🌊रूढ़ि पथों पर चलना
तुम्हारी
क्या मानव मजबूरी है ?
सत्य तुम्हारा व्यक्तिगत है
तो ये सिद्धि अधूरी है !
तुम कहते हो यही सत्य ?
हमारी ज़ानकारी पूरी है !
सिद्ध करो इसे सत्य - धरा पर
यहआज बहुत जुरूरी है !!
तुम हमको कोई पथी कहो
यह स्वतन्त्र विचार तुम्हारा है !
तर्कों से हम्हें संतुष्ट करो .
यह सिद्धान्त हमारा है !!
तुमने ख़ुद को सत्य कहा .
रोहि नही कहता तुम झूँठे हो !
मध्य में खुद को खड़ा करो
तुम एक विन्दु से छूठे हो !!
ये तुम्हारा विद्वेष है .बन्धु !
जो तुम हमसे रूठे हो.
तुम अभी प्रमाणित करदो सत को .
लक्ष्य से फिर क्यों दूरी है !!!
सत्य सार्व भौमिक है केवल
यह वख़्त की माँग जुरूरी है !!!🐃. 🐇🌴🌾🌾🌾... योगेश कुमार रोहि का प्रस्तुत उद् गार अपने दोष अन्वेषक मार्ग दर्शकों को समर्पित है ! काव्यात्मक रूप में ---आमीन् !🙏🙏👏👏👏🙏
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