बचपन में जब कई बार भटकाव की हालातों में गुजरते हुए जीवन निरर्थक और लक्ष्य हीन प्रतीत हो रहा था। मन के भटकाव और उन्माद के आवैग जीवन की सार्थकता को विलुप्त कर रहे थे। तब कहीं से एक बार बचपन में श्रीमद्भगवद्गीता गीताप्रेस की पुस्तक पढ़ने को अचानक सुयोग प्राप्त हो गया ।
श्रीमद्भगवद्गीता के कुछ अध्यन करने के पश्चात लगा कि जीवन की सभी समस्याओं का निदान और असली ज्ञान हम्हे मिल गया है। जो जीवन की चिर पुरातन समस्याओं का सरल समाधान है।
श्रीमद्भगवद्गीता के कुछ श्लोक ने बहुत प्रभावित किया - श्रीमद्भगवद्गीता का सांख्ययोग और भक्तियोग मूलक तथ्यो की व्याख्या तथा मन बुद्धि और आत्मा के स्वरूप की अर्थ समन्वित व्याख्या- हम्हें जीवन के निर्माण प्रक्रिया के यथार्थ के सन्निकट प्रतीत हुई। परिणाम स्वरूप श्रीमद्भगवद्गीता ने जीवन को एक सकारात्मक ऊर्जा दी-
प्राचीन भारतीय संस्कृति के अन्वेषक, अध्येता होने के साथ साथ भारतीय शास्त्रों में विशेषत: भारतीय दर्शन - वैशेषिक, सांख्य, तथा योग और वेदान्त के सैद्धान्तिक विवेचक के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करने के लिए भारतीय पुराणों का सम्यक् अनुशीलन करना ही उचित समझा महाभारत" वाल्मीकि-रामायण महाकाव्योॉ के अतिरिक्त भारतीय आध्यात्मिकता के दिग्दर्शन उपनिषदों के अध्येता के रूप में जीवन का अधिकांश समय व्यतीत किया है। " योगेश कुमार रोहि" ने दीर्घ काल तक अपने गृह क्षेत्र में ही रहकर भारतीय संस्कृति के अतिरिक्त विश्व की भारोपीय संस्कृतियों का सतत् अध्ययन कार्य किया है।
श्री माताप्रसाद" जी जिनका जीवन परिचय" संक्षेप में प्रस्तुत है।'उत्कृष्ट समाजसेवी तथा "राधाकृष्ण के युगल स्वरूप के अनन्य उपासक -आदरणीय ज्येष्ठ भ्राता इ० "श्री माताप्रसाद" जी ने भी अपने को आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर किया ।
पिता श्री खुशीराम एक साधारण किसान हैं परन्तु फिर भी विकट और अभाव ग्रस्त परिस्थितियों में भी वे परिवार में आर्थिक सामञ्जस्य और सन्तुलन बना ऐ रखने में सक्षम सिद्ध हुए।
मथुरा वृन्दावन के कृष्ण की लीला - भूमि व जन्मस्थान होने के कारण ये लगभग वर्ष में प्रति माह वृन्दावन की यात्रा के लिए अपने अभियान्त्रिकीय कार्य- भार में व्यस्त रहते हुए भी समय निकाल लेते थे। दिवंगत शेरा यादव उर्फ गिरीश यादव माताप्रसाद जी की सांस्कृतिक यात्रा में मार्ग- दर्शक और गाइड की भूमिका में रहते थे।
प्रसाद जी में राधाकृष्ण के युगल स्वरूप के प्रति अतीव भक्ति और सात्विक श्रद्धा सदैव प्रवाहित रहती है। भगवान श्रीकृष्ण के चरित्र मूलक नवीन तथ्यों को समाज के प्रति प्रस्तुति के लिए ये सदैव उत्साहित रहते हैं।
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