शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017
अलंकार ----इण्टरमिडिएट ....
अलंकार , काव्य की परिभाषा एवं भेद , काव्य-गुण,शब्द शक्ति
इस ब्लॉग में कक्षा 9 से 12 तक के विद्यार्थियों को ध्यान में रखते हुए अलंकार की परिभाषा,प्रकार एवं उदाहरण, काव्य की परिभाषा, भेद, महाकाव्य, खण्ड काव्य, मुक्तक काव्य, काव्य गुण की परिभाषा, प्रकार शब्द शक्ति आदि का उदाहरण सहित वर्णन किया गया है , जो विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी सिध्द होगा |
रविवार, 20 नवंबर 2016
अलंकार प्रकरण
अलंकार प्रकरण
अलंकार का अर्थ एवं परिभाषा-
अलंकार शब्द दो शब्दों के योग से मिलकर बना है- 'अलम्' एवं 'कार' , जिसका अर्थ है- आभूषण या विभूषित करने वाला। काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्व को अलंकार कहते हैं। दूसरे शब्दों में जिन उपकरणों या शैलियों से काव्य की सुंदरता बढ़ती है, उसे अलंकार कहते हैं।
अलंकार के प्रकार-
1. शब्दालंकार-
जहाँ शब्दों के कारण काव्य की शोभा बढ़ती है, वहाँ शब्दालंकार होता है। इसके अंतर्गत अनुप्रास,यमक,श्लेष और पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार आते हैं।
2. अर्थालंकार-
जहाँ अर्थ के कारण काव्य की शोभा में वृध्दि होती है, वहाँ अर्थालंकार होता है। इसके अंतर्गत उपमा,उत्प्रेक्षा,रूपक, अतिशयोक्ति, अन्योक्ति, अपन्हुति, विरोधाभास आदि अलंकार शामिल हैं।
शब्दालंकार के प्रकार-
1.अनुप्रास अलंकार-
जहाँ काव्य में किसी वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण 1.
''तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।''
यहाँ पर 'त' वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार हुआ है। इसी प्रकार अन्य उदाहरण निम्नांकित हैं-
उदाहरण 2.
'चारु चंद्र की चंचल किरणें, खेल रही हैं जल-थल में।'
यहाँ पर 'च' वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार हुआ है।
उदाहरण 3.
बंदउँ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुवास सरस अनुरागा।।'
यहाँ पर 'स' वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार हुआ है।
2. यमक अलंकार-
जिस काव्य में एक शब्द एक से अधिक बार आए किन्तु उनके अर्थ अलग-अलग हों, वहाँ यमक अलंकार होता है।
उदाहरण 1.
कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
या खाए बौरात नर या पाए बौराय।।
इस पद में 'कनक' शब्द की आवृत्ति दो बार हुई है। पहले 'कनक' का अर्थ 'सोना' तथा दूसरे 'कनक' का अर्थ 'धतूरा' है।
अन्य उदाहरण-
उदाहरण 2.
माला फेरत जुग गया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डारि दे,मन का मनका फेर।।
इस पद में 'मनका ' शब्द की आवृत्ति दो बार हुई है। पहले 'मनका ' का अर्थ 'माला की गुरिया ' तथा दूसरे 'मनका ' का अर्थ 'मन' है।
उदाहरण 3.
ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी
ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहती हैं।
इस पद में 'घोर मंदर ' शब्द की आवृत्ति दो बार हुई है। पहले 'घोर मंदर ' का अर्थ 'ऊँचे महल ' तथा दूसरे 'घोर मंदर ' का अर्थ 'कंदराओं से ' है।
उदाहरण 3.
कंद मूल भोग करैं कंदमूल भोग करैं
तीन बेर खाती ते बे तीन बेर खाती हैं।
इस पद में 'कंदमूल ' और ' बेर' शब्द की आवृत्ति दो बार हुई है। पहले 'कंदमूल ' का अर्थ 'फलों से' है तथा दूसरे 'कंदमूल ' का अर्थ 'जंगलों में पाई जाने वाली जड़ियों से ' है। इसी प्रकार पहले ' तीन बेर' से आशय तीन बार से है तथा दूसरे 'तीन बेर' से आशय मात्र तीन बेर ( एक प्रकार का फल ) से है ।
उदाहरण 4.
भूखन शिथिल अंग, भूखन शिथिल अंग
बिजन डोलाती ते बे बिजन डोलाती हैं।
उदाहरण 5.
तो पर वारों उर बसी, सुन राधिके सुजान।
तू मोहन के उर बसी, ह्वै उरबसी समान।।
3. श्लेष अलंकार-
श्लेष का अर्थ - चिपका हुआ। किसी काव्य में प्रयुक्त होनें वाले किसी एक शब्द के एक से अधिक अर्थ हों, उसे श्लेष अलंकार कहते हैं। इसके दो भेद हैं- शब्द श्लेष और अर्थ श्लेष।
शब्द श्लेष- जहाँ एक शब्द के अनेक अर्थ होता है , वहाँ शब्द श्लेष होता है। जैसे- .
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुस, चून।।
यहाँ पानी तीन अर्थों में प्रयुक्त हुआ है।
मोती के अर्थ में - चमक, मनुष्य के अर्थ में- सम्मान या प्रतिष्ठा तथा चून के अर्थ में- जल।
अर्थ श्लेष- जहाँ एकार्थक शब्द से प्रसंगानुसार एक से अधिक अर्थ होता है, वहाँ अर्थ श्लेष अलंकार होता है।
जैसे- नर की अरु नल-नीर की गति एकै कर जोय
जेतो नीचो ह्वै चले, तेतो ऊँची होय।।
इसमें दूसरी पंक्ति में ' नीचो ह्वै चले' और 'ऊँची होय' शब्द सामान्यतः एक अर्थ का बोध कराते है, किन्तु नर और नलनीर के प्रसंग में भिन्न अर्थ की प्रतीत कराते हैं।
4. प्रश्न अलंकार-
जहाँ काव्य में प्रश्न किया जाता है, वहाँ प्रश्न अलंकार होता है। जैसे-
जीवन क्या है? निर्झर है।
मस्ती ही इसका पानी है।
5.वीप्साअलंकार या पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार-
घबराहट, आश्चर्य, घृणा या रोचकता किसी शब्द को काव्य में दोहराना ही वीप्सा या पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
उदाहरण 1.
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल।
उदाहरण 2.
विहग-विहग
फिर चहक उठे ये पुंज-पुंज
कल- कूजित कर उर का निकुंज
चिर सुभग-सुभग।
उदाहरण 3.
जुगन- जुगन समझावत हारा , कहा न मानत कोई रे ।
उदाहरण 4.
लहरों के घूँघट से झुक-झुक , दशमी शशि निज तिर्यक मुख ,
दिखलाता , मुग्धा- सा रुक-रुक ।
अर्थालंकार के प्रकार-
1. उपमा अलंकार-
काव्य में जब दो भिन्न वस्तुओं में समान गुण धर्म के कारण तुलना या समानता की जाती है, तब वहाँ उपमा अलंकार होता है।
उपमा के अंग-
उपमा के 4 अंग हैं।
i. उपमेय- जिसकी तुलना की जाय या उपमा दी जाय। जैसे- मुख चन्द्रमा के समान सुंदर है। इस उदाहरण में मुख उपमेय है।
ii. उपमान- जिससे तुलना की जाय या जिससे उपमा दी जाय। उपर्युक्त उदाहरण में चन्द्रमा उपमान है।
iii. साधारण धर्म- उपमेय और उपमान में विद्यमान समान गुण या प्रकृति को साधारण धर्म कहते है। ऊपर दिए गए उदाहरण में 'सुंदर ' साधारण धर्म है जो उपमेय और उपमान दोनों में मौजूद है।
iv. वाचक -समानता बताने वाले शब्द को वाचक शब्द कहते हैं। ऊपर दिए गए उदाहरण में वाचक शब्द 'समान' है।
उल्लेखनीय- जहाँ उपमा के चारो अंग उपस्थित होते हैं, वहाँ पूर्णोपमा अलंकार होता है। जब उपमा के एक या एक से अधिक अंग लुप्त होते हैं, तब लुप्तोपमा अलंकार होता है।
उपमा के उदाहरण-
1. पीपर पात सरिस मन डोला।
2. राधा जैसी सदय-हृदया विश्व प्रेमानुरक्ता ।
3. माँ के उर पर शिशु -सा , समीप सोया धारा में एक द्वीप ।
2. रूपक अलंकार-
जब उपमेय में उपमान का निषेध रहित आरोप करते हैं, तब रूपक अलंकार होता है। दूसरे शब्दों में जब उपमेय और उपमान में अभिन्नता या अभेद दिखाते हैं, तब रूपक अलंकार होता है।उदाहरण-
* चरण-कमल बंदउँ हरिराई।
* राम कृपा भव निशा सिरानी
* बंदउँ गुरुपद पदुम- परागा।
सुरुचि सुवास सरस अनुरागा।।
3. उत्प्रेक्षा अलंकार-
जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। उत्प्रेक्षा के लक्षण- मनहु, मानो, जनु, जानो,इव, ज्यों,जान आदि। उदाहरण-
* लता भवन ते प्रकट भे,तेहि अवसर दोउ भाइ।
मनु निकसे जुग विमल विधु, जलद पटल बिलगाइ।।
* दादुर धुनि चहु दिशा सुहाई।
वेद पढ़हिं जनु बटु समुदाई।।
मेरे जान पौनों सीरी ठौर कौ पकरि कौनों ,
घरी एक बैठि कहूँ घामैं बितवत हैं ।
4. अतिशयोक्ति अलंकार-
काव्य में जहाँ किसी बात को बढ़ा चढ़ा के कहा जाए, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है। उदाहरण-
* हनुमान की पूँछ में, लगन न पायी आग।
लंका सगरी जल गई, गए निशाचर भाग।।
* आगे नदिया पड़ी अपार, घोडा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार।।
5. अन्योक्ति अलंकार-
जहाँ उपमान के बहाने उपमेय का वर्णन किया जाय या कोई बात सीधे न कहकर किसी के सहारे की जाय, वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है। जैसे-
* नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहिकाल।
अली कली ही सौं बंध्यो, आगे कौन हवाल।।
* इहिं आस अटक्यो रहत, अली गुलाब के मूल।
अइहैं फेरि बसंत रितु, इन डारन के मूल।।
6. अपन्हुति अलंकार -
अपन्हुति का अर्थ है छिपाना या निषेध करना।काव्य में जहाँ उपमेय को निषेध कर उपमान का आरोप किया जाता है,वहाँ अपन्हुति अलंकार होता है। उदाहरण-
* यह चेहरा नहीं गुलाब का ताजा फूल है।
* नये सरोज, उरोजन थे, मंजुमीन, नहिं नैन।
कलित कलाधर, बदन नहिं मदनबान, नहिं सैन।।
* सत्य कहहूँ हौं दीन दयाला।
बंधु न होय मोर यह काला।।
7. व्यतिरेक अलंकार-
जब काव्य में उपमान की अपेक्षा उपमेय को बहुत बढ़ा चढ़ा कर वर्णन किया जाता है, वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है। जैसे-
* जिनके जस प्रताप के आगे ।
ससि मलिन रवि सीतल लागे।
8. संदेह अलंकार-
जब उपमेय में उपमान का संशय हो तब संदेह अलंकार होता है। या जहाँ रूप, रंग या गुण की समानता के कारण किसी वस्तु को देखकर यह निश्चित न हो कि वही वस्तु हैऔर यह संदेह अंत तक बना रहता है, वहाँ सन्देह अलंकार होता है। उदाहरण-
* कहूँ मानवी यदि मैं तुमको तो ऐसा संकोच कहाँ?
कहूँ दानवी तो उसमें है यह लावण्य की लोच कहाँ?
वन देवी समझूँ तो वह तो होती है भोली-भाली।।
* विरह है या वरदान है।
* सारी बिच नारी है कि नारी बिच सारी है।
कि सारी ही की नारी है कि नारी ही की सारी है।
9. विरोधाभास अलंकार-
जहाँ बाहर से विरोध दिखाई दे किन्तु वास्तव में विरोध न हो। जैसे-
* ना खुदा ही मिला ना बिसाले सनम।
ना इधर के रहे ना उधर के रहे।।
* जब से है आँख लगी तबसे न आँख लगी।
* या अनुरागी चित्त की , गति समझे नहिं कोय।
ज्यों- ज्यों बूड़े स्याम रंग, त्यों-त्यों उज्ज्वल होय।।
सुनहु देव रघुवीर कृपाला ।
बन्धु न होइ मोर यह काला ।
सरस्वती के भंडार की बड़ी अपूरब बात ।
ज्यों खरचै त्यों- त्यों बढे , बिन खरचे घट जात ॥
10. वक्रोक्ति अलंकार-
जहाँ किसी उक्ति का अर्थ जान बूझकर वक्ता के अभिप्राय से अलग लिया जाता है, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है। उदाहरण-
* कौ तुम? हैं घनश्याम हम ।
तो बरसों कित जाई।
इसके दो भेद है- (i) श्लेष वक्रोक्ति (ii) काकु वक्रोक्ति
11. भ्रांतिमान अलंकार-
जहाँ प्रस्तुत को देखकर किसी विशेष साम्यता के कारण किसी दूसरी वस्तु का भ्रम हो जाता है, वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है। उदाहरण-
* चंद के भरम होत मोड़ है कुमुदनी।
* नाक का मोती अधर की कान्ति से,
बीज दाड़िम का समझकर भ्रान्ति से,
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है,
सोचता है, अन्य शुक कौन है।
* चाहत चकोर सूर ऒर , दृग छोर करि।
चकवा की छाती तजि धीर धसकति है।
12.ब्याजस्तुति अलंकार
काव्य में जहाँ देखने, सुनाने में निंदा प्रतीत हो किन्तु वास्तव में प्रशंसा हो , वहाँ ब्याजस्तुति अलंकार होता है । दूसरे शब्दों में - काव्य में जब निंदा के बहाने प्रशंसा किया जाता है , तो वहाँ ब्याजसतीति अलंकार होता है ।
उदाहरण :-
गंगा क्यों टेढ़ी -मेढ़ी चलती हो ।
दुष्टों को शिव कर देती हो ॥
shukla nk पर 1:02 am
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