अनुप्रास अलंकार का सम्पूर्ण विवरण
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छेकानुप्रास
अनुप्रास जहां एक या अनेक वर्णों की क्रमानुसार आवृत्ति केवल एक बार हो अर्थात् एक या अनेक वर्णों का प्रयोग केवल युगल रूप में हो, वहां छेकानुप्रास होता है।
छेकानुप्रास का एक उदाहरण द्रष्टव्य है— देखौ दुरौ वह कुंज कुटीर में बैठो पलोटत राधिका पायन।[4] मैन मनोहर बैन बजै सुसजै तन सोहत पीत पटा है।[5] उपर्युक्त पहली पंक्ति में 'द' और 'क' का तथा दूसरी पंक्ति में 'म' और 'ब' का प्रयोग दो बार हुआ है। वर्णों की आवृत्ति को अनुप्रास कहते हैं। उदाहरण - चारु चन्द्र की चंचल किरणें, खेल रहीं थीं जल-थल में। स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई थी, अवनि और अम्बरतल में॥ अनुप्रास के प्रकार छेकानुप्रासː जब वर्णों की आवृत्ति एक बार होती है तो वह छेकानुप्रास कहलाता है। उदाहरण - मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू॥
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वृत्यानुप्रासː
वृत्यानुप्रासː जब एक ही वर्ण की आवृत्ति अनेक बार होती है तो वृत्यानुप्रास होता है।
उदाहरण - काम कोह कलिमल करिगन के।
लाटानुप्रासː
लाटानुप्रासː जब एक शब्द या वाक्यखण्ड की आवृत्ति होती है तो लाटानुप्रास होता है। उदाहरण - वही मनुष्य है, जो मनुष्य के लिये मरे।
इसमें केवल अन्वय करने से अर्थ भिन्न हो जाता है ।
जैसे रोको,मत जाने दो ।रोको मत, जाने दो ।
अन्त्यानुप्रासː
अन्त्यानुप्रासː जब अन्त में तुक मिलता हो तो अन्त्यानुप्रास होता है। उदाहरण - मांगी नाव न केवटु आना। कहहि तुम्हार मरमु मैं जाना॥
श्रुत्यानुप्रासː
श्रुत्यानुप्रासː जब एक ही वर्ग के वर्णों की आवृत्ति होती है तो श्रुत्यानुप्रास होता है। -- उदाहरण - दिनान्त था , थे दिननाथ डूबते, सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे। (यहाँ पर त वर्ग के वर्णों अर्थात् त, थ, द, ध, न की आवृति हुई है।अत: श्रुत्यानुप्रासː है !
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