उवाच वाक्यं वाक्यज्ञो वैदेहं सपुरोधसम्।
अव्यक्तप्रभवो ब्रह्मा शाश्वतो नित्य अव्ययः॥ १९॥
तस्मान्मरीचिः संजज्ञे मरीचेः कश्यपः सुतः।
विवस्वान् कश्यपाज्जज्ञे मनुर्वैवस्वतः स्मृतः॥ २०॥
मनुः प्रजापतिः पूर्वमिक्ष्वाकुश्च मनोः सुतः।
तमिक्ष्वाकुमयोध्यायां राजानं विद्धि पूर्वकम्॥ २१॥
इक्ष्वाकोस्तु सुतः श्रीमान् कुक्षिरित्येव विश्रुतः।
कुक्षेरथात्मजः श्रीमान् विकुक्षिरुदपद्यत॥ २२॥
विकुक्षेस्तु महातेजा बाणः पुत्रः प्रतापवान्।
बाणस्य तु महातेजा अनरण्यः प्रतापवान्॥ २३॥
अनरण्यात् पृथुर्जज्ञे त्रिशङ्कुस्तु पृथोरपि।
त्रिशङ्कोरभवत् पुत्रो धुन्धुमारो महायशाः॥ २४॥
धुन्धुमारान्महातेजा युवनाश्वो महारथः।
युवनाश्वसुतश्चासीन्मान्धाता पृथिवीपतिः॥ २५॥
मान्धातुस्तु सुतः श्रीमान् सुसन्धिरुदपद्यत।
सुसन्धेरपि पुत्रौ द्वौ ध्रुवसन्धिः प्रसेनजित्॥ २६॥
यशस्वी ध्रुवसन्धेस्तु भरतो नाम नामतः।
भरतात् तु महातेजा असितो नाम जायत॥ २७॥
यस्यैते प्रतिराजान उदपद्यन्त शत्रवः।
हैहयास्तालजङ्घाश्च शूराश्च शशबिन्दवः॥ २८॥
तांश्च स प्रतियुध्यन् वै युद्धे राजा प्रवासितः।
हिमवन्तमुपागम्य भार्याभ्यां सहितस्तदा॥ २९॥
असितोऽल्पबलो राजा कालधर्ममुपेयिवान्।
द्वे चास्य भार्ये गर्भिण्यौ बभूवतुरिति श्रुतिः॥ ३०॥
एका गर्भविनाशार्थं सपत्न्यै सगरं ददौ।
ततः शैलवरे रम्ये बभूवाभिरतो मुनिः॥ ३१॥
भार्गवश्च्यवनो नाम हिमवन्तमुपाश्रितः।
तत्र चैका महाभागा भार्गवं देववर्चसम्॥ ३२॥
ववन्दे पद्मपत्राक्षी कांक्षन्ती सुतमुत्तमम्।
तमृषिं साभ्युपागम्य कालिन्दी चाभ्यवादयत्॥ ३३॥
स तामभ्यवदद् विप्रः पुत्रेप्सुं पुत्रजन्मनि।
तव कुक्षौ महाभागे सुपुत्रः सुमहाबलः॥ ३४॥
महावीर्यो महातेजा अचिरात् संजनिष्यति।
गरेण सहितः श्रीमान् मा शुचः कमलेक्षणे॥ ३५॥
च्यवनं च नमस्कृत्य राजपुत्री पतिव्रता।
पत्या विरहिता तस्मात् पुत्रं देवी व्यजायत॥ ३६॥
सपत्न्या तु गरस्तस्यै दत्तो गर्भजिघांसया।
सह तेन गरेणैव संजातः सगरोऽभवत्॥ ३७॥
सगरस्यासमञ्जस्तु असमञ्जादथांशुमान्।
दिलीपोंऽशुमतः पुत्रो दिलीपस्य भगीरथः॥ ३८॥
भगीरथात् ककुत्स्थश्च ककुत्स्थाच्च रघुस्तथा।
रघोस्तु पुत्रस्तेजस्वी प्रवृद्धः पुरुषादकः॥ ३९॥
कल्माषपादोऽप्यभवत् तस्माज्जातस्तु शङ्खणः।
सुदर्शनः शङ्खणस्य अग्निवर्णः सुदर्शनात्॥ ४०॥
शीघ्रगस्त्वग्निवर्णस्य शीघ्रगस्य मरुः सुतः।
मरोः प्रशुश्रुकस्त्वासीदम्बरीषः प्रशुश्रुकात्॥ ४१॥
अम्बरीषस्य पुत्रोऽभून्नहुषश्च महीपतिः।
नहुषस्य ययातिस्तु नाभागस्तु ययातिजः॥ ४२॥
नाभागस्य बभूवाज अजाद् दशरथोऽभवत्।
अस्माद् दशरथाज्जातौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ॥ ४३॥
आदिवंशविशुद्धानां राज्ञां परमधर्मिणाम्।
इक्ष्वाकुकुलजातानां वीराणां सत्यवादिनाम्॥ ४४॥
रामलक्ष्मणयोरर्थे त्वत्सुते वरये नृप।
सदृशाभ्यां नरश्रेष्ठ सदृशे दातुमर्हसि॥ ४५॥
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये बालकाण्डे सप्ततितमः सर्गः ॥१-७०॥
श्रीराम के वंश का पहला वर्णन हमें बालकाण्ड के सर्ग (७०) में मिलता है जब श्रीराम के विवाह के समय महर्षि वशिष्ठ राजा जनक को श्रीराम की कुल परम्परा के बारे में बताते हैं। इस वंश वृक्ष के अनुसार -
- सबसे पहले स्वयंभू ब्रह्मा हुए।
- ब्रह्मा जी के एक पुत्र, सप्तर्षियों में से एक महर्षि मरीचि हुए।
- मरीचि से महर्षि कश्यप का जन्म हुआ।
- महर्षि कश्यप से विवस्वान, अर्थात सूर्य का जन्म हुआ।
- विवस्वान से वैवस्वत मनु जन्में। वही इस मन्वन्तर के प्रजापति हैं।
- वैवस्वत मनु से इक्ष्वाकु नाम के पुत्र हुए। इन्ही से श्रीराम का कुल इक्ष्वाकु कहलाया और इन्होने ही अयोध्या नगर की स्थापना की और उसके पहले राजा बने।
- इक्ष्वाकु के पुत्र का नाम था कुक्षि।
- कुक्षि से विकुक्षि जन्में।
- विकुक्षि के पुत्र हुए बाण।
- बाण के पुत्र का नाम अनरण्य था। ये वही अनरण्य थे जिन्होंने रावण को श्राप दिया था कि उसकी मृत्यु उन्ही के कुल में जन्में एक व्यक्ति के हाथों होगी।
- अनरण्य से पृथु नाम के पुत्र हुए। इन्ही पृथु ने सातों महासागरों को खुदवाया था और उन्ही के नाम से ये धरती पृथ्वी कहलायी।
- पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ। ये वही त्रिशंकु थे जिन्हे महर्षि विश्वामित्र ने सशरीर स्वर्ग भेजने का प्रयास किया थे किन्तु इंद्र के विरोध के कारण वे बीच में ही स्थित हो गए थे।
- त्रिशंकु के पुत्र का नाम था धुन्धुमार।
- धुन्धुमार के पुत्र हुए युवनाश्व। ये वही राजा थे जिन्होंने गलती से अभिमंत्रित जल पीने के बाद गर्भ धारण कर लिया था।
- युवनाश्व के पुत्र का नाम था मान्धाता। ये बहुत प्रतापी राजा हुए जिन्हे स्वयं इंद्र ने दुग्धपान करवाया था।
- मान्धाता के पुत्र का नाम था सुसन्धि।
- सुसन्धि के दो पुत्र हुए ध्रुवसन्धि और प्रसेनजित। राज्य ध्रुवसन्धि को मिला।
- ध्रुवसन्धि से भरत नामक पुत्र हुए। ये श्रीराम के भाई भरत नहीं हैं।
- भरत से असित नामक पुत्र हुए। असित की शत्रुता हैहय, तालजङ्घ और शशबिन्दु वंशों से हो गयी। उनसे परास्त होकर वे अपनी दो रानियों के साथ वन में रहने लगे। जब उनकी रानियां गर्भवती हुई उसी समय महाराज असित की मृत्यु हो गयी। तब एक रानी ने दूसरी रानी, जिसका नाम कालिंदी था, उसके गर्भ को नष्ट करने के लिए उसे विष दे दिया किन्तु महर्षि च्यवन के आशीर्वाद से वो गर्भ सुरक्षित रहा और उनका एक पुत्र हुआ जिसके शरीर में वो विष विद्यमान था। विष, अर्थात "गर" के साथ जन्म लेने के कारण उसका नाम सगर पड़ा।
- असित के पुत्र सगर हुए। इन्ही सगर के ६०००० पुत्रों को कपिल मुनि ने भस्म कर दिया था। उसके बाद उनका केवल एक पुत्र बचा।
- सगर के पुत्र हुए असमंज जो कपिल मुनि के क्रोध से जीवित बच गए थे।
- असमंज के पुत्र का नाम था दिलीप।
- दिलीप के पुत्र हुए भगीरथ। इन्ही ने माता गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाया था और इन्ही के नाम पर गंगा भागीरथी भी कहलायी।
- भगीरथ के पुत्र हुए कुकुत्स्थ। रामायण में इनका बहुत महत्त्व है क्यूंकि अनेकों स्थानों पर श्रीराम को इन्ही के नाम पर काकुत्स्थ कहा गया है। और ये नाम रामायण में बार बार कहा गया है।
- ककुत्स्थ के पुत्र हुए महाप्रतापी रघु। इन्ही रघु के नाम पर श्रीराम का कुल रघुकुल भी कहलाया।
- रघु के पुत्र हुए प्रवृद्ध। इन्हे ही महर्षि वशिष्ठ ने श्राप दिया और ये राक्षस बन कर कल्माषपाद के नाम से प्रसिद्ध हुए। इनका एक नाम सौदास भी था।
- प्रवृद्ध के पुत्र हुए शंखन।
- शंखन के पुत्र का नाम था सुदर्शन।
- सुदर्शन के पुत्र हुए अग्निवर्ण।
- अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए।
- शीघ्रग के पुत्र हुए मरू।
- मरू से प्रशुश्रुक नाम के पुत्र का जन्म हुए।
- पशुश्रुक से अम्बरीष नाम के महान विष्णुभक्त हुए। इन्ही की रक्षा के लिए सुदर्शन चक्र ने महर्षि दुर्वासा पर आक्रमण किया था और बाद में महाराज अम्बरीष के कारण ही उनके प्राण बचे।
- अम्बरीष के पुत्र हुए राजा नहुष। अब यहीं से सूर्यवंश और चन्द्रवंश का मेल दिखता है क्यूंकि महाभारत के अनुसार महाराज नहुष महान चंद्रवंशी राजा थे। वे महाराज पुरुरवा के पौत्र और चक्रवर्ती सम्राट ययाति के पिता थे। इन्होने ही इंद्र का पद भी ग्रहण किया और सप्तर्षियों के श्राप के कारण ये अजगर बन गए। इन्ही के वंश में आगे चलकर पांडवों और करवों ने जन्म लिया। किन्तु रामायण के इस वर्णन के अनुसार इन्हे महाराज अम्बरीष का पुत्र कहा गया है। ये यहाँ पर हम ये मान सकते हैं कि ये राजा अम्बरीष और ययाति, चंद्रवंशी राजा अम्बरीष और ययाति नहीं थे। चन्द्रवंश के बारे में आप विस्तार से यहाँ देख सकते हैं।
- नहुष के पुत्र हुए ययाति। महाभारत के अनुसार ये अपने पिता से भी अधिक प्रतापी चंद्रवंशी राजा थे जिनका विवाह शुक्राचार्य की कन्या देवयानी और दानवराज वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा से हुआ। इन्ही के पांच पुत्रों से समस्त राजवंश चले। किन्तु इस वर्णन के अनुसार हम ये मान सकते हैं कि ये ययाति चंद्रवंशी ययाति से अलग थे।
- ययाति के पुत्र हुए नाभाग।
- नाभाग के पुत्र हुए अज।
- अज से महाराज दशरथ का जन्म हुआ।
- महाराज दशरथ से श्रीराम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ।
वाल्मीकि रामायण में दूसरी बार श्रीराम के वंश का वर्णन हमें अयोध्या कांड के सर्ग ११० में मिलता है जब भरत श्रीराम को मानकर वापस लाने गए थे। वही पर महर्षि वशिष्ठ ने ही पुनः श्रीराम के वंश का वर्णन किया था। इन दोनों वर्णनों में केवल एक ही अंतर है कि अयोध्या कांड वाले वर्णन में नहुष के पुत्र ययाति का वर्णन नहीं है। इसमें सीधे नाभाग को नहुष का पुत्र बताया गया है। बांकी सारा वर्णन समान ही है।
तो इस प्रकार रामायण के अनुसार ये श्रीराम के वंश का वर्णन है। हम ये मान सकते हैं कि नहुष और ययाति, इन दो प्रसिद्ध चंद्रवंशी राजाओं का जो वर्णन यहाँ दिया गया है वो या तो उन चंद्रवंशी राजाओं से अलग हैं जिनका वर्णन हमें महाभारत में मिलता है या फिर ये किसी और कल्प की कथा का वर्णन है और कल्पभेद के कारण उनका वर्णन सूर्यवंशी राजाओं में कर दिया गया है।
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