्ठा पारसीकस्तथैव च |
आसां पिवन्ति सलिलं वसन्ति सरितां सदा ||४२|
मद्र रामा तथा अम्बष्ठ और पारसीक इसी प्रकार इन नदीयों के किनारे रहते और इनका जल पीते हैं ||४२|
इसी कूर्म पुराण के इसी ४६ वें अध्याय के ४३ वे श्लोक में बताया कि चार युगों की कल्पना केवल कवि ने भारत देश में ही मानी और कहा कि ये चारों युग भारत में ही होते हैं अन्यत्र कहीं नहीं
...
चत्वारि भारते वर्षे युगानि कवयो८ब्रुवन|
कृत त्रेता द्वापरं च कलिश्चान्यत्र न क्वचित् |४३|
कवियों भारत वर्ष में ही चार युगों की स्थति बतायी और कहा कि ये अन्यत्र नहीं होते हैं ...
गुरू देव ने अपने गहन अध्ययनों से पारसीयों की चर्चा की भी चर्चा है यह उद्धृत किया ,
ऐतिहासिक तथ्य है कि भारत मे ईरान से भागकर 6, 7वी सदी में पारसी पहुँचे।
दो बातें उठती है,इस सन्दर्भ में,
1 -पुराण 19वी शदी तक लिखे जाते रहे है ।
2 पारसी जाति पहले से ही हूणों की तरह भारत की मूलनिवासी है ।
और अगर पारसी मुलनिवसी है
भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग में तो 1940 ,45 तक के अंग्रेज वायसरायों का उल्लेख है।
------------------------------------------------------
प्ररस्तुति करण यादव योगेश कुमार रोहि
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें