पण्डित , ब्राह्मण और पुरोहित कौन हैं ? और ये कहाँ से आये ? विचारक:-- यादव योगेश कुमार'रोहि'
Origin and Etymology of brahman)
Middle English (Bragman )inhabitant of India,
from Latin +Bracmanus,) from Greek (Brachman,) from Sanskrit brāhmaṇa of the Brahman caste, from brahman Brahman
First Known Use: 15th century
( ब्राह्मण शब्द का मूल व उसकी व्युत्पत्ति-)
ब्राह्मण वर्ण का वाचक है । भारतीय पुराणों में ब्राह्मण का प्रयोग मानवीय समाज में सर्वोपरि रूप से निर्धारित किया है । यह शब्द सम्बद्ध है ग्रीक "ब्रचमन" तथा लैटिन "ब्रैक्समेन" मध्य अंग्रेज़ी का "बगमन "
भारतीय पुरोहितों का मूल विशेषण ब्राह्मण है ।
इसका पहला यूरोपपीय ज्ञात प्रयोग: 15 वीं शताब्दी में है ।
अंग्रेज़ी भाषा में ब्रेन (Brain) मस्तिष्क का वाचक है ।
संस्कृत भाषा में तथा प्राचीन -- भारोपीय रूप ब्रह्मण है।
मस्तिष्क ( संज्ञा ) का रूप :-----ब्रह्मण
ऋग्वेद के १०/९०/१२
ब्राह्मणोSस्य मुखमासीत् बाहू राजन्यकृत: ।
उरू तदस्ययद् वैश्य पद्भ्याम् शूद्रोsजायत।।
अर्थात् ब्राह्मण विराट-पुरुष के मुख से उत्पन्न हुए
और बाहों से राजन्य ( क्षत्रिय)उरु ( जंघा) से वैश्य
तथा पैरों से शूद्र उत्पन्न हुए ।
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यद्यपि यह ऋचा पाणिनीय कालिक ई०पू० ५०० के समकक्ष है ।
परन्तु यहाँ ब्राह्मण को विद्वान् होने से मस्तिष्क-ब्रेन कहना सार्थक था ।
यूरोपीय भाषा परिवार में विद्यमान ब्रेन (Brain)
उच्च अर्थ में, "चेतना और मन का अवयव," पुरानी अंग्रेजी (ब्रेजेगन) "मस्तिष्क", तथा प्रोटो-जर्मनिक * (ब्रैग्नाम )
(मध्य जर्मन (ब्रीगेन )के स्रोत भी यहीं से हैं ,
भौतिक रूप से ब्रेन " कोमल , भूरे रंग का पदार्थ, एक कशेरुका का कपाल गुहा है "
पुराने फ़्रिसियाई और डच में (ब्रीन), यहाँ इसका व्युत्पत्ति-अनिश्चितता से सम्बद्ध, शायद भारोपीय-मूल * मेरगम् (संज्ञा)- "खोपड़ी, मस्तिष्क"
(ग्रीक ब्रेखमोस)
"खोपड़ी के सामने वाला भाग, सिर के ऊपर")।
लेकिन भाषा वैज्ञानिक लिबर्मन लिखते हैं कि मस्तिष्क "पश्चिमी जर्मनी के बाहर कोई स्थापित संज्ञा नहीं है ।
..." तथा यह और ग्रीक शब्द से जुड़ा नहीं है।
अधिक है तो शायद, वह लिखते हैं, कि इसके व्युत्पत्ति-सूत्र भारोपीयमूल के हैं । * bhragno "कुछ टूटा हुआ है। परन्तु यह शब्द संस्कृत भाषा में प्राप्त भारोपीय धातु :--- ब्रह् से सम्बद्ध है ।
ब्रह् अथवा बृह् धातु का अर्थ :---- तीन अर्थों में रूढ़ है ।
१- वृद्धौ २- प्रकाशे ३- भाषे च
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बृह् :--शब्दे वृद्धौ च - बृंहति बृंहितम बृहिर् इति दुर्गः अबृहत्, अबर्हीत् बृंहेर्नलोपाद् बृहोऽद्यतनः (?)
16वी सदी से तारीखें "बौद्धिक शक्ति" का आलंकारिक अर्थ अथवा14 सदी के अन्त से है; यूरोपीय भाषा परिवार में प्रचलित शब्द ब्रेगनॉ
जिसका अर्थ है "एक चतुर व्यक्ति"
इस अर्थ को पहली बार (1914 )में दर्ज किया गया है। मस्तिष्क पर कुछ करने के लिए "बेहद उत्सुक या रुचि रखने वाला "
मस्तिष्क की गड़बड़ी "स्मृति का अचानक नुकसान या विचार की ट्रेनिंग, तार्किक रूप से सोचने में अचानक असमर्थता" (1991) से (मस्तिष्क-विकार) (1650) से "तर्कहीन या अपवर्जित प्रयास" के रूप में रूढ़ है
"सिर" के लिए एक पुराना अंग्रेज़ी शब्द था ब्रेगमन ।ब्रैग्लोका, जिसका अनुवाद "मस्तिष्क लॉकर" के रूप में किया जा सकता है।
मध्य अंग्रेजी में, ब्रेनस्कीक (पुरानी अंग्रेज़ी ब्रैगेन्सोक) का अर्थ "पागल,स से जुड़ता है।"
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मस्तिष्क :---
"दिमाग को निर्देशन करने के लिए,"14 वीं सदी, मस्तिष्क ।
braining।
brame
See also: Brame and bramé
English:--
Etymology:-
From Middle English brame, from Old French brame, bram (“a cry of pain or longing; a yammer”), of Germanic origin, ultimately from Proto-Germanic *bramjaną (“to roar; bellow”), from Proto-Indo-European *bʰrem- (“to make a noise; hum; buzz”).
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तुलना करें
Old High German breman (“to roar”), रवर्
Old English bremman (“to roar”).
More at brim. Compare breme.
Noun:---
brame (uncountable)...
(obsolete) intense passion or emotion; vexation....
Spenser, The Fairie Queene,
(Book III, Canto II, 52)
... hart-burning brame / She shortly like a pyned ghost became.
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खुद्दकनिकाय, धम्मपद,ब्राह्मणवग्गो
जवाब देंहटाएं३८८.बाहितपापोति [PTS .५६] ब्राह्मणो, समचरिया समणोति वुच्चति।
पब्बाजयमत्तनो मलं, तस्मा “पब्बजितो”ति वुच्चति॥
👉यहाँ भगवा बुद्ध ने अपने चित्त के पापों को बहाने वाले को ब्राह्मण कहा है । ब्राह्मण सब्द[शब्द] का मूल बहाना[flowing] से उत्पन्न बताया है जो मूल धातु[root word] से सम्बद्ध हो रहा है ।
अतः यहां जो संस्कृत साहित्य में उठापटक करके ब्राह्मण को मुख/सिर/मस्तिष्क/brain कहकर सम्बद्ध किया गया यह मूलधातु[root word] से कहीं भी सम्बद्ध नहीं होता है ।
खुद्दकनिकाय, धम्मपद,ब्राह्मणवग्गो
जवाब देंहटाएं३८८.बाहितपापोति [PTS .५६] ब्राह्मणो, समचरिया समणोति वुच्चति।
पब्बाजयमत्तनो मलं, तस्मा “पब्बजितो”ति वुच्चति॥
👉यहाँ भगवा बुद्ध ने अपने चित्त के पापों को बहाने वाले को ब्राह्मण कहा है । ब्राह्मण सब्द[शब्द] का मूल बहाना[flowing] से उत्पन्न बताया है जो मूल धातु[root word] से सम्बद्ध हो रहा है ।
अतः यहां जो संस्कृत साहित्य में उठापटक करके ब्राह्मण को मुख/सिर/मस्तिष्क/brain कहकर सम्बद्ध किया गया यह मूलधातु[root word] से कहीं भी सम्बद्ध नहीं होता है ।