रविवार, 16 अप्रैल 2017
अव्यय प्रकरण ....
अव्यय
अव्यय किसे कहते हैं ?
अव्यय का शाब्दिक अर्थ है जिस शब्द का कुछ भी व्यय न हो ।
दूसरे रूप में, अव्यय वे शब्द हैं जिनके रूप में लिंग-वचन-पुरुष-काल इत्यादि व्याकरणिक कोटियों के प्रभाव से कोई परिवर्तन नहीं होता ।
जैसे- पर, लेकिन, ताकि, आज, कल, तेज, धीरे, अरे, ओह इत्यादि ।
अव्यय के पांच भेद हैं-
क्रिया-विशेषण
संबंधबोधक
समुच्चय बोधक
विस्मयादिबोधक
निपात
क्रिया-विशेषण
वे अव्यय शब्द जो क्रिया की विशेषता बताते हैं, क्रिया-विशेषण कहलाते हैं ।
उदाहरण क्रिया विशेषण
बच्चे धीरे-धीरे चल रहे थे । धीरे-धीरे
वे लोग रात को पहुंचे । रात को
सुधा प्रतिदिन पढ़ती है । प्रतिदिन
वह यहां आता है । यहां
अर्थानुसार क्रिया-विशेषण के चार भेद हैं-
1. कालवाचक
2. स्थानवाचक
3. परिमाणवाचक
4. रीतिवाचक
1. कालवाचक क्रिया-विशेषण-
जिस क्रिया-विशेषण शब्द से कार्य के होने का समय ज्ञात हो ।
इसमें ज्यादातर ये शब्द प्रयोग में आते हैं- यदा, कदा, जब, तब, हमेशा, तभी, तत्काल, निरंतर, शीघ्र, पूर्व, बाद, पीछे, घड़ी-घड़ी, अब, तत्पश्चात्, तदनंतर, कल, कई बार, अभी, फिर, कभी आदि ।
2. स्थानवाचक क्रिया-विशेषण-
जिस क्रिया-विशेषण शब्द द्वारा क्रिया के होने के स्थान का बोध हो ।
इसमें ज्यादातर ये शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं- भीतर, बाहर, अंदर, यहाँ, वहाँ, किधर, उधर, इधर, कहाँ, जहाँ, पास, दूर, अन्यत्र, इस ओर, उस ओर, दाएँ, बाएँ, ऊपर, नीचे आदि ।
3. परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण-
जो शब्द क्रिया का परिमाण बतलाते हैं वे परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण कहलाते हैं ।
जैसे- बहुधा, थोड़ा-थोड़ा, अत्यंत, अधिक, अल्प, बहुत, कुछ, पर्याप्त, प्रभूत, कम, न्यून, बूँद-बूँद, स्वल्प, केवल, प्रायः, अनुमानतः, सर्वथा आदि ।
4. रीतिवाचक क्रिया-विशेषण-
जिन शब्दों के द्वारा क्रिया के संपन्न होने की रीति का बोध हो ।
जैसे- अचानक, सहसा, एकाएक, झटपट, आप ही, ध्यानपूर्वक, धड़ाधड़, यथा, तथा, ठीक, सचमुच, अवश्य, वास्तव में, निस्संदेह, बेशक, शायद, संभव हैं, कदाचित्, बहुत करके, हाँ, ठीक, सच, जी, जरूर, अतएव, किसलिए, क्योंकि, नहीं, न, मत, कभी नहीं, कदापि नहीं आदि ।
संबंधबोधक अव्यय
वे शब्द जो संज्ञा या सर्वनाम के बाद प्रयुक्त होकर वाक्य अन्य संज्ञा सर्वनाम शब्दों के साथ संबंध का बोध कराते हैं ।
उदाहरण संबंधबोधक अव्यय
मैंने घर के सामने कुछ पेड़ लगाए हैं । सामने
उसका साथ छोड़ दीजिए । साथ
छत पर कबूतर बैठा है । पर
क्रिया-विशेषण और संबंधबोधक अव्यय में अंतर
जब इनका प्रयोग संज्ञा या सर्वनाम के साथ होता है तब ये संबंधबोधक अव्यय होते हैं
और जब ये क्रिया की विशेषता प्रकट करते हैं तब क्रिया-विशेषण होते हैं ।
जैसे-
(i) बाहर जाओ । (क्रिया विशेषण)
(ii) घर से बाहर जाओ । (संबंधबोधक अव्यय)
समुच्चयबोधक अव्यय
दो शब्दों, वाक्यांशों या वाक्यों को मिलाने वाले अव्यय समुच्चयबोधक अव्यय कहलाते हैं । इन्हें योजक भी कहते हैं ।
उदाहरण समुच्चबोधक अव्यय
मता जी और पिताजी और
मैं पटना आना चाहता था लेकिन आ न सका । लेकिन
तुम जाओगे या वह आएगा । या
और, तथा, एवं, व, लेकिन, मगर, किंतु, परंतु, इसलिए, इस कारण, अत:, क्योंकि, ताकि, या, अथवा, चाहे
इत्यादि शब्द को समुच्चय बोधक में शामिल किया गया है ।
समुच्चयबोधक के दो भेद हैं-
1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक
2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक
1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक
वे योजक शब्द जो समान अधिकार वाले अंशों को जोड़ने का कार्य करते हैं ।
जैसे- किंतु, और, या, अथवा इत्यादि ।
2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक
वे योजक जिनमें एक अंश मुख्य होता है और एक गौण या जो एक मुख्य वाक्य में एक या एक से अधिक उपवाक्यों को जोड़ने का कार्य करते हैं, व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहलाते हैं ।
जैसे- चूंकि, इसलिए, यद्यपि, तथापि, कि, मानो, क्योंकि, यहां तक कि, जिससे कि, ताकि आदि ।
विस्मयादिबोधक अव्यय
जिन शब्दों में हर्ष, शोक, विस्मय, ग्लानि, घृणा, लज्जा आदि भाव प्रकट होते हैं वे विस्मयादिबोधक अव्यय कहलाते हैं । इन्हें ‘द्योतक’ भी कहते हैं ।
जैसे- अहा ! क्या मौसम है । अरे ! आप आ गए ?
विस्मयादिबोधक अव्यय में (!) चिह्न लगता है ।
भाव के आधार पर इसके सात भेद हैं-
विस्मायादिबोधक अव्यय के भेद उदाहरण
(i) हर्षबोधक- अहा ! धन्य ! वाह-वाह ! ओह ! वाह ! शाबाश !
(ii) शोकबोधक- आह ! हाय ! हाय-हाय ! हा, त्राहि-त्राहि ! बाप रे !
(iii) विस्मयादिबोधक- हैं ! ऐं ! ओहो ! अरे वाह !
(iv) तिरस्कारबोधक- छिः ! हट ! धिक् धत् ! छिः छिः ! चुप !
(v) स्वीकृतिबोधक- हाँ-हाँ ! अच्छा ! ठीक ! जी हाँ ! बहुत अच्छा !
(vi) संबोधनबोधक- रे ! री ! अरे ! अरी ! ओ ! अजी ! हैलो !
(vii) आशीर्वादबोधक- दीर्घायु हो ! जीते रहो !
निपात अव्यय
कुछ अव्यय शब्द वाक्य में किसी शब्द या पद के बाद लगकर उसके अर्थ में विशेष प्रकार का बल ला देते हैं, इन्हें निपात कहा जाता है ।
विशेष प्रकार का बल या अवधारणा देने की वजह से इसे अवधारक शब्द भी कहा जाता है ।
निपात या अवधारक शब्द
बनने वाले वाक्य
ही प्रशांत को ही करना होगा यह काम ।
भी सुहाना भी जाएगी ।
तो तुम तो सनम डुबोगे ही, सबको डुबाओगे ।
तक वह तुमसे बोली तक नहीं ।
भर तुम उसे जानता भर हो ।
मात्र पढ़ाई मात्र से ही सब कुछ नहीं मिल जाता ।
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