शुक्रवार, 17 मार्च 2017
( यथार्थ का एक अवलोकन ...
Philosophy of druid tribe in celtic culture
कैल्टिक अथवा किरात संस्कृति में द्रविडों की
ड्रयूड नाम से दार्शनिकता ....
विश्लेषक - योगेश कुमार रोहि
ग्राम --आजादपुर पत्रालय पहाड़ीपुर
जनपद अलीगढ़ ---
यूरोपीय सन्दर्भों का पुट लेते हुए ..
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Alexander Cornelius Polyhistor referred to the druids as philosophers and called their doctrine of the immortality of the soul and reincarnation or metempsychosis "Pythagorean":----
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अर्थात् द्रविड द्रव तत्व के विश्व में प्रथम वेत्ता थे !
द्रव + विद = समाक्षर लोप से द्रविड शब्द वना ...अत: इस कारण से उनका द्रविड नाम हुआ ....
आत्मा की अमरता तथा कर्म के आधार पर पुनर्जन्म के सिद्धान्त के
खोज कर्ता ये ही विश्व के प्रथम व्यक्ति थे ....
ओ३म् इनका ही भाषा तथा चेतना का अधिष्ठात्री देवता था .
.जिसे भारतीय ब्राह्मणों ने एकाधिकृत कर लिया ...
और फिर पुष्यमित्रसुँग के शासन काल में जो कि स्वयं एक रूढ़िवादी ब्राह्मण था ....
उसके शासन काल में नये सिरे से मनु- स्मृति आदि की रचना हुई ..उसमें ब्राह्मणों की सर्वोपरिता को दृष्टि में रखकर धार्मिक व सामाजिक ...
नियम बनाए गये ..
तथा ओ३म् का उच्चारण शूद्रों के लिए निषिद्ध किया गया ..
और यदि वे उच्चारण भी करते तो उच्चारण करने पर उनकी जिह्वा काट देना ...
जैसे विधान बनाऐ गये ...
जबकि शूद्र जो कोल जन जाति का विशेषण था.
द्रविड ही थे ....
अन्वेषक ---- योगेश कुमार रोहि के प्रमाणों पर आधारित तथ्य .......
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यूरोप में वाल्टिक सागर के तटवर्ती क्षेत्रों में..केल्ट वेल्स ..
तथा ब्रिटॉन् सिमरी गोल आयरी जॉर्जियन ...
तथा स्कोटिस् मूल के सुटर Souter --- जन जाति की संस्कृतियों के रूप में विस्तार हुआ. यद्यपि पिक्ट योद्धाओं से सम्बद्ध थे
जो रोमन संस्कृति में सॉडियर Sodier अथवा Soldsier . सॉल्ज़र कह गये ये लोग बड़े वीर थे ...
.. .आयरी या जॉर्जिया शब्द की एक रूपता आभीर और गुर्जर से है .. जो गायों को चराने वाले ....गौश्चर ही थे ....
शूद्र शब्द अपने आप में यथावत है ...
अब भारत के इतिहास को भाषा वैज्ञानिक आधार पर
तथा सांस्कृतिक विश्लेषण के आधार पर फिर से लिखने की आवश्यकता है ....
जिन्हें भारतीय पुराणों में क्रमश: किरात (कोल जन जाति का उपवर्ग )वराह ....भरत ( भारत की एक मूल जंगली जनजाति इन्ही लोगों के कारण भारत नाम हुआ ...ना कि शंकुन्तला के पुत्र भरत के आधार पर ...
ऋग्वेद में शम्बर को कोलितर कहा है ...
जिससे कालान्तरण में चम्बर या चमार शब्द वना ...
वाद में चर्मकार शब्द से इसे समायोजित कर दिया गया ....
जोकि आनुमानिक है ..
भारतीय आर्यों नें द्रविडों की सांस्कृतिक विरासत को यथावत् ग्रहण कर लिया
कृष्ण आर्य संस्कृति के उद्घोषक नहीं अपितु द्रविड संस्कृति के उद्घोषक थे ..
ऋग्वेद दशम् मण्डल मे
६२ वें सूक्त के दशवें श्लोकांश में ...कृष्ण के आदि पुरुष यदु
को दास कहा है ...
तथा इनके साथ तुर्वसु का भी उल्लेख हुआ है
__________देखें
उत दासा परिविषे स्मत्दिष्टी गोपरिणषा यदुश्तुर्वसुश्च महामहे ---- ऋ० १०/६२/१०
यहाँ यदु और तुर्वसु दौनों ...
दास के रूप में हैं...
हिब्रू बाइबिल में इनको यहुद: तथा तुरबर्जू के रूप में वर्णित किया है ! जेनेसिस खण्ड...
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कृष्ण की गीता यद्यपि द्रविड
दार्शनिकता पर आधारित है ..
परन्तु उसमें आध्यात्मिक तथ्य तो यथावत है किन्तु इसको लिपिबद्ध करने वाले ब्राह्मण ही थे ....
परन्तु ये द्रविड ब्राह्मणों के द्रोहि ही थे ....
फिर भी इसमे मिलावट नहीं हुई.........
आध्यात्मिक विवेचनाओं के रूप मे तो यह यथावत् ही है ...यूरोपीय सन्दर्भ में अब हम कुछ विचार करें ....जैसा कि कैल्टिक मायथॉलॉजी में है ...
"The Pythagorean doctrine prevails among the Gauls' teaching that the souls of men are immortal, and that after a fixed number of years they will enter into another body."
Caesar remarks: "The principal point of their doctrine is that the soul does not die and that after death it passes from one body into another" (see metempsychosis). Caesar wrote:
With regard to their actual course of studies, the main object of all education is, in their opinion, to imbue their scholars with a firm belief in the indestructibility of the human soul, which, according to their belief, merely passes at death from one tenement to another; for by such doctrine alone, they say, which robs death of all its terrors, can the highest form of human courage be developed. Subsidiary to the teachings of this main principle, they hold various lectures and discussions on astronomy, on the extent and geographical distribution of the globe, on the different branches of natural philosophy, and on many problems connected with religion.
— Julius Caesar, De Bello Gallico, VI, 13
Diodorus Siculus, writing in 36 BCE, described how the druids followed "the Pythagorean doctrine", that human souls "are immortal and after a prescribed number of years they commence a new life in a new body."[29] In 1928, folklorist Donald A. Mackenzie speculated that Buddhist missionaries had been sent by the Indian king Ashoka.[30]
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This co cept has been edited by Yogesh kumar Rohi ......
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