हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 59 श्लोक 14-25
हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकोनषष्टितम अध्याय: श्लोक 14-25 का हिन्दी अनुवादप्रजानाथ! उन्हीं राजा भीष्मक का पुत्र रुक्मी था तथा रुक्मिणी भी उन्हीं की कन्या थी। महाबली रुक्मी ने (किम्पुरुषराज) द्रुम से दिव्यास्त्र प्राप्त किये थे। साथ ही जमदग्निनन्दन परशुराम से उसको ब्रह्मास्त्र की प्राप्ति हुई थी। रुक्मी अद्भुत कर्म करने वाले श्रीकृष्ण के साथ सदा ही स्पर्धा रखता था। राजन! रुक्मिणी के रूप की समानता करने वाली इस पृथ्वी पर दूसरी कोई स्त्री नहीं थी। महातेजस्वी वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण उसका परिचय सुनकर ही उसे चाहने लगे थे। इसी प्रकार रुक्मिणी भी श्रीकृष्ण प्रशंसा सुनकर ही उन्हें चाहने लगी थी। उसकी इच्छा थी कि तेज, वीर्य और बल से सम्पन्न श्रीकृष्ण ही मेरे पति हों। महाबली रुक्मी श्रीकृष्ण से द्वेष रखता था, इसलिये उसने श्रीकृष्ण को अपनी बहिन नहीं दी। कंस का वध सुनकर उसे बड़ा संताप हुआ था। वह सदा यही सोचता था कि कृष्ण कंसद्रोही है, इसलिये उनके याचना करने पर भी रुक्मी ने अमित तेजस्वी श्रीकृष्ण को रुक्मिनी नहीं दी। पृथ्वीपति राजा जरासंध ने चेदिराज सुनीथ के पुत्र शिशुपाल के लिये भयानक पराक्रमी भीष्मक से उनकी कन्या रुक्मिणी को माँगा था। चेदिराज उपरिचर वसु के एक पुत्र का नाम बृहद्रथ था, जिसने पूर्वकाल में मगधदेश के भीतर गिरिब्रज नामक नगर का निर्माण कराया था। उसी के वंश में महाबली जरासंध पैदा हुआ। उपरिचर वसु के ही वंश में उन दिनों दमघोष पैदा हुए थे, जो चेदि देश के राजा थे। दमघोष के पाँच भयानक पराक्रमी पुत्र हुए, जो वसुदेव की बहिन श्रुतश्रवा के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। उनके नाम इस प्रकार हैं- शिशुपाल, दशग्रीव, रैम्य, उपदिश और बली। ये सब-के-सब सम्पूर्ण अस्त्रों के ज्ञान में निपुण, वीर, पराक्रमी और महाबली थे। जरासंध कुटुम्बी था तथा समान वंश में उत्पन्न हुआ था, इसलिये सुनीथ (दमघोष) ने अपना पुत्र शिशुपाल उसे सौंप दिया था (शिशुपाल को जरासंध का सहयोगी बना दिया था)। जरासंध भी शिशुपाल को अपने पुत्र के समान समझता और उसकी रक्षा करता था। "यदूनां प्रथमो बन्धुस्त्वं हि सर्व महीक्षिताम्। अत: प्रभृति संग्रामान् द्रक्ष्यसे चेदिसत्तम।।93। (हरिवंशपुराण विष्णुपर्व अध्याय 43) _______________ प्रस्तुत श्लोक में श्रीकृष्ण राजा दम घोष से कहते हैं समस्त राजाओं में आप ही यादवों के प्रथम बन्धु हैं; जिन्हें हम बहुत से संग्रामों में देंखेगे ।।93। चेदिप्रवर ! समस्त राजाओं में आप ही यदुवंशियों के प्रथम बंधु हैं। अब से आपको बहुत से संग्राम देखने को मिलेंगे।।९३। (बन्ध्- बन्धने +“ शॄस्वृस्निहित्रपीति । “ उणादि सूत्र १ । ११ । इति उः। ) बन्ध्+उ:=बन्धु: स्नेहेन मनो बध्नाति यः । तत्पर्य्यायः । १- सगोत्रः २ बान्धवः ३ ज्ञातिः (जाति) ४ स्वः ५ स्वजनः ६ । अमरःकोश । २। ६। ३४॥ दायादः ७ गोत्रः ८ । इति शब्दरत्नावली कोश॥ "बन्धवश्च त्रिविधा । आत्मबन्धवः पितृबन्धवो मातृबन्धवश्चति । अर्थ-बन्धु तीन प्रकार से होते है। अपने से सम्बन्धित लोग- पिता से सम्बन्धित लोग- और माता से सम्बन्धित लोग- यथोक्तम् । “ आत्मपितृष्वसुः पुत्त्रा (अपने पिता की बहिन- बुआ के पुत्र। आत्ममातृष्वसुः सुताः । अपनी माता का बहिन मौसी के पुत्र। आत्ममातुलपुत्त्राश्च विज्ञेया ह्यात्मबान्धवाः। और अपने मामा के पुत्र आदि बान्धव कहे जाते हैं। पितुः पितृष्वसुः पुत्त्राः पितुर्मातृष्वसुः सुताः । पितुर्मातुलपुत्त्राश्च विज्ञेयाः पितृबान्धवाः ॥१।। मातुःपितृष्वसुः पुत्त्रा मातुर्मातृष्वसुः सुताः मातुर्मातुलपुत्त्राश्च विज्ञेया मातृबान्धवाः॥२।। तत्रचान्तरङ्गत्वात् प्रथममात्मबन्धवो धनभाजस्तदभावे पितृबन्धवस्तदभावे मातृबन्धव इति क्रमो वेदितव्यः । बन्धूनामभावे आचार्य्यः । इति मिताक्षरा ॥ *॥ परन्तु आचार्य बन्धु नहीं होते हैं । तात्पर्य यह कि बन्धु में रक्त सम्बन्ध का भाव समाहित होता है परोक्ष रूप से ही। अतएव घोष यादवों का अंग हैं । महाभारत के "अंशावतरण नामक उपपर्व में उपरिचर वसु जो चेदि-देश के राजा थे। जिनके पाँच पुत्र थे। __________________ १-बृहद्रथ जिसे मगध का राजा नियुक्त किया और दूसरे पुत्र कि नाम प्रत्यग्रह तीसरा कुशाम्ब जिसे (मणिवाहन) भी कहा गया , चतुर्थ पुत्र मावेल्स और पञ्चम पुत्र का नाम यदु था । जो युद्ध में किसी से पराजित नहीं होता था। देखें निम्नलिखित श्लोक - "संपूजितो मघवता वसुश्चेदीश्वरो नृप:। पालयामास धर्मेणचेदिस्थ: पृथिवीमिमाम्।।२८।।" अर्थ •-इन्द्र के द्वारा सम्मानित चेदिराज उपरिचरवसु ने चेदिदेश में रहकर इस पृथ्वी का धर्म पूर्वक पालन किया।२८। _________ इन्द्रपीत्या चेदिपतिश्चकारेन्द्रमहं वसुः।पुत्राश्चास्य महावीर्याः पञ्चासन्नमितौज:।२९। अर्थ •-इन्द्र की प्रसन्नता के लिए उपरिचर वसु इन्द्र महोत्सव मनाया करते थे उनके अनन्त बलशाली पाँच पुत्र हुए।२९। "नानाराज्येषु च सुतान्स सम्राडभ्यषेचयत्।महारथो मागधानां विश्रुतो यो बृहद्रथः।३०।।अर्थ •-सम्राट उपरिचर वसु ने विभिन्न राज्यों पर अपने पुत्रों को अभिषिक्त कर दिया उनमें महारथी बृहद्रथ मगध देश का राजा हुआ।३०। "प्रत्यग्रहः कुशाम्बश्च यमाहुर्मणिवाहनम्। मावेल्लश्च यदुश्चैव राजन्यश्चापराजितः।।३१।अर्थ •-द्वितीय पुत्र (प्रत्यग्रह) तृतीय (कुशाम्ब) जिसे (मणिवाहन) भी कहते थे चतुर्थ पुत्र (मावेल्ल) और पञ्चम पुत्र का नाम (यदु) था ।३१। "महाभारत आदिपर्व अँशावतरण नामक उपपर्व का तिरेसठवाँ अध्याय के श्लोक २९-३०-३१ -यदु के विषय में परस्पर विरोधाभास है। प्रत्यग्रहः कुशाम्बश्च यमाहुर्मणिवाहनम्। मत्सिल्लश्च यदुश्चैव राजन्यश्चापराजितः।। उनमें महारथी बृहद्रथ मगध देश का विख्यात राजा हुआ। दूसरे पुत्र का नाम प्रत्यग्रह था, तीसरा कुशाम्ब था, जिसे मणिवाहन भी कहते हैं। चौथा मावेल्ल था। पांचवा राजकुमार यदु था, जो युद्ध में किसी से पराजित नहीं होता था। राजा जनमेजय! महातेजस्वी राजर्षि वसु के इन पुत्रों ने अपने-अपने नाम से देश और नगर बसाये। पांचो वसु पुत्र भिन्न-भिन्न देशों के राजा थे और उन्होंने पृथक- पृथक अपनी सनातन वंश परम्परा चलायी। हरिवंश पुराण को विष्णु पर्व में वर्णित हर्यश्व पुत्र यदु को भी पुरुवंशी बताना एक प्रक्षेप ही है । यह बात बिना किसी शास्त्रीय सिद्धान्त के ही लिखमारी है। क्यों कि पुरु तो ययाति पुत्र यदु के पूर्वज नहीं थे अपितु अनुज ही थे। और हर्यश्व सूर्यवंशी इक्ष्वाकु के पुत्र थे। जिसमें कोई पुरु नाम के राजा नहीं हुए।
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