श्रीमद्भगवद्गीता-
अध्याय 18/42
शमो दमस्तप: शौचं कांतिरर्जवमेव च।
ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ॥ 42॥
समानार्थी शब्द
शमः – शांति ; दमः – आत्म-संयम ; तपः – तपस्या ; शौचम् – पवित्रता ; क्षान्तिः – सहनशीलता ; आर्जवम् – ईमानदारी ; एव – निश्चय ही ; च – तथा ; ज्ञानम् – ज्ञान ; विज्ञानम् – बुद्धि ; आस्तिक्यम् – धार्मिकता ; ब्रह्म – ब्राह्मण का ; कर्म – कर्तव्य ; स्वभावजम् – अपने स्वभाव से उत्पन्न हैं ।
अनुवाद
शांति, आत्म-संयम, तपस्या, पवित्रता, सहिष्णुता, ईमानदारी, ज्ञान, बुद्धि और धार्मिकता - ये ब्राह्मण के स्वाभाविक गुण हैं।
उपर्युक्त श्लोक प्रक्षिप्त ( नकली) है क्योंकि सभी ब्राह्मण जो ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न ब्रह्मा की सन्तान हैं। उनमें जन्म से ही शान्ति आत्म संयम तपस्या पवित्र आदि उपर्युक्त गुण कभी नहीं होते हैं ।
स्वयं श्रीमद्भगवद्गीता के निम्नलिखित श्लोक इसका विरोध करते हैं-
श्रीमद्भगवद्गीता में ब्राह्मण की उत्पत्ति को सीधे ब्रह्मा से नहीं, बल्कि गुणों और कर्मों के विभाजन से जोड़ा गया है, जैसा कि गीता के चौथे अध्याय (श्लोक \(4.13\)) में भगवान कृष्ण कहते हैं कि "चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः"। यह बताता है कि वर्ण व्यवस्था गुणों (जैसे ब्राह्मणत्व के लिए 'शम' और 'दम') और कर्मों पर आधारित है, न कि केवल जन्म पर। हालांकि, कुछ पारंपरिक ग्रंथों और पौराणिक कथाओं में ब्राह्मणों को ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न माना गया है,
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