अतस्तु भगवता कृष्णेन हिंसायज्ञं कलौ युगे समाप्य नवीनमतो विधीयते। 3.4.19.६० कृष्ण द्वारा यज्ञ में बलि पर रोक-
भाराक्रान्तां महीं योऽसावुज्जहार महाविभुः
धर्मं संस्थापयामास पापं कृत्वा सुदूरतः ॥१२॥
तस्मै कृष्णाय देवाय नमोऽस्तु बहुधा विभो ।
दुष्टयज्ञविघाताय पशुहिंसानिवृत्तये ॥ १३ ॥
अनुवाद:-
पुलस्त्यनन्दन दुराचारी राक्षस रावण के सिर काटने में परम पटु, अनन्त पराक्रम वाले आप दशरथपुत्र श्रीमान् राम को नमस्कार है ॥ १०१/२ ॥
राजाओं के लिये कलंकस्वरूप कंस, दुर्योधन आदि दैत्यों के द्वारा भाराक्रान्त पृथ्वी का जिन महाप्रभु ने उद्धार किया तथा पापों का अन्त करके जिन्होंने धर्म की स्थापना की, हे विभो ! उन आप श्रीकृष्णभगवान् को बार-बार नमस्कार है ॥ ११-१२१/२ ॥
दुष्ट यज्ञों को विनष्ट करने तथा पशुहिंसा रोकने के लिये जिन्होंने अवतार धारण किया; उन आप बुद्धदेव को नमस्कार है ॥ १३१/२ ॥
सम्पूर्ण जगत् में म्लेच्छों का बाहुल्य हो जाने पर तथा दुष्ट राजाओं द्वारा प्रजाओं को पीड़ित किये जाने पर आपने कल्किरूप धारण किया था; उन आप देवाधिदेव को नमस्कार है ॥ १४१/२
किंतु १२-१३ तक के श्लोको को एक साथ पढ़ने पर धर्म की स्थापना तथा पशु हिंसा रोकने के लिए श्रीकृष्ण का अवतार सिद्ध होता है।
जबकि इसमें १३ वें श्लोक की अन्तिम पंक्ति को १४ वें श्लोक में जोड़कर अनुवाद कर्ता पशुहिंसा वाली बात को खींच कर बुद्ध से जोड़ता है। ये विचार करने वाली बात है।
देवी भागवत पुराण स्कन्ध-१० / अध्याय ५ पर देखें उपर्युक्त हिंसा विरोधी मत कृष्ण से सम्बन्धित मानना चाहिए क्यों तमाम पुराण कृष्ण को पशुबलि का विरोधी ही वर्णित करते हैं।
इन्द्र उपासक पुरोहित शास्त्रों में विधान बना रहे थे कि इन्द्र यज्ञ विना पशु बलि के पूर्ण नहीं माना जा सकता है। तब उन्होंने निम्नलिखित श्लोक बनाये भविष्य पुराण में स्पष्ट रूप से इनका वर्णन है।
हिंसायज्ञैश्च भगवान्स च तृप्तिमवाप्नुयात् । स च यज्ञपशुर्वह्नौ ब्रह्मभूयाय कल्पते । । तस्य मोक्षप्रभावेन महत्पुण्यमवाप्नुयात् । ५८।
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त्रेतायुग में ही इन्द्र आदि देवों के यज्ञ में जब अनेक पशुओं का यज्ञ-वेदी पर वध किया जाता था । तब द्वापर युग के अवसान बिन्दु( समाप्ति) पर भगवान श्रीकृष्ण ने देवयज्ञों और पशु बलियों के विरुद्ध उद्घोष किया-
अनुवाद:-इसी कारण से भगवान -कृष्ण ने सभी देव-यज्ञों विशेषत: इन्द्र के यज्ञों पर रोक लगा दी क्यों कि यज्ञों में निर्दोष पशुओं की हिंसा होती। कृष्ण ने कलियुग में हिंसात्मक यज्ञों को समाप्त कर नये मत का विधान किया ।६०।
अनुवाद:-कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि पर अन्नकूट का भूतल पर विधान किया।61।
देवराजस्तदा क्रुद्धो ह्यनुजं प्रति दुःखितः । वज्रं सप्लावयामास तदा कृष्णः सनातनीम् । । प्रकृतिं स च तुष्टाव लोकमङ्गलहेतवे ।६२।
अनुवाद:-इस अन्नकूट से क्रोधित होकर देवराज इन्द्र कृष्ण पर क्रोधित हो गये तब उन्होंने व्रजमण्डल को मेघ द्वारा डुबो देने का कार्य प्रारम्भ कर दिया। तब कृष्ण ने सनातन प्रकृति की आराधना की इससे वह भगवती प्रकृति लोक कल्याण को लिए प्रसन्न हो गयीं ।६२।
अनुवाद:-तब उस शक्ति द्वारा कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत धारण किया । तब से उनका नाम गिरिधर हो गया और वे सबके पूज्य हो गये।64।__________________________
राधाकृष्णस्स भगवान्पूर्णब्रह्म सनातनः। अतः कृष्णो न भगवान्राधाकृष्णः परः प्रभुः।६५।
अनुवाद:-वे राधाकृष्ण भगवान् सनातन पूर्णब्रह्म हैं। तभी तो कृष्ण को केवल कृष्ण नहीं कहते हैं।वे राधाकृष्ण भगवान् कहे गये हैं यह संयुक्त नाम ही पूर्ण ब्रह्म का वाचक है। वे सबसे परे तथा प्रभु ( सर्व समर्थ) हैं।६५।
इस प्रकार श्री भविष्य पुराण को प्रतिसर्गपर्व चतुर्थ खण्ड अपरपर्याय"कलियुगीन इतिहास का समुच्चय में कृष्ण चैतन्य यज्ञाञ्श तथा शिष्यबलभद्र-अंश विष्णु स्वामी तथा मध्वाचार्य वृतान्त वर्णन नामक उन्नीसवाँ अध्याय समाप्त-★
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