शूद्र भारतीय समाज व्यवस्था में चतुर्थ वर्ण या जाति है।
केवल एक षड्यन्त्र..
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उत्पत्ति -- शूद्र शब्द मूलत: विदेशी है और संभवत: एक पराजित अनार्य जाति का मूल नाम था।
प्राचीन यूरोप तथा एशिया
में की भाषाओं मे यह शब्द
Druid ( द्रविड) जन जाति के वस्त्रों का निर्माण तथा सीवन करने वाले कबीले के लिए रूढ़ है !
जिसका तादात्म्य स्कोटिस (sottice ) souter से प्रस्तावित है ! इसका उच्चारण
सुट्र के रूप में
है ......
परन्तु पुराणों तथा स्मृतियों में इस शब्द की व्युत्पत्ति
अानुमानिक रुप से भिन्न भिन्न प्रकार से दर्शायी है ...
जो कि मिथ्या ही है ..
क्यों कि सत्य केवल एक रूप में होता है ..
और असत्य अनेक भिन्न रूपों में ...यही इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है ....
पौराणिक संदर्भ वायु पुराण का कथन है कि शोक करके द्रवित होने वाले परिचर्यारत व्यक्ति शूद्र हैं तो
भविष्यपुराण में श्रुति की द्रुति (अवशिष्टांश) प्राप्त करने वाले शूद्र कहलाए दौनों बाते भिन्न हैं !
वैदिक परंपरा अथर्ववेद में कल्याणी वाक (वेद) का श्रवण शूद्रों को विहित था।
परंपरा है कि ऐतरेय ब्राह्मण का रचयिता महीदास इतरा (शूद्र) का पुत्र था।
किंतु बाद में वेदाध्ययन का अधिकार शूद्रों से ले लिया गया
ताकि शूद्र सेवा व गुलामी करते रहें ...
ऐतिहासिक संदर्भ -----
शूद्र जनजाति का उल्लेख डायोडोरस, टॉल्मी और ह्वेन त्सांग भी करते हैं।
ये भारतीय कोल जनजाति का ही एक रूप था ...
आर्थिक स्थिति ---
उत्तर वैदिक काल में शूद्र की स्थिति दास की थी अथवा नहीं
इस विषय में निश्चित नहीं कहा जा सकता।
वह कर्मकार और परिचर्या करने वाला वर्ग था।
मध्य काल कबीर, रैदास, पीपा इस काल के प्रसिद्ध शूद्र संत हैं।
असम के शंकरदेव द्वारा प्रवर्तित मत, पंजाब का सिक्ख संप्रदाय और महाराष्ट्र के बारकरी संप्रदाय ने शूद्र महत्त्व धार्मिक क्षेत्र में प्रतिष्ठित किया।
आधुनिक काल -----
वेबर, डॉ० भीमराव आम्बेडकर, ज़िमर और रामशरण शर्मा क्रमश: शूद्रों को मूलत: भारतवर्ष में प्रथमागत आर्यस्कंध, क्षत्रिय, ब्राहुई भाषी और आभीरजन जाति से संबद्ध मानते हैं।
जो आर्य समुदाय से बहिष्कृत
यदु से सम्बद्ध थे !
जैसा कि ऋग्वेद का सूक्त है
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उत दासा परिविषे स्मद् दिष्टी गोपरिणसा यदुस्तुर्वसुश्च मामहे
ऋग्वेद- 10/62/10
इस सूक्तांश में यदु और तुरवसु दास ( शूद्र) बताए गये हैं
जो गायों से घिरे हुए हैं ...
और इस कारण से उनकी प्रशंसा भी की गयी है ..
कृष्ण को भी यदु कुल का होने के कारण भारती ग्रंथो में शूद्र ही माना है !
चमत्कारी होने से कृष्ण से यह
शूद्र विशेषण अपने आप हट गया ...
परन्तु अहीर शूद्र ही माने गये
यद्यपि कृष्ण आभीर जन जाति से ही सम्बद्ध थे ...
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संबंधित लेख वर्ण व्यवस्था
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ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय, चर्मकार, मीणा, कुम्हार, दास, भील, बंजारा
अन्य जानकारी पद से उत्पन्न होने के कारण पदपरिचर्या शूद्रों का विशिष्ट व्यवसाय है।
यह एक सुनियोजित ब्राह्मण वादी मानसिकता का षड्यन्त्र
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पद्भ्याम् शूद्रो अजायत ....
अर्थात् विराट् पुरुष के पैरों से शूद्र उत्पन्न हुए ....
ऋग्वेद 10/90/12
द्विजों के साथ आसन, शयन वाक और पथ में समता की इच्छा रखने वाला शूद्र दंड्य है।
केवल उनके पैरों में ही पड़ा रहे .......
शूद्र शब्द का व्युत्पत्यर्थ निकालने के जो प्रयास हुए हैं,
वे अनिश्चित से लगते हैं
केवल मन गढ़न्त ही हैं ...
परन्तु योगेश कुमार रोहि
के द्वारा भारोपीय सांस्कृतिक
तादात्मय के स्थापन स्वरूप
इस शब्द की सटीक प्रमाणित व्युत्पत्ति सिद्ध कर दी गयी है...
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शूद्र एक यथार्थ परिचय---
विचार-विश्लेषण---योगेश कुमार 'रोहि'
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