शनिवार, 20 अक्टूबर 2018

दलित महिलाओं को स्तन ढ़कने का भी अधिकार नहीं था ! ऐसा था हमारा हिन्दु धर्म - __________________________________________

दलित महिलाओं को स्तन ढ़कने का भी अधिकार नहीं था !  ऐसा था हमारा हिन्दु धर्म -
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भारत के  मुस्लिम शासक ईस्ट इंडिया कम्पनी को सबसे पहले पराजित करने वाले टीपू सुल्तान के बारे में संघ का कहना है ; कि वह हिन्दु विरोधी था ।
क्यों कि उन्होंने बहुत से पेशवाओ का क़त्ल किया था ।
परन्तु क्यों किया इस पर संघ ने  कोई प्रकाश नहीं डाला
परन्तु अन्य मुस्लिम शासकों की अपेक्षा शेर शाह फिर भी  उदारवादी और मानवता वादी  था ।

टीपू सुल्तान का जन्म 20 नवम्बर 1750 को कर्नाटक के देवनाहल्ली (यूसुफ़ाबाद) (बंगलौर से लगभग 33 कि०मी० (21 मील) उत्तर में हुआ था।
उनका पूरा नाम सुल्तान फतेह अली खान शाहाब था। उनके पिता का नाम हैदर अली और माता का नाम फ़क़रुन्निसा था।
उनके पिता हैदर अली मैसूर साम्राज्य के सैनापति थे जो अपनी ताकत से 1761 में मैसूर साम्राज्य के शासक बने ।
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अगर टीपू सुल्तान हिन्दु विरोधी होता तो उनकी सेना में जितने मुसलमान थे उतने हिन्दू होते !

संघ ने ये तो बता दिया के पेशवाओ का क़त्ल टीपू सुल्तान ने किया पर क्यों किया ये क्यों नही बताया ?

पेशवाओ की हत्याएं करने का जो आरोप टीपू सुल्तान पर है वह त्रावणकोर राज्य में है।
जहाँ का मनुवादी  राजा एक ऐय्याश और निरंकुश शासक था ।
तल्कालीन राजा मार्तण्ड वर्मा रूढ़िवादी ब्राह्मणों का परम भक्त और रूढ़िवादी परम्पराओं का समर्थक था ।

और उसके रूढ़िगत जुल्मों  से वहाँ की जनता से छुटकारा दिलाने के लिए टीपू ने उस पर आक्रमण किया और युद्ध में त्रावणकोर की सेना में शामिल जो पेशवा थे वे सारे पेशवा मारे गये।

केरल के त्रावण कौर राज्य में राजाओं द्वारा मन्दिरों का निर्माण ब्राह्मणों के लिए धर्म- मूलक व्यावसायिक प्रतिष्ठान के रूप में ही मान्य था
और इन मन्दिरों में देवदासीयों की नियुक्ति इन पुजारियों की वासना तृप्ति के निमित्त थी ।
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त्रावणकौर  में रहने वाली निम्न जाति की महिलाओं को जिन्हें ब्राह्मण पुरोहित समाज द्वारा अपने तन ढ़कने तक का अधिकार नहीं दिया गया था। यह भी हमारे देश की अन्धी-पृथा का एक नमूना है
आज हम महिलाओं के अत्याधुनिक पाश्चात्य सभ्यता मूलक कपड़े पहनने को नग्नता या अश्लीलता कहते हैं और उस समय जो उनसे उनके वस्त्र छीन लिए जाते थे उसे धार्मिकता और शालीनता का खिताब प्राप्त था ।

यह दौर आजादी से भी बहुत पहले का है जब त्रावणकोर (केरल) में रहने वाली निम्न जाति की महिलाओं द्वारा तन ढकना एक सामाजिक अपराध के रूप में देखा जाता था।
यह अमानवीय प्रथा करीब 19वीं शताब्दी के मध्य तक अनवरत वैध होकर चलती रही।
     निम्न जाति की महिलाओं को तो शरीर का ऊपरी भाग ढकने का अधिकार था ही नहीं !
लेकिन नंबूदरी ब्राह्मण और क्षत्रीय नायर जाति की महिलाओं को भी घर के भीतर शरीर का ऊपरी भाग खुला रखना होता था।
वह अपना शरीर तभी ढक सकती थीं, जब वे घर से बाहर हों।
हालांकि मंदिर में तो उन्हें ऊपरी भाग के वस्त्र उतारने ही पड़ते थे।
ताकि   पूजारी उसे देख कर अपनी वासना मूलक तृप्ति   कर सकें
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क्षत्रीय वर्ण की महिलाओं को ब्राह्मण पुरुषों के समक्ष अपने वक्ष स्थल को खुला रखना ही होता था।
लेकिन निम्न तबके की महिलाओं को तो हमेशा ऊपरी अंगवस्त्र के बिना ही रहना पड़ता था।
पता नहीं यह किस सभ्यता का प्रतीक था ---
भारतीय पुराणों में विधान पारित है कि
ब्राह्मणों के लिए क्षत्रिय स्वयं अपनी पत्नीयों से उत्तम सन्तानें उत्पन्न कराऐं । और स्वयं राजा अपनी पत्नी से कहते थे कि वे किसी ब्राह्मण से  नियोग कर सन्तानें उत्पन्न करें ।
परन्तु यदि शूद्र अथवा निम्न महिलाऐं अपना तन ढ़क लें तो वे एक बड़ी सजा की हकदार तक मानी जाती थीं।
कहा जाता है एक बार एक दलित स्त्री अपने तन को ढक कर महल में प्रवेश कर गई।
जब तत्कालीन रानी ने उसे वस्त्रों के साथ देखा तो उसके स्तन कटवाने का आदेश दे डाला।
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त्रावणकोर में जितने भी राजा रहे, उनमें से किसी ने भी इस प्रथा को समाप्त करने की कोशिश नहीं की।
करते भी क्यों, जब भी राजा का काफिला नगर से गुजरता था तो आदेशानुसार निम्न जाति की महिलाएं ऊपरी वस्त्रों के बिना उस काफिले पर फूलों की बारिश करती थीं। राजा और उसके काफिले में शामिल पुरुष इस दृश्य का देखकर काम - उत्तेजनाओं को उत्पन्न कर आनन्द उठाते थे।. 
इतिहास में ऐसे कामान्ध राजाओं को कौन मबान रहेगा ?
इसकी अन्दाजा मन्दिरों में चित्रित कामुक मूर्तियों तथा भित्ति-चित्र से लगाया जा सकता है

19 वीं शताब्दी की शुरुआत में केरल में रहने वाले निम्न जाति के मजदूर, चाय के बागानों में काम करने वाले कर्मचारी काम की तलाश में श्रीलंका चले गए। वहां जाकर उनकी आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर हो गई, इसके अलावा धर्म परिवर्तन कर ईसाई बन जाने के पश्चात उनके भीतर जागरुकता भी आई।
उनके घर की महिलाएं अपना पूरा तन ढककर सम्मानजनक जीवन व्यतीत करने की कोशिश करने लगीं। उन्हें देखकर अन्य महिलाएं भी प्रभावित हुईं और तन ढकने लगीं।
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लेकिन उनका ऐसा करना उच्च वर्ण के पुरुषों को बर्दाश्त नहीं हुआ और वे जब भी किसी महिला का तन ढका देखते, उस पर हिंसक हमले करते। निम्न वर्ण की महिलओं को अस्पृश्य माना जाता था इसलिए उनके तन से कपड़े उतारने के लिए वे तलवार का सहारा लेते, जिससे वो उनके ऊपरी वस्त्र को फाड़ देते थे।

यूं तो एक बार 1814 में त्रावणकोर के दीवान ने यह आदेश पारित किया था कि महिलाएं अपना तन ढक सकती हैं।
लेकिन कुलीन पुरुषों ने इस आदेश को व्यवहारिक नहीं होने दिया। जब भी कोई महिला अपना तन ढककर सम्मान पाने को प्रयास करती तो रूढ़िवादी इसका विरोध करते ।👇

त्रावणकोर राज्य में एक प्राचीन परम्परा के अनुसार नंबूदिरी, नायर और दलित नादर जैसी जातियों की
स्त्रीयों  को अपने शरीर का ऊपरी हिस्सा अर्थात् स्तन ग्रन्थियाँ ढाँकना प्रतिबन्धित था।

सबसे बुरी स्थिति दलित औरतों की थी जिन्हें कहीं भी अंगवस्त्र पहनने की मनाही थी। पहनने पर उन्हें सजा भी हो जाती थी। एक घटना बताई जाती है जिसमें एक दलित जाति की महिला अपना वक्षस्थल  ढक कर महल में आई तो रानी अत्तिंगल ने उसके स्तन कटवा देने का आदेश दे डाला।

इस अपमानजनक रिवाज के अनुसार आदेश था कि "महल से मंदिर तक राजा की सवारी निकले तो रास्ते पर दोनों ओर निम्न दलित जातियों की अर्धनग्न कुंवारी महिलाएं फूल बरसाती हुई खड़ी रहें।"

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इस अपमानजनक और रूढ़िवादी  रिवाज के खिलाफ ही टीपू सुल्तान ने इसी अन्याय को समाप्त करने के लिए त्रावणकोर पर आक्रमण किया जिससे त्रावणकोर की सेना के तमाम लोग मारे गए।
जिसे आज पेशवाओ के वध के रूप में बताकर टीपू सुल्तान का विरोध किया जाता है।

और तो और जब मध्यकाल में रति प्रधान श्रृँगार मूलक
साहित्य राजाओं के आश्रित कवियों के द्वारा लिखा जा रहा था तब धार्मिक क्रियाओं में भी काम( सेक्स) प्रवण तत्वों की बहुलता थी ।
उत्तरी भारत में मन्दिरों के भग्नावशेष बताते हैं कि उनमें से अधिकांश में यौनिक (सैक्स प्रधान) कर्मकाण्ड प्रचलित थे।
मध्यकालीन लूट-खसोट से बचे अमूमन सभी मंदिर कामुक चित्रों/ मूर्तियों से सजे हुए हैं।
वस्तुत ब्राह्मणों के द्वारा रचे धार्मिक भय की यह अवस्था  थी  कि गरीब तबके के माता-पिता देवी-देवताओं की सेवा के नाम पर पुरोहितों को अपनी पुत्रियाँ अर्पित कर देते थे।
देवताओं की सेवा के नाम पर मासूम और अनाथ बालिकाऐं  ब्राह्मणों द्वारा गोद भी ली जाती थीे।
पश्चात् काल में नीच और अश्लील कर्मकाण्ड के नाम पर उक्त बालिकाओं को और  बलपूर्वक  यौन शोषण के प्रतिष्ठान  इन मन्दिरों के अंदर पुजारियों को सौंपा जाता था ।
भावाशय मूलक शब्दों में वर्णित किया जाए तो
जो जनसाधारण  लोगों के लिए  धर्म था;
वह  ब्राह्मणों क् लिए भौतिक तुष्टिकरण , प्रतिष्ठा और ऊर्जा के साथ-साथ अतीव यौन तुष्टि-करण का साधन था।
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स्तन छुपाने के लिए दो शुल्क देना पड़ता था दिसे अंग्रेजी' इतिहास कारों नें (ब्रेस्ट टैक्स Breast Tax) कहा । जिसे केरल समाज में मुल्लकारम (Mulakkaram) कहा जाता ।

यह तत्कालीन समय में फैला हुआ एक घिनौना जातिगत विभेदक व्यवहार था.
इस टैक्स को त्रावणकोर के राजा ने लगाया था। इस टैक्स को बहुत सख्ती से लागू किया गया था . राजा के इस अध्यादेश के बाद नीची जाति की महिलाएं अपनी लाज  बचाने के लिए ब्रेस्ट टैक्स भरने लगी. वस्तुत भारतीय इतिहास का यह एक सांस्कृतिक कालान्तरण अध्याय था ।

टैक्स जमा करने के बाद भी अगर कोई नीची जाति की महिला अपने स्तन ढंक कर घर से निकलती थी तो कुछ लोग सरेराह उसके कपडे तक फाड़ देते थे.
महिला नें किया विरोध तो कटवा दिए गए स्तन
इसके विरोध में केरल में रहने वाली एक दलित महिला नांगेली नें अपनी इज्ज़त के अधिकार के लिए त्रावनकोर के राजा के खिलाफ आन्दोलन चलाया.नांगेली पहली ऐसी दलित महिला थी जिसने ब्रेस्ट टैक्स देने से इनकार कर दिया.जब राजा नें उसकी खिलाफत सुनी तो राजा नें बड़ी ही बेरहमी से नांगेली के स्तन ही कटवा दिए थे.जिसके फलस्वरूप उसकी मौत हो गयी थी . मगर नांगेली की मौत से पूरा दलित समाज आक्रोशित हो गया .
26 जुलाई लायी सुनहरी सुबह रानी नांगेली की मृत्यु ने सभी दलित महिलाओं के दिल में जो ज्वाला प्रज्वलित थी ।
उसने इस अपमानजनक पृथा को भष्म कर दिया।

. और लम्बे अरसे तक अपनी इज्ज़त की लड़ाई लड़ने के बाद 26 जुलाई 1859 को महिलाओं को पूर्ण रूप से अपना तन ढकने का अधिकार मिल गया।

11 टिप्‍पणियां:

  1. ब्राह्मण को इस देश निकलदो कोई झगड़ा होई नहीं सकता

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    1. Sahi baat h agar in barhmno ko desh se nikal de to koi jati nhi hogi na hi koi dhram hoga. Kisi ke saath koi bhed bhav hoga

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    2. हलाला शुरू हो जाएगा

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    3. Ak kam kato tum log afghanistan ja ke aao vaha to brahman nahi hena or pira kharcha hm denge tum log bas vaha 2 month rah ke aao

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  2. *🚩5. 1960 से 1970 के दशक में विश्व में खाड़ी देशों के तेल निर्यात ने व्यापक प्रभाव डाला । केरल के इस भूभाग से बड़ी संख्या में मुस्लिम कामगार खाड़ी देशों में गए । उन कामगारों ने बड़ी संख्या में पेट्रो डॉलर खाड़ी देशों से भारत भेजे । उस पैसे के साथ-साथ इस्लामिक कट्टरवाद भी देश ने आयात किया । उस धन के बल पर बड़े पैमाने पर जमीनें खरीदी गईं । मस्जिदों और मदरसों का निर्माण हुआ । स्थानीय वेशभूषा छोड़कर मोपला मुसलमान भी इस्लामिक वेशभूषा अपनाने लगे । मज़हबी शिक्षा पर जोर दिया गया । जिसका परिणाम यह निकला कि इस इलाके का निर्धन हिन्दू अपनी जमीने बेच कर यहाँ से केरल के अन्य भागों में निकल गया। बड़ी संख्या में मुसलमानों ने हिन्दू लड़कियों से विवाह भी किये । इस्लामिक प्रचार के प्रभाव, धन आदि के प्रलोभन में अनेक हिन्दुओं ने स्वेच्छा से इस्लाम को स्वीकार भी किया । केरल से छपने वाले सालाना सरकारी गजट में हम ऐसे अनेक उदहारणों को पढ़ सकते हैं। इस धन के प्रभाव से संगठित ईसाई भी अछूते नहीं रहे । असंगठित हिन्दू समाज तो इस प्रभाव को कैसे ही प्रभावहीन करता । ऐसी अवस्था में इस भूभाग का मुस्लिम बहुल हो जाना स्वाभाविक ही तो है।*

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    1. Jhoot phailata hai Sanghi...saale Brahmin apni ladkiyoñ ko musalmaan raja se shaadi karwa dete the, aur phir haraam ka chillum-chapati, ayyashi karte the...

      मेरे इस 👇 कमेंट को संघी मनुवादी unlike करेगा और oppose करेगा:

      *RSS ke Manuvadi Gunde*

      👆 New abuse...for the Zionists!!!



      नया गाना है, viral कीजिए: 👇

      अरे मानवता को चले रौंदने...जूते मारो सालों को
      अरे मानवता को चले रौंदने...जूते मारो संघियों को

      याद रखना साथियों, जब भी कोई घुमा फिरा के जातिवाद को सपोर्ट करेगा, या आरक्षण के विरोध में बात करेगा, समझ लेना, वो मुसलमान को भी गाली देगा और दलित वर्ग से नफ़रत करेगा। ये सब आरएसएस के मनुवादी नाजायज सपूत हैं। पहचान लो, नहीं तो "सर पर चप्पल रख के चलने की practice करो"।

      ~ सप्रेम भेंट एक Genuine देशभक्त की

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    2. अबे किसको बेवकूफ बना रहे ही इतिहास को तरोड़ मरोड़ कर , स्तन कर लगाने वाले हैदर अली को योद्धा बता रहा है हिंदुओं के मंदिर तोड़ने वाले जबर धर्म परिवर्तन कराने वाले टीपू को स्तन कर का उद्धारक बता रहे हो अबे कुछ तो शर्म करो इस स्तन कर को टैक्स को हैदर अली ने ही लगाया था और हटाया था त्रवनकोर के राजा ने जिस कारण टीपू ने उस राज्य पर हमला किया ।

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  3. ओए...सड़कछाप ज्ञानी टीपू सुलतान की मौत सन 1799 में हुई थी तो क्या उसका भूत 1859 में ब्रीस्ट टैक्स का अंत किया।

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  4. शूद्र महिलाओं पर स्तन टैक्स लगाने वाला टीपू का बाप हैदर अली था जिसे त्रावनकोर राजा मार्तण्ड वर्मा ने हटाया , साले झूट फैलता है

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