मंगलवार, 28 मार्च 2017

दुहिता दो कुलों की हित- कारणी --

       
दो कुलों की हित कारणी है
           दुहिता      _____________________

महर्षि दयानन्द ने निरुक्त को आधार मान कर यह व्युत्पत्ति दुहिता शब्द की ===दूरे हिता इति दुहिता अर्थात् दूर देश में ही जिसका हित सम्भव है की है ... परन्तु यह व्युत्पत्ति आनुमानिक तथा कालपनिक है , दुहिता शब्द की वास्तविक व सार्थक व्युत्पत्ति योगेश कुमार रोहि ने भारोपीय भाषा के तीन हज़ार शब्दों की व्युत्पत्ति श्रृंखला के सन्दर्भ में की है .......जो दुहिता जीवन की वास्तविकता को अभिव्यञ्जित करती है ! परन्तु इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि वे महर्षि दयानन्द के प्रतिद्वन्द्वी हैं .... महर्षि दयानन्द के आर्य - समाजीय सुधारात्मक प्रयासों के कारण ही आज भारतीय संस्कृति जीवन्त है --- अन्यथा हम्हें वेदों में भी विज्ञान है .... इस पर विचार विश्लेषण करने का अवसर ही नहीं मिलता !!!!!! "निरूक्त में लिखा है कि कन्या का 'दुहिता' नाम इस कारण से है कि इसका विवाह दूर देश (स्थान) में होने से हितकारी होता है, निकट करने में नहीं |" ~/~ स्वामी दयानन्द सरस्वती ( सत्यार्थ प्रकाश चतुर्थ समुल्लास ) ... **************** हमारी व्युत्पत्ति के अनुसार .दुहिता = !!! द्वे हिते यया सा पितृ ग्रहेव पति ग्रहेव च इति दुहिता कथ्यते ..!!! अर्थात् जिसके द्वारा पति तथा पिता दौनौं के गृहों ( कुलों )का हित सम्पादित होता है .. वह दुहिता है --- देवर शब्द की व्युत्पत्ति के साम्य पर ... वास्तव में पुत्री इसी लिए दुहिता संज्ञा से अभिहित की गयी है सामाजिक तथा सांस्कृतिक विश्लेषणों से यह बात पूर्ण रूपेण सार्थक व प्रमाणित भी है ... अत: प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण की आवश्यकता नहीं .... दुहिता का सबसे अधिक हित भाव पिता के ही प्रति होता है तथा उसके बाद पति के हितभाव के प्रति ... ....समस्त भारत - यूरोपीय भाषाऔं में यह शब्द विद्यमान है फारसी में दुख़्तर के रूप में अंग्रेजी में डॉटर Doughter ग्रीक में दुग्दर आदि ... ज्ञान की गहराईयों में प्रेषित यह महान सन्देश योगेश कुमार रोहि की जानिब से.. सम्पर्क- सूत्र 8077160219 ☎...... ------प्रेरणा- श्रोत .. श्रद्धेय वीत- राग महामनस्वि स्वामी मुकेशानन्द पिप्पराचार्य चौदह सौ इक्यावन उपकार- मूर्ति ..वञ्चितो की करते पूर्ति ............................. आज़ादपुर ग्राम की पावन धरा को अपने स्नेहिल उदार - व्यवहार से कृतार्थ कर रहे हैं .. समस्त जिज्ञासु भक्तों से निवेदन है कि कृपया ..पूर्व- सूचना देकर ही सम्पर्क करे ... क्यों कि स्वामी मुकेशानन्द जी नित्य- क्रिया में संलग्न रहते हैं ________________________ 🌴. ........ 🌾. ..🌱 (( दो कुलों की हित- कारिणी है दुहिता---)) _______________________ ********************* _____________________ महर्षि दयानन्द ने निरुक्त को आधार मान कर यह व्युत्पत्ति दुहिता शब्द की ===दूरे हिता इति दुहिता अर्थात् दूर देश में ही जिसका हित सम्भव है परन्तु यह व्युत्पत्ति आनुमानिक तथा काल्पनिक है .... निश्चित रूप इस प्रकार आनुमानिक व्युत्पत्ति करने के मूल मे तत्कालिक समाज की पुत्रीयों के प्रति भावना ध्वनित होती है ... दुहिता शब्द की वास्तविक व सार्थक व्युत्पत्ति योगेश कुमार रोहि के द्वारा भारोपीय भाषा के तीन हज़ार शब्दों की व्युत्पत्ति श्रृंखला के सन्दर्भ में है ... परन्तु इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि वे महर्षि दयानन्द के प्रतिद्वन्द्वी हैं ! महर्षि दयानन्द वस्तुत दुहिता शब्द की यह व्युत्पत्ति स्वयं नहीं की, अपितु यास्क की व्युत्पत्ति उद्धृत की है .. महर्षि दयानन्द के आर्य- समाज के रूप में सुधारात्मक प्रयासों के कारण ही आज भारतीय संस्कृति जीवन्त है ! अन्यथा हम्हें इन तथ्यों पर विचार विश्लेषण करने का अवसर ही नहीं मिलता कि वेदों में भी विज्ञान है ....... ____________________ "निरूक्त में लिखा है कि कन्या का 'दुहिता' नाम इस कारण से है कि इसका विवाह दूर देश (स्थान) में होने से हितकारी होता है, निकट करने में नहीं |" ~/~ स्वामी दयानन्द सरस्वती ( सत्यार्थ प्रकाश चतुर्थ समुल्लास ) ...योगेश कुमार रोहि की व्युत्पत्ति के अनुसार .दुहिता = . .... !!! द्वे हिते यया सा पितृ ग्रहेव पति ग्रहेव च इति दुहिता कथ्यते ..!!! अर्थात् जिसके द्वारा पति तथा पिता दौनौं के गृहों (कुलों )का हित होता है .. वह दुहिता है ----------------------------------- वास्तव में पुत्री इसी लिए दुहिता संज्ञा से अभिहित की गयी है यह सामाजिक तथा सांस्कृतिक विश्लेषणों स भीे यह बात पूर्ण रूपेण सार्थक व प्रमाणित भी है .... दुहिता का सबसे अधिक हित भाव पिता के ही प्रति होता है तथा उसके बाद पति के हितभाव के प्रति .समर्पित है दुहिता -----
       
          (विचार-विश्लेण---योगेश कुमार रोहि ) ____________________________________

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