बुधवार, 16 अगस्त 2017
सुमेर सभ्यता -
भारतीय संस्कृति व सभ्यता विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। मध्यप्रदेश के भीमबेटका में पाए गए 25 हजार वर्ष पुराने शैलचित्र, नर्मदा घाटी में की गई खुदाई तथा मेहरगढ़ के अलावा कुछ अन्य नृवंशीय एवं पुरातत्वीय प्रमाणों से यह सिद्ध हो चुका है कि भारत की भूमि आदिमानव की प्राचीनतम कर्मभूमि रही है। यहीं से मानव ने अन्य जगहों पर बसाहट करने व वैदिक धर्म की नींव रखी थी। वर्तमान शोधानुसार सिंधु घाटी की सभ्यता को विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता माना जाता है जो 6000 हजार ईसा पूर्व से 1800 ईसा पूर्व के बीच अस्तित्व में थी।
ईसा से 2300-2150 वर्ष पूर्व सुमेरिया, 2000-400 वर्ष पूर्व बेबिलोनिया, 2000-250 ईसा पूर्व ईरान, 2000-150 ईसा पूर्व मिस्र (इजिप्ट), 1450-500 ईसा पूर्व असीरिया, 1450-150 ईसा पूर्व ग्रीस (यूनान), 800-500 ईसा पूर्व रोम की सभ्यताएं विद्यमान थीं। उक्त सभी से पूर्व महाभारत का युद्ध लड़ा गया था इसका मतलब कि 3500 ईसा पूर्व भारत में एक पूर्ण विकसित सभ्यता थी।
चीन भारत की 6 सभ्यताओं का रहस्य, जानिए...
उल्लेखनीय है कि सुमेरियन और बेबिलोनिया सभ्यता के बीच व्यापारिक लेन-देन होता रहता था जिसके माध्यम से एक दूसरे की संस्कृति और सभ्यता का प्रचार प्रसार भी होता रहता था। ऐसी कई वस्तुएं मेसोपोटामिया में पाई गई है जो सिंधु घाटी में उबलब्ध थी। दोनों ही सभ्यता के मंदिर एवं देवी-देवताओं में भी समानता मिलती है। वर्तमान शोधों से यह सिद्ध हुआ है कि सिंधु घाटी के लोग द्रविढ़ जाति के आर्य थे। उन्होंने ही वैदिक सभ्यता की नींव भी रखी थी। दरअसल, सिंधु और वैदिक सभ्यता के लोग एक ही थे।
सुमेरियन सभ्यता 2300-2150 : सुमेर सभ्यता को ही मेसोपोटामिया की सभ्यता कहा जाता है। मेसोपोटामिया का अर्थ होता है- दो नदियों के बीच की भूमि। दजला (टिगरिस) और फुरात (इयुफ़्रेट्स) नदियों के बीच के क्षेत्र को कहते हैं। इसी तरह सिन्धु और सरस्वती के बीच की भूमि पर ही आर्य रहते थे। इसमें आधुनिक इराक, उत्तर-पूर्वी सीरिया, दक्षिण-पूर्वी तुर्की तथा ईरान के कुजेस्तान प्रांत के क्षेत्र शामिल हैं। इस क्षेत्र में ही सुमेर, अक्कदी, बेबिलोन तथा असीरिया की सभ्यताएं अस्तित्व में थीं। अक्कादियन साम्राज्य की राजधानी बेबिलोन थी अतः इसे बेबिलोनियन सभ्यता भी कहा जाता है। यहां के बाद की जातियां तुर्क, कुर्द, यजीदी, आशूरी (असीरियाई), सबाईन, हित्ती, आदि है जिनका संबंध पौराणिक इतिहाकारों के अनुसार ययाति, भृगु, अत्रि वंश के साथ माना जाता है।
सुमेरिया की सभ्यता और संस्कृति का विकास फारस की खाड़ी के उत्तर में दजला और फरात नदियों के कछारों में हुआ था। सुमेरियन सभ्यता के प्रमुख शहर ऊर, किश, निपुर, एरेक, एरिडि, लारसा, लगाश, निसीन, निनिवेह आदि थे। निपुर इस सभ्यता का सर्वप्रमुख नगर था जिसका काल लगभग 5262 ईपू बताया जाता है। इस नगर का प्रमुख देवता एनलिल समस्त देश में पूजनीय माना जाता था।
सुमेरिया निवासी भी आस्तिक और मूर्तिपूजक थे। वे भी मंदिरों का निर्माण कर उनमें अपने इष्ट देवताओं कि मूर्तियां स्थापित कर उसकी पूजा-अर्चना करते थे। कुछ विद्वानों अनुसार हिन्दू संस्कृति के समान विकसित यह सभ्यता ईसा पूर्व 2000 के पूर्व ही समाप्त हो गई।
सुमेरिया वालों का वर्ष हिन्दुओं जैसा ही 12 मासों का था। उनकी मास गणना भी चन्द्रमा की गति पर आधारित थी। इस कारण हर तीसरे वर्ष एक माह बढ़ता था, जो हिन्दुओं के अधिकमास जैसा ही था। हिन्दुओं के समान ही अष्टमी और पूर्णिमा का वे बड़े उत्साह से स्वागत करते थे।
सुमेरियावासियों का संबंध सिन्धु घाटी के लोगों से घनिष्ठ था, क्योंकि यहां कुछ ऐसी मुद्राएं पाई गई हैं, जो सिन्धु घाटी में पाई गई थीं। पश्चिम के इतिहासकार मानते हैं कि सिन्धु सभ्यता सुमेरियन सभ्यता का उपनिवेश स्थान था जबकि समेल लोग पूर्व को अपना उद्गम मानते थे। सुमेर के भारत के साथ व्यापारिक संबंध थे।
प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता लैंगडन के अनुसार मोहनजोदड़ो की लिपि और मुहरें, सुमेरी लिपि और मुहरों से एकदम मिलती हैं। सुमेर के प्राचीन शहर ऊर में भारत में बने चूने-मिट्टी के बर्तन पाए गए हैं। मोहनजोदड़ो की सांड (नंदी) की मूर्ति सुमेर के पवित्र वृषभ से मिलती है और हड़प्पा में मिले सिंगारदान की बनावट ऊर में मिले सिंगारदान जैसी है। इन सबके आधार पर कहा जा सकता है कि सुमेर सभ्यता के लोग भी हिन्दू धर्म का पालन करते थे। 'सुमेर' शब्द भी हमें पौराणिक पर्वत सुमेरु की याद दिलाता है।
बेबिलोनिया (2000-400 ईसा पूर्व) : सुमेरी सभ्यता के पतन के बाद इस क्षेत्र में बाबुली या बेबिलोनियन सभ्यता पल्लवित हुई। अक्कादियन साम्राज्य की राजधानी बेबिलोन थी, उसके प्रसिद्ध सम्राट् हम्मुराबी (हाबुचन्द्र) ने अत्यंत प्राचीन कानून और दंड संहिता बनाई। बेबिलोनियन सभ्यता की प्रमुख विशेषता हम्मुराबी की (2123-2080 ईपू) दंड संहिता है। बेबिलोनियन सभ्यता का प्रमुख ग्रंथ्र गिल्गामेश महाकाव्य था। गिल्गामेश (2700 ईपू) प्राचीन उरुक (वर्तमान इराक में) जन्म एक युवा राजा था।
इस सभ्यता के लोग हिन्दु्ओं के समान ही पूजा प्रात: और सायं अर्घ्य, तेल, धूप, अभ्यंग, दीप, नेवैद्य आदि लगाकर करते थे। ईसा पूर्व 18वीं शताब्दी के वहां के कसाइट राजाओं के नामों में वैदिक देवताओं के सूर्य, अग्नि, मरूत आदि नाम मिलते हैं। वहां के हिट्टाइट और मिनानी राजाओं के बीच हुई संधियों में गवाह के रूप में इंद्र, वरुण, मित्र, नासत्य के नाम मिलते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि बेबिलोनिया के लोग भी हिन्दू धर्म का ही पालन करते थे।
अलअपरना में मिले शिलालेखों में सीरिया, फिलिस्तीन के राजाओं के नाम भारतीय राजाओं के समान है। असीरिया शब्द असुर का बिगड़ा रूप है। बेबिलोन की प्राचीन गुफाओं में पुरातात्विक खोज में जो भित्तिचित्र मिले हैं, उनमें भगवान शिव के भक्त, वेदों के उत्सुक गायक तथा हिन्दू देवी-देवताओं की उपासना करते हुए उत्कीर्ण किया गया है।
संदर्भ : प्राचीन सभ्यताओं की पुस्तकों से संकलित
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें