~• एक नदी ये संसार है
माया ईश्वर दो तीर
प्रबल वेग वासनाओं के .
हम्हें पार करे कोई पीर
हम्हें पार करे कोई पीर
गुरु नदिया का पुल है .
वासनाओं के प्रबल वेग .
संकल्पो का जल भी विपुल है ।
इच्छाओं का जल गम्भीर
अपनी गायों को नहलाता
यह गाये कोई अहीर !!
आये यहाँ सभी रो- रोकर
और जाते हैं सब रोते
इच्छाओं का नीर उमड़ता।
लहरों में हम्हें डुबोते
लोभ के भ्रमर ,मोह के गोते .
ये मन है बड़ा अधीर ..
जिन्हें गुरु सम पुल मिला है
रोहि सुथर गयी तकदीर !
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~अर्थात् यह संसार एक नदी है
और जीवात्मा इसके एक किनारे पर है, परन्तु वह जीवात्मा इस नदी को पार करना चाहती हैं ..बहुत सी इच्छाओं की नदी में डूब जाती हैं तथा मोह और भ्रमर के गोतों से स्वयं को नहीं बचा पाते हैं ...✍✍✍....गुरु वस्तुतः संसार रूपी नदी में एक पुल है अर्थात् जिसके द्वारा हम नदी को पार करें .संस्कृत भाषा में गुरु के बहुत से सार्थक सार्थक विशेषण हैं
.. ..पीरः = संसार रूपी नदी से पार करने बाला
नाविः = जीवन की नाव को आगे ले जाने बाला
नेत्रः = अागे ले जाने बाला, रास्ता दिखाने बाला
पुलः =जिसके द्वारा नदी को पार करें .......
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