( काव्यलिंग अलंकार)
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काव्य में किसी बात को सिद्ध करने के लिए जहाँ युक्ति अथवा कारण का कथन करके उसका समर्थन किया जाय, वहाँ काव्यलिंग अलंकार होता है । उदाहरण- ‘मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय । जा तन की झाँई परै, स्याम हरित दुति होय ।’ यहाँ प्रशंसा की समर्थता का कारण दूसरे वाक्य में कहा गया है । ‘स्याम गौर किमि कहीं बखानी । गिरा अनयन नयन बिनु बानी ॥” इसमें पूर्वाद्ध का समर्थन उत्तरार्द्ध के वाक्यार्थ में प्रस्तुत युक्ति के द्वारा किया है !
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