फारसी में इसे हाज़त-फ़राग़त कहते हैं और हिन्दी में शंका समाधान... क्या कुछ ऐसे शब्दों की मिसालें गिनाई जा सकती हैं जो स्थानवाची हैं मगर उनका इस्तेमाल पदार्थ के संदर्भ में भी होता है? ज्यादा दिमाग़ लगाने की ज़रूरत नहीं है। मल त्याग से संबंधित जितने भी स्थान हैं उनका प्रयोग विष्ठा या मल के रूप में भी धड़ल्ले से होता है। इस क्रम में टट्टी, टॉयलेट, शौचालय, पाखाना या बाथरूम जैसे शब्द खास हैं। टट्टी का अर्थ होता है बांस की फट्टियों या टाट की चिक, पर्दा या पतली दीवार। टट्टी अपने आप में वह स्थान है जहां आड़ हो, जहां नित्यकर्म से निवृत्त हुआ जाता है। मगर बोलचाल में विष्टा का पर्याय ही टट्टी हो गया है। इससे जुड़े कुछ महत्वपूर्ण मुहावरे हैं जिनमें आड़ संबंधी अर्थ प्रकट होता है, जैसे- धोखे की टट्टी यानी ऊपर से आकर्षक पर भीतर से कुछ और या छुप कर वार करनेवाला आवरण। टट्टी की ओट लेना यानी छुपना या न मिलने के बहाने बनाना। इधर हंसी-ठट्ठा में शौच क्रिया के लिए टटियाना और इसकी शंका के लिए टटास जैसे शब्द भी बना लिए गए हैं। इसी तरह शौचालय शब्द में लगे “आलय” से ही इसमें स्थान या आश्रय का भाव स्पष्ट है। मगर शौच का अर्थ भी विष्ठाहो गया जबकि मूल आशय अशौच से मुक्ति था। इसी तरह अंग्रेजी में यूं तो टॉयलेट जाया जाता है मगर हिन्दी में टॉयलेट “किया” भी जाता है और “पड़ा” भी रहता है। टट्टी शब्द समूचे भारतीय उपमहाद्वीप में बोला, समझा जाता है। उत्तर में नेपाल से लेकर अफ़गानिस्तान तक लोग इसका इस्तेमाल विष्ठा के अर्थ में ठाठ से करते हैं। टट्टी एक पदार्थ है जबकि अपने मूल स्वरूप में यह स्थानवाची शब्द है। टट्टी शब्द की गहराई में जाएं पता चलता है कि खुले आम हगने के लिए बदनाम हम भदेस भारतीयों नें ही इस नितांत आवश्यक निजी कर्म के लिए आड़ का आविष्कार भी किया था, जिसे संस्कारी भाषा में आज टॉयलेट या शौचालय कहा जाता है। सार्वजनिक सेवा के बतौर इन कामों के लिए सुविधाएं या प्रसाधन जैसे शिष्ट शब्द भी मिलते हैं। यूं हम हिन्दुस्तानी इस नित्यकर्म को प्रकृति की सोहबत में करने के आदी रहे हैं। इसके लिए भी दिशा-मैदान जैसा संस्कारी शब्दयुग्म इस्तेमाल होता रहा। उर्दू-फारसी में इसे हाज़त फ़राग़त कहते हैं जिसका सही हिन्दी अनुवाद होता है शंका समाधान। आमतौर पर मूत्रत्याग के लिए लघुशंका शब्द का खूब प्रयोग होता है। मराठी में इसे लघवी कहते हैं। पर शंका अगर बड़ी हो तो उसे क्या कहा जाएगा? जाहिर है टट्टी जाने के लिए हमने दीर्घशंका शब्द भी बना लिया। हाज़त-फ़राग़त में इन दोनों शंकाओं से निवृत्त होने के साथ ही साधारण अर्थों में हाथ-मुंह धोने का भाव भी निहित है जिसे चालू हिन्दी में अब फ्रेश होना कहा जाता है। यूं देखें तो हाज़त फ़राग़त की अर्थवत्ता ज्यादा व्यापक है। टट्टी शब्द की व्युत्पत्ति टाट यानी जूट का पर्दा या ठट्ठर > टट्टर > टाटी >टट्टी से बताई जाती है। टट्टी का अर्थ होता है टाट से बना हुआ छोटा कक्ष या कोई आड़। हिन्दी भाषी सभी क्षेत्रों में टाट शब्द खूब बोला समझा जाता है। टाट यानी जूट के तन्तुओं से बना हुआ मोटा कपड़ा जिसका इस्तेमाल आमतौर पर अनाज भरने की थैलियों के लिए होता है। निर्धनों के झोपड़े पर पर्दे का काम भी यह टाट का टुकड़ा करता रहा है। सो टाट उस वस्तु या पदार्थ का नाम है जो निजता सुरक्षित रखने के लिए आड़ प्रदान करता है। पुराने ज़माने में बस्तियों में नित्यकर्म के लिए जूट से बने इसी टाट से आड़ बनाई जाती थीं। जॉन प्लैट्स के कोशानुसार यह बना है संस्कृत के तन्त्र में इका प्रत्यय लगने से। तन्त्र+इका > तन्त्रिका >टट्टिका >टट्टिआ > टाटी या टट्टी, यह क्रम रहा तन्त्रिका के टट्टी में बदलने का जिसका अर्थ हुआ वनस्पति तन्तुओं से बुना हुआ मोटा कपड़ा। हालांकि हिन्दी शब्दसागर में टट्टी की दो संभावित व्युत्पत्तियां बताई गई हैं। पहली व्युत्पत्ति है तटी जिसका अर्थ ऊंचा किनारा या ऊंची बाड़। दूसरी व्युत्पत्ति है स्थातृ। यह शब्द स्थ् धातु से बना है जिसमें स्थिरता या आधार का भाव है। स्थातृ से ही बना है ठठरी (ठाट्ठरी > ठठरी > ठटरी) जिसका अर्थ होता है कंकाल, ढांचा या पंजर। गौर करें कि मनुष्य का शरीर अस्थियों के ढांचे पर ही है। अस्थिपंजर के रूप में किसी भी जीव की देह को ठठरी कहा जाता है। स्थातृ का देशज रूप ही ठाठ बना। ठाठ का असली अर्थ है घास-फूस या बांस के जरिये बनाया गया कोई ढांचा जिसे सब तरफ से ढक कर कोई आश्रय या निर्माण किया जाए। ठाट्ठरी से इसका रूप ठट्ठर हुआ और फिर टट्टर जिसका अर्थ ओट या रक्षा के लिए बांस की फट्टियां जोड़ कर बनाया गया ढांचा। तन्त्रिका में जहां बुनावट का भाव है वहीं स्थातृ में स्थिरता या ढांचे का भाव है। घर के एक स्थायी हिस्से के तौर पर टाट से बनी आड़ या ओट की तुलना में स्थातृ से बने ठट्टर या टट्रर से टाटी या टट्टी की कल्पना अधिक तार्किक लगती है। अलबत्ता बांस की खपच्चियों को भी बुना ही जाता है और टाट को भी। नित्यकर्म से निवृत्त होने के लिए बांस से बनाए ढांचे पर चढ़ाई गई टट्टी के जरिए गांव देहातों में शौचालय बनाए जाते रहे। दिशा मैदान जाने की तर्ज पर ही कालांतर में लिए टट्टी जाना जैसे शब्द प्रयोग शुरू हुए। मूलतः इसमें नित्यकर्म के लिए बनाए गए पोशीदा मुकाम पर जाने का भाव था। टट्टी का अर्थविस्तार हुआ और बोलचाल में टट्टी जाना बाद का काम हुआ, हाज़त या शंका के अर्थ में पहले टट्टी आने लगी। इसी मुकाम पर आकर टट्टी जो स्थानवाची शब्द था, पदार्थ या संज्ञा मे तब्दील हो गया। पंजाबी में दस्त के अर्थ में कई बार टट्टियां लगना कहा जाता है। टट्टी का यह बहुवचनदिलचस्प है। हालांकि यहां मात्रा पर नहीं, क्रिया की आवृत्ति पर जोर है। मल या विष्ठा की तरह अब जगह जगह “टट्टी” की मौजूदगी देखी जा सकती है। हमें यह गर्वबोध भी नहीं रहा कि प्राचीनकाल में विकसित होते जनसमूहों ने हाज़त फ़राग़त के लिए एक स्थान नियत किया था जो हमारे सभ्य होते जाने के शुरुआती प्रतीकों में था। मगर अब ये हाल है कि बिना टट्टी लगाए अर्थात आड़ में गए देशभर के समूचे रेलवे ट्रैक को भदेस भारतीयों ने विराट खुले शौचालय में बदल दिया है। अंग्रेजी में शौचालय को टॉयलेट toilet कहते हैं जिसका अर्थ भी टट्टी जैसा ही है। अंग्रेजी का टॉयलेट बना है मध्यकालीन फ्रैंच के toilette से जिसके मूल में है टॉइल toile, जो बना है लैटिन के tela से। इसका अर्थ बांस की चटाई या टाट जैसा कपड़ा होता है जिसे बुना गया हो। इस तरह से टॉयलेट का अर्थ भी प्रसाधन या तैयार होने की जगह होता है जिसमें समय के साथ स्नानागार या शौचालय का भाव समा गया। मूल रूप में टट्टी और टॉयलेट एक ही हैं।
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