पुरोपवाहिनी तस्य नदीं शुक्तिमतीं गिरि:।
अरोत्सीच्चेतना युक्त: कामात् कोलाहल: किल ।।३५।।
राजा उपरिचर की राजधानी के समीप शुक्तिमती नदी वहती है। एक समय 'कोलाहल' नामक सचेतन पर्वत ने काम के वश होकर नदी को पकड़ लिया ।
(महाभारत आदि पर्व ६३ वाँ अध्याय )
तस्यां नद्याम् अजनयत् मिथुनं पर्वत: स्वयम् ।
तस्माद्धि विमोक्षणात् प्रीति नदी राज्ञेन्यवेदयत् ।।३७।
और उस नदी के साथ बलात्कार करने पर उस पर्वत ने नदी के गर्भ से एक पुत्र और एक कन्या जुँड़वा रूप से उत्पन्न की । पर्वत के अवरोध से मुक्त कराने के कारण राजा उपरिचर को नदी ने अपनी दौनो सन्तान भेंट में देदी ।
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