पण्डित , ब्राह्मण और पुरोहित कौन हैं ?
और ये कहाँ से आये ? विचारक:-- यादव योगेश कुमार 'रोहि' ।
आर्यों के पुरोहित तथा सर्वेसर्वा: ब्राह्मण समाज का आगमन स्वर्ग से हुआ।
समग्र भारतीय पुराणों में तथा वैदिक ऋचाओं मे भी यही तथ्य प्रतिध्वनित होता है ।
सर्व-प्रथम हम यूरोपीय भाषा परिवार में तथा वहाँ की प्राचीनत्तम संस्कृतियों से भी यह तथ्य उद्घाटित करते हैं ।
कि वास्तविक रूप में स्वर्ग कहाँ था । और देवों अथवा सुरों के रूप में ब्राह्मणों का आगमन किस प्रकार हुआ । व्युत्पत्ति-मूलक दृष्टि से कुछ उद्धरण आँग्लभाषा में हैं । जिनका सरलत्तम अनुवादित रूप भी प्रस्तुत है
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Origin and Etymology of (brahman)in European languages Middle English अर्थात् मध्य अंग्रेज़ी में (Bragman )inhabitant of India, and Germany in Bremen city , derived from Latin +Bracmanus,) from Greek (Brachman) it too derivetion from Sanskrit brāhmaṇa of the Brahman caste, from brahman । Brahman First Known
Use: 15th century
( ब्राह्मण शब्द का मूल व उसकी व्युत्पत्ति-)
ब्राह्मण शब्द भारतीय वर्ण -व्यवस्था में सर्वोपरि वर्ण ( जाति)का वाचक है ।
भारतीय पुराणों में ब्राह्मण का प्रयोग मानवीय समाज में सर्वोपरि रूप से निर्धारित किया है । क्योंकि इन -ग्रन्थों को लिखने वाले भी स्वयं वही ब्राह्मण वर्ण के लोग थे । संस्कृत भाषा के ब्राह्मण शब्द सम्बद्ध है ।
, ग्रीक ("ब्रचमन" )तथा लैटिन ("ब्रैक्समेन" )मध्य अंग्रेज़ी का ("बगमन ") भारतीय पुरोहितों का मूल विशेषण ब्राह्मण है । इसका पहला यूरोपपीय ज्ञात प्रयोग: 15 वीं शताब्दी में है ।
भारतीय संस्कृति में वर्णित ब्राह्मणों का तादात्म्य जर्मनीय शहर ब्रेमन में बसे हुए ब्रामरों से प्रस्तावित है । पुरानी फारसी भाषा में बिरहमन है ,जो अवेस्ता ए झन्द से सम्बद्ध है ।उसमे बिरहमन शब्द ब्राह्मण शब्द का ही तद्भव है ।
सुमेरियन तथा अक्काडियन भाषा में बरम ( Baram ) ब्राह्मण का वाचक है ।
अंग्रेज़ी भाषा में ब्रेन (Brain) मस्तिष्क का वाचक है । संस्कृत भाषा में तथा प्राचीन - भारोपीय भाषा में इसका रूप ब्रह्मण है।
मस्तिष्क ( संज्ञा ) का रूप :---- ______________________________________ -ब्रह्मण ऋग्वेद के १०/९०/१२ ब्राह्मणोSस्य मुखमासीत् बाहू राजन्यकृत: । उरू तदस्ययद् वैश्य: पद्भ्याम् शूद्रोsजायत।। _____________________________________ अर्थात् ब्राह्मण विराट-पुरुष के मुख से उत्पन्न हुए, और बाहों से राजन्य ( क्षत्रिय) ,उरु ( जंघा) से वैश्य तथा पैरों से शूद्र उत्पन्न हुए । ______________________________________ यद्यपि यह ऋचा पाणिनीय कालिक ई०पू० ५०० के समकक्ष है ।
परन्तु यहाँ ब्राह्मण को विद्वान् होने से मस्तिष्क-(ब्रेन )कहना सार्थक था ।
देव संस्कृति के उपासक ब्राह्मणों ने आध्यात्मिक विद्या को कैल्ट संस्कृति के मूर्धन्य ड्रयूड( Druids) पुरोहितों से ग्रहण किया था। यूरोपीय भाषा परिवार में विद्यमान ब्रेन (Brain) शब्द उच्च अर्थ में, "चेतना और मन का अवयव," है । पुरानी अंग्रेजी मेंं (ब्रेजेगन) "मस्तिष्क", तथा प्रोटो-जर्मनिक * (ब्रैग्नाम ) (मध्य जर्मन (ब्रीगेन )के स्रोत भी यहीं से हैं , भौतिक रूप से ब्रेन " (कोमल तथा भूरे रंग का पदार्थ, एक कशेरुकीय कपाल गुहा है "
पुरानी फ़्रिसियाई और डच में (ब्रीन),है । यहाँ इसकी व्युत्पत्ति-अनिश्चितता से सम्बद्ध, है । कदाचित भारोपीय-मूल * मेरगम् (संज्ञा)- "खोपड़ी, मस्तिष्क" तथा (ग्रीक ब्रेखमोस) "खोपड़ी के सामने वाला भाग, सिर के ऊपर") से भी साम्य है ।
लेकिन भाषा वैज्ञानिक लिबर्मन लिखते है "कि मस्तिष्क "पश्चिमी जर्मनी के बाहर कोई स्थापित संज्ञा नहीं है ।
." तथा यह और ग्रीक शब्द से जुड़ा नहीं है। अधिक है तो शायद, वह लिखते हैं, कि इसके व्युत्पत्ति-सूत्र भारोपीयमूल के हैं । *( bhragno) "कुछ टूटा हुआ है से हैं ।
संस्कृत भाषा में देखें--- भ्रंश् भ्रञ्ज् :-- अध: पतने भ्रंशते । बभ्रंशे । भ्रंशित्वा । भ्रष्ट्वा । भ्रष्टः । भ्रष्टिः । भ्रश्यते इति भ्रशो रूपम् 486। परन्तु अब प्रमाण मिला है कि यह शब्द संस्कृत भाषा में प्राप्त भारोपीय धातु :--- ब्रह् से सम्बद्ध है, ब्रह् अथवा बृह् धातु का अर्थ :---- मन्त्रों का उच्चारण करना विशेषत: तीन अर्थों में रूढ़ है यह धातु :--- १- वृद्धौ २- प्रकाशे ३- भाषे च _______________________________________ बृह् :--शब्दे वृद्धौ च - बृंहति बृंहितम बृहिर् इति दुर्गः अबृहत्, अबर्हीत् बृंहेर्नलोपाद् बृहोऽद्यतन 16वी सदी में प्राप्त उल्लेख "बौद्धिक शक्ति" का आलंकारिक अर्थ अथवा 14 सदी के अन्त से है; यूरोपीय भाषा परिवार में प्रचलित शब्द ब्रेगनॉ जिसका अर्थ है "एक चतुर व्यक्ति" इस अर्थ को पहली बार (1914 )में दर्ज किया गया है। वस्तुत यह ब्रह्माणों की चातुर्य वृत्तियों का प्रकाशन करता है- विदित हो कि चातुर्य ( चालाकी) और बुद्धिमत्ता दौनों मानसिक सत्ताओं की भिन्न परिभाषाऐं रहीं है ।
जहाँ चालाकी में छल अथवा चाल का भाव प्रधान रहता है , वहीं बुद्धिमानीय में निश्छलता का भाव होता है । ब्रेन (Brain) मस्तिष्क पर कुछ करने के लिए "बेहद उत्सुक या रुचि रखने वाला " मस्तिष्क की गड़बड़ी "स्मृति का अचानक नुकसान या विचार की ट्रेनिंग, तार्किक रूप से सोचने में अचानक असमर्थता" (1991) से (मस्तिष्क-विकार) (1650) से "तर्कहीन या अपवर्जित प्रयास" के रूप में रूढ़ है अर्थ तथा "मस्तिष्क " के लिए एक पुराना अंग्रेज़ी शब्द था । ब्रेगमन से ब्रैग्लोका, तथा मध्य अंग्रेजी में, ब्रेनस्कीक (पुरानी अंग्रेज़ी ब्रैगेन्सोक) का अर्थ "पागल,स से जुड़ता है।" _________________________________________ मस्तिष्क :--- "दिमाग को निर्देशन करने के लिए,"14 वीं सदी, मस्तिष्क देखें---अंग्रेजी में उद्धरण:--
braining। brame See also: Brame and bramé English:-- Etymology:- From Middle English brame, from Old French brame, bram (“a cry of pain or longing; a yammer”) अर्थात् दु:ख मे या पीड़ा में चिल्लाना), of This word Germanic origin, ultimately from Proto-Germanic *bramjaną (“to roar; bellow”), संस्कृत ब्रह्मणा ( मन्त्रों के उच्चारण की क्रिया) from Proto-Indo-European *bʰrem- (“to make a noise; hum; buzz”). ब्रह् / भृंम् एक ध्वनि-अनुकरण मूलक धातु...... __________________________________________ इन रूपों 'की तुलना करें :- Old High German breman (“to roar”), रवर् मन्त्रों का उच्चारण /अथवा ध्वनि Old English bremman (“to roar”). More at brim. Compare breme. Noun:--- brame (uncountable)... (obsolete) intense passion or emotion; vexation.... Spenser, The Fairie Queene, (Book III, Canto II, 52) . hart-burning brame / She shortly like a pyned ghost became. Part or all of this entry has been imported from the 1913 edition of Webster’s Dictionary, which is now free of copyright and hence in the public domain. The imported definitions may be significantly out of date, and any more recent senses may be completely missing. (See the entry for brame in Webster’s Revised Unabridged Dictionary, G. & C. Merriam, 1913.) Anagrams:--- Amber, amber, bemar, bream, embar French:---; Verb:---- brame.... first-person singular present indicative of bramer third-person singular present indicative of bramer first-person singular present subjunctive of bramer first-person singular present subjunctive of bramer second-person singular imperative of bramer Anagrams:--;- ambre, Ambre, ambré Italian:---- Noun:--- brame plural of brama Anagrams:--- ambre Brema Spanish:---- Verb:---- brame First-person singular (yo) present subjunctive form of bramar. Third-person singular (él, ella, also used with usted?) present subjunctive form of bramar. Formal second-person singular (usted) imperative form of bramar. brame
यह भी देखें:
Brame and Bramé हिन्दी में सार-अनुवाद प्रस्तुत है- अंग्रेजी रूप :-- व्युत्पत्ति :- पुरानी फ्रांसीसी ब्रम से, ब्रैम ("दर्द या लालसा की एक अवस्था रूदन ,गुञ्जार ), मध्य-अंग्रेजी ब्रम से सम्बद्ध अन्ततः प्रोटो-जर्मनिक * ब्रमजान ("गर्जन करने के लिए"; प्रोटो-इंडो- यूरोपीय * बृम- ("शोर बनाने के लिए; हमचर्चा")। पुरानी हाई जर्मन ब्रीमन की तुलना करें ("गर्जन करने के लिए"), पुरानी अंग्रेज़ी ब्रीमेन ("गर्जन करने के लिए")।
सीमा पर और अधिक ब्रेमे की तुलना करें ।
संज्ञा :-- ब्रैम (बेशुमार) (अप्रचलित) तीव्र जुनून या भावना; गुब्बार स्पेंसर, फेयरी क्वीन, (बुक III, कैंटो II, 52) हर्ट-बर्न ब्रेम / वह जल्द ही एक झुका हुआ भूत की तरह बन गई। भाग या इस सभी प्रविष्टि को वेबस्टर की शब्दकोश के 1 9 13 संस्करण से आयात किया गया है, । जो अब कॉपीराइट से मुक्त है और इसलिए सार्वजनिक डोमेन में। आयातित परिभाषाएं काफी पुरानी हो सकती हैं, और कोई भी हाल की इंद्रियां पूरी तरह से गायब हो सकती हैं। (वेबस्टर के संशोधित अनब्रिज्ड डिक्शनरी, जी और सी। मरियम, 1 9 13 में ब्रेग्मा के लिए प्रवेश देखें।) अनाग्रामज़ :--- एम्बर, एम्बर, बीमर, ब्रीम, एम्बर फ्रेंच :--- क्रिया :---- brame ब्रैमर के पहले व्यक्ति का विलक्षण वर्तमान संकेत ब्रामर के तीसरे व्यक्ति का विलक्षण वर्तमान संकेत ब्रामर के पहले व्यक्ति विलक्षण वर्तमान उपनगरीय ब्रामर के पहले व्यक्ति विलक्षण वर्तमान उपनगरीय ब्रैमर का दूसरा व्यक्ति एकवचन आवश्यक अनाग्रामज़ । अमब्रू, एम्ब्रर, एम्ब्रिए इतालवी :--संज्ञा :--- ब्रेम :-- ब्रामा का बहुवचन अनाग्रामज़ :--- ambre Brema स्पेनिश क्रिया :--- brame प्रथम व्यक्ति विलक्षण - ब्रैमर के वर्तमान प्रकार के रूप ब्रैमर के वर्तमान उपमहावीय रूप में तीसरे व्यक्ति के विलक्षण ( एला,) का प्रयोग भी किया गया?) ब्रैमर का औपचारिक दूसरा व्यक्ति एकवचन (उस्ताद) अनिवार्य रूप... संस्कृत भाषा में ब्राह्मण को गुरू मानना ________________________________________ bramar Catalan- Etymology-- From Gothic (bramjan). Verb:-- bramar (first-person singu lar present bramo, past participle bramat) to roar, to bellow toॉ bray of an animal, to make its cry Conjugation:--- Conjugation of bramar (first conjugation) Derived terms:- bram Galician:- bramando ("troating") Etymology:-;; From Gothic ै(bramjan), from Proto-Germanic *bremaną (“to roar”), from Proto-Indo-European *bʰrem- ब्रह्म (“to make noise”). Cognate with Spanish bramar, French bramer, Italian bramire, Old English bremman (“to roar, rage”). Pronunciation---- /bɾaˈmaɾ/ Verb--- bramar (first-person singular present bramo, first-person singular preterite bramei, past participle bramado) to roar, to bellow to troat (a deer) Conjugation- Conjugation of bramar Synonyms--- berrar, bradar, bruar Derived terms--- brama (“Deers mating season”) bramido (“troat”) Related terms--- bremar _________________________________________ References-- “bramido” in Xavier Varela Barreiro & Xavier Gómez Guinovart: Corpus Xelmírez - Corpus lingüístico da Galicia medieval. SLI / Grupo TALG / ILG, 2006-2016. “bramar” in Dicionario de Dicionarios da lingua galega, SLI - ILGA 2006-2013. “bramar” in Santamarina, Antón (coord.) “bramar” in Álvarez, Rosario (coord.) Etymology Borrowed from French bramer, Italian bramire, Spanish bramar, ultimately from Gothic ... (bramjan), from Proto-Germanic *bramjaną. ब्रह्मजना संस्कृत ब्राह्मण: __________________________________________ Pronunciation : /braˈmar/ब्राह्मर भ्रमर Hyphenation: bramar Verb:----- bramar (present tense bramas, past tense bramis, future tense bramos, imperative bramez, conditional bramus) (intransitive) to make the characteristic call of any animal: to bellow; low; bray; bleat; neigh:-- (figuratively) to roar, yell Conjugation Conjugation of bramar Derived terms:---- bramo (“bellowing; lowing; braying; bleating; neighing; roaring, yelling”) Spanish Etymology----------- From Gothic (bramjan). See also Old English bremman, Old High German brëman, Middle Low German brammen, French bramer.... Verb---- bramar (first-person singular present bramo, first-person singular preterite bramé, past participle bramado) to roar, to bellow (धौकनी ) , to trumpet (बिगुुल)🗾 Conjugation--- संस्कृत भाषा में ब्राह्मण शब्द की व्युत्पत्ति :---- ब्राह्मणो विप्रस्य प्रजापतेर्वा अपत्यम् । ब्रह्म वेदस्तमधीते वा सः । इति ब्रह्मण: भरत नाट्य शास्त्र ॥ वेद का अर्थ ध्वनि(वद)तथा प्रकाश भी है ।अत: श्रुति ( नाद अथवा ध्वनि का विशेषण है। संस्कृत भाषा में विदँ = लाभे ,विवादे ,वेदनायाम्, सत्तायाम् विचारणे ,निवासे ,चेतने ,आख्यान, ज्ञानेे अर्थात् -विद् धातु का अर्थ ध्वनि मूलक भी है । (ब्रह्मन् + अण् “ ब्राह्मोऽजातौ। “ ६/ ४/१७१ । इति नटिलोपः । ) तत्पर्य्यायः । द्विजातिः २ अग्रजन्मा ३ भूदेवः ४ बाडवः ५ विप्रः ६ । इत्यमरःकोश ॥ २ । ७ । ४ । ॥ द्बिजः ७ सूत्र- कण्ठः ८ ज्येष्ठवर्णः ९ अग्रजातकः १० द्विजन्मा ११ वक्त्रजः १२ मैत्रः १३ वेदवासः १४ नयः १५ गुरुः १६ । इति शब्दरत्नाबली ॥ ब्रह्मा १७ षट्कर्म्मा १८ द्विजोत्तमः १९ । इति राजनिर्घण्टुः ॥ * ॥ अयं सर्व्ववर्णश्रेष्ठः । ब्रह्मणो मुखाज्जातः । प्लक्षद्वीपे तस्य संज्ञा हंसः । शाल्मलद्वीपे श्रुतिधरः । कुशद्वीपे कुशलः । क्रौञ्चद्वीपे गुरुः । शाकद्वीपे ऋतव्रतः । पुष्कर- द्वीपे सर्व्वे एकवर्णाः । अस्य शास्त्रनिरूपित- धर्म्मास्त्रयः अध्ययनं यजनं दानञ्च । जीविका- स्तिस्रः अध्यापनं याजनं प्रतिग्रहश्च । अयमा- श्रमचतुष्टयवान् भवति । यथा ।
ब्रह्मचारी गृहस्थः वानप्रस्थः सन्न्यासी च । क्षत्त्रियवैश्य- योस्तु क्रमश एकैकपादहीनत्वमिति बोध्यम् । इति श्रीभागवतम् ॥ * ॥ ब्राह्मणीक्षत्त्रिया- वैश्यासु ब्राह्मणाज्जातो ब्राह्मणः । यथा -- “ ब्राह्मण्यां ब्राह्मणाज्जातो ब्राह्मणः स्यान्न संशयः । क्षत्त्रियायां तथैव स्याद्वैश्यायामपि चैव हि ॥ “ इति महाभारते अनुशासने । ४७ । २८ ॥ तस्य लक्षणं यथा -- “ जात्या कुलेन वृत्तेन स्वाध्यायेन श्रुतेन च । एभिर्युक्तो हि यस्तिष्ठेन्नित्यं स द्बिज उच्यते ॥ “ इति वह्रिपुराणम् ॥ अपि च । “ न क्रुध्येन्न प्रहृष्येच्च मानितोऽमानितश्च यः । सर्व्वभूतेष्वभयदस्तं देवा ब्राह्मणं विदुः ॥ अहेरिव गणाद्भीतः लौहित्यान्नरकादिव । कुणपादिव च स्त्रीभ्यस्तं देवा ब्राह्मणं विदुः ॥ येन केनचिदाच्छन्नो येन केनचिदाशितः । यत्र क्वचन शायी च तं देवा ब्राह्मणं विदुः ॥ विमुक्तं सर्व्वसङ्गेभ्यो मुनिमाकाशवत् स्थितम् । अस्वमेकचरं शान्तं तं देवा ब्राह्मणं विदुः ॥ जीवितं यस्य धर्म्मार्थं धर्म्मो रत्यर्थमेव च । अहोरात्राश्च पुण्यार्थं तं देवा ब्राह्मणं विदुः ॥ निराशिषमनारम्भं निर्नमस्कारमस्तुतिम् । अक्षीणं ज्ञीणकर्म्माणं तं देवा ब्राह्मणं विदुः ॥ “ इति महाभारते मोक्षधर्म्मः ॥ * ॥ अपि च । विशाखयूप उवाच । “ विप्रस्य लक्षणं ब्रूहि त्वद्भक्तिः का च तत्कृता । यतस्तवानुग्रहेण वाग्वाणाः ब्राह्मणाः कृताः ॥ कल्किरुवाच । वेदा मामीश्वरं प्राहुरव्यक्तं व्यक्तिमत् परम् । ते वेदा ब्राह्मणमुखे नाना धर्म्माः प्रकाशिताः ॥ यो धर्म्मो ब्राह्मणानां हि सा भक्तिर्मम पुष्कला । तयाहं तोषितः श्रीशः संभवामि युगे युगे ॥ ऊर्द्धन्तु त्रिवृतं सूत्रं सधवानिर्म्मितं शनैः । तन्तुत्रयमधोवृत्तं यज्ञसूत्रं विदुर्बुधाः ॥ त्रिगुणं तद्ग्रन्थियुक्तं वेदप्रवरसस्मितम् । शिरोधरान्नाभिमध्यात् पृष्ठार्द्धपरिमाणकम् ॥ यजुर्विदां नाभिमितं सामगानामयं विधिः । वामस्कन्धेन विधृतं यज्ञसूत्रं बलप्रदम् ॥ मृद्भस्मचन्दनाद्यैस्तु धारयेत्तिलकं द्विजः । भाले त्रिपुण्ड्रं कर्म्माङ्गं केशपर्य्यन्तमुज्ज्वलम् ॥ पुण्ड्रमङ्गुलिमानन्तु त्रिपुण्ड्रं तत्त्रिधाकृतम् । ब्रह्मविष्णुशिवावासं दर्शनात् पापनाशनम् ॥ ब्राह्मणानां करे स्वर्गा वाचो वेदाः करे हरिः । गात्रे तीर्थानि यागाश्च नाडीषु प्रकृतिस्त्रिवृत् ॥ सावित्री कण्ठकुहरा हृदयं ब्रह्मसङ्गतम् । तेषां स्तनान्तरे धर्म्मः पृष्ठेऽधर्म्मः प्रकीर्त्तितः ॥ भूदेवा ब्राह्मणा राजन् ! पूज्या वन्द्याः सदु- क्तिभिः । चातुराश्रम्यकुशला मम धर्म्मप्रवर्त्तकाः ॥ बालाश्चापि ज्ञानवृद्धास्तपोवृद्धा मम प्रियाः । तेषां वचः पालयितुमवताराः कृता मया ॥ महाभाग्यं ब्राह्मणानां सर्व्वपापप्रणाशनम् । कलिदोषहरं श्रुत्वा मुच्यते सर्व्वतो भयात् ॥ “ इति कल्किपुराणे ४ अध्यायः ॥ * ॥ “ ब्रह्मविद्ब्राह्मणो ब्रह्मी ब्रह्मज्ञो ब्राह्मणप्रियः ॥ “ शिवः । यथा तत्रैव । १३ । १७ । १३३ । गभस्तिब्रह्मकृद्ब्रह्मा ब्रह्मविद् ब्राह्मणो गतिः ॥ “ ब्रह्म जानातीति व्युत्पत्त्या परब्रह्मवेत्तरि त्रि ॥ ) ------------------------------------------------------------------- विशेष मन्तव्य :---- वस्तुत ब्राह्मण शब्द की ये सब रूढ़ि गत व्युत्पत्तियाँ है। ब्राह्मण शब्द प्राचीनत्तम भारोपीय धातु ब्रह् से सम्बद्ध है जो पूर्ण रूपेण ध्वनि अनुकरण मूलक है । अर्थात् स्तुतियों अथवा मन्त्रों में निरन्तर ध्वनि का भाव होने से ही ब्राह्मण शब्द का जन्म हुआ । भृंग तथा ब्राह्मण शब्द संस्कृत भाषा में मूलत: ध्वनि अनुकरण मूलक हैं । भ्रमर का और ब्राह्मण का स्वभाव समान होने से ही यह समान उच्चारण मूलक है । ________________________________________ ( पुरोहित ) शब्द का यूरोपीय भाषा में स्वरूप भी विचारणीय है :--- ग्रीक भविष्यवक्ताओं विशेषत:: (डोरिक प्रॉपहेत ) से सम्बद्ध है । "जो व्यक्ति ईश्वर के लिए बोलता है, वह व्यक्ति जो भविष्यवाणी करता है, प्रेरित प्रचारक," पुरानी फ्रांसीसी भविष्यवाणियों से, "भविष्यद्वक्ता, सोथशेयर" (११वीं सदी आधुनिक फ्रेंच प्रोफेट) ) "एक व्याख्याता, प्रवक्ता," विशेष रूप से देवताओं से प्रेरित, प्रेरित प्रेरक या शिक्षक, "समर्थक से पहले" भारोपीयमूल धातु * प्रति - (1) "आगे," इसलिए "सामने, पहले") संस्कृत रूप (प्र) pro + धातु संस्कृत पण् (फैनई)( phanai) "बोलने के लिए", मूल रूप (भा ) - "बोलने, बताने, से सम्बद्ध है" यूनानी शब्द का उपयोग हिब्रू नबी के लिए सेप्ट्यूएजिंट में किया गया था "सोधेयय।" प्रारम्भिक लैटिन लेखकों ने लैटिन वाल्टों के साथ ग्रीक भविष्यवक्ताओं का अनुवाद किया था,। लेकिन लैटिनिज़ किए गए फार्म का भविष्यकाल शास्त्रीय कालों में मुख्यतः ईसाई लेखकों के कारण होता है, संभवतः क्योंकि vates के बुतपरस्त संगठनों की वजह से। संस्कृत भाषा में वेत्ता रूप अंग्रेजी में, "ओल्ड टेस्टामेंट के भविष्यवाणकर्ता लेखक" 14 वीं सदी के अन्त से है। गैर-धार्मिक भावना 1848 से सम्बद्ध है; 1610 के दशक में मुहम्मद के लिए प्रयोग (अरबी अल-नबीय का अनुवाद, और कभी-कभी अल-रसूल, ठीक से "दूत")। पुरानी अंग्रेजी में विग्गा द्वारा लैटिन शब्द को ग्लॉसिड किया गया ।निम्नलिखित मूल सन्दर्भों का विवरण उपर्युक्त रूप में अनुवादित है । prophet (noun.) late 12c., "person who speaks for God; one who foretells, inspired preacher," from Old French prophete, profete "prophet, soothsayer" (11c., Modern French prophète) and directly from Latin propheta, from Greek prophetes (Doric prophatas) "an interpreter, spokesman," especially of the gods, "inspired preacher or teacher," from pro "before" (from PIE root *per- (1) "forward," hence "in front of, before") + root of (phanai) "to speak," from PIE root *bha- (2) "to speak, tell, say." The Greek word was used in Septuagint for Hebrew nabj "soothsayer." Early Latin writers translated Greek prophetes with Latin vates, but the Latinized form propheta predominated in post-Classical times, chiefly due to Christian writers, probably because of pagan associations of vates. In English, meaning "prophetic writer of the Old Testament" is from late 14c. Non-religious sense is from 1848; used of Muhammad from 1610s (translating Arabic al-nabiy, and sometimes also al-rasul, properly "the messenger"). The Latin word is glossed in Old English by witga..
ब्राह्मण शब्द का मूल अर्थ है :--- भ्रमर के समान मन्त्रों का निरन्तर वाचन करते रहने वाला ही ब्राह्मण है अब विचार करते हैं ब्राह्मण कहाँ से आये भू-मध्य-रेखीय देश भारत में , और कहँ था इनका वास्तविक आवास ---- (यादव योगेश कुमार 'रोहि' गवेषणाओं के आधार पर सूत्रात्मक विश्लेषण) -- स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य.... · 🌓⚡⛅............ स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य .....यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है | ...🌓⚡⛅...........................................…....... आज से दश सहस्र ( दस हज़ार )वर्ष पूर्व मानव सभ्यता की व्यवस्थित संस्था आर्य जनजाति का प्रस्थान स्वर्ग से भू- मध्य रेखीय स्थल अर्थात् आधुनिक भारत में हुआ था | यद्यपि ई०पू० २५०० के समकक्ष असुर संस्कृति के उपासक असीरियन अक्काडियन हिब्रू आदि संस्कृतियों से स्वीडन मूल से आये हुए आर्यों का संघर्ष दीर्घ काल तक चला इसके प्रमाण सुमेरियन पुरातन कथाओं में विद्यमान हैं । यहीं से विष्णु देवता का प्रादुर्भाव जल प्रलय के प्रसंग में है ।120 नम्बर इंडो-सुमेरियन सील (मौहर) मंडल यह मछली देवत्व या स्वर्गदूत, इसके अलावा, तथाकथित "देवी नना" ऋग्वेद में " (कारूरहम् ततो भिषग् उपल प्रक्षिणी नना )अर्थात् मैं करीगर हूँ पिता वैद्य तथा माता पीसने वाली " पुरा-तात्वविक विशेषज् (!) के रूप में भगवान स्वयं नहीं, बल्कि "ईश्वर का बेटा" के रूप में, और 'pies (या पाश ) fish और नेपिट्यूब, जिसे हमने देखा है कि ग्रीक और रोमन "पोस-ईडन"( poisidon) और नेपच्यून के दोनों नाम, प्रतिनिधित्व और कार्यों के सुमेरियन मूल का खुलासा किया है,| साथ ही साथ "जल के बेटे" के लिए संस्कृत नापैट भी नाम दिया है "विष्णु" ; और इससे पहले कि मेरे पूर्व कार्य में दर्ज किए गए लोगों के लिए सुमेरियन मूल के कई और आर्य भगवान के नामों को जोड़ना ये खोजों ने सुमेरियों के धर्म में पूरी तरह से नए खंड खोल दिए, बाद में आर्यों के देवताओं के नामों के स्रोत के रूप में, साथ ही रूपों और कार्यों को भी खुलासा किया। यह महान ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का भी पता चलता है कि सिंधु घाटी में इन आर्यन सुमेरो-फ़िनीशियन या एमोरे के मृत्यु-ताबीज की प्रार्थना आम तौर पर शुरुआती सुमेरियों के मौत-ताबीज के समान रूप में की जाती है| ( अब तक पुरा- तात्विकों द्वारा अनदेखी की गई है) और "कप-मार्क स्क्रिप्ट" का प्रारंभिक सुमेरियन ताबीज, 1 और प्राचीन कपड़ों में "कप-चिह्नित" शिलालेख और उन्होंने सुप्रसिद्ध ताबीज के बारे में इन कप-चिह्नित शिलालेखों की रीढ़ की पुष्टि करते हुए और प्राचीन ब्रिटेन के पूर्व ऐतिहासिक स्मारकों पर, जो साबित किया है कि ब्रिटेन के रक्त-पूर्वजों द्वारा ठीक से तथाकथित सुमेरियन फोनेशियनों । इन वास्तविक मौत-ताबीज और प्रसिद्ध वैदिक ऋषियों, पुजारी और राजकुमारों की चिड़ियों के मस्तूलों की खुदाई में चिनाई खंडहर से दृश्य दिखाई देने वाली कब्रों को शामिल किया गया था,। जिसका अर्थ था कि यह वास्तविक कब्रों थे और पहले से ही प्रसिद्ध मशहूर थे, जवानों पर लिखे गए हैं, और "सीज़र की धूल" को निकाला गया है। यद्यपि ग्रीक जर्मनिक तथा रोमन आर्यों मे दाह संस्कार की भी मुख्यत: पृथा थी । ई०पू० ८०० में होमर ने इसे दाह संस्कार पृथा का वर्णन किया है । यह केवल उचित होगा कि खुदाई के पूरा होने पर पवित्र स्थान को चिह्नित करने के लिए एक उपयुक्त स्मारक लगाया जा सके, जहां ऐसे 1 डब्लूपीओ, बी, 242, आदि की धरती पर बनी हुई विश्राम आदि। * एलबी।, 255 एफ, 411 एफ »एलबी .. 238 एफ आविष्कारों के ऐतिहासिक प्रभाव ......
121 82 INDO-SUMERIAN SEALS DECIPHERED sentation on ancient Sumerian and Hitto-Phoenician sacred seals and on Ancient Briton monuments, see former work, of which the results therein announced are now con- firmed and established by the evidence of these Indo- Sumerian seals. This Sumerian " Fish " title for the Sun-god on this and the other amulet seals, as " Fish of the Setting Sun (S'u- kha) " is of the utmost critical importance for establishing the Sumerian origin of the Indo-Aryans, and the Aryan character of the Sumerian language, as it discloses for the first time the origin and hitherto unknown real meaning of the Vedic name for the Sun-god " Vishnu," (विष्णु ) and of his represen- tative as a Fish-man, as well as the Sumerian origin of the English word " Fish," the Gothic " Fisk " and Latin " Piscis." The first " incarnation " of the Sun-god Vishnu in Indian mythology is represented as a Fish-man (see Fig. 19), and in substantially the same form as the Sumerian Fish-man personification of the Sun-god of the Waters in the Sumerian seals. Now the Sumerians of Mesopotamia called the Setting Sun " The Fish (KM) " 2 — a fact which has not hitherto been remarked or recognized. And this Sumerian title of " Fish " for the Sun is explained in the bilingual Sumero-Akkadian glossaries by the actual word occurring in this and the other Indo-Sumerian amulets, namely S'u-khd, with the addition of " man " (na) नर नृ , 3 by word-signs which read literally " The Winged Fish-man " ; * thus co-relating the Winged or soaring Sun with the Fish personification of the supposed " returning or resurrecting " Sun in " the waters under the earth." This solar title of " The Winged Fish " is further given the synonym of "The turning ______________________________________ वैदिक सन्दर्भों सूर्य को विष्णु: पूषन् , तथा वसु भी कहा है ।
पूषण शब्द ग्रीक पुरा-कथाओं में poisidon के रूप में है ।
संस्कृत भाषा में पूषन्:-"पूष--कनिन् ।
१ सूर्य्ये आदित्यभेदे भा० आ० ६ श्लो० ङौ तु पूष्णि पूषणि पूषि । २ पृथिव्यां स्त्री निघण्टुः । पूषणा शब्देदृश्यम् । अयमन्तोदात्तः । स्वार्थे क । तत्रार्थे । पूषा अस्त्यस्य मतुप् वेदे नुट् णत्वम्। पूषण्वत् सूर्य्य- युक्ते पृथिवीयुक्ते च त्रि० । ऋ० १ । ८२ । ६ । भा० _________________________________________ Bii-i-es'," s which latter name 1 W.P.O.B., 247 f., 251, 308. 2 B.. 8638. 3 lb., and 1586. 4 S'u=" wing," B.W., 311. 5 Gar-bi-i-i-es' (B., 7244) ; gar=" turn " (B., 11984) ; es' (B., 2551). SUMER ORIGIN OF VISHNU IN NAME AND FORM 83 is evidently a variant spelling of the Sumerian Pi-es' संस्कृत विष्णु: अथवा पिस: विसार: तथा सुमेरियन शब्द Pish for " Great Fish बड़ी मछली" with the pictograph word-sign of Fig, 19. — Sumerian Sun-Fish as Indian Sun-god Vishnu. From an eighteen th-centuiy Indian image (after Moor's Hindoo )संस्कृत में विसारः, पुं, (विशेषेण सरतीति । सृ गतौ + “व्याधिमत्स्यबलेष्विति वक्तव्यम् ।” ३ । ३ । १७ । इत्यस्य वार्त्तिकोक्त्या घञ् ।)
मत्स्यः । इत्यमरः ॥ (भावे घञ् । निर्गमः । यथा, ऋग्वेदे । १ । ७९ । १ । “हिरण्यकेशो रजसो विसारे ऽर्हिर्धुनिर्वात इव ध्रजीमान् ॥” “रजस उदकस्य विसारे विसरणे मेघार्न्निर्ग- मने ।” इति तद्भाष्ये सायणः ॥) अर्थात् वैदिक ऋचाओं मे मत्स्य को विसार ही कहा गया है । अमरकोशः विसार पुं। मत्स्यः समानार्थक:पृथुरोमन्,झष,मत्स्य,मीन,वैसारिण,अण्डज,विसार,शकुली,अनिमिष 1।10।17।2।1 पृथुरोमा झषो मत्स्यो मीनो वैसारिणोऽण्डजः। विसारः शकुली चाथ गडकः शकुलार्भकः॥ सम्बन्धि2 : धीवरः,मत्स्यस्थापनपात्रम्,मत्स्यवेधनम् वृत्तिवान् : धीवरः : गडकमत्स्यः, शकुलार्भकमत्स्यः, बहुदंष्ट्रः_मत्स्यः, शिशुमार-आकारमत्स्यः, नलवनचारिणो_मत्स्यविशेषः, प्रोष्ठीमत्स्यः, शफरीमत्स्यः, अण्डादचिरनिर्गतमत्स्यसङ्घम्, मत्स्यविशेषः, रोहितमत्स्यः, मद्गुरमत्स्यः, शालमत्स्यः, राजीवमत्स्यः, शकुलमत्स्यः, तिमिमत्स्यः, तिमिङ्गलमत्स्यः, मद्गुरस्य_स्त्री पदार्थ-विभागः : , द्रव्यम्, पृथ्वी, चलसजीवः, मनुष्येतरः, जन्तुः, जलीयः वाचस्पत्यम् '''विसार'''¦ पुंस्त्री॰ विसरति सर्पति वि + सृ--ण। मत्स्ये अमरः स्त्रियां ङीष्। शब्दसागरः विसार¦ m. . a fish L. विसार/ वि-सार n.
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84 INDO-SUMERIAN SEALS DECIPHERED Fish joined to sign " great." 1 This now discloses the Sumerian origin not only of the " Vish " in Vish-nu, but also of the English '* Fish," Latin " Piscis," etc.— the labials B, P, F and V being freely interchangeable in the Aryan family of languages. The affix nu(नु) in " Vish-nu " is obviously the Sumerian Nu title of the aqueous form of the ------------------------------------------------------------------- (Sun-god S'amas and of his father-god la or In-duru (Indra) as " God of the Deep)." ' It literally defines them as " The lying down, reclining or bedded " (god) 3 or " drawer or pourer out of water." ' It thus explains the common Indian representation of Vishnu as reclining upon the Serpent of the Deep amidst the Waters, and also seems to disclose the Sumerian origin of the Ancient Egyptian name Nu for the " God of the Deep." __________________________________________ 5 Thus the name " Vish-nu विष्णु : " is seen to be the equivalent of the Sumerian Pisk-nu,(पिस्क- नु ) and to mean " The reclining Great Fish (-god) of the Waters " ; In the Sumerian mythology, a form of pix-nu is proposed from the Indian Vedic form Vishnu and likeness of this Vishnu dev is also proposed in the Greek poets described in Poseidon पूषण __________________________________________ and it will doubtless be found in that full form in Sumerian when searched for. And it would seem that this early " Fish " epithet of Vishnu for his " first incarnation " continued to be applied by the Indian Brahmans to that Sun-god even in his later " incarnations " as the "striding" Sun-god in the heavens. Indeed the Sumerian root Pish or Pis for " Great Fish " still survives in Sanskrit as Fts-ara " fish." " This name thus affords another of the many instances which I 1 On sign T.D., 139; B.W., 303. The sign is called " Increased Fish " {Kua-gunu, i.e., Khd-ganu, B., 6925), in which significantly the Sumerian grammatical term gunu meaning " increased " as applied to combined signs, is radically identical with the Sanskrit grammatical term gut.a ( = " multi- plied or auxiliary," M.W.D., 357) which is applied to the increased elements in bases forming diphthongs, and thus disclosing also the identity of Sanskrit and Sumerian grammatical terminology. सन्दर्भित विवरण - * M., 6741, 6759 ; B., 8988. s B., 8990-1, 8997. 4 lb., 8993. 5 This Nu is probably a contraction for Nun, or " Great Fish," a title of the god la (or Induru) of the Deep (B., 2627). Its Akkad synonym of Naku, as "drawer or pourer out of Water," appears cognate with the Anu(n)-«aAi, or " Spirits of the Deep," and with the Sanskrit Ndga or " Sea-Serpent." • M.W.D., 1000. The affix ara is presumably the Sanskrit affix ra, added to roots to form substantives, just as in Sumerian the affix ra is similarly added (cp., L.S.G., 81). SUMER ORIGIN OF POSEIDON 85 have found of the Sumerian origin of Aryan words, and in particular in the Sanskrit and English. This Fish-man form of the Sumerian Sun-god of the Waters of the Deep, Piesh, Pish or Pis (or Vish-nu), also appears to disclose the unknown origin of the name of the Greek Sea-god " ________________________________________' 82 इंडो-सुमेरियन सील प्राचीन सुमेरियन और हिटो-फिकेनशियन पवित्र जवानों पर और प्राचीन ब्रिटान स्मारकों पर हस्ताक्षर किए गए थे, मेरे पूर्व कार्य देखें, जिनमें से 1 में से परिणाम घोषित किए गए हैं, अब इन इंडो-सुमेरियन जवानों के प्रमाण के आधार पर पुष्टि की गई है । इस सुमेरियन "मछली" पर सूर्य-देवता और अन्य ताबीज जवानों के लिए शीर्षक, "सेटिंग सूर्य (एसयू-ख़ाह) की मछली" के रूप में इंडो-आर्यों की सुमेरियन मूल की स्थापना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण महत्व है , और सुमेरियन भाषा के आर्यन चरित्र के रूप में, यह सूर्य-देवता "विष्णु" के लिए वैदिक नाम की उत्पत्ति और अब तक अज्ञात असली अर्थ के रूप में प्रकट करता है और मछली-आदमी के रूप में उनकी प्रतिनिधि की तरह साथ ही अंग्रेजी शब्द "फिश" के सुमेरियन मूल, गॉथिक "फिसक" और लैटिन "पिसिस।" भारतीय पौराणिक कथाओं में सूर्य-देव विष्णु का पहला "अवतार" मछली-आदमी (चित्र 1 9 देखें) के रूप में दर्शाया जाता है, और काफी हद तक उसी तरह के रूप में सुमेरियन मछली-व्यक्ति के रूप में सूर्य के देव-देवता के रूप में चित्रण सुमेरियन जवानों अब मेसोपोटामिया के सुमेरियन ने सेटिंग सन "द फिश (केएम)" 2 - एक तथ्य जो कि अब तक टिप्पणी नहीं किया गया है या मान्यता प्राप्त नहीं है। और सूर्य के लिए "मछली" के इस सुमेरियन शीर्षक को द्विभाषी सुमेरो-अक्कादियन शब्दावलियों में वास्तविक शब्द और इस प्रकार के अन्य इंडो-सुमेरियन ताबीज, अर्थात् "मानव" (एसयू-एचएचडी) के साथ "मनुष्य" के साथ समझाया गया है ( ना), 3 शब्द-चिह्न जो वाकई "पंखधारी मछली-आदमी" को पढ़ते हैं; * ✈✈✈✈✈✈✈✈✈✈✈✈✈✈✈✈✈✈✈🚤🚤🚤🚣🚣🚣🚣🚣🚣🚣🚣🚣🚣🚣🚣 ( इस प्रकार पंखों या बढ़ते सूर्य को "पृथ्वी के नीचे के पानी में" लौटने या पुनर्जीवित करने वाले सूरज के मछली के संलयन के साथ सह-संबंधित। "द विंगेड फिश" के इस सौर शीर्षक को " द मोड़ बीईआई-आई-एस्", "एस वाउन्डेड फि श" का समानार्थ दिया गया है, जो कि बाद के नाम 1 डब्ल्यूपीओबी, 247 एफ, 251, 308. 2 बी .. 8638. 3 एलबी। , और 1586. 4 एसयू = "विंग", बीडब्ल्यू, 311. 5 गार-बाय-आई-एस् '(बी, 7244); gar = "बारी" (बी।, 11 9 84); एस '(बी, 2551) नाम और फार्म 83 में वीजा के उदय की उत्पत्ति स्पष्ट रूप से सुमेरियन पी-एस् 'या' ग्रश फिश 'के लिए एक पिशाच है, जिसमें चित्र, चित्र, 1 9 की तस्वीर-चिह्न है- सुमेरियन सन-फिश के रूप में भारतीय सूर्य-भगवान विष्णु । एक अठारहवीं सट्टेकी भारतीय छवि (मूर के हिंदू पौधेन के बाद) से अपने हार पर सन-क्रॉस लटकन नोट करें। सूर्य के अग्नि व्हील (हथियार) की डिस्क, (एम क्लब या स्टोन-मासे (गडा या कौओ-दकी) 1 का आकाश-देव वन्मा, (सी) कॉंच -शेल (सांक-हे), सी-सर्प दानव का तुरही, 1 (डी) लोटस (पैड मा) को सूरज के रूप में जाना जाता है। * i। महत्वपूर्ण रूप से यह शब्द "कौओ-डकी" सुमेरियन क्यूम लगता है, (बी, 4173; बीडब्ल्यू। 1 9 3) और डाक या डगू "एक कट पत्थर" (बी, 5221, 5233) ए "संरक्षक का एस 'संधा (या शंख)" बौद्ध मिथक में सबसे पहले और सबसे महान सागर राजा का शीर्षक है, देखें मेरी सूची नागा (या सागर-नाग) राजाओं में रोज़ रॉय। सोया, जनवरी, 18 9 4। 3. स्वर्गीय के प्रतीक के रूप में लोटस पर जन्म, मेरी डब्लूबीटी, 338, 381, 388 देखें। 84 इंडो-सुमेरियन सील मंडलियां "महान" पर हस्ताक्षर करने में शामिल हुईं। 1 अब यह सुश्री मूल को न केवल "विश" बल्कि " 'मछली,' लैटिन "पिस्कीस," आदि- लैबियल्स बी, पी, एफ और वी भाषाओं के आर्य परिवार में स्वतंत्र रूप से परस्पर विनिमय करने योग्य हैं। "विष्-न" में प्रत्ययी नूह स्पष्ट रूप से सूर्य-देवता सदास के जलीय रूप और उनके पिता-देवता ला या इन-दुरु (इंद्र) के "देवता के देवता" के रूप में सुमेरियन परमाणु का शीर्षक है। यह सचमुच उन्हें "झूठ बोल, झुकने या पकाया हुआ" (ईश्वर) 3 या "पानी से बाहर दराज या प्यूरर" के रूप में परिभाषित करता है। यह इस प्रकार विष्णु के सामान्य भारतीय प्रतिनिधित्व को जल के बीच दीप के नाग पर पुन: और यह भी लगता है कि "दीप के देवता" के लिए प्राचीन मिस्र के नाम परमाणु के सुमेरियन मूल का खुलासा किया गया है। 5 इस प्रकार "विष्णु" नाम सुमेरियन पिस्क-न्यू के बराबर माना जाता है, और " जल के ग्रेट फिश (-गोड) को रीलिंग करना; और यह निश्चित रूप से सुमेरियन में उस पूर्ण रूप में पाए जाने पर खोजा जाएगा। और ऐसा प्रतीत होता है कि "शुरुआती अवतार" के लिए विष्णु के इस शुरुआती "मछल" का उपदेश भारतीय ब्राह्मणों ने अपने बाद के "अवतारों" में भी सूर्य-देवता को स्वर्ग में सूर्य-देवता के रूप में लागू किया है। । वास्तव में "महान मछली" के लिए सुमेरियन जड़ पीश या पीस अभी भी संस्कृत में एफ्स-ऐरा "मछली" के रूप में जीवित है। "यह नाम इस प्रकार कई उदाहरणों में से एक है जिसे मैं 1 टीडी, 13 9, बीडब्ल्यू, 303 पर हस्ताक्षर करता हूं। इस संकेत को" वृद्धि हुई मछली "(कुआ-गनु, अर्थात, खाद-गानू, बी, 6925) कहा जाता है, जिसमें उल्लेखनीय रूप से सुमेरियन व्याकरणिक शब्द बंदू जिसका अर्थ है "वृद्धि" जैसा कि संयुक्त संकेतों पर लागू होता है, संस्कृत व्याकरणिक शब्द गत के साथ समान रूप से समान होता है। (= "बहु-लिखित या सहायक," एमडब्लूडी, 357) जो आधारों में वृद्धि हुई तत्वों पर लागू होता है डिफाथों का गठन, और इस प्रकार संस्कृत और सुमेरियन व्याकरणिक शब्दावली की पहचान भी प्रकट की जा सकती है। * एम।, 6741, 675 9; बी, 8988. बी बी, 89 9 0-1, 89 9 4। 4 एलबी।, 89 9 5 5। नून के लिए एक संकुचन, या "ग्रेट फिश", दीप (बी, 2627) के देवता ला (या इंद्रू) का एक शीर्षक। इसका अक्कड़ "पानी से बाहर दराज या पौरर" के रूप में नाक का पर्याय है। अनु (एन) - «एएआई, या" दीप की आत्माएं, "और संस्कृत नोडा या" सागर-नाग "के साथ। • एमडब्लूडी, 1000. एफ़िक्स अरो संभवत: मी सिद्धान्त के रूप में, सुमेरियन के रूप में समान रूप से जोड़ा गया है (सीपी।, एल.एस.जी., 81)। पॉसीडॉन 85 की उत्पत्ति ऋषि आर्य के शब्दों के सुमेरियन मूल के पाए गए हैं, विशेष रूप से संस्कृत और अंग्रेजी में। दीप, पीश, पीश या पीस (या वाश-एनयू) के जल के सुमेरियन सूर्य-देवता का यह मछली-पुरुष रूप, ग्रीक सागर-देवता "पी के नाम की अज्ञात उत्पत्ति का खुलासा करता है। ☯☯☯☯☯☯☯☯☯☯☯☯☯☯☯☯☯☯☯☯☯☯ अर्थात् प्राचीन सुमेरियन तथा आयॉनियन संस्कृतियों में सूर्य को उड़ने वाली मछली के रूप में वर्णित किया गया है। उन लोगों की मान्यता थी ,कि रात में यह समुद्र में मछली रूप में रहा है ।और प्रात: काल होने पर आकाश में उड़ जाता है । भारतीय संस्कृति में विष्णु-- के मत्स्य रूप की अवधारणाऐं-- तथा विष्णु के सूर्य रूप की अवधारणाऐं-- यहीं प्रकट हुईं हैं ।... . ______________________________________ This important reference is researched by Yadav Yogesh Kumar 'Rohi'. Thus, no gentleman should not add to ..... __________________________________________ यद्यपि अवान्तर यात्रा काल में सुमेरियन तथा बैवीलॉनियन संस्कृतियों से भी साक्षात्कार किया । यह समय ई०पू० २५०० से प्रारम्भ होकर ई०पू० १५०० के समकक्ष है। परन्तु अपनी प्रारम्भिक स्मृतियों को ये सँजोए रखे । स्वर्ग और नरक की धारणाऐं सुमेरियन संस्कृति में शियोल और नरगल के रूप में अवशिष्ट रहीं , सुमेरियन लोगों ने शियॉल नाम से एक काल्पनिक लोक की कल्पना की थी । जहाँ मृत्यु के बाद आत्माऐं जाती हैं । और शियोल स्वर्ग जैसी ही था । हमारा वर्ण्य- विषय भी विशेषत: स्वर्ग और नरक ही है यह तथ्य अपने आप में यथार्थ होते हुए भी रूढ़िवादी जन समुदाय की चेतनाओं में समायोजित होना कठिन है !! फिर भी प्रमाणों के द्वारा इस तथ्य को सिद्ध किया गया है ! यह नवीन शोध .....📚📘📝📖..... यादव योगेश कुमार रोहि की दीर्घ कालिक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक साधनाओं का परिणाम है . विश्व इतिहास में यह अब तक का सबसे नवीनत्तम और अद्भुत शोध है !!! निश्चित रूप से रूढ़िवादी जगत् के लिए यह शोध एक बबण्डर सिद्ध होगा , एेसा हमारा विश्वास है । बुद्धि जीवीयों तक यह सन्देश न पहँच पाए इस हेतु के लिए अनिष्ट कारी शक्तियों ने अनेक विघ्न उत्पन्न भी किए हैं । तीन वार यह विघ्न उत्पन्न हुआ है ! पूरा सन्देश डिलीट कर दिया गया है परन्तु वह कारक अज्ञात ही था जिसके द्वारा यह संदेश नष्ट किया गया था ,फिर भी ईश्वर की कृपा निरन्तर बनी रही .। .आर्य संस्कृति का प्रादुर्भाव देवों अथवा स्वरों { सुरों} से हुआ है | ये भारतीय संस्कृति की चिर-प्रचीन उद्घोषणा है । यह भारतीय संस्कृति की दृढ़ मान्यता है ,कि सुर { स्वर } जिस स्थान { रज} पर पर रहते थे उसे ही स्वर्ग कहा गया है --- स्वर्ग: सुरा:वा राजन्ते यस्मिन् देशे तद् स्वर्गम् कथ्यते ". जहाँ छःमहीने का दिन और छःमहीने की दीर्घ कालिक दिन और रातें होती हैं वास्तव में आधुनिक समय में यह स्थान स्वीडन { Sweden} है । जो उत्तरी ध्रुव पर हैमर पाष्ट के समीप है , प्राचीन नॉर्स भाषाओं में स्वीडन को ही स्वरगे { Svirge } कहा है । भारतीय आर्यों को इतना स्मरण था । कि उनके पूर्वज सुर { देव} उत्तरी ध्रुव के समीप स्वेरिगी में रहते थे, इस तथ्य के भारतीय सन्दर्भ भी विद्यमान् हैं बुद्ध के परवर्ती काल खण्ड में लिपि बद्ध ग्रन्थ मनु स्मृति में वर्णित है ।.......📖........📖📝...अहो रात्रे विभजते सूर्यो मानुष देैविके !! देवे रात्र्यहनी वर्ष प्र वि भागस्तयोःपुनः || अहस्तत्रोदगयनं रात्रिः स्यात् दक्षिणायनं ------ मनु स्मृति १/६७ ..अर्थात् देवों और मनुष्यों के दिन रात का विभाग सूर्य करता है , मनुष्य का एक वर्ष देवताओं का एक दिन रात होता है ,अर्थात् छः मास का दिन .जब सूर्य उत्तारायण होता हैऔर छःमास की ही रात्रि होती है जब सूर्य दक्षिणायनहोता है ! प्रकृति का यह दृश्य केवल ध्रुव देशों में ही होता है ! वेदों का उद्धरण भी है . ......📖📝..."अस्माकं वीरा: उत्तरे भवन्ति " हमारे वीर { आर्य } उत्तर में हुए ..इतना ही नहीं भारतीय पुराणों मे वर्णन है कि ...कि स्वर्ग उत्तर दिशा में है !! वेदों में भी इस प्रकार के अनेक संकेत हैं । मा नो दीर्घा अभिनशन् तमिस्राः ऋग्वेद २/२७/१४। वैदिक काल के ऋषि उत्तरीय ध्रुव से निम्मनतर प्रदेश बाल्टिक सागर के तटों पर अधिवास कर रहे थे , उस समय का यह वर्णन है । कि लम्बी रातें हम्हें अभिभूत न करें वैदिक पुरोहित भय भीत रहते थे, कि प्रातः काल होगा भी अथवा नहीं , क्यों कि रात्रियाँ छः मास तक लम्बी रहती थीं 🌓⚡🌓⚡..रात्रि र्वै चित्र वसुख्युष्ट़इ्यै वा एतस्यै पुरा ब्राह्मणा अभैषुः --तैत्तीरीय संहित्ता १ ,५, ७, ५ अर्थात् चित्र वसु रात्रि है अतः ब्राह्मण भयभीत है कि सुबह ( व्युष्टि ) न होगी !!! आशंका है . ....... ध्यातव्य है कि ध्रुव बिन्दुओं पर ही दिन रात क्रमशः छः छः महीने के होते है | परन्तु उत्तरीय ध्रुव से नीचे क्रमशः चलने पर भू - मध्य रेखा पर्यन्त स्थान भेद से दिन रात की अवधि में भी भेद हो जाता है । और यह अन्तर चौबीस घण्टे से लेकर छः छः महीने का हो जाता है | अग्नि और सूर्य की महिमा आर्यों को उत्तरीय ध्रुव के शीत प्रदेशों में ही हो गयी थी " ..अतः अग्नि -अनुष्ठान वैदिक सांस्कृतिक परम्पराओं का अनिवार्य..अतः अग्नि -अनुष्ठान वैदिक सांस्कृतिक परम्पराओं का अनिवार्यतः अंग बन गया .जो धार्मिक सांस्कृतिक परम्पराओं के द्वारा यज्ञ के रूप में रूढ़ हो गया है ... .अग्निम् ईडे पुरोहितम् यज्ञस्य देवम् ऋतुज्यं होतारं रत्नधातव ...ऋग्वेद १/१/१ ........ सम्पूर्ण ऋग्वेद में अग्नि के लिए २००सूक्त हैं । अग्नि और वस्त्र आर्यों की अनिवार्य आवश्यकताएें थी | वास्तव में तीन लोकों का तात्पर्य पृथ्वी के तीन रूपों से ही था | उत्तरीय ध्रुव उच्चत्तम स्थान होने से स्वर्ग है ! जैसा कि जर्मन आर्यों की मान्यता थी । .उन्होंने स्वेरिकी या स्वेरिगी को अपने पूर्वजों का प्रस्थान बिन्दु माना । यह स्थान आधुनिक स्वीडन { Sweden} ही था | प्राचीन नॉर्स भाषाओं में स्वीडन का ही प्राचीन नाम स्वेरिगे { Sverige } है ! यह स्वेरिगे Sverige .} देव संस्कृति का आदिम स्थल था, वास्तव में स्वेरिगे (Sverige )..शब्द के नाम करण का कारण भी उत्तर- पश्चिम जर्मनीय आर्यों की स्वीअर { Sviar } नामकी जन जाति थी । विदित हो कि वाल्मीकि-रामायण मे सुर शब्द की व्युत्पत्ति भी यूरोपीय स्वीअर जर्मनिक जन-जातियाँ की संस्कृति से प्रेरित है ।
सुराप्रतिग्रहाद् देवा: सुरा इत्याभिविश्रुता:। अप्रतिग्रहणात्तस्या दैतेयाश्चासुरा: स्मृता:॥ (वाल्मीकि-)
रामायण अयोध्या काण्ड) तथा बाल काण्ड से उद्धृत ) उक्त श्लोक के अनुसार सुरा का अर्थ ‘मादक द्रव्य- शराब है।
चूंकि आर्य लोग मादक तत्व सुरा का प्रारम्भ से पान (सेवन) करते थे। इस कारण आर्यों के कथित देव (देवता) सुर कहलाये और सुरा का पान नहीं करने असुर (जिन्हें आर्यों द्वारा अदेव कहा गया) कहलाये। असुर असीरियन जन-जाति से सम्बद्ध सेमेटिक लोग थे जिन्हें भारतीय पुराणों में सोम वंशी कहा गया है। जबकि इसके विपरीत आर्यों द्वारा रचित वेदों में उल्लिखित सन्दर्भों पर दृष्टि डालें तो ज्ञात होता है । संस्कृत में असुर को संधि विच्छेद करके ‘असु+र’ दो हिस्सों में विभाजित किया है और ‘असु’ का अर्थ ‘प्राण’ तथा ‘र’ का अर्थ ‘वाला’-‘प्राणवाला’ दर्शाया गया है। पाणिनीय व्याकरण में भी असुर की इसी प्रकार व्युत्पत्ति- है ।
असुर असीरियन जन-जाति के लोग( सेमेटिक) थे और सुर जर्मनिक जन-जातियाँ से सम्बद्ध स्वीअर (Sviar) लोग थे । एक अन्य स्थान पर असुनीति का अर्थ प्राणनीति बताया गया है। ॠग्वेद (10.59.56) में भी इसकी पुष्टि की गयी है। इस प्रकार प्रारम्भिक काल में ‘असुर’ का भावार्थ ‘प्राणवान’ और ‘शक्तिशाली’ के रूप में दर्शाया गया है। केवल इतना ही नहीं, बल्कि अनार्यों में असुर विशेषण से सम्मानित व्यक्ति को इतना अधिक सम्मान व महत्व प्राप्त था कि उससे प्रभावित होकर शुरू-शुरू में आर्यों द्वारा रचित वेदों में (ॠग्वेद में) आर्य-वरुण तथा आर्यों के अन्य कथित देवों के लिये भी ‘असुर’ शब्द का विशेषण के रूप में उपयोग किये जाने का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के अनुसार असुर विशेषण से सम्मानित व्यक्ति के बारे में यह माना जाता जात था । कि वह रहस्यमयी गुणों से युक्त व्यक्ति है। महाभारत सहित अन्य प्रचलित कथाओं में भी असुरों के विशिष्ट गुणों पर प्रकाश डालते हुए उन्हें मानवों में श्रेष्ठ कोटि के विद्याधरों में शामिल किया गया है। __________________________________________ .अतः स्वेरिगे शब्द की व्युत्पत्ति भी सटीक है Sverige is The region of sviar ....This is still the formal Names for Sweden in old Swedish Language..Etymological form ....Svea ( स्वः + Rike - Region रीजन अर्थात् रज = स्थान .. तथा शासन क्षेत्र | संस्कृत तथा ग्रीक /लैटिन शब्द लोक के समानार्थक है ।"रज् प्रकाशने अनुशासने च"पुरानी नॉर्स Risa गौथ भाषा में Reisan अंग्रेजी Rise .. पाणिनीय धातु पाठ .देखें ...लैटिन फ्रेंच तथा जर्मन वर्ग की भाषाओं में लैटिन ...Regere = To rule अनुशासन करना ..इसी का present perfect रूप Regens ,तथ regentis आदि हैं Regence = goverment राज प्रणाली .. जर्मनी भाषा में Rice तथा reich रूप हैं !! पुरानी फ्रेंच में Regne .,reign लैटिन रूप Regnum = to rule ..... संस्कृत लोक शब्द लैटिन फ्रेंच आदि में Locus के रूप में है जिसका अर्थ होता है प्रकाश और स्थान ..तात्पर्य स्वर अथवा सुरों ( आर्यों ) का राज ( अनुशासन क्षेत्र ) ही स्वर्ग स्वः रज ..समाक्षर लोप से सान्धिक रूप हुआ स्वर्ग ।
स्वर्ग उत्तरीय ध्रुव पर स्थित पृथ्वी का वह उच्चत्तम भू - भाग है जहाँ छःमास का दिन और छःमास की दीर्घ रात्रियाँ होती हैं भौगोलिक तथ्यों से यह प्रमाणित हो गया है दिन रात की एसी दीर्घ आवृत्तियाँ केवल ध्रुवों पर ही होती हैं इसका कारण पृथ्वी अपने अक्ष ( धुरी ) पर २३ १/२ ° अर्थात् तैईस सही एक बट्टे दो डिग्री अंश दक्षिणी शिरे पर झुकी हुई है | अतः उत्तरीय शिरे पर उतनी ही उठी हुई है ! और भू- मध्य स्थल दौनो शिरों के मध्य में है ..पृथ्वी अण्डाकार रूप में सूर्य का परिक्रमण करती है जो ऋतुओं के परिवर्तन का कारण है अस्तु ..स्वर्ग को ही संस्कृत के श्रेण्य साहित्य में पुरुः और ध्रुवम् भी कहा है पुरुः शब्द प्राचीनत्तम भारोपीय शब्द है । जिसका ग्रीक / तथा लैटिन भाषाओं में Pole रूप प्रस्तावित है ** पॉल का अर्थ हीवेन Heaven या Sky है Heaven = to heave उत्थान करना उपर चढ़ना । संस्कृत भाषा में भी उत्तर शब्द यथावत है जिसका मूल अर्थ है अधिक ऊपर। Utter-- Extreme = अन्तिम उच्चत्तम विन्दु । अपने प्रारम्भिक प्रवास में स्वीडन ग्रीन लेण्ड ( स्वेरिगे ) आदि स्थलों परआर्य लोग बसे हुए थे । , यूरोपीय भाषा में भी इसी अर्थ को ध्वनित करता है । हम बताऐं की नरक भी यहीं स्वीलेण्ड ( स्वर्ग) के दक्षिण में स्थित था ।
Narke ( Swedish pronunciation) is a swedish traditional province or landskap situated in Sviar-land in south central ...sweden narke (स्वीडिश उच्चारण) एक स्वीडिश पारंपरिक प्रांत या दक्षिणी मध्य में स्वीवार भूमि में स्थित भूमिगत है ।
भारतीय संस्कृति में नरक का वर्णन दक्षिणीय दिशा में माना गया है ।
नरक शब्द नॉर्स के पुराने शब्द नार( Nar ) से निकला है, जिसका अर्थ होता है - संकीर्ण अथवा तंग narrow ग्रीक भाषा में नारके Narke तथा narcotic जैसे शब्दों का विकास हुआ । ग्रीक भाषा में नारके Narke शब्द का अर्थ जड़ ,सुन्न ( Numbness, deadness है । संस्कृत भाषा में नड् नल् तथा नर् जैसे शब्दों का मूल अर्थ बाँधना या जकड़ना है । इन्हीं से संस्कृत का नार शब्द जल के अर्थ में विकसित हुआ । संस्कृत धातु- पाठ में नी तथा नृ धातुऐं हैं आगे ले जाने के अर्थ में - नये ( आगे ले जाना ) नरयति / नीयते वा इस रूप में है । अर्थात् गतिशीलता जल का गुण है । उत्तर दिशा के वाचक नॉर्थ शब्द नार मूलक ही है क्योंकि यह दिशा हिम और जल से युक्त है ।
भारोपीय धातु स्नर्ग *(s)nerg- To turn, twist अर्थात् बाँधना या लपेटना से भी सम्बद्ध माना जाता है परन्तु जकड़ना बाँधना ये सब शीत की गुण क्रियाऐं हैं । _________________________________________ अत: संस्कृत में नरक शब्द यहाँ से आया और इसका अर्थ है --वह स्थान जहाँ जीवन की चेतनाऐं जड़ता को प्राप्त करती हैं । वही स्थान नरक है । निश्चित रूप से नरक स्वर्ग ( स्वीलेण्ड)या स्वीडन के दक्षिण में स्थित था ! स्वर्ग का और नरक का वर्णन तो हमने कर दिया परन्तु भारतीय संस्कृति में जिसे स्वर्ग का अधिपति माना गया उस इन्द्र का वर्णन न किया जाए तो पाठक- गण हमारे शोध को कल्पनाओं की उड़ान और निर्धारण ही मानेंगे - __________________________________________ --- अत: हम आपको ऐसी अवसर ही प्रदान नहीं करेंगे यूरोपीय पुरातन कथाओं में इन्द्रास् को एण्ड्रीज (Andreas) रॉधामेण्टिस (Rhadamanthys) से सम्बद्ध था ।
रॉधमेण्टिस ज्यूस तथा यूरोपा का पुत्र और मिनॉस (मनु) का भाई था ।
ग्रीक पुरातन कथाओं में किन्हीं विद्वानों के अनुसार एनियस (Anius) का पुत्र एण्ड्रस( Andrus) के नाम से एण्ड्रीज प्रायद्वीप का नामकरण हुआ ..जो अपॉलो का पुजारी था ।
परन्तु पूर्व कथन सत्य है । ग्रीक भाषा में इन्द्र शब्द का अर्थ शक्ति-शाली पुरुष है । जिसकी व्युत्पत्ति- ग्रीक भाषा के ए-नर (Aner) शब्द से हुई है । जिससे एनर्जी (energy) शब्द विकसित हुआ है। ग्रीक पुरातन कथाओं में इन्द्र का वर्णन:---
Andreus (/ˈændriəs/; Ancient Greek: Ἀνδρεύς) was the son of the river-god Peneus in Thessaly, from whom the district about Orchomenos in Boeotia was called Andreis.[1] In another passage Pausanias speaks of Andreus (it is, however, uncertain whether he means the same man as the former) as the person who first colonized the island of Andros.[2] According to Diodorus Siculus, Andreus was one of the generals of Rhadamanthys, from whom he received the island afterwards called Andros as a present.[3] Stephanus of Byzantium,[4] Conon[5] and Ovid[6] call this first colonizer "Andrus" (son of Anius) and not Andreus. With Evippe, daughter of Leucon, Andreus had a son Eteocles, his successor.[8] References (सन्दर्भ तालिका ) Pausanias, Description of Greece, (9. 34. 6 ^) Paus. 10. 13. 4 ^ Diodorus Siculus, Library of History, 5. 79. 2 ^ S. v. Andros ^ Narrations, 41 ^ Metamorphoses, 14. 639 ^ Myth Index - Andreus ^ Paus. 9. 34. 9 - 9. 35. 1............…. हिन्दी अनुवाद---- एंड्रीस (/ ændriəs /; प्राचीन यूनानी: Ἀνδρεύς) थेसली में नदी-देवता पिनियस का बेटा था, जिस से बोईओतिया में ऑरक्नोमोस के बारे में जिला को एंड्रियास कहा जाता था। [1] एक अन्य मार्ग में पॉसनीस एंड्रस के बारे में बोलते हैं (यह अनिश्चित है कि क्या वह पहले व्यक्ति के रूप में एक ही व्यक्ति का अभिप्राय है या नहीं) उस व्यक्ति के रूप में जिसने पहले एंड्रोस के द्वीप का उपनिवेश किया था। डियोडोरस सिक्युलस के अनुसार, एंड्रूसस रदामंथी के एक जनरलों में से एक था, । जिनके बाद से वे द्वीपों को एक जगह के रूप में एंड्रोस को बुलाते हुए प्राप्त किया। [3] बीजान्टियम के स्टीफनस, [4] कॉनन [5] और ओविड [6] को यह पहला उपनिवेशक "एंड्रस" (एनीस का बेटा) और आंद्रेउस नहीं कहते हैं। [7] लियूकॉन की बेटी इव्हिपे के साथ, एंड्रयूस के बेटे ईटेकल्स, उनके उत्तराधिकारी थे। [8] संदर्भ संपादित करें ↑ पॉसनीस, ग्रीस का विवरण, 9 34. 6 ^ पॉउस 10. 13. 4 ^ डियोडोरस सिकुलस, लाइब्रेरी ऑफ हिस्ट्री, 5. 79. 2 ^ एस। व। एंड्रॉस · नारेशन, 41 ↑ मेटमॉर्फोसॉसेस, 14. 639 ^ मिथ इंडेक्स - एंड्रूस ↑ पॉस 9. 34. 9 - 9 35. 1 ________________________________________ संस्कृत भाषा में अन् श्वसने प्राणेषु च के रूप में वर्णित किया गया है। संस्कृत तथा फारसी भाषा के नर शब्द का मूल ए-नर Aner यूरोपीय शब्द है जिससे प्राण तथा अणु जैसे शब्दों का विकास हुआ... प्र + अन् = प्राण् तथा अन् + उ = अणु । कालान्तरण में संस्कृत भाषा में नर शब्द भी इसी रूप से व्युत्पन्न हुआ इस पर प्रकाशन किया गया है.... वेल्स भाषा में भी नर व्यक्ति का वाचक है । फ़ारसी मे नर शब्द तो है । परन्तु इन्द्र शब्द नहीं है । वेदों में इन्द्र को वृत्र का शत्रु बताया है । जिसे केल्टिक माइथॉलॉजी मे ए-बरटा ( Abarta ) कहा है । जो दनु और त्वष्टा परिवार का सदस्य है । इन्द्रस् आर्यों का नायक अथवा वीर यौद्धा था । भारतीय पुरातन कथाओं में त्वष्टा को इन्द्र का पिता बताया है । शम्बर को ऋग्वेद के द्वित्तीय मण्डल के सूक्त १४ / १९ में कोलितर कहा है पुराणों में इसे दनु का पुत्र कहा है । जिसे इन्द्र मारता है । ऋग्वेद में इन्द्र पर आधारित २५० सूक्त हैं । यद्यपि कालान्तरण मे आर्यों अथवा सुरों के नायक को ही इन्द्र उपाधि प्राप्त हुई ।अत: कालान्तरण में भी जब आर्य भू- मध्य रेखीय भारत भूमि में आये ... जहाँ भरत अथवा वृत्र की अनुयायी व्रात्य ( वारत्र )नामक जन जाति पूर्वोत्तरीय स्थलों पर निवास कर रही थी ... जो भारत नाम का कारण बना ... इन से आर्यों को युद्ध करना पड़ा भारत में भी यूरोप से आगत आर्यों की सांस्कृतिक मान्यताओं में भी स्वर्ग उत्तर में है । और नरक दक्षिण में है । स्मृति रूप में अवशिष्ट रहीं ... और विशेष तथ्य यहाँ यह है कि नरक के स्वामी यम हैं यह मान्यता भी यहीं से मिथकीय रूप में स्थापित हुई .. नॉर्स माइथॉलॉजी प्रॉज-एड्डा में नारके का अधिपति यमीर को बताया गया है । यमीर यम ही है । हिम शब्द संस्कृत में यहीं से विकसित है यूरोपीय लैटिन आदि भाषाओं में हीम( Heim) शब्द हिम के लिए यथावत है।
नॉर्स माइथॉलॉजी प्रॉज-एड्डा में यमीर (Ymir) Ymir is a primeval being , who was born from venom that dripped from the icy - river . earth from his flesh and from his blood the ocean , from his bones the hills from his hair the trees from his brains the clouds from his skull the heavens from his eyebrows middle realm in which mankind lives"😢
यमीर एक वास्तविक अस्तित्व है, जो विष से पैदा हुआ था । जो बर्फीले नदी से मिट गया ।उसने अपने शरीर से पृथ्वी और उसके खून से महासागर, उसकी हड्डियों से पहाड़ियों का जन्म हुआ है अपने बालों से पेड़ों को मस्तिष्क से बादलों का तथा अपनी खोपड़ी से आकाश का आंखों की आइब्रो से मध्य क्षेत्र उत्पन्न होता है जिसमें मानव जाति रहती है " _________________________________________ (Norse mythology prose adda) अर्थात् यमीर ही सृष्टि का प्रारम्भिक रूप है। यह हिम नद से उत्पन्न , नदी और समुद्र का अधिपति हो गया । पृथ्वी इसके माँस से उत्पन्न हुई ,इसके रक्त से समुद्र और इसकी अस्थियाँ पर्वत रूप में परिवर्तित हो गयीं इसके वाल वृक्ष रूप में परिवर्तित हो गये ,मस्तिष्क से बादल और कपाल से स्वर्ग और भ्रुकुटियों से मध्य भाग जहाँ मनुष्य रहने लगा उत्पन्न हुए ।ऐसी ही धारणाऐं कनान देश की संस्कृति में थी । वहाँ यम को यम रूप में ही ..नदी और समुद्र का अधिपति माना गया है। जो हिब्रू परम्पराओं में या: वे अथवा यहोवा हो गया उत्तरी ध्रुव प्रदेशों में ... जब शीत का प्रभाव अधिक हुआ तब नीचे दक्षिण की ओर ये लोग आये जहाँ आज बाल्टिक सागर है, यहाँ भी धूमिल स्मृति उनके ज़ेहन ( ज्ञान ) में विद्यमान् थी । बाल्टिक सागर के तट वर्ती प्रदेशों पर दीर्घ काल तक क्रीडाएें करते रहे .पश्चिमी बाल्टिक सागर के तटों पर इन्हीं आर्यों ने मध्य जर्मन स्केण्डिनेवीया द्वीपों से उतर कर बोल्गा नदी के द्वारा दक्षिणी रूस .त्रिपोल्जे आदि स्थानों पर प्रवास किया आर्यों के प्रवास का सीमा क्षेत्र बहुत विस्तृत था । आर्यों की बौद्धिक सम्पदा यहाँ आकर विस्तृत हो गयी थे ।मनुः जिसे जर्मन आर्यों ने मेनुस् Mannus कहा आर्यों के पूर्व - पिता के रूप में प्रतिष्ठित थे ! मेन्नुस mannus थौथा (त्वष्टा)--- (Thautha ) की प्रथम सन्तान थे ! मनु के विषय में रोमन लेखक टेकिटस (tacitus) के अनुसार----
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Tacitus wrote that mannus was the son of tuisto and The progenitor of the three germanic tribes ---ingeavones--Herminones and istvaeones .. in ancient lays, their only type of historical tradition they celebrate tuisto , a god brought forth from the earth they attributeto him a son mannus, the source and founder of their people and to mannus three sons from whose names those nearest the ocean are called ingva eones , those in the middle Herminones, and the rest istvaeones some people inasmuch as anti quality gives free rein to speculation , maintain that there were more tribal designations- Marzi, Gambrivii, suebi and vandilii-__and that those names are genuine and Ancient Germania.....
(Chapter 2 ) अर्थात् रोमन इतिहास कार टैसिटस ने लिखा है :- कि मन्नूस (मनु: )टुस्टो (त्वष्टा )का पुत्र था ! और तीन जनजातियों के वंशज मेन्नुस थे -एनिनवेऑनोन - हर्मिनोन्स और इस्तोवॉन्स .. प्राचीन काल में, उनकी एकमात्र ऐतिहासिक परम्पराओं में वे ट्वष्टो मनाते हैं । धरती से उत्पन्न हुए एक ईश्वर ने उन्हें एक बेटा मन्नुस, उनके लोगों के स्रोत और संस्थापक के लिए जिम्मेदार ठहराया । और तीन बेटों के मर्दों को नामित किया, जिनके नाम समुद्र के पास के उन लोगों को इंगित किया जाता है जिन्हें समुद्र एनोस, मध्य हर्मिनोन्स में, और बाकी कुछ लोग कुछ लोगों को मानते हैं। क्योंकि विरोधी की गुणवत्ता अटकलों को मुफ्त में लगा देती है, यह कहना है कि अधिक आदिवासी पदनाम थे- Marzi, Gambrivii, suebi और vandilii - और कहा कि ये नाम असली और प्राचीन जर्मनिया हैं _________________________________________ (अध्याय 2 ) ग्रीक पुरातन कथाओं में मनु को मिनॉस (Minos)कहा गया है । जो ज्यूस तथा यूरोपा का पुत्र तथा क्रीट का प्रथम राजा था जर्मन जाति का मूल विशेषण डच (Dutch) था । जो त्वष्टा नामक इण्डो- जर्मनिक देव पर आधारित है । टेकिटिस लिखता है , कि Tuisto ( or tuisto) is the divine encestor of German peoples...... ट्वष्टो tuisto---tuisto--- शब्द की व्युत्पत्ति- भी जर्मन भाषाओं में *Tvai----" two and derivative *tvis --"twice " double" thus giving tuisto--- The Core meaning -- double अर्थात् द्वन्द्व -- अंगेजी में कालान्तरण में एक अर्थ द्वन्द्व- युद्ध (dispute / Conflict )भी होगया यम और त्वष्टा दौनों शब्दों का मूलत: एक समान अर्थ था । इण्डो-जर्मनिक संस्कृतियों में मिश्र की पुरातन कथाओं में त्वष्टा को (Thoth) अथवा tehoti ,Djeheuty कहा गया जो ज्ञान और बुद्धि का अधिपति देव था । _________________________________________ आर्यों में यहाँ परस्पर सांस्कृतिक भेद भी उत्पन्न हुए विशेषतः जर्मन आर्यों तथा फ्राँस के मूल निवासी गॉल ( Goal ) के प्रति जो पश्चिमी यूरोप में आवासित ड्रूयूडों की ही एक शाखा थी l जो देवता जर्मनिक जन-जातियाँ के थे लगभग वही देवता ड्रयूड पुरोहितों के भी थे । यही ड्रयूड( druid ) भारत में द्रविड कहलाए । इन्हीं की उपशाखाएें वेल्स wels केल्ट celt तथा ब्रिटॉन Briton के रूप थीं जिनका तादात्म्य (एकरूपता ) भारतीय जन जाति क्रमशः भिल्लस् ( भील ) किरात तथा भरतों से प्रस्तावित है ये भरत ही व्रात्य ( वृत्र के अनुयायी ) कहलाए आयरिश अथवा केल्टिक संस्कृति में वृत्र ** का रूप अवर्टा ( Abarta ) के रूप में है यह एक देव है जो थौथा thuatha (जिसे वेदों में त्वष्टा कहा है !) और दि - दानन्न ( वैदिक रूप दनु ) की सन्तान है ।
.Abarta an lrish / celtic god amember of the thuatha त्वष्टाः and De- danann his name means = performer of feats । अर्थात् एक कैल्टिक देव त्वष्टा और दनु परिवार का सदस्य वृत्र या Abarta जिसका अर्थ है कला या करतब दिखाने बाला देव यह अबर्टा ही ब्रिटेन के मूल निवासी ब्रिटों Briton का पूर्वज और देव था इन्हीं ब्रिटों की स्कोट लेण्ड ( आयर लेण्ड ) में शुट्र--- (shouter )नाम की एक शाखा थी , जो पारम्परिक रूप से वस्त्रों का निर्माण करती थी । वस्तुतःशुट्र फ्राँस के मूल निवासी गॉलों का ही वर्ग था , जिनका तादात्म्य भारत में शूद्रों से प्रस्तावित है , ये कोल( कोरी) और शूद्रों के रूप में है । जो मूलत: एक ही जन जाति के विशेषण हैं एक तथ्य यहाँ ज्ञातव्य है कि प्रारम्भ में जर्मन आर्यों और गॉलों में केवल सांस्कृतिक भेद ही था जातीय भेद कदापि नहीं । क्योंकि आर्य शब्द का अर्थ यौद्धा अथवा वीर होता है । यूरोपीय लैटिन आदि भाषाओं में इसका यही अर्थ है । बाल्टिक सागर से दक्षिणी रूस के पॉलेण्ड त्रिपोल्जे आदि स्थानों पर बॉल्गा नदी के द्वारा कैस्पियन सागर होते हुए भारत ईरान आदि स्थानों पर इनका आगमन हुआ । आर्यों के ही कुछ क़बीले इसी समय हंगरी में दानव नदी के तट पर परस्पर सांस्कृतिक युद्धों में रत थे भरत जन जाति यहाँ की पूर्व अधिवासी थी संस्कृत साहित्य में भरत का अर्थ जंगली या असभ्य किया है । और भारत देश के नाम करण कारण यही भरत जन जाति थी । भारतीय प्रमाणतः जर्मन आर्यों की ही शाखा थे जैसे यूरोप में पाँचवीं सदी में जर्मन के एेंजीलस कबीले के आर्यों ने ब्रिटिश के मूल निवासी ब्रिटों को परास्त कर ब्रिटेन को एञ्जीलस - लेण्ड अर्थात् इंग्लेण्ड कर दिया था । और ब्रिटिश नाम भी रहा जो पुरातन है । इसी प्रकार भारत नाम भी आगत आर्यों से पुरातन है ।
दुष्यन्त और शकुन्तला पुत्र भरत की कथा बाद में जोड़ दी गयी । जैन साहित्य में एक भरत ऋषभ देव परम्परा में थे। जिसके नाम से भारत शब्द बना।
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भारत तथा यूरोप की लगभग सभी मुख्य भाषाओं में आर्य शब्द यौद्धा अथवा वीर के अर्थ में व्यवहृत है !
पारसीयों पवित्र धर्म ग्रन्थ अवेस्ता में अनेक स्थलों पर आर्य शब्द आया है जैसे ।–सिरोज़ह प्रथम- के यश्त ९ पर, तथा सिरोज़ह प्रथम के यश्त २५ पर …अवेस्ता में आर्य शब्द का अर्थ है।€ तीव्र वाण (Arrow ) चलाने वाला यौद्धा —यश्त ८. स्वयं ईरान शब्द आर्यन् शब्द का तद्भव रूप है ।
परन्तु भारतीय आर्यों के ये चिर सांस्कृतिक प्रतिद्वन्द्वी अवश्य थे ।
ये असुर संस्कृति के उपासक आर्य थे. देव शब्द का अर्थ इनकी भाषाओं में निम्न व दुष्ट अर्थों में है …परन्तु अग्नि के अखण्ड उपासक आर्य थे ये लोग… स्वयं ऋग्वेद में असुर शब्द उच्च और पूज्य अर्थों में है —-जैसे वृहद् श्रुभा असुरो वर्हणा कृतः ऋग्वेद १/५४/३. तथा और भी महान देवता वरुण के रूप में
…त्वम् राजेन्द्र ये च देवा रक्षा नृन पाहि .असुर त्वं अस्मान् —ऋ० १/१/७४ तथा प्रसाक्षितः असुर यामहि –ऋ० १/१५/४. ऋग्वेद में और भी बहुत से स्थल हैं जहाँ पर असुर शब्द सर्वोपरि शक्तिवान् ईश्वर का वाचक है ।
पारसीयों ने असुर शब्द का उच्चारण ..अहुर ….के रूप में किया है।
अतः आर्य विशेषण. असुर और देव दौनो ही संस्कृतियों के उपासकों का था ।
और उधर यूरोप में द्वित्तीय महा -युद्ध का महानायक ऐडोल्फ हिटलर Adolf-Hitler स्वयं को शुद्ध नारादिक nordic आर्य कहता था और स्वास्तिक का चिन्ह अपनी युद्ध ध्वजा पर अंकित करता था विदित हो कि जर्मन भाषा में स्वास्तिक को हैकैन-क्रूज.(Haken- cruez )कहते थे …जर्मन वर्ग की भाषाओं में आर्य शब्द के बहुत से रूप हैं !
..ऐरे Ehere जो कि जर्मन लोगों की एक सम्माननीय उपाधि है ..जर्मन भाषाओं में ऐह्रे Ahere तथा Herr शब्द स्वामी अथवा उच्च व्यक्तिों के वाचक थे …और इसी हर्र Herr शब्द से यूरोपीय भाषाओं में..प्रचलित सर (.Sir )शब्द का विकास हुआ. और आरिश Arisch शब्द तथा आरिर् Arier स्वीडिश डच आदि जर्मन भाषाओं में श्रेष्ठ और वीरों का विशेषण है
इधर एशिया माइनर के पार्श्व वर्ती यूरोप के प्रवेश -द्वार ग्रीक अथवा आयोनियन भाषाओं में भी आर्य शब्द. …आर्च Arch तथा आर्क Arck के रूप मे है जो हिब्रू तथा अरबी भाषा में आक़ा होगया है…ग्रीक मूल का शब्द हीरों Hero भी वेरोस् अथवा वीरः शब्द का ही विकसित रूप है और वीरः शब्द स्वयं आर्य शब्द का प्रतिरूप है जर्मन वर्ग की भाषा ऐंग्लो -सेक्शन में वीर शब्द वर Wer के रूप में है ..तथा रोम की सांस्कृतिक भाषा लैटिन में यह वीर शब्द Vir के रूप में है……… ईरानी आर्यों की संस्कृति में भी वीर शब्द आर्य शब्द का विशेषण है यूरोपीय भाषाओं में भी आर्य और वीर शब्द समानार्थक रहे हैं !
हम यह स्पष्ट करदे कि आर्य शब्द किन किन संस्कृतियों में प्रचीन काल से आज तक विद्यमान है.. लैटिन वर्ग की भाषा आधुनिक फ्रान्च में…Arien तथा Aryen दौनों रूपों में इधर दक्षिणी अमेरिका की ओर पुर्तगाली तथा स्पेन भाषाओं में यह शब्द आरियो Ario के रूप में है पुर्तगाली में इसका एक रूप ऐरिऐनॉ Ariano भी है और फिन्नो-उग्रियन शाखा की फिनिश भाषा में Arialainen ऐरियल-ऐनन के रूप में है .. रूस की उप शाखा पॉलिस भाषा में Aryika के रूप में है.. कैटालन भाषा में Ari तथा Arica दौनो रूपों में है स्वयं रूसी भाषा में आरिजक Arijec अथवा आर्यक के रूप में है इधर पश्चिमीय एशिया की सेमेटिक शाखा आरमेनियन तथा हिब्रू और अरबी भाषा में क्रमशः Ariacoi तथाAri तथा अरबी भाषा मे हिब्रू प्रभाव से म-अारि.
M(ariyy तथा अरि दौनो रूपों में.. तथा ताज़िक भाषा में ऑरियॉयी Oriyoyi रूप इधर बॉल्गा नदी मुहाने वुल्गारियन संस्कृति में आर्य शब्द ऐराइस् Arice के रूप में है .वेलारूस की भाषा में Aryeic तथा Aryika दौनों रूप में..पूरबी एशिया की जापानी कॉरीयन और चीनी भाषाओं में बौद्ध धर्म के प्रभाव से आर्य शब्द .Aria–iin..के रूप में है …..
आर्य शब्द के विषय में इतने तथ्य अब तक हमने दूसरी संस्कृतियों से उद्धृत किए हैं…. परन्तु जिस भारतीय संस्कृति का प्रादुर्भाव आर्यों की संस्कृति से हुआ उस के विषय में हम कुछ कहते हैं ….विदित हो कि यह समग्र तथ्य ……योगेश कुमार रोहि के शोधों पर आधारित हैं भारोपीय आर्यों के सभी सांस्कृतिक शब्द समान ही हैं
स्वयं आर्य शब्द का धात्विक-अर्थ Rootnal-Mean ..आरम् धारण करने वाला वीर …..संस्कृत तथा यूरोपीय भाषाओं में आरम् Arrown =अस्त्र तथा शस्त्र धारण करने वाला यौद्धा अथवा वीरः ।
आर्य शब्द की व्युत्पत्ति Etymology संस्कृत की अर् (ऋृ) धातु मूलक है—अर् धातु के तीन प्राचीनत्तम हैं ..
१–गमन करना To go २– मारना to kill ३– हल चलाना (अर्)
Harrow मध्य इंग्लिश—रूप Harwe कृषि कार्य करना प्राचीन विश्व में सुसंगठित रूप से कृषि कार्य करने वाले प्रथम मानव आर्य ही हैं ।
आर्य को ई जाति नहीं थी।
इस तथ्य के प्रबल प्रमाण भी हमारे पास हैं ! पाणिनि तथा इनसे भी पूर्व ..कात्स्न्र्यम् धातु पाठ में …ऋृ (अर्) धातु कृषिकर्मे गतौ हिंसायाम् च..परस्मैपदीय रूप —-ऋणोति अरोति वा .अन्यत्र ऋृ गतौ धातु पाठ .३/१६ प० इयर्ति -जाता है वास्तव में संस्कृत की अर् धातु का तादात्म्य. identity.यूरोप की सांस्कृतिक भाषा लैटिन की क्रिया -रूप इर्रेयर Errare =to go से प्रस्तावित है जर्मन भाषा में यह शब्द आइरे irre =togo के रूप में है पुरानी अंग्रेजी में जिसका प्रचलित रूप एर Err है इसी अर् धातु से विकसित शब्द लैटिन तथा ग्रीक भाषाओं में क्रमशःAraval तथा Aravalis हैं अर्थात् कृषि कार्य.सम्बन्धी आर्यों की संस्कृति ग्रामीण जीवन मूलक है और कृषि विद्या के जनक आर्य ही थे …सर्व-प्रथम अपने द्वित्तीय पढ़ाव में मध्य -एशिया में ही कृषि कार्य आरम्भ कर दिया था ।
तथ्यों का संग्रह उसका विश्लेषण और प्रस्तुति और सबसे बढ़कर आपका अथक प्रयास वस्तुतः प्रशंसनीय के साथ ही श्रेयस्कर भी है। वास्तविक रूप से खोजी प्रवृति वालों के लिए मार्गदर्शी भी है।
जवाब देंहटाएंव्यक्तिगत रूप से मुझे बहुत ही प्रेरणा और मार्गदर्शन मिला है । इस हेतु आपका बहुत बहुत धन्यवाद !
ब्लॉग में दिया गया मो0 न0 पूर्ण नहीं है, कृपया अपने पूर्ण मो0 न0 देने की कृपा करें।
आपसे बात करने का स्वार्थ है।
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धन्यवाद !