हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप ।
भाग द्वितीय "संशोधित संस्करण "
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वर्ण विचार (Orthography) :-
वर्ण विचार से तात्पर्य वर्णों के रूप में समावेशित स्वर , व्यञ्जन तथा इनके साथ रहने वाले "अयोगवाह ",उत्क्षिप्त , सभी -संयुक्त स्वर और सभी व्यञ्जन रूपों के क्रमश: "ऊर्ध्व विवेचनाओं" से है ।
"Ortho" ग्रीक भाषा का शब्द है; जिसके व्यापक अर्थ निम्नलिखित हैं:-👇
1- सीधा, 2-सत्य, 3-सही, 4-आयताकार, 5-नियमित, 6- उचित ।
1- straight, 2-true, 3-correct, 4-rectangular" 5-regular,
6-upright, ,
" Ortho शब्द लैटिन में भी आर्द्वास् (arduus) तो पुरानी आयरिश में आर्द (Old Irish ard "– high")
जिसका अर्थ होता है :-उच्च ।
आद्य-भारोपीय भाषाओं में यह शब्द (Eredh) के रूप में है।
इसी का सहयोगी दूसरा शब्द ग्राफी है --जो ग्रीक भाषा के "graphos" से निर्मित है ।
ग्रीक "ग्राफेन "graphein " क्रिया " का अर्थ है = to write --जो अन्य यूरोपीय भाषाओं में निम्न प्रकार से विद्यमान है ।👇
1-Dutch भाषा में - graaf, 2-German - graph, 3-French -graphe, 4-Spanish -grafo).
और वैदिक भाषा तथा संस्कृत में भी यह शब्द क्रमश: "गृभ् " ग्रह् " तथा ग्रस् " रूप में है । ______________________________________
वर्ण, मात्रा और उच्चारण (letters , mark and Pronounciation) :-
वर्ण-विन्यास -इमला और (हिज्जे):-
वर्ण भाषा की उस सबसे छोटी या लघुतम इकाई को कहते हैं, जिसे और खण्डित नहीं किया जा सकता है । जैसे कोई मकान ईंटौं से मिलकर बनता है ।
जैसे ईंटौं से दीवारों के रद्दे बनते हैं ; और उन रद्दौं का व्यवस्थित समूह दीवार है उसी प्रकार :- क्रमश वर्ण ( स्वर तथा व्यञ्जन ) शब्दों का निर्माण करते हैं ।
और शब्दों का व्यवस्थित समूह जो एक क्रमिक व अपेक्षित अर्थ को व्यक्त करता है ; वह वाक्य कहलाता है।
शब्द वाक्यों में समायोजित होकर पद बनकर वाक्यांशों का निर्माण करते हैं ।
और किसी- क्रिया से समन्वित होकर वही उपवाक्य बन जाते हैं ।
वस्तुत उपवाक्य -वाक्य ही हैं ।
परन्तु एकल परिवार की तरह !
जैसे अनेक दीवारें मिलकर मकान या कोई कमरा बनाती हैं वैसे ही अनेक वाक्य , या वाक्यांश, उपवाक्य और वाक्य बनाते हुए श्रंखलाबद्ध होकर गद्यांश या पेराग्राफ बनाते हैं और अनेक गद्यांश ही अन्तत: भाषा हैं ।
वस्तुतः किसी भी भाषा को बोलने के लिए प्रयुक्त होने वाली उस मूल ध्वनि को ही वर्ण कहते हैं जिसे और तोड़ा नहीं जा सकता ।
वर्णमाला (Alphabet) किसी भी भाषा के वर्णों के उस समूह को कहते हैं, जिसमें उस भाषा में प्रयुक्त होने वाले सम्पूर्ण स्वर व व्यञ्जन व्यवस्थित क्रम से लिखे होते हैं ।
अंग्रेज़ी वर्णमाला में निम्नलिखित वर्णों के समावेश हैं स्वर (Vowels) -----
स्वरों के भेद (Kinds of Vowels) स्वर : अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ !
विशेष अ स्वर : (अऽ – वर्तुल अ) या
(दीर्घ विलम्बित अर्द्ध विवृत पश्च स्वर अ॑ )
–( प्रश्लेष अ या दीर्घ अर्द्धसंवृत मध्य विशेष आ स्वर : ऑ – )
(अर्द्ध विवृत पश्च स्वर आ॑ – प्रश्लेष आ या अर्द्धसंवृत दीर्घ मध्य स्वर )
व्यञ्जन (Consonants)
क वर्ग – ( क् ख् ग् घ् ङ् )
च वर्ग – (च् छ् ज् झ् ञ् )
ट वर्ग – (ट् ठ् ड् ढ् ड़ ढ़ )
त वर्ग – (त् थ् द् ध् न् )
प वर्ग – (प् फ् ब् भ् म् )
अन्तःस्थ – (य् र् ल् व्)
उष्म व्यञ्जन –( स् ह् )
संयुक्त व्यञ्जन – (क्ष त्र ज्ञ श्र द्य )
हिन्दी भाषा का सम्यक् व्याकरणीय विवेचन करने लिए विहार के अंग क्षेत्र की
अंगिका वर्णमाला की मुख्य विशेषताओं का निरूपण करेंगे - :👇
विहार की एक अंगिका भाषा है जो बिहार के पूर्वी, उत्तरी व दक्षिणी भागों,झारखण्ड के उत्तर पूर्वी भागों और पश्चिमीय बंगाल के पश्चिमीय भागों में बोली जाती है।
जिसमें गोड्डा, साहिबगंज, पाकुड़, दुमका, देवघर, कोडरमा, गिरिडीह जैसे जिले सम्मिलित हैं।
यह भाषा बिहार के भी पूर्वी भाग में बोली जाती है जिसमें भागलपुर, मुंगेर, खगड़िया, बेगूसराय, पूर्णिया, कटिहार, अररिया आदि सम्मिलित हैं।
यह नेपाल के तराई भाग में भी बोली जाती है।
अंगिका भारतीय आर्य भाषा है।
अंगिका भाषा भारत, नेपाल क्षेत्र बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल.बोली जाती है ।
कुल बोलने वाले 743,600 भाषा परिवार हिन्द-यूरोपीय हिन्द-ईरानी हिन्द-आर्य पूर्वी समूह बिहारी अंगिका भाषा की कुछ विशेषताओं की विवेचना :-
(क) अंगिका में अ के तीन रूप देखने को मिलते हैं – १-अ, २-अऽ, ३-अ॑
(ख) अंगिका में दीर्घ स्वर आ के तीन रूप देखने को मिलते हैं – १-आ, २-ऑ, ३-आ॑
(ग) अंगिका वर्णमाला में हिंदी वर्णमाला के कुछ वर्णों, ऋ, श, ष, ण, का समावेश नहीं है ।
उदाहरण के लिए हिन्दी के ऋषि, ऋतु, रमेश, बाण को अंगिका में रिसि, रितु, रमेस, बान लिखेंगें और उच्चारण भी बदले हुए वर्ण की तरह होगा ।
परन्तु आधुनिक काल के अंग्रेज़ी लेखन में:- ऋ, श, ष, 'ण' का उपयोग हिन्दी वर्णमाला की तरह ही होता है । परन्तु बोलने में श, ष का उच्चारण स की तरह एवं ण का उच्चारण न की तरह होता है
(ग)अं अर्थात अनुस्वार और अः अर्थात विसर्ग दोनों को अयोगवाह भी कहते हैं ।
क्योंकि ये न तो स्वर हैं और न ही व्यञ्जन ।
💐– परन्तु "अं और अः " को पारम्परिक तौर पर स्वरों के वर्ग में शामिल किया जाता रहा है ।
जो न्यासंगत नहीं क्योंकि ये क्रमश अनुस्वारः वर्ग के पञ्चम अनुनासिक व्यञ्जन वर्ण का रूप है-
मूलतः इनका प्रयोग तत्सम शब्दों में स्वर के बाद अवश्य होता है परन्तु ये स्वर नहीं ।
अनुस्वारः वर्ग के पञ्चम अनुनासिक व्यञ्जन वर्णों का प्रतिनिधित्व करता है-
परन्तु इसका मानक प्रयोग तभी उचित है- जब ये -वाक्य के अन्त में हो अन्य अवस्थाओं में अनुस्वारः के स्थान पर उसी वर्ग का अनुनासिक व्यञ्जन वर्ण का प्रयोग किया जाता है।
विशेषत: संस्कृत भाषा में
जैसे :- अङ्गिका -अंगिका, गङ्गा - गंगा । इसके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं:-👇
(घ) अनुस्वार (ं) का प्रयोग ङ्, ञ्, ण् , न् ,म् , के बदले में किया जाता है । (जैसे – अङ्गिका – अंगिका, चम्पा – चंपा, अङ्ग – अंग, गङगा – गंगा, चञ्चल – चंचल, ठण्डा – ठंडा, कुन्द – कुंद, परम्परा – परंपरा )
(च) विसर्ग का प्रयोग हिन्दी भाषा में संस्कृत से आए शब्दों में होता है ।
जैसे – प्रायः, फलतः, निःसन्देह, स्वतः ।
(छ) ऑ – अंगिका के इस स्वर में व् की अल्पध्वनि सुनाई पड़ती है ।
यह स्वर हालाँकि हिन्दी में अंगिका से आए शब्दों में होता है ।
परन्तु पारम्परिक रूप से अंग्रेज़ी के स्वर वर्ण के रूप में भी उपयोग होता रहा है । जैसे – अंग्रेजी से आये शब्दों में – डॉक्टर, डॉट, ऑफिस, कॉलेज, ऑफ , लॉग ।
अंगिका के मूल शब्दों में – चॉर (चावल), जॉत (पति के भाई का पुत्र), छॉउर (छाया) ।
इसे चन्द्री आगत भी कहते हैं ।
स्वरों की मात्राएँ :- शब्द निर्माण की प्रक्रिया में जब किसी स्वर का प्रयोग किसी व्यंजन के साथ मिलाकर किया जाता है, तो स्वर का स्वरूप बदल जाता है ।
वही मात्रा का रूप है- ।
स्वर के इस बदले हुए स्वरूप को ही मात्रा कहते हैं । अंगिका के स्वरों की मात्राएँ निम्नलिखित हैं ।
अ – कोई मात्रा नहीं -
आ – ा इ – ि ई – ी उ – ु ऊ – ू ए – े ऐ – ै ओ – ो औ – ौ अं – ं अः – ः अऽ – ़ऽ अ॑ – ॑ ऑ – ॉ आ॑ – ा ॑
वर्ण भेद:-
उच्चारण और प्रयोग के आधार पर अंगिका के वर्णों को दो भागों में बाँटा गया है
– स्वर और व्यंजन ।
स्वर :-अंगिका के जिन वर्णों का उच्चारण बिना किसी अन्य वर्ण की सहायता से स्वत्रन्त्र रूप से बिना किसी बाधा के होता है, उन्हें स्वर कहते हैं ।
बिना किसी बाधा के उच्चारण का मतलब यह है कि स्वरों के उच्चारण के वक्त मुँह से निकलने वाली वायु का प्रवाह सतत रूप से बिना किसी बाधा के होता अखण्ड है ।
आप सतत रूप से किसी भी स्वर वर्ण का उच्चारण देर तक करके देखें, कहीं भी ठहरने की जरूरत नहीं पड़ेगी ।
उदाहरण के लिए –
आ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ,
ई ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ,
ओ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ,
औ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ,
ऐ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ।
वर्णों के उच्चारण:- 👇
किसी भी भाषा में उच्चारण का बहुत अधिक महत्व है ।
यदि सही उच्चारण नहीं किया जाए तो वर्तनी सम्बन्धी त्रुटियाँ होने का भय बना रहता है ।
क्योंकि हिन्दी, मराठी, मगही, भोजपुरी की तरह अंगिका भी आधुनिक जमाने में देवनागरी लिपि में लिखी जाती है ।
प्राचीन समय में भले ही यह अंग लिपि में लिखी जाती थी ।
परन्तु बाद में यह कैथी लिपि में भी लिखी जाने लगी थी । आज के जमाने में भी अंगिका लिखने के लिए कैथी लिपि प्रयोग करने वाले कुछ लोग हैं ।
कैथी कायस्थों की लिपि है ।
परन्तु आज अंगिका को देवनागरी लिपि में लिखने का सर्वाधिक प्रचलन है ।
देवनागरी लिपि की यह विशेषता है कि यह जैसा बोला जाता है, वैसा ही लिखा भी जाता है ।
स्वर के उच्चारण – अंगिका भाषा में स्वर को विभिन्न आधार पर कई श्रेणियों में बाँटा गया है, जो निम्नलिखित हैं ।
👇 १. उच्चारण के आधार पर –
(क) निरनुनासिक : जब उच्चारण केवल मुख से होता हो और नासिका का बिल्कुल सहयोग न हो । जैसे – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ ।
(ख) अनुनासिक : जब उच्चारण केवल मुख और नासिका की सहायता से होता हो । जैसे – अँ, आँ, इँ, ईं , एँ, ऐं, ओं, औं ।
अंगिका के सभी स्वरों के अनुनासिक रूप प्रयोग में देखने को मिलते हैं ।
२. उच्चारण में लगने वाले समय के आधार पर स्वरों के भेद– इस आधार पर स्वर के दो भेद हैं :-
1- ह्रस्व या एकमात्रिक – जिन स्वरों के उच्चारण में कम से कम समय लगता हो, लगभग एक मात्रा के समय के बराबर, उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं ।
जैसे – अ, इ, उ ।
२-दीर्घ या द्विमात्रिक – जिन स्वरों के उच्चारण में अधिक समय लगता हो, लगभग दो मात्राओं के समय के बराबर, या ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं ।
जैसे – आ, ई, ऊ
संयुक्त स्वरों:- , ए, ऐ, ओ, औ ।
किसी व्यञ्जन का उच्चारण करने पर उसके साथ-साथ अपने आप "अ" स्वर का उच्चारण हो जाता है । सभी व्यञ्जन स्वरों की सहायता से बोले जाते हैं ।
जब किसी व्यञ्जन में स्वर नहीं होता, तो उसके नीचे (् ) चिन्ह लगाते हैं , जिसे हलन्त कहते हैं ।
किसी व्यञ्जन के साथ ‘अ’ जुड़ने पर उसके नीचे हलन्त नहीं लगता ।
जैसे – क् + अ = क ख् + अ = ख ह् + अ = ह ।
यह स्पष्ट है कि –अ का कोई मात्रा चिन्ह नहीं होता ।
(ख) स्वर के मात्रा चिन्ह को लगाने के लिए व्यञ्जन का हलन्त चिन्ह हटाने के बाद ही मात्रा चिन्ह जोड़ते हैं ।
(ग) आ, ई, ओ, औ, अऽ, और 'ऑ ' की मात्राएँ व्यञ्जन के बाद लगाई जाती हैं ।
(घ) इ की मात्रा व्यञ्जन के पहले लगाई जाती है ।
(ङ) उ, ऊ, की मात्राएँ व्यञ्जन के नीचे लगाई जाती हैं।
(च) ए ,ऐ,अ॑,अं, और अँ की मात्राएँ व्यञ्जन के ऊपर लगाई जाती हैं ।
(छ) र व्यञ्जन में उ एवं ऊ की मात्राएँ नीचे नहीं, बीच में लगती हैं ।
(र् +उ= रु, र् +ऊ=रू )
अंगिका स्वर ध्वनियों की मुख्य विशेषताएँ :-
(१) अंगिका की कुछ व्याकरणिक विलक्षणताएँ हैं, जो हिन्दी सहित बिहार, झार- खण्ड की अन्य भाषाओं में दृष्टिगोचर नहीं होता हैं ।
जैसे –
(क) ह्रस्व ए और ओ के प्रयोग की बहुलता
(ख) न॑ का प्रयोग :-(राम न॑ कहलकै)
(ग) वर्तुल अ का पदान्त में योग:- ( ओकरऽ, रामऽ, गामऽ)
अंगिका का इस दृष्टि से बँगला से सादृश्य लक्षित होता है ।
(२) स्वर – अ, इ, तथा उ का अति लघु उच्चारण होता है ।
(३) अंगिका में स्वर ए, ओ के दीर्घ रूप के अतिरिक्त ह्रस्व रूप भी मिलते हैं । (एकाधटा, ओकरऽ) ।
यहाँ एकाधटा में ए और ओकरऽ में ओ का उच्चारण ह्रस्व रूप में है ।
(४) ऐ और औ दीर्घ एवं सन्ध्यक्षर रूप में उच्चरित होते हैं । ऐलै, औरू, आबै छै, जैभौ में ऐ और औ के उच्चारणों की भिन्नता स्पष्ट है ।
पिछले दोनों शब्दों में सन्ध्यक्षर के रूप में ऐ, औ का उच्चारण द्रष्टव्य है ।
(५) अंगिका की सर्वाधिक विशिष्ट स्वरध्वनि अ है । जिसका उच्चारण इतना वर्तुल होता है जितना किसी अन्य भाषाओं में नहीं होता ।
(क) यह प्रायः उन सभी अकारान्त शब्दों के अन्त में सुनाई पड़ती है जिसके आगे कोई कारक परसर्ग लगता है ।
जैसे – घरऽ के, गाछऽ के, अनाजऽ मं॑, खमारऽ प॑, ट्रेनऽ मं॑, बसऽ प॑, क्लासऽ मं॑ ।
(ख) लेकिन अगर पद यदि एक अक्षर का है, यानि बिना परसर्ग का है तो आदि अ के रूप में यह अंतिम वर्ण के पहले प्रयुक्त होगा और इसका उच्चारण ओष्ठय होगा ।
जैसे – जऽल, घऽर, बऽल, कऽल, बऽन ।
यहाँ एकाक्षरिक पद में अ पर बलाघात भी लगेगा ।
💐– व्यञ्जन :-व्यञ्जन वर्ण वैसे वर्ण हैं, जिनका उच्चारण स्वर वर्ण की सहायता से होता है । व्यञ्जन वर्ण के उच्चारण के वक्त मुख से निकलने वाली वायु के मार्ग में बाधा आती है ।
जिसकी वजह से वह रूक कर या बाधित होकर निकलती है ।
स्वरों की भाँति व्यञ्जनों के उच्चारण सतत रूप से नहीं हो पाता ।
आप जितनी बार व्यञ्जन का उच्चारण करने का प्रयास करेंगें, उतनी दफा नये सिरे से कोशिश करनी पड़ेगी ।
उदाहरण के लिए – क……क….क……, ह…..ह…..ह । स्पष्ट है कि स्वर की सहायता के बिना हम व्यञ्जन वर्ण लिख तो सकते हैं !
वैसे भी अंग्रेज़ी ग्रामर शब्द ग्रीक भाषा के ग्रामा ।
ग्रामर शब्द के विकास का इतिहास :-
व्याकरण का यूरोपीय भाषाओं में रूपान्तरण ग्रामर शब्द के द्वारा उद्भासित है। .👇
प्राचीन ग्रीक (γραμμττική )( व्याकरणिक :-(gramery ) का अर्थ होता था – "लेखन में कुशल ") ग्रामा के क्रियात्मक रूपों से ग्रामर शब्द की अवधारणा का जन्म हुआ जिसका अर्थ है- (लेखन में कुशलता)
, लैटिन व्याकरण Grammer से, पुरानी फ्रांसीसी में Gramire ( शास्त्रीय सीखने में सहायक " ) से , मध्य अंग्रेजी Gramer से , gramarye , gramery आदि रूप विकसित हुए। 👇
ग्रीक रूप :-γράμμα (grámma) ,
" लेखन की रेखा ) से , प्रोटो-इण्डो-यूरोपीय रूप–gerbʰ- वैदिक भाषा में गृभ (नक्काशीदार , खरोंच ) γράφω ( ग्रैफो–" लिखें ) से यह शब्द सम्बद्ध है- ।
एक भाषा बोलने और लिखने के लिए नियमों और सिद्धान्तों की एक प्रणाली का नाम ग्रामर है।
( अनगिनत , भाषाविज्ञान ) शब्दों की आन्तरिक संरचना ( morphology ) का अध्ययन और वाक्यांशों और वाक्य ( वाक्यविन्यास ) के निर्माण में शब्दों का उपयोग होता है- ।
एक भाषा के व्याकरण के नियमों का वर्णन करने वाली एक पुस्तक को ग्रामर शब्द की भावार्थ से समन्वित किया जाता है :- वह ग्रन्थ जो एक औपचारिक प्रणाली के द्वारा एक भाषा के वाक्य-विन्यास को निर्दिष्ट करती है।
अधिकतर फ्रैंकिश शब्द ग्रिमा "Grima" ( मुखौटा, तथा जादूगर ) से इसे सम्बद्ध माना जाता हैं ।
परन्तु (spell ) के भावसाम्य पर ग्रामा शब्द से जादूगर और व्याकरणिक-gramery दौंनो शब्द विकसित हुए।
इसी ग्रिमासे ग्रिमेस शब्द की उत्पत्ति भी व्युत्पत्ति है।
इसका एक अन्य स्रोत इतालवी शब्द रिमारियो ("rhymes की पुस्तक") हो सकता है।
जो अन्ततः एक कठिन "जी" अपनाया क्योंकि यह फ्रांस चले गए। किसी भी तरह से, फ्रांसीसी शब्द grimaire शब्द के साथ मिलकर शब्द (grammaire)या ( ग्रामर Grámma) बना । _________________________________________
इस शब्द की अवधारणा एक पुरानी वर्तनी, (spelling) " जो लैटिन में है- के अध्ययन" और "गहन व गुप्त विज्ञान" के अर्थ में "व्याकरण" के सुझाव से हुआ है "।👇
ग्रीक भाषा (gramma) शब्द का अर्थ "letter"( वर्ण)है ।
प्राचीन ग्रीक "γραμματικός" का यह शब्द पुरानी फ्रांसीसी "gramaire" से तथा मध्य फ्रांसीसी (grimoire )से उधार लिया।
व्याकरण ग्रामर शब्द का प्रयोग, ग्लैमर और व्याकरण जादू या कीमिया के उपयोग के निर्देशों के सन्दर्भों में किया जाता था ।
कुछ पुरानी यूनानी- तान्त्रिक-क्रिया की पुस्तकों में, ग्रामा शब्द स्पेल के सादृश पर प्रयुक्त है ।
विशेष रूप से दैत्यों को बुलाने के लिए
gram:- noun word-forming element, "that which is written or marked," from Greek gramma "that which is drawn; a picture, a drawing; that which is written, a character, an alphabet letter, written letter, piece of writing;" in plural, "letters," also "papers, documents of any kind," also "learning," from stem of graphein "to draw or write" (-graphy).
Some words with it are from Greek compounds, others are modern formations.
Alternative -gramme is a French form.।
ग्रामर संज्ञा शब्द बनाने वाला तत्व, "जिसे ग्रीक के ग्रामा शब्द से लिखा गया है या जिसका अर्थ है :--चिह्नित किया गया, या जो खींचा गया हो , एक तस्वीर, एक चित्र, जो लिखा गया हो एक चरित्र, एक वर्णमाला पत्र, लिखित पत्र, लेखन का टुकड़ा;"
बहुवचन में, "पत्र," भी "कागजात, किसी भी प्रकार के दस्तावेज", "सीखने", ग्रैफिन के तने से "खींचना या लिखना" आदि क्रियात्मक रूपों का विकास हुआ है। __________________________________________
शब्द विचार की परिभाषा:-👇
शब्द विचार हिन्दी व्याकरण का दूसरा खण्ड है ; जिसके अन्तर्गत शब्द की परिभाषा, भेद-उपभेद, सन्धि, विच्छेद, ↔💐 ↔रूपान्तरण, निर्माण आदि से सम्बन्धित नियमों पर विचार किया जाता है।
शब्द की परिभाषा:- ( Definition of Word :-) वर्णों या अक्षरों से बना ऐसा स्वत्रन्त्र समूह जिसका कोई अर्थ हो, वह समूह शब्द कहलाता है।
जैसे: लड़का, लड़की, गाय ,घोड़ा आदि।
↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔
शब्द विचार का वर्गीकरण:- 1-अर्थ के आधार पर- On the basis of meaning 2-बनावट या रचना के आधार पर -On the basis of texture or composition 3-प्रयोग के आधार पर- On the basis of experiment 4-उत्पत्ति के आधार पर- On the basis of origin _________________________________________
अर्थ के आधार पर शब्द के भेद:- अर्थ के आधार पर शब्द के दो भेद होते हैं :–सार्थक शब्द और निरर्थक शब्द
1. सार्थक शब्द: वे शब्द जिनसे कोई अर्थ निकलता हो, सार्थक शब्द कहलाते हैं। जैसे: गुलाब, आदमी, विषय आदि। 2. निरर्थक शब्द : वे शब्द जिनका कोई अर्थ ना निकल रहा हो या जो शब्द अर्थहीन हो, निरर्थक शब्द कहलाते हैं।
जैसे: देना-वेना, मुक्का-वुक्का आदि।
रचना (बनावट) के आधार पर शब्द के भेद (On the basis of texture or composition)
रचना के आधार पर शब्द के निम्नलिखित तीन भेद होते हैं: १
-रूढ़ शब्द २-यौगिक शब्द ३-योगरूढ़ शब्द
1-Stereo word 2-compound word 3-word form Assistant
1. रूढ़ शब्द : ऐसे शब्द जो किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं लेकिन अगर उनके टुकड़े कर दिए जाएँ तो निरर्थक हो जाते हैं।
ऐसे शब्दों को रूढ़ शब्द कहते हैं।
जैसे: जल, कल, जप आदि।
2. यौगिक शब्द ऐसे शब्द जो किन्हीं दो सार्थक शब्दों के मेल से बनते हों वे शब्द यौगिक शब्द कहलाते हैं। इन शब्दों के खंड भी सार्थक होते हैं।
जैसे: स्वदेश : स्व + देश, देवालय : देव + आलय, कुपुत्र : कु + पुत्र आदि।
3. योगरूढ़ शब्द ऐसे शब्द जो किन्हीं डो शब्द के योग से बने हों एवं बनने पर किसी विशेष अर्थ का बोध कराते हैं, वे शब्द योगरूढ़ शब्द कहलाते हैं।
जैसे: दशानन : दस मुख वाला अर्थात रावण , पंकज : कीचड़ में उत्पन्न होने वाला अर्थात् कमल आदि।
बहुव्रीहि समास ऐसे शब्दों के अन्तर्गत आते हैं।
प्रयोग के आधार पर शब्द के भेद प्रयोग के आधार पर शब्द के दो भेद होते हैं : -
विकारी शब्द अविकारी शब्द
1. विकारी शब्द : ऐसे शब्द जिनके रूप में लिंग, वचन, कारक के अनुसार परिवर्तन होते हैं, वे शब्द विकारी शब्द कहलाते हैं।
जैसे: लिंग : बच्चा पढता है। —> बच्ची पढ़ती है। वचन : बच्चा सोता है। —–> बच्चे सोते हैं।
कारक : बच्चा सोता है। —> बच्चे को सोने दो।
जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं बच्चा शब्द है यह लिंग, वचन एवं कारक के अनुसार परिवर्तित हो रहा है।
अतः यह विकारी शब्दों के अंतर्गत आएगा।
2. अविकारी शब्द : ऐसे शब्द जिन पर लिंग, वचन एवं कारक आदि से कोई फर्क नहीं पड़ता एवं जो अपरिवर्तित रहते हैं।
ऐसे शब्द अविकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे: तथा, धीरे, किन्तु, परन्तु, तेज़, अधिक आदि।
जैसा कि हम जानते हैं किन्तु जैसे शब्द लिंग, वचन कारक आदि बदलने पर भी अपरिवर्तित रहेंगे। अतः ये उदाहरण अविकारी शब्दों के अंतर्गत आयेंगे।
उत्पत्ति के आधार पर शब्द के भेद उत्पत्ति के आधार पर शब्द के चार भेद होते हैं:-
तत्सम शब्द तद्भव शब्द देशज शब्द विदेशी शब्द
1. तत्सम शब्द : तत् (उसके) + सम (समान) यानी ऐसे शब्द जिनकी उत्पत्ति संस्कृत भाषा में हुई ओर वे हिन्दी भाषा में बिना किसी परिवर्तन के प्रयोग में आने लगे, ऐसे शब्द तत्सम शब्द कहलाते हैं।
जैसे: पुष्प, पुस्तक, पृथ्वी, क्षेत्र, कार्य, मृत्यु, कवि, माता, विद्या, नदी, फल, अग्नि, पुस्तक आदि।
2. तद्भव शब्द : ऐसे शब्द जिनकी उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई थी लेकिन वो रूप बदलकर हिन्दी में आ गए हों, ऐसे शब्द तद्भव शब्द कहलायेंगे।
जैसे: फुल्ल__फूल दुग्ध —-> दूध अग्नि —-> आग कार्य —> काज कर्पूर —> कपूर हस्त —-> हाथ बन्जारा (पंसारी)__पण्यचारी
3. देशज शब्द ऐसे शब्द जो भारत की विभिन्न स्थानीय बोलियों में से हिंदी में आ गए हैं, वे शब्द देशज शब्द कहलाते हैं।
जैसे: पेट, डिबिया, लोटा, पगड़ी, थैला, चमचम, गुलाबजामुन, लड्डु, खटखटाना, खिचड़ी आदि।
ऊपर दिए गए सभी उदाहरण भारत की ही विभिन्न स्थानीय बोलियों में से क्षेत्रीय प्रभाव के कारण परिस्थिति व आवश्यकतानुसार बनकर प्रचलित हो गए हैं।
ये अब हिन्दी में आ गए हैं। अतः यह शब्द देशज शब्द कहलायेंगे।
4. विदेशी शब्द ऐसे शब्द जो भारत से बाहर की भाषाओं से हैं लेकिन ज्यों के त्यों हिन्दी में प्रयुक्त हो गए, वे शब्द विदेशी शब्द कहलाते हैं।
मुख्यतः यह विदेशी जातियों से हमारे बढ़ते मिलन से हुआ है।
ये विदेशी शब्द उर्दू, अरबी, फारसी,अंग्रेजी, पुर्तगाली, तुर्की, फ्रांसीसी, ग्रीक आदि भाषाओं से आए हैं।
विदेशी शब्दों के उदाहरण निम्न हैं :
अंग्रेजी : कॉलेज, पैंसिल, रेडियो, टेलीविजन, डॉक्टर, लैटरबक्स, पैन, टिकट, मशीन, सिगरेट, साइकिल आदि
फारसी : अनार,चश्मा, जमींदार, दुकान, दरबार, नमक, नमूना, बीमार, बरफ, रूमाल, आदमी, चुगलखोर, आदि।
अरबी : औलाद, अमीर, कत्ल, कलम, कानून, खत, फकीर, रिश्वत, औरत, कैदी, मालिक, गरीब आदि।
तुर्की : कैंची, चाकू, तोप, बारूद, लाश, दारोगा, बहादुर आदि।
पुर्तगाली : अचार, आलपीन, कारतूस, गमला, चाबी, तिजोरी, तौलिया, फीता, साबुन, तंबाकू, कॉफी, कमीज आदि।
फ्रांसीसी : पुलिस, कार्टून, इंजीनियर, कर्फ्यू, बिगुल आदि।
चीनी : तूफान, लीची, चाय, पटाखा आदि।
यूनानी : टेलीफोन, टेलीग्राफ, ऐटम, डेल्टा आदि।
जापानी : रिक्शा आदि।
शब्दों का वर्गीकरण :- स्त्रोत के आधार पर रचना के आधार पर अर्थ के आधार पर प्रयोग के आधार पर
1. स्त्रोत या उत्पत्ति के आधार पर
१. तत्सम – वे शब्द जो संस्कृत से लिए गए हैं और बिना किसी परिवर्तन के अपने मूल रूप में ही हिन्दी में प्रयोग किए जाते हैं , तत्सम शब्द कहलाते हैं |
२. तद्भव – वे संस्कृत के शब्द हिन्दी में कुछ परिवर्तन के साथ प्रयोग किए जाते हैं , तद्भव शब्द कहलाते हैं | जैसे - तत्सम तद्भव अग्नि आग अश्रु आँसू पितृ पिता सूर्य सूरज
३. देशज - जो शब्द साधारण बोलचाल की भाषा में प्रचलित हैं और संस्कृत या अन्य भाषा से नहीं , बल्कि भारत में प्रचलित अन्य बोलियों से लिए गए हैं , देशज शब्द कहलाते हैं |
जैसे - जूता , खिड़की , झाडू , डिबिया , घोंसला आदि
४. विदेशज – वे शब्द जो विदेशी भाषा (अंग्रेजी , अरबी ,फारसी , तुर्की , फ़्रांसिसी , पुर्तगाली ) से हिंदी में लिए गए हैं , विदेशज शब्द कहलाते हैं | जैसे –
अंग्रेजी – कोर्ट , पुलिस , स्कूल , टैक्स , पेपर आदि |
अरबी – किताब , इशारा , ईमान , इरादा , हलवाई आदि |
फारसी – अमरूद , आमदनी , कारीगर , दवा , दीवार आदि |
तुर्की – बहादुर , चाकू , चम्मच , सराय आदि फ़्रांसिसी – कार्तूस , कूपन , रेस्टोरेंट आदि
पुर्तगाली – गमला , चाबी , पपीता आदि
चीनी – चाय , लीची आदि
2. रचना के आधार पर १. रूढ़ शब्द - वे शब्द जिनके खंड नहीं किए जा सकते हो और यदि किया जाए तो कोई अर्थ नहीं निकलता हो , ऐसे शब्द रूढ़ शब्द कहलाते हैं | जैसे – कल , घर , पुस्तक , कपड़ा , हाथ आदि २. यौगिक शब्द – वे शब्द जो दो या दो से अधिक शब्दों या शब्दांशों से बने हो और शब्दों को अलग करने पर उनका अलग – अलग अर्थ भी निकलता हो , यौगिक शब्द कहलाते हैं | जैसे – रसोई + घर = रसोईघर विद्या + आलय = विद्यालय ३. योगरूढ़ शब्द – ऐसे शब्द जिनमें रूढ़ तथा यौगिक दोनों शब्दों की विशेषताएँ होती हैं अर्थात् रूढ़ शब्दों के समान ये विशेष अर्थ देते हैं तथा यौगिक शब्दों के समान इनके सार्थक खंड किए जा सकते हैं , योगरूढ़ शब्द कहलाते हैं | जैसे – हिमालय , पंकज , पीताम्बर , नीलकंठ आदि 3. अर्थ के आधार पर १. एकार्थी शब्द – जिन शब्दों का केवल एक अर्थ होता है तथा वे सदैव उसी अर्थ में प्रयोग किए जाते हैं ,एकार्थी शब्द कहलाते हैं | जैसे – हिंदी , राम ,मोहन आदि २. अनेकार्थी शब्द – कुछ शब्द ऐसे हैं जिनके एक से अधिक अर्थ होते हैं तथा उनके भिन्न – भिन्न प्रयोगों से भिन्न -भिन्न अर्थ प्राप्त किये जाते हैं | जैसे – अम्बर – आकाश , वस्त्र सूत – धागा , सारथी ३. समानार्थी शब्द (पर्यायवाची शब्द ) – समान अर्थ वाले शब्द पर्यायवाची शब्द कहलाते हैं | सभी पर्यायवाची शब्दों के अर्थ पूरी तरह समान नहीं होते | हाँ , मिलते -जुलते अवश्य होते हैं | इसीलिए हर स्थिति में एक शब्द के स्थान पर उसके पर्यायवाची शब्द का प्रयोग नहीं किया जा सकता | जैसे – कपड़ा का पर्यायवाची शब्द है चीर कौरव सभा में द्रोपदी के चीर हरण का प्रयास किया गया | यहाँ ‘कपड़ा’ शब्द का प्रयोग अशुद्ध है | ४. विपरीतार्थी शब्द (विलोम शब्द ) - विपरीत भावों को व्यक्त करने वाले शब्द विलोम शब्द कहलाते हैं | हिंदी में ऐसे विलोम शब्द या तो मूल शब्द के रूप में पहले से ही होते हैं ; जैसे – दिन – रात , सुख – दुःख आदि या फिर उपसर्ग लगाकर ; जैसे – अर्थ – अनर्थ , अनुकूल – प्रतिकूल आदि बनाए जाते हैं | 4. प्रयोग के आधार पर १ विकारी शब्द २ अविकारी शब्द १. विकारी शब्द 1. संज्ञा – किसी वस्तु , प्राणी , भाव व स्थान के नाम को संज्ञा कहते हैं ; जैसे – हिमालय , गाय , मिठास , आगरा आदि संज्ञा के प्रकार --(kinds of Noun) संज्ञा के प्रकार 2. सर्वनाम – संज्ञा के स्थान पर काम में आने वाला शब्द सर्वनाम शब्द होता है | जैसे – राम एक लड़का है | राम बाजार गया | राम ने सामान खरीदा | राम एक लड़का है | वह बाजार गया | उसने सामान खरीदा | सर्वनाम के भेद 👌👌
3. विशेषण – संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताने वाले शब्द विशेषण कहलाते हैं | जैसे – आज भोजन स्वादिष्ट बना है | सर्वनाम के भेद 4. क्रिया – जो शब्द किसी कार्य के करने अथवा होने का बोध कराते हैं , क्रिया शब्द कहलाते हैं | जैसे – राम फल खाता है | क्रिया के भेद २. अविकारी शब्द 1. क्रियाविशेषण – क्रिया की विशेषता प्रकट करने वाले शब्द क्रियाविशेषण कहलाते हैं | जैसे – शीघ्रता से यहाँ आओ | क्रियाविशेषण के भेद 2. सम्बन्धबोधक – वे अव्यय शब्द जो संज्ञा अथवा सर्वनाम का सम्बन्ध वाक्य के अन्य शब्दों के साथ स्थापित करते हैं वे शब्द संबंधबोधक कहलाते हैं | जैसे – मैं पीछे – पीछे दौड़ रहा था | 3. समुच्चयबोधक – एक पद , वाक्यांश, उपवाक्य का सम्बन्ध दूसरे पद , वाक्यांश, उपवाक्य से जोड़ने वाले शब्द को समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं ; और , या , किन्तु आदि | 4. विस्मयादिबोधक – वे शब्द जो हर्ष , शोक ,आश्चर्य , क्रोध , घृणा आदि भावों को व्यक्त करते हैं ; वे विस्मयादिबोधक कहलाते हैं | _________________________________________
सर्वनाम की परिभाषा( Definition of Pronoun) जिन शब्दों का प्रयोग संज्ञा के स्थान पर किया जाता है, उन्हें सर्वनाम कहते है। दूसरे शब्दों में- सर्वनाम उस विकारी शब्द को कहते है, जो पूर्वापरसंबध से किसी भी संज्ञा के बदले आता है। सरल शब्दों में- सर्व (सब) नामों (संज्ञाओं) के बदले जो शब्द आते है, उन्हें 'सर्वनाम' कहते हैं। सर्वनाम यानी सबके लिए नाम। इसका प्रयोग संज्ञा के स्थान पर किया जाता है। आइए देखें, कैसे? गीता सातवीं कक्षा में पढ़ती है। वह पढ़ाई में बहुत तेज है। उसके सभी मित्र उससे प्रसन्न रहते हैं। वह कभी-भी स्वयं पर घमंड नहीं करती। वह अपने माता-पिता का आदर करती है। आपने देखा कि ऊपर लिखे अनुच्छेद में राधा के स्थान पर वह, उसके, उससे, स्वयं, अपने आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है। अतः ये सभी शब्द सर्वनाम हैं। इस प्रकार, संज्ञा के स्थान पर आने वाले शब्दों को सर्वनाम कहते हैं। मै, तू, वह, आप, कोई, यह, ये, वे, हम, तुम, कुछ, कौन, क्या, जो, सो, उसका आदि सर्वनाम शब्द हैं। अन्य सर्वनाम शब्द भी इन्हीं शब्दों से बने हैं, जो लिंग, वचन, कारक की दृष्टि से अपना रूप बदलते हैं; जैसे- गीता नृत्य करती है। गीता का गाना भी अच्छा होता है। राधा गरीबों की मदद करती है। गीता नृत्य करती है। उसका गाना भी अच्छा होता है। वह गरीबों की मदद करती है। आप- अपना, यह- इस, इसका, वह- उस, उसका। अन्य उदाहरण (1)'सुभाष' एक विद्यार्थी है। (2)वह (सुभाष) रोज स्कूल जाता है। (3)उसके (सुभाष के) पास सुन्दर बस्ता है। (4)उसे (सुभाष को )घूमना बहुत पसन्द है। उपयुक्त वाक्यों में 'सुभाष' शब्द संज्ञा है तथा इसके स्थान पर वह, उसके, उसे शब्द संज्ञा (सुभाष) के स्थान पर प्रयोग किये गए है। इसलिए ये सर्वनाम है। संज्ञा की अपेक्षा सर्वनाम की विलक्षणता यह है कि संज्ञा से जहाँ उसी वस्तु का बोध होता है, जिसका वह (संज्ञा) नाम है, वहाँ सर्वनाम में पूर्वापरसम्बन्ध के अनुसार किसी भी वस्तु का बोध होता है। 'लड़का' कहने से केवल लड़के का बोध होता है, घर, सड़क आदि का बोध नहीं होता; किन्तु 'वह' कहने से पूर्वापरसम्बन्ध के अनुसार ही किसी वस्तु का बोध होता है। सर्वनाम के भेद सर्वनाम के छ: भेद होते है- (1)पुरुषवाचक सर्वनाम (personal pronoun) (2)निश्चयवाचक सर्वनाम (demonstrative pronoun) (3)अनिश्चयवाचक सर्वनाम (Indefinite pronoun) (4) सम्बन्धवाचक सर्वनाम (Relative Pronoun) (5)प्रश्नवाचक सर्वनाम (Interrogative Pronoun) (6)निजवाचक सर्वनाम (Reflexive Pronoun)🌏🌏🌎 एम्फाटिक Pronouns रिफ्लेक्सिव( निजवाचक )सर्वनामों को प्रत्यय स्वयं (एकवचन) या स्वयं (बहुवचन) के अतिरिक्त सरल सर्वनामों जैसे मेरे, आपके, उसके, उसे, यह, और हमारे द्वारा जोड़ा जाता है। मेरा + स्वयं = स्वयं आपका + स्वयं = स्वयं हमारा + स्वयं = स्वयं उन्हें + खुद = खुद को यह + स्वयं = खुद जब विषय और वस्तु एक ही व्यक्ति को सन्दर्भित करती है, तो ऑब्जेक्ट (कर्म) के लिए एक रिफ्लेक्सिव सर्वनाम का उपयोग किया जाता है। जैसे:- मैने अपने आप को काटा। (यहाँं विषय (कर्ता)और (कर्म) एक ही व्यक्ति को सन्दर्भित करती है -) आप खुद को काटते हैं। (यहां विषय (कर्ता) और वस्तु (कर्म) एक ही व्यक्ति को सन्दर्भित करती है - आप।) उसने खुद को काट दिया। (यहां विषय (कर्ता) और वस्तु (कर्म)एक ही व्यक्ति को सन्दर्भित करती है - वह।) बच्चे खुद को काटता है। हम खुद को काटते हैं। नोट: जब स्वत्रन्त्र रूप से स्वयं का उपयोग किया जाता है, तो यह एक संज्ञा है और सर्वनाम नहीं है। एक ईमानदार व्यक्ति अपने आप को सभी व्यर्थों से मुक्त रखता है। किसी के अलावा किसी के लिए स्वयं का हमेशा महत्वपूर्ण होता है। प्रभावोत्पादक सर्वनाम (Emphetic Pronoun ) इसका प्रयोग किसी विशेष संज्ञा या कर्ता पर जोर देने के लिए किया जाता है जिसे उन्हें एम्फैटिक (Emphetic Pronoun )सर्वनाम कहा जाता है। उसने खुद मुझको यह बताया। मैंने खुद ही नौकरी खत्म कर दी । उन्होंने स्वयं अपनी गलती स्वीकार की। हमने खुद की दुर्घटना देखी। टिप्पणियाँ: जबरदस्त सर्वनाम विषयों के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है। इसलिए यह कहना गलत है: जॉन और मैं वहां गया। खुद नदी में तैरते हैं। मैंने खुद को चाय में आमंत्रित किया। सही वाक्य इस प्रकार हैं: जॉन और मैं वहां गया। वह नदी में तैर गई। मैंने उसे चाय में आमंत्रित किया। प्रतिबिंबित और जबरदस्त सर्वनाम के बीच अन्तर यदि विषय की कार्रवाई कर्ता पर प्रतिबिंबित होती है तो एक सर्वनाम एक प्रतिबिंबित होता है। दूसरी ओर, भावनात्मक सर्वनाम, इस विषय की कार्रवाई पर जोर देने के लिए उपयोग किए जाते हैं। उसने खुद को काट दिया। (रिफ्लेक्सिव: यहां विषय और वस्तु एक ही व्यक्ति को संदर्भित करती है।) उसने खुद का केक काट दिया। (इम्फाटिक: यहां जबरदस्त सर्वनाम स्वयं ही उस संज्ञा पर जोर देता है।) मैंने खुद प्रिंसिपल से बात की। (जोरदार) आपको नुकसान के लिए खुद को दोष देना होगा। (कर्मकर्त्ता) ध्यान दें कि वाक्य से एक जबरदस्त सर्वनाम हटाया जा सकता है और मूल अर्थ प्रभावित नहीं होगा। दूसरी तरफ एक रिफ्लेक्सिव सर्वनाम अनिवार्य है। यदि आप रिफ्लेक्सिव सर्वनाम को हटाते हैं तो वाक्य पूरी तरह से समझ में नहीं आता है। दौनों की तुलना करें: उसने खुद केक काट दिया। उसने केक काट दिया। उसने खुद को काट दिया। उसने कटौती की ... क्या? आपने देखा होगा कि वाक्यों की पहली जोड़ी में, मूल अर्थ तब नहीं बदलता जब भावनात्मक सर्वनाम स्वयं वाक्य से हटा दिया जाता है। वाक्यों की दूसरी जोड़ी में, जब रिफ्लेक्सिव सर्वनाम हटा दिया जाता है तो अर्थ बदल जाता है या अधूरा हो जाता है। टिप्पणियाँ: यदि वाक्य में रिफ्लेक्सिव सर्वनाम को पारस्परिक सर्वनाम 'एक-दूसरे' द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है, तो वाक्य का अर्थ भारी रूप से बदल जाता है। की तुलना करें: जॉन और पीटर ने खुद को नुकसान के लिए जिम्मेदार ठहराया। (जॉन ने खुद को दोषी ठहराया और पीटर ने खुद को दोषी ठहराया।) जॉन और पीटर ने नुकसान के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराया। (जॉन ने पीटर और पीटर को दोषी ठहराया जॉन।) (1) पुरुषवाचक सर्वनाम:-जिन सर्वनाम शब्दों से व्यक्ति का बोध होता है, उन्हें पुरुषवाचक सर्वनाम कहते है। दूसरे शब्दों में- बोलने वाले, सुनने वाले तथा जिसके विषय में बात होती है, उनके लिए प्रयोग किए जाने वाले सर्वनाम पुरुषवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। 'पुरुषवाचक सर्वनाम' पुरुषों (स्त्री या पुरुष) के नाम के बदले आते हैं। जैसे- मैं आता हूँ। तुम जाते हो। वह भागता है। उपर्युक्त वाक्यों में 'मैं, तुम, वह' पुरुषवाचक सर्वनाम हैं। पुरुषवाचक सर्वनाम के प्रकार पुरुषवाचक सर्वनाम तीन प्रकार के होते है- (i)उत्तम पुरुष (ii)मध्यम पुरुष (iii)अन्य पुरुष (i)उत्तम पुरुष :-जिन सर्वनामों का प्रयोग बोलने वाला अपने लिए करता है, उन्हें उत्तम पुरुष कहते है। जैसे- मैं, हमारा, हम, मुझको, हमारी, मैंने, मेरा, मुझे आदि। उदाहरण- मैं स्कूल जाऊँगा। हम मतदान नहीं करेंगे। यह कविता मैंने लिखी है। बारिश में हमारी पुस्तकें भीग गई। मैंने उसे धोखा नहीं दिया। (ii) मध्यम पुरुष :-जिन सर्वनामों का प्रयोग सुनने वाले के लिए किया जाता है, उन्हें मध्यम पुरुष कहते है। जैसे- तू, तुम, तुम्हे, आप, तुम्हारे, तुमने, आपने आदि। उदाहरण- तुमने गृहकार्य नहीं किया है। तुम सो जाओ। तुम्हारे पिता जी क्या काम करते हैं ? तू घर देर से क्यों पहुँचा ? तुमसे कुछ काम है। (iii)अन्य पुरुष:-जिन सर्वनाम शब्दों का प्रयोग किसी अन्य व्यक्ति के लिए किया जाता है, उन्हें अन्य पुरुष कहते है। जैसे- वे, यह, वह, इनका, इन्हें, उसे, उन्होंने, इनसे, उनसे आदि। उदाहरण- वे मैच नही खेलेंगे। उन्होंने कमर कस ली है। वह कल विद्यालय नहीं आया था। उसे कुछ मत कहना। उन्हें रोको मत, जाने दो। इनसे कहिए, अपने घर जाएँ। (2) निश्चयवाचक सर्वनाम:- सर्वनाम के जिस रूप से हमे किसी बात या वस्तु का निश्चत रूप से बोध होता है, उसे निश्चयवाचक सर्वनाम कहते है। दूसरे शब्दों में- जिस सर्वनाम से वक्ता के पास या दूर की किसी वस्तु के निश्र्चय का बोध होता है, उसे 'निश्र्चयवाचक सर्वनाम' कहते हैं। सरल शब्दों में- जो सर्वनाम शब्द किसी निश्चित व्यक्ति, वस्तु अथवा घटना की ओर संकेत करे, उसे निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे- यह, वह, ये, वे आदि। उदाहरण- पास की वस्तु के लिए- 'यह' कोई सर्वनाम के रूपान्तर (लिंग, वचन और कारक) सर्वनाम का रूपान्तर पुरुष, वचन और कारक की दृष्टि से होता है। इनमें लिंगभेद के कारण रूपान्तर नहीं होता। जैसे- वह खाता है। वह खाती है। संज्ञाओं के समान सर्वनाम के भी दो वचन होते हैं- एकवचन और बहुवचन। पुरुषवाचक और निश्र्चयवाचक सर्वनाम को छोड़ शेष सर्वनाम विभक्तिरहित बहुवचन में एकवचन के समान रहते हैं। सर्वनाम में केवल सात कारक होते है। सम्बोधन कारक नहीं होता। कारकों की विभक्तियाँ लगने से सर्वनामों के रूप में विकृति आ जाती है। जैसे- मैं- मुझको, मुझे, मुझसे, मेरा; तुम- तुम्हें, तुम्हारा; हम- हमें, हमारा; वह- उसने, उसको उसे, उससे, उसमें, उन्होंने, उनको; यह- इसने, इसे, इससे, इन्होंने, इनको, इन्हें, इनसे; कौन- किसने, किसको, किसे। सर्वनाम की कारक-रचना (रूप-रचना) संज्ञा शब्दों की भाँति ही सर्वनाम शब्दों की भी रूप-रचना होती। सर्वनाम शब्दों के प्रयोग के समय जब इनमें कारक चिह्नों का प्रयोग करते हैं, तो इनके रूप में परिवर्तन आ जाता है। ('मैं' उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम) कारक -एकवचन- बहुवचन कर्ता मैं, मैंने हम, हमने कर्म मुझे, मुझको हमें, हमको करण मुझसे हमसे सम्प्रदान मुझे, मेरे लिए हमें, हमारे लिए अपादान मुझसे हमसे सम्बन्ध मेरा, मेरे, मेरी हमारा, हमारे, हमारी अधिकरण मुझमें, मुझपर हममें, हमपर ('तू', 'तुम' मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम) कारक एकवचन बहुवचन कर्ता तू, तूने तुम, तुमने, तुम लोगों ने कर्म तुझको, तुझे तुम्हें, तुम लोगों को करण तुझसे, तेरे द्वारा तुमसे, तुम्हारे से, तुम लोगों से सम्प्रदान तुझको, तेरे लिए, तुझे तुम्हें, तुम्हारे लिए, तुम लोगों के लिए अपादान तुझसे तुमसे, तुम लोगों से सम्बन्ध तेरा, तेरी, तेरे तुम्हारा-री, तुम लोगों का-की अधिकरण तुझमें, तुझपर तुममें, तुम लोगों में-पर ('वह' अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम) कारक - एकवचन बहुवचन कर्ता -वह, उसने वे, उन्होंने कर्म उसे, उसको उन्हें, उनको करण उससे, उसके द्वारा उनसे, उनके द्वारा सम्प्रदान उसको, उसे, उसके लिए उनको, उन्हें, उनके लिए अपादान उससे उनसे सम्बन्ध उसका, उसकी, उसके उनका, उनकी, उनके अधिकरण उसमें, उसपर उनमें, उनपर ('यह' निश्चयवाचक सर्वनाम) कारक एकवचन बहुवचन कर्ता यह, इसने ये, इन्होंने कर्म इसको, इसे ये, इनको, इन्हें करण. इससे इनसे सम्प्रदान इसे, इसको इन्हें, इनको अपादान इससे इनसे सम्बन्ध इसका, की, के इनका, की, के अधिकरण इसमें, इसपर इनमें, इन पर ('आप' आदरसूचक) कारक एकवचन. बहुवचन कर्ता. आपनेआप लोगों ने कर्म. आपकोआप लोगों को करण. आपसेआप लोगों से सम्प्रदानआपको, के लिएआप लोगों को, के लिए अपादान आपसेआप लोगों से सम्बन्ध आपका, की, के आप लोगों का, की, के अधिकरण आप में, परआपलोगों में, पर ('कोई' अनिश्चयवाचक सर्वनाम) कारक. एकवचन. बहुवचन कर्ता. कोई, किसने. किन्हीं ने कर्म. किसी को. किन्हीं को करण. किसी सेे. किन्हीं से सम्प्रदान किसी को, किसी के लिए किन्हीं को, किन्हीं के लिए अपादान किसी से किन्हीं से सम्बन्ध किसी का, किसी की, किसी के किन्हीं का, किन्हीं की, किन्हीं के अधिकरण किसी में, किसी पर किन्हीं में, किन्हीं पर ('जो' सम्बन्धवाचक सर्वनाम) कारक एकवचन बहुवचन कर्ता जो, जिसने जो, जिन्होंने कर्म. जिसे, जिसको. जिन्हें, जिनको करण जिससे, जिसके द्वारा जिनसे, जिनके द्वारा सम्प्रदान जिसको, जिसके लिए जिनको, जिनके लिए अपादान जिससे (अलग होने)जिनसे (अलग होने) सम्बन्ध जिसका, जिसकी, जिसके जिनका, जिनकी, जिनके अधिकरणजिसपर, जिसमें जिनपर, जिनमें ('कौन' प्रश्नवाचक सर्वनाम) कारक एकवचन बहुवचन कर्ता. कौन,. किसने. कौन, किन्होंने कर्म. किसे, किसको, किसके किन्हें,. किनको, किनके करण. किससे, किसके द्वारा किनसे, किनके द्वारा सम्प्रदान किसके लिए, किसकोकिनके लिए, किनको अपादान किससे (अलग होने)किनसे (अलग होने) सम्बन्ध किसका, किसकी, किसके किनका, किनकी, किनके अधिकरण किसपर, किसमें किनपर, किनमें सर्वनाम का पद-परिचय:- सर्वनाम का पद-परिचय करते समय सर्वनाम, सर्वनाम का भेद, पुरुष, लिंग, वचन, कारक और अन्य पदों से उसका सम्बन्ध बताना पड़ता है। उदाहरण- वह अपना काम करता है। इस वाक्य में, 'वह' और 'अपना' सर्वनाम है। इनका पद-परिचय होगा- वह- पुरुषवाचक सर्वनाम, अन्य पुरुष, पुल्लिंग, एकवचन, कर्ताकारक, 'करता है' क्रिया का कर्ता। अपना- निजवाचक सर्वनाम, अन्यपुरुष, पुल्लिंग, एकवचन, सम्बन्धकारक, 'काम' संज्ञा का विशेषण। एक पारस्परिक सर्वनाम क्या है? एक पारस्परिक सर्वनाम एक सर्वनाम है जिसका उपयोग यह इंगित करने के लिए किया जाता है कि दो या दो से अधिक लोग किसी प्रकार की कार्रवाई कर रहे हैं या दोनों कार्य-वाही के परिणामों या परिणामों को प्राप्त करने के साथ-साथ दोनों कार्य कर रहे हैं। किसी भी समय कुछ किया जाता है या बदले में दिया जाता है, पारस्परिक सर्वनाम का उपयोग किया जाता है। किसी भी समय पारस्परिक कार्रवाई व्यक्त की जाती है। जब केवल दो पारस्परिक सर्वनाम हैं। उनमें से दोनों आपको वाक्यों को सरल बनाने की अनुमति देते हैं। वे विशेष रूप से उपयोगी होते हैं जब आपको एक ही सामान्य विचार को एक से अधिक बार व्यक्त करने की आवश्यकता होती है। एक दूसरे एक दूसरे पारस्परिक सर्वनाम उपयोग करने में आसान हैं। जब आप दो लोगों का सन्दर्भ लेना चाहते हैं, तो आप आम तौर पर "एक-दूसरे का उपयोग करेंगे।" दो से अधिक लोगों का जिक्र करते समय, उदाहरण के लिए एक व्याख्यान कक्ष में छात्र, आप आम तौर पर "एक दूसरे का उपयोग करेंगे।" पारस्परिक सर्वनाम (ReciprocalPronouns )पारस्परिक सर्वनाम के उदाहरण पारस्परिक सर्वनाम वाक्य के भीतर पुनरावृत्ति को रोकने में मदद करते हैं। निम्नलिखित उदाहरणों में, पारस्परिक सर्वनाम पहचान की आसानी के लिए इटालिसिस किया गया है। प्रेम और मारिया ने अपने शादी के दिन एक-दूसरे के सोने के छल्ले दिए। मारिया और प्रेम ने समारोह के अन्त में एक-दूसरे को आलिंगन किया। टेरी और जैक हॉलवे में एक-दूसरे से बात कर रहे थे। हम छुट्टियों के दौरान एक दूसरे को उपहार देते हैं। छात्रों ने अभ्यास भाषण देने के बाद एक-दूसरे को बधाई दी। बच्चों ने दोपहर बॉल को एक दूसरे को लात मार दिया। प्रतिवादी ने उन अपराधों के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराया जिन पर उनका आरोप लगाया गया था।