रविवार, 7 अक्टूबर 2018

देव संस्कृति का उदय और आर्य शब्द की अवधारणा -

--अल्लाह शब्द अरबी में अल-इलाह के रूप में है जो हिब्रू बाइबिल के के इलॉहि एवं एलॉहिम का रूपान्तरण है एल /अलि सैल्टिक  जन-जातियों  का आदि देव था  ---
      और यह हाथ में आरा लिए हुए युद्ध का देवता है ।
आर्य शब्द अपने प्रारम्भिक काल में वीरता सूचक विशेषण है। असुर संस्कृति के अनुयायी ईरानी स्वयं को आर्य कहते हैं ; और देवों को दुष्ट व दुरात्मा कहते हैं ।
और ईरान शब्द स्वयं आर्याण का तद्भव हो तो आर्य शब्द का -जाति सूचक विशेषण होना इतिहास कारों की आर्य शब्द के जन-जातिगत प्रायौगिकता में  एक भ्रान्ति मूलक अवधारणा ही है ।  
   आर्यों का ईश्वर अरि संज्ञा से अभिहित था !
और आर्य चरावाहे थे । जिन्होंने कृषि और ग्रामीण संस्कृति को जन्म दिया । ।
     इस लिए आर्यों को ईश्वर (अरि) का पुत्र भी कहा गया । जैसा  कि व्युत्पत्ति- के द्वारा भी सिद्ध है ।
      ऋ (अर् ) + ण्यत् -- आर्य --{ वीर अथवा यौद्धा ।
वैदिक सन्दर्भों में अरि ईश्वर का वाचक शब्द है ।
  तारानाथ वाचस्पत्य ने ऋग्वेद के प्रथम मण्डल
के १२६ वें सूक्त के ५वाँ श्लोकाँश (ऋचा) को इस सन्दर्भ में उद्धृत भी  किया है ,जो  दृष्टव्य है !
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"पूर्वामनु प्रयतिमा ददे वस्त्रीन् युक्ताँ  अष्टौ
            अरिधायसो गा: ।
सुबन्धवो ये विश्वा इव  व्रा
          अनस्वन्त:श्रवण एषन्त पज्रा: ।५।
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   वाचस्पत्य कोश के अनुसार ...
इस का स्पष्टीकरण इस प्रकार है -- कि  अरिभि:अर्थात्  ईश्वरै: धार्य्यते - धा -
असुन पृ० युट्
ईश्वर धार्य्ये---- अष्टौ अरि धायसो गा:
अरिधायस: " अरिभि: ईश्वरै: धार्य्यमाणा " -- 
(सायण भाष्य )
अरि शब्द    "ऋृ " धातु मूलक है । ऋ + इन्  =अरि - ऋ- गतिप्रापणयो: हिंसायाम् च - गमन करना, प्राप्त करना तथा हिंसा करना ।
अरि - शब्द के परवर्ती अर्थ  हैं ! चक्र का अरा ,   चक्र , तथा शत्रु( वैरी) आदि,  परन्तु अरि का शत्रु अर्थ ही कालान्तरण में अधिक  रूढ़ होकर रह गया है ।
.........
देव (सुर) संस्कृति के प्रादुर्भाव का प्रारम्भिक स्तर स्वीडन से हुआ , जिसे प्राचीन नॉर्स भाषाओं में स्वेरिग (sverige)  अथवा स्वेरिज  ( स्वर्ग )कहा गया है ।
यह नाम वहाँ पर प्राचीन इण्डो - जर्मनिक जन- जाति
(Sviar) स्वीअर अवस्थित रहने के कारण पड़ा   ,
जिसे भारतीय पुरातन - कथाओं में सुर अथवा देव भी कहा गया है ।
सुर एक मूलत: जर्मन आर्य जन- जाति है ! इस का स्थान होने के कारण स्वीडन का नाम स्वेरिज  पड़ा ।
जिसे भारतीयों ने स्वर्ग कहा !
जहाँ छ: मास का दीर्घ कालिक दिवस तथा छ: मास की दीर्घ कालिक रात्रियाँ नियमित होती हैं ।
स्वयं मनु- स्मृति के काल गणना खण्ड में भी
सुर ( देवों) के दिन - रात का वर्णन किया गया है ।
जिनमें भारतीय आर्यों के प्रारम्भिक आवास की धूमिल स्मृतियाँ अवशिष्ट हैं !
भारतीय आर्यों के सांस्कृतिक  प्रकरणों में स्वर्ग - नरक की अवधारणाऐं यहीं से स्थापित हुईं ,
(Narke) एक स्वीडन का दक्षिणीय पार्श्ववर्ती स्थान है ।
जो शीत के प्रभाव से (numbness )अथवा जड़ ही रहता है ।
अपना संकीर्णताओ(Narrowness)के कारण भी यह नरक (neeric) है l
प्रमाणों के और भी तथ्य हैं ।
     यम का वर्णन नॉर्स माइथॉलॉजी प्रॉज-एड्डा में Ymir
अथवा (Aurgelmir ) है जिसके मास से पृथ्वी तथा रक्त से समुद्र निर्मित हुए नॉर्स माइथॉलॉजी प्रॉज-एड्डा में यम ऑडिन का ही भाई है ।
ग्रीक भाषा में नरक का अर्थ जड़ या शीतित होता है ।
संस्कृत में भी नार जल अथवा हिम का वाचक है ।
परन्तु हमारा विश्लेष्य विषय स्वर्ग तथा सुरों से है ।

लौकिक संस्कृत में भी  सुर देव का वाचक शब्द है
जिनमें स्व: ( On's own, self ) का भाव है ,वही स्वर् या  ( सुर ) है  --- अर्थात् जो स्वतन्त्र है वही सुर है  तथा रज (राज्य ) Rigion / Rike ------  Realm स्थान ... अर्थात् जहाँ सुरों का राज ( Rigion)वही स्वर्ग है ।
पुराना  फ्रेंच भाषा में यह शब्द rigion--( land )है !
लैटिन क्रिया Regere --निर्देशन करना ,राज्य करना ।
Regere का  past participle रूप ।regionem
यह रेजियों regio का कर्म कारक का रूप है ।
संस्कृत में राज ( रज + घञ् ) -- स्थान अथवा राज्य ( realm...
.......
सत्रवीं सदी में भी स्वीडन का नाम -- Swirge ,Swirge ,तथा swerghe  आदि रूपों भी  प्रचलित रहा है !
निश्चित रूप से प्राचीन स्वीडन जिसे स्वीलेण्ड (svealand ) अर्थात् स्वर/ सुर भूमि कहा जाता था ।
जो भारतीय आर्यों का स्वर्ग ही था।
हैमर पाष्ट के पास वह स्थानआज भी  है ।
और जहाँ छ: मास का दिवस  तथा छ: मास की दीर्घ कालीन  रात्रियाँ भी होती हैं ।
सबसे प्रबल प्रमाण यूरोप की समग्र सांस्कृतिक भाषाओं से संस्कृत भाषा का नब्बे प्रतिशत व्याकरणीय व शाब्दिक दृष्टि से साम्य दृष्टि- गोचर होना है --
........…
देव सूची  मेें भी आर्यों का आदि उपास्य अरि 
अर्थात् ईश्वर ही है । स्वयं ईश्वर शब्द भी Aesir- पुरानी नॉर्स भाषा में एसिर (ईश्वर) ईश/ आस Ass,As का बहुवचन रूप है । जो वेदों में असुर --- असु ( प्राण) से युक्त ईश्वरीय सत्ता का वाचक इस रूप में है .....
भारोपीय वर्ग की सुमेरियन भाषाऐं हित्ती तथा तोखारियन में क्रमश:हास( Hass) -- to procreate, give birth - जन्म देना अथवा उत्पन्न करना  | तथा
तोखारियन में As - produce के रूप में ईश अथवा असु शब्द ही हैं ...नॉर्स पुरा- कथा (mythology) प्रॉज-एड्डाआदि  में ईश तथा ईश्वर दौनों शब्द एक वचन तथा बहुवचन रूप में दैवीय सत्ता के वाचक हैं ।
परन्तु हमारा विश्लेष्य विषय वैदिक अरि शब्द है ।
अरि शब्द पैशाची असीरियन  तथा फॉनिशियन भाषा में  तथा पश्चिमीय एशिया की मैसॉपोटमिया की  संस्कृतियों में अलि अथवा एल रूप में परिवर्तित हो कर प्रतिष्ठित हो गया है ।
सुमेरियन संस्कृति से यह शब्द हिब्रू परम्पराओं में समायोजित हुआ ।
जिससे कालान्तरण में एल का बहुवचन रूप एलोहिम हुआ । तथा इलाह तथा अल् इलाह जैसे ईश्वर वाची शब्द भी यहीं अरब़ी संस्कृति में विस्थापित हुए औरअलि इल्लाह अल उल्लाह आदि रूपों में  विकसित हुए ।
कैन्नानाइटी संस्कृति  तथा मैसॉपोटमिया की सेरगॉन से पहले की संस्कृति में  में एल (el) सबसे बडा़ देव -सत्ता है ।
फॉनिशियन ,सीरियायी तथा उग्रेटिक तथा अक्काडियन , हिब्रू आदि संस्कृतियों में यह अरि ही एल हो गया है ।
पुरातन एमॉराइट तथा अक्काडियन भाषा में यह शब्द इसी (ila)  के रूप में है।
आरमेनियन भाषा में इलु के रूप में भी यह ईश्वर वाची है ।
नॉर्स माइथॉलॉजी में उल (Ull)--- god of archery and skiing"  के रूप में अरि ही है इस्लामीय शरीयत में तौहीद का प्रतीक अल्लाह वैदिक अरि का ही विकसित रूप है । तथा स्वयं तौहीद जिसके मूल में वाहिद शब्द विद्यमान है |
वाहिद शब्द भी  वैदिक शब्द वृहद् ---( ब्रह्म )का  रूपान्तरण है ।
जिसका अर्थ है (एक अनन्त ब्रह्म ) जो निरन्तर बढ़ा हुआ है .... संस्कृत भाषा में ब्रह् तथा व्रह् एक ही धातु के दो रूपान्तरण हैं ।बृहिर् (बृह्) -बृद्धौ शब्दे च
१/४९० (पाणिनि धातु पाठ) अन्यत्र   , वृह् - भासार्थ भाषार्थ वा
......................................................
लौकिक संस्कृत में अवतरित हरि शब्द भी अरि अथवा अलि के ही इतर रूप हैं----     आर्य शब्द अरि शब्द मूलक है .... आर्य कौन थे ? इस विषय पर एक बृहद् विश्लेषण प्रस्तुत है -- योगेश कुमार रोहि के गहन सांस्कृतिक शोधों पर आधारित ----
🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏💥💥💥💥💥💥💥💥 •••• भारत तथा यूरोप की लगभग सभी मुख्य भाषाओं में आर्य शब्द किसी न किसी रूप में है ही
विश्व इतिहास का यह सर्वविदित  तथ्य है ।
... ~•~ आर्य कौन थे  ?
  तथा कहाँ से उन्होंने प्रस्थान किया ।
ऐसे प्रश्न सदीयों से मानव इतिहास में जिज्ञासा के विषय रहे हैं । 🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏🌏💥💥💥💥💥💥💥💥 •••• भारत तथा यूरोप की लगभग सभी मुख्य भाषाओं में आर्य शब्द यौद्धा अथवा वीर के अर्थ में व्यवहृत है ! ………… पारसीयों पवित्र धर्म ग्रन्थ अवेस्ता ए जेन्द़  में अनेक स्थलों पर आर्य शब्द आया है जैसे –सिरोज़ह प्रथम- के यश्त ९ पर, तथा सिरोज़ह प्रथम के यश्त २५ पर …अवेस्ता में आर्य शब्द का अर्थ है ——-€ …तीव्र वाण (Arrow ) चलाने वाला यौद्धा —यश्त ८. स्वयं ईरान शब्द आर्यन् शब्द का तद्भव रूप है । ईरानी आर्यों की संस्कृति मैसॉपोटमिया की सुमेरियन शाखा असीरियन से अनुप्राणित है ये ईरानी
..  भारतीय आर्यों के ये आर्य चिर काल  सांस्कृतिक प्रतिद्वन्द्वी भी अवश्य रहे  !!
ये असुर संस्कृति के उपासक आर्य थे।
तो भारतीय देव संस्कृति के , यद्यपि देव तथा असुर शब्द अपने प्रारम्भिक काल में ईश्वरीय सत्ता के ही वाचक थे ।
परन्तु कालान्तरण में ये दो विरोधी रूपों में प्रकट हुए ।
देव शब्द का अर्थ ईरानीयों की भाषाओं में निम्न व दुष्ट अर्थों में रूढ़ हो गया ।
जबकि भारतीय आर्यों में असुर शब्द के अर्थ की दुर्गति हुई है । वैदिक सन्दर्भों में असुर का अर्थ  उच्च अर्थों में ही  है ।जो ईश्वर की सर्वोपरि सत्ता का वाचक है ।
व्युत्पत्ति-मूलक दृष्टि से असुर शब्द के अर्थ हैं -
१- प्राणवान् २- प्रकाशक ३- सत्तावान् ।
ऋग्वेद में असुर -- सूर्य ,अग्नि ,वरुण तथा शिव का भी वाचक है ।
…ईरानी तथा भारतीय समान रूप से  अग्नि के अखण्ड उपासक आर्य थे । यही इनकी सांस्कृतिक समझता का एक पक्ष है ।
… स्वयं ऋग्वेद में असुर शब्द उच्च और पूज्य अर्थों में है —-जैसे वृहद् श्रुभा असुरो वर्हणा कृतः ऋग्वेद १/५४/३. तथा और भी महान देवता वरुण के रूप में …त्वम् राजेन्द्र ये च देवा रक्षा नृन पाहि .असुर त्वं अस्मान् —ऋ० १/१/७४ तथा प्रसाक्षितः असुर यामहि –ऋ० १/१५/४. ऋग्वेद में और भी बहुत से स्थल हैं ...
जहाँ पर असुर शब्द सर्वोपरि शक्तिवान् ईश्वर का वाचक है .. पारसीयों ने असुर शब्द का उच्चारण ..अहुर ….के रूप में किया है….अतः आर्य विशेषण.. असुर और देव दौनो ही संस्कृतियों के उपासकों का था ….और उधर यूरोप में द्वित्तीय महा -युद्ध का महानायक ऐडोल्फ हिटलर Adolf-Hitler स्वयं को शुद्ध नारादिक nordic आर्य कहता था , और स्वास्तिक का चिन्ह अपनी युद्ध ध्वजा पर अंकित करता था ।
नॉरादिक ब्राह्मण समुदाय आज भी गुजरात में रहता है ।
वेदों मे भी यह तथ्य उच्च स्वर में ध्वनित है कि कि हमारे वीर (आर्य) उत्तरी में हुए ।
           "अस्माकं वीरा: उत्तरे भवन्ति
उत्तरी ध्रुव से आये होने से ये नॉरादिक कहलाए
  .....
सुर अथवा स्वीअर एक भारोपीय आर्य जन- जाति थी ।
जिसका सम्बन्ध जर्मनों तथा भारतीय आर्यों से समान रूप से था ।
दौनों के सांस्कृतिक प्रतीक भी समान ही थे ।जैसे भारतीय आर्यों में स्वास्तिक ।
विदित हो कि जर्मन भाषा में स्वास्तिक को हैकैन- क्रूज. (Haken- cruez )अर्थात् हुक - क्रॉस कहते थे ।
स्वयं जर्मनिक जन-जातियाँ भी भारतीयों के समान ओ३म् शब्द का उच्चारण ऑमी( omi )
नॉर्स माइथॉलॉजी प्रॉज-एड्डा में वुध के लगभग २०० नामों मे ऑमी omi भी एक नाम है
सैमेटिक भाषाओं में आमीन् (Amen )
के रूप में यह एक धार्मिक क्रियाओं एक उच्चारण होने वाले अव्यय (interjection) के रूप में है ।
जिसके अर्थ है - एसा ही हो ( एवमस्तु ) it be so
ऑमी शब्द को ..
  उत्तरी जर्मनों के प्राचीन धार्मिक साहित्य स्केलडिक एवम् एड्डिक संस्करणों में
के रूप में अपने सर्वोपरि व राष्ट्रीय देव वुध (woden)
के लिए प्रयोग करते है
…जर्मन वर्ग की भाषाओं में संस्कृत भाषा के नब्बे प्रतिशत शब्द  विद्यमान है ।
स्वयं  आर्य शब्द के बहुत से रूप भी हैं जैसे ----- ऐरे Ehere जो कि जर्मन लोगों की एक सम्माननीय उपाधि है ..जर्मन भाषाओं में ऐह्रे Ahere तथा Herr शब्द स्वामी अथवा उच्च व्यक्तिों के वाचक थे ।
…और इसी हर्र Herr शब्द से यूरोपीय भाषाओं में..प्रचलित सर ….Sir …..शब्द का विकास हुआ. और आरिश Arisch शब्द तथा आरिर् Arier स्वीडिश डच आदि जर्मन भाषाओं में श्रेष्ठ और वीरों का विशेषण है ….. ………………🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 इधर एशिया माइनर के पार्श्व वर्ती यूरोप के प्रवेश -द्वार ग्रीक अथवा आयोनियन भाषाओं में भी आर्य शब्द. …आर्च Arch तथा आर्क Arck के रूप मे है जो हिब्रू तथा अरबी भाषा में आक़ा होगया है…ग्रीक मूल का शब्द हीरों Hero भी वेरोस् अथवा वीरः शब्द का ही विकसित रूप है और वीरः शब्द स्वयं आर्य शब्द का प्रतिरूप है जर्मन वर्ग की भाषा ऐंग्लो -सेक्शन में वीर शब्द वर Wer के रूप में है ..तथा रोम की सांस्कृतिक भाषा लैटिन में यह वीर शब्द Vir के रूप में है………
ईरानी आर्यों की संस्कृति में भी वीर शब्द आर्य शब्द का विशेषण है यूरोपीय भाषाओं में भी आर्य और वीर शब्द समानार्थक रहे हैं !….हम यह स्पष्ट करदे कि आर्य शब्द किन किन संस्कृतियों में प्रचीन काल से आज तक विद्यमान है.. लैटिन वर्ग की भाषा आधुनिक फ्रान्च में…Arien तथा Aryen दौनों रूपों में …इधर दक्षिणी अमेरिक की ओर पुर्तगाली तथा स्पेन भाषाओं में यह शब्द आरियो Ario के रूप में है पुर्तगाली में इसका एक रूप ऐरिऐनॉ Ariano भी है और फिन्नो-उग्रियन शाखा की फिनिश भाषा में Arialainen ऐरियल-ऐनन के रूप में है .. रूस की उप शाखा पॉलिस भाषा में Aryika के रूप में है.. कैटालन भाषा में Ari तथा Arica दौनो रूपों में है । कैटालन रोमन मूल की भारोपीय वर्ग की भाषा है ।
स्वयं रूसी भाषा में आरिजक Arijec अथवा आर्यक के रूप में है , इधर पश्चिमीय एशिया की सैमेटिक शाखा आरमेनियन तथा हिब्रू और अरबी भाषा में क्रमशः Ariacoi तथाAri तथा अरबी भाषा में हिब्रू प्रभाव से म-अारि. M(ariyy तथा अरि दौनो रूपों में.. तथा ताज़िक भाषा में ऑरियॉयी Oriyoyi रूप. …इधर बॉल्गा नदी मुहाने वुल्गारियन संस्कृति में आर्य शब्द ऐराइस् Arice के रूप में है .वेलारूस की भाषा मेंAryeic तथा Aryika दौनों रूप में..पूरबी एशिया की जापानी कॉरीयन और चीनी भाषाओं में बौद्ध धर्म के प्रभाव से आर्य शब्द .Aria–iin..के रूप में है ।
….. आर्य शब्द के विषय में इतने तथ्य अब तक हमने दूसरी संस्कृतियों से उद्धृत किए हैं…. परन्तु जिस भारतीय संस्कृति का प्रादुर्भाव आर्यों की संस्कृति से हुआ उस के विषय में हम कुछ कहते हैं ।

देव संस्कृति के अनुयायीयों  का आगमन काल  ।
अनेक विद्वानों के अनुसार भिन्न- भिन्न- कालावधियों में हुआ है ।

भारत में देव संस्कृति का आगमन 1500 ई.पू. से कुछ पहले हुआ। देव संस्कृति के अनुयायीयों के आगमन के विषय में विद्धानों में मतभेद है।
विक्टरनित्ज ने इनके आगमन की तिथि के 2500 ई.पू० निर्धारित की है जबकि बालगंगाधर तिलक ने इसकी तिथि 6000 ई.पू. निर्धारित की है।
जर्मनिक विद्वानों में मैक्समूलर के अनुसार इनके आगमन की तिथि 1500 ई.पू. है। देव-संस्कृति के मूल निवास के सन्दर्भ में सर्वाधिक प्रमाणिक मत आल्पस पर्व के पूर्वी भाग में स्थित यूरेशिया का है। वर्तमान समय में मैक्समूलर ने मत स्वीकार्य हैं।
देव संस्कृति के उपासक आर्यो के आगमन काल में -
आर्यों के आदि स्थल पर विभिन्न मत
आर्यों के आदि स्थल
आदि (मूल स्थान)  मत
सप्तसैंधव क्षेत्र  डॉ. अविनाश चंद्र, डॉ. सम्पूर्णानन्द
ब्रह्मर्षि देश  पं गंगानाथ
मध्य देश  डॉ. राजबली पाण्डेय
कश्मीर  एल.डी. कल्ला
देविका प्रदेश (मुल्तान)  डी.एस. त्रिवेदी
उत्तरी धु्रव प्रदेश बाल गंगाधर तिलक
हंगरी (यूरोप) (डेन्यूब नदी की घाटी)  पी गाइल्स
दक्षिणी रूस  नेहरिंग गार्डन चाइल्ड्स
जर्मनी  पेन्का
यूरोप  फिलिप्पो सेस्सेटी, सर विलियम जोन्स
पामीर एवं बैक्ट्रिया  एडवर्ड मेयर एवं ओल्डेन वर्ग जे.जी. रोड
मध्य एशिया मैक्समूलर
तिब्बत  दयानन्द सरस्वती
हिमालय (मानस)  के.के. शर्मा
डॉ. अविनाश चन्द्र द्रास ने अपनी पुस्तक 'Rigvedic India' (ऋग्वैदिक इंडिया) में भारत में सप्त सैंधव प्रदेश को आर्यो का मूल निवास स्थान माना है।
महामोपाध्याय पं. गंगानाथ झा ने भारत में ब्रहर्षि देश को आर्यो का मूल निवास स्थान माना हैं।
डॉ.राजबली पाण्डेय ने भारत में मध्य देश को आर्यो का मूल निवास स्थान माना है।
एल.डी. कल्ला ने भारत में कश्मीर अथवा हिमालय प्रदेश आर्यों का मूल निवास स्थान माना है।
श्री डी.एस. त्रिवेदी ने मुल्तान प्रदेश में देविका नदी के आस पास के क्षेत्र को आर्यो का मूल निवास स्थान माना है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने तिब्बत को आर्यो का मूल निवास स्थान माना है।
यह वर्णन इनकी पुस्तक 'सत्यार्थ प्रकाश' एवं 'इण्डियन हिस्टोरिकल ट्रेडिशन' में मिलता है।
मैक्स मूलर ने मध्य एशिया को आर्यो का मूल निवास स्थान बताया।
परन्तु आर्य शब्द के विषय में ये समस्त धारणाऐं  निर्मूल है व विवादास्वद हैं ।
क्यों कि  आर्य विशेषण लिखित प्रमाणों में असुर संस्कृति के उपासक ईरानीयों का वाचक था।
जैसे आर्याण से ईरान ।
ईरान के लोग  देव का अर्थ दुष्ट व दुरात्मा कहते हैं ।।
अत: आर्य देव थे दास असुर थे ।
इस सिद्धान्त में कितना दम है ?

मैक्स मूलर ने इसका उल्लेख  'लेक्चर्स ऑन द साइंस ऑफ़ लैंग्युएजेज' में किया है। कि देव-संस्कृति का आगमन  मक
जे.जी.रोड आर्यो का आदि देश बैक्ट्रिया मानते है।
बाल गंगाधर तिलक ने उत्तरी ध्रुव को आर्यो का मूल निवास माना है। यह वर्णन इनकी पुस्तक 'The Arctic (Home of the Aryans') में मिलता है।
पी. गाइल्स ने यूरोप में डेन्यूब नदी की घाटी एवं हंगरी को आर्यो का मूल निवास स्थान माना है।
पेन्का ने जर्मनी को आर्यो का मूल निवास स्थान बताया है।
एडवर्ड मेयर, ओल्डेनवर्ग, कीथ ने मध्य एशिया के पामीर क्षेत्र को आर्यो का मूल स्थान माना है।
नेहरिंग एवं गार्डन चाइल्स ने दक्षिणी रूस को आर्यो का मूल स्थान माना है।

….विदित हो कि यह समग्र तथ्य
……योगेश कुमार रोहि के शोधों पर……. आधारित हैं ..⚡⚡⚡❄❄❄❄.भारोपीय आर्यों के सभी सांस्कृतिक शब्द समान ही हैं स्वयं आर्य शब्द का धात्विक-अर्थ Rootnal-Mean ..आरम् धारण करने वाला वीर …..संस्कृत तथा यूरोपीय भाषाओं में आरम् Arrown =अस्त्र तथा शस्त्र धारण करने वाला यौद्धा ….अथवा वीरः |आर्य शब्द की व्युत्पत्ति Etymology संस्कृत की अर् (ऋृ) धातु मूलक है—अर् धातु के तीन प्राचीनत्तम हैं .. १–गमन करना Togo २– मारना to kill ३– हल (अरम्) चलाना …. Harrow मध्य इंग्लिश—रूप Harwe कृषि कार्य करना… ..प्राचीन विश्व में सुसंगठित रूप से कृषि कार्य करने वाले प्रथम मानव आर्य ही थे …. इस तथ्य के प्रबल प्रमाण भी हमारे पास हैं !

पाणिनि तथा इनसे भी पूर्व ..कात्स्न्र्यम् धातु पाठ में …ऋृ (अर्) धातु कृषिकर्मे गतौ हिंसायाम् च..परस्मैपदीय रूप —-ऋणोति अरोति वा .अन्यत्र ऋृ गतौ धातु पाठ .३/१६ प० इयर्ति -जाता है वास्तव में संस्कृत की अर् धातु का तादात्म्य. identity.यूरोप की सांस्कृतिक भाषा लैटिन की क्रिया -रूप इर्रेयर Errare =to go से प्रस्तावित है जर्मन भाषा में यह शब्द आइरे irre =togo के रूप में है पुरानी अंग्रेजी में जिसका प्रचलित रूप एर Err है …….इसी अर् धातु से विकसित शब्द लैटिन तथा ग्रीक भाषाओं में क्रमशःAraval तथा Aravalis हैं अर्थात् कृषि कार्य.सम्बन्धी …..आर्यों की संस्कृति ग्रामीण जीवन मूलक है और कृषि विद्या के जनक आर्य ही थे …सर्व-प्रथम अपने द्वित्तीय पढ़ाव में मध्य -एशिया में ही कृषि कार्य आरम्भ कर दिया था …🐂🐕🐂🐎🐄🐏🐚🐚🐚🐚🐚🐚🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌿आर्य स्वभाव से ही युद्ध-प्रिय व घुमक्कड़ थे कुशल चरावाहों के रूप में यूरोप तथा सम्पूर्ण एशिया की धरा पर अपनी महान सम्पत्ति गौओं के साथ कबीलों के रूप में यायावर जीवन व्यतीत करते थे ….यहीं से इनकी ग्राम - सभ्यता का विकास हुआ था …🏠🏡🏠🏡🌄🌅🎠🎠🎠🚣🚣🚣🚣🏤🏡🏡🏡🏡🏡🏡🏡🏡🏡🏡🏡🏡🏡..अपनी गौओं के साथ साथ विचरण करते हुए .जहाँ जहाँ भी ये विशाल ग्रास-मेदिनी(घास के मैदान )देखते उसी स्थान पर अपना पढ़ाव डाल देते थे …क्यों किअब भी . संस्कृत तथा यूरोप की सभी भाषाओं में…. ग्राम शब्द का मूल अर्थ ग्रास-भूमि तथा घास है …..इसी सन्दर्भ यह तथ्य भी प्रमाणित है कि आर्य ही ज्ञान और लेखन क्रिया के विश्व में प्रथम प्रकासक थे …ग्राम शब्द संस्कृत की ग्रस् …धातु मूलक है..—–ग्रस् +मन् प्रत्यय..आदन्तादेश..ग्रस् धातु का ही अपर रूप ग्रह् भी है जिससे ग्रह शब्द का निर्माण हुआ है अर्थात् जहाँ खाने के लिए मिले वह घर है इसी ग्रस् धातु का वैदिक रूप… गृभ् …है गृह ही ग्राम की इकाई रूप है ..जहाँ ग्रसन भोजन की सम्पूर्ण व्यवस्थाऐं होती हैं👣👣👣👣👣👣🔰🔰🔰🔰🔰📖📖📖📕📓📑📒📰📚📚📙📘📗📔📒📝📝📄💽📐. सर्व प्रथम आर्यों ने घास केे पत्तों पर लेखन क्रिया की थी.. क्यों कि वेदों में गृभ धातु का प्रयोग ..लेखन उत्कीर्णन तथा ग्रसन (काटने खुरचने )केेे अर्थ में भी प्रयुक्त है… यूरोप की भाषाओं में देखें–जैसे ग्रीक भाषा में ग्राफेन Graphein तथा graphion = to write वैदिक रूप .गृभण..इसी से अंग्रेजी मेंGrapht और graph जैसे शब्दों का विकास हुआ है पुरानी फ्रेन्च मेंGraffe लैटिन मेंgraphiumअर्थात् लिखना .ग्रीक भाषा मेंgrammaशब्द का अर्थ वर्ण letterरूढ़ हो गया .जिससे कालान्तरण में ग्रामर शब्द का विकास हुआ.. आर्यों ने अपनी बुद्धिमता से कृषि पद्धति का विकास किया अनेक ध्वनि संकेतों काआविष्कार कर कर अनेक लिपियों को जन्म दिया …अन्न और भोजन के अर्थ में भी ग्रास शब्द यूरोप की भाषाओं में है पुरानी नॉर्स ,जर्मन ,डच, तथा गॉथिक भाषाओं में Gras .पुरानी अंग्रेजी मेंgaers .,green ग्रहण तथा grow, grasp लैटिनgranum- grain स्पेनिस्grab= to seize … सभी विद्वानों से निवेदन करता हूँ !कि इस सन्देश को समीक्षात्मक दृष्टि से अवश्य देखें !

आर्यों के आदि उपास्य अरि:  है ।
जब आर्यों का आगमन  स्वीडन से हुआ  जिसे प्राचीन नॉर्स माइथॉलॉजी में स्वेरिगी (Sverige) कहा गया है जो उत्तरी ध्रुव प्रदेशों पर स्थित है ।
जहाँ छ मास का दिवस तथा छ मास की दीर्घ रात्रियाँ नियमित होती हैं ।
भू- मध्य रेखीय क्षेत्रों में आगमन काल में आर्यों का युद्ध कैल्ट जन जाति के पश्चात् असीरियन लोगों से सामना हुआ था ।
वस्तुत: आर्य विशेषण जर्मनिक जन-जातियाँ ने अपने वीर और यौद्धा पुरुषों के लिए रूढ़ कर लिया ।
जर्मन मूल की भाषाओं में यह शब्द अरीर ( Arier)
तथा (Arisch) के रूप में एडॉल्फ हिट्लर के समय तक रूढ़ रहा ।
यही आर्य भारतीय आर्यों के पूर्वज हैं ।
परन्तु एडॉल्फ हिट्लर ने भारतीय आर्यों को
वर्ण-संकर कहा था।
जब आर्य सुमेरियन और बैबीलॉनियन तथा असीरियन संस्कृतियों के सम्पर्क में आये ।
अनेक देवताओं को अपनी देव सूची में समायोजित किया
जैसे विष्णु जो सुमेरियन में बियस-न के रूप मे हिब्रूओं के कैन्नानाइटी देव डेगन (Dagan)
नर-मत्स्य देव  विष:  संस्कृत भाषा में मछली का वाचक है ।
जो यूरोपीय भाषा परिवार में फिश (Fish)
के रूप में विद्यमान है ।
देव संस्कृति के उपासक जर्मनिक जन-जातियाँ से सम्बद्ध आर्यों का  युद्ध असीरियन लोगों से दीर्घ काल तक हुआ , असीरी  वर्तमान ईराक-ईरान (मैसॉपोटमिया) की संस्कृतियों के पूर्व प्रवर्तक हैं ।असुरों की भाषाओं में अरि: शब्द अलि अथवा इलु हो गया है ।
परन्तु इसका सर्व मान्य रूप एलॉह (elaoh) तथा एल (el) ही हो गया है ।
""
ऋग्वेद के अष्टम् मण्डल के ५१ वें सूक्त का ९ वाँ श्लोक
अरि: का ईश्वर के रूप में वर्णन करता है ।
___""_____________________________________
"यस्यायं विश्व आर्यो दास: शेवधिपा अरि:
तिरश्चिदर्ये रुशमे पवीरवि तुभ्येत् सोअज्यते रयि:|९
__________________________________________
अर्थात्-- जो अरि इस  सम्पूर्ण विश्व का तथा आर्य और दास दौनों के धन का पालक अथवा रक्षक है ,
जो श्वेत पवीरु के अभिमुख होता है ,
वह धन देने वाला ईश्वर तुम्हारे साथ सुसंगत है ।
ऋग्वेद के दशम् मण्डल सूक्त( २८ )श्लोक संख्या (१)
देखें- यहाँ भी अरि: देव अथवा ईश्वरीय सत्ता का वाचक है ।
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" विश्वो ह्यन्यो अरिराजगाम ,
               ममेदह श्वशुरो ना जगाम ।
जक्षीयाद्धाना उत सोमं पपीयात्
              स्वाशित: पुनरस्तं जगायात् ।।
ऋग्वेद--१०/२८/१
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ऋषि पत्नी कहती है !  कि  सब देवता  निश्चय हमारे यज्ञ में आ गये (विश्वो ह्यन्यो अरिराजगाम,)
परन्तु मेरे श्वसुर नहीं आये इस यज्ञ में (ममेदह श्वशुरो ना जगाम )यदि वे आ जाते तो भुने हुए  जौ के साथ सोमपान करते (जक्षीयाद्धाना उत सोमं पपीयात् )और फिर अपने घर को लौटते (स्वाशित: पुनरस्तं जगायात् )
प्रस्तुत सूक्त में अरि: देव वाचक है ।
देव संस्कृति के उपासकआर्यों ने और असुर संस्कृति के उपासक आर्यों ने अर्थात् असुरों ने अरि: अथवा अलि की कल्पना युद्ध के अधिनायक के रूप में की थी ।
सुमेरियन और बैबीलॉनियन तथा असीरियन संस्कृतियों के पूर्वजों के रूप में ड्रयूड (Druids )अथवा द्रविड संस्कृति से सम्बद्धता है ।
जिन्हें हिब्रू बाइबिल में द्रुज़ कैल्डीयन आदि भी कहा है
ये असीरियन लोगों से ही सम्बद्ध हैं।
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हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम को मानने वाली
धार्मिक परम्पराओं में मान्यता है ,कि
कुरान से पहले भी अल्लाह की तीन और किताबें थीं , जिनके नाम तौरेत , जबूर और इञ्जील हैं ।
, इस्लामी मान्यता के अनुसार अल्लाह ने जैसे मुहम्मद साहब पर कुरान नाज़िल की थी ,उसी तरह हजरत मूसा को तौरेत , दाऊद को जबूर और ईसा को इञ्जील नाज़िल की थी
. यहूदी सिर्फ तौरेत और जबूर को और ईसाई इन तीनों में आस्था रखते हैं ,क्योंकि स्वयं कुरान में कहा है ,
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1-कुरान और तौरेत का अल्लाह एक है:---
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"कहो हम ईमान लाये उस चीज पर जो ,जो हम पर भी उतारी गयी है , और तुम पर भी उतारी गयी है , और हमारा इलाह और तुम्हारा इलाह एक ही है . हम उसी के मुस्लिम हैं " (सूरा -अल अनकबूत 29:46)
""We believe in that which has been revealed to us and revealed to you. And our God and your God is one; and we are Muslims [in submission] to Him."(Sura -al ankabut 29;46 )"وَإِلَـٰهُنَا وَإِلَـٰهُكُمْ وَاحِدٌ وَنَحْنُ لَهُ مُسْلِمُونَ "
इलाहुना व् इलाहकुम वाहिद , व् नहनु लहु मुस्लिमून "
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यही नहीं कुरान के अलावा अल्लाह की किताबों में तौरेत इसलिए महत्वपूर्ण है

               ओ३म् !ओ३म् !!ओ३म्

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     भारतीय पुरातन संस्कृति के उदारत्तम रूप का
एक अवलोकन यहाँ प्रस्तुत किया गया,
   जो निश्पक्ष रूप से है । किसी मत या सम्प्रदाय पर
आधारित नहीं है --- समग्र तथ्य योगेश कुमार रोहि
   ग्राम - आजा़दपुर - पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद
अलीगढ़---के सौजन्य से हैं ।
           [   सम्पर्क- सूत्र ---8077160219 ]

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