शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2018

पुरोहित शब्द का इतिहास !

वस्तुत ब्राह्मण शब्द की ये सब रूढ़ि गत व्युत्पत्तियाँ है।

ब्राह्मण शब्द प्राचीनत्तम भारोपीय धातु ब्रह् से सम्बद्ध है
जो पूर्ण रूपेण ध्वनि अनुकरण मूलक है ।
अर्थात् स्तुतियों अथवा मन्त्रों में निरन्तर ध्वनि का भाव होने से ही ब्राह्मण शब्द का जन्म हुआ ।
भृंग तथा ब्राह्मण शब्द संस्कृत भाषा में मूलत: ध्वनि अनुकरण मूलक हैं ।
भ्रमर का और ब्राह्मण का स्वभाव समान होने से ही यह समान उच्चारण मूलक है
( पुरोहित ) शब्द का यूरोपीय भाषा में स्वरूप भी विचारणीय है :---
ग्रीक भविष्यवक्ताओं विशेषत:: (डोरिक प्रॉपहेत ) से सम्बद्ध है । "जो व्यक्ति ईश्वर के लिए बोलता है, वह व्यक्ति जो भविष्यवाणी करता है, प्रेरित प्रचारक," पुरानी फ्रांसीसी भविष्यवाणियों से, "भविष्यद्वक्ता, सोथशेयर" (११वीं सदी आधुनिक फ्रेंच प्रोफेट) ) "एक व्याख्याता, प्रवक्ता," विशेष रूप से देवताओं से प्रेरित, प्रेरित प्रेरक या शिक्षक,
कौटिल्य ने राज्य प्रशासन में अमात्य के बाद पुरोहित को ही सबसे महत्वपूर्ण बताया है।
ऐतरेय ब्राह्मण में पुरोहित को राष्ट्रगोपः कहा गया है। याद रहे गोपः शब्द का अर्थ होता है राजा या पालनकर्ता।
गोपाल शब्द इसी मूल से आया है।
परन्तु गो पालन करने से आभीर जन-जाति को गोप नाम की संज्ञा प्राचीनत्तम है । यदु को वंशज ये आभीर उससे पूर्व रूप में हैं ।
क्यों कि पुराणों में वेदों की अधिष्ठात्री देवी गायत्री को नरेन्द्र सेन आभीर ( अहीर) की कन्या बताया ।  जो ब्रह्मा की पत्नी रूप में वर्णित है
वेदों में यदु को गोप कह जाना इन तथ्यों की प्रबलत्तम पुष्टि करता है ।  कि गोप विशेषण तो आभीर विशेषण से पूर्व है । और यादव अथवा आभीर समकालिक हैं ।
गो प्राचीनत्तम चरावाहों की  सबसे बड़ी सम्पदा होती थीं । जो परवर्ती काल खण्ड में धन का पर्याय वाची बन गया ।
गो अर्थात पृथ्वी और पाल यानी पालनकर्ता अर्थात् जो भूपति है, राजा है, सबका पालनकर्ता है, वही गोपाल है।
राष्ट्रगोपः का अर्थ हुआ सबका स्वामी।
शुक्रनीति में भी पुरोहित को पूरे देश का पालनकर्ता कहा गया है। पुरोहित के परिचय में कहा गया है- “जो मंत्र और अनुष्ठानों में कुशल, तीनों वेदों का ज्ञाता, कर्म में तत्पर, जितेन्द्रिय, जित-क्रोध, लोभ-मोह रहित, षडांगों का ज्ञाता, धनुर्विद्या में निष्णात और धर्मरत है। जिसके कुपित हो जाने के भय से राजा धार्मिक जीवन व्यतीत करता है।
जिसे नीतिशास्त्र और आयुधों का ज्ञान है। जो शाप और अनुग्रह में समर्थ है, वही पुरोहित, आचार्य है।
सुश्रुत संहिता में पुरोहित को वैद्य से श्रेष्ठ कहा गया है क्योंकि वैद्य वेदों के उपांग आयुर्वेद का अध्येता होता है जबकि पुरोहित वेदों को पढ़ाता है इसलिए अच्छे वैद्य को चाहिए कि हमेशा पुरोहित से परामर्श कर अपने ज्ञान का परिमार्जन करता रहे।
पुरोहित देव-संस्कृति के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अवयवों में एक है।
ऋग्वेद में पुरोहित शब्द का उल्लेख अनेक बार हुआ है।
संस्कृत ग्रन्थों में पुरोहितः शब्द का विवरण इस प्रकार है !👇
पुरोहितः पुं०--- पुरो पूर्वो दृष्टादृष्टफलेषु कर्म्मसु धीयते आरोप्यते यः इति पुरोहित: ।
(यद्वा पुर आदावेव हितं मङ्गलं यस्मात् )
शान्त्यादिकर्त्ता  तत्पर्य्यायः । पुरोधाः २ । इत्यमरः कोश । २ । ८ । ५ ॥ धर्म्मकर्म्मादि- कारकः ३ । इति शब्दरत्नावली ॥
तस्य लक्षणं यथा, चाणक्ये
“वेदवेदाङ्गतत्त्वज्ञो जपहोमपरायणः । आशीर्व्वादवचोयुक्त एष राजपुरोहितः ”
तस्य वर्ज्जनीयलक्षणं यथा, --
“काणं व्यङ्गमपुत्त्रं वानभिज्ञमजितेन्द्रियम्
न ह्नस्वं व्याधितं वापि नृपः कुर्य्यात् पुरोहितम् ॥
इति कालिकापुराणम्
पुरोहिते वर्णनीयानि यथा, --
“पुरोहितो हितो वेदस्मृतिज्ञः सत्यवाक् शुचिः ।
ब्रह्मण्यो विमलाचारः प्रतिकर्त्तापदामृजुः ”
इति कविकल्पलता ॥
(यथा च  “दोषागन्तुजमृत्युभ्यो रसमन्त्रविशारदौ । रक्षेतां नृपतिं नित्यं यत्नाद्वैद्यपुरोहितौ ॥
ब्रह्मा वेदाङ्गमष्टाङ्गमायुर्व्वेदमभाषत ।
पुरोहितमते तस्माद्वर्त्तेत भिषगात्मवान्
” इति सुश्रुते सूत्रस्थाने चतुस्त्रिंशेऽध्याये ॥)

अमरकोशः

पुरोहित पुं। 

धर्माध्यक्षः 

समानार्थक:पुरोधस्,पुरोहित 

2।8।5।1।4 

महामात्राः प्रधानानि पुरोधास्तु पुरोहितः।
द्रष्टरि व्यवहाराणां प्राड्विवाकाक्षदर्शकौ॥ 

स्वामी : राजा 

पदार्थ-विभागः : , द्रव्यम्, पृथ्वी, चलसजीवः,
मनुष्यः

वाचस्पत्यम्

'''पुरोहित"  पु॰ पुरो धीयतेऽसौ धा--क्त।
देवकृत्यादौ अग्रेधार्य्ये इति पुरोहित:

१ पुरोधसि तञ्जक्षणं कविसल्पलतायामुक्तं यथा 
“पुरोहितो हितो वेदस्मृतिज्ञः सत्यवाक् शुचिः। ब्रह्मण्योविमलाचारः प्रतिकर्त्ता पदामृजुः”। 
“वेदवेदाङ्गतत्त्वज्ञो जपहोमपरायणः।
आशीर्वादवचोयुक्त एवराजपुरोहितः” आणक्यः। 
“तस्मात् धर्मप्रधानात्मावेदधर्मविदीप्सितः।
ब्राह्मणो गुणवान् कञ्चित् पुरोधाःप्रतिदृश्यताम्। क्षत्रियेणाभिकातेन पृथिवीं जेतुमिच्छता।
पूर्वं पुरोहितः कार्य्यः पार्थ!
राज्याभिवृद्धये। मर्हींजिगीषता राज्ञा ब्रह्म कार्य्यं पुरःसरम्”

७३ अ॰ 
“राज्ञा पुरोहितः कार्य्यो भवेद्विद्वान्बहुश्रुतः।
उभौ समीक्ष्य धर्मार्थावप्रमेयावनन्तरम्।
धर्मात्मा मन्त्रविद्येषां राज्ञां राजन्।
पुरोहितः राजा चैवं गुणो येषां कुशलं तेषु सर्वतः। उभौप्रजा वर्द्धयतो देवान् सर्वान् सुतान् पितॄन्। भवेयातांस्थितौ धर्मे श्रद्धेयौ सुतपखिनौ। परस्मरस्य सुहृदौविहितौ समचेतसौ।
ब्रह्मक्षत्रस्य सम्मानात् प्रजा-सुखमवाप्नुयात्। विमाननात् तयोरेव प्रजा नश्येयुरेकहि। ब्रह्म क्षत्रं च सर्वेषां वर्णानां जूलमुच्यते”
इत्युषक्रमे 
“राज्ञां पुरोहिताधीनः विजयादिः तत्रोक्तोदृश्यः।
अग्निपुराण 
“त्रय्याञ्च दण्डनीत्यां च कुशलः स्यात्पुरोहितः” 
“अयञ्च वेदविहितं कुर्य्याच्छान्तिकवौडिकम्”। 
“काणं व्यङ्गमषुत्रं वाऽनभिज्ञमनितेन्द्रियम्।
न ह्रस्वं व्याधितं वापि नृपः कुर्य्यात् पुरोहितम्” काकिकापु॰ तदीयदोषा उक्ताः। 

शब्दसागरः

पुरोहित Adj. 
1. Placed in front. 
2. Charged. m. (-तः) The purohita or family priest, conducting all the ceremonials and sacrifices of a house or family. E. पुरस् first, and हित् held, revered.
[Page461-a+ 60]

Apte

पुरोहित [purōhita], p. p.

Placed in front.

Appointed, charged, entrusted.

तः One charged with a business, an agent.

A family-priest, one who conducts all the ceremonial rites of the family. मन्त्रिपुरोहितसखः (राजा);
अमात्यानुपधाभिः शौचयेत् Kau. A.1.1; पुरोहितो हितो वेदस्मृतिज्ञः सत्यवाक् शुचिः Kavikalpalatā.

Monier-Williams

पुरोहित/ पुरो--हित mfn. ( पुरो-.)placed foremost or in front , charged , commissioned , appointed

पुरोहित/ पुरो--हित m. one holding a charge or commission , an agent

पुरोहित/ पुरो-हित m. ( esp. ) a family priest , a domestic chaplain RV. etc. ( RTL. 352 etc. )

Purana index

--of the Asuras; {{F}}1: भा. VII. 5. 1.{{/F}} versed in the Atharvan rites; performed होम prior to रुक्मिनी's marriage; {{F}}2: Ib. X. ५३; १२.{{/F}} of the king; {{F}}3: Br. II. २९. ७६; III. २६. २२; २७, ३०; वा. ५७. ७०; ९०, ७२; १०१. ८१; Vi. V. ३४. २९; VI. 6. २६.{{/F}} does expiatory ceremonies to ward off evils to the state. {{F}}4: M. २२९. १२; २३०. 9-११; २३१. 9.{{/F}}

Vedic Rituals Hindi

पुरोहित पु.
(पुरस् + धा + क्त) घरेलू अथवा, बाद में राजकीय धर्माधिकारी, श्रौत यज्ञ के लिए ऋत्विज् के वरण (चयन) में राजकीय यजमान द्वारा जिसके ‘प्रवर’ का विचार किया जाता है, आप.श्रौ.सू. 2.16.1०; उनके द्वारा कुछ एकाहों का अनुष्ठान भी किया जाता है, 22.1०.19; 13

भविष्यवक्ता ( profete )
परवर्ती काल खण्ड में 12 वीं सदी प्रचलित यूरोपीय रूप ।
"जो व्यक्ति ईश्वर के लिए बोलता है अर्थात् जो भविष्यवाणी करता है, प्रेरित प्रचारक "  वह पुरोहित Prophet है ।
पुरानी फ्रांसीसी में prophete रूप है  भविष्यवक्ता के अर्थ में "भविष्यवक्ता, profete " ( और इससे पूर्व 11 वीं सदी में, आधुनिक फ्रेंच prophète ) और सीधे लैटिन prophetes  का समन्वय ग्रीक prophetes से परिलक्षित है । (डोरिक भाषा में  prophatas ) "एक दुभाषिया, प्रवक्ता," विशेष रूप से देवताओं, "प्रेरित प्रचारक या शिक्षक के रूप में प्रचलित आधुनिक रूप "
व्युत्पत्ति की दृष्टि से  pro उपसर्ग (prefixe)" जिसकी अर्थ है पहले से" आद्य भारोपीय धातु per- (1) "से आगे," इसलिए "पहले, पहले" आदि भारोपीय धातु  पुर: (pre)से "बोलने के लिए" bha- (2) "बोलने, कहने, कहने के लिए। " भारोपीय धातु भा
यूनानी शब्द का इस्तेमाल हिब्रू nabj "  के लिए सेप्टुआजिंट में किया गया था। शुरुआती लैटिन लेखकों ने लैटिन vates (संस्कृत वेत्ता) के  साथ ग्रीक prophetes का  अनुवाद किया।
लेकिन propheta रूप के prophetes ने शास्त्रीय काल में मुख्य रूप से ईसाई लेखकों के कारण मुख्य रूप से vates के मूर्तिपूजक संगठनों के कारण vates  रूप ग्रहण कर लिया ।
अंग्रेजी में, जिसका मतलब है "पुराने नियम के भविष्यवाणियों लेखक" परवर्ती काल खण्ड में अर्थात् 14 वीं सदी से है। और  गैर-धार्मिक भावना के रूप में 1848 से है; 1610 से इस्लाम के इतिहास कारों में पुरोफेट के रूप में मुहम्मद का इस्तेमाल किया।
(अरबी al-nabiy अनुवाद, और कभी al-rasul कभी al-rasul , ठीक से "दूत")। लैटिन शब्द पुराने अंग्रेजी में witga द्वारा ।

Etymology( व्युत्पत्ति)----
From Middle English prophete, from Old English propheta, from Latin prophēta (later reinforced in English by Anglo-Norman prophete), from Ancient Greek προφήτης (prophḗtēs, “one who speaks for a god”), from πρό (pró, “before”) + φημί (phēmí, “I tell ).
वैदिक सन्दर्भों में पुरोहितः शब्द👇
ऋग्वेद-संहिता - प्रथम मंडल सूक्त १
[ऋषि मधुच्छन्दा वैश्वामित्र । देवता अग्नि ।
छन्द गायत्री।]

१.अग्निमीले पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम होतारं रत्नधातमम ॥१॥

हम अग्निदेव की स्तुती करते हैं जो यज्ञ के पुरोहित (Prophet) देवता  ऋत्विज( समयानुकूल यज्ञ का सम्पादन करनेवाले ),होता (देवो का आवाहन करनेवाले) और याचको को रत्नों से (यज्ञ के लाभों से ) विभूषित करने वाले है ॥१॥
__________________________________________
भारतीय समाज में कर्मकाण्ड व धार्मिक आचार सम्पन्न करानेवाला पुरोहित कहलाता है।
मोनियर विलियम्स के मुताबिक पुरोहित शब्द बना है पुरस् +हित से मैक्डोनल और कीथ के वैदिक इंडेक्स के मुताबिक यह पुरो+हित से आ रहा है।
अन्य लोग इसे पुरः+ हित से बताते हैं।
पुरस् शब्द पूर्व से आ रहा है जिसका अर्थ है पहले से, सामने की ओर, सम्मुख आदि। हित में कल्याण का भाव है। इस तरह पुरोहित का अर्थ हुआ सामने खड़ा रहनेवाला या नियुक्त। भाव है अपने हितार्थ, कल्याणार्थ नियुक्त व्यक्ति।
पुरोहित में दूत का भी भाव है। वामन शिवराम आप्टे के अनुसार पुरोहित का अर्थ है कार्यभार सम्भालने वाला, अभिकर्ता या दूत।
मूलतः पुरोहित शब्द की अर्थवत्ता धार्मिक कर्मकांड, विधि-विधान का संचालन करने वाले व्यक्ति के रूप में ही स्थापित होती है।  देव- संस्कृति के अनुयायीयों की घुमक्कड़ी के दौर में विभिन्न जत्थे लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान पर आप्रवासन (आव्रजन) करते थे। पुरोहित की भूमिका अग्रदूत की थी जो समूह के नेता की ओर से निर्दिष्ट गंतव्य तक जाकर वहां की व्यवस्था देखता था !
ताकि उसके पीछे निर्विघ्न समूह के अन्य लोग आ सकें। पुरोहित ही उस स्थान के बारे में अधिक जानकारी रखता था अतः वही लोगों को उस स्थान के भूगोल भोजन, पानी, आवास से संबंधित जानकारियां और दिशा-निर्देश देता था। अग्रदूत से अपने कर्तव्यों का प्रारम्भ करनेवाला पुरोहित कालान्तरण में अमात्य, प्रधानमंत्री और राज्य के मुख्य संरक्षक की भूमिका निभाने में समायोजित हो गया है।
गौरतलब है कि ऋग्वेदकाल में पुरोहित का कार्य किसी जाति विशेष से जुड़ा हुआ न था।
वैदिक युग में चातुर्वर्ण्य व्यवस्था नहीं थी।
जैसे कारूरहम ततो भिषग् उपल प्रक्षिणी नना !
मां कारीगर और पिता आयुर्वेद के ज्ञाता तथा माता अनाज पीसने वाली है
( ऋग्वेद ९ । ११२ । ३ ) “

गौरवर्ण में देव-संस्कृति में स्वयं को कृष्णवर्णं में  ( असुर )से श्रेष्ठ देखने, अन्तर करने की प्रवृत्ति  अवश्य थी। सम्भवतः चातुर्वर्ण्य व्यवस्था के बाद यही प्रवृत्ति समाज में रसौली बनकर उभरी।
और यह घटना महात्मा बुद्ध के समय तक ब्राह्मण
समूह का पुरोहित परम्परा, तेजस्विता अथवा वरिष्ठता के आधार पर चुना जाता था।
परन्तु कालान्तरण में रूढ़िवादी परम्पराओं के रूप में भी यही क्रम चलता रहा
वेदों में कहा गया है-तीक्ष्णीयांसः परशोरग्नेस्तीक्ष्णतरा उत।
इन्द्रस्य वज्रात् तीक्ष्णीयांसो येषामस्मि पुरोहितः ।।
अर्थात् जिस प्रकार के शिक्षक होंगे, वैसे ही शिष्य होंगे। यदि शिक्षक वीर्य्य रहित, हतोत्साहित होंगे तो राष्ट्र में उत्साह-बलादि का अभाव रहेगा।

विद्वानों के मुताबिक ब्राह्मण धर्मग्रंथों में ऋषियों के कुलनामों की जो सूचियां मिलती हैं, उनमें बहुत घालमेल हुआ।
यह सच है कि पुरोहित व्यवस्था के अंतर्गत ही चातुर्वर्ण्य व्यवस्था अस्तित्व में आई।
जिसके तहत पुरोहितों ने स्वयं को ब्राह्मण वर्ण में रखा। यह जरूरी भी था।
भवभूति का एक उद्धरण महत्वपूर्ण है-“ विद्वान ब्राह्मण जिस राष्ट्र का रक्षक पुरोहित होता है वह राष्ट्र न तो व्यथित होता है न जीर्ण और न आपत्ति से आक्रान्त होता है।”
स्पष्ट है कि इससे पूर्व पुरोहित पद किसी जाति की बपौती नहीं था अपितु गुरु पद के रूप में पुरोहितः रूप रूढ़ था । गुरु शब्द प्राचीन संस्कृतियों में प्राप्त है । अपने शाश्वत रूप में 👇
(gwere) ग्वेयर  (1) gwerə - यह प्रोटो-इण्डो-यूरोपीय मूल रूप है जिसका अर्थ है "भारी"।
वस्तुत:  यह सभी रूपों में गरिमा मय है।
aggravate ; aggravation ; aggrieve bar (संज्ञा पद) "दबाव की इकाई;" bariatric ; baritone ; barium ; barometer ;
blitzkrieg ; brig ; brigade ; brigand ; brigantine ; brio ; brut ; brute charivari ; gravamen ; grave (adj।)
gravid ; gravimeter ; gravitate ; gravity ; grief grieve kriegspiel ; guru ; hyperbaric ; isobar ; quern ; sitzkrieg ।
वस्तुत यह पदावली अपने अस्तित्व के लिए साक्ष्य का सबूत / प्रमाण है: ।
वैदिक भाषा में (guruh) गुरू  "भारी, अथवा आदरणीय का वाचक है ।
गुरू ज्ञान में भारी होता है ; ग्रीक  भाषा में baros बैरो  "भार वजन" barys "वजन में भारी", अक्सर "ताकत, बल" आदि की धारणा के साथ लैटिन रूप (gravis) ग्रेविस् "भारी, तालाब, बोझिल, भारित; गर्भवती "
पुरानी अंग्रेजी में ( cweorn )क्वेर्न  " गोथिक कॉरुस kaurus "भारी;" gruts "भारी" gruts *gwere- (2) gwerə- , प्रोटो-इंडो-यूरोपीय रूट जिसका अर्थ है "पक्षपात करना।" यह सभी या एक हिस्से का रूप बनता है: agree ; bard (संज्ञा);
congratulate ; congratulation ; disgrace ; grace gracious ; grateful gratify ; gratis ; gratitude gratuitous ; gratuity ; gratulation ingrate ; ingratiate । यह अपने अस्तित्व के लिए साक्ष्य का सबूत / प्रमाण है: संस्कृत grnati गृणाति "गाती है , प्रशंसा तथा घोषणा ;" अवेस्तान gar गर "प्रशंसा के लिए;" लिथुआनियाई giriu गिरु, girti ग्रति "प्रशंसा, जश्न मनाने के लिए;" ओल्ड सेल्टिक bardos "कवि, गायक।"
वस्तुत: भृ धातु रूप गृ धातु का ही सम्प्रसारित रूप है
हिन्दी की  उपबोलियों में  गूरो और भूरो ( गोबर तथा घर से नि:सृत  कूरा- करकट रूप)
पुरोहित Prophet पण्डित Padant तथा ब्राह्मण आदि शब्द भारोपीय मूल के है ।🙏

पण्डित , ब्राह्मण और पुरोहित ये सभी पर्याय रूप  हैं
अस्माकमिन्द्रः समृतेषु
ध्वजेष्वस्माकं या इषवस्ता जयन्तु ।
अस्माकं वीरा उत्तरे भवन्त्वस्माँ
उ देवा अवता हवेषु ॥११॥
अमीषां चित्तं प्रतिलोभयन्ती
गृहाणाङ्गान्यप्वे परेहि ।
अभि प्रेहि निर्दह हृत्सु शोकैरन्धेनामित्रास्तमसा सचन्ताम् ॥१२॥
प्रेता जयता नर इन्द्रो वः शर्म यच्छतु ।
उग्रा वः सन्तु बाहवोऽनाधृष्या यथासथ ॥१३॥
(ऋग्वेद-संहिता |
दशम मण्डल, सूक्त 104
समग्र भारतीय पुराणों में तथा वैदिक ऋचाओं में भी यही तथ्य प्रतिभासित  होता है ।
सर्व-प्रथम हम यूरोपीय भाषा परिवार में तथा वहाँ की प्राचीनत्तम संस्कृतियों से भी यह तथ्य उद्घाटित करते हैं
कि वास्तविक रूप में स्वर्ग कहाँ था ।
और देवों अथवा सुरों के रूप में ब्राह्मणों का आगमन किस प्रकार हुआ ।
व्युत्पत्ति-मूलक दृष्टि से कुछ उद्धरण आँग्लभाषा में हैं ।
जिनका सरलत्तम अनुवादित रूप भी प्रस्तुत है ।
Origin and Etymology of brahman in European languages
Middle English अर्थात् मध्य अंग्रेज़ी में ( Bragman ) inhabitant of India, and German in Bremen city , derived from Latin +Bracmanus,) from Greek (Brachman )it too derivetion from Sanskrit brāhmana of the Brahman caste, from brahman Brahman First Known Use: 15th century 
__________________________________________
( ब्राह्मण शब्द का मूल व उसकी व्युत्पत्ति-) ब्राह्मण वर्ण का वाचक है ।
भारतीय पुराणों में ब्राह्मण शब्द का प्रयोग मानवीय समाज में सर्वोपरि रूप से प्रतिष्ठित व्यक्ति समाज को लिए निर्धारित किया गया है ।
क्योंकि इन -ग्रन्थों को लिखने वाले भी स्वयं वही ब्राह्मण थे ।संस्कृत भाषा के ब्राह्मण  शब्द सम्बद्ध है ।
ग्रीक ("ब्रचमन" )तथा लैटिन ("ब्रैक्समेन" )मध्य अंग्रेज़ी का ("बगमन ") भारतीय पुरोहितों का मूल विशेषण ब्राह्मण है ।
इसका पहला यूरोपीय ज्ञात प्रयोग:15 वीं शताब्दी में है
भारतीय संस्कृति में वर्णित ब्राह्मणों का तादात्म्य जर्मनीय शहर ब्रेमन में बसे हुए ब्रामरों से प्रस्तावित है ।
पुरानी फारसी भाषा में जो अवेस्ता ए झन्द से सम्बद्ध है
उसमे बिरहमन शब्द ब्राह्मण शब्द का ही तद्भव है ।

सुमेरियन तथा अक्काडियन भाषा में बरम ( Baram )
ब्राह्मण का वाचक है ।
अंग्रेज़ी भाषा में ब्रेन (Brain) मस्तिष्क का वाचक है । संस्कृत भाषा में तथा प्राचीन - भारोपीय भाषा में इसका रूप ब्रह्मण है।
मस्तिष्क ( संज्ञा ) का रूप :----
-ब्रह्मण ऋग्वेद के १०/९०/१२
ब्राह्मणोSस्य मुखमासीत् बाहू राजन्यकृत: ।
उरू तदस्ययद् वैश्य: पद्भ्याम् शूद्रोsजायत।
अर्थात् ब्राह्मण विराट-पुरुष के मुख से उत्पन्न हुए, और बाहों से राजन्य ( क्षत्रिय) ,उरु ( जंघा) से वैश्य तथा पैरों से शूद्र उत्पन्न हुए ; यद्यपि यह ऋचा पाणिनीय कालिक ई०पू० 500 के समकक्ष है ।
परन्तु यहाँ ब्राह्मण को विद्वान् होने से मस्तिष्क-(ब्रेन )कहना सार्थक था ।
परन्तु यह किसी जाति का वाचक नहीं होकर  विद्वान का विशेषण था ।
जिसे भी कालान्तरण में रूढ़िवादी लोगों ने जातीय रूप दे दिया । और इसका अर्थाघात देव-संस्कृति का पुजारियों को रूढ़ हो गया ।
देव संस्कृति के उपासक ब्राह्मणों ने आध्यात्मिक विद्या को कैल्ट संस्कृति के मूर्धन्य ड्रयूड( Druids) पुरोहितों से ग्रहण किया था।
यूरोपीय भाषा परिवार में विद्यमान ब्रेन (Brain) शब्द उच्च अर्थ में, "चेतना और मन का अवयव को रूप में स्वीकार करने हैं "  पुरानी अंग्रेजी मेंं (ब्रेजेगन) "मस्तिष्क", तथा प्रोटो-जर्मनिक रूप - (ब्रैग्नाम ) (मध्य जर्मन (ब्रीगेन )के स्रोत भी यहीं से प्रादुर्भूत हैं !
भौतिक रूप से ब्रेन " (कोमल तथा भूरे रंग का पदार्थ, एक कशेरुकीय कपाल गुहा है " पुरानी फ़्रिसियाई और डच भाषा में यह (ब्रीन) है ;यहाँ इसकी व्युत्पत्ति-अनिश्चितता से सम्बद्ध, है ।
कदाचित भारोपीय-मूल * मेरगम् (बरहम) संज्ञा का रूप "खोपड़ी, मस्तिष्क" तथा (ग्रीक ब्रेखमोस) "खोपड़ी के सामने वाला भाग, सिर के ऊपर") से भी साम्य है ।
लेकिन भाषा वैज्ञानिक लिबर्मन लिखते हैं "कि मस्तिष्क "पश्चिमी जर्मनी के बाहर कोई स्थापित संज्ञा नहीं है  तथा यह और ग्रीक शब्द से जुड़ा नहीं है। अधिक है तो शायद, वह लिखते हैं, कि इसके व्युत्पत्ति-सूत्र भारोपीय मूल (bhragno )से हैं !
"कुछ टूटा हुआ है से हैं ।संस्कृत भाषा में देखें---
भ्रंश् भ्रञ्ज् :-- अध: पतने
भ्रंशते । बभ्रंशे । भ्रंशित्वा । भ्रष्ट्वा । भ्रष्टः । भ्रष्टिः । भ्रश्यते इति भ्रशो रूपम् 486।
परन्तु  अब प्रमाण मिला है कि यह शब्द संस्कृत भाषा में प्राप्त भारोपीय धातु :-- ब्रह् से सम्बद्ध है
ब्रह् अथवा बृह् धातु का अर्थ :-- मन्त्रों का उच्चारण करना विशेषत: तीन अर्थों में रूढ़ है यह धातु :---
१- वृद्धौ २- प्रकाशे ३- भाषे च  बृह् :--शब्दे वृद्धौ च - बृंहति बृंहितम बृहिर् इति दुर्गः अबृहत्, अबर्हीत् बृंहेर्नलोपाद् बृहोऽद्यतन:
विशेष  मन्तव्य :----
वस्तुत ब्राह्मण शब्द की ये सब रूढ़ि गत व्युत्पत्तियाँ है।
ब्राह्मण शब्द प्राचीनत्तम भारोपीय धातु ब्रह् से सम्बद्ध है
जो पूर्ण रूपेण ध्वनि अनुकरण मूलक है ।
अर्थात् स्तुतियों अथवा मन्त्रों में निरन्तर ध्वनि का भाव होने से ही ब्राह्मण शब्द का जन्म हुआ ।
भृंग तथा ब्राह्मण शब्द संस्कृत भाषा में मूलत: ध्वनि अनुकरण मूलक हैं ।
भ्रमर का और ब्राह्मण का स्वभाव समान होने से ही यह समान उच्चारण मूलक है
( पुरोहित ) शब्द का यूरोपीय भाषा में स्वरूप भी विचारणीय है :---
ग्रीक भविष्यवक्ताओं विशेषत:: (डोरिक प्रॉपहेत ) से सम्बद्ध है । "जो व्यक्ति ईश्वर के लिए बोलता है, वह व्यक्ति जो भविष्यवाणी करता है, प्रेरित प्रचारक," पुरानी फ्रांसीसी भविष्यवाणियों से, "भविष्यद्वक्ता, सोथशेयर" (११वीं सदी आधुनिक फ्रेंच प्रोफेट) ) "एक व्याख्याता, प्रवक्ता," विशेष रूप से देवताओं से प्रेरित, प्रेरित प्रेरक या शिक्षक,
_________________________________________
16 वीं सदी में प्राप्त उल्लेख के अनुसार "बौद्धिक शक्ति" का आलंकारिक अर्थ अथवा रूप ब्राह्मण है ।और यहाँ ब्राह्मण को विद्वान् होने से मस्तिष्क-(ब्रेन )कहना सार्थक था ।
देव संस्कृति के उपासक ब्राह्मणों ने आध्यात्मिक विद्या को कैल्ट संस्कृति के मूर्धन्य ड्रयूड( Druids) पुरोहितों से ग्रहण किया था।
यूरोपीय भाषा परिवार में विद्यमान ब्रेन (Brain) शब्द उच्च अर्थ में, "चेतना और मन का अवयव," है । पुरानी अंग्रेजी मेंं (ब्रेजेगन) "मस्तिष्क", तथा प्रोटो-जर्मनिक * (ब्रैग्नाम ) (मध्य जर्मन (ब्रीगेन )के स्रोत भी यहीं से प्रादुर्भूत हैं भौतिक रूप से ब्रेन " (कोमल तथा भूरे रंग का पदार्थ, एक कशेरुकीय कपाल गुहा है " पुरानी फ़्रिसियाई और डच में (ब्रीन),है ;यहाँ इसकी व्युत्पत्ति-अनिश्चितता से सम्बद्ध, है ।
कदाचित भारोपीय-मूल * मेरगम् (संज्ञा)- "खोपड़ी, मस्तिष्क" तथा (ग्रीक ब्रेखमोस) "खोपड़ी के सामने वाला भाग, सिर के ऊपर") से भी साम्य है ।
लेकिन भाषा वैज्ञानिक लिबर्मन लिखते हैं "कि मस्तिष्क "पश्चिमी जर्मनी के बाहर कोई स्थापित संज्ञा नहीं है  तथा यह और ग्रीक शब्द से जुड़ा नहीं है। अधिक है तो शायद, वह लिखते हैं, कि इसके व्युत्पत्ति-सूत्र भारोपीयमूल से हैं ( bhragno)"कुछ टूटा हुआ है से हैं ।संस्कृत भाषा में देखें---
भ्रंश् भ्रञ्ज् :-- अध: पतने
भ्रंशते । बभ्रंशे । भ्रंशित्वा । भ्रष्ट्वा । भ्रष्टः । भ्रष्टिः । भ्रश्यते इति भ्रशो रूपम् 486।
परन्तु  अब प्रमाण मिला है कि यह शब्द संस्कृत भाषा में प्राप्त भारोपीय धातु :-- ब्रह् से सम्बद्ध है
ब्रह् अथवा बृह् धातु का अर्थ :-- मन्त्रों का उच्चारण करना विशेषत: तीन अर्थों में रूढ़ है यह धातु :--- १- वृद्धौ २- प्रकाशे ३- भाषे च  बृह् :--शब्दे वृद्धौ च - बृंहति बृंहितम बृहिर् इति दुर्गः अबृहत्, अबर्हीत् बृंहेर्नलोपाद् बृहोऽद्यतन:
16वी सदी में प्राप्त उल्लेख "बौद्धिक शक्ति" का आलंकारिक अर्थ अथवा 14 सदी के अन्त से है; यूरोपीय भाषा परिवार में प्रचलित शब्द ब्रेगनॉ जिसका अर्थ है "एक चतुर व्यक्ति" इस अर्थ को पहली बार (1914 )में दर्ज किया गया है। वस्तुत यह विशेषण शब्द  ब्रह्माणों की चातुर्य वृत्तियों का प्रकाशन करता है-विदित हो कि चातुर्य ( चालाकी) और बुद्धिमत्ता दौनों मानसिक सत्ताओं की भिन्न परिभाषाऐं रहीं है ।जहाँ चालाकी में छल अथवा चाल का भाव प्रधान रहता है ,वहीं बुद्धिमानीय रूप  में निश्छलता का भाव होता है ब्रेन (Brain)
मस्तिष्क पर कुछ करने के लिए "बेहद उत्सुक या रुचि रखने वाला " मस्तिष्क की गड़बड़ी "स्मृति का अचानक नुकसान या विचार की ट्रेनिंग, तार्किक रूप से सोचने में अचानक असमर्थता" (1991) से (मस्तिष्क-विकार) (1650) से "तर्कहीन या अपवर्जित प्रयास" के रूप में रूढ़ है  अर्थ  तथा "मस्तिष्क " के लिए एक पुराना अंग्रेज़ी शब्द था । ब्रेगमन  से ब्रैग्लोका, तथा मध्य अंग्रेजी में, ब्रेनस्कीक (पुरानी अंग्रेज़ी ब्रैगेन्सोक) का अर्थ "पागल,से मस्तिष्क :--- "दिमाग को निर्देशन करने के लिए,"14 वीं सदी, मस्तिष्क है ।
देखें---अंग्रेजी में उद्धरण:--braining। brame See also: Brame and bramé English:-- Etymology:- From Middle English brame, from Old French brame, bram (“a cry of pain or longing; a yammer”) अर्थात् दु:ख में या पीड़ा में  चिल्लाना), of This word Germanic origin, ultimately from Proto-Germanic *bramjaną (“to roar; bellow”), संस्कृत ब्रह्मणा ( मन्त्रों के उच्चारण की क्रिया)   from Proto-Indo-European *bʰrem- (“to make a noise; hum; buzz”). ब्रह् / भृंम्
एक ध्वनि-अनुकरण मूलक धातु इन रूकी तुलना करें :-
Old High German breman (“to roar”), रवर् मन्त्रों का उच्चारण  /अथवा ध्वनि Old English bremman (“to roar”).
More at brim. Compare breme. Noun:--- brame (uncountable)... (obsolete) intense passion or emotion; vexation.... Spenser, The Fairie Queene, (Book III, Canto II, 52) ...
hart-burning brame / She shortly like a pyned ghost became. Part or all of this entry has been imported from the 1913 edition of Webster’s Dictionary, which is now free of copyright and hence in the public domain. The imported definitions may be significantly out of date, and any more recent senses may be completely missing. (See the entry for brame in Webster’s Revised Unabridged Dictionary, G. & C. Merriam, 1913.)
Anagrams:--- Amber, amber, bemar, bream, embar French:---; Verb:---- brame.... first-person singular present indicative of bramer third-person singular present indicative of bramer first-person singular present subjunctive of bramer first-person singular present subjunctive of bramer second-person singular imperative of bramer Anagrams:
किन्तु कुल वंश परम्परा के आधार पर ही पुरोहित पद चलने का प्रचलन था।
इतना महत्व द्विजश्रेष्ठ को ही मिलना चाहिए इसीलिए पुरोहित अर्थात यज्ञादि धार्मिक कर्मकांड करानेवाले वाले वर्ग को ब्राह्मण वर्ग में रखा गया। जो कालान्तरण में जातिगत हो गया ।
विद्वानों के मुताबिक अथर्ववेद देव संस्कृति के अनुयायीयों अथर्वन् समूह की संहिता रही होगी। अथर्वन् का अर्थ है अग्निपूजक पुरोहित।
अवेस्ता में भी इसी अर्थ में इसका प्रयोग हुआ है। अग्निपूजक मागियों का रिश्ता मग पुरोहितों से है।
अथर्ववेद के मंत्रों से स्पष्ट है कि पुरोहित देवताओं का आह्वान करते थे।
मंत्रों में प्राकृतिक शक्तियों के लिए जो सहज संबोधन था, कालांतर में उनमें चमत्कारिक प्रभाव समझा जाने लगा। यहीं से तंत्र-मंत्र, टोने-टोटके की शुरुआत हुई।
उत्तम शक्तियों अर्थात देवताओं का आह्वान करनेवाले पुरोहितों का वर्ग अलग हुआ और निम्न शक्तियों मसलन भूत-प्रेत का आह्वान करनेवाले पुरोहित हीन श्रेणी के माने जाने लगे जिनमें ओझाई करनेवाले भी हैं और श्राद्धकर्म या मृत्यसंस्कार करानेवाले ब्राह्मण भी हैं।
मग से ही मागी बना और फिर इससे मैजिक शब्द बना।  संस्कृत भाषा में मगध शब्द भी मागी मूलक है।
यूरोपीय भाषाओं में  मशीन शब्द भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है और माया भी।
अथर्ववेद से जुड़े जादू-टोने के तार मंत्र-शक्ति की काल्पनिक सर्वव्यापी छवि दिखाते हैं।
यह भी समझ में आता है कि अग्नि को ही मनुष्य ने आदिमकाल से परम चमत्कारिक शक्ति माना।
इसके ताप, दीप्ति और विनाशक प्रभाव में चमत्कार रचने के सारे अवयव मौजूद हैं।
अग्निपूजा से जुड़े भव्य और नाटकीय मंत्रोक्त अनुष्ठानों ने समाज में मंत्रशक्तियों के अलौकिक प्रभाव और भ्रम को रचने में भारी योगदान किया।
मगों को इसीलिए पश्चिम में जादूगर के रूप में प्रस्तुत किया जाता था। ग्रीक उद्धरणों में उनके लिए मगास शब्द का प्रयोग हुआ है। याद रहे, जादूगर जब तक मुंह से आग न निकाल दे अथवा अस्फुट उच्चारों के जरिये शून्य से अग्नि पैदा न कर दे, उसका प्रभाव नहीं होता है
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प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि"

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