विदित सूत्रों के अनुसार जाटव शब्द का प्रकाशन 1922 में प्रसिद्ध इतिहासकार देवीदास ने दिल्ली के एक जन-जातिय अधिवेशन में महाराष्ट्र के जाधव /जादव शब्द का पञ्जाबी रूप जाड्डव को जाटव रूप में व्याख्यायित किया ।
अर्थात् जादव होयशल अथवा घोसले के रूप में साहु जी महाराज का जातीय विशेषण था ।
जो शिवाजी महाराज के पौत्र (नाती )थे ।
1656 के समकक्ष पुणे के ब्राह्मणों ने शिवाजी महाराज का राज तिलक उन्हें शूद्र मान कर करने से मना किया था ।
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